Tuesday 20 May 2014

नमो लहर में राजद छोड सबकी जमानत जब्त


नमो लहर में राजद छोड सबकी जमानत जब्त
सांसद रहे महाबली  की स्त्जिति और खराब
जमानत बचाने को चाहिए थे और 54945 मत
 नमो की ऐसी आंधी चली कि राजद को छोड दें तो किसी की जमानत नहीं बची। काराकाट लोकसभा चुनाव में राजद प्रत्याशी डा.कांति सिंह को छोडकर अन्य सभी 13 प्रत्याशियों की जमानत नहीं बच सकी। निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार चुनाव में पड़े कुल मतों का छठा भाग प्राप्त करने वाले उम्मीदवार की ही जमानत राशि लौटाई जाती है। यानी जमानत बचाने के लिए एक बटा छ: वोट चाहिए। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 789927 मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया था। इसमें से 131654 से उपर मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशियों की ही जमानत वापस हो सकती है। ऐसी स्थिति में राजद की कांति सिंह 233651 मत प्राप्त कर जमानत वापस पाने की हकदार बनी। जदयू के महाबली सिंह 76709 मत ही ला सके। उनको जमानत बचाने के लिए कम से कम और 54945 मत चाहिए था। बसपा के संजय केवट 45503 मत,  माले के राजाराम सिंह 32684 मत, निर्दलीय सत्यनारायण सिंह 9919 मत ही प्राप्त कर सके। सबकी जमानत जब्त हो गई। इनके अलावा राष्ट्र सेवा दल के प्रदीप जोशी, आप के गुलाब कुंदनम, जनवादी पार्टी की वीना भारती, बीएमपी के दिनेश कुमार, निर्दलीय भैरव दयाल सिंह, राम दयाल सिंह, दिलबास अंसारी, इमरान अली सहित अन्य की जमानत जब्त हो गई। मह्त्वपूर्ण यह भी है कि पांच प्रत्याशियों के अलावा अन्य दस प्रत्याशियों से अधिक 10185 मत नोटा को मिला। यानी इतने लोगों ने किसी को भी पसन्द नहीं किया।

भाकपा माले के लिए चुनौती बन रही है बसपा

लगातार कमजोर होता जा रहा प्रदर्शन
चौथे से पांचवे स्थान पर पहुच गई माले
उपेन्द्र कश्यप
 भाकपा माले का जनाधार संकट में है। काराकाट लोकसभा क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्र ओबरा और काराकाट में उसके विधायक रहे हैं। गरीब, दलित, मजदूर, लाचार वर्ग की राजनीति के बुते इसने यह उपलब्धी हासिल की थी। गत लोकसभा चुनाव में भाकपा माले से पूर्व विधायक राजाराम सिंह ही प्रत्याशी थे। तब उन्हें कुल 37493 मत प्राप्त हुए थे। इस बार मात्र 32684 मत ही यानी कुल 4809 मत कम। वहीं बसपा को गत चुनाव में जब प्रत्याशी उपेन्द्र शर्मा थे तो 32074 मत मिला था। इस बार जब संजय केवट आये तो 13429 मत अधिक मिला। कुल 45504 मत। कुल 15 प्रत्याशियों में बसपा चौथे स्थान पर आ गई जब कि 2009 के चुनाव में वह पांचवे स्थान पर थी। वहीं माले गत चुनाव में चौथे स्थान पर थी तो इस बार पांचवें स्थान पर आ गई। यह प्रदर्शन भाकपा माले द्वारा हाशिए की आबादी की राजनीति करने के दावे को कमतर करती है। उसका और बसपा का जातीय आधार लगभग एक ही है। क्या बसपा माले को ही हाशिए पर ढकेल देगी? यह स्थिति तब है जब बसपा कभी सक्रिय नहीं दिखती है। कम से कम ओबरा विधान सभा क्षेत्र में तो कभी नहीं दिखी है। यहां माले ही संघर्ष करती रही है। फिर भी माले से काफी पीछे नहीं है बसपा। माले को 10721 तो बसपा को 7679 मत मिला है। यह स्थिति क्यों आई? क्या बसपा का आधार वोटर ही उसे वोट दिए या अन्य भी? अगर सिर्फ जाति विशेष का वोट है तो क्या इस जाति विशेष में अपना प्रभाव पुरी तरह माले खो चुकी है? गत विधान सभा चुनाव में भी माले को 18461 मत मिला था और वह ओबरा विस क्षेत्र में तीसरे स्थान पर थी। तब बसपा को मात्र 1784 मत ही मिल सका था। यानी माले अपने इतिहास के सबसे कमजोर प्रदर्शन पर आकर ठिठक गई है। क्या वह इसका विश्लेषण करेगी कि ऐसी नौबत क्यों आई? 



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