Sunday 16 October 2016

तीन-चार क्यों, सब लागू करो जी !

शहरनामा
शहर में तीन की बडी शोर है। शोर इतना की कान जब फटने लगे तो लोग डिजिटिलाइजेशन की ओर बढ गये। फेसबुक व ह्वाट्सएप है ही कान को राहत देने के लिए। एक ने कह भी दिया कि तीन और चार ही क्यों अपने पूर्वजों के सभी सफातों को पूरी तरह लागू क्यों नहीं कर देते? सब समस्या ही खत्म हो जायेगी। यह क्या बात हुई जी, कि अपने लाभ वाला तो ठीक है किंतु जननी की चिंता ना करेंगे। अपना वाला मीठा-मीठा और कडवा वाला थू-थू। ऐसे कैसे चलेगा भाई जान? जब तेरी मर्जी तु गांठ बान्ध ले जब तेरी मर्जी तु गांठ तोड कर भाग जाये। यह भी क्या बला है कि जब जितनी नहीं तो कम से कम चार गांठें बान्धने का अधिकार रखो और दूसरी के पास कोई अधिकार नहीं। धार्मिक कानून का अपने तई विश्लेषण करते हो और प्रभावित पक्ष को अपनी बात भी नहीं रखने देते हो। वे जो कह रही हैं वह गलत कैसे है भाई? क्या गलत सही तेरी मर्जी से तय होगा? टीवी डिवेट में वे तर्क देती हैं और तुम सब अपनी सत्ता बचाते हुए दिखते हो। थोथले तर्क देते हुए आड धर्म का, पूर्वजों का, पुरातन होने का लेते हो। पुराना तो बहुत है सती प्रथा, डायन प्रथा, दहेज प्रथा तो क्या यह सब जायज माने जायेंगे? कानून सबके लिए बराबर होने चाहिए न कि किसी अमित्र की तरह कि जो उसे जंचे वह सही है और जो न जंचे वह गलत है। ऐसे कैसे चलेगा भाई जान?
और जब पुराना होना, पूर्वजों का होना या धार्मिक होना ही तर्कसंगत है, जायज है तो फिर अपराध करने पर आईपीसी की धारायें क्यों? संगसार कर मार देना या हाथ काट लेना जायज  क्यों नहीं? सूदखोरी क्यों, शराबखोरी और शबाबखोरी क्यों? यह कैसे जायज है भाई जान? जरा बताइए, तर्कों से इसे खारिज किजीए या फिर जो नारी शक्ति न्यायालय गयीं है उनकी बात मान लें, या फिर फैसले की प्रतिक्षा करें। आमीन!!!

और अन्त में---सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे।नजर को बदलो नजारे बदल जायेंगे॥
कश्तियां बदलने की जरुरत नहीं प्यारे।दिशाओं को बदलो किनारे बदल जायेंगे॥ 

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