Saturday 18 April 2015

प्रेम में भागती बेटियां, जेल भुगत रहे बेटे


प्रेम में भागती बेटियां, जेल भुगत रहे बेटे
फिर एक लड़की भाग गई, सामाजिक वर्जनाओं को तोड़कर प्रेमी के साथ। सुखमय दाम्पत्य जीवन की लालसा पाले। ऐसा प्राय: हो रहा है। अधिकतर मामलों में बेटी का बाप लड़का (प्रेमी) के खिलाफ अपहरण का झूठा मुकदमा थाने में दर्ज कराते हैं। बेटा को समझा कर वापस लाया जाता है। दोनों प्रेमी युगल को लोक लाज की दुहाई दी जाती है। पुलिस लड़की को बरामद बताती है और प्रेमी को अपहरण का आरोपी। प्रेमिका को प्रलोभन दिए जाते हैं। प्रेमी को आश्वासन कि अदालत में धारा 164 के तहत बयान देने के बाद केस हल्का हो जाएगा लेकिन हकीकत उलट है। लड़कियों पर दबाव डाला जाता है कि वह न्यायालय में अपने प्रेमी के खिलाफ अपहरण करने का बयान दे। उसी प्रेमी के खिलाफ जो कल तक सपनों का राजकुमार होता था, जिसके साथ एकांत में बैठकर चांद तारों में समा जाने की कसम खाती थी। साथ जीवन भर दाम्पत्य जीवन के सपने बुना करती थी। होता क्या है? बेटी का परिवार क्षणिक तौर पर सामाजिक बदनामी ङोलता है और बेटा जेल चला जाता है। उस दोष के लिए प्रताड़ित होता है जो उसने किया ही नहीं। जो किया वह करने की चाहत हर कोई मन में पालता है। पूरा मानव साहित्य इतिहास जिस प्रेम के लिए प्रेरित करता है, उसी के लिए बेटे जेल चले जाते हैं। उनके माथे पर सिर्फ बदनामी का टीका हीं नहीं लगता बल्कि कैरियर बर्बाद हो जाता है। कई मामले ऐसे भी दिखे जब परिजन बेटी की उम्र कम साबित करने के लिए गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करते हैं। इसे कोई बेटी पक्ष घटना मानकर भुलने को तैयार नहीं बल्कि प्रेमी बने लड़के को जेल भेजने पर आमदा होता है, क्यों? सिर्फ इसलिए कि प्रेम हमेशा समाज के औपचारिक दायरे से बाहर पनपता है। दाउदनगर पुलिस रिकार्ड के अनुसार लव अफेयर एवं मैरेज (प्रेम प्रसंग एवं विवाह कालम में कोई घटना गत 2005 से वर्ष 2012 तक ) दर्ज नहीं हुआ है। लेकिन इसी दरम्यान व्यस्क या अवयस्क लड़कियांे के अपहरण के कुल 23 मामले दर्ज किए गए। पुलिस अनौपचारिक तौर पर यह मानती है कि सभी 23 मामले प्रेम प्रसंग में घर छोड़कर आपसी सहमति से भाग जाने का है। फिरौती के लिए लड़की के अपहरण का कोई मामला कभी गत डेढ़ दशक में सामने नहीं आया है। शादी की नीयत से अपहरण के जो मामले सामने आये वे प्रेम प्रसंग के निकले। यहां यह स्पष्ट है कि कानूनी बाध्यताओं एवं सामाजिक दायित्वों से पुलिस एवं प्रेस के हाथ बंधे रहते हैं। नतीजा सबकुछ ओपेन सीक्रेट टाइप का मामला है। भरोसे के कारण प्रेमी युगल आत्मसमर्पण करते हैं तो उन्हें बरामद एवं गिरफ्तार दिखाया जाता है। कमजोर कानून, सामाजिक वर्जना, बड़े परिप्रेक्ष्य में काम करने से रोकते अंधे-कानून के साथ सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था भी दोषी है।


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