Thursday 27 October 2016

यह मियांपुर है : बिहार का अंतिम नरसंहार स्थल

हत्यारों की गोली से घायल देवमतिया
क्यों 32 की जगह 
1 1 नौकरी ही क्यों मिली?

नौकरी नहीं, सडक नहीं, अस्पताल नहीं, स्कूल नहीं, डाकघर नहीं, पुलिस पिकेट नहीं।
बहुत सालों बाद, संभवत: एक दशक बाद, एक बार फिर मियांपुर (गोह) जाना हुआ। 16 जून 2000 को पहली बार यहां गया था जब यहां 32 लाशें “चीख” रही थीं। तब घायल देवमतिया को देखने का मौका नहीं मिला था क्योंकि वह अहले सुबह इलाज को भेजी जा चुकी थी। कई साल बाद उससे मुलाकात हुई थी। तब उसकी तस्वीर मियांपुर की बरसी के मौके पर छपी थी। उसके दशक बाद उससे मुलाकात हुई। चेहरे पर अब झुर्रियां आ गयी हैं। कम सुनती है। शायद व्यवस्था की मार ने यह ठीक ही किया कि जमाने की शोर न सुनना पडे। अन्यथा क्या-क्या सुनेगी और क्या क्या बतायेगी बेचारी देवमतिया? कहते हैं ईश्वर इसीलिए बहरा के साथ गुंगा भी बनाता है, ताकि सुनने के बाद बोलने की बेचैनी जानलेवा न हो जाये?  
मियांपुर के स्मरण के लिए बने स्मारक के साथ लेखक

तब यहां सिर्फ लाशें नहीं गिरी थीं। मानवता पर यह हमला था। ब्लैक एंड ह्वाइट और यासिका मैट (कैमरा) के जमाने में जो कैद रिलों में हुआ था वह रियल लाइफ का विभत्स चेहरा था। स्मृतियां ताजा हो गयीं। कैसे गर्भवती की हत्या कर दी गयी थी। यह नरसंहार तब भी कई मामलों में ऐतिहासिक था और आज भी कई ऐतिहासिक सवाल, समाज से और सरकार से पूछ रहा है। व्यवस्था की पोल खोलता है मियांपुर!!! सरकार अपनी, सामाजिक न्याय का दावा करने वाले जब सरकार में बैठे थे तब यहां कत्लेयाम हुआ था। यह सेनारी के बदले रणवीर सेना का बदला था। खून के बदले खून का सिद्धांत पालन किया गया था। यह और बात है कि मारे गये सभी निर्दोष थे। क्योंकि इसमें कोई अपराधी नहीं था। बच्चे और महिलायें शामिल थे। इनका क्या कसूर था?

मियांपुर गांव में जाते हुए, अतीत को स्मरण करते हुए
सामाजिक न्याय के दावेदारों की अब भी सरकार है। लेकिन क्या मियांपुर के पीडितों को न्याय मिला? कई मामलों में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट तब गयी जब किरकिरी हुई। मियांपुर के मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट भी नहीं गयी। और हां। यहां मारे गये थे 32 और सरकारी नौकरी मिली मात्र-11 को। जिस सेनारी के बदले में इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था वहां मारे गये थे 34 और नौकरी भी मिली थी-34 को। सामाजिक न्याय के झंडाबरदार लालु प्रसाद ने इन भोले भाले ग्रामीणों को समझाया था कि क्यों 32 की जगह 11 नौकरी ही मिली।
सामाजिक न्याय के झंडाबरदारों को यहां जा कर देखना चाहिए। कितने भोले हैं ठगे गये मियांपुर के पीडित। राज्य के आखिरी सामूहिक नरसंहार का गवाह मियांपुर आज भी गरीबी और बेबसी में जी रहा है। जानते हैं तब सरकार के प्रतिनिधियों ने कुल 6 वादे किये थे। जाकर कोई देख आये और बताये कि इसमें कितने वादे पुरे किये जा सके हैं। एक भी नहीं। मुआवजा की राशि भले ही सभी के बदले मिली किंतु नौकरी नहीं, सडक नहीं, अस्पताल नहीं, स्कूल नहीं, डाकघर नहीं, पुलिस पिकेट नहीं। ये सब वादे अधूरे हैं।
 
मियांपुर के पीडितों का दर्द और हाल सुनते हुए
हां ध्यान दें- आज (27.10.16) को सेनारी नरसंहार के मामले में फैसला आया है। उसे देख लें। मैं भी सेनारी जाकर रिपोर्टिंग कर चुका हूं। उसका अनुभव अलग है। कभी फिर लिखुंगा।


(बिहार के चर्चित सेनारी नरसंहार काण्ड में 23 आरोपी बरी, 15 दोषी करार..आगामी 15 नवंबर को अदालत सुनाएगी सजा। जहानाबाद जिला कोर्ट का फैसला। 18 मार्च 1999 की रात जहानाबाद के सेनारी गाँव में प्रतिबंधित एमसीसी के उग्रवादियों ने 34 ग्रामीणों की गला रेतकर हत्या कर दी थी। इस फैसले पर स्त्रीकाल के संपादक संजीव चन्दन भाई ने सामाजिक कोण से फेसबुक वाल पर लिखा है तो मैने टिप्पणी की- समाजशास्त्र के साथ साथ एक पक्ष यह भी है कि दलितों, या अवर्णों को न्यायालय से निपटने का न शउर है, न क्षमता, न चाहत, न दिलचस्पी, न कोई साथ देने वाला काबिल और सक्षम साथी।) 

Wednesday 26 October 2016

शहीद के द्वार पहली बार पहुंचा प्रशासन


    दीप जला कर स्मरण करते अधिकारी व नेता
दैनिक जागरण का -एक दिया शहीदों के नाम- कार्यक्रम
शहीद के परिजनों को मिला पहली बार सम्मान

 दैनिक जागरण के अभियान एक दिया शहीदों के नाम के तहत पुरानी शहर वार्ड संख्या पांच में शहीद प्रमोद सिंह यादव के सम्मान में कार्यक्रम का आयोजन बुधवार को किया गया। इनके दरवाजे पर दीप प्रज्जवलित किए गये। वार्ड पार्षद बसंत कुमार ने कहा कि पहली बार इनके द्वार पर प्रशासन उपस्थित हुआ है। इस पर एसडीओ राकेश कुमार ने कहा कि देर आये लेकिन दुरुस्त आये। उन्होंने घोषणा की कि हर गणतंत्र दिवस पर एक पुरस्कार शहीद के नाम पर दिया जायेगा। इसके अलावा भखरुआं मोड गोलंबर पर इनकी प्रतिमा लगाने के लिए नेशनल हाइवे आथरिटी से बात करेंगे, यदि मुश्किल नहीं हुई तो वहा प्रतीमा लगायी जा सकती है। पूर्व जिला पार्षद राजीव कुमार उर्फ बब्लु ने घोषणा की कि प्रतिमा के लिए वे आर्थिक सहयोग करेंगे। उप मुख्य पार्षद नगर पंचायत कौशलेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि सडक का नाम शहीद के नाम पर करने का प्रस्ताव बसंत कुमार ने रखा था जिसे मान लिया गया है। डीएसपी संजय कुमार, पुलिस इंस्पेक्टर विन्ध्याचल प्रसाद, शहीद के अग्रज चन्द्रमा सिंह, अनुज कुमार पांडेय ने संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार एवं लेखक उपेन्द्र कश्यप ने किया।

डा.प्रकाशचन्द्रा ने किया सम्मानित
उर्मीला गैस एजेंसी की ओर से ससम्मान
 निश्शुल्क गैस कनेक्शन लेते शहीद के भाई

भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव व उर्मीला गैस एजेंसी के संचालक डा.प्रकाशचन्द्रा ने शहीद के भाई चन्द्रमा सिंह यादव को निश्शुल्क गैस कनेक्शन ससम्मान दिया। इनके अलावा अन्य भाई सुरज सिंह, अशोक सिंह व मनोज कुमार सिंह, कार्यक्रम में सहयोग के लिए वार्ड पार्षद बसंत कुमार व अनुज कुमार पांडेय तथा आयोजन के लिए लेखक पत्रकार उपेन्द्र कश्यप को शाल भेंत कर सम्मानित किया। इनकी अनुपस्थिति में सम्मान अतिथियों ने दिया।

स्कूली बच्चों ने भी जलाये दीप
दीप जलाते स्कूली बच्चे
शहीद प्रमोद को स्मरण करते हुए स्कूली बच्चों ने भी दीप जलाया। मुहल्ले में स्थित गुरुकुल उच्च विद्यालय, ज्ञान वैभव स्कूल व टैगोर शिक्षा निकेतन के बच्चे शामिल हुए। अनुज के नेतृत्व में सागर आलम, मुकेश कुमार, अनुज कुमार, अनंत प्रकाश, धीरज कुमार व दिलिप कुमार ने राष्ट्रगान किया। मुकेश कुमार एवं नीतीश मिश्रा ने राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत गाते गाया। कार्यक्रम में ब्रजबल्लभ शर्मा, रामसेवक प्रसाद, अनिरुद्ध प्रसाद, रामेश्वर भगत, ओम प्रकाश, आर्य अमर केशरी, मुकेश मिश्रा, राजु पांडेय, डा.विकास मिश्रा, मो.गुरफान आलम, विकास कुमार, सुधीर कुमार एवं निरंजन कुमार उपस्थित रहे।

शहीद प्रमोद सिंह का जीवनवृत


श्रीनगर में 09 अप्रैल 2001 को वे शहीद हुए थे। उनका जन्म पुरानी शहर में 01.011976 को हुआ था। उनके पिता स्व.राधा सिंह व माता स्व. राधिका देवी थीं। सात भाई और एक बहन थे। यहां ठाकुर मध्य विद्यालय और राष्ट्रीय इंटर स्कूल में पढाई की थी। वे अविवाहित ही शहीद हुए थे। उनके स्मरण में फुटबाल मैच किया जाने लगा है।  

दाउदनगर को अब बिजली शेडिंग से मिलेगी मुक्ति

लो वोल्टेज की समस्या भी होगी खत्म
काफी समय से बतायी जा रही थी जरुरत
  तरारी पवर सब स्टेशन में 10 एमवीए का ट्रांसफर्मर लगा दिया गया है। इसके नहीं रहने से कई तरह की समस्या होती थी। इसकी मांग यहां बहुत पहले से की जा रही थी। अब परस्पर दो विरोधी राजनीति करने वाले इसका श्रेय भी लेने की कोशिश में हैं। हालांकि जैसे भी लगा, यह काम बडी आवश्यक्ता की पूर्ति वाला है। इससे अब कई तरह की समस्या खत्म हो सकती है। जेई भास्कर कुमार ने बताया कि अब शेडिंग की समस्या नहीं होगी। जानकारों के अनुसार शेडिंग तकनीकि शब्द है। इसका मतलब होता है कि विद्युत रहते हुए भी उसका वितरण पूरी क्षमता भर नहीं किया जा सकना। इसके तहत होता यह है कि बिजली रहते हुए भी बारी-बारी से लोड लेने की क्षमतानुसार किसी इलाके में बिजली की आपूर्ति की जाये और किसी क्षेत्र में नहीं। वहां बाद में आपूर्ति की जाये। अब इस समस्या से मुक्ति मिल जायेगी। यदि पावर सब स्टेशन में ग्रीड से विद्युत आपूर्ति होगी तो सप्लाई में लोड की समस्या नहीं होगी। बुधवार को संभवत: नया 10 एमवीए का ट्रांसफर्मर चालु हो जायेगा। इसके बाद लो वोल्टेज की समस्या भी तभी होगी जब ग्रीड से आपूर्ति में समस्या होगी।  

3 एमवीए से 13 तक पहुंची क्षमता
24 घंटे विद्युत आपूर्ति में अब बाधा नहीं
तरारी पवर सब स्टेशन में एक जमाने में जब बिजली रानी का दर्शन दुर्लभ हुआ करता था तब मात्र 3.15 एमवीए का ट्रांसफर्मर लगा हुआ था। बाद में पांच एमवीए का लगाया गया। बिजली उपलब्ध होने लगी तो खपत भी बढने लगी। ऐसी स्थिति में पांच एमवीए के ट्रांसफर्मर से काम चलाना मुश्किल हो गया। एक साथ दाउदनगर शहर, देहाती क्षेत्र और ओबरा को आपूर्ति करन मुश्किल होता गया। हाल यह हो गयी कि अकेले शहर का ही लोड लेना पांच एमवीए के ट्रांसफर्मर के लिए मुश्किल होता चला गया। अब जब दस एमवीए का ट्रांसफर्मर लग गया है तो यह समस्या खत्म हो गयी है। अब अनुमंडल मुख्यालय में उपलब्धता के आधार पर 24 घंटे निर्बाध विद्युत आपूर्ति संभव है। इसके बाद एक साथ दाउदनगर टाउन, अगनूर और ओबरा को विद्युत आपूर्ति की जा सकती है। इससे शहरीकरण की गति व विकास को ताकत मिलेगी।

तरारी में दो ट्रांसफर्मर और पांच फीडर
320 एंपीयर की जगह अब 510 एंपीयर
तरारी पवर सब स्टेशन में दो ट्रांसफर्मर और पांच फीडर हैं। पहले से लगे पांच की जगह अब दस एमवीए का ट्रांसफर्मर लगा है। इससे पूर्व की क्षमता 210 एंपीयर की जगह अब 400 एंपीयर तक बढ गयी है।  जबकि 3.15 एमवीए की क्षमता 110 एंपीयर यथावत है। जेई भास्कर कुमार ने बताया कि इससे तीन फीडर चलेंगे। दाउदनगर टाउन को अब 160 की जगह 200 एंपीयर, अगनूर को 5 की जगह 7 एंपीयर और ओबरा को अब 120 की जगह 150 एंपीयर दिया जा सकेगा। इसी तरह 3.15 एमवीए के ट्रांसफर्मर से जुडे हैं दो फीडर। हसपुरा को अब 140 की जगह 160 और जिनोरिया को 40 की जगह 60 एंपीयर बिद्युत आपूर्ति की जा सकती है।

Sunday 23 October 2016

फुसफुसिया राष्ट्रवाद बनाम जमीनी हकीकत



नवाबों के शहर दाउदनगर में दीपावली की तैयारी चल रही है। वर्तमान परिवेश में अनंत चतुर्दशी का स्मरण हो रहा है। उसमें हम कटोरे में दूध रख कर खीर से मथते हैं और समझते हैं कि क्षीर सागर को मथ रहे हैं। यह प्रतीक है। पुरोहित बोलते हैं-माथे चढावअ। यजमान माथे पर छू कर समझता है पा लिया। यह दिगर बात है कि आज तक यह नहीं जान सके कि पाया क्या जिसे माथे चढाता रहा हूं। देश की स्थिति भी ऐसी ही है। प्रतीकों की राजनीति में वास्तविकता का क्या मोल भला? राष्ट्रवाद को ले कह सकते हैं-माथे चढावअ वाली स्थिति ही है। पटाखे और झिलमिलाती रौशनियों का बहिष्कार आज राष्टवाद का प्रतीक बन गया है। चीन से आने वाली सामग्रियों में इन चीजों का भला क्या औकात है? हम चीन से काफी पीछे हैं। उसकी मीडिया ने जब यह कह अकि भारत सिर्फ भौकता है तो कथित राष्टवाद की हिलोरें उफान मारने लगीं। इसमें गलत क्या है। लगता है राष्टवाद हकीकत से मुंह चुराने का बेहतर साधन या माध्यम बन गया है। वर्ष 2015-16 में अप्रैल से जनवरी की अवधि के दौरान भारत-चीन के बीच व्यापार घाटा 44.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में भारत का चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर और भारत का चीन से आयात 52.26 अरब डॉलर रहा। इसमें बेशकिमती मोबाइलें, घडियां, इलेक्ट्रोमिक उपकरण शामिल हैं, जिनके सामने झिलमिलाती रौशनी की चकाचौन्ध हो या शोर मचाते, रौशनी बिखेरते पटाखे। उनसे क्या फर्क पडता है। जिनकी औकात ही नहीं है।
दूसरी तरफ अंतर्विरोध भी गहरा है। हम चीन से मुकाबला नहीं कर सकते। उसके स्तर की सामग्री नहीं बना सकते। लेकिन उसकी सही किंतु कडवी बातों से चीढ जरुर सकते हैं। और चीढने से कुछ नहीं होता। मुकाबला करने की ताकत बटोरिए फिर राष्ट्रवाद की भट्ठी जलाइये।
अंत का अंतर्विरोध-
कुम्हारन बैठी रोड किनारे, लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी, करती मन में विचार॥
सोंच रही है अबकी बार, दुंगी सारे कर्ज उतार।

सजा रही है, सारे दीये करीने से बार-बार॥ 

Thursday 20 October 2016

घर में ही उपेक्षित हैं बडे व विजेता कलाकार

      मास्टर भोलू, संजय तेजस्वी व अंजय सिंह
जिला युवा महोत्सव के लिए नहीं पूछा
अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय विजेता हैं कलाकार
जिला प्रशासन द्वारा आयोजित होने वाले युवा महोत्सव के लिए प्रखंड से कलाकारों का चयन कर लिया गया है, किंतु दुखद आश्चर्य यह है कि उन स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा की गयी जिन्होंने कई अवार्ड राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों पर जीता हुआ है। कलाकारों एवं कला संस्थानों ने इस रवैये का कड़ा विरोध किया है। कई बडे मंचों पर खिताब जीतने वाली संस्था प्रबुद्ध भारती के निदेशक मास्टर भोलू का कहना है की उनकी संस्था विगत सात वर्षों से अनवरत कला एवं संस्कृति के लिए समर्पित एवं सेवारत हैं। विगत वर्ष राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में विजेता बन कर दाउदनगर का मान बढ़ाया है। लेकिन युवा महोत्सव के आयोजन की कोइ सूचना नहीं मिली। घर में ही उपेक्षित किया जाता है। लोक कलाकार संजय तेजस्वी ने कहा कि अनुमंडल प्रशासन द्वारा गणतंत्र दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए सूचना मिलती है, किंतु युवा महोत्सव की कोई सूचना नहीं मिली। लोक गायक अंजन सिंह ने आक्रोश व्यक्त किया। कहा कि प्रखंड स्तर पर युवा महोत्सव की सूचना न समाचार पत्र में आयी और न अन्य माध्यम से। चयन टीम ने निजी लोगों का ही जिला स्तरीय युवा महोत्सव में गोपनीय तरीके से चयन किया है। 
डीएम से करेंगें शिकायत
अंजन सिंह ने कहा है कि इस मामले की लिखित शिकायत सभी कलाकार जिला पदाधिकारी से करेंगे। कलाकारों का शोषण बर्दास्त नहीं करेंगे। लोक गायक संदीप सिंह का कहना है कलाकारों का यह शहर है। लोक कला जिउतिया संस्कृति से इसकी पहचान विश्व स्तर पर है, लेकिन हम कलाकार अपने ही घर में उपेक्षित हैं। कलाकार रवि कुमार रवि, गोविंदा राज, संकेत सिंह, पप्पू कुमार, संतोष अमन एवं अन्य ने फिर से युवा महोत्सव के लिए टीम चुनने की मांग की है।
            बीडीओ बोले-
इस सन्दर्भ में बीडीओ अशोक प्रसाद ने कहा कि उन्हें कोई सूचना नहीं है। वे बीईओ से जानकारी लेंगे।
             बीईओ बोले-
बीईओ रामानुज पांडेय ने बताया कि चयन कर लिया गया है। स्थानीय कलाकारों का भी चयन किया जाना था। जो आये उन्हीं में से कला टीम का चयन किया गया है।

Tuesday 18 October 2016

मिलने के बाद भी जमीन नहीं ले रही राज्य सरकार

             पिपराही प्राथमिक विद्यालय

पिपराही विद्यालय के लिए 8 डीस्मिल जमीन
प्रभारी प्रधानाध्यापक खुद क्रय कर दे रहे जमीन
सरकारी महकमा उनके प्रस्ताव पर है उदासीन
जिला में दर्जनों ऐसे प्राथमिक व मध्य विद्यालय हैं जिनको जमीन उपलब्ध नहीं है और स्कूल या तो बन्द है या पेड के नीचे या किसी अन्य स्कूल के साथ टैग हो कर चल रहे हैं। सरकार कोशिश करती है कि जनता उन्हें स्कूलों के लिए मुफ्त जमीन दे किंतु जब मिलती है तो महकमे की उदासीनता समझ से परे होती है। ऐसा ही एक मामला है गोह के प्राथमिक विद्यालय पिपराही का। स्कूल बेहतर स्थिति में है किंतु आवश्यक्तानुसार कमरों या स्थान की कमी है। इससे सटे 8 डिसमिल जमीन का क्रय वहां के प्रभारी प्रधानाध्यापक रजनीश कुमार ने अपने संसाधन से किया। इसे स्कूल उपयोग हेतु विधिवत देना चाहते हैं किंतु लगभग तीन वर्ष पूर्व राजस्व-कर्मचारी को इसके लिए दिये गये आवेदन पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
इस क्रय पर उन्हें वेतन के एक लाख 60 हजार रूपए खर्च हुए हैं। 40 हजार रूपए की मिट्टी भी भरवाई।

बदतर से बेहतर हुआ स्कूल
यह स्कूल भुरकुंडा पंचायत में है। मात्र 5 शिक्षक पदस्थापित हैं।  जब 02 दिसंबर 1999 को रजनीश कुमार पदस्थापित हुए थे तो मात्र दो कमरा था और पहुँचने के लिए रास्ता नहीं था। सामने पानी लगा रहता था। इसी रास्ते सभी आने-जाने को विवश थे। 85 फीट रास्ते का निर्माण कराया गया। शिक्षकों के बैठने के लिए एक कुर्षि तक नहीं थी। अब कुल आठ कमरे, सभी में दो-दो सीलिंग फैन, कुर्सी-टेबुल, पुस्तकालय में महान लेखकों की कई स्तरीय पुस्तकें हैं। मध्याह्न भोजन के साथ पीने के लिए आरओ का पानी। शौचालय, तीन चापाकल, विद्युत मोटर की व्यवस्था है।

हरा-भरा बनाने को वृक्षारोपण

हरियाली इस स्कूल की पहचान बन गयी है। भवन के सामने विभिन्न पाम प्रजाति के पौधे काफी संख्या में लगाए गए हैं। पोस्टल पाम के 11 पौधे हैं जिसके 5 फीट के एक पौधे की कीमत 3000 रूपए होती है। हरा सेमल 40 पौधा, पाटली 5 पौधे, एरिका पाम 11, लकी बम्बू 15, बोतल पाम 35, अमरुद 10, के अलावे बहुत सारे फूल पत्ती लगे हैं। यहां दिसंबर में लगभग 20 प्रजाति के फूल खिलते हैं।

न खाऊँगा, न खाने दूँगा-रजनीश
रजनीश कुमार

विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक रजनीश कुमार का कहना है कि-मैं न खाऊँगा और न खाने दूँगा- के सिद्धांत पर काम करता हूँ इसलिए इतना विकास संभव हो पाया है। बच्चों के पढने के लिए जमीन कम पड रही है इसलिए अपने संसाधन से क्रय कर जमीन दे रहा हूं, किंतु महकमे की लापरवाही व उदासीनता से आहत हूं।  

Sunday 16 October 2016

पीएचसी से गायब बच्ची मिली लेकिन----

बच्ची के साथ संगीता देवी
मामले में आया नया ट्विस्ट
दो माता कर रहीं दावेदारी

गत गुरुवार को पीएचसी से गयब कर दी गयी तीन दिन की बच्ची कथित तौर पर मिल गयी है। इस मामले में नया ट्विस्ट आ गया है। अब तिवारी मुहल्ला की दो महिलायें इस बच्ची की मां होने का दावा कर रही हैं। पुलिस पेशोपेश में है। थानाध्यक्ष रविप्रकाश सिंह ने बताया कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बेटी किसकी है। जांच चल रही है। बच्ची को पुलिस की देख रेख में रखा जायेगा। रोचकता इतनी है कि थाना परिसर के समीप काफी भीड लग गयी। सूत्रों के अनुसार संगीता देवी ने मुहल्ले की ही सुशीला तिवारी पति शशिकांत तिवारी के पास अपनी कथित बेटी को देखा तो ले लिया और थाने चली गयी। दूसरी तरफ सुशीला भी अपने पति के साथ थाना पहुंची। अब दोनों अपना दावा इस बेटी पर कर रहे हैं। संगीता, उसके पति उत्तम तिवारी व बेटी की दादी हृदा देवी ने दावा किया कि यह बेटी इनकी ही है जिसे घटना के तीन दिन पहले जन्म दी थी जबकि दूसरी तरफ सुशीला का दावा है कि इस बच्ची का जन्म कोलकाता में एक अस्पताल में गत 06 अक्टूबर को हुआ है। अब यह साबित करना मुश्किल हो रहा है कि किसका दावा सही है।

न्यायिक कारर्वाई व डीएनए जांच
इस मामले में अब न्यायिक प्रक्रिया पूरी किया जाना आवश्यक दिखता है। बिना न्यायालय के यह तय करना मुश्किल है कि बच्ची किसकी है। यह छ: दिन की है या फिर दस दिन की है। इसके लिए मेडिकल जांच की आवश्यक्ता होगी। संभव है मामला डीएनए टेस्ट तक पहुंच सकता है।  

क्या है मामला?
गत गुरुवार को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) में टीका दिलवाने तीन दिन की बच्ची को लेकर आयी दादी हृदा कूंवर से बच्ची को धोखे से लेकर एक अज्ञात महिला भाग गयी थी। दादी का दावा था कि तीन दिन पूर्व उसकी पुतोहु व उत्तम तिवारी की पत्नी संगीता देवी ने इस बच्ची को जन्म दिया था। इस प्रकरण के बाद थानाध्यक्ष रवि प्रकाश सिंह ने पुलिस की कई टीम गठित की थी किंतु सफलता नहीं मिली।

पीएचसी में सीसीटीवी लगाने की मांग
पीएचसी में इस घटना के बाद प्रमुख अनिल कुमार यादव, उप प्रमुख नंद कुमार शर्मा एवं तरारी पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि राकेश कुमार ठाकुर ने अस्पताल प्रबंधक ठाकुर चंदन सिंह से मिलकर परिसर में सीसीटीवी कैमरा लगवाने की मांग की थी। श्री ठाकुर ने कहा था कि सीसीटीवी कैमरा लगाने के लिए जिला स्वास्थ्य समिति को लिखा गया है। राशि उपलब्ध होते ही कैमरा लगा दिया।

तीन-चार क्यों, सब लागू करो जी !

शहरनामा
शहर में तीन की बडी शोर है। शोर इतना की कान जब फटने लगे तो लोग डिजिटिलाइजेशन की ओर बढ गये। फेसबुक व ह्वाट्सएप है ही कान को राहत देने के लिए। एक ने कह भी दिया कि तीन और चार ही क्यों अपने पूर्वजों के सभी सफातों को पूरी तरह लागू क्यों नहीं कर देते? सब समस्या ही खत्म हो जायेगी। यह क्या बात हुई जी, कि अपने लाभ वाला तो ठीक है किंतु जननी की चिंता ना करेंगे। अपना वाला मीठा-मीठा और कडवा वाला थू-थू। ऐसे कैसे चलेगा भाई जान? जब तेरी मर्जी तु गांठ बान्ध ले जब तेरी मर्जी तु गांठ तोड कर भाग जाये। यह भी क्या बला है कि जब जितनी नहीं तो कम से कम चार गांठें बान्धने का अधिकार रखो और दूसरी के पास कोई अधिकार नहीं। धार्मिक कानून का अपने तई विश्लेषण करते हो और प्रभावित पक्ष को अपनी बात भी नहीं रखने देते हो। वे जो कह रही हैं वह गलत कैसे है भाई? क्या गलत सही तेरी मर्जी से तय होगा? टीवी डिवेट में वे तर्क देती हैं और तुम सब अपनी सत्ता बचाते हुए दिखते हो। थोथले तर्क देते हुए आड धर्म का, पूर्वजों का, पुरातन होने का लेते हो। पुराना तो बहुत है सती प्रथा, डायन प्रथा, दहेज प्रथा तो क्या यह सब जायज माने जायेंगे? कानून सबके लिए बराबर होने चाहिए न कि किसी अमित्र की तरह कि जो उसे जंचे वह सही है और जो न जंचे वह गलत है। ऐसे कैसे चलेगा भाई जान?
और जब पुराना होना, पूर्वजों का होना या धार्मिक होना ही तर्कसंगत है, जायज है तो फिर अपराध करने पर आईपीसी की धारायें क्यों? संगसार कर मार देना या हाथ काट लेना जायज  क्यों नहीं? सूदखोरी क्यों, शराबखोरी और शबाबखोरी क्यों? यह कैसे जायज है भाई जान? जरा बताइए, तर्कों से इसे खारिज किजीए या फिर जो नारी शक्ति न्यायालय गयीं है उनकी बात मान लें, या फिर फैसले की प्रतिक्षा करें। आमीन!!!

और अन्त में---सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे।नजर को बदलो नजारे बदल जायेंगे॥
कश्तियां बदलने की जरुरत नहीं प्यारे।दिशाओं को बदलो किनारे बदल जायेंगे॥ 

Saturday 15 October 2016

दस्यु से महर्षि व महान कवि बन गये बाल्मिकी

महर्षि बाल्मिकी
दस्यु से महर्षि व महान कवि बन गये बाल्मिकी
रामायण के रचयिता आदि कवि की जयंती आज
प्राचीन भारतीय महर्षि आदिकवि बाल्मिकी की जयंती आज है। उन्हें स्मरण करने का दिन। उनके बारे में किस्सा ख्यात है कि वे कुख्यात दस्यु रत्नाकर थे और बाद में हृदय परिवर्तन हुआ तो वे महर्षि बन गये। उन्होने संस्कृत मेंं रामायण की रचना की। यह महाकाव्य श्री राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से परिचित करवाता है। उन्हें आदि-कवि कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रथम और कवि का अर्थ होता है काव्य का रचयिता। उन्होंने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। इसी करण वे आदिकवि कहे गये। जनश्रुति है कि महर्षि बनने के पहले वे रत्नाकर डाकू के रुप में वे कुख्यात थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि से भेंट हुई। उन्होंने ही इन्हें दस्यु से संत बना दिया। इनके बारे में ही कहा जाता है कि नारद की सलाह के बाद जब वे राम-राम के स्थान पर अज्ञानतावश मरा-मरा जपने लगे। कई वर्षों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियां जम गयीं। इसी कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें ज्ञान प्रदान किया।

क्रौंच पक्षी व बाल्मिकी
चर्चा होती है कि एक बार महर्षि वाल्मीकि एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही एक श्लोक फूट पड़ा। जिसके बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और बाल्मिकी रामायण की रचना हुई।

महर्षि की जाति पर मतभेद
माना जाता है कि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। कुछ उन्हें ब्राह्मण मानते हैं, कुछ वर्तमान राजनीतिक सन्दर्भ में ओबीसी बताते हैं। वर्तमान अनुसूचित जाति की सूचि में शामिल एक जाति विशेष का भी उन्हें माना जाता है। इसी आधार पर बाल्मिकी मुहल्ला या एक जाति विशेष के लोग खुद को ‘बाल्मिकी समाज’ का नाम देते हैं। मामला न्यायालय तक पहुंचा जहां जाति तय करने पर वाद चला। हालकि वाल्मीकि ने रामायण में स्वयं को प्रचेता मुनि का दसवां पुत्र बताया है। कहा है कि कभी पापाचार कार्य नहीं किया है। उनके दस्यु होने की बात पर भी सन्देह होता है। एक ऋषि जिसके पिता स्वयं एक मुनि हों तो उसके डाकू बनने की बात पचती नहीं है। हालांकि यह तर्क खारिज भी हो सकता है।

औरंगाबाद : राजनीती और साहित्य से दूर हुआ एक विलक्षण रचनाकार

श्री महाबीर प्रसाद अकेला जी से साकात्कार करते लेखक उपेन्द्र कश्यप

(emaatimes.com का लिंक नीचे -इस वेब पोर्टल के संपादक मित्र प्रियदर्शी किशोर श्रीवास्तव को इस लेख को स्थान देने के लिए धन्यवाद। प्रकाशित रिपोर्ट यहां अविकल पुनर्प्रकाशित)
औरंगाबाद [13 अक्टूवर ET ]:- कभी राजनीती के शीर्ष पर रहकर नबीनगर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके महावीर प्रसाद अकेला आज राजनीती से दूर हो अपने परिवार के साथ औरंगाबाद शहर में सामाजिक जीवन व्यतीत कर रहे है।वर्ष 1969 का वक्त और मिनी चित्तौड़गढ़ के नाम से विख्यात नबीनगर विधानसभा चुनाव में सीपीआई का टिकट लेकर चुनाव लड़ने आये श्री अकेला को लोग हाथों हाथ ले लेंगे यह किसी ने नही सोचा था क्योंकि पुरे जिले की राजनीती अनुग्रह बाबू के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह के इर्द गिर्द घुमती थी और यहाँ की राजनीती में यह कहावत मशहूर हो गयी थी की छोटे साहब यदि किसी कुत्ते को खड़ा करा दे तो वह चुनाव जीत जायेगा।ऐसे में वैश्य समाज से आने वाले महावीर प्रसाद जिनका कोई समीकरण नही था ने जीत दर्ज कर राजनीती को एक नई दिशा दी।लेकिन तीन साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में शिक़स्त के बाद और दल में हुई उपेक्षा से क्षुब्ध होकर राजनीती से किनारा कर लिया और अपनी लेखन क्षमता विकसित की और वर्तमान परिदृश्य पर एक उपन्यास बोया पेड़ बबूल का लिखा।वाराणसी के ज्योति प्रेस से प्रकाशित इस साधारण से उपन्यास ने देश में तहलका मचा दिया और उस उपन्यास को प्रकाशित होने से पूर्व ही कालेपानी की सजा दे दी गयी और इस विवादित उपन्यास के कारण वर्ष 1979 में उन्हें साढ़े पांच महीने तक जेल में भी रहना पड़ा।उस वक्त जब न सोशल मीडिया था और न ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया। प्रिंट मीडिया का तत्कालीन स्वरुप बहुत सीमित हुआ करता था।बावजूद इसके पुस्तक इतनी चर्चित हुई कि उससे उपजी परेशानियां आज भी इनके साथ साथ इनके परिवार के सदस्यों के जेहन में चलचित्र की भांति अंकित हो चुकी है।बच्चे काफी छोटे छोटे थे और ऐसे में अचानक से आयी परेशानियों ने समाज में बिलकुल अकेला खड़ा कर दिया तब जाकर उनकी जीवन संगिनी मुकुल अकेला हर कदम पर इनके साथ खड़ी रहकर हर मुसीबतों को झेल और उन्हें अकेला नही छोड़ा।लेखक की मानें तो उपन्यास में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचती, किंतु विरोध के लिए विरोध किया गया और नतीजा किताब प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गयी। इस अप्रकाशित उपन्यास ने जिला मुख्यालय में आग फैला दी थी। उस घटना की व्यापक चर्चा बिहार : राजनीति का अपराधीकरणमें विकास कुमार झा ने की है। उन्होंने तब इस पर बडी कवरेज रविवारमें की थी। इस पुस्तक की सामग्री की चर्चा से अधिक महत्वपूर्ण है- लेखक के विचार की चर्चा।
सीपीआई से 1967 का चुनाव नवीनगर से वे हारे और फिर 1969 में जीत कर विधायक बने थे। 1972 में चुनाव नहीं लड सके और 1980 में हार गये। बाद में पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया। बताया, तब कहा गया कि- तुम्हे एक समुदाय विशेष का वोट नहीं मिलेगा।कहते हैं माओत्से तुंग हो या स्टालिन इनकी आर्थिक नीतियां सही नहीं है। इनकी हो, मजदूर वर्ग की हो या किसी की हो तानाशाही उचित नहीं। श्री अकेला अब अकेला हो गये हैं। राजनीति से उन्हें विरक्ति हो गयी है। वे मानते हैं कि किसी भी पार्टी की विचारधार आज सही नहीं है। कहते हैं- एक दिन समाजवाद आकर रहेगा, समय चाहे जितना लगे, पूंजीवाद को जाना ही होगा। वे इस मामले में बडे आश्वस्त दिखे।
भाजपा नहीं अपनी बदौलत हैं नमो
महाबीर प्रसाद अकेला का मानना है कि नरेन्द्र मोदी अपनी बदौलत आये हैं। भाजपा की विचारधारा की वजह से नहीं। श्री अकेला अपने कालेज जीवन में आरएसएस से प्रभावित रहे हैं। बाद में राजनीति की शुरुआत सीपीआई से की। इसी पार्टी से चुनाव लडे, हारे-जीते व विधायक बने। किंतु आज इनको वामपंथ से अरुचि है। भाजपा से प्रेम नहीं है। समाजवाद के आने की उम्मीद है, पूंजीवाद के जाने की अपेक्षा है किंतु वे यह बता सकने में खुद को सक्षम नहीं पाते कि किस पार्टी के जरिये यह हो सकेगा। साफ कहते हैं अभी किसी पार्टी की विचारचारा सही नहीं है। आरएसएस से एकदम से वामपंथ की तरफ चले जाने के पीछे एक घटना रोचक है। बताया- कालेज के दिनों में आरएसएस समर्थकों से बहस हुई तो पूछा कि बहुमत आने पर आर्थिक नीतियां क्या होंगी तो जवाब मिला इससे कोई मतलब नहीं है। इसके बाद वे वामपंथ की ओर झुके। किंतु वामपंथ को करीब से देखने के बाद राजनीति से विरक्ति हो गयी। बोले-नक्सली लेवी लेते हैं। कहां गयी विचारधारा?
कोई मुकाबले में नहीं
श्री अकेला बोले कि नरेन्द्र मोदी के मुकाबले कोई खडा नहीं दिखता। इनके समानांतर अभी कोई नहीं है। बोले-सोनिया गान्धी और राहुल कहीं नहीं दिखते हैं। अभी नमो का भविष्य उज्ज्वल दिखता है। कहा कि कोलकाता में 35 साल तक वामपंथी राज रहा क्या हुआ विकास? वहां का मानव जीवन विकसित नहीं हो सका।
अगर बाते की जाए तो विषयो की कमी नहीं उनके पास हर प्रश्न के तार्किक जवाब मौजूद है लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें लड़ना सिखाया और यही कारण है कि उनके एकमात्र पुत्र गौरव अकेला भी जातीय राजनीती से अलग हो सामाजिक क्षेत्रो में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो रहे है।
प्रकाशित पुस्तकें
जीवन परिचय-
महावीर प्रसाद अकेला
जीवन संगिनी-मुकुल अकेला
पुत्र-गौरव अकेला
जन्म : 25 जून 1034
शिक्षा : एम. कॉम.
क्रिया कला : सामाजिक और राजनीतिक कार्य तथा लेखन।
सन् 1969 से 1971 तक बिहार विधानसभा के सदस्य।

लेखक की प्रकाशित पुस्तकें :
1. न माने मन के मीत, 2. युग की पुकार (कविता संग्रह), 3. सिंदूर का दान, 4. मेरी प्रथम जेल यात्रा
5.
चटटान और धारा, 6. छोटा साहब और बड़ा चुनाव (लेख), 7. बूलेट और बैलेट तक (लेख)
8.
सफेद हाथियों का सरकस, 9. बोया पेड़ बबूल का10. गूंज, 11. नीड़ के पंक्षी
अप्रकाशित रचनाएं :
1.
मुहब्बत के फरिश्ते, 2. नक्कार खाने में तूती की आवाज, 3. मेहरबान, 4. नूरजहॉं, 5. जहॉनारा
6.
लहरें (कविता संग्रह), 7. अपने हुए पराये, 8. जिन्दगी मुस्कुराती रही (आत्मकथा)

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Wednesday 12 October 2016

राजनीति से विरक्त हुआ शब्द का चितेरा

अपनी पत्नी व अन्य के साथ महाबीर प्रसाद अकेला
मजदूरों की भी तानाशाही है अनुचित ही है
पुस्तक लिखने के कारण जेल गये थे पूर्व विधायक
पूजीवाद का जाना और समाजवाद का आना तय
साल 1979 में साढे पांच महीने जेल काट चुके हैं पूर्व विधायक महाबीर प्रसाद अकेला। वजह ऐसी कि उसकी चर्चा आज भी साहित्य और राजनीति के क्षेत्र में बडे अदब से होती है। उन्होंने तब पुस्तक लिखा था- बोया पेड बबूल का। वाराणसी के ज्योति प्रेस से यह प्रकाशित हुई थी। साधारण से उपन्यास ने तब बवाल मचा दिया था। जब कि तब न सोशल मीडिया था न ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया। प्रिंट मीडिया का तत्कालीन स्वरुप बहुत सीमित हुआ करता था। इसमें लेखक की मानें तो ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचती, किंतु विरोध के लिए विरोध किया गया और नतीजा किताब को प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गयी। इस अप्रकाशित उपन्यास ने जिला मुख्यालय में आग फैला दी थी। उस घटना की व्यापक चर्चा ‘बिहार : राजनीति का अपराधीकरण’ में विकास कुमार झा ने की है। उन्होंने तब इस पर बडी कवरेज ‘रविवार’ में की थी। इस पुस्तक की सामग्री की चर्चा से अधिक महत्वपूर्ण है- लेखक के विचार की चर्चा।
सीपीआई से 1967 का चुनाव नवीनगर से वे हारे और फिर 1969 में जीत कर विधायक बने थे। 1972 में चुनाव नहीं लड सके और 1980 में हार गये। बाद में पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया। बताया, तब कहा गया कि- ‘तुम्हे एक समुदाय विशेष का वोट नहीं मिलेगा।‘ कहते हैं माओत्से तुंग हो या स्टालिन इनकी आर्थिक नीतियां सही नहीं है। इनकी हो, मजदूर वर्ग की हो या किसी की हो तानाशाही उचित नहीं। श्री अकेला अब अकेला हो गये हैं। राजनीति से उन्हें विरक्ति हो गयी है। वे मानते हैं कि किसी भी पार्टी की विचारधार आज सही नहीं है। कहते हैं- एक दिन समाजवाद आकर रहेगा, समय चाहे जितना लगे, पूंजीवाद को जाना ही होगा। वे इस मामले में बडे आश्वस्त दिखे।

भाजपा नहीं अपनी बदौलत हैं नमो
महाबीर प्रसाद अकेला का मानना है कि नरेन्द्र मोदी अपनी बदौलत आये हैं। भाजपा की विचारधारा की वजह से नहीं। श्री अकेला अपने कालेज जीवन में आरएसएस से प्रभावित रहे हैं। बाद में राजनीति की शुरुआत सीपीआई से की। इसी पार्टी से चुनाव लडे, हारे-जीते व विधायक बने। किंतु आज इनको वामपंथ से अरुचि है। भाजपा से प्रेम नहीं है। समाजवाद के आने की उम्मीद है, पूंजीवाद के जाने की अपेक्षा है किंतु वे यह बता सकने में खुद को सक्षम नहीं पाते कि किस पार्टी के जरिये यह हो सकेगा। साफ कहते हैं अभी किसी पार्टी की विचारचारा सही नहीं है। आरएसएस से एकदम से वामपंथ की तरफ चले जाने के पीछे एक घटना रोचक है। बताया- कालेज के दिनों में आरएसएस समर्थकों से बहस हुई तो पूछा कि बहुमत आने पर आर्थिक नीतियां क्या होंगी तो जवाब मिला इससे कोई मतलब नहीं है। इसके बाद वे वामपंथ की ओर झुके। किंतु वामपंथ को करीब से देखने के बाद राजनीति से विरक्ति हो गयी। बोले-नक्सली लेवी लेते हैं। कहां गयी विचारधारा?

कोई मुकाबले में नहीं
श्री महाबीर प्रसाद अकेला से वार्ता करते उपेन्द्र कश्यप
श्री अकेला बोले कि नरेन्द्र मोदी के मुकाबले कोई खडा नहीं दिखता। इनके समानांतर अभी कोई नहीं है। बोले-सोनिया गान्धी और राहुल कहीं नहीं दिखते हैं। अभी नमो का भविष्य उज्ज्वल दिखता है। कहा कि कोलकाता में 35 साल तक वामपंथी राज रहा क्या हुआ विकास? वहां का मानव जीवन विकसित नहीं हो सका। बुधवार को जब उनके आवास पर इस संवाददाता ने उनका साक्षात्कार लिया तो उनके साथ पत्नी मुकुल अकेला के अलावा वैश्य सेवा दल के नगर अध्यक्ष राहुल राज, जिला उपाध्यक्ष विनोद शर्मा, प्रवक्ता जीतेन्द्र गुप्ता, महामंत्री दिलिप कुमार, जन अधिकार पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष गणेश् कुमार एवं धीरज कुमार उपस्थित रहे।

जीवन परिचय-
महावीर प्रसाद अकेला
जीवन संगिनी-मुकुल अकेला
पुत्र-गौरव अकेला
जन्म : 25 जून 1034
शिक्षा : एम. कॉम.
क्रिया कला : सामाजिक और राजनीतिक कार्य तथा लेखन।
सन् 1969 से 1971 तक बिहार विधानसभा के सदस्य।

                       लेखक की प्रकाशित पुस्तकें :               
1. न माने मन के मीत
2. युग की पुकार (कविता संग्रह)
3. सिंदूर का दान
4. मेरी प्रथम जेल यात्रा
5. चटटान और धारा
6. छोटा साहब और बड़ा चुनाव (लेख)
7. बूलेट और बैलेट तक (लेख)
8. सफेद हाथियों का सरकस
9. बोया पेड़ बबूल का
10. गूंज
11. नीड़ के पंक्षी


अप्रकाशित रचनाएं :
1. मुहब्बत के फरिश्ते
2. नक्कार खाने में तूती की आवाज
3. मेहरबान
4. नूरजहॉं
5. जहॉनारा
6. लहरें (कविता संग्रह)
7. अपने हुए पराये
8. जिन्दगी मुस्कुराती रही (आत्मकथा)

समाज को दिशा देते हैं दिग्गज : डा. प्रकाश
Dr.Prakashachandra
भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव सह वैश्य सेवा दल के जिलाध्यक्ष डा. प्रकाश चंद्रा ने कहा कि समाज को दिशा देने का काम दिग्गज करते हैं। पूर्व विधायक महावीर प्रसाद अकेला ने समाज के साथ क्षेत्र और राज्य को एक नई दिशा दी। इनकी राजनीतिक विचारधारा को आज भले ही कुछ अप्रासंगिक माने किंतु समाजहित के लिए यह आवश्यक है कि राजनीति की धारा समाजवाद से नि:सृत हो। कहा कि समाज में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें मुख्यधारा में जगह नहीं मिलती। जबकि ऐसे ही लोग समाज के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। श्री अकेला जैसे तमाम लोगों को समाज द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए।