Friday 17 April 2015

राम ने किया था कांवड यात्रा परंपरा का प्रारंभ
महाशिवरात्रि पर विशेष

शिव पार्वती विवाह आयोजन की है परंपरा
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) मंगलवार को महाशिवरात्रि है। हर हर महादेव का दिन। भगवान शंकर की अराधना होती है इस दिन। पं.लालमोहन शास्त्री ने बताया कि हिंदू समाज इस दिन गांव शहर के शिव मंदिरों में दर्शन पूजन कर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं। इसी वेला में लंकाधिपति रावन ने तान्दव कर भगवान शंकर को प्रसन्न किया था। इसके बाद मां पार्वती का प्रिय कामना लिंग उसे मिला। इसे ले कर लंका जा रहा था रावण कब लघुशंका लगा। छद्मधारी विष्णु को लिंग दे कर स्वयं शंका करने लगे। यह दीर्घ शंका में बदल गया। लिंग यहीं रखा दिया और उसकी स्थापना भी करनी पडी। लाख प्रयास के बावजूद भी रावण उसे उखाड नहीं सका। रावण ने हरिद्वार से गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढाया। यह स्थान देवघर था। जो अब झारखंड में है। इसके बाद राम ने सुल्तान गंज से गंगा जल लाकर जलाभिषेक किया। इस स्थान का तब नाम जहांगडा था। यही पर्ंपरा बन गई और सुल्तानगंज से कांवड यात्रा का शुभारंभ हुआ जिसे सावन मास में देखा जा सकता है। शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि में ही शिव ज्वाला रुप में उत्पन्न हुए। वही द्वादश लिंग के रुप में भारत की चारों दिशाओं में बारह स्थानों पर पूजे जा रहे हैं।मैथिल कोकिल कवि विद्यापति ने इस महत्वपूर्ण अवसर पर शिव पार्वती विवाह महोत्सव को प्रोत्साहित किया था जो अब संपूर्ण बिहार में मनाया जाता है। मगध की परंपरा में श्री पंचमी बसंत पंचमी को भगवान शंकर को तिलक चढाया जाता है। भक्त होली गायन प्रारंभ करते हैं।शिवबारात निकाला जाता है। शिवरात्रि का पारण महिलाएं चुदा दही खा कर करती हैं। 



शिव मंदिरों से होता है गांव का दिशा ज्ञान
अनुमंडल के महत्वपूर्ण शिव मंदिर
श्रीराम ने किया है शिवलिंग की स्थापना
दाउदनगर (औरंगाबाद) प्राय: हर गांव में शिव मंदिर मिल जायेंगे। इससे ग्रामीणों को दिशा का ज्ञान होता है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जब जलाभिषेक होता है तो वह हमेश औत्तर दिशा की ओर ही बहता है। शिव अर्घ्य की धारा उत्तर की ओर ही बहती है इसीलिए इसे दिशायंत भी कहा जाता है। कीकट प्रदेश में छ: महत्वपूर्न तीर्थ स्थल हैं, जिसमें च्यवनाश्रम (देवकुंड) भी शामिल है। यहां भगवान श्री राम ने शिवलिंग की स्थापना किया था। पं.लालमोहन शास्त्री के अनुसार महाकालेश्वर के उप ज्योतिर्लिंग होने के कारण इसे दुग्धेश्वर महादेव कहा जाता है। उन्होंने ही पुनपुन और मदाड के संगम स्थल भरारी (गोह) में विशाल शिवलिंग की स्थापना किया था जिसे मन्दारेश महादेव कहा जाता है। ओबरा के देवकली में अनेक शिवलिंग हैं। यहां एक ही कतार में कई मंदिर दर्शनीय लगते हैं। शांति महसूस होती है। अदरी और पुनपुन के संगम पर भी शिवमन्दिर है जो जीर्ण शीर्ण है। दाउदनगर के काली स्थान में स्वयंभू बाबा भूतनाथ विराजमान हैं। पुराना शहर में बुढवा महादेव के अतिरिक्त शुक्र बाजार, मौलाबाग, चावल बाजार समेत कई स्थानों पर शिव मन्दिर हैं। गया रोड में सिहाडी के में हेमनाथ मंदिर है। चुनार गढ से इसे बनाअ बनाया लाया गया था। इसके विकास में रानी अहिल्याबाई औ5र स्थानीय कायस्थ जमीनदार परिवार की भुमिका रही है। अहिल्याबाई ने ही देवहरा में पुनपुन तट पर शिव मन्दिर बनाया था। कोइलवां में गांव के चारों तरफ शिवमन्दिर हैं। गोह में च्यवनेश्वर महादेव, बाबा प्रसन्नी नाथ प्रसन्नीनाथ  मन्दिर हैं। गोरकट्टी में महर्षि भृगु ने शिवलिंग की स्थापना किया था। इसे गरीबनाथ के नाम से पूजा जाता है। देवी भागवत के अनुसार 108 सिद्ध पीठों में 20 पीठ मरही धाम है, जिसके भैरव विल्वकेश्वर महादेव भुकुंडा गोह में स्थित हैं। इनकी पूजा करने से मां भगवती विल्वपत्रिका सिंह वाहिनी प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। इन मन्दिरों के अलावा भी जितने शिव मन्दिर हैं, उनमें आज महाशिवरात्रि का पर्व धुम धाम से मनाया जा रहा है।

-- तस्मयी का खास प्रसाद
 शुक्र बाजार स्थित शिव मन्दिर की अपनी विशेषता है। यहां धीरेन्द्र कुमार रत्नाकर द्वारा इस दिन पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालुओं के बीच दूध चावल से बनी स्वादिष्ट तस्मयी प्रसाद के स्वरुप वितरित किया जाता है। हर वर्ष मन्दिर की सफाई कर धुम-धाम से पूजा अर्चना की जाती है। चावल बाजार, पुरान शहर, मौलाबाग समेत तमाम शिव मन्दिरों में आज ‘ओइम नम: शिवाय’ की गूंज वातावरण को भक्तिमय बना रहा है। 
    


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