Wednesday 29 April 2015

नबाब अहमद खां ने बसाया था अहमदनगर



             अजीमाबाद एवं इलाहाबाद के सूबेदार रहे हैं नबाब साहब
                                           नोखा का किला किया था फतह
                          उपेन्द्र कश्यप
  • दाउदनगर (औरंगाबाद) आज गुरुवार को शहर के दो बुजुर्गों का उर्स मुबारक है। दोनों के मजारों पर न सिर्फ मेले लगेंगे, बल्कि जिले के आला अधिकारी चादरपोशी भी करेंगे और जलसा के साथ कव्वाली की महफिल भी सजेगी। कौन थे दोनों बुजुर्ग? उनका इतिहास और योगदान क्या था।
  • मौलाबाग में स्थित है नबाब अहमद अली खान का मजार। ये नबाब जीवन खान के छोटे पुत्र और नवाब दाऊद खाँ के परपोता थे। 15 साल की उम्र में फने सिपाहीगरी सीखी। महारत हासिल कर मोहम्मद शाह बादशाह के दरबार में हाजिर हुए। बादशाह ने खुश हो कर 1144 हिजरी में इलाहाबाद की सुबेदारी किया। उसके बाद अजीमाबाद(पटना) की सूबेदारी से नवाजे गए। इनकी बहादुरी की वजह से बंगाल, उड़ीसा और सलहट की मुहिम भी सफल हुई। नबाब साहब अजिमाबाद के मुहल्ला मुगलपुरा पटना सिटी में रहा करते थे। कभी-कभी दाऊदनगर आया करते। एक बार राजा नोखा जिला शाहाहाबाद (रोहतास) का रहनेवाला दाऊदनगर आया। इस समय नबाब साहब दाऊदनगर में न थे। मैदान खाली पाकर दाऊदनगर किला के पश्चिमी दरवाजे को उखाड़ ले गया। ये खबर जब नबाब साहब को मालूम हुई तो जंग के लिए फौज के साथ नोखा पहुँचे। आखिर में नोखा किला फतह किया। इसके बाद 1145 हिजरी में दाऊदनगर की नई शहर अहमदगंज की बुनियाद अपने धर्म गुरू सैयद शाह अब्दुल रशीद कादरी के हाथों से डलवाया।  उनके मजार पर हर धर्म के लोग आकर फैज पाते हैं और मुरादें हासिल करते हैं।

दर्शनीय है घोडेशाह बाबा का मजार

साइसी करने वाले बन गये पुज्यनीय
पुलिस प्रशासन कराता है कव्वाली
दाउदनगर (औरंगाबाद) शहर के दिलो-जीगर में बसे हजरत इसमाइल शाह उर्फ घोड़े शाह बाबा का थाना परिसर में मजार है। गुलाम भारत में जब थानेदार, दारोगा, सिपाही जब इस क्षेत्र का दौरा करने आते थे तो उन्हे घोड़ा दिया जाता था। इन घोड़ों की हिफाजत के लिए यहाँ घोड़े शाह साइस के पद पर नाफीज थे। साइसी के बाद जो वक्त बचता था उसका इस्तेमाल वे इबादत-रेयादत में करते थे। इनकी मृत्यु के बाद थाना परिसर में उनकी याद में एक मजार बनाया गया। एक बार इसी थाने में दारोगा अब्दुल अजीज पदस्थापित हुए। एक बार वे प्रशासनिक कार्य से जरूरी कागजात लेकर कहीं जा रहे थे। इनका कागज खो गया। किसी ने सलाह दी की वे इस मजार पर फतेहा कर अपनी मुराद रखें। उन्होने वैसा ही किया। शाम के वक्त कोई अजनबी शख्स आकर खोया हुआ कागजात वापस कर दिया। अब्दुल अजीज ने चादर पोशी की और कवाली का आयोजन किया। यह दस रजब को हुआ था इसलिए हर साल इस तारिख को प्रशासन द्वारा यहाँ चादर पोशी एवं कव्वाली का आयोजन कराया जाता है।


Tuesday 28 April 2015

नकारात्मक भाव लेकर जी रही है युवा पीढि


सामाजिक दायित्व का ज्ञान और धैर्य नहीं
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) जब देश, राज्य और पडोसी नेपाल में भूकंप से हजारों की जान चली गई और पूरी मानवता कराहने लगी तो सोशल साइट का इस्तेमाल अफवाह फैलाने के लिए किया गया। यह कार्य सिर्फ युवा ही कर सकता है क्योंकि वही टेक्नोफ्रेंड है, न कि ग्रामीण आम जनता या बुजुर्ग। कभी छत्तीसगढ मौसम विभाग के हवाले कब कब आयेगा भूकंप तो कभी नासा के हवाले कि चान्द आधा दिखेगा। दोनों ही चीजें असंभव है। किंतु जान के भय ने इसे तीव्रता से फैलाया। सवाल है कि क्या युवा पीढि अपना सामाजिक दायित्व भूल गया है या उसे इसका ज्ञान ही नहीं है? मौतों के बीच आनन्द लेने की यह प्रवृति क्यों है युवाओं में?
विवेकानंद ग्रुप आफ स्कूल के निदेशक डा.शंभु शरण सिंह ने कहा कि मानसिक रुप से बहुत स्वस्थ नहीं है युवा। नकारात्मक भाव लेकर जीता है। इसी में वह आनंदविभोर होता है। लक्ष्य से भटका हुआ जीवन का कोई ध्येय नहीं रखता युवा। समाज को दिग्भ्रमित करते हैं। ऐसे युवा हर समाज और स्थान पर हैं। इनकी पडताल कर एनजीओ के साथ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक माध्यम से युवा पीढि को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए। मनोवैज्ञानिक डा.प्रो.कामेश्वर शर्मा ने कहा कि इस प्रवृत्ति को विपर्यय कहते हैं- गलत प्रत्यक्षीकण। इसका शिकार जब भगवान राम हुए तो आम आदमी की क्या औकात है। जब वे ही मृग को स्वर्णमृग समझ बैठे थे। युवाओं को डरावना महौल बनाने से बचना चाहिए। भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव डा.प्रकाशचन्द्रा ने कहा कि नकारात्मक चीजें बदबू की तरह अधिक फैलती हैं। चूंकि जान की गरज होती है तो ऐसे अफवाह भी तेजी से सब कोई फैलाता है। ऐसा नहीं कि युवा सिर्फ नकारात्मक ही सोचता है। नेपाल या कहीं भी दिखिए त्रासदी के समय युवा ही सबसे अधिक बचाव और राहत का कार्य करता है। हां कुछ युवा इसे समझते नहीं। किसान अभय चंद्रवंशी ने कहा कि युवाओं के पास सब कुछ है, ज्ञान है, समझ है, दूरदर्शिता है किंतु धैर्य और समय का अभाव है। उत्तेजना है उसके पास इस कारण जल्दबाजी कर जाता है जिस कारण अफवाह फैलता है। लेकिन हमें याद रखना होगा कि अफवाहों के पांव नहीं होते।   

अफवाह फैलाना दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मिन्दगी भरा

 दाउदनगर (औरंगाबाद) जिस तरह अफवाह फैलायी गयी उसे युवा पीढि भी दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मिंदगी भरा मानता है। युवा क्रिकेटर प्रफ्फुलचन्द्र सिंह ने कहा कि युवाओं पर देश का भविष्य निर्भर करता है। कुछ युवाओं ने अफवाह उडाया जो गलत है। हमारा कर्तव्य सामाजिक और पारिवारिक दायित्व की पूर्ती करना है। समाज सुरक्षित कैसे हो यह फर्ज है न कि उसे डराना। युवा राजद अध्यक्ष अरुण कुमार ने कहा कि बेहतर करने की इच्छाशक्ति जाग्रत करनी होगी। कोई युवा गलत कर रहा है तो हमारा फर्ज है कि उसे समझायें और अच्छा करने को प्रेरित करें। अमरेश यादव ने कहा कि  मौज की जिन्दगी जीने में युवा अपना कैरियर चौपट कर रहा है। जिस दिन हम युवा जाग जायेंगे देश पूरी तरह उत्तम बन जायेगा। चिंटु मिश्रा ने कहा कि खुद से कहानी बनाकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना गलत है। पहले मामले की गहराई तक जायें तभी कुछ पोस्ट करें। विकास कुमार मौर्य ने कहा कि  सोशल मीडिया अफवाहों का अड्डा बन गया है। युवा वर्ग को काफी सुधार करने जरुरत है। रुंजय कुमार ने कहा कि कोई भी पोस्ट सोच समझ कर डालना चाहिए  मृत्युंजय कुमार ने कहा कि आग्रह है कि ऐसा करने से बचें।

ये चांद आपको भला उल्टा क्यों दिखा?
अष्ठमी को उगा आधा चान्द से भ्रम
रविवार को चांद आपको भी उल्टा दिखा होगा? अगर ऐसा हुआ है तो आप मतिभ्रम के शिकार हैं। चंद्रमा उल्टा तभी दिखेगा जब पृथ्वी उल्टा घुमने लगेगी और ऐसा कदाचित संभव नहीं है। जब ऐसा होगा तो कोई यह बताने के लिए जिंदा नहीं बचेगा कि आज उसने चांद को आसमान में उल्टा देखा है। सोशल साइट पर अफवाह फैली और चांद सबको पढे लिखे तबके को भी चांद उल्टा दिखने लगा। सडक पर खडे होकर लोग चर्चा करने लगे। अल्पसंख्यक तबके के चार युवा इस संवाददाता के पास सच जानने की अपेक्षा लेकर पहुंच गये। उनकी जिज्ञासा शांत किया। इसका सच क्या है? 
पं.लालमोहन शास्त्री ने बताया कि जब ऐसा भ्रम हो तो शिव की प्रतिमा में उनके जटा पर लगा चांद देखिएसब कुछ समझ में आ जायेगा। रविवार को अष्ठमी था। इस कारण चांद आधा उगा। यह चान्द पश्छिम दिशा में ठीक बारह बजे अस्त हुआ। तब तक इसका आकार बढता गया। इस घटनाक्रम ने बताया कि जब आदमी दहशत में हो तो उसकी तर्कशक्ति और विवेक पहले मर जाता है।


Sunday 26 April 2015

दुखों के बीच युवाओं ने की गैर जिम्मेदारी

जब धरती डोली और चांद उल्टा दिखने लगा
युवा अपना सामाजिक दायित्व भूलकर मजा लेने लगा
(पूरी युवा पीढि नहीं लेकिन युवा ही जिम्मेदार)

0-----------------उपेन्द्र कश्यप-----------------0
  • हम हमेशा दुखी रहते हैं। कभी भौतिक तो कभी मानसिक कारणों से। पीडा अधिक मानसिक दुख पहुंचाता है। 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भयानक भूकंप आया और फिर दूसरे दिन 26.4 को भी। धरती जितनी अधिक डोली उससे अधिक हमारा हृदय कांपा। मन विचलित हो गया। हर समय डर बना रहा दिल के किसी कोने में। हम क्या कर सकते हैं भला? त्रासदी की इस घडी में जब हम कुछ नहीं कर सकते तो सोचिये नकारात्मक रवैया क्यों अख्तियार करती है युवा पीढि। जी हां! इस त्रासदी की घडी में युवा अधिक जिम्मेदार है जो इस आधुनिक युग में टेक्नोफ्रेड है। सोते, जागते बस फेसबुक और ह्वाट्सएप के साथ ही जीने वाली पीढि सामाजिक जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त कर चुका है। वह मदद नहीं करेगा, किंतु दोषारोपण अवश्य करेगा। मजा लेगा, दुख में जब लोग छटपटा रहे होते हैं तो मदद को हाथ न बढाने वाले युवा सोशल नेटवर्क पर की बोर्ड चला रही होती है उनकी उंगलियां। बिना कुछ सोचे-समझे ही बस कुछ भी टाइप करो और जनहित का बता कर जारी कर दो। ग्लोबल बन चुकी दुनिया अब मात्र एक मुट्ठी में कैद हो गई है, ऐसे में ऐसी कोई एक शब्द, पंक्ति भी तुरंत सेकेंडों में ग्लोबल हो जाती है। कभी छत्तीसगढ मौसम विभाग के हवाले तो कभी नासा के हवाले अफवाह फैलाने वाले युवाओं को क्या सामाजिक दायित्व और मानवीय पहलु की जानकारी नहीं है? भूकंप आने की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, विज्ञान जितना भी आगे बढ गया हो प्रकृति के इस रहस्य को पहले नहीं जान पाता है। फिर युवा क्यों अफवाह फैला रहे हैं। निश्चित तौर पर यह अफवाह बुजुर्ग तो नहीं ही फैला सकते। चांद उल्टा दिखने की अफवाह भी युवा पीढि ने ही फैलाया। पूरी आबादी चांद को देख कर भी उल्टा समझने लगी। आदमी जब संकट में होता है, भयाक्रांत होता है तो सबसे पहले उसके सोचने की शक्ति नष्ट हो जाती है। तर्क शक्ति और विवेक मर जाता है। इसका उदाहरण मैंने देखा कि एक बीपीएससी अधिकारी जिसपर अफवाह फैलाने वाले के खिलाफ कारर्वाई की जिम्मेदारी थी उन्होंने भी भूकंप कब कब आयेगा की घोषणा वाला मैसेज ह्वाट्सएप पर फारवर्ड करते रहे। जिसका शिकार मैं भी बन गया। जब अफरा तफरी मची हुई हो तो ऐसे में व्यक्ति या समूह का सामूहिक मानसिक शोषण करने वाला युवा पीढि क्या खुद को शर्मसार महसूस करती है? वह पश्चाताप करेगी? क्या आगे त्रासदी के समय अफवाह न फैलाने का संकल्प लेगी? अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो बेकार है जीना। ऐसी जिन्दगी का क्या मतलब जब हम किसी दुख और समस्याग्रस्त व्यक्ति, समूह या समाज की मदद न कर सकें और मजा लें। हद हो गई, अब तो संभलो युवा पीढि। क्यों अपने क्षणिक सुख के लिए दूसरे के संकट का मजाक उडाते हो।  


कुछ अकाट्य सत्य-----
भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। विज्ञान उस उंचाई तक अभे नहीं पहुंचा है।

चांद तभी उल्टा दिखेगा जब धरती उल्टी दिशा में घुमने लगे। ऐसा हो ही नहीं सकता और जिस दिन ऐसा हो गया हम आप जिन्दा नहीं रहेंगे। चांद उल्टा दिखने का सच क्या है? आपको बताते हैं। शिव की प्रतिमा में उनके जटा पर लगा चांद देखिए, कुछ समझ में आ जायेगा। 26.4.15 को अष्ठमी था। इस कारण चांद आधा उगा हुआ है। यह चान्द पश्छिम दिशा में ठीक बारह बजे अस्त हुआ। तब तक इसक आकार बढता गया। 

Friday 24 April 2015

बचपन में विवाह, जवानी में विधवा


बचपन में विवाह, जवानी में विधवा

दो बच्चों का जीवन संभालना मुश्किल

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) पूनम देवी गुरुवार की सुबह पूनम कूवंर बन गई। अचानक उसके जीवन में पूनम का काला अन्धियारा सदा के लिए छा गया। कल तक वह खुश थी, चहकती थी बच्चों के संग। जो भी था, जितना भी था उससे वह संतुष्ट थी। बुधवार को जब मन नहीं लग रहा था तब कुछ बेचैनी दिल में थी। किसी अनहोनी का पूर्वाभास हो रहा था। जब पति घर को लौट कर नही6 आये तो खोजबीन भी की, किंतु अनिष्ट इतना होना इसका अन्दाजा नहीं लगा सकी थी। सुबह जब गोधूली की बेला में पति का शव पडे होने की सूचना मिली तो व्यग्र हो उठी। उसकी उम्र अभी मात्र 30 साल की है। उसका घर छकु बिगहा है। राजेन्द्र चौधरी से उसका विवाह बचपन में ही हो गया था, करीब पन्द्रह साल पूर्व। अभी उसके दो बच्चे हैं। छ: साल का राहुल जो बुधु बिगहा प्राथमिक स्कूल में पढना शुरु किया है और चार साल की बेटी सन्ध्या जिसके जीवन की सांझ पिता के साया के साथ ढल गई है। उसे कुछ ज्ञान नहीं। अबोध बच्ची मां की गोद में बैठी खेलती रही जब पूनम पुलिस अधिकारी को अपना फर्दबयान दर्ज करा रही थी। मजदूरी के बाद मात्र दो ढाई साल पहले ही उसने राजमिस्त्री का काम शुरु किया था। इतनी निपुणता हासिल करने के बाद उसने ठेकेदारी प्रारंभ किया। मजदूरों से घर बनवाने का काम। अब शायद इस महत्वाकान्क्षा ने उसकी संघर्ष की यात्रा पर सदा के लिए विराम लगा दिया है।        

सन्दिग्ध स्थिति में युवक का शव बरामद

बुधवार को गया था डेंजर यादव से पैसा मांगने
ठेके पर घर बनाने का करता था कार्य
पुलिस कर रही है मामले की छानबीन
दाउनगर (औरंगाबाद) दुर्गा क्लब के नजदीक नन्हक चौधरी के घर के पास से 32 वर्षीय राजेन्द्र चौधरी का शव गुरुवार की सुबह पुलिस ने बरामद किया है। उसके शरीर पर चोट या जख्म का कोई निशान नहीं है। मौत की वजह ज्ञात नहीं है। उसकी पत्नी पूनम देवी ने आईओ मो.तलहा को फर्दबयान दिया है। इसमें बताया है कि मृतक घर बनाने का ठेका लेता है। बुधवार को मजदूरी मांगने उसके पास जब मजदूर आये तो वे बिगन बिगहा के डेंजर यादव के घर पैसा मांगने गये। पत्नी का कहना है कि दिन भर वे घर नहीं लौटे। खोजबीन की तो पता नहीं चला। गुरुवार को सुबह दुर्गा क्लब के पास शव मिला। पत्नी ने पुलिस को बताया है कि डेंजर यादव से 1.24 लाख में ठेका लिया था। इसी का पैसा मांगने गये थे। पुलिस ने शव को अंत्यपरीक्षण हेतू जिला मुख्यालय भेजा है। अंत्यपरीक्षण के बाद ही ज्ञात हो सकेगा कि मौत की वजह क्या है। शराब पीने से मौत होने की आशंका को मृतक के परिजनों और पडोसियों ने खारिज किया है। इनका कहना है कि दुर्गा क्लब में रात्रि में बारात लगी है। अगर शव उस वक्त होता तो हल्ला मच जाता। आशांका जाहिर किया है कि शव को कहीं अन्यत्र से लाकर यहां रखा गया है। पुलिस इन तमाम पहलुओं पर अनुसंधान कर रही है।

Wednesday 22 April 2015

एटीएम से लूट जाने का बढ रहा खतरा



बुजूर्ग, महिला और भोले व्यक्ति पर गिरोह की नजर
सतर्कता के अलावा कोई विकल्प नहीं
शातिर अपराधियों के खिलाफ पुलिस लाचार
बैंकिंग व्यवस्था में एटीएम को आल टाइम मनी के कारण ख्याती मिली। अर्थात जब जहां चाहें आप पैसे निकाल सकते हैं। यह सुविधा प्राप्त होने से रोजमर्रे के जीवन में सहजता आयी। भारतीय समाज में यह सुविधा संकट भी बन कर खडी हो गई है। यह संकट लगातार बढता जा रहा है। संगठित या असंगठित गिरोह एटीएम के जरिये रोजाना करोणों का वारा-न्यारा कर रहे हैं। वे बुजूर्ग, महिला और देहाती पृष्ठभूमि के भोले-भाले व्यक्तियों को आसानी से शिकार बना रहे हैं। यह तबका आर्थिक अपराधियों का साफ्ट टारगेट होता है। ताक में अपराधी एटीएम के पास खडे रहते हैं। जैसे ही कोई शिकार समझ में आता है, उसके नजदीक सट जाते हैं। उसकी मदद का प्रस्ताव इतनी मासूमियत से देते हैं कि शिकार खुद को उपकृत समझते हुए उसे अपना एटीएम कार्ड पैसे निकालने के लिए दे देता है। कभी-कभी होता यह है कि पीछे से खडा आदमी ऐसे शिकार का पासवर्ड ध्यान से देखकर नोट कर लेता है। दोनों स्थिति में शिकार का एटीएम कार्ड किसी बहाने या तरीके से बदल लेता है। अपराधी तुरंत इस कार्ड से पैसे निकालना प्रारंभ कर देता है। खाते से जब पैसे निकल जाते हैं तब पता चलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इस मामले में एसडीपीओ मो.अनवर ज़ावेद ने बताया कि जागरुकता का अभाव है। लोगों को सतर्क रहना चाहिए। अपना पासवर्ड या एटीएम कार्ड कभी भी किसी को नहीं देना चाहिए। जांकारों का कहना है कि कई पेचिदगियों के कारण पुलिस अपराधियों के समक्ष लाचार हो जाती है। प्राय: अपराधी फेक आईडी से खुले खाते में पैसे का ट्रांसफर करता है या खराब या मिला हुआ एटीएम बदलते वक्त शिकार को दे देता है।

बरतें आवश्यक सतर्कता
एटीएम से होने वाले खतरे को आप टाल सकते हैं। बस थोडी सी सतर्कता की आवश्यक्ता है।
+ कभी भी एटीएम का उपयोग करते वक्त अपने पीछे या अगल-बगल किसी को भी खडा नहीं होने दें।
+ अपने एटीएम कार्ड का पासवर्ड न फोन पर न सामने किसी को बतायें। बेहतर है उसे बदलते रहें।
+  एटीएम पर अपना हस्ताक्षर अवश्य करें ताकि बदले जाने का खतरा कम हो। किसी को भी मजबूरन कार्ड न दें, अगर दें तो फिर रखते वक्त अपना हस्ताक्षर या पहचान देख कर संतुष्ट हो लें, कि कार्ड आपका ही है।
+ अगर कार्ड बदल जाये या बदले जाने की आशंका हो तो तुरंत काल सेंटर को काल कर उसे लाक करायें।
+ पैसे निकालने या एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर लेने के बाद केंसिल का बटन अवश्य इस्तेमाल करें।

तोडा जाता है प्रतिबन्धों को
किसी भी एटीएम सेंटर में एक से अधिक व्यक्ति का एक साथ प्रवेश या उपस्थिति प्रतिबन्धित है। इसका पालन नहीं किया जाता। नागरिक समाज तो जैसे इस प्रतिबन्ध को मानने के लिए ही तैयार नहीं दिखता। किसी भी सेंटर पर चले जायें आपको दो या इससे अधिक व्यक्ति एक साथ दिख जायेंगे। सुरक्षा मानकों के खिलाफ है यह, किंतु किसी को कोई फर्क नहीं पडता। हद यह कि मौके पर तैनात सुरक्षा प्रहरी भी इसके प्रति गंभीर नहीं दिखता। ऐसे में जो भुक्तभोगी है कम से कम वह तो विरोध करे। वह भी ऐसा नहीं करता। तैनात सुरक्षा प्रहरियों के खिलाफ जब कारर्वाई होगी तभी सख्ती की उम्मीद दिखती है। यह उसका दायित्व है कि कभी भी एक से अधिक व्यक्ति एटीएम मशीन के पास न हो।

चार दिन में लूट गया 3.80 लाख

सारा धन गया में निकाला
दो अपराधियों के नाम ज्ञात
दाउदनगर (औरंगाबाद) हसपुरा डिंडिर के निवासी बुजुर्ग राजनन्दन शर्मा एटीएम से लूट के ताजा शिकार हैं। उनके खाते से 14 से 17 अप्रैल के बीच मात्र चार दिन में 3.80 लाख की निकासी कर ली गई। जब तक उन्हें इसका भान हुआ तब तक वे लूट चुके थे। वैसे उनके खाते में इससे कई गुणा रकम थी। बताया कि जब वे एसबीआई की दाउदनगर शाखा में अपना पासबुक अपडेट कराने गये तो उन्हें पता चला कि कई बार पैसे कि निकासी गया में की गई है। जबकि उन्होंने पैसे निकाले ही नहीं थे। सवाल पूछा तो बैंक अधिकारी ने पूछा कि एटीएम कार्ड है? तपाक से बोले- हां है। जब कार्ड दिया तो सारा मामला खुला। बैंकर ने बताया कि आपका एटीएम कार्ड बदला हुआ है। खाता के स्टेटमेंट से ज्ञात होता है कि गया में 14 अपरिल को चार बार में 40 हजार निकाला। मकसुद अंसारी के खाते में दो बार में 30 हजार ट्रांसफर किया गया है। गोल्डेन अलंकार ज्वेलर्स के यहां 50 हजार की खरीद की गई है। दूसरे दिन 35 हजार की निकासी की गई और दो बार में 30 हजार फिर मकसुद के खाते में ट्रांसफर हुआ। 16 को मकसुद को दो बार में 30 हजार ट्रांसफर किया, 40 हजार की निकासी की गई और फिर ज्वेलर्स के यहां 50 हजार की खरीद की गई। 17 अप्रैल को अरुण राम के खाते में 15 हजार और 20 हजार ट्रांसफर किया गया। दो बार में 40 हजार की निकासी की गई। अब बेचारे पुलिस की कारर्वाई की उम्मीद कर रहे हैं। डीएसपी मो.अनवर ज़ावेद ने बताया कि कागजात उपलब्ध कर मामले में अनुसन्धान किया जा रहा है। श्री शर्मा कसम खाते हैं कि अब एटीएम कार्ड नहीं रखेंगे।



Monday 20 April 2015

कई पुस्तकों के लेखक थे अनीसे बेकशां




साहित्य के अलावा हिकमत पर भी लिखी थी किताबें
मनाया जा रहा है 72 वां उर्स मुबारक
दाउदनगर (औरंगाबाद) के पुरानी शहर में खानकाह आलिया कादरिया अब्दालिया के तत्वावधान में हजरत सैय्यद शाह अनीस अहमद कादरी का 72 वां उर्स मनाया जा रहा है। उनको अनीसे बेकशां के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। इनके वंशज सबा कादरी ने बताया कि फारसी और उर्दू में हेयात सैयदना, अजकारे तैयबा, अनीसुलकलुब, कलाम ए रब्बानी, सफीन-ए-हयात, कशकोल, दिवाने अनीस नाम से किताबें लिखी हैं। इसके अलावा हिकमत यानी आयूर्वेद पर भी किताब लिखी। कई नुस्खे इजाद किया जिसे लाहौर के रिसाले अलहकीम एवं अल अतबा में प्रकाशित हुए हैं। पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज एवं बीपीएससी के सदस्य रहे सैयद बहाउद्दीन ने अपनी किताब गुलस्ताने हजार रंग में भी अनीस के शेर शामिल किए थे। जिस पर शिक्षा मंत्री अब्दुल कलाम आजाद ने प्रशंसा किया था। सबा ने बताया कि 847 हिजरी में सैयदना अमझरी बगदाद से भारत आये। ये सूफी संत थे। सिलसिला कादरिया का प्रचार भी किया। इनके खानदान में ही हिजरी 1300 में चार रज्जब को अनीस अहमद कादरी का जन्म हुआ। बडे होने पर अपने पिता और चाचा से तथा अमझर शरीफ में मदरसा कादरिया में सैयद शाह इसा कादरी से शिक्षा ग्रहण किया। हिकमत की शिक्षा दिल्ली जाकर हकीम अजमल खान से ली। शिक्षा पुरी करने के बाद खनकाह आए और तत्कालीन सज्जादानशीं गुलाम नजफ कादरी से मुरीद होकर खलिफा बन गए। नजफ कादरी के निधन के बाद खुद अनीस कादरी खनकाह के सज्जादानशीं हो गए। पुरी जिम्मेदारी से इस कार्य को निभाया। अपनी हिकमतगीरी से जनता को फायदा पहुंचाया। 63 साल की उम्र में चार रज्जब हिजरी 1364 को उनका इंतकाल हो गया। इस खानकाह के सज्जादानशीं  सज्जाद अहमद कादरी लोगों को अध्यात्मिक शिक्षा दे रहे हैं। मकसद है लोगों तक इंसानियत का पैगाम पहुंचाना। जहां तक और जब तक पहुंचे।

सीएम भी नवा गये हैं अपना शीष
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मुख्यमंत्री रहते जीतन राम मांझी इसी साल 29 जनवरी को आस्ताना पर जाकर अनीसे बेकशां के मजार पर अपना शीष नवा गये हैं। उन्होंने सूफी संत सैयद शाह अनीस अहमद कादरी के मजार पर चदरपोशी की और आशीर्वाद मांगा था। आस्ताना  कादरिया अबदालिया सुलेमानिया में उन्होंने चादर पोशी करते वक्त दुआ की कि उन्हें इतनी शक्ति मिले कि वे सभी का एक समान तरक्की कर सकें। बिना किसी भेद भाव का। भाईचारगी के लिए दुआ की। बिहार में अमन और शांति बनी रहे इसकी कामना की। सैयद वलीउल्लाह कादरी ने चादरपोशी कराया था। इसके पहले सबा कादरी ने उनको इस्लामिक रिवाज के हिसाब से पगडी बंधाया था। तब शहर में मुख्यमंत्री के इस कार्यक्रम की काफी चर्चा हुई, और मजार को भी राज्य स्तर पर ख्याति मिली। खानकाह के गद्दीनशीं सैयद शाह सज्जाद अहमद कादरी से उनके खानकाह जा कर उनसे मुलाकात की। मुख्यमंत्री के इस आगमन का चाहे जितना राजनीतिक कारण हो मगर इससे आस्ताने को शोहरत तो मिली ही। (21.4.15)

Sunday 19 April 2015

नई परंपराओं के आगाज के साथ बढी चुनौतियां


प्रतिक्रिया में दौर-ए-जमाना बदल गया

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) सोमवार एक इतिहास बन गया। कई सवाल छोड गया। कई आशंकाएं, नये विचार, चिंताएं, परिवर्तन का आधार छोड गया। एक नई परंपरा की बुनियाद डाली गई, जिससे दिखता परिवर्तन चिंता की लकीरें खींच गई। जितनी उम्मीद थी उससे अधिक भीड, उत्साह, जुलूस में चमकती तलवारें, लाठियां भविष्य के लिए क्या संकेत देती है? पुलिस और पब्लिक दोनों मानते हैं कि जो हुआ वह अतीत में किए गये एक जुलूस की प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ। उस घटना ने दौर-ए-जमाना बदल दिया। विचार बदल दिए। शहर की जनसांख्यकीय वैचारिक विभाजन को तीखा कर दिया है। इसके दूरगामी असर पडने तय हैं। शहर की आबो हवा पूर्व जैसी नहीं रही। चार नवंबर और उसके बाद कोई पर्व त्योहार ऐसा नहीं रहा जिसमें पुलिस की मौजूदगी भारी मात्रा में न दिखी हो। यह सरकार और प्रशासन के स्तर पर बढी हुई चिंता और आशंकाओं की वजह बताता है। जिस व्यापक पैमाने पर दलों और जातियों की सीमा तोडकर लोग इसमें शरीक हुए, वह संकेत देता है कि भविष्य में सतर्कता और सजगता की अधिक जरुरत पडेगी, जब भी कोई पर्व त्योहार होगा। रामनवमी कभी इतना व्यापक पैमाने पर नहीं हुआ था। एक नई परंपरा की बुनियाद पड गई। अब हर साल होने वाले आयोजन की तुलना इससे होगी। नतीजा व्यापकता मिलेगी ही, यह उम्मीद है। जो समाज लाठी तक घर में नहीं रखता रहा है, उसके हाथ में तलवारें चमकने लगीं। एक ने कहा भी कि- हर घर में लाठी और तलवार तो पहुंच गया। सवाल है कि जब शांति और सौहार्द हो तो तलवारों की क्या आवश्यक्ता है? यह विचार बताता है कि गत पांच महीने में समाज में गहरे दरार पड चुका है। जो हुआ उसका विश्लेषण समाज भविष्य में करता रहेगा। जब जब दो सभ्यताओं, संस्कृतियों के बीच तलवारें खींचेंगी या वैचारिक टकराव होंगी तब तब

Saturday 18 April 2015

प्रेम में भागती बेटियां, जेल भुगत रहे बेटे


प्रेम में भागती बेटियां, जेल भुगत रहे बेटे
फिर एक लड़की भाग गई, सामाजिक वर्जनाओं को तोड़कर प्रेमी के साथ। सुखमय दाम्पत्य जीवन की लालसा पाले। ऐसा प्राय: हो रहा है। अधिकतर मामलों में बेटी का बाप लड़का (प्रेमी) के खिलाफ अपहरण का झूठा मुकदमा थाने में दर्ज कराते हैं। बेटा को समझा कर वापस लाया जाता है। दोनों प्रेमी युगल को लोक लाज की दुहाई दी जाती है। पुलिस लड़की को बरामद बताती है और प्रेमी को अपहरण का आरोपी। प्रेमिका को प्रलोभन दिए जाते हैं। प्रेमी को आश्वासन कि अदालत में धारा 164 के तहत बयान देने के बाद केस हल्का हो जाएगा लेकिन हकीकत उलट है। लड़कियों पर दबाव डाला जाता है कि वह न्यायालय में अपने प्रेमी के खिलाफ अपहरण करने का बयान दे। उसी प्रेमी के खिलाफ जो कल तक सपनों का राजकुमार होता था, जिसके साथ एकांत में बैठकर चांद तारों में समा जाने की कसम खाती थी। साथ जीवन भर दाम्पत्य जीवन के सपने बुना करती थी। होता क्या है? बेटी का परिवार क्षणिक तौर पर सामाजिक बदनामी ङोलता है और बेटा जेल चला जाता है। उस दोष के लिए प्रताड़ित होता है जो उसने किया ही नहीं। जो किया वह करने की चाहत हर कोई मन में पालता है। पूरा मानव साहित्य इतिहास जिस प्रेम के लिए प्रेरित करता है, उसी के लिए बेटे जेल चले जाते हैं। उनके माथे पर सिर्फ बदनामी का टीका हीं नहीं लगता बल्कि कैरियर बर्बाद हो जाता है। कई मामले ऐसे भी दिखे जब परिजन बेटी की उम्र कम साबित करने के लिए गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करते हैं। इसे कोई बेटी पक्ष घटना मानकर भुलने को तैयार नहीं बल्कि प्रेमी बने लड़के को जेल भेजने पर आमदा होता है, क्यों? सिर्फ इसलिए कि प्रेम हमेशा समाज के औपचारिक दायरे से बाहर पनपता है। दाउदनगर पुलिस रिकार्ड के अनुसार लव अफेयर एवं मैरेज (प्रेम प्रसंग एवं विवाह कालम में कोई घटना गत 2005 से वर्ष 2012 तक ) दर्ज नहीं हुआ है। लेकिन इसी दरम्यान व्यस्क या अवयस्क लड़कियांे के अपहरण के कुल 23 मामले दर्ज किए गए। पुलिस अनौपचारिक तौर पर यह मानती है कि सभी 23 मामले प्रेम प्रसंग में घर छोड़कर आपसी सहमति से भाग जाने का है। फिरौती के लिए लड़की के अपहरण का कोई मामला कभी गत डेढ़ दशक में सामने नहीं आया है। शादी की नीयत से अपहरण के जो मामले सामने आये वे प्रेम प्रसंग के निकले। यहां यह स्पष्ट है कि कानूनी बाध्यताओं एवं सामाजिक दायित्वों से पुलिस एवं प्रेस के हाथ बंधे रहते हैं। नतीजा सबकुछ ओपेन सीक्रेट टाइप का मामला है। भरोसे के कारण प्रेमी युगल आत्मसमर्पण करते हैं तो उन्हें बरामद एवं गिरफ्तार दिखाया जाता है। कमजोर कानून, सामाजिक वर्जना, बड़े परिप्रेक्ष्य में काम करने से रोकते अंधे-कानून के साथ सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था भी दोषी है।