Tuesday 1 April 2014

पापनाशक “मेकलसूत” के जन्म की है अद्भुत कथा


पापनाशक “मेकलसूत” के जन्म की है अद्भुत कथा
उपेन्द्र कश्यप
स्नान करने से होता है पाप का नाश
पानी है गुणकारी,है धार्मिक महत्व भी


सोन में स्नान एवं पुजा करती महिलाएं
           महासेतु के कार्यारम्भ के बहाने सोन का इतिहास जानना भी प्रासंगिक है।इसके जन्म की अद्भुत कथा है तो पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी।सोन के पानी का रंग के अनुसार प्राचीन भारतीय वाग्मय में कहीं-कहीं सोन या शोण को मेकलसूतभी कहा गया है । नर्मदा तो मेकलकन्याके रूप में प्रसिद्ध हैं ही । इसका उद्गम भी मेकल पर्वत ही है । इसी मेकल के पश्चिमी छोर पर बसा हुआ है अमरकंटक, समुद्र से साढ़े तीन हजार फीट की ऊँचाई पर जहाँ से नर्मदा प्रवाहित होती है । नर्मदा और सोन नदियों का उद्गम स्थल एक दूसरे के निकट है, इसका संकेत महाभारत में भी मिलता है।अमरकंटक के कूण्ड से सोन के प्रस्त्रिवत होने की एक लोक कथा कैमूर क्षेत्र में भी प्रचलित रही है । कहते हैं पहले सोन का निवास अमरकंटक के विषाल कूण्ड में था, जिसके तटपर जमदग्नि ऋषि रहते थे । एक बार कोई किसान एक बछड़े और उसकी प्रेमिका बछिया से खेत जोतवाने लगा । इस अत्याचार को देखकर बछड़े ने हलवाहे के पेट में सींग घोंप दी जिससे हलवाहे की मृत्यु हो गयी और उसके खून से बछड़ा का चमड़ा काला हो गया । यह देखकर बछड़े ने अमरकंटक के कूण्ड में कूदा तो उसका चमड़ा पुनः सफेद हो गया । ऋषिपुत्र परशुराम ने यह सब देखा तो सोचा ऐसा पाप नाशक जल अमरकंटक तक ही सीमित क्यों रहे ? सो उन्होंने अपने फरसे के एक ही प्रहार से उस कूण्ड का एक किनारा तोड़ दिया। सोन उस ओर बह निकला । परन्तु तथ्य यह भी है कि सोन का उद्गम अमरकंटक नहीं, अमरकंटक धाटी में है और पेठडरा के पास सोनकूण्ड में है- बिलासपुर जिले के उचरांचल में । उपरोक्त तथ्य और तात्कालिक भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि अमरकंटक के सोनमुड़ा का पड़ोस पौराणिक काल में सोन का उद्गम रहा है जो वत्र्तमान सोनकछार और मलिनिया नालों से होकर पूर्वोत्तर रूख लेता सोनकूण्ड होता हुआ आगे बढ़ता था ।
पुरे कार्तिक महीने भर जो शोण में स्नान करता है, वह निष्पाप तो हो ही जाता है, करोड़ों हजारों युगों तक विष्णुलोक में निवास करता है । माघ और बैसाख मास में युग(वर्ष) के आरम्भ और पुण्य पर्व में जो शोण में स्नान करता है दान देता है और हवन करता है उसे परमगति प्राप्त होती है । पुराण-प्रसिद्ध इस पापहारी नद के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध वैद्यक ग्रन्थ राजनिधष्ट के रचयिता का कहना है कि घर्घरा(घाघरा) और वेत्रावती(बेतवा) नदियों की तरह सोन का पानी अनेक प्रकार से गुणकारी है- रूचिकर, संतापहारी, हितकर, जठराग्निवर्धक, बलदायक, क्षीण अंगों के लिए पुष्टीप्रद, मधुर, कान्तिप्रद, पुष्टीकर, तुष्टीकर और बलवर्धक है। कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्राति को सोन में स्नान को प्राथमिकता वत्र्तमान में भी दिया जाता है । दाऊदनगर, सोननगर, नासरीगंज आदि में लोग सोन के पाट पर स्नान-दान, पूजा-पाठ और मेला के आयोजन को महत्ता देते हैं ।

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