Wednesday 30 April 2014

अस्सी के दशक में अनुमंडल का तय हुआ भुगोल


                                 फोटो- अनुमन्डल का नक्शा  
अनुमंडल गठन की राजनीति-1

पहली बार अनुमंडल बनाने की उठी मांग
चार प्रखंडों को मिलाकर गढा गया स्वरुप
और इच्छाएं रह गई जब अधुरी
उपेन्द्र कश्यप
जब औरंगाबाद को गया से अलग कर जिला बनाने के लिए जमीन पर रेखायें खींची जा रही थी तब ओबरा (241), दाऊदनगर(240) अलग-अलग विधान सभा क्षेत्र में था लेकिन यह जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। ओबरा के साथ बारूण, दाऊदनगर के साथ हसपुरा प्रखण्ड जुड़ा था, जबकि गोह टेकारी विधान विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। यह भौगोलिक राजनीतिक स्थिति 1972 तक रही। इसी वर्ष दाऊदनगर विस.क्षेत्र से जीते रामबिलास सिंह और ओबरा से नारायण सिंह। नारायण सिंह ने ओबरा-बारूण विधान सभा क्षेत्र के साथ दाऊदनगर प्रखण्ड को मिलाने की कवायद शुरू की तो रामबिलास सिंह ने दाऊदनगर, हसपुरा, ओबरा एवं गोह प्रखण्डों को मिलाकर अनुमण्डल बनाने की चर्चा प्रचार में लाया। दोनों अपनी राजनीतिक जरूरतें पूरी करने में लगे थे। इसी समय जिला पुर्नगठन समिति का गठन दारोगा प्रसाद राय की अध्यक्षता में किया गया। श्री राय बाद में मुख्यमंत्री बने। रामबिलास सिंह (अब स्वर्गीय) ने इस पत्रकार से अपने इस प्रयास पर लंबी बातचीत किया था। राजस्व मंत्री चन्द्रशेखर सिंह तथा मंत्री लहटन चौधरी के साथ जाकर श्री राय से मिले और आंकड़ों के साथ दाऊदनगर को अनुमण्डल बनाने का तर्क दिया। बातचीत में श्री सिंह ने यह भी कह दिया कि- औरंगाबाद को जिला तथा दाऊदनगर को अनुमण्डल बना दिया जाये।तब श्री राय ने टिप्पणी की - जिला बने से ऊ लोग के राज हो जाई।तब पुनः श्री सिंह ने कहा- हम इसलिए प्रयासरत हैं कि दाऊदनगर अनुमण्डल बन जाये।उधर जिला निर्माण के लिए तत्कालीन आकाशवाणी संवाददाता कृष्णवल्लभ सिंह नीलम भी सक्रिय थे। जब जिला गठन की प्रक्रिया पूरी हो रही थी उसी समय दाऊदनगर अनुमडल गठन का प्रस्ताव तैयार हो गया था। सिर्फ अधिसूचना जारी होनी शेष थी। लेकिन मामला लटक गया और सिर्फ 23 जनवरी 1973 को औरंगाबाद जिला गठन की औपचाचिकता पूरी कर ली गयी। इसके बाद 1977 के चुनाव में विधान सभा क्षेत्रों का वजूद बदल गया। दाऊदनगर-ओबरा तथा गोह-हसपुरा विधानसभा क्षेत्र बना और टेकारी तथा बारूण इससे अलग हो गये। यानी इस समय रामबिलास सिंह और नारायण सिंह दोनों अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सकें। अनुमण्डल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में ठहराव आ गया।

Monday 28 April 2014

वकील का फी नहीं लेकिन हैं करोडपति



विधायक का बयान जन सहानुभुति के लिए
 विधायक सोमप्रकाश के बयान में खुद उनसे जुडे व्यक्ति को भी अब राजनीति दिखने लगी है। दूसरे इसे जनसहानुभुति बटोरने की कवायद मान रहे हैं। युवा विजय कुमार का कहना है कि खुद 2010 के चुनाव में उन्होंने ही अपने हलफनामे में अपनी चल अचल संपत्ति का जो ब्योरा दिया था उसके अनुसार वे करोणपति हैं। तब एक करोण 47 लाख की संपत्ति की घोषणा किया था। क्या वह संपत्ति जनता में बांट देने से खत्म हो गई या दिया गया ब्योरा ही गलत था? इन्होंने कहा कि वकील रखने का फी नहीं होने की बात कहना सिर्फ जनता को बेवकुफ समझना और उसकी सहानुभुति बटोरने की कोशिश भर है। कहा कि एक विधायक को जितना कुल मासिक वेतन मिलता है उससे कई वकील रखे जा सकते हैं। विधायक द्वारा ही गठित नवजवान सभा के सदस्य नागेंदर सिंह इस बयान को खारिज करते हैं। कहा कि इस तरह का बयान देने से जनता में विश्वसनीयता खोता है आदमी। कहा कि सिर्फ अपनी लडाई लडते रही विधायक जनता की नहीं।

न समिति का गठन न ही बैठक
ठप रहा विकास कार्य
 साढे तीन साल तक इलाके का विकास ठप रहा। न  समितियों का गठन किया गया न गठित कमितियों की बैठक की गई। कोई गतिविधि विधायक की नहीं रही। अनुमंडल अनुश्रवण समिति की बैठक कभी नहीं की गई, जबकि दो साल से उसके अध्यक्ष खुद विधायक हैं। यह सौभाग्य उन्हें वरिस्ठ विधायक रणविजय सिंह के जेल में रहने के कारण मिला था, जो इलाके के लिए दुर्भाग्य बन गया। अनुमंडल में संचालित सरकारी योजनाओं का कार्यांवयन की समीक्षा नहीं हो सकी। सब भगवान भरोसे रहा। इसी तरह ओबरा विस क्षेत्र के हाई स्कूलों में प्रबन्ध समिति का गठन नहीं किया गया। एक स्कूल के प्रधानाध्यापक ने कहा कि जाते-जाते गठित कर गए थे। इनके अनुसार करीब दो माह पूर्व ही समितियों का गठन किया गया है। यानी करीब तीन साल से अधिक समय तक हाई स्कूल में विकास ठप रहा। इसके लिए प्रयास नहीं किए गए।   
आगे नहीं बढ सका कलम क्रांति का शंखनाद

राजनीतिक इस्तेमाल भर हुआ साबित
 उच्च न्यायालय में दाखिल वाद के अनुसार सरकारी सेवक रहते औरंगाबाद में एनजीओ चलाने के मामले में सोमप्रकाश के बर्खास्तगी की आशंका है। लेकिन इसी एनजीओ ने उन्हें दरोगा से विधायक बना दिया। रास्ता यही था, महत्वाकांक्षा इसी रास्ते पर चलते वक्त जगी। विधायक के प्रतिनिधि नंदकिशोर सिंह के अनुसार साल 2006 में शैक्षिक जागृति मंच का गठन कर आदिवासी बच्चों के बीच कलम क्रांति का शंखनाद किया गया था। संभवत: 2009 में जिला मुख्यालय में तात्कालीन राज्यपाल आए और मंच के प्रयास की सराहना करते हुए पचास हजार रुपए का चेक प्रदान किया था। लोग इस बत को लेकर अब आलोचना करते हैं कि मीडिया ने हाथों हाथ लिया लेकिन तब हिडेन एजेंडा उजागर नहीं किया। वह मंच बेमौत क्यों मर गया? क्या वह राजनीतिक उद्देश्य से गठित किया गया था? सोमप्रकाश इस मुद्दे पर बोलना नहीं चाहते। सवालों से भागते हैं। सवाल है कि क्या हुआ मंच का, उस पैसे का या चन्दा वसूल किए गए पैसे का? कोई हिसाब क्यों नहीं जनता के बीच गत पांच सालों में रखा गया। ओबरा में छात्रा की शिक्षा के लिए बस खरीदा गया, वह क्यों बैठ गया? जब एक मामुली दारोगा थे तो मंच सक्रिय था फिर विधायक बनते ही क्यों उसकी गतिविधियां ठप हो गईं? जनता जानना चाहती है, मगर विधायक जी सामना करना नहीं चाहते।

खुद पर दिखाए गए शो पर भी जबाब नहीं देते
सन्दर्भ- सावधान इंडिया का एपीसोड
सिर्फ झुठ दिखाने का क्या था मकसद
 सावधान इंडिया में जो दिखाया गया उसे देखने वाले और सोमप्रकाश को विशेषत: ओबरा के थानेदारी कार्यकाल को जानने वाले सकते में पड गये थे। सवाल उठाने वालों का भरोसा इमानदारी का दावा करने वालों से टूटता रहा है। यह एपीसोड ओबरा के व्यवसाई विनय प्रसाद बनाम सोमप्रकाश के बीच के विवाद पर आधारित है। यह घटन क्रम तब का है जब सोमप्रकाश ओबरा का थानेदार थे। मालुम हो कि अप्रैल 2006 से मई 2008 तक ओबरा के थानेदार थे। इस शो को चौरम निवासी फिल्म निर्देशक संतोष बादल ने बनाया है। कुछ सवाल जिसका जबाब कभी नहीं दिया- क्या कभी निलंबित अवधी में दुध बेचा? क्या कभी विनय कुमार ने उन्हें पीटवाया था? क्या इनके घर कोई गुंडा मारने गया था? अगर यह सच है तो तब प्राथमिकी क्यों नही दर्ज किया, तब खुद थानेदार थे? क्या इमानदारी चमकाने के लिए ही 4 करोड की सडक योजना शुरु होते ही 4 करोड के घोटाले की एफआईआर नहीं दर्ज कराया था? 10 रु. के लिए शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज इसीलिए नहीं किया था? ओबरा के थानेदार रहते खुदवां थाना में बैठ कर जब एफआईआर कैसे दर्ज किया था? फिर जब विनय कुमार ने पीटवाया तो उनके खिलाफ क्यों नहीं प्राथमिकी दर्ज कराया? उनकी गिरफ्तारी में तत्कालीन एसडीओ ने आपको साथ दिया था? क्या विनय कुमार को 5 साल की सजा हुई थी? क्या उनका और आपका चुनावी मुकाबला हुआ था? वे तो विधान परिषद के चुनाव लडे थे। किसी की हत्या विनय ने नहीं की थी, और हां- जिस ड्राइवर के अपहरण का किस्सा दिखाया है-उसने तो कोर्ट में कहा था कि मेरा विनय बाबु से बेहतर रिश्ता है। उसकी मां और पत्नी ने भी लिखित बयान दिया था। फिर शैक्षिक जागृति मंच को इस एपीसोड से दूर क्यों रखा?



Sunday 27 April 2014

सोमप्रकाश ने साबित किया कि वे झुठे हैं,


      

                                                                             फरवरी 2013 में बिहार टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट
सोमप्रकाश
ने साबित किया कि वे झुठे हैं,उन्हें लोक में विश्वास है ही तंत्र में.
उन्होंने अपने किए या कहे झुठ से उठे सवाल पर जवाब देने की कसम खा रखी है. बिहार से बाहर छपने वाले अखबार में छपवाई झुठी खबर पर जवाब दिया लाइफ ओके पर दिखाई गई एपीसोड से उठे सवाल का जवाब दिया. हिटलर के सहयोगी गोएबल्स का यह चेला झुठ की बुनियाद पर अपना आभा मंडल गढ रहा है.मीडिया का इस्तेमाल कर,लेकिन जब झुठ पकडकर वही मीडिया कोई सवाल करता है तो वह भडक जाते हैं.कहा गया है -कमजोर नस किसी का दबा देंगे तो वह भडकेगा ही.

   विधायक सोमप्रकाश की एक और नौटंकी,लाइफ ओके पर सावधान इंडिया में 23 एवं 24 जनवरी 2013 को दिखा.झुठ की बुनियाद पर अपनी छवि गढने का शायद ही इस तरह का दूसरा कोई उदाहरण दिखे.मैं नहीं जानता सच, तो सोम जी बता दें सच? गणतंत्र दिवस पर आपको मेरी चुनौती है कि अगर आपको भारतीय गणतंत्र और अपनी ईमानदारी पर भरोसा है; तो नीचे पुछे मेरे सवाल का जवाब दें. लेकिन शक है कि आप ऎसा करेंगे,क्योंकि आपको न तंत्र पर भरोसा था,जिसकी कमाई आप खाते थे,न गण पर जिसने आपको नेता बनाया था.आपको सिर्फ गण को मुर्ख बनाने में विश्वास हैं.  पहले जात भाई के एक डीलर को ले भाष्कर में मैनेज-खबर छपवाया.ताकि इमानदार और जनहितैषी के साथ सतत संघर्षशील व्यक्ति की छवि गढी जा सके.
साहेब से नेता बनने के लिए कथित इमानदार छवि का लाभ इन्हें मिला था. अब इसका भूत इन पर सवार हो गया है. स्थानीय संतोष बादल के जरिए इस चैनल के लिए जो एक एपीसोड बनाया गया उसके अंत में खुद सोम ने दिखाई गई तमाम घटनाओं को अपना भुक्त-सच बताया, साथ ही लोगों से अपील की कि –‘आप लडें,संघर्ष करें. अगर कोई व्यक्ति अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करता हो तो उसका डटकर मुकाबला करें’. शायद कोई और इन्ही की तरह कल विधायक बन जाए. सच्ची घटनाओं पर आधारित एपीसोड में कितनी सच्चाई होती है यह सोमप्रकाश पर केन्द्रित इस एपीसोड ने हमें बताया. इस में जान बुझ कर झुठ गढा गया ताकि अपनी छवि और बेहतर बनाया जा सके.मुख्यमंत्री या सांसद बनने का ख्वाब पाला यह शख्स खुद को झुठ की बुनियाद पर खडा करने पर तुला है.अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी को धोखा देकर अपने मुंह मियां मिट्ठु बनने वाले को यह पता नहीं कि काठ की हांडी दुबारा नही चढती’.
अगर मैं गलत हूं , मैं नहीं जानता सच तो कोई मुझे बताए यह सच !मैं कोई भी बात जिम्मेदारी से कह रहा हूं-1994 के दारोगा से ,दशहरा 1994 से पत्रकारिता कर रहे उपेन्द्र कश्यप का सवाल-*
एक रास्ट्रीय अखबार (जो बिहार में नहीं छपता है) में 7 अक्टुबर 2012 को लिखी गई खबर-‘घुस के लिए चन्दा मांग रहे विधायकपर मेरे सवाल को क्यूं टालते रहे ? 2 माह में भी जवाब के लिए समय क्यों नहीं मिला ?
·    सावधान इंडिया  में दिखाई गयी स्टोरी को क्या  आपने सच नहीं कहा है ? क्या यह ओबरा के व्यवसाई विनय कुमार और आपके मतभेद पर नहीं है ? आप दारोगा से नेता बने अजय सिंह और विनय कुमार सज्जन कुमार नही हैं ?
* क्या आपने कभी निलंबित अवधी में दुध बेचा है ? कया यह सच नहीं कि आपने चुनाव के लिए अंत समय इस्तीफा दिया था ? क्या कभी विनय कुमार ने आपको पीटवाया था ? क्या आपके घर कोई गुंडा मारने गया था ? अगर यह सच है तो क्या आपकी बहादुरी घास चरने गई थी ? भला आपने क्यों नहीं केस किया ? जब आप 4 करोड की सडक योजना शुरु होते ही 4 करोड के घोटाले की एफआईआर कर सकते हैं, 10 रु. के लिए शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं, ओबरा के थानेदार रहते खुदवां थाना में बैठ कर जब एफआईआर कर सकते थे ,तो फिर जब विनय कुमार ने आपको बुरी तरह पीटवाया तो उनके खिलाफ क्यों नहीं प्राथमिकी दर्ज कराया ?  उनकी गिरफ्तारी में तत्कालीन एसडीओ ने आपको साथ दिया था ? क्या विनय कुमार को 5 साल की सजा हुई थी ? क्या उनका और आपका चुनावी मुकाबला हुआ था ? वे तो विधान परिषद के चुनाव लडे थे. किसी की हत्या विनय ने नहीं की थी, और हां- जिस ड्राइवर के अपहरण का किस्सा दिखाया है-उसने तो कोर्ट में कहा था कि मेरा विनय बाबु से बेहतर रिश्ता है.उसकी मां और पत्नी ने भी लिखित बयान दिया था. फिर आपने शैक्षिक जागृति मंच को इस एपीसोड से दूर क्यों रखा,जो आपकी चाहतों की सिढी बनी थी ? दरअसल में सोम जी आप आत्ममुग्धता के मरीज हैं ,जो चन्द चाटुकारों से घिरा हुआ कुपमंडुक है लेकिन खुद को समझता बहुत कुछ है. इस बार इतना ही-अगली दफा दुसरे मुद्दे पर होगी भिडंत.तैयार रहिए कब तक नहीं बोलेंगे मेरे सवालों पर आप.मैं नही, ये तो पब्लिक भी सबकुछ जानती है भाई .....गणतंत्र की शुभकामना के साथ चुनौती भी. इस उम्मीद के साथ कि गणतंत्र में आप विश्वास दिखाएंगे.
      ओबरा 220 के निर्दलीय विधायक सोमप्रकाश की कहानी,उम्मीद है आप इसका इस्तेमाल प्रकाशन के लिए कर सकते है-ऎसे लोगों को उघाडना जरुरी है.


पीटते रहे इमानदारी का डंका और उघडता रहा नकाब


                              फोटो सावधान इंडिया पर प्रसारित फुटेज
सिर्फ छवि गढने की करते रहे कोशिश
                              हमेशा लिया मीडिया और झुठ का सहारा
उपेन्द्र कश्यप
सोमप्रकाश सिंह हमेशा अपनी इमानदारी का डंका पीटते रहे। लोगों को अपना पर्स दिखा खुद के गरीब होने की बात बताते। जब नामांकन में हलफनामा दिया तो असलियत सामने आई कि जनाब करोडपति हैं। छवि और चन्दे की वसूली पर फर्क पडने लगा तो मीडिया को आरोपित करने लगे। जबकि अपनी छवि चमकाने के लिए मीडिया का खूब बेजा इस्तेमाल किया। जिसका उदाहरण है लाइफ ओके चैनल पर चला सावधान इंडिया के तहत इनपर प्रसारित कार्यक्रम। यह कोशिश सिर्फ इसलिए ताकि इमानदार और जनहितैषी के साथ सतत संघर्षशील व्यक्ति की छवि गढी जा सके। इसमें सिर्फ झुठ गढे गए किस्से ही दिखाए गए।
लाइफ ओके पर सावधान इंडिया में 23 एवं 24 जनवरी 2013 को संतोष बादल के निर्देशन में बना एक एपीसोड प्रसारित हुआ था। उसके अंत में खुद सोम ने दिखाई गई तमाम घटनाओं को अपना भुक्त-सच बताया, साथ ही लोगों से अपील की कि –‘आप लडें,संघर्ष करें। अगर कोई व्यक्ति अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करता हो तो उसका डटकर मुकाबला करें। सच्ची घटनाओं पर आधारित एपीसोड में कितनी सच्चाई होती है यह इससे दुनिया को पता चला। इस में जान बुझ कर झुठ गढा गया ताकि अपनी छवि और बेहतर बनाई जा सके। सावधान इंडिया में दिखाए गए किस्से पर जब इस संवाददाता ने सवाल किया तो कभी जवाब नहीं दिया, बस टालमटोल। दरअसल में जब जवाब नहीं जुटता है तो वे वर्जन नहीं देते हैं।

स्वाल जिनका जवाब सोम नहीं देते हैं
सन्दर्भ- सावधान इंडिया का एपीसोड
सिर्फ झुठ दिखाने का क्या था मकसद
 सावधान इंडिया में जो दिखाया गया उसे देखने वाले और सोमप्रकाश को जानने वाले विशेषत: ओबरा थानेदारी कार्यकाल को सकते में पड गये थे। सिर्फ सवाल उठते और इमानदारी का दावा करने वालों से उनका भरोसा टूट जाता। कुछ सवाल जिसका जबाब कभी नहीं दिया- क्या कभी निलंबित अवधी में दुध बेचा? क्या कभी विनय कुमार ने उन्हें पीटवाया था? क्या इनके घर कोई गुंडा मारने गया था? अगर यह सच है तो तब प्राथमिकी क्यों नही दर्ज किया, तब खुद थानेदार थे? क्या इमानदारी चमकाने के लिए ही 4 करोड की सडक योजना शुरु होते ही 4 करोड के घोटाले की एफआईआर नहीं दर्ज कराया था? 10 रु. के लिए शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज इसीलिए नहीं किया था? ओबरा के थानेदार रहते खुदवां थाना में बैठ कर जब एफआईआर कैसे दर्ज किया था? फिर जब विनय कुमार ने पीटवाया तो उनके खिलाफ क्यों नहीं प्राथमिकी दर्ज कराया? उनकी गिरफ्तारी में तत्कालीन एसडीओ ने आपको साथ दिया था? क्या विनय कुमार को 5 साल की सजा हुई थी? क्या उनका और आपका चुनावी मुकाबला हुआ था? वे तो विधान परिषद के चुनाव लडे थे। किसी की हत्या विनय ने नहीं की थी, और हां- जिस ड्राइवर के अपहरण का किस्सा दिखाया है-उसने तो कोर्ट में कहा था कि मेरा विनय बाबु से बेहतर रिश्ता है। उसकी मां और पत्नी ने भी लिखित बयान दिया था। फिर शैक्षिक जागृति मंच को इस एपीसोड से दूर क्यों रखा?

नाटक के नमुने और भी
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) सोमप्रकाश ने बिहार से बाहर प्रकाशित होने वाले एक दैनिक अखबार (जागरण नहीं) में 07 अक्टूबर 2012 को -“रिश्वत के लिए चन्दा माग रहे विधायक सोमप्रकाश” खबर प्रकाशित कराया था। दाउदनगर प्रखंड के 20 जविप्र दुकानदारों के लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। इसमें जमुआवां के रामजी यादव भी शामिल थे। इनके लिए ही 20000 रिश्वत देने हेतू चंदा वसूलने की खबर बिहार के बाहर प्रकाशित होने वाले एक अखबार में प्रकाशित कराया था। दरअसल वे बिहार के बाहर के राज्यों में भी खबर छपा कर अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी जैसे को प्रभावित करने का सतत प्रयास करते रहे थे। सवाल है कि जब 20 लाइसेंस रद्द हुए तो फिर सिर्फ एक के लिए यह प्रयास क्यों? किनसे चन्दा लिया गया? इस तरह के तब सवाल जागरण ने पुछा तो बोले अखबार ने बढा चढाकर लिख दिया है। यह सफाई ही सब्कुछ बता जाती है।

विधायकी छिने जाने पर प्रतिक्रिया
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) सोमप्रकाश की विधायकी छिने जाने पर कई तरह की प्रतिक्रिया सामने आ रही है। जदयू के मो.गुड्डु ने कहा कि अच्छा हुआ। जनता अब एक सही आदमी को चुनेगी। अल्पसंख्यक भी जदयू के नेता प्रमोद सिंह को चुनेंगे। निर्भय कुमार ने कहा कि बहुत अच्छा हुआ। आस्तिक शर्मा मान बैठे अहिं कि अब अगला एमएलए राजद से ही होगा। शोसित समाज दल ने पुछा है कि इतने दिनों बाद फैसला का मतलब, जब एक साल बाद फिर चुनाव होने ही हैं। विवेकानंद मिश्रा ने कहा-समय होत बडा बलवान। प्रेमनाथ कुमार ने कहा-भगवान के पास देर है अन्धेर नहीं। बहुत दिनों से एक.... को झेल रहे थे। विनोद सिंह- बडा.... निकले दारोगा जी।

Friday 25 April 2014

सोमप्रकाश को लेकर राजनीति गरमाई


सोमप्रकाश को लेकर राजनीति गरमाई
 : पटना उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को ओबरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक सोमप्रकाश सिंह के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया है। न्यायाधीश नवनीति प्रसाद सिंह ने जनता दल यूनाइटेड के तत्कालीन उम्मीदवार प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की ओर से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। प्रमोद ने बताया कि निर्वाचन को अवैध घोषित करते हुए अदालत ने चुनाव आयोग को रिक्त हुई इस सीट पर शीघ्र चुनाव कराने का आदेश दिया है। फैसले की सूचना दाउदनगर और ओबरा प्रखंड में मिलते ही इलाके में राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो गई। यूं कह लीजिए इलाके की राजनीति गरमा गई है। सोमप्रकाश सिंह द्वारा गठित नौजवान सभा के सदस्य नागेंद्र सिंह ने फैसले को अफसोसजनक बताया। मालूम हो कि पुलिस की नौकरी करते हुए सोमप्रकाश पर कई विभागीय कार्रवाई चल रही थी जिसमें ओबरा के नवनेर में नक्सली पुलिस मुठभेड़ और बख्तियारपुर में रेलवे को पहुंची क्षति जैसे महत्वपूर्ण मामले शामिल थे। ओबरा विधानसभा क्षेत्र के लिए जब नामांकन किया जा रहा था तब उन्होंने इस्तीफा दिया था। एक ही दिन में इस्तीफा स्वीकार करना और नामांकन प्रपत्र को वैध घोषित करना तब चर्चा का विषय बना था। उम्मीदवारी रद न हो जाए इस डर से ही सोमप्रकाश ने अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनाया था तब इनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई चल रही थी और ऐसे में इस्तीफा देना और इस्तीफे को स्वीकार कर लेना दोनों कानून सम्मत नहीं माना गया था। हार के बाद प्रमोद सिंह चंद्रवंशी इसी मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट चले गए जहां यह फैसला आया। फैसले के बाद सोमप्रकाश के सर्वोच्च न्यायालय जाने की चर्चा है। हालांकि उनके मोबाइल नंबर 9471003295 पर बात करने का प्रयास किया परंतु उन्होंने मोबाइल नहीं उठाया। प्रखंड जदयू अध्यक्ष जितेंद्र नारायण सिंह एवं प्रदेश उपाध्यक्ष अभय चंद्रवंशी ने न्यायिक फैसले पर खुशी जाहिर की है। कहा कि करीब साढ़े तीन साल बाद यह न्याय मिला है। जदयू को अब अपनी जीत की संभावना नजर आने लगी है। हालांकि राजनीतिक गलियारे में कई तरह की चर्चाएं हैं।
निर्दलीय लेकिन जदयू के साथ
दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा के निर्दलीय विधायक सोमप्रकाश सिंह चुनाव लड़ते वक्त प्रचार करते थे - सब दलों में दलदल है, सबसे बेहतर निर्दल है। चुनाव जीतने के बाद जब जून 2013 में राजग का गठबंधन टूट गया तो वे जदयू के पाले में बैठ गए। निर्दलीय विधायक विनय बिहारी, पवन कुमार जायसवाल, दुलारचंद गोस्वामी और खुद सोमप्रकाश जदयू की बैठक में शरीक होने मुख्यमंत्री के 1 अणो मार्ग स्थित आवास पर पहुंच गए थे। उन्होंने जदयू के सरकार को समर्थन देने के करीब एक पखवारे बाद बयान दिया था कि उन्होंने बिना शर्त सरकार को समर्थन दिया है लेकिन जब सोन पर पुल निर्माण की घोषणा मुख्यमंत्री ने कर दिया तब कहा कि समर्थन पुल की मांग पूरी करने की शर्त पर ही दिया गया था।
मात्र 803 वोट से जीते थे सोम
दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा के थानाध्यक्ष रहे सोमप्रकाश सिंह राजनीति में आंधी की तरह आए और 18 दिन के महाभारत में मात्र 803 वोट से चुनाव जीतकर विधायक बन गए। उन्हें 36,815 वोट मिले थे जबकि जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को 36,012 वोट मिले। राजग की जब पूरे बिहार में आंधी चल रही थी वैसे में इनकी जीत मामूली वोट के अंतर के बावजूद राजग के लिए बड़ा झटका था। राजद के सत्यनारायण सिंह ने इमानदारी बचाओ आंदोलन तब किया था जब सोमप्रकाश ओबरा थाना के थानेदार थे और उनका ट्रांसफर कर दिया गया था तब सत्यनारायण को यह अनुमान नहीं था कि उनके लिए यह आंदोलन ही घातक साबित होगा। सोमप्रकाश पर यह आरोप लगते रहे हैं कि बतौर ओबरा थानाध्यक्ष भी उन्होंने राजनीतिक की जमीन मजबूत करनी शुरू कर दी थी। उनकी जीत के बाद इमानदारी का खूब नगाड़ा पीटा गया। हालांकि अब उनसे नाराज तबके की संख्या बढ़ी है।

ओबरा विधायक की सदस्यता समाप्त


jagran se
दरोगा की नौकरी छोड़ सोमप्रकाश लड़े थे निर्दलीय चुनाव
राज्य ब्यूरो, पटना : पटना हाईकोर्ट ने ओबरा (औरंगाबाद) विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए विधायक सोमप्रकाश सिंह को करारा झटका दिया है। न्यायालय ने शुक्रवार को सिंह के चुनाव को असंवैधानिक करार दे दिया। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को ओबरा विधानसभा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने (दोबारा चुनाव) का आदेश दिया है।1न्यायाधीश नवनीति प्रसाद सिंह ने अपने फैसले में कहा कि नियमत: सोमप्रकाश सिंह द्वारा फतुहा से दरोगा के पद को छोड़ने का तरीका ही गलत था। उनके इस्तीफा को सही नहीं माना जा सकता। ल्ल शेष पृष्ठ 15 पर1राज्य ब्यूरो, पटना : पटना हाईकोर्ट ने ओबरा (औरंगाबाद) विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए विधायक सोमप्रकाश सिंह को करारा झटका दिया है। न्यायालय ने शुक्रवार को सिंह के चुनाव को असंवैधानिक करार दे दिया। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को ओबरा विधानसभा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने (दोबारा चुनाव) का आदेश दिया है।1न्यायाधीश नवनीति प्रसाद सिंह ने अपने फैसले में कहा कि नियमत: सोमप्रकाश सिंह द्वारा फतुहा से दरोगा के पद को छोड़ने का तरीका ही गलत था। उनके इस्तीफा को सही नहीं माना जा सकता।तात्पर्य यह कि उनकी सरकारी सेवा समाप्त नहीं हुई और वे जनप्रतिनिधि बन गये। सिंह के चुनाव को जदयू नेता प्रमोद सिंह चन्द्रवंशी ने चुनौती दी थी। चन्द्रवंशी पिछले विधान सभा चुनाव 804 वोट से हारे थे। उनकी ओर से अधिवक्ता एसबीके मंगलम् ने न्यायालय को बताया कि सिंह 1994 में पुलिस सेवा में थे। तीन नवंबर 2011 को आनन-फानन में दरोगा की नौकरी छोड़कर विधान सभा के चुनाव मैदान में कूद गए, जबकि उन पर विभागीय कार्यवाही चल रही थी। उनकी बर्खास्तगी तय थी। यदि उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता, तो वे चुनाव नहीं लड़ सकते थे। हालांकि अदालत सोमप्रकाश अपना पक्ष स्वयं रख रहे थे। किन्तु अपना बचाव नहीं कर पाए।
एक ही दिन में हो गया सबकुछ
पटना : न्यायालय में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि सिंह का इस्तीफा बड़ा ही नाटकीय ढंग से हुआ। एक ही दिन सबकुछ हो गया। तीन नवंबर को जांच रिपोर्ट वरीय आरक्षी अधीक्षक के समक्ष आया। यहां से उसी दिन यह डीआइजी के चला गया। सिर्फ दो घंटे में सारी प्रक्रिया पूरी हो गई। इसके बाद इस्तीफा भी स्वीकार हो गया। 1महीने भर में चार चुनाव याचिका निष्पादित : पटना हाईकोर्ट ने एक महीने में चार चुनाव याचिका निष्पादित किया एक ही दिन में हो गया सबकुछ 1है। यहां कुल 9 चुनाव याचिकाएं लंबित थीं। ज्यादातर चुनाव याचिकाओं को निष्पादित होने में पांच साल का समय लगा है। तब तक नए चुनाव का समय आ जाता है। ऐसे में याचिका को कोई मतलब नहीं रह जाता है। विगत एक माह में निष्पादित चुनाव याचिकाएं इस प्रकार हैं-ललन सिंह बनाम राम बदन राय, फराज फातमी बनाम अशोक कुमार यादव, अवधेश नारायण सिंह बनाम डा.अजय कुमार और प्रमोद सिंह चन्द्रवंशी बनाम सोम प्रकाश सिंह। ध्यान रहे कि चन्द्रवंशी की याचिका को छोड़कर सभी चुनाव याचिकाएं खारिज हुईं।

गत लोस चुनाव में राजद का था कमजोर प्रदर्शन


                                  फोटो-ओबरा विस का मानचित्र
                           काराकाट के ओबरा विस क्षेत्र का आकलन
इस बार पडे हैं 48059 मत अधिक
                               गठबन्धन का भी बदल गया है स्वरुप

विधानसभा एवं लोकसभा के मतों का विश्लेषण  

उपेन्द्र कश्यप,
लोकसभा चुनाव 2009 में काराकाट के ओबरा विधान सभा क्षेत्र में राजद की हालत पतली थी। इसके प्रत्याशी डा.कांति सिंह को तब 29681 मत मिले थे। राजग प्रत्याशी महाबली सिंह को तब 34777 मत मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह को 7607 मत मिले थे। अन्य प्रत्याशियों के हिस्से 22703 मत गए। तब कुल 94768 मत पडे थे। इस बार कुल 142827 यानी 48059 मत अधिक पडे हैं। यह अधिक मत परिणाम प्रभावित करेगा। इसे दोनों ध्रुव राजद और राजग अपने पक्ष में सकारात्मक मान रहे हैं। तब राजद कांग्रेस अलग अलग थे लेकिन राजद के साथ तब लोजपा थी। इस बार राजद के साथ कांग्रेस है, लेकिन इसका आधार वोट राजद के पाले में कितना गया इसका दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि कांग्रेस को मिले वोट का बडा हिस्सा राजग को चला गया इससे शायद ही कोई इंकार करेगा। लोजपा भाजपा के साथ है और इसका मत सर्वाधिक रालोसपा प्रत्याशी को मिला इससे किसी को शायद ही इंकार हो। इस बार भाजपा और जदयू अलग अलग हैं इसे ही अपनी जीत के लिए सबसे मजबूत पक्ष राजद मानता है। लोजपा और रालोसपा भाजपा के साथ हैं। इससे मजबूती मिली है। जदयू को वोट काफी कम मिलेगा। इसका एक कारण है लहर और दूसरा जिधर हवा का रुख अधिक दिखता है उधर ही 10 से 15 फिसदी वोटरों का रुझान हो जाने की प्रवृति का होना। लेकिन तब भी शायद तीसरे स्थान से नीचे नहीं खिसकेगा जदयू। राजद का कहना कि उसके वोटर आक्रामक थे और सर्वाधिक वोट डाले हैं, यह एक पक्षीय सच है। राजग समर्थकों ने भी आक्रमकता दिखाई है। जिसकी जहां चली उसने आक्रमकता दिखाया है। चर्चा के अनुसार बिरई तो उदाहरण है जहां राजद के वोटरों को भी वोट नहीं देने दिया गया। गत विधानसभा चुनाव 2010 का परिणाम देखें तो राजद प्रत्याशी सत्यनारायण सिंह को मात्र 16851 मत मिले थे। तब राजद का आधार मत निर्दलीय सोम प्रकाश के साथ चला गया था और उसे 36815 मत मिला। जदयू के प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को 36012 मत मिला था। राजग की लहर में वे 803 वोत से हार गए थे। यहां स्पस्ट है कि विधान सभा और लोकसभा चुनाव की प्रकृति भिन्न होती है। मतदाताओं का रुझान, सोच सब अलग होते हैं।