Monday 30 January 2017

माइकोमेनिया बनाम मंच संचालन का समर्पण

सांस्कृतिक समारोह के मंच संचालन के लिए इस बार भीतर भीतर राजनीति होने की चर्चा है| शहर जानता है की माइकोमेनिया की बीमारी और बीच में सर उचका कर फोटो खींचाने की बीमारी कितनी खराब है| प्रशासन नहीं चाहता की दंगा, मारपीट, सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी माँगने का आरोपी मंच संचालन करे| यह और बात है की पैरवी के बल पर कोइ अपना नाम कटा ले| विवाद के दोनों पक्षकार समझौता कर केसा खत्म कर लें| सच कौन जामता है, यह तो न्यायालय में लंबी बहस के बाद तय होता है, किन्तु प्रथम दृष्टया इस तरह के आरोपी को या किसी राजनीतिक दल के नेता द्वारा सरकारी या प्रशासनिक कार्यक्रम के संचालन को जायज तो नहीं ही ही माना जाता है| पिछले अधिकारी ने संचालन से मुक्त कर दिया तो विधायक से पैरवी करा कर काम हाथ से जाने नहीं दिया| इस बार शंका हुई तो पूर्व विधायक से पैरवी कराई गयी| हद है भाई, सवाल तो बनता है न कि जब मंच संचालन का बाई प्रोडक्ट लाभ नहीं है तो काहे का मत्थापच्ची? इतना परिश्रम वह भी तब जब कोइ चाहता नहीं की मंच पर नेता जी रहें|
 चर्चा है की यह संचालन के प्रति समर्पण का मामला नहीं है बल्कि इससे आम लोगों को यह बताना दिखाना आसान होता है कि हमारी पहुँच काफी है| पदाधिकारी मेरी सुनते है| इससे वह धंधा भी अच्छा चल निकलता है जो बुरा मान जाता है किन्तु लाभदायक है| प्रशासन इसीलिए नहीं चाहता कि नेता उनके कार्यक्रम का संचालन करे| और हां, पूरे बिहार में ऐसा नहीं होता की सरकारी या प्रशासनिक आयोजन का संचालन कोइ नेता करे| खैर, बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे वाली स्थिति बन गयी है|
 और अंत में साहिर लुधियानवी
सज़ा का हाल सुनाये जज़ा की बात करें|
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें|
वफ़ाशियार कई हैं कोई हसीं भी तो हो|
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें|

Thursday 26 January 2017

समाज को दिशा दिखाता है सूरदास बीरा


चंदे के पैसे से दर्जनों बेटियों का कराया विवाह
सांप्रदायिक सौहार्द ही सीखाना जीवन का लक्ष्य 

उर्फ बीरा करीब 60 वर्ष की उम्र में समाज को दिशा दिखाने का काम कर रहे है जबकि वे बचपन से अंधे है| दाउदनगर-गया रोड के नियमित यात्री उन्हें अच्छी तरह जानते हैं| देवहरा निवासी बीरा ने दिव्यांगता को अभिशाप न मान कर कर्म करने में विश्वास किया| जबकि प्रकृति ने उनके साथ क्रूर व्यवहार किया और जब मात्र पांच साल के वे थे उनके आँख की रौशनी चली गयी, और सात साल की उम्र में पिटा का से उठ गया| भिक्षाटन मजबूरी है किन्तु आदर्श और संकल्प ने इस शख्स को उस मुकाम पर खड़ा कर दिया जहाँ हर इंसान इनके आगे सजदे में झुकने को गर्व समझेगा| काम बोलता है, पैसा नहीं| इसे वह साकार कर रहे है| गत कई दशक से लगातार अनथक, अहर्निश| सेवा भाव का यह माद्दा बिरले में मिलता है| उन्होंने यात्री बसोंम बाजारों में भीक्षटन कर मंदिर और मस्जिद का निर्माण कराया है| दर्जनों लड़कियों की शादी कराई| सत्ता और विपक्ष की राजनीति करने वाले दलों और नेताओं को इनसे सबक सीखना चाहिए| उन्होंने विवाह और निकाह जो या मंदिर मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम में कोइ फर्क नहीं समझा| उनकी पहचान ही समाज को दिशा दिखाने वाले की बन गयी है|

अद्भूत गुणों वाले है याकूब मंसूरी
देवहरा निवासी शिक्षक सुनील बौबी ने बताया कि मो.याकूब अंसारी उर्फ बीरा के पास कई अदभुत गुण है। एक बार किसी से बात कर ले तो दुबारा उस व्यक्ति की आवाज से ही पहचान कर नाम तक बता देते है। अच्छे गीतकार भी है। गीत-संगीत सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देना इनका हुनर है। दो पुत्रों के वालिद याकूब भूमिहीन है। उन्होंने 1989 में गोह प्रखंड के देवहरा पुनपुन नदी घाट पर सूर्य मंदिर, 1993 में देवहरा मस्जिद का निर्माण और बाद में पोखरा का भी निर्माण चंदा के पैसे से ही कराया।
गया,  औरंगाबाद, धनबाद, बोकारो आदि जिले की जिन दर्जनों बेटियों की शादी करवाई है उनकी पहचान उजागर करना अच्छा नही समझते है।

चंदे से ही चलती रही गृहस्थी
बीरा दो भाई है| दोनो के गृहस्थी अलग अलग ढंग से चलती है। बीरा के दो पुत्र सरफराज अहमद एवं शहनवाज अहमद है। अब खुद दोनों कमाते है। गृहस्थी हिन्दू और मुस्लिम पर्वों पर चंदा में मिले पैसे से चलती थी। शुभ अवसरों पर गजल, कव्वाली व गीत पेश कर कुछ पैसे कमा लेते है। पत्नी शमीमा खातून पति के सामाजिक कार्यों को भी प्रोत्साहित करती है।

Wednesday 25 January 2017

भजन रत्न के निर्देशक बने चौरम के संतोष बादल

फोटो-बाबा रामदेव के साथ संतोष बादल व भजन रत्न का सेट

सबसे बड़े भजन शो से जुडा दाउदनगर का नाम
नयी प्रतिभाओं को मिलेगा राष्ट्रीय स्तर पर मौक़ा
बौलीवुड इस प्रखंड के चौरम निवासी संतोष बादल ने बड़ा नाम किया है| बाबा रामदेव के साथ इंटरटेनमेंट की दुनिया में एक नया धमाका करने जा रहे हैं| पतंजलि ने अपने सीरियल ‘भजन रत्न’ का उन्हें निर्देशक बनाया है| यह शो पुरे भारत से भजन गायको की खोज की है और इंडियन आइडियल की तरह इस शो में इंडिया के नंबर वन भजन गायक को चुनकर पुरष्कृत करेगा। पुरे भारत से ऑडिशन करके 350 प्रतिभागियों को चुना गया है और 14 जनवरी से 17 जनवरी के बीच पतंजलि कैंपस में महा ऑडिशन का विशाल कार्यक्रम में 350 में से 40 प्रतिभागियों को चुना गया।
दानिका सांस्कृतिक संस्थान के सरोज सागर का चयन भी वही हुआ है| अब 40 के साथ कॉम्पटीशन हो रहा है|  संभवतः जुलाई तक यह शो भारत के नंबर वन भजन गायक को चुन लेगा| संतोष बादल ने बताया कि अब तक का विश्व का सबसे बड़ा भजन पर आधारित सिंगिंग रिअलिटी शो है यह जिसे होस्ट कर रहे हैं खुद स्वामी रामदेव जी और आचार्य बालकृष्ण जी। हर एपिसोड में देश के बड़े बड़े संत आएंगे जो प्रतिभागियों को सुनेंगे और अपना मत देंगे। जज के रूप में अनूप जलोटा, लखवीर सिंह लखा, साधना सरगम, शंकर महादेवन जैसे कई नाम शामिल होंगे।
 संतोष बादल ने जो कहा-
मुझे गर्व महसूस होता है कि मैं दाउदनगर के  चौरम गांव का हूँ। मेरी मंशा है कि फिल्म इंडस्ट्री का हर कलाकार दाउदनगर की धरती पर आकार अपनी अभिनय कला को दिखा कर जाए, ताकि उन नवोदित कलाकारों का हौसला बुलंद हो जो मुम्बई तक की सफर नहीं कर पाते हैं| मुझे ख़ुशी इस बात की भी है कि भजन रत्न के चलते मेरी और बाबा रामदेव की मित्रता अभिन्न हो गई है।

फिल्म इंडस्ट्री में बनाया है अपना ख़ास मुकाम
संतोष बादल की संक्षिप्त बौलीवुड यात्रा
16 साल पहले जीते है एडिटर का 9 अवार्ड
6000 एपिसोड और 9 बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड


चौरम से बिना बड़ी डिग्री हासिल किए मुम्बई भाग कर जो मुकाम संतोष बादल ने हासिल किया है वह विरले को ही नसीब होता है| वर्ष 1996 में मुम्बई पहुंचे, सिर्फ 18 साल के थे| अपना गुरु माना इंडस्ट्री के जाने माने निर्देशक होमी वाडिया को| निर्देशक बनना चाहटे थे| एक साल तक उनकी बहुत सेवा की|  उनके स्टूडियो के रख रखाव से लेकर उनके घर का खाना बनाना उनके कपडे वाश करना,सब किया| अंततः 1997 में उन्होंने निर्देशक बनने के पूरे फॉर्मूले को समझाया। विडियो संपादन का काम शुरू किया और 1998 तक मुख्य संपादक बन गये| साल 2000 तक एडिटर के रूप में 9 अवार्ड जीते। इंडस्ट्री में खास जगह बन गई| तब सिर्फ 21 साल उम्र थी| एकता कपूर ने बतौर निर्देशक पहला मौका दिय| एशिया महादेश का सबसे हिट सीरियल साबित हुआ- ‘क्योंकि सास भी कभी बहु थी’| उसके बाद 2016 के अंत तक इंडस्ट्री के सारे सीरियल अपने नाम किये और लगभग 6000 एपिसोड का निर्देशन किया| साल 2000 से 2016 तक चार फीचर फिल्म की जो चर्चित रही। हालिया रिलीज फिल्म "फाइनल मैच" काफी सफल रहा। निर्देशक के तौर पर उन्हें नौ बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड मिल चुका है| सन 2000 का सबसे कम उम्र का निर्देशक बनने का गौरव भी प्राप्त उन्हें हुआ| 

Monday 23 January 2017

जमींदोज हो रहा 73 साल पुराना स्मरण


नेता जी से जुदा है दाउदनगर का इतिहास
फरवरी 1939 में चौरम आये थे सुभाषचंद्र 
हुआ था गया का राजनैतिक जिला सम्मेलन

73 साल पुराना स्मरण अब जमींदोज हो रहा है। दाउदनगर बारुण रोड में शहर से करीब चार किलोमीटर दूर स्थित है सुभाष आदर्श उद्योग मंदिर चौरम। यहां 9-10 फरवरी 1939 को चतुर्थ गया जिला राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तब कोलकता से यहां आए थे। उन्होंने अंग्रेजों को ललकारते हुए कहा था कि वे रोज गोली चला रहे हैं, यह अब बर्दाश्त से बाहर हो गया है। 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का नारा बुलंद किया था। यह वही चौरम आश्रम है जहां आजादी के दीवाने राजनीति का पाठ पढ़ अपने अंदर जज्बा और हौसला भरते थे। ऐसे लोगों में पूर्व मंत्री (अब स्वर्गीय) रामनरेश सिंह, रामविलास सिंह, राम नारायण सैनिक, केशव सिंह, जगेश्वर दयाल सिंह, जगदेव लाल केशरी शामिल थे। कुमार बद्री नारायण की जमींदारी में बसा चौरम तब कितना महत्वपूर्ण था इसका आकलन लगाया जा सकता है कि तत्कालीन गया जिला और वर्तमान मगध प्रमण्डल में चौरम को राजनैतिक जिला सम्मेलन के लिए चुना गया। इस आयोजन की सबसे बड़ी सफलता यह रही थी कि सैकड़ों किसानों को जमींदारी से मुक्ति मिली थी। कुमार बद्री नारायण ने अपनी चार सौ बिगहा जमीन किसानों के बीच बांट दी थी। इस स्थल को संरक्षण की जरूरत थी लेकिन शिलान्यास के कई पत्थर जमींदोज हो गए। जमीन का बड़ा हिस्सा बेच दिया गया या अतिक्रमित कर ली गई। मात्र पांच एकड़ जमीन जो स्कूल खोलने के लिए बिहार के राज्यपाल के नाम निबंधित है वहीं सुरक्षित बचा हुआ। इस जमीन पर भी कुछ लोगों की नजर गड़ी है। अगर यहां कुछ पक्का निर्माण न हुआ तो कहीं ऐसा न हो कि इस भूखंड को भी भविष्य में खोजना पड़े। यहां कोई भी संस्था इस मुद्दे को लेकर सक्रिय नहीं हैं। मात्र आयोजन के स्मृतिशेष कुछ बुजुर्ग जेहन में बचे हुए हैं।

शिक्षा क्षेत्र में योगदान के लिए महेंद्र सम्मानित

चेन्नई में पुरस्कृत महेंद्र दाउदनगर में जन्मे

जिले का नाम तमिलनाडु में किया रौशन
 शहर के पुरानी शहर में जन्मे महेंद्र कुमार ने शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए चेन्नई में सम्भागीय प्रोत्साहन पुरस्कार 2016 प्राप्त कर जिले का नाम रौशन किया है| उन्हें केन्द्रीय विद्यालय संगठन  चेन्नई सम्भाग के तत्वावधान में स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित केन्द्रीय विद्यालय सीएलआरआई, अडयार में कार्यरत हिन्दी शिक्षक महेन्द्र कुमार को शिक्षा के क्षेत्र में उनके समर्पित, निष्ठापूर्ण तथा उत्कृष्ट एवं सराहनीय सेवा तथा महत्वपूर्ण योगदान के लिए
 यह पुरस्कार मिला है| उन्हें डॉ सुभाषचंद्र परिजा, निदेशक, जिपमेर, पॉन्डिचेरी ने पुरस्कार दिया| इस अवसर पर केविएस, चेन्नै सम्भाग के उपायुक्त श्री एसएम सलीम तथा अन्य अधिकारी भी उपस्थित थे।  महेन्द्र कुमार वर्ष 1995 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन के विभिन्न विद्यालयों में कार्य करते हुए वर्ष 1999 से चेन्नै के उक्त केन्द्रीय विद्यालय में कार्यरत हैं। अपने अनोखे एवं अभिनव तरीके से कार्य करते हुए अपने जुनूनी अंदाज के लिए जाने जाते हैं। छात्र समुदाय में समादृत श्री कुमार बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी हैं।
जड़ अब भी दाउदनगर में ..
महेंद्र कुमार की जड़ दाउदनगर से अब भी जुडी हुई है| उनका जन्म फुले नगर वार्ड संख्या 05 के निवासी पिता स्व. सत्यनारायण भगत के घर दो जनवरी १९६३ को हुआ था| वार्ड पार्षद बसंत कुमार ने उन्हें बधाई देते हुए शहर के लिए इसे गौरव का क्षण बताया| इनके बड़े भाई राजेन्द्र कुमार हैं। ब्रजेश कुमार, प्रफुल भगत, रामसेवक प्रसाद इनके चाचा हैं।

रास्ते का पत्थर समझ ठोकर मत लगाओ
महेंद्र कुमार की संक्षिप्त यात्रा

महेंद्र कुमार साहित्य, संगीत, भाषण और थियेटर जैसी कलाओं में निष्णात हैं| वर्ष 2015 में तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी ने उनकी प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह ‘हर वृक्ष महाबोधि नहीं होता’ को सम्मानित किया है। इसमें एक कविता है-रास्ते का पत्थर| इसकी पहली पंक्ति है-मैं एक पत्थर हूँ, रास्ते पर पडा, पर तुम मुझे, रास्ते का पत्थर समझ ठोकर मत लगाओ|| उन्हें केन्द्रीय विद्यालय संगठन द्वारा प्रकाशित पत्रिका संगम तथा काव्य मंजरी में इनकी कविताएं प्रकाशित| ‘अध्यात्म शिक्षा का अनिवार्य अंग’ निबंध प्रकाशित| आकाशवाणी से कहानी कविता प्रसारित| सांवली में कविता प्रकाशित| जनमत का संपादन| वर्ष २००२ में स्कौलेस्टिक इंडिया लिमिटेड द्वारा ‘मैनें शिक्षक बनना क्यों चुना’ निबंध पुरस्कृत|  

Sunday 22 January 2017

पंजा के लिए काटा पौकेट या फटी जेब में घुसा हाथ


बड़ा विचित्र देश है भारत| करोडपतियो के पौकेट फट जाते हैं| सूना करता था कि जिनके पैसे जेब में होते है उन्हें कोइ काट लेता है| जेबकतरा इसीलिए नाम पडा होगा| राजनीति में जब जेब फटे तो सवाल लाजिमी बनता है| संदेह होंगे ही| पप्पू बाबा ने अपने फटे जेब की नुमाइश की| बजाप्ता जैकेट उतारा और कुरते के फटे जेब में हाथ घुसा कर सवाल पूछा और अपनी बात कही| मंच तालियों की गडगडाह्ट से गूँज उठा| लेकिन इसी देश में भाँति भाँति किस्म के लोग रहते है| सिर्फ संस्कृति ही नहीं स्वभाव और विचार के साथ कल्पना भी हजारों में होती है| पप्पू या राहुल बाबा कही गरीब तो नहीं हो गए, इसलिए उनकी औकात खंगाली तो पता चला कि चुनाव आयोग को दी हलफनामे के अनुसार उनकी संपत्ति पांच साल में दोगुनी होकर 9.4 करोड़ की हो गयी है| अब जब जिनकी संपत्ति हर साल एक करोड़ बढ़ती हो वह भी बिना किसी नौकरी या दूकान के उनकी जेब फटे तो संदेह जायज लगता है| जांच होनी चाहिए कि किसी 70 साल के देश में हुए 16 आम चुनाव में छ: बार पूर्ण बहुमत और चार बार गठ्बंधन समेत 49 साल सरकार चलाने वाली पार्टी के मुखिया इतने कंगाल कैसे हो गए कि उनके कुरते की जेब फट जा रही हो? मुकेश मित्तल को दुःख लगा तो 100 रुपए का ड्राफ्ट भेज दिया| यह कितनों को नसीब है, इस देश में तो 100 रूपए में तो साड़ी, धोती और कुरता मिल जाता है भाई! जांच का विषय यह भी है कि कैसा कुरता था कि सिर्फ जेब फटी और अन्य हिस्से में कही खरोंच तक नहीं| गरीब के कुरते की जेब तो फटती ही नही है| हां, अन्य हिस्से में रफ्फु कराने की जरुरत भले पड़ती है| क्या मंच से दिखाने के लिए पौकेट के नीचले हिस्से को कैंची से तो नहीं काटा गया? या यह भी पीएम की साजिशा थी? खैर, इस देश में जांच से ऊपर है हमारे नेता| सो खामोश !!!  

अंत में बशीर बद्र को पढ़िए—
परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता|
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता||
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है|
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता||

Sunday 15 January 2017

आओ खेलें गांधी-गांधी, चरखा-चरखा !


मेरे बापू की हत्या का वर्षगांठ आने वाला है। इससे पहले कि उनकी बरसी पर लोग मातम मनाते, शहर में हर तरफ उनकी ही चर्चा है। समय से पहले चर्चा में आना बहुत बार अच्छा नहीं होता। भारतीय संस्कृति में गीता में कहा गया है कि समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को नहीं मिलता। शायद इसीलिए जब ऐसा कुछ होता है तो नकारात्मकता का बोध होता है। इस बार बापू की चर्चा सही वजह से नहीं है। हत्या की बरसी पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है और कई पहलुओं पर चर्चा होती है। नाथूराम गोडसे, आरएसएस, भाजपा, कांग्रेस और नेहरू की भूमिका और विचार की चर्चा आम होती है। सब एक दूसरे को कोसते हैं। अभी भाजपा के अनिल विज ने ऐसा बीज बोया कि सभी अपने तरीके की फसल काटने में जुट गए। ऐसे बीजों से पूरी खेत खराब हो सकती है। पूरी फसल में कीड़ा लग सकता है। अपने बापू के बारे में कोई भी नकारात्मक टिप्पणी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। इसके लिए कोई दूसरा भी विज न बने और गंदा बीजारोपण न करे यह तय होना चाहिए। चरखा काटने वाला कोई भी बापू नहीं बन सकता। ऐसा होता तो लोग सोने के चरखा काटकर कब के बापू को पीछे छोड़ दिए होते। हां, चाय बेचने वाला कुछ भी ठान ले तो बन सकता है। संतरी से मंत्री तक और मुख्य से प्रधानमंत्री तक। इस प्रसंग में एक ‘तुषार पाती’ आई है। कह सकते हैं यह हर उस बार आना चाहिए जब बापू आहत होते हों। ऐसा नहीं कि वे पहली बार आहत हुए है । उनकी पीड़ा का भी राजनीतिकरण नहीं हो इसका ख्याल सबको रखना होगा। नेता और पार्टियां गांधी-गांधी और चरखा-चरखा खेलते रेहेंगे और आम लोग तन ढकने भर सूत के लिए मरते रहेंगे। 10 लक्खा सूट पहनने वाले तो तब भी पहनेंगे, जब चरखा नहीं होगा। और हां, यह सूट सबके पास है। हर खेमे के पास।
अंत में - डॉ. राजीव श्रीवास्तव को पढ़िए - 
बापू के जन्मदिन पर, हम सब शीश नवाते हैं। 
बड़ी-बड़ी बाते करके, सभा में रोब जमाते हैं। 
बापू के आदशरें को, कर याद हम आएं होश में। 
देखो आज क्या हो रहा, बापू तेरे देश में।

Thursday 12 January 2017

उठो जागो के आह्वाहन को करना होगा सार्थक

युवाओं पर है राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी
राष्ट्र का निर्माण करने की जिम्मेदारी हमेशा युवाओं के कंधे पर रही है| उन्हें ही स्वामी विवेकानंद ने आह्वाहन करते हुए कहा था कि-उठो, जागो और तब तक संघर्ष करो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए| देश आज भी लक्ष्य प्राप्त नही कर सका है| युवा इस आह्वाहन को सार्थक कर सकते हैं| कई क्षेत्रों में हम संघर्षरत हैं| समाज के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सक्रिय युवाओं से उनके प्रयासों, संघर्षों, संभावनाओं और उम्मीदों के बारे में दैनिक जागरण ने जाना|

दैनिक जागरण की खबर ने सुझाया रास्ता
दैनिक जागरण अख़बार में २००९ में छपी एक खबर ने अमुज कुमार पाण्डेय को इतना झंकझोरा कि वे घर घर स्वामी विवेकानंद के चित्र और विचार पहुंचाने के लिए संकल्पित हो गए| खबर में बताया गया था कि विद्यार्थियों और छात्रों को राष्ट्रीय युवा दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है| इन्होंने 2012 में बिहार दिवस के अवसर पर लिखित सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित कर स्वामी जी की तस्वीर का वितरण किया| साल 2013 में स्वामी जी के साथ 10  देशभक्तों की जीवनी से जुड़े प्रश्नों पर सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता कराया| बाद में स्वामी जी के साथ ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों पर ध्यान दिया जिन्हें एक साजिश के तहत दरकिनार कर दिया गया था| उत्कर्ष में शहीद जगाता पति पर प्रकाशित लेख से प्रभावित हो 2012 से जारी संघर्षशील युवा पुरस्कार को 2014  मे जगतपति युवा पुरस्कार कर दिया| वर्ष 2015 मे दुर्गा नाम से कार्यक्रम शुरू किया जिसके तहत अशिक्षा दूर करने को 9 छोटी कन्याओ को मुफ्त शिक्षा की व्यस्था की गयी| उद्देश्य विद्यार्थियों के अंदर राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना और उनके अंदर देशसेवा की भावना को जन्म देना है|

कुशल कार्यबल सिर्फ दो फीसद

दर्शन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के निदशक रौशन कुमार सिन्हा
का कहना है कि युवा ऊर्जा देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकाश को गति देने वाली ताकत है| कौशल विकाश एवं रोजगार इस ताकत को आगे बढ़ाने के सर्वोच्च साधन है। युवा जनसँख्या का सबसे बड़ा भण्डार है परंतु यह कुशल मानव बल का वर्तमान आकार केवल 2 प्रतिशत है। कौशल प्रशिक्षण की सुविधाओं को विस्तार कर कौशल की गुणवत्ता बढ़ाने तथा कुशल भारत के नारे को चरितार्थ करने के लिए सरकार प्रयासरत है। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 12 जनवरी 2016 को राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर नयी कौशल पहल का सुभारम्भ किया था| स्किल इंडिया गरीबी के खिलाफ सरकार का एक जंग है| राष्ट्रीय कौशल विकाश मिशन, कौशल विकाश और उद्यमिता के लिए राष्ट्रीय नीति, प्रधानमंत्री कौशल विकाश योजना और कौशल ऋण योजना भी शुरू की गयी है। उद्देश्य 2022 तक लक्ष्य को पूरा करना है। राज्य सरकार कुशल युवा समृद्ध युवा, सपना आपका संकल्प हमारा के सिद्धांत के साथ कुशल युवा कार्यक्रम चला रही है| सरकार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने और उन्हें नियोजक बनाने के लिए स्टार्टअप लाई है|

कला नाहे तो जीवन होगा नीरस

धर्मवीर फिल एंड टीवी प्रोडक्शन के निदेशक धर्मवीर भारती ने कहा कि अगर युवाओं के पाठ्यक्रम या दिनचर्या से कला को हटा दिया जाये तो उनका जीवन नीरस हो जायेगा| कला ही एक ऐसी औषधि है जो युवा पीढ़ी को डिप्रेशन, भटकाव और उन्माद से बचाटी है। कला कई मायने में जैसे आर्थिक, मानसिक एवं नैतिक रूप से युवाओं को मज़बूत बनाटी है|  केंद्र सरकार, बिहार सरकार और कई सामाजिक संगठन युवाओं को कला से जोड़ने के लिए बजट के साथ कई अन्य सुविधएं उपलब्ध कराती है|  युवा उत्सव इसी का द्योतक है

Tuesday 10 January 2017

आपसी सौहार्द का सन्देश देगा हिंदू-सिख धर्मस्थल

होली तक बनकर तैयार होगा गुरुद्वारा व शिवमंदिर
बाबा बिहारी दास संघत में चल रहा है निर्माण कार्य
नव संवत्सर के प्रारंभ से पूर्व यहाँ हिंदू-सिख धर्मस्थल एक ही परिसर में 100-150 फीट की दूरी पर बन कर तैयार हो सकता है| पिछले कई वर्ष से इस पर कम चला रहा है| कुछ समस्या के कारण अभी काम बंद है किन्तु समस्या के अंत होते ही तेजी से निर्माण कार्य होगा और शीघ्र ही यह शहर आपसी सौहार्द का एक मिशाल पेश करेगा| जो राज्य के लिए तो
 महत्वपूर्ण होगा ही, सभी सिखा समुदाय के लिए यह पवित्र ऐतिहासिक स्थल धार्मिक पर्यटन का भी केंद्र बन जाएगा| यहाँ बाबा बिहारी दास संघत में करीब तीन सौ साल पुराना हस्तलिखित गुरुग्रंथ साहिब है| उसे शिवालय में हिंदू धर्मावलंबियों ने सुरक्षित रखा हुआ है| इसी स्थान पर भव्य गुरुद्वारा का निर्माण किया जा रहा है, जबकि इससे कुछ ही दूरी पर इसी परिसर में शिव मंदिर का निर्माण किया जा रहा है| कर सेवा से यह सब संत बाबा गुरुनाम सिंह और बाबा मुख्तियार सिंह के नेतृत्व में हो रहा है| सेवादार संदीप सिंह ने बताया कि नए शिवमंदिर में भगवान की प्रतिमाये प्रतिस्थापित होते ही गुरुद्वारा का निर्माण तेज गति से प्रारंभ हो जाएगा| अभी गुरुद्वारा का निर्माण पुराने मंदिर के चारों तरफ से हो रहा है| मंदिर भी बना है किन्तु अंतिम तौर से नहीं|


जल्द होगी प्रतिमाये स्थापित
बाबा बिहारी दास संघत कमिटी के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद सर्राफ ने बताया कि जैसे ही मंदिर बन जाएगा, उसमे शिव प्रतिमाओं को स्थापित किया जाएगा| इसके बाद गुरुद्वारा निर्माण में तेजी आयेगी| मंदिर निर्माण के काम में अभी थोड़ा सा विलंब है|

निर्माण में देगा प्रशासन सहयोग

गुरुद्वारा निर्माण में निर्माण स्थल तक मशीन ले जाने में यदि अतिक्रमण के कारण समसया आयेगी तो प्रशासन सहयोग करेगा| सूत्रों के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर गुरुद्बारा निर्माण से जुड़े लोग प्रशासन से सहयोग मांगेंगे तो उन्हें निराश नहीं होना पडेगा|  

Monday 9 January 2017

आधी सदी से हिंदी को विश्व भाषा बनाने का संघर्ष

विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी पर विशेष
39 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने तय किया था लक्ष्य
आज 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस है| नागपुर में 10 जनवरी 1975 को प्रथम हिंदी सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरगांधी और मौरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम की उपस्थिति में 39 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने हिंदी को विश्व भाषा बनाने का लक्ष्य तय किया था| उसे धरातल पर उतारने के लिए लक्ष्य से दूर खडी वर्तमान पीढ़ी को मेहनत करनी पड़ेगी। हालांकि मौरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है| गौर करें तो दुनिया भर की भाषाओं पर नयी सदी का दबाव है। गरीब देशों में यह अधिक है। आज भोजन ,वस्त्र और आवास के अलावा स्मार्ट फोन जीवन की बुनियादी जरूरत है। भाषा में यह जो तकनीक की वजह से स्पेस छूट रहा है उसको भरने का दबाव है। इस अवसर पर ‘विश्व भाषा के रूप में हिन्दी की संभावना और चुनौतियां’ विषय पर दैनिक जागरण ने दो महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों से टिप्पणी ली है|

आत्मसात करनी होगी जुड़े रहने की बेचैनी-संजय
काव्य संग्रह-आवाज भी देह है- के कवि संजय कुमार शांडिल्य का कहना है कि-सिर्फ साहित्य ही भाषा का उपस्कर नहीं है। विचार, दर्शन, इतिहास, रिपोर्टिंग, विज्ञान भी हैं जिनकी अपनी जरूरत है। भाषा में उन जरूरतों के लिए जरूरी संवेदना-विस्तार की संभावना पैदा किए बिना आज भाषाओं का काम नहीं चल सकता है। जैसे सिर्फ आवास ही आज की चिन्ता नहीं है, आदमी आज चार्जिंग-स्टेशन भी सबसे पहले ढूँढता है। तो यह जो जुड़े रहने की नई बेचैनी है उसको आत्मसात किए बिना आज भाषा कैसे जीवित रहेगी और जीवित रह भी ले तो सार्थक कैसे बनी रहेगी? कहा कि- हर भाषा का अपना लोकल होता है। आज उसमें वैश्विक फैलाव आया है। सिर्फ आसपास के ही नहीं दुनिया भर के बदलाव अभिव्यक्त हो सकने वाले उपक्रमों की चिन्ता किए बिना आज भाषाओं का काम नहीं चलने वाला। अन्तर्भाषिक अनुभव को स्थान देने की चुनौती का सामना दुनिया भर के भाषा-परिवारों को करना पड़ रहा है। तकनीक आज जितना संरचनाओं को खोल पा रहा है उतनी भाषाओं में शिथिलन की  क्षमता नहीं आ पा रही है। नये-नये दृश्य-बिम्बों को अपना सकने पर संरचनात्मक शिथिलन का स्कोप नयी सदी में रचना होगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाना होगा-डा.मुकेश

साहित्य लेखन में रूचि रखने वाले प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी डॉ. मुकेश कुमार का मत है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ के 197 सदस्यों में से दो तिहाई का समर्थन मिलने पर सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और उसके परिणामी लक्ष्य के रूप में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने का प्रयास भी जारी रखना होगा| हिंदी के पास भाषिक क्षमता इतनी ज़्यादा है कि वह आसानी से विश्व भाषा बन सकती है। क़रीब 70 करोड़ लोग अकेले भारत में हिन्दी बोलते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी हज़ारो लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। यही नहीं फ़ीजी, गुयाना, सुरिनाम, त्रिनिदाद जैसे देश तो हिंदी भाषियों के हीं बसाए हुए हैं। विदेशी छात्रों के लिए लघु हिंदी पाठ्यक्रमों, हिन्दी लेखकों के प्रोत्साहन, विदेशियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण के लिए मानक पाठ्यक्रम तैयार करने, देवनागरी के लिए उपयुक्त साफ्टवेयर विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है।

महत्वपूर्ण तथ्य
पहली बार 2006 में मना दिवस
भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006  को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था।

Sunday 8 January 2017

भारतीय टीम के आधार बन सकेंगे ईशान किशन : प्रफुल्लचंद्र

सफलता: दाउदनगर के गोरडीहा गांव का है निवासी
समय के साथ बन रहे पेशेवर खिलाड़ी

अच्छा प्रदर्शन कर टीम के लिए करेंगे दावा
पहले अंडर-19 वल्र्ड टीम के कप्तान और अब भारतीय ए टीम के सदस्य बनने से ईशान किशन के गृह जिला औरंगाबाद में खुशी है। ईशान दाउदनगर प्रखंड के गोरडीहा का निवासी है। ईशान के चयन से बिहार के युवाओं को क्या प्रेरणा मिलेगी, बिहार क्रिकेट के लिए क्या फर्क आएगा जैसे सवाल का उठना भी स्वभाविक है। इन सारे सवालों को जानने के लिए दैनिक जागरण ने पूर्व रणजी खिलाड़ी प्रफ्फुलचंद्र सिंह से बातचीत की। श्री सिंह एक तरह से कहा जाय तो ईशान के कोच थे। वे उन्हें मोइनुल्हक स्टेडियम पटना में फिटनेश सत्र और नेट प्रैक्टिस कराया करते थे। 1प्रफ्फुलचंद्र ने बताया कि ईशान शुरु से ही अनुशासित और कड़ी मेहनत करने वाला खिलाड़ी रहा है। समय के साथ वह परिपक्व पेशेवर खिलाड़ी बन रहा है। मौजूदा रणजी ट्राफी सीजन में ईशान ने लगभग 800 रन बनाए, जिसमें एक दोहरा शतक शामिल है। ईशान की तेजी से रन बनाने की काबिलियत और उनका फिटनेस आने वाले समय में उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह दिला सकती है। इंडिया ए टीम में चयन उनके राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने का एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह उनके लगातार अच्छे प्रदर्शन पर निर्भर करेगा। प्रफ्फुलचंद्रा ने बताया कि बिहार क्रिकेट बोर्ड को मान्यता न होने से ज्यादा खिलाड़ी झारखंड चले गए। ईशान 2007-2008 में रांची से खेलने लगे और फिर उनका चयन झारखंड अंडर-17, अंडर-19 और रणजी में वो नियमित वहीं से खेलने लगे।

ईशान का चयन युवाओं के लिए प्रेरणा
प्रफ्फुलचंद्र ने बताया कि ईशान ने जब खेलना शुरु किया था तब उन्हें नहीं पता था कि बिहार की मान्यता नहीं है। उनका खेल में भविष्य क्या होगा? पर आज वो राष्ट्रीय टीम में शामिल होने के प्रबल दावेदार हैं ऐसा उनकी मेहनत और मजबूत इच्छा के कारण संभव हुआ है। बिहार में मौजूदा स्थिति में जब तक मान्यता नहीं मिलती बड़े पैमाने पर खिलाड़ियों को मौका नहीं मिल सकता। खिलाड़ी जरूर आगे खेल सकते हैं।
 नियमित अभ्यास किया 
प्रफ्फुलचंद्र सिंह ने बताया कि ईशान जब छह साल के थे तब वो अपने बड़े भाई राज किशन के साथ 2004 से नियमित अभ्यास करने मोइनुलहक आया करते थे। उन्हें प्रैक्टिस के ज्यादा अवसर नहीं मिल पाते थे। तब उनके पिता प्रणव पांडेय दोनों को शनिवार और रविवार को प्रैक्टिस के लिए लाते थे। उस दिन एकेडमी ऑफ रहने से प्रैक्टिस के ज्यादा अवसर मेरे और कुछ सीनियर खिलाड़ी से ईशान को मिलते थे और ईशान इस समय का सदुपयोग करते थे।
डीएम ने किया था सम्मानित
जब उनका चयन अंडर-19 टीम के लिए हुआ था तब जिला मुख्यालय में 29 दिसंबर 2015 को डीएम कंवल तनुज ने सम्मानित किया था। जनवरी 2016 में प्रकाशित जिला की स्मारिका में उन पर लेख प्रकाशित किया गया था। ये जिले के लिए गर्व का विषय है।

यहाँ जाति, पैसा और पैरवी का “लाइसेंस”


शहर में विवाद हो गया| माननीय बनाम साहेब विवाद की वजह बनी लाइसेंस| जी हाँ, लाइसेंस| हिन्दी में जिसे अनुज्ञप्ति कहते है| हिन्दी शब्द से स्मरण हो आया कि कल विश्व हिन्दी दिवस है| और यह कड़वा सत्य है कि लाइसेंस को आम अवाम जितनी आसानी से समझता है उसने आसानी से अनुज्ञप्ति को नहीं समझता| खैर, मुद्दा लाइसेंस और विवाद का है| ताजा विवाद के सच समेत अन्य पहलू तो बंद कमरे के माननीय और साहेब जानें, किन्तु अतीत में भी ऐसे विवाद होते रहे हैं, यह सत्य है| निकट के दशक में दो साहबों के किस्से चर्चा में रहे हैं जबकि एक साहब के किस्से अखबारों की सुर्खियाँ तक बनी| लाइसेंस बहुत सारे कामों के लिए चाहिए, जबकि लाइसेंस राज कभी हुआ करता था और वह अब ख़त्म होने की बात कही जाती है| इसके बावजूद हथियार के लाइसेंस की चर्चा अक्सर सही कारणों से नहीं होती है| जिला में तीन साहब अतीत के महत्वपूर्ण उदाहरण बन गये है| एक साहब की चर्चा रही कि अपनी स्वजातीय बंधुओ को खूब मुक्त हस्त से आग्नेयास्त्र के लाइसेंस बांटे| एक साहब तो ट्रांसफर होने के बाद- रेवड़ियों की तरह बांटी गयी हथियार की अनुज्ञप्तियाँ -शीर्षक अपने नाम कराने में सफल रहे थे| खूब साहब ने चर्चा बटोरी| हद हो गयी इतने मशहूर हुए कि दूसरों को रस्क होने लगा होगा| जिला में चर्चा होती है कि प्राय: हथियारों के लाइसेंस साहब अपने ट्रांसफर होने के बाद बैक डेट में लाइसेंस जारी करते हैं या तब अधिक जारी होता है जब जाने की संभावना तय दिखने लगती है| लाइसेंस जाति, पैसे और पैरवी पर ही मिलते हैं, यह रुढ होता गया है| यह साहब हों या सरकार, दोनों के लिए सही नहीं है|


अंत में दुष्यंत कुमार---
कैसे मंजर सामने आने लगे हैं|
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं||
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो|
ये कँवल के फूल कुम्हालाने लगे हैं||

जनसंख्या नियोजन को अभी बहुत कुछ करना बाकी

संसाधनों और जागरूकता का है घोर अभाव
सरकारी योजनाओं से अपेक्षित उपलब्धि नहीं
जनसंख्या नियोजन के लिए अभी लंबी यात्रा करनी होगी| जिस तरह का सामाजिक परिवेश है और आर्थिक असुरक्षा की भावना उसमें बहुत कुछ करने की आवश्यकता है| सरकारी संसाधनों का घोर अभाव है तो जागरूकता की कमी भी साफ़ दिखती है| सरकार की तरफ से कई योजनाये इस दिशा में संचालित हैं| अनुमंडल मुख्यालय को प्रखंडों के मुकाबले आवश्यक थोड़ा अधिक् शहरी और शिक्षित क्षेत्र मानना होगा| यहाँ की ही स्थिति संतोषजनक नहीं है तो गाँवों की हालत क्या होगी?
पीएचसी से प्राप्त आंकड़े पर गौर करें| परिवार नियोजन के लिए जो योजनाये चलाती है उससे उपलब्धि बहुत दूर है| माला-एन के लिए प्रति माह मात्र 50 लाभुक पीएचसी पहुंचते हैं| यह औसत आंकड़ा है| इसी तरह कॉपर टी के 65, निरोध के लिए 700, ओरल पिल्स के लिए 45, पीपीआईयूसीडीके लिए 50 और ईसीपी के लिए 50 लाभुक प्रति माह लाभ लेते हैं| यह स्थिति बदल सकती है अगरचे कि इसे अभियान के रूप में लिया जाय और लोगों को यह बताया जाए कि किस योजना का लाभुक के लिए क्या लाभ है?

एक साल में एक भी पुरुष नसबंदी नहीं
अनुमंडल मुख्यालय दाउदनगर स्थित पीएचसी में जनसंख्या नियंत्रण की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी योजना का हाल बुरा है| पुरुष नसबंदी महिला के बंध्याकरण से ज्यादा आसान, कम पीड़ादायक और कम खर्चीला है इसके बावजूद गत वर्ष में एक भी पुरुष नसबंदी नहीं हुई| साफ़ है कि लोगों में जागरूकता का अभाव है| जुलाई से दिसंबर के छ: महीने में मात्र 222 बंध्याकरण हुआ| यानी औसतन प्रति माह सिर्फ 37 बंध्याकरण| जबकि गौर करने वाली बात यह है कि इसके लिए आशा कार्यकर्ता कुल 148 बहाल किए गए है जिन्हें हर एक को प्रत्येक महीने एक बंध्याकरण का ही तय लक्ष्य दिया गया है| अर्थात लक्ष्य का सिर्फ 25 फीसदी उपलब्धि|

आर्थिक प्रोत्साहन के बावजूद स्थिति बदतर
यह स्थिति तब है जब सरकार इसके लिए दो स्तर पर आर्थिक प्रोत्साहन देती है| एक बंध्याकरण पर लाभुक को 1400 रूपए और उत्प्रेरक के लिए आशा या एएनएम् को 150 रूपए मिलता है| पहले लाभुक को मात्र 600 रूपए ही मिलते थे| पैसे बढाने के बावजूद लाभुक की दर नहीं बढ़ी| इसी तरह पुरुष नसबंदी के लिए लाभुक को 2000 रूपए और उसके लिए उत्प्रेरक का काम करने वाली आशा कार्यकर्ता और एएनएम् को 200 रूपए दिया जाता है| उत्पेरक का काम कोइ भी कर सकता है और उसे यह राशि देय है|

बहाली फेमली प्लानिंग का और काम दूसरा
दाउदनगर पीएचसी में फेमली प्लानिंग वर्कर के लिए दो बहाली है| दोनों इस काम को छोड़ कर दूसरा काम करते हैं| सुरेश सिंह यादव ओटी तो दीपक कुमार चतुर्थवर्गीय कर्मी का काम करते है| सूत्रों के अनुसार इनके द्वारा कोइ नसबंदी या बंध्याकरण के लिए उत्प्रेरक का काम नहीं किया जाता है|


समाज के कई अंगों को होना होगा सक्रिय-डाक्टर

सिर्फ सरकार या संस्था नहीं
 कर सकता बड़ा काम
जनसंख्या नियंत्रण बहुत बड़ा वैश्विक मुद्दा है| इसमे सफलता सिर्फ सरकार और संस्थानों के बूते नहीं मिला सकती है बल्कि इसके लिए समाज के कई अंगों को सक्रिय होना होगा| यह मानना है पीएचसी के चिकित्सकों का| डा.उपेन्द्र सिंह और डा.विनोद प्रसाद शर्मा का मानना है कि सरकार ने जितनी सुविधा और संसाधन दिया है उसका भरपूर उपयोग चिकित्सक अपने संस्थानों में करते हैं| यदि 100 आयेगा तब भी और मात्र 3 आयेगा तब भी मरीज का बंध्याकरण हो या नसबंदी करेंगे ही या अन्य परिवार नियोजन का लाभ देंगे| किन्तु पीएचसी तक लाने का काम चिकित्सक नहीं कर सकते| कहा कि पैसे दी जाते हैं तब भी अपेक्षित संख्या में बंध्याकरण या नसबंदी के लिए लोग नहीं पहुंचते| इसके लिए गाँव स्तर पर नुककड़ सभा, नाटक करना अहोगा ताकि लोग जागरुक हों तभी अधिक संख्या में लोग परिवार नियोजन के लिए आयेंगे| मुखिया, पंचायत स्तर के जन प्रतिनिधि, शिक्षक सामाजिक कार्यकर्ता, आशा सभी को नियमित तौर पर जागरुक करने का काम करना होगा| कहा कि बड़े पैमाने पर नियमित जागरूकता अभियान चलाना होगा| तभी अपेक्षित सफलता मिल सकेगी|      

Saturday 7 January 2017

संकट में जलाशय, बचाने का प्रयास नाकाफी

प्राय: जलाशय हैं अतिक्रमण का शिकार
सरकार, प्रशासन, जनता नहीं है गंभीर
जलाशय संकट में हैं| प्राय: अतिक्रमण के शिकार| गाँव वाले हों या शहर वाले, इसके प्रति गंभीर नहीं हैं| न ही सरकार और न ही प्रशासन ही इसके प्रति गंभीर दिखती है, यह और बात है कि योजनाओं की कमी नहीं है| मनरेगा इस दिशा में महत्वपूर्व काम करने का माध्यम है किन्तु अतिक्रमण के कारण कोइ समस्या मोल लेना नहीं चाहता| नतीजा जलाशयों के उद्धार के लिए कम जिस पैमाने पर किए जाने की आवश्यकता है उस स्तर पर काम नहीं हो रहा है| अनुमंडल की अधिकतर जलाशयों. की वर्त्तमान स्थिति लगभग एक सी है| हिन्दू सनातन धर्म में जलाशयों की पूजा का नियम है किन्तु इससे भी उसकी सफाई, अतिक्रमण पर सकारात्मक प्रभाव नहीं दीखता| गोरडीहाँ में सूर्य मंदिर पोखरा है| ग्रामीण उसी में कचड़ा डालते है| गाँव का यह महत्वपूर्ण जलाशय आज बदबू और बीमारी फ़ैलाने का कारण बन गया है| शमशेरनगर का पोखरा 52 बिगहा से सिमट कर १२ बिगहा का हो गया है तो अरई में पोखरा की ही जमीन पर कई सरकारी कार्यालय भवन बना दिए गए है| जब कि सरकार को इसके विकास का काम करना चाहिए था| अरई-मुसेपुर खैरा के बीच का काफी बड़ा जलाशय अतिक्रमण के कारन सिकुड़ता जा रहा है| इसका पेट और पिंड अतिक्रमण के कारण वजूद बचाने को संघर्ष कर रहा है| दादर का जलाशय सूख गया है जबकि कभी अतीत में यह प्रमुख सूर्य पूजा स्थल रहा होगा| अब ऐसे समाज और परिवेश में जलाशय तो संकट में ही रहेंगे|

10 जलाशयों के उद्धार
 को डीएम से गुहार

 पर्यावरण पर काम कर रहे माखर के रंजन भाई जलाशय पर भी काम करा रहे हैं| जलाशयों का संरक्षण ये आवश्यक मानते है| पहली जनवरी को ही उन्होंने जिला पदाधिकारी को पत्र लीख कर 10 जलाशयों के उद्धार की गुहार लगाई है| कहा कि अनुमंडल के दस जलाशयों को चिन्हित किया गया है| इनकी सूची के साथ पत्र भेजा गया है| कहा कि सिर्फ सरकार या प्रशासन से कुछ नहीं होने वाला है| जब तक जनता नहीं जागरुक होगी तब तक जलाशयों का उद्धार नहीं हो सकेगा| कहा कि नए अलाशयों का निर्माण, पुराने का उद्धार, अतिक्रमित को अतिक्रमण मुक्त बनाने के लिए सरकार को सख्ती से काम कारन अहोगा, अन्यथा आने वाले समय में मानव जीवन के लिए पानी का संकट गंभीर होने वाला है|       

Friday 6 January 2017

14 हजार पौधों के भाई है रंजन भाई

छ: साल में लगाया हजारों पेड़
पर्यावरण संरक्षण ही है जूनून
पर्यावरण संरक्षण देश की जरुरत है और केंद्र सरकार के साथ हर राज्य सरकार इसे लेकर गंभीर है| वास्तव में यह समस्या वैश्विक है और इससे निपटने का प्रयास भी वैश्विक स्तर पर हो रहा है| इस समस्या के समाधान के लिए गाँव से शहर और महानगर तक होने वाला हर प्रयास काफी महत्वपूर्ण है| यहाँ के मखरा डीह निवासी रंजन भाई का प्रयास काबिले तारीफ़ है| वे गत छ: साल से इस दिशा में काम कर रहे हैं| अब तक 14 हजार विभिन्न प्रकार के पौधे लगा चुके हैं| अकेले दैनिक जागरण के एक करोड़ पौधारोपण अभियान के वक्त ही एक हजार से अधिक पौधा इन्होंने लगाया था| लोग अब उनको पौधों के भाई रंजन भाई पुकारने लगे हैं| बताया कि
पर्यावरण संरक्षण का काम वे 2010 से कर रहे हैं| इधर तीन साल से वे प्राण विद्या पीठ के बैनर ते अधिक सक्रिय हुए हैं| बताया कि उनके इस कम में अरविंद कुमार तिवारी काफी योददान देते हैं| मखरा, दाउदनगर, सिहाड़ी, तुलसी बिगहा, सहित मगध और शाहाबाद क्षेत्र में वे पर्यावरण पर काम कर रहे हैं| बताते हैं कि चन्दा संग्रह नहीं करते बल्कि सामूहिक प्रयास से यह सब कर रहे हैं|

देश के लिए स्वस्थ मनुष्य आवश्यक
पर्यावरण पर काम कर रहे रंजन भाई का कहना है कि देश के लिए स्वस्थ शरीर वाले मनुष्यों की आवश्यकता है जिसका काफी आभाव हो गया है| स्वस्थ मनुष्य परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए अहमियत रखता है| पेड़ पौधों जडी बूटियों जैसे प्राकृतिक पदार्थ उपयोगी होते हैं और यह पर्यावरण के बेहतर होने से ही होगा| पर्यावरण बेहतर करने के लिए सबको एक पेड़ लगना ही होगा| कहा कि हम अपने जीवन में विभिन्न जरूरतों को पूरी करने के लिए पेड़ खर्च करते हैं, इसलिए हमें हर हाल में एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए|