Saturday 12 April 2014

गैर द्विज महा-मानव:जिनका योगदान किया गया नजरअन्दाज़


गैर द्विज महा-मानव:जिनका योगदान किया गया नजरअन्दाज़
उपेन्द्र कश्यप


कैलेण्डरों में कहां हैं बहुजन ? के साथ का आलेख 

चन्द्र गुप्त मौर्य: एक महान वैश्य
चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म 340BC, राज 322-298 BC में) भारत में सम्राट थे। इनको कभी कभी चन्द्रगुप्त नाम से भी संबोधित किया जाता है। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफ़ल रहे।चन्द्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कन्धार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा-यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात था तथा विन्ध्य और कश्मीर के भू-भाग सम्मिलित थे. इन्होंने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया । इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया।सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य  एक वैश्य जाति माहुरी से सम्बन्ध रखता था। गुप्त या गुप्ता उपनाम केवल वैश्य ही प्रयोग करते थे , ओर करते हैं । चन्द्रगुप्त ने बाद में जैन धर्म अपना लिया था, जैन पूरी तरह से एक वैश्य जाती हैं. १००% जैन वैश्य हैं। माहुरी जाति अपने आप को चन्द्रगुप्त का वंशज मानती हैं। जो की बिहार के गया जिले में निवास करती हैं। मौर्य उपनाम चन्द्रगुप्त को चाणक्य ने दिया था। क्योंकि चन्द्रगुप्त कि माँ का नाम मुरा था। मुरा से ही मौर्य बना। चन्द्रगुप्त की पत्नी एक वैश्य नगर सेठ की पुत्री थी।क्या इनसे प्रतापी राजा भारतवर्ष में कोई दूसरा द्विज वर्ग से भी हुआ है ?
  ज्‍योतिबा फुले
ज्‍योतिबा फुले (जन्म - ११ अप्रेल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०) के नाम से प्रचलित 19वीं सदी के महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए “सत्य शोधक समाज” नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं। दलित व स्‍त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किया।ज्‍योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे।उन्‍होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया. उन्होंने इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।
                                  



                                                             पेरियार
इरोड वेंकट नायकर रामासामी(17 सितम्बर, 1879-24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, बीसवीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता थे । इन्होने जस्टिस पार्टी का गठन किया, जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था ।भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग को लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम शीर्षस्थ है ।बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरूद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूर्ण विरोधी थे । उन्होने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया । १९०४ में पेरियार ने एक ब्राह्मण, जिसका कि उनके पिता बहुत आदर करते थे, के भाई को गिरफ़्तार कराने में न्यायालय के अधिकारियों की मदद की । नतीजा उनके पिता ने उन्हें लोगों के सामने पीटा । इसके कारण कुछ दिनों के लिए पेरियार को घर छोड़ना पड़ा । पेरियार काशी चले गए । वहां निःशुल्क भोज में जाने की इच्छा होने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था । ब्राह्मण नहीं होने के कारण उन्हे इस बात का बहुत दुःख हुआ और उन्होने हिन्दुत्व के विरोध की ठान ली। इसके लिए उन्होने किसी और धर्म को नहीं स्वीकारा और वे हमेशा नास्तिक रहे । इसके बाद उन्होने एक मन्दिर के न्यासी का पदभार संभाला तथा जल्द ही वे अपने शहर के नगरपालिका के प्रमुख बन गए । चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर १९१९ में उन्होने कांग्रेस की सदस्यता ली । इसके कुछ दिनों के भीतर ही वे तमिलनाडु इकाई के प्रमुख भी बन गए । केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर उन्होने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व भी स्वीकार किया जो मन्दिरों कि ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही को हटाने के लिए संघर्षरत था । उनकी पत्नी तथा दोस्तों ने भी इस आंदोलन में उनका साथ दिया ।युवाओं के लिए कांग्रेस द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविर में एक ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर-ब्राह्मण छात्रों के प्रति भेदभाव बरतते देख उनके मन में कांग्रेस के प्रति विरक्ति आ गई । उन्होने कांग्रेस के नेताओं के समक्ष दलितों तथा पीड़ितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव भी रखा जिसे मंजूरी नहीं मिल सकी । अंततः उन्होने कांग्रेस छोड़ दिया । दलितों के समर्थन में १९२५ में उन्होने एक आंदोलन भी चलाया ।
जगजीवन राम

भारत के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री एवं राजनेता बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। वर्ष 1946 में वह जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का दर्जा मिला और 1946 से 1952 तक इस पद पर रहे।जगजीवन राम 1952 से 1986 तक संसद सदस्य रहे। 1956 से 1962 तक उन्होंने रेल मंत्री का पद संभाला। 1967 से 1970 और फिर 1974 से 1977 तक वह कृषि मंत्री रहे।इतना ही नहीं 1970 से 1971 तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1970 से 1974 तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया। 23 मार्च, 1977 से 22 अगस्त, 1979 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे।
28 साल की उम्र में ही 1936 में बिहार विधान परिषद् का सदस्य बने . जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए तो बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध एमएलए चुने गए। अंग्रेजों ने बिहार में अपनी पिट्ठू सरकार बनाने की कोशिश में जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिलाने का प्रयास किया,उन्हे मत्री पद और पैसे का लालच दिया गया, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों का साथ देने से साफ इनकार कर दिया। बिहार में जब काग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वह मत्री बने बाद में वह महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जेल गए। शिमला में कैबिनेट मिशन के सामने बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए और दलितों और शेष भारतीयों के बीच मतभेद पैदा करने की अंग्रेजों की कोशिश को नाकाम कर दिया। अंतरिम सरकार में जब बारह लोगों को लॉर्ड वॉवेल की कैबिनेट में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे। उनको श्रम विभाग का जिम्मा दिया गया। इसी दौर में उन्होंने कुछ ऐसे कानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मजदूरों और दबे-कुचलों के हित की दिशा में मील का पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने मिनिमम वेजेज एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट और ट्रेड यूनियन एक्ट लागू कराए, जिन्हे मजदूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में आज भी इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने इम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट और प्राविडेंट फंड एक्ट भी बनवाया। कल्पना कीजिए अगर बाबूजी ने इन कानूनों को न बनाया होता तो आज मजदूरों और कर्मचारियों की कितनी दुर्दशा होती।1952 के चुनाव के बाद उन्हें नेहरूजी ने संचार मत्री बनाया। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांव-गांव तक डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें रेल मत्री बनाया। उन्हीं के कार्यकाल में रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद पड़ी और रेलवे कर्मचारियों के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गईं। पद की लालसा उन्हें बिलकुल नहीं थी, इसलिए जब कामराज योजना आई तो उन्होंने सबसे पहले सरकार से अलग होकर सगठन का काम शुरू किया।

जगदेव प्रसाद

"जिस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी. चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं. इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे. जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी." -जगदेव बाबू( 2 Feb.1922- 5 Sept. 1974), 25 अगस्त, 1967 को दिए गए ओजस्वी भाषण का अंश.ऐसे ख्याल रखने के कारण ही उनकी हत्या की गयी थी.
 महात्मा ज्योतिबा फूले, पेरियार साहेब, डा. आंबेडकर और महामानववादी रामस्वरूप वर्मा के विचारों को कार्यरूप देने वाले जगदेव प्रसाद का जन्म जहानाबाद के कुर्था प्रखंड के कुरहारी ग्राम में अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था.वे वर्तमान शिक्षा प्रणाली को विषमतामूलक, ब्राह्मणवादी विचारों का पोषक तथा अनुत्पादक मानते थे. वे समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के पक्ष में थे. एक सामान तथा अनिवार्य शिक्षा के पैरोकार थे तथा शिक्षा को केन्द्रीय सूची का विषय बनाने के पक्षधर थे. वे कहते थे-“चपरासी हो या राष्ट्रपति की संतान,सबको शिक्षा एक सामान”.
 जगदेव बाबू कुशवाहा जी की जयंती हर साल २ फरवरी को कुर्था (बिहार) में मनाई जाती है, जिसमे लाखों की संख्या में लोग जुटते है. शोषित समाज दल ने उन्हें 'भारत लेनिन'  के नाम से विभूषित किया है. उनकी क्रांतिकारी विरासत जिससे उन्होंने राजनीतिक आन्दोलन को सांस्कृतिक आन्दोलन के साथ एका कर आगे बढाया तथा जाति-व्यवस्था पर आधारित निरादर तथा शोषण के विरूद्ध कभी भी नहीं झुके, आज वो विरासत ध्रुव तारा की बराबर चमक रही है. लोग आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते है जो शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम साँस तक लड़े.
                              
भोला पासवान शास्त्री
बिहार की राजनीति में 60 के दशक में भोला पासवान शास्त्री की तूती बोलती थी. वे 1967 में 3 महीने, 1968 में 6 महीने और 1969 में 28 दिन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रहे. अब अंदाजा लगाइए कि जिस शख्स ने तीन बार बिहार की सत्ता संभाली, जो चार बार बिहार विधानसभा में विपक्ष का नेता रहा, उसका परिवार आज गांव में दाने-दाने को मोहताज है. पूर्णिया के परोरा गांव में भोला पासवान शास्त्री के परिवार की हालत देखकर तो गरीबी भी शरमा जाए ऐसी हालत हो चुकी है. इनके परिवार का घर नहीं फूस का झोपड़ा है, जहां मिट्टी का चूल्हा जलता है. बदन पर दो कपड़े की दरकार है. सांसद महोदय 50 हजार रुपये दे गये हैं कि इनके घर में शौचालय बन सके. इनकी तरह की इमानदारी बिरले मिलती है,लेकिन तब भी कैलेंडरों मे जगह नहीं मिलती.क्यों भाई ??

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