Wednesday 21 May 2014

लोकसभा चुनाव 2014 के फैसले की मूल वजह

2019 में 25 मई को टीवी पर दिख रहे दोबारा जीते नरेंद्र मोदी।
भारत की बहुसंख्यक आबादी क्या बन रही है सांप्रदायिक?
क्या खत्म हो जाएगा भ्रष्टाचार?
नहीं बढेगी महंगाई?
उपेन्द्र कश्यप
लोकसभा चुनाव के परिणाम का विश्लेषण किया जा रहा है। सब कहते हैं कि विकास और भ्रष्टाचार मुद्दा बना। क्या आपको इस पर विश्वास है? कितने मतदाता यह मनते हैं कि नमो सारी समस्याओं पर नियंत्रण पा लेंगे? आप जनता से पुछिए-अधिकतर का जबाव नकारात्मक मिलेगा। मैंने पुछा है। फिर क्या वजह रही इस बडी जीत की?
यह फैसला बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण का नतीजा है। नमो को जिस तरह टारगेट करने में विपक्षी भाजपा को भूल गए और मुस्लिम मतों को अपने पाले में करने की आपाधापी में बेहुदा बयान दिए उसका फलाफल है यह। नमो को गलियाने वाले अधिकांश मुस्लिम नेता और बहुत हद तक हिन्दु गैर राजग नेता अपनी जमानत नहीं बचा सके। ऐसा इसलिए हुआ कि हर दल सिर्फ मुस्लिम मत लेने की होड में हिन्दु जनभावना को छेडते रहे। कोई सीखने के लिए तैयार नहीं दिखा। गुजरात से भी कांग्रेस ने सबक नहीं सीखा। जब तीन बार गुजरात ने नमो को सीएम बनाया तो क्या एक खूनी को बनाया? मौत का सौदागर जैसे बयान का वह हश्र था। कांग्रेस आगे बढी और हिन्दुओं को चिढाने वाला बेतुके बयान देती रही। क्या कभी हिन्दुओं ने मुस्लिमों के विकास का विरोध किया है? वास्तविकता यह है कि किसी स्वंभु सेकुलर दल ने मुसलमानों के विकास की चिंता तक नहीं की सिर्फ बयानबाजी किया। नीतीश ने विकास किया तो मुस्लिमों ने उन्हें नकार दिया। साफ कहा कि जो भाजपा को हराएगा उसे वोट देंगे। सब भाजपा को और नमो को रोकने में लगे रहे और नमो अपनी गति से आगे बढते रहे। पीएम कहते है संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का हक है। क्यों भाई वह खास क्यों हैं? कह सकते थे हर भारतीय का हक है। सिन्दे बोले- जेल में बन्द अल्पसंख्यकों की समीक्षा कर जेल से बाहर करें। क्या यह वोट बैंक की राजनीति नहीं थी? जेल में जाकर देखिए 100 रुपए की चोरी करने वाला गरीब कई साल से कैद है। ऐसे केस में हिन्दु मुसलमान सिक्ख इसाई सभी शामिल हैं। फिर इस तरह के बयान क्यों? कोई भारत माता को डाइन कहकर सेकुलर है कोई मुजफ्फरनगर तो कोई भागलपुर और सिक्खों का नरसन्हार कराकर सेकुलर है। कश्मीरी पंडित और बंगलादेशी घुसपैठ की बात करने वाला सांप्रदायिक है और आतंकियों के प्रति नरमी का दिखावा कर अल्पसंख्यकों को परोक्षत: आतंकवाद से जोडने वाले सेकुलर हो जाते हैं। टिका और टोपी की बात हुई। कितने मुस्लिम नेता टिका लगाते हैं हिन्दुओं के वोट के लिए? देश में कितने मुस्लिम सांसद या विधायक बन सकते हैं बिना हिन्दु वोट लिए। फिर वे क्यों नहीं टिका लगाते, छठ का प्रसाद वितरण कराते , मन्दिर कितने मुस्लिम जाते हैं उसे पर्यटन स्थल ही समझ कर। कितने हिन्दु मिलेंगे जो जीवन में मस्जिद या मजार नहीं गया हो? खोजिए.. यकीन मानिए थक जाइएगा। क्यों हमें मस्जिद मजार गुरुद्ववारा या किसी के धर्मस्थल जाने से परहेज नहीं। इससे हिन्दुत्व या सनातन धर्म खतरे में नहीं पडता। नमो की सभा में बम फुटे तो सरकार का रुख क्या था? अगर मौके पर आतंकी नहीं पकडे जाते तो बोधगया की तरह इसे भी भाजपा और संघ की देन बताने में देर नहीं करते नीतीश। आज वे कहां खडे हैं? सिर्फ मुस्लिम वोट के लिए उन्होंने भाजपा छोडा था हश्र देख लिजीए। जो नहीं चेतेगा उसका हश्र कांग्रेस जदयु सपा राजद जैसा ही होगा। जो हिन्दु या संगठन मुस्लिम तक लाभ पहुंचाने का विरोध करे उसे कडी सजा दो मगर ड्रामा मत करो। मुस्लिमपरस्ती के खिलाफ यह जनादेश है मुस्लिम के विकास के खिलाफ कभी हिन्दु हो ही नहीं सकता। ‘नमो को पीएम बनने पर देश टूट जाएगा’ का राग अलापने वाले अब क्या उसे रोक सकेंगे। क्या यह कहकर मुस्लिमों को डराने या मुख्यधारा से उसे अलग करने की प्रेरणा नहीं दे रहे थे?

Tuesday 20 May 2014

पिछली दफा से 57 हजार वोट अधिक फिर भी पराजय


पिछली दफा से 57 हजार वोट अधिक फिर भी पराजय
लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम का विश्लेषण
जदयू को विगत के मुकाबले मिले मात्र 39% मत
क्या टूट गई जाति और वर्ग का भेद?
उपेन्द्र कश्यप
चुनाव परिणाम का विश्लेषण हर कोई अपने अनुभवों, आग्रहों, पूर्वाग्रहों के साथ कर रहा है। जीतने वाले के पास सिर्फ एक लाइन है-नमो लहर। दूसरा कोई लाइन नहीं। राजद ‘माय’ के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रहा है। भाजपा का जो भूत राजद, कांग्रेस और जदयू ने अल्पसंख्यकों को दिखाया तो वे आक्रामक अभिव्यक्ति के साथ ध्रुवीकृत हो गए। प्रतिक्रिया स्वरुप अन्य जातियां उपजातियां और वर्ग आपसी भेद भूलकर एक हो गए। नतीजा राजद को साल 2009 में मिले मत 176463 से 57188 मत अधिक इस बार मिला। लेकिन रालोसपा को इसी ध्रुवीकरण के कारण मिला कुल 338892 मत राजद से 105241 मत अधिक हो गया। ध्रुवीकरण का कोई दूसरा कारण नहीं दिखता। राजद यह तर्क देती रही कि भाजपा और जदयू अलग अलग हो गए हैं और राजद का वोट बढा है। इसलिए वे मुगालते में रहे कि कोई मुकाबला नहीं है। विश्लेषण की गलती ने ऐसा आत्मविश्वास भरा कि मतदान होते जीत की मिठाइयां बांट दी गई और परिणाम के दिन जबरदस्त जश्न की तैयारी की गई थी। राजद यह देख ही नहीं सका कि लहर है और वेग से है। नीतीश कुमार और इनके प्रत्याशी महाबली सिंह के प्रति नाराजगी ने जदयू के वोट को भी राजग में सिफ्ट करा दिया। पता नहीं किस कारण नीतीश ने महाबली को प्रत्याशी बनाया था। इसकी उम्मीद अधिक थी कि टिकट कटेगा क्योंकि उनका विरोध कई बार मुख्यमंत्री के सामने हुआ था। सांसद के समर्थक इसे सिर्फ एक राजनीतिक साजिश बताते रहे। अन्धभक्ति ने लुटिया डुबो दी। जदयू को गत चुनाव में 196946 मत मिला था। इस बार इसका मात्र 39 फिसदी कुल 76709 मत ही। जीत का सपना देखने और दिखाने वाले सब गणेश परिक्रमा करते रह गए। जदयू को 120237 मत कम मिला। बिहार में भी अधोगति की प्राप्ती हुई क्यों? दैनिक जागरण के 12 अप्रैल के अंक में ‘निराशा और उमीद के साथ टूट गया जाति का खोल’ शीर्षक से प्रकाशित खबर में कारण बताया गया था। कहा था कि-“राजद बनाम राजग की लडाई रही। जदयू कहीं नहीं दिखी। राजग के कारण जदयू का समर्थन करने वाले मतदाताओं में गठबंधन तोडने से नाराजगी है और साथ ही सहानुभुतिपूर्ण प्रतिशोध लेने की भावना भी। लोकसभा में नीतीश कुमार के अहंकार को तोडने की कोशिश के साथ यह आश्वासन भी कि विधानसभा चुनाव में जदयू का साथ देंगे। होगा क्या कोई नहीं कह सकता?”
जदयू बिहार से साफ हो चुका है। आगे राजनीति क्या करवट लेगी कोई नहीं जानता लेकिन राजद और जदयू को सबक सीखने का अवसर यह परिणाम जरुर दे गया। अब दोनों करीब आते दिख रहे हैं। 

राजद के काम नहीं आया कांग्रेस से गठबन्धन

कांग्रेस का मिला मत मिलता तो बदल सकता था निर्णय
गत चुनाव में कांग्रेस को मिला था 71 हजार वोट
 कांग्रेस को साल 2009 के चुनाव में मिला वोट कहां गया? कांग्रेस से गठबन्धन का लाभ क्या राजद को मिला? अगर ऐसा हुआ होता तो क्या परिणाम यही होता? ऐसे कई सवाल लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राजनीतिक माहौल में गूंज रहे हैं। राजद प्रत्याशी डा.कांति सिंह के साल 2009 के चुनाव में प्रस्तावक रहे पूर्व मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद का कहना है कि कांग्रेस से गठबंधन का लाभ राजद को नहीं मिला। गत लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह को 71057 मत मिले थे। राजद इस चुनाव में यह जोड रहा था कि राजद को तब मिले 176463 के साथ कांग्रेस को मिला 71057 वोट जुडा है। इसका कुल होता है 247520 मत। जबकि भाजपा और जदयू अलग अलग हो गए तो उनका वोट घटा है। इनके साथ कोई वोट नहीं जुटा। लेकिन राजनीति गोतिया का बंटवारा वाले फार्मुले पर नहीं चलता यह भी समझना होगा। तभी सही विश्लेषण किया जा सकता है। अगर गत चुनाव में कांग्रेस को मिला मत राजद से जुड जाता तो संभव था कि परिणाम बदल जाता। चूंकि सिर्फ जदयू का ही नहीं कांग्रेस का भी मिला वोट राजग के पाले में चला गया तो राजद गत की अपेक्षा अधिक वोट लाकर भी पिछड गई। गत चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अवधेश नारायण सिंह को मिला मत उनका स्वजातीय मत था। ऐसा प्रखंड काग्रेस अध्यक्ष राजेश्वर सिंह इमानदारी से स्वीकार करते हैं। इन्होंने कहा कि कांग्रेस का कैडर वोट राजद को मिला है। अल्पसंख्यक मत भी कांग्रेस के कारण ही राजद को मिला है। दरअसल राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता के पाखंड से आजिज मतदाताओं का बडा वर्ग राजग के पाले में चला गया और सबके पूर्वानुमान ध्वस्त हो गए। ऐसा नहीं होता तो निर्णय बदल सकता था या फिर जीत-हार का अंतर कम हो सकता था।

राजद को बढा 11 हजार तो जदयू का घटा 21 हजार मत


गोह में विधायक लेकिन प्रदर्शन खराब
राजग को राजद से 20 हजार अधिक मिला मत
उपेन्द्र कश्यप
 काराकाट लोकसभा चुनाव में गोह विधान सभा क्षेत्र को राजद का गढ माना जाता है। राजद को उम्मीद थी कि यहां राजग के रालोसपा प्रत्याशी उपेन्द्र कुशवाहा से काफी बढत मिलेगी। ऐसा नहीं हुआ। लोस चुनाव 2009 में राजद को 36055 मत मिला था। पार्टी खुब सक्रिय हुई तो उसे 47556 मत मिले। दरअसल राजद को 11501 वोट इस बार अधिक मिला। यहां गौरतलब है कि 2010 के विधानसभा चुनाव में जब राम अयोध्या सिंह खडे थे तो उन्हें इससे कम 46675 मत मिला था। इससे राजद को लगा कि अपने वोटर आक्रामक रुप से मतदान किये हैं। वे यहीं विपक्षी की आक्रमकता का आकलन नहीं कर सके। राजग को यहां 55455 मत मिला है। कांति सिंह को मिले मत से 7899 मत ही अधिक मिल सका। तब भी हार हो गई। राजद नेता राजेश कुमार सिंह उर्फ मंटु सिंह ने सोमवार को जब विधान सभा वार मत परिणाम देखा तो कहा कि –हम तो अपने घर में ही हार गए। इन्होंने कहा कि काफी वोट मिलने की उम्मीद थी, मिली भी लेकिन विपक्षी को इतना वोट मिलेगा इसकी कल्पना नहीं किया था। यहां गत चुनाव में राजग के जदयू से लड रहे महाबली सिंह को 35964 मत मिला था। इस बार उनको मात्र 14551 मत ही मिल सका। जदयू को 21413 मत गत की अपेक्षा कम मिला। यानी जदयू का मत भी रालोसपा में सिफ्ट कर गया। जबकि गत 2005 से यहां इसी पार्टी से रणविजय सिंह विधायक हैं। 2010 के विधान सभा चुनाव में श्री सिंह को 47369 वोत मिले थे। फिर कहां चला गया यह वोट? चर्चा की मानें तो जदयू के किसी नेता की बात कोई नहीं सुन रहा था। सभी “नमोनिया” से प्रभावित थे। महादलित और अतिपिछडा समाज का वोट, जिस आधर पर नीतीश कुमार राजनीति कर रहे थे वह पुरी तरह हिन्दुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता के पाखंड में बिखर गया। परिणामत: राजद अधिक वोट लाकर भी हार गया।
  
गोह विधान सभा क्षेत्र में किसको कितना मिला मत
 काराकाट लोकसभा क्षेत्र के गोह विधान सभा क्षेत्र में किस प्रत्याशी को कितना मत मिला यह हर कोई जानना चाहता है। एआरओ सह एसडीओ ओमप्रकाश मंडल से प्राप्त विवरण के अनुसार सभी 15 प्रत्याशियों और नोटा को मिला मत इस प्रकार है।
कांति सिंह- 47556
महाबली सिंह- 14551
उपेन्द्र कुशवाहा- 55455
संजय केवट- 8079
गुलाम कुन्दनम- 1159
देनेश कुमार- 343
प्रदीप कुमार जोशी- 646
रजनी दूबे- 651
राजाराम सिंह-2762
वीणा भारती- 571
इमरान अली- 343
मो.दिलवाश अली- 477
भैरव दयाल सिंह- 1273
राम दयाल सिंह-876
सत्यनारायण सिंह- 1428
नोटा- 1773
कुल मत- 137943

किसी विधानसभा क्षेत्र में राजद को नहीं मिली बढत
 काराकाट लोकसभा चुनाव में किसी भी विधानसभा क्षेत्र में राजद अपने प्रतिद्वन्धी राजग से आगे नहीं निकल सका। हर जगह पिछडता ही रहा। डेहरी विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक का फासला रहा। यहां राजद राजग प्रत्याशी से 30330 मत से पीछे रह गया। सबसे कम फासला गोह में 7624 मत का रहा। नोखा में यह फासला 13628 मत, ओबरा में 14031 मत, काराकाट में 15283 मत और नवीनगर में यह फासला 23371 मत का रहा। 
किस दल को किस विधानसभा क्षेत्र में कितना मिला मत
विधानसभा क्षेत्र  रालोसपा  राजद    जदयू
नोखा          50579   36951  15445
डेहरी          64662   34332  10160
काराकाट       56211   40928  12288
गोह           55180   47556  14562
ओबरा         56105   42074  16392
नवीनगर       55352   31981  11014

चिंतन का नहीं चिंता का है वक्त-डा.प्रकाशचंद्रा
 भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव डा. प्रकाशचंद्रा का कहना है कि यह वक्त बिहारियों के लिए चिंता का है। अब चिंतन का वक्त नहीं रहा। इन्होंने कहा कि बिहार पुन: नेतृत्व के संकट से गुजर रहा है। आज यह साबित हो गया कि नीतीश कुमार और लालु प्रसाद की सोच में कोई अंतर नहीं है। जिस तरह लालु जी ने राबडी देवी को सीएम बनाया था उसी तरह नीतीश ने जीतन राम मांझी को बनाया है। जिनका नव्यक्तित्व है न कोई विशिष्ट पहचान। दलित वोटों के लिए यह कदम उठाया गया है। वोटों के सौदागर अभी आए ताजा चुनाव परिणाम को भूल रहे हैं कि जनता ने विकास के मुद्दे पर जातिवाद भूलकर मतदान किया है। उत्तर प्रदेश में दलितों ने मायावती को वोट नहीं दिया। नीतीश कुमार कहते रहे हैं कि वे जाति पाति की राजनीति नहीं करते लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे अब भी जाति के खोल से बाहर नहीं निकल सके हैं। कहा कि जनता दोहरा चरित्र को उघाडने लगी है। भविष्य में जातीय समीकरण साधने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया है। लेकिन आने वाला परिणाम इससे भी बूरा हो सकता है।
     

नमो लहर में राजद छोड सबकी जमानत जब्त


नमो लहर में राजद छोड सबकी जमानत जब्त
सांसद रहे महाबली  की स्त्जिति और खराब
जमानत बचाने को चाहिए थे और 54945 मत
 नमो की ऐसी आंधी चली कि राजद को छोड दें तो किसी की जमानत नहीं बची। काराकाट लोकसभा चुनाव में राजद प्रत्याशी डा.कांति सिंह को छोडकर अन्य सभी 13 प्रत्याशियों की जमानत नहीं बच सकी। निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार चुनाव में पड़े कुल मतों का छठा भाग प्राप्त करने वाले उम्मीदवार की ही जमानत राशि लौटाई जाती है। यानी जमानत बचाने के लिए एक बटा छ: वोट चाहिए। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 789927 मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया था। इसमें से 131654 से उपर मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशियों की ही जमानत वापस हो सकती है। ऐसी स्थिति में राजद की कांति सिंह 233651 मत प्राप्त कर जमानत वापस पाने की हकदार बनी। जदयू के महाबली सिंह 76709 मत ही ला सके। उनको जमानत बचाने के लिए कम से कम और 54945 मत चाहिए था। बसपा के संजय केवट 45503 मत,  माले के राजाराम सिंह 32684 मत, निर्दलीय सत्यनारायण सिंह 9919 मत ही प्राप्त कर सके। सबकी जमानत जब्त हो गई। इनके अलावा राष्ट्र सेवा दल के प्रदीप जोशी, आप के गुलाब कुंदनम, जनवादी पार्टी की वीना भारती, बीएमपी के दिनेश कुमार, निर्दलीय भैरव दयाल सिंह, राम दयाल सिंह, दिलबास अंसारी, इमरान अली सहित अन्य की जमानत जब्त हो गई। मह्त्वपूर्ण यह भी है कि पांच प्रत्याशियों के अलावा अन्य दस प्रत्याशियों से अधिक 10185 मत नोटा को मिला। यानी इतने लोगों ने किसी को भी पसन्द नहीं किया।

भाकपा माले के लिए चुनौती बन रही है बसपा

लगातार कमजोर होता जा रहा प्रदर्शन
चौथे से पांचवे स्थान पर पहुच गई माले
उपेन्द्र कश्यप
 भाकपा माले का जनाधार संकट में है। काराकाट लोकसभा क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्र ओबरा और काराकाट में उसके विधायक रहे हैं। गरीब, दलित, मजदूर, लाचार वर्ग की राजनीति के बुते इसने यह उपलब्धी हासिल की थी। गत लोकसभा चुनाव में भाकपा माले से पूर्व विधायक राजाराम सिंह ही प्रत्याशी थे। तब उन्हें कुल 37493 मत प्राप्त हुए थे। इस बार मात्र 32684 मत ही यानी कुल 4809 मत कम। वहीं बसपा को गत चुनाव में जब प्रत्याशी उपेन्द्र शर्मा थे तो 32074 मत मिला था। इस बार जब संजय केवट आये तो 13429 मत अधिक मिला। कुल 45504 मत। कुल 15 प्रत्याशियों में बसपा चौथे स्थान पर आ गई जब कि 2009 के चुनाव में वह पांचवे स्थान पर थी। वहीं माले गत चुनाव में चौथे स्थान पर थी तो इस बार पांचवें स्थान पर आ गई। यह प्रदर्शन भाकपा माले द्वारा हाशिए की आबादी की राजनीति करने के दावे को कमतर करती है। उसका और बसपा का जातीय आधार लगभग एक ही है। क्या बसपा माले को ही हाशिए पर ढकेल देगी? यह स्थिति तब है जब बसपा कभी सक्रिय नहीं दिखती है। कम से कम ओबरा विधान सभा क्षेत्र में तो कभी नहीं दिखी है। यहां माले ही संघर्ष करती रही है। फिर भी माले से काफी पीछे नहीं है बसपा। माले को 10721 तो बसपा को 7679 मत मिला है। यह स्थिति क्यों आई? क्या बसपा का आधार वोटर ही उसे वोट दिए या अन्य भी? अगर सिर्फ जाति विशेष का वोट है तो क्या इस जाति विशेष में अपना प्रभाव पुरी तरह माले खो चुकी है? गत विधान सभा चुनाव में भी माले को 18461 मत मिला था और वह ओबरा विस क्षेत्र में तीसरे स्थान पर थी। तब बसपा को मात्र 1784 मत ही मिल सका था। यानी माले अपने इतिहास के सबसे कमजोर प्रदर्शन पर आकर ठिठक गई है। क्या वह इसका विश्लेषण करेगी कि ऐसी नौबत क्यों आई? 



Friday 16 May 2014

बारह हजार अधिक मत लाकर भी हार गईं कांति


बारह हजार अधिक मत लाकर भी हार गईं कांति
राजद को ओबरा विस क्षेत्र में मिले अधिक मत
गत चुनाव में मिला था 29681, इस बार 42074
आधे मत ही ला सकी जदयु
गत लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में स्थिति बदतर
उपेंद्र कश्यप,
नमो की लहर ने राजद और जदयु को किनारे लगा दिया। काराकाट के ओबरा विधानसभा क्षेत्र में दोनों की स्थिति बदतर रही। गत लोकसभा चुनाव में राजद की डा.कांति सिंह को 29681 मत मिले थे। इसबार 42074 मत मिला मगर किनारा ही नसीब हो सका। मझधार पार नहीं कर सकीं। राजग के उपेन्द्र कुशवाहा को 56115 मत मिले। यानी 42074 मत राजद से अधिक। अर्थात मतों के ध्रुवीकरण के कारण राजद को गत की अपेक्षा 12393 मत अधिक मिले तो भाजपा के कारण ध्रुवीकृत मत बढ गए। राजद को अपने ‘माय’ समीकरण पर बडा गुमान था। क्या हुआ, क्यों हुआ? जब समीकरण से बाहर के लोगों को नहीं जोडा जाएगा तो हश्र यही होना था। नगर राजद अध्यक्ष मुन्ना अजीज ने कहा कि हमारे पारंपरिक वोट हमारे साथ रहे। जो भूल हुई है उसे सुधारा जाएगा और माय मील की पत्थर की तरह साथ रहेगा लेकिन दूसरे समुदाय को भी जोडा जाएगा। गत चुनाव में जब जदयु भाजपा साथ थे तब जदयु प्रत्याशी महाबली सिंह को 34777 मत मिले थे। इस बार यह संख्या मात्र 16392 तक सिमट गई। अर्थात गत की अपेक्षा आधे से भी कम। कुल 18385 मत कम। जदयु का अहंकार ध्वस्त हो गया। भाई लोग लहर नहीं ही देख सके। इस प्रदर्शन का कारण महाबली सिंह का कार्यकाल भी रहा और कार्य व्यवहार भी। पांच साल तक जातीय खांचे से बाहर निकल ही नहीं सके। लोग कहते रहे मगर उनके साथ के लोग समझने को तैयार ही नहीं थे। आश्चर्य तो यह था कि उनको टिकट मिला। क्योंकि बिहार के अकेले ऐसे सांसद थे जिनका कई बार विरोध नीतीश कुमार के सामने हुआ था। गाली गलौज के स्तर तक मगर आंखों पर चढा चश्मा अपने भाव ही देखती रही। जनता के मनोभाव को नहीं।
किस प्रत्याशी को कितना मिला मत?
ओबरा विधानसभा क्षेत्र में किस प्रत्याशी को कितना मत मिला यह जानना दिलचस्प होगा। मतगणना कक्ष में उपस्थित अधिकारी के अनुसार प्राप्त मत का ब्योरा।
कांति सिंह-42074
महाबली सिंह-16392
उपेन्द्र कुशवाहा-56115
राजाराम सिंह-10721
सत्यनारायण सिंह-2401
संजय केवट-7679
गुलाम कुन्दनम-1140
दिनेश कुमार-349
प्रदीप कुमार जोशी-562
रजनी दूबे-1043
वीणा भारती-887
इमरान अली-382
मो.विलवाश अंसारी-504
भैरव दयाल सिंह-1126
रामदयाल सिंह-1108
नोटा- 1792
कुल मतदान-144275

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चौथी कोशिश में किला फतह कर सके उपेंद्र कुशवाहा

जानें अपने नवनिर्वाचित सांसद को
कभी थे नीतीश के हनुमान अब दुश्मन
एक बार विधायक बने तो बने प्रतिपक्ष के नेता
तीन लगातार चुनाव हार चुके हैं
एक साल पुरानी पार्टी के मुखिया हैं

भाजपा गठबंधन के रालोसपा से उपेन्द्र कुशवाहा अपनी चौथी कोशिश में जीत का किला फतह कर सके। ताजा गठित अपनी पार्टी के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बिहार में उनको नीतीश कुमार का प्रतिद्वन्धी माना जाता है। एक तबके को लगता है कि इनके जीतने से सीएम को वे चुनौती दे सकते हैं। कभी खुद नीतीश के प्रिय रहे अब घोर विरोधी बन गए हैं। हिन्दी, मगही, भोजपुरी और अंग्रेजी जानने का दावा करते है। ट्विटर पर सक्रिय हैं। जन्दाहा से प्राथमिक शिक्षा, हाई स्कूल मेदीकटी से भी पढे। वैशाली के महनार के जावज में 6 फरवरी 1960 को इनका जन्म हुआ है।  दलीय और व्यक्ति निष्ठा बदलते रहती है। कायदे से एक बार 2000 में जन्दाहा से विधायक बने तो तात्कालिन बिहार के किसी भी नेता से बडा कद नीतीश कुमार के आशीर्वाद से बना। तमाम वरिष्ठों को किनारे कर ‘लव-कुश’ की गरज में उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया गया। नाराजगी बढी लेकिन तब भी नीतीश ने मैनेज कर लिया। तब प्रतिपक्ष के सबसे युवा नेता बन चर्चा में आ गए। अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश ने इन्हें हेलीकाप्टर से घुमाया। लाभ नही मिला, खुद भी चुनाव हार गए। समता पार्टी की स्थापना से जदयू तक दोनों सह यात्री बने रहे। 2010 के विधान सभा चुनाव में ‘अपने लोगों’ को टिकट नहीं दिला सके तो बगावत पर उतर गए। राजगीर के कार्यक्रम में कह दिया-“सबेरे वाली गाडी से चले जाएंगे”। रास्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुडे फिर रास्ट्रीय समता पार्टी बना ली। पटना में बडी सभा की, हद यह कि नीतीश के खिलाफ खूब बरसे और फिर जदयू में विलय की घोषणा कर दी। जदयू ने राज्यसभा भेज दिया। महत्वाकांक्षा बढी, टकराव बढे और दिसंबर 2012 में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। तीन महीने बाद नई पार्टी रालोसपा बनाया जिसके रास्ट्रीय अध्यक्ष खुद और अरुण शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। उम्मीद जाहिर की कि पिछडा और अलप्संख्यक गठजोड से बिहार में विकल्प बनेंगे, बाद में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वे भाजपा से गठबंधन कर तीन सीट पर चुनाव लडे। परिणामत: आज बडे खिलाडी बन गए। साल 2000 के बाद तीन बार चुनाव लगातार हार चुके हैं। चौथी पारी में बडे अंतर से जीत दर्ज कर किला फतह कर लिया।

---------------------------------------------------जातीय खांचे के घेरे से बचना होगा
सांसद उपेन्द्र कुशवाहा के सामने सबसे बडी चुनौती जातीय खांचे से बचने की होगी। महाबली सिंह के विरोध की सबसे बडी वजह यही थी। सिर्फ स्वजातीय होने के कारण ही एक ऐसे पत्रकार को अपना प्रतिनिधि बनाया जो कभी माले के राजाराम सिंह के लिए वोट मांगता है तो कभी महाबली सिंह के लिए। आज सबको अगर आशंका है ति इसी बात की कि क्या वे इस तरह के व्यवहार से बच सकेंगे। उअंकी व्यस्तता के कारण उनका पक्ष नहीं लिया जा सका। लेकिन विकास के साथ उनको इस कसौटी पर यहां के मतदाता खास कर भाजपा के और अन्य परखने की कोशिश करेंगे।

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राज्य सरकार की असफलता के कारण हार

राजद से प्रत्याशी डा.कांति सिंह चुनाव हार गई। उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार की असफलता को जिम्मेदार ठहराया। जगरण से अपनी हार के बाद कहा कि नीतीश कुमार के नकारेपन के कारण जदयु का वोट भाजपा समर्थित रालोसपा के प्रत्याशी उपेन्द्र कुशवाहा को मिल गया। इस कारण यहां राजद की हार हुई। कहा कि महाबली इनकी पार्टी और सरकार की नाराजगी के कारण इनका आधार वोट रालोसपा को मिल गया। मालुम हो कि राजद को अपने आधार वोट और राजग से जदयु के अलग होने से उसके आधार वोट में बिखराव ही जीत की उम्मीद थी। वह यह नहीं सोच सका कि वोट का बंटवारा गोतिया की तरह नहीं होता बल्कि वोट की सिफ्टिंग परिस्थिति और समीकरण के साथ साथ माहौल पर निर्भर करता है। डा. सिंह ने जनादेश का सम्मान करते हुए राजद को वोट देने वाले हर मतदाता के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्हें धन्यवाद दिया। 


Wednesday 14 May 2014

बुद्ध के महायान मत को मिली थी भावभूमि



फोटो-मनौरा में ध्यानस्थ बुद्ध की प्रतिमा
पर्यटन मंत्री रहते भी मनौरा का नहीं हो सका विकास
बुद्धिष्ट सर्किट में भी नहीं जुड सका
उपेन्द्र कश्यप,
मगध क्षेत्र की भूमि बौद्ध कालीन इतिहास से आवश्यक रूप से संबद्ध रखती है। यह वही भूमि है जिसने बौद्धधर्म की जड़ को जमीन ही नहीं अपितु खाद-पानी भी प्रदान किया तथा इसके महायान मत को भावभूमि प्रदान कर उसे संपूर्ण हिन्दुस्तान से चीन तक विस्तारित एवं प्रतिष्ठापित किया। इस क्षेत्र के कई ऐसे महत्वपूर्ण स्थान इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं पा सके जिनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से बौद्धकालीन इतिहास को नये सफाहात मिल सकते थे। ऐसा ही एक स्थान औरंगाबाद जिलांतर्गत ओबरा प्रखण्ड मुख्यालय से मात्र 6 कि.मी. दूर पूर्व दिशा में पुनपुन नदी के तट पर मरोवां के नाम से विख्यात लेकिन उपेक्षित है, जिसे बुद्ध के जीवनकाल से लेकर ईस्वी सन् के प्रारम्भिक सात शताब्दियों तक के इतिहास से विस्मृत हुए तथ्यों की प्रमाणिकता के लिए अन्वेषण दल की प्रतीक्षा है। यहाँ ध्यानस्थ बुद्ध की छह फीट ऊँची काले पत्थर से निर्मित एक प्रतिमा स्थापित है जो कम-से-कम साढ़े तेरह सौ साल प्राचीन है। औरंगाबाद जिला के देव से विधायक रहे राजद नेता (अब भाजपा में) सुरेश पासवान दो बार राज्य के पर्यटन मंत्री रहे, लेकिन इस क्षेत्र पर उनकी नजर नहीं पडी। वे न तो इसे बुद्द्धिष्ट सर्किट से जोडवा सके, न ही पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करा सके। यहां आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में जिस स्थान को देश के मानचित्र पर स्थापित होना चाहिए था वह इसकी क्षमता रखने के बावजूद भी उपेक्षित है।
       यह ऐतिहासिक तथ्य है कि ईस्वी सन् के प्रथम सदी में हिन्दुस्तान पर कुषाणों का शासन प्रारंभ हुआ। इसी शासनकाल में अर्थात बुद्ध के पाँच सौ साल बाद ही बौद्ध धर्म में दो मत हीनयान और महायान के रूप में सामने आये। महायान मत में ही- जो कि पूरे हिन्दुस्तान एवं चीन में फैला और इसका श्रेय पहली सदी में जन्में नागार्जून को जाता है- बुद्ध को ईश्वर की मान्यता दी गयी और इनकी साकार रूप में पूजा(उपासना) की जाने लगी। चूंकि बौद्ध धर्म हठवादी नहीं था और अपनी नैतिक पृष्ठभूमि की रक्षा करते हुए किसी भी चीज (सिद्धांत रूप में) से समझौता करना इसकी प्रवृत्ति रही है, फलतः यह धर्म हिन्दुओं के बहुत करीब होता गया। आज इस तथ्य का स्पष्ट साक्ष्य मरोवां प्रस्तुत करता है जहाँ कि बुद्ध प्रतिमा की उपासना हिन्दू धर्म नीतियों के अनुसार की जाती रही है।
मनौरा नहीं मरोंवां
ओबरा के इस गांव का नाम मनौरा नहीं मरोंवां है। कालांतर में अपभ्रंस हो कर वर्त्मान नाम प्रचलित हो गया। यह क्षेत्र मुगल काल में परगना रहा है। यानी प्रशासनिक इकाई। जब दाउदनगर का वजूद नहीं था तब यह अंछा, गोह के साथ इनके समतुल्य ही एक परगना था। इसके नामकरण के पीछे मौर्य वंश से जुडाव भी रहा है। मोर पंख मौर्य वंश का प्रतिक चिन्ह रहा है। यह ऐतिहासिक तथ्य है। मरोवां में कुमारी कन्याएं मोर पहनाव की एक प्रथा का अनुशरण न जाने कब से चली आ रही है। शादी के समय यह प्रथा होती है। मरोंवां का इतिहास सुउफी संत से भी जुडा है। इस पर चर्चा फिर कभी।

Sunday 11 May 2014

नेक बीबी का पता नहीं किसी को मालुम



फोटो-नेकबीबी का मजार
घोडेशाह से पहले होती है चादरपोशी
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) शहर में नेक बीबी का एक मजार गोला मुहल्ला में मौजूद है। साल में एक दिन जब घोडेशाह बाबा का उर्स आता है तो इस मजार को भी रौनक हासिल होती है। उर्स कमिटी के सदस्य मुन्ना अजिज के अनुसार नबाब साहब के बाद और घोडेशाह से पहले यहां चादरपोशी होती है। इस नेक बीबी के बारे में पर्याप्त जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं है। नेक बीबी का वैसे शाब्दिक अर्थ होता है-अच्छी पत्नी। स्वभाविक है वे किसी अजीम शख्श की बीबी रही होंगी। अल्लामा साबिर कादरी की किताब इंकेशाफ में इनको नवाब अहमद अली का समकालीन बताया गया है। इससे अधिक इतिहास नहीं मिलता। इनका उर्स भी नबाव साहब के साथ ही मनाया जाता है। मो.गुड्डु ने बताया कि इनकी अकीदत से बरकत होती है। लोग अपनी समस्या से जब परेशान होते हैं तो इनकी शरण में आते हैं। इस नेक बीबी से जुडी जानकारी खोजना महत्वपूर्ण है। इससे इतिहास का एक नया अध्याय खुल सकता है। आखिर कोई तो वजह रही होगी कि करीब तीन सौ साल से किसी के मजार पर अगरबत्तियां जलाने वाले, मन्नतें मांगने वाले अपना शीष नवाते चले आ रहे हैं।   



अहमदनगर को बसाया था नवाब अहमद अली खान ने


फोटो-नबाब साहब का मजार
मौलाबाग में है इनका मजार, मांगते हैं सभी मुरादें
घोडेशाह से पहले होती है चादरपोशी
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) मौलाबाग में नबाब अहमद अली खान का मजार है। घोडेशाह बाबा के मजार पर चादरपोशी से पहले इस मजार पर चादरपोशी करने की परंपरा है। थाना परिसर से थानेदार सामग्री सर पर लेकर अन्य अकीदतमंदों के साथ इस मजार पर आते हैं और चादर चढाने के साथ फातेहा करते हैं। ये नबाब जीवन खान के छोटे पुत्र और नवाब दाऊद खाँ के परपोता थे। उत्कर्ष के अनुसार 15 साल की उम्र में फने सिपाहगिरी की मश्क करने लगे। जब पूरी तरह महारत हासिल कर चुके तो मोहम्मद शाह बादशाह के दरबार में हाजिर हुए। बादशाह ने खुश हो कर 1144 हिजरी मे इलाहाबाद की सुबेदारी सौंप दी। उसके बाद अजीमाबाद(पटना) की सुबेदारी से नवाजे गए। इनकी बहादुरी की वजह से बंगाल, उड़ीसा और सलहट की मुहिम भी सफल हुई। नबाब साहब हमेशा अजिमाबाद के मुहल्ला मुगलपुरा पटना सिटी में रहा करते थे। कभी-कभी दाऊदनगर आया करता थे। एक बार राजा नोखा जिला शाहाबाद रोहतास का रहनेवाला दाऊदनगर में आया। इस समय नबाब साहेब दाऊदनगर में न थे। मैदान खाली पाकर दाऊदनगर किला के पश्चिमी दरवाजे को उखाड़ ले गया। ये खबर जब नबाब साहेब को मालूम हुई तो अपने जंग के लिए अपने फौज के साथ नोखा को प्रस्थान किया। नोखा पहुँचे और आखिर में नवाब साहेब ने नोखा का किला फतह कर लिया। इसके बाद 1145 हिजरी में दाऊदनगर में अहमदगंज की बुनियाद अपने धर्म गुरू सैयद शाह अब्दुल रशीद कदरी के हाथों से डलवाई। इस इलाके को ही नया शहर कहते हैं। नवाब अहमद अली खाँ का रौजा आज भी मौलाबाग में है। जहाँ आज भी हर धर्म के लोग आकर फैज पाते हैं और मुरादें हासिल करते हैं।

साइस से फरिस्ता बन गए घोडेशाह बाबा



फोटो-घोडेशाह बाबा का मजार
थाना परिसर में है इनका मजार
हिन्दु-मुस्लिम सभी हैं बाबा के मुरीद

यहां के दिलो-जीगर में बसे हजरत इसमाइल शाह उर्फ सैय्यदना घोड़े शाह बाबा का दाऊदनगर थाना परिसर में मजार है। गुलाम भारत में जब थानेदार,दारोगा, सिपाही इस क्षेत्र का दौरा करने आते थे तो उन्हे घोड़ा दिया जाता था। इन घोड़ों की हिफाजत के लिए यहाँ घोड़े शाह साइस के पद पर नाफीज थे। साइसी के बाद जो वक्त बचता था उसका इस्तेमाल वे इबादत-रेयादत में करते थे। इनकी मृत्यु के बाद थाना परिसर में उनकी याद में एक मजार बनाया गया। इसी थाना में दारोगा अब्दुल अजीज एक बार थानेदार के पद पर पदस्थापित हुए। एक बार वे प्रशासनिक कार्य से जरूरी कागजात लेकर कहीं जा रहे थे। इनका कागज खो गया। किसी ने सलाह दी की वे इस मजार पर फतेहा कर अपनी मुराद रखें। उन्होंने वैसा ही किया। शाम के वक्त कोई अजनबी शख्स आकर उनका खोया हुआ कागज वापस कर दिया। अब्दुल अजीज ने चादरपोशी की और कव्वाली का आयोजन किया। यह दस रज्जब को हुआ था इसलिए हर साल इस तारिख को प्रशासन द्वारा यहाँ चादरपोशी एवं कव्वाली का आयोजन कराया जाने लगा। यह परंपरा बन गई। यहां इस दिन डीएम, एसपी समेत तमाम आला अधिकारी आते रहे हैं। इनको मामने वालों में हिन्दु भी शामिल हैं। कई हिन्दु ऐसे हैं जो रोजाना इस मजार पर अगरबत्ती जलाकर अपनी दुआ मांगते हैं। बिना ऐसा किए वे रोजमर्रे का काम भी शुरु नहीं करते। डीएवी के प्राचार्य डा.आरके दूबे इनको मानने वालों में एक बडा नाम है। वे प्राय: यहां आकर शिष नवा जाते हैं। स्कूल में होने वाले हर कार्यक्रम में वे पहला आमंत्रण पत्र घोडेशाह बाबा को देना नहीं भूलते। इसके बाद ही किसी को वे न्योता देते हैं।


Friday 9 May 2014

‘गैर सरकारी संकल्प’ में रामविलास सिंह ने रखा तर्क


                                फोटो-पुराना अनुमंडल कार्यालय
अनुमंडल गठन की राजनीति-3
                         ‘मैं रफीगंज या नवीनगर का विरोधी नहीं’
                        सत्ता बदली तो नई जमात का बढा प्रभाव

उपेन्द्र कश्यप
1990 के दशक में रामबिलास सिंह की अध्यक्षता में अनुमण्डल संघर्ष समितिका गठन किया। उसके बाद इसकी काट में विरोधी जमातों ने भी अपनी अपनी राजनीति शुरु की। रफीगंज के लिए सत्येन्द्र नारायण सिन्हा ( पूर्व मुख्यमंत्री ) का वरद हस्त प्राप्त इनके भांजा और विधायक डा० विजय सिंह सक्रिय थे तो नबीनगर के लिए विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह। ये सभी तीनों कॉग्रेसी थे और सत्ता भी इसी पार्टी की थी। इनकी राजनीतिक लौबियां काफी मजबूत थीं। सत्येन्द्र नारायण सिन्हा स्वयं सन् 89 में मार्च से दिसम्बर तक मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन नवीनगर और रफीगंज दोनों की कुछ कमजोरियां थी। रफीगंज का अनुमण्डल बनना मदनपुर को स्वीकार्य नहीं था, भौगोलिक कारण सहित कई कारण थे। नवीनगर मुख्य पथ से जुड़ा हुआ नहीं था। इस कमजोर कडी के बावजूद लेकिन कोशिशें जारी रहीं, मकसद वही था कि इस बहाने किसी एक को अनुमंडल बनाने का अवसर अधिक हो।
अपने निधन से पूर्व तत्कालीन मंत्री रामविलास सिंह ने अनुमंडल बनाने की चली राजनीति पर कई घंटे इस संवाददाता से बात किया था। इस वार्ता में बताये तथ्यों एवं घटनाओं के अनुसार तब सदन में प्रत्येक शुक्रवार को गैर सरकारी संकल्पलाया जाता था। विधायक रामबिलास सिंह ने सदन में दाऊदनगर अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव लाया और आंकड़ों के साथ तर्क दिया। इसी सदन में डा० विजय सिंह एवं रघुवंश सिंह ने क्रमश: रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव रखा। तब लोकदल से विधायक बने रामबिलास सिंह ने सदन में कहा था- मैं रफीगंज या नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का विरोधी नहीं हूँ, मैं चाहता हूँ कि दाऊदनगर अनुमण्डल बने। बेहतर होगा तीनों क्षेत्रों की तुलना की जाये और जो सारी अहर्ता पूरी करता हो उसे अनुमण्डल बना दिया जाये।सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी की- सरकार विचार करेगी।मामला फिर लटक गया। सन् 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ और सत्ता का स्वरूप बदल गया। सामाजिक बदलाव का नारा बुलंद करने वाले लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाया गया। जातीय, राजनीतिक समीकरण प्रभावित हुए तो स्वाभावतः सत्ता का भीतरी चेहरा भी प्रभावित हुआ। सत्ता के गलियारे में नयी जमात का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ। तब सरकार के एक आयुक्त (कोइ श्रीवास्तव-रामविलास बाबु को याद नहीं) ने रामबिलास सिंह को बताया कि अनुमण्डल गठन की बात चल रही है, सूची तैयार है और उसमें दाऊदनगर का नाम भी है। फिर वे सक्रिय हुए। 31 मार्च 1991 को दाऊदनगर अनुमण्डल का विधिवत उद्घाटन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने किया और बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा सहायक पुर्नवास मंत्री रामबिलास सिंह इस समारोह में उपस्थित रहे। यह अनुमंडल कार्यालय परेड ग्राउंड के पास तरार में  शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के एक भवन में प्रारंभ हुआ।




Thursday 8 May 2014

और जब शिक्षक से डीईओ ने मांगी माफी



फोटो-अब्दुल कुदुस का मजार
अब्दुल कुद्दुस कबीरी का उर्स मुबारक
 मौलाना अब्दुल कुद्दुस कबीरी का उर्स मनाने की तैयारी चल रही है। इनका जन्म 1928 में और मृत्यू 86 वर्ष की आयु में साल 2012 में हुई थी। गोला मुहल्ला में इनका मजार है। वे खुद मदरसा इस्लामिया के लगभग 20 साल तक सचिव रहे हैं। अभी इनके पुत्र मौलाना फरीदुद्दीन राजी इसके प्राचार्य हैं। राजी ही उर्स कमिटी के अध्यक्ष हैं। श्री राजी, मो.गुड्डु एवं मो.सनाउल्लाह ने बताया कि जनाब कबीरी सीता हाई स्कूल हरिहरगंज में बतौर शिक्षक कार्यरत थे। दुनियावी काम में ही मशगुल न हो कर वे धार्मिक शिक्षा में अधिक तल्लीन रहे। अध्यात्मिक व्यक्ति बन गए। एक वाकया इनकी अध्यात्मिकता के सन्दर्भ में प्रचलित है। एक बार डीईओ ने इनसे स्कूल की व्यवस्था को लेकर कई सवाल पूछे। सभी सवालों का जबाब दिया। डीईओ ने नाराजगी जाहिर की। जब वे जाने लगे तो उनकी गाडी स्टार्ट ही नहीं हो रही थी। तब इनके ड्राइवर ने उन्हें श्री कबीरी से माफी मांगने को कहा। ऐसा करते ही वाहन स्टार्ट हो गया। यह देखकर सभी भौचक रह गए। उपस्थित प्रधानाध्यापक एवं अन्य शिक्षक सभी दंग रह गए। इनके साथ एक संयोग बडा बेहतर जुडा है। बताया कि मो.पैगंबर क्व वफात की तारीख को ही इनका भी वफात यानी मृत्यू हुई। उर्दू कैलेंडर के अनुसार तेरह रज्ज्ब। मृत्यू पश्चात इनको दफन किया गया और रोजा बनाया गया। इनके मुरीद बिहार, झारखंड, दिल्ली, युपी महाराष्ट्र में रहते हैं। इनका खानदानी सिलसिला बरेली शरीफ से जुडता है। बरेली शरीफ से ही उन्हें हकीमे मिल्लत का खिताब और मुरीद बनाने की खिलाफत भी मिली थी।

कई पुस्तकों के लेखक थे अनीसे बेकशां



                              फोटो- अनीसे बेकशां एवं अन्य का मजार 
साहित्य के अलावा हिकमत पर भी लिखी थी किताबें

 पुरानी शहर में खानकाह आलिया कादरिया अब्दालिया के तत्वावधान में हजरत सैय्यद शाह अनीस अहमद कादरी का 71 वां उर्स मनाया गया। उनको अनीसे बेकशां के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। इनके वंशज सबा कादरी ने बताया कि फारसी और उर्दू में हेयात सैयदना, अजकारे तैयबा, अनीसुलकलुब, कलाम ए रब्बानी, सफीन-ए-हयात, कशकोल, दिवाने अनीस नाम से किताबें लिखी हैं। इसके अलावा हिकमत यानी आयूर्वेद पर भी किताब लिखी। कई नुस्खे इजाद किया जिसे लाहौर के रिसाले अलहकीम एवं अल अतबा में प्रकाशित हुए हैं। पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज एवं बीपीएससी के सदस्य रहे सैयद बहाउद्दीन ने अपनी किताब गुलस्ताने हजार रंग में भी अनीस के शेर शामिल किए थे। जिस पर शिक्षा मंत्री अब्दुल कलाम आजाद ने प्रशंसा किया था। सबा ने बताया कि 847 हिजरी में सैयदना अमझरी बगदाद से भारत आये। ये सूफी संत थे। सिलसिला कादरिया का प्रचार भी किया। इनके खानदान में ही हिजरी 1300 में चार रज्जब को अनीस अहमद कादरी का जन्म हुआ। बडे होने पर अपने पिता और चाचा से तथा अमझर शरीफ में मदरसा कादरिया में सैयद शाह इसा कादरी से शिक्षा ग्रहण किया। हिकमत की शिक्षा दिल्ली जाकर हकीम अजमल खान से ली। शिक्षा पुरी करने के बाद खनकाह आए और तत्कालीन सज्जादानशीं गुलाम नजफ कादरी से मुरीद होकर खलिफा बन गए। नजफ कादरी के निधन के बाद खुद अनीस कादरी खनकाह के सज्जादानशीं हो गए। पुरी जिम्मेदारी से इस कार्य को निभाया। अपनी हिकमतगीरी से जनता को फायदा पहुंचाया। 63 साल की उम्र में चार रज्जब हिजरी 1364 को उनका इंतकाल हो गया। इस खानकाह के सज्जादानशीं  सज्जाद अहमद कादरी लोगों को अध्यात्मिक शिक्षा दे रहे हैं। मकसद है लोगों तक इंसानियत का पैगाम पहुंचाना। जहां तक और जब तक पहुंचे।


Wednesday 7 May 2014

90 के दशक में हुआ ‘अनुमण्डल संघर्ष समिति’ का गठन

अनुमंडल गठन की राजनीति-2

                            फोटो-अनुमंडल कार्यालय

अध्यक्ष बने रामबिलास सिंह
खास राजनीतिक जमातों ने किया विरोध
कई मंच हुए मांग को लेकर सक्रिय
उपेन्द्र कश्यप,
सन 1977 के विधानसभा चुनाव के बाद दाउदनगर को अनुमंडल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में ठहराव आ गया था। चुनाव खत्म राजनीति खत्म की प्रवृति तब भी थी। यह कोई नई बिमारी नहीं है। जैसा आज दिखता है वैसा ही पहले भी होता था। खैर..। ठहराव के बाद गति का आना नीयति भी है। पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह की मानें तो 1980 के विधानसभा चुनाव के बाद इस ठहराव को गति दी। श्री सिंह बाताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले 1981 में एक बैठक की। इसके पहले 1980 के विधान सभा चुनाव में वे लोकदल से ओबरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थे। तब जननायक कर्पूरी ठाकुर बतौर विरोधी दल के नेता बैठक में उपस्थित हुए थे। तब उनसे कहा गया था कि इसे अनुमंडल बनाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें। उत्कर्ष के अनुसार राजीव रंजन सिंह ( बाद में जिला पार्षद बने) ने जून 89 में भी एक बड़ा समारोह कन्या उच्च विद्यालय दाऊदनगर के परिसर में आयोजित किया। इसमें पूर्व विधायक ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध- विश्वविद्यालय के वीसी हरगोविंद सिंह और संभवतः तब कॉग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (बाद में मुख्यमंत्री) जगन्नाथ मिश्रा उपस्थित हुए। राजीव रंजन सिंह ने तब कहा था- राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी की वजह से दाऊदनगर अनुमण्डल नहीं बना और औरंगाबाद जिला बन गया। श्री मिश्रा ने तब साकारात्मक आश्वासन दिया था।
 जब विन्देश्वरी दूबे सन् 12 मार्च 1985 को मुख्यमंत्री बने तो 90 के दशक में आन्दोलन फिर शुरू हुआ। भाजपा नेता बीरेन्द्र सिंह (विधायक भी बने) ने भी अनुमण्डल बनाने के लिए प्रयास किया। बताया जाता है कि इन्होंने तीन तत्कालीन विधायकों से अनुशंसा ले ली थी। यानी प्रयास कई स्तर पर जारी था। इनके बाद-तत्कालीन विधायक रामबिलास सिंह की अध्यक्षता में अनुमण्डल संघर्ष समितिका गठन किया गया। तब श्री सिंह बडे कद्दावर नेता थे। समाजवादियों की अगली कतार में खडे। उम्मीद बढी तो दूसरी राजनीतिक जमातों ने इसका विरोध शुरू किया और रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाने का संघर्ष एक साथ शुरू किया ताकि मौके पर बारगेन कर एक को अनुमण्डल का दर्जा दिलाया जा सके। शायद तभी यह भावना बल पकड़ी कि औरंगाबाद जिला रेलवे लाइन के इस पार और उस पार में बंटा हुआ है। यह विभाजन भुगोल और मानसिकता दोनों स्तर पर यदा कदा दिखता रहा है। यह जुमला चर्चा पाता रहा कि कोई सांसद (औरंगाबाद का) रेलवे लाईन के इस पार यानी दक्षिण दिशा में विकास की चिंता नहीं करता।




Thursday 1 May 2014

गोह में राजद को मिली थी मामूली बढ़त



गोह में राजद को मिली थी मामूली बढ़त
: काराकाट लोकसभा क्षेत्र के गोह विधानसभा क्षेत्र में राजद को इस बार भी बढ़त की उम्मीद है। वर्ष 2009 के लोस चुनाव में इस क्षेत्र में उसे मात्र 91 वोट की बढ़त मिली थी। तब डा. कांति सिंह को 36,055 वोट मिले थे जबकि जदयू के महाबली सिंह को 35,964 मत प्राप्त हुए थे। तब कांग्रेस के अवधेश नारायण सिंह को 10,692 और अन्य को 13,395 मत मिले थे। कुल 96,106 मतदान हुआ था। 2014 के चुनाव में कुल 1,38,058 मत पड़े हैं। यानी कुल 41,952 मत अधिक है। अधिक मत पड़ने को अपने पक्ष में दल देख रहे हैं। राजद और भाजपा दोनों को इस बात की खुशफहमी है कि इसका उनको लाभ मिलेगा। 1हालांकि माना जा रहा है कि दोनों ही दलों के मतदाताओं ने गत चुनाव की अपेक्षा मतदान में अधिक सक्रियता दिखाई है। विधान सभा के 2010 के चुनाव में राजद को इससे अधिक मत मिले थे लेकिन तब वह दूसरे स्थान पर रह गई थी। तब जदयू के रणविजय सिंह को 47,369 मत और राजद के रामअयोध्या प्रसाद को 46675 मत यानी मात्र 694 मत कम मिला था। तब कुल 1,20,046 मत पड़े थे। अब समीकरण बदल गए हैं। जनता के लक्ष्य बदल गए हैं। दोनों को उम्मीदें हैं, परिणाम की प्रतिक्षा है। दूसरी तरफ राजद नेता राजेश कुमार उर्फ मंटू सिंह का कहना है कि राजद के जातीय समीकरण के साथ उनका स्वजातीय वोट और जदयू के आधार मतों में सेंधमारी का लाभ उन्हें मिलने जा रहा है। कहा कि सात हजार मत से आगे रहेंगे। भाजपा नेता अश्विनी कुमार तिवारी का कहना है कि भाजपा का आधार वोट, जातीय समीकरण. सभी जातियों से समर्थन के साथ नमो की लहर का लाभ मिलना तय है। कुंदन पांडेय, दीपक उपाध्याय, एवं धीरज चौहान का मत है कि भाजपा समर्थित रालोसपा प्रत्याशी अधिक मत से आगे रहेंगे। खैर प्रतीक्षा ही हम कर सकते हैं।