Sunday 31 January 2021

पूर्व में आया है 04 बार अविश्वास प्रस्ताव : रोचक राजनीति और परिणाम जानिए



बिहार में नगर निकाय का चुनाव 1983 में होने के बाद 19 साल तक नहीं हुआ था। वर्ष 2002 में जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थी तो नगर निकायों का चुनाव शुरू हुआ था। तब तक दाउदनगर नगरपालिका के नाम से जाना जाता था और चुनाव के वक्त वह नगर पंचायत का नाम पाया। वर्ष 2002 से शुरू चुनावी राजनीति में शनिवार 30 जनवरी 2021 से पहले चार बार अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया जा चुका है। जब चुनाव हुआ तो सबसे पहले आयहां 2002 में नारायण प्रसाद तांती और रोहिणी नंदिनी क्रमश: चेयरमैन और वाइस चेयरमैन बने। तब नगर पंचायत में कुल 18 वार्ड पार्षद हुआ करते थे। अप्रैल 2005 में अविश्वास प्रस्ताव आया और नारायण प्रसाद तांती की सत्ता चली गई।  09 जून 2005 को चुनाव हुआ और सावित्री देवी चेयरमैन बन गई। तब रोहिणी नंदिनी लगातार 5 साल तक वाइस चेयरमैन की कुर्सी पर डटी रही। 09 जून 2007 को परमानंद प्रसाद चेयरमैन और अजय कुमार पांडे उर्फ सिद्धि पांडे वाइस चेयरमैन बने। जून 2009 में दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया। दोनों की सत्ता चली गई लेकिन फिर दोनों क्रमशः चेयरमैन और वायस चेयरमैन बने। 21 सितंबर 2011 को इनके खिलाफ फिर अविश्वास प्रस्ताव आया। दोनों मिल गए और नतीजा परिणाम को अपने पक्ष में लाने में सफल रहे। तब अविश्वास प्रस्ताव गिर गया और दोनों की कुर्सी पूर्ववत बची रही। फिर जब चुनाव हुआ तो 9 जून 12 को धर्मेंद्र कुमार चेयरमैन और कौशलेंद्र कुमार सिंह उप मुख्य पार्षद बने। सिर्फ धर्मेंद्र के खिलाफ जून 2014 में अविश्वास प्रस्ताव आया और यह पारित हुआ। तब 27 जून 14 को परमानंद प्रसाद पुनः मुख्य पार्षद बन गए और कौशलेंद्र कुमार सिंह बिना अविश्वास प्रस्ताव का सामना किये हुए ही दोनों के साथ उप मुख्यपार्षद बने रहे। दोनों ने अपना तय कार्यकाल पूरा किया।



मात्र दो मुख्य पार्षदों को अविश्वास से पड़ा है हटना :

अविश्वास प्रस्ताव को ले कुछ रोचक किस्से 

अप्रैल 2005 में अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ नारायण प्रसाद तांती के खिलाफ आया था जो तब चेयरमैन थे, लेकिन रोहिणी नंदनी जो वाइस चेयरमैन थी उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं आया था। अप्रैल 2005 से चेयरमैन बनी सावित्री देवी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव कभी नहीं आया। चूंकि अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 2 वर्ष का कार्यकाल का होना जरूरी है और यह भी शर्त है कि 5 साल की कार्य अवधि पूरी होने के 6 माह पहले तक अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है, 06 माह अवधि शेष रहने पर नहीं। इन दोनों शर्तों के कारण सावित्री देवी अविश्वास प्रस्ताव की राजनीति से बची रही। नारायण प्रसाद तांती के समय वाइस चेयरमैन रोहिणी नंदिनी को कभी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना ही नहीं पड़ा। वह श्री तांती के साथ सावित्री देवी के समय भी उप मुख्य पार्षद बनी रही। दो बार अविश्वास प्रस्ताव झेल चुके परमानंद प्रसाद और अजय कुमार पांडे उर्फ सिद्धि पांडे से जुड़ी घटनाएं सबसे रोचक रही हैं। दोनों के बीच टकराव भी रहा और दोनों अविश्वास प्रस्ताव की राजनीति में विजेता बनकर उभरते रहे। नारायण प्रसाद तांती के अलावा सिर्फ धर्मेंद्र कुमार ही ऐसे मुख्य पार्षद रहे जो अविश्वास प्रस्ताव से हटाए गए। दो दशक की इस राजनीतिक यात्रा में इन्हीं दो को अपनी कुर्सी अविश्वास प्रस्ताव के कारण गंवानी पड़ी , वरना रोहिणी नंदिनी तथा कौशलेंद्र कुमार सिंह को अविश्वास प्रस्ताव का सामना ही नहीं करना पड़ा। अजय कुमार पांडेय ने सामना दो बार किया और और दोनों बार विजेता बनकर निकले।



01 बनाम 04 के समर्थन की खूब चर्चा

30 जनवरी 21 को आये अविश्वास प्रस्ताव में एक रोचक घटना घटी जिसकी चर्चा और व्याख्या लोग अपने अपने तरीके से कर रहे हैं। मुख्य पार्षद को एक यानी सिर्फ स्वयं का तो उप मुख्य पार्षद को कुल 04 वार्ड पार्षदों का समर्थन मिला। यह बहुत कुछ कहता है। माना जा रहा है कि अंदरखाने भी आपस में असंतोष हो सकता है। लोग इसकी चर्चा चटखारे लेकर कर रहे हैं। विरोधियों या विपक्षियों का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मत मात्र मिला। दूसरे को चार मत मिलने का मतलब है कि आपसी तनाव हो सकता है, खुद को बचाने का एक पक्ष द्वारा अधिक प्रयास किया गया होगा।



विकास जो भी हुआ वह पूर्व बोर्ड का : कौशलेंद्र 


अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले पूर्व उप मुख्य पार्षद कौशलेंद्र कुमार सिंह ने परिणाम के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि विकास कार्य में यह बोर्ड असफल रहा था। विकास कार्यों में लूट और निर्माण कार्य में गुणवत्ता की खराबी के कारण जनाक्रोश काफी था। उन्होंने कहा कि जितने विकास कार्य हो रहे हैं वह सब पूर्व के बोर्ड का की देन है। नाला, सड़क का निर्माण हो, मुख्यमंत्री निश्चय योजना के तहत कार्य हो या बिजली पानी का मामला हो, सभी पूर्व में जो बोर्ड था उसके लिए गए निर्णय के आधार पर काम हो रहे हैं।

क्या पुलिस बड़ों का देती है साथ, कुछ करते हैं गलत काम, एसडीपीओ से जानिए


सामान्य जनता नहीं दुष्कर्मियों में पुलिस का हुआ है भय कम : राजकुमार तिवारी 

फोटो- एसडीपीओ राजकुमार तिवारी 


सब इंस्पेक्टर से एसडीपीओ के पद तक पहुंचे, 32 साल तक पुलिस सेवा में रहे दाउदनगर के एसडीपीओ राजकुमार तिवारी रविवार को सेवा निवृत्त हो गए। उनका स्पष्ट मानना है कि दुष्कर्मियों में पुलिस का भय कम हुआ है। पुलिस की सेवा तपस्या के स्तर पर होनी चाहिए। जनता सूचनाओं एवं व्यवहार का आदान प्रदान करेगी तभी अपराधों के निरोध में पुलिस को सहयोग मिलेगा। कुछ पुलिस अधिकारी भी गलती करते हैं। दैनिक जागरण संवाददाता उपेंद्र कश्यप ने विभिन्न मुद्दों पर उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है अंश…


प्रश्न:- पुलिस हमेशा बड़ों के साथ रहती है, कमजोर के साथ नहीं।

उत्तर- अधिकारी के व्यक्तित्व पर यह निर्भर है। अपराध होने के बाद तत्काल प्रतिक्रिया क्या रही। पुलिस को जो सूत्र प्राप्त है उस पर अनुसंधान को विस्तार किया गया कि नहीं। पुलिस पदाधिकारी निष्पक्ष होकर कार्य करता है तो मुझे नहीं लगता कि आरोप लग सकता है। वैसे समाज में कुछ पूर्वाग्रही लोग रहते हैं। उन पर कुछ नहीं कहना। वैसे लोग भी आरोप लगाते हैं जिनके विरुद्ध कभी पुलिस कार्रवाई की हुई होती है। कुछ पुलिस पदाधिकारी भी गलती करते हैं जो जनमानस में गहरे पैठ जाता है।


 प्रश्न -लगातार हत्या और लूट की घटनाएं बढ़ रही हैं ऐसा क्यों है। 

उत्तर-अपराधों को श्रेणियों में वर्गीकृत करने की जरूरत है। आदतन अपराधी द्वारा अपराध, संपत्ति मूलक अपराध, सुपारी के लिए योजना बनाकर हत्या, आपसी विवाद में हत्या। पुलिस पहले से संपत्ति मूलक, योजना और आपसी विवाद वाली हत्याओं पर नियंत्रण प्राप्त नहीं कर सकती, लेकिन आदतन होने वाले अपराध पुलिस के लिए चुनौती होती है। पुलिस सतत प्रयास करती है कि इस पर नियंत्रण पाया जाए। विगत वर्ष में नियंत्रण हुआ भी। मेरा मानना है कि अन्य कारणों से होने वाली हत्या में वृद्धि दिखती है, इसके लिए कई सामाजिक कारण है, जो बदलते परिवेश में इनकी वृद्धि में सहयोगी हैं। जहां तक गिरफ्तारी की बात है, पुलिस नामित, चिन्हित और वांछित अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए सतत प्रयास करते रहती हैं। प्रोवैबिलिटी सबसे महत्वपूर्ण होता है।



 प्रश्न- पुलिस का इकबाल खो गया है, इसलिए अपराध बढ़ रहे हैं और पुलिस पर लोग विश्वास नहीं कर रहे हैं।

 उत्तर -पुलिस की कार्यशैली में गिरफ्तारी महत्वपूर्ण है। एक पुलिस पदाधिकारी के प्रभाव को चिन्हित करने वाला यह तत्व है, यह कर्तव्य का अंश है। हालांकि अनुसंधान अपने आप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पुलिस अपराधियों के लिए बनी है और संज्ञेय अपराधों को परिभाषित करते हुए अधिकार दिया गया है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। संज्ञेय अपराधों को रोकने से पुलिस का कर्तव्य शुरू होता है। मेरा मानना है कि विगत वर्षों में पुलिस पदाधिकारियों द्वारा गिरफ्तारी उतनी प्रभाव नहीं रही है। यही कारण है कि सामान्य जनता नहीं सिर्फ दुष्कर्मियों में पुलिस का भय कम हुआ है। प्रश्न -32 वर्ष का अनुभव है, पुलिस के लिए क्या कहेंगे।

 उत्तर- कर्तव्य के दौरान जो जीवन भोगा है, उसके मुताबिक चिकित्सक और पुलिस दोनों की सेवा तप के धरातल पर आधारित है। पुलिस पदाधिकारी जब अपने कर्तव्यों के सौ प्रतिशत निर्वहन की स्थिति में होता है तो उसकी सेवा तपस्या के स्तर पर दिखाई पड़ती है। अपने कर्तव्य की अवधि में मैंने अनुसंधान के लिए बीहड़ों में समय गुजारा। कई ऐसे स्थान रहे जहां 3 से 4 दिन तक खाने, पीने, रहने की सुविधा नहीं थी। तब भी लखीसराय के अजय सिरोहा अपहरण कांड, सुमन वर्मा हत्याकांड, बैजनाथ खेमका अपहरण कांड, जिनोरिया बैंक डकैती कांड का अनुसंधान किया। अनुसंधान के दौरान यदि विश्राम कर लिया जाता तो वैसी सफलता नहीं मिलती जैसी मिली। 


प्रश्न -पुलिस और जनता के लिए संदेश।

उत्तर- संदेश है कि आप बिल्कुल व्यवसायिक और तप ले स्तर तक सेवा करने का माद्दा उत्पन्न करें तो जनता हाथों हाथ लेगी। पुलिस पदाधिकारी भी समाज के ही बीच के लोग होते हैं। वह आपकी सुरक्षा व सहयोग के लिए हैं। उनके साथ सूचनाओं एवं व्यवहार का आदान प्रदान करें ताकि अपराधियों के निरोध में पुलिस को सहयोग मिले। कई बार प्रशासन व सरकार के स्तर पर सूचनाओं को सही ढंग से नहीं लिया जाता है या कभी कारगर कार्रवाई नहीं हो पाती है लेकिन तब भी सूचना ही है जो अपराधों के निरोध में महत्वपूर्ण है। जैसे 2000 में राजधानी ट्रेन लूटने के लिए जुटे धावा पुल पर डकैतों के साथ मुठभेड़ के पश्चात उजागर हो गया था कि कुछ अपराधी व नक्सली राजधानी ट्रेन गिराने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन उस पर उनके स्थानांतरण के बाद किसी ने ध्यान नहीं दिया और बाद में राजधानी ट्रेन पलटने की घटना हुई।

Saturday 30 January 2021

किन कारणों से गिरी दाउदनगर नप की सत्ता

 


968 दिन में बाहरी व्यक्ति के हस्तक्षेप के कारण गंवानी पड़ी सत्ता 

सशक्त स्थाई समिति की राजनीति भी महत्वपूर्ण 

विकास कार्यों में मनमानी से शर्मसार हो रहे थे वार्ड पार्षद 

जन आक्रोश और जन दबाव भी सत्ता के विरुद्ध गोलबंदी का कारण 


उपेंद्र कश्यप । दाउदनगर (औरंगाबाद)

नगर परिषद की सत्ता गंवाने वाली मुख्य पार्षद सोनी देवी और उप मुख्य पार्षद पुष्पा देवी 9 जून 2018 को सत्ता हासिल करने में सफल रही थी। तमाम तरह के आरोपों, विवादों और चर्चाओं के बावजूद सत्ता चली आ रही थी। क्योंकि दो वर्ष का कानूनी लॉकिंग पीरियड रहता है। कायदे से 9 जून 2020 के बाद कभी भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था। पूर्व में कौशलेंद्र कुमार सिंह द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश भी की गई थी लेकिन सफलता नहीं मिली। अब 968 वें दिन उनको कामयाबी मिली और दोनों के हाथ से सत्ता चली गई। शहर में इस बात की चर्चा जोर शोर से है कि सत्ता गई तो क्यों गई। जबकि मुख्य पार्षद सोनी देवी के ससुर यमुना प्रसाद पूर्व में चेयरमैन रह चुके हैं और खुद बहुत ही प्रभावशाली और प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते हैं। एक अधिकारी के अनुसार नगर परिषद के कर्मचारियों और तमाम वार्ड पार्षदों द्वारा उन्हें काफी मान सम्मान दिया जाता रहा और उनकी प्रतिष्ठा का ख्याल रखता हुआ हर कोई दिखता था। सवाल है कि फिर भी सत्ता क्यों चली गई। नगर परिषद परिसर में शनिवार के दिन जो चर्चा रही उसके मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह बाहरी व्यक्तियों की दखल रही। बाहरी व्यक्तियों की मनमानी, रौबदार दखल, किसी भी वार्ड पार्षद को झिड़क देना, पार्षदों को कोई अपेक्षित सम्मान नहीं देना, कुछ पार्षदों के साथ अभद्रता के साथ पेश आना प्रमुख कारण बना। असंतोष की चिंगारी यहीं से राख के नीचे जमा होती गयी और अंततः विस्फोटक बन गया। नगर परिषद परिसर में हुई चर्चा के मुताबिक सशक्त स्थाई समिति के दो सदस्यों तारिक अनवर और सुमित्रा साव से मौखिक वादा किया गया था कि उन्हें ढ़ाई साल तक इस पद पर बने रहने दिया जाएगा, लेकिन करीब 2 महीना पूर्व दोनों को हटा दिया गया और इनकी जगह सीमन कुमारी और हसीना खातून को सशक्त स्थाई समिति का सदस्य बना दिया गया। महत्वपूर्ण है कि तारिक अनवर और उनकी मां शकीला बानो वार्ड पार्षद हैं। इस कारण उनकी ताकत किसी भी वार्ड पार्षद से दोगुणा है। सुमित्रा साव विपक्ष की राजनीति में उप मुख्य पार्षद संभावित है। इसलिए दोनों कौशलेंद्र सिंह के पाले में चले गए। अविश्वास प्रस्ताव पर हुआ मतदान यह बताता है कि सीमन कुमारी और हसीना खातून ने भी मुख्य पार्षद को अपना समर्थन नहीं दिया। संभव है दोनों ने उप मुख्य पार्षद को भी अपना समर्थन न दिया हो, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती, क्योंकि उप मुख्य पार्षद को चार मत जबकि मुख्य पार्षद को मात्र एक मत ही प्राप्त हुआ है। कुछ पार्षदों के अनुसार विकास कार्यों में मनमानी होती थी  विभागीय कार्य में लूट मचा हुआ था। एक वार्ड पार्षद ने बजाप्ता पचाकठवा सड़क का उदाहरण दिया। काम की गुणवत्ता खराब होने के कारण जनता में आक्रोश था। एक वार्ड पार्षद का कहना था कि जिस तरह से कार्य किए जा रहे थे और सोशल मीडिया से लेकर मौखिक बातचीत में जनता जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करती थी उससे पार्षदों को अपनी प्रतिष्ठा बचानी मुश्किल हो गई थी। संभव है यही कारण रहे हों कि मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद के विरुद्ध गोलबंदी इस हद तक हुई कि परिणाम देखकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं।



 दो मतपत्र अवैध का रहस्य क्या 

नगर परिषद में मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद दोनों के ही खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में 1-1 मतपत्र अवैध घोषित किए गए। यह मानना कठिन है कि यह अज्ञानता वश हुआ हो। चर्चा के अनुसार यह नफरत का परिणाम है। दोनों मतपत्र पर प्राप्त जानकारी के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में और विपक्ष में भी मत दिया गया, इस कारण दो मत रद्द घोषित हुआ। माना यह जा रहा है कि यह नफरत की वजह से हुआ और साथ रहते हुए भी साथ न देने का उदाहरण है।


 विकास जो भी हुआ वह पूर्व बोर्ड का : कौशलेंद्र 

अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले पूर्व उप मुख्य पार्षद कौशलेंद्र कुमार सिंह ने परिणाम के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि विकास कार्य में यह बोर्ड असफल रहा था। विकास कार्यों में लूट और निर्माण कार्य में गुणवत्ता की खराबी के कारण जनाक्रोश काफी था। उन्होंने कहा कि जितने विकास कार्य हो रहे हैं वह सब पूर्व के बोर्ड का की देन है। नाला, सड़क का निर्माण हो, मुख्यमंत्री निश्चय योजना के तहत कार्य हो या बिजली पानी का मामला हो, सभी पूर्व में जो बोर्ड था उसके लिए गए निर्णय के आधार पर काम हो रहे हैं।

चली गई नगर परिषद में मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद की कुर्सी

 

दोनों के विरुद्ध आया अविश्वास प्रस्ताव हुआ पारित 

मुख्य पार्षद को


एक तो उप मुख्य पार्षद को मिला 4 का समर्थन

27 सदस्यीय सदन में उपस्थित हुए मात्र 19 पार्षद 


नगर परिषद के मुख्य पार्षद सोनी देवी और उप मुख्य पार्षद पुष्पा देवी की कुर्सी चली गई। दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव शनिवार को पारित हो गया। जिला पदाधिकारी द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षक एसडीओ कुमारी अनुपम सिंह की देखरेख में कार्यपालक पदाधिकारी जमाल अख्तर की उपस्थिति में सदन की कार्यवाही 1:00 बजे शुरू हुई। वार्ड पार्षद बसंत कुमार के प्रस्ताव पर और अन्य वार्ड पार्षदों की सहमति से अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले कौशलेंद्र कुमार सिंह की अध्यक्षता में सदन की कार्यवाही हुई। अविश्वास प्रस्ताव में लगाए गए आरोप को अध्यक्ष सोनी देवी ने निराधार और बेबुनियाद बताते हुए खारिज कर दिया। मासिक बैठक ना बुलाए जाने के आरोप पर उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के कारण मासिक बैठक नियमित नहीं की जा सकी। इसके बाद कार्रवाई को आगे बढ़ाते हुए सबसे पहले मुख्य पार्षद के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ और फिर उप मुख्य पार्षद के विरुद्ध लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ। पर्यवेक्षक एसडीएम कुमारी अनुपम सिंह ने बताया कि मुख्य पार्षद को हटाए जाने के पक्ष में 17 और विपक्ष में एक मत पड़ा जबकि एक मत अवैध घोषित किया गया। इसी तरह उप मुख्य पार्षद पुष्पा देवी को हटाए जाने के पक्ष में 14 और विपक्ष में 4 मत पड़े। एक अवैध हुआ। बताया कि अध्यक्षता कर रहे कौशलेंद्र कुमार सिंह ने भी अपना एक दिया था।



27 में ये 19 वार्ड पार्षद रहे उपस्थित 

दाउदनगर नगर परिषद में कुल 27 वार्ड पार्षद हैं। मुख्य पार्षद सोनी देवी (18) और उप मुख्य पार्षद पुष्पा देवी (25) समेत मात्र 19 वार्ड पार्षद ही इस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर होने वाली बैठक में शामिल हुए। इसमें हसीना खातून (08), सुशीला देवी (14), रीना देवी (20), लीलावती देवी (17), ललिता देवी (16), ममता देवी (15), मीनू सिंह (12), सुमित्रा साव (09), सीमन कुमारी (02), बसंत कुमार (05), नंदकिशोर चौधरी (22), प्रमोद कुमार सिंह (11), राजू राम (07), सतीश कुमार (27), शकीला बानो (04) और कौशलेंद्र कुमार (24) उपस्थित रहे। कोष्ठक में वार्ड संख्या अंकित है।


अविश्वास व्यक्त करने वाली एक पार्षद अनुपस्थित 

मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद दोनों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले पत्र पर 12 वार्ड पार्षदों के हस्ताक्षर थे। जिसमें से वार्ड संख्या 01 की और सबसे वयोवृद्ध पार्षद जागेश्वरी देवी सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हुईं। वे अनुपस्थित रहीं। इनके अलावा सभी 11 पार्षद इस सदन में उपस्थित रहे।


टाइम लाइन

12.20 बजे कार से आये कौशलेंद्र कुमार सिंह एवं बसंत कुमार मास्क लगाए हुए।

( एक कर्मी का कमेंट- ना का बोलेंगे आज?)

12.26 बजे नारायण प्रसाद तांती तीन वार्ड पार्षद को लेकर परिसर में स्कॉर्पियो से आये

12.40 बजे एसआई अमरेंद्र कुमार के नेतृत्व में पहुंची पुलिस

12.55 में एसडीओ कुमारी अनुपम सिंह परिसर में आईं। 

1.00 बजे प्रधान सहायक राम इन्जोर तिवारी ने दरवाजे के बाहर तक जाकर एलान किया कि यदि कोई पार्षद हों, तो आ जाएं। कार्रवाही शुरू होने वाली है।

1.01 बजे सीमन कुमारी और हसीना खातून आईं। कुल 19 पार्षद सदन में उपस्थित हुए।

1.03 बजे एसडीओ कुमारी अनुपम सिंह ने कहा-लगातार वीडियोग्राफी करते रहना।

1.05 बजे सदन की कार्रवाई शुरू

1.15 बजे सीओ स्नेहलता देवी नप परिसर में आईं। 

2.20 बजे मुख्य पार्षद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित। मतपत्र सील की प्रक्रिया पूरी।

2.45 बजे उप मुख्य पार्षद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित, मतपत्र सील।



Friday 29 January 2021

अविश्वास की अनोखी दास्तां : 1+1 की संख्या जब 12 पर पड़ी भारी

21 सितंबर को हुई बैठक की तस्वीर जिसमें
अध्यक्षता कर रहे नारायाण प्रसाद तांती,
परमानंद प्रसाद और ईओ राजीव कुमार
दो बार अविश्वास प्रस्ताव झेल चुके परमानंद की कहानी

मुख्य पार्षद बनने के लिए एक बार लाया था अविश्वास

दांव ऐसा कि तब दंग रह गए थे राजनीतिक पंडित

शहर में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है नगर परिषद में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 12 वार्ड पार्षदों ने आवेदन दिया है नगर परिषद में कुल 27 वार्ड पार्षदों की संख्या है और सत्ता गिराने के लिए कम से कम 14 वोट चाहिए नप ने एक से एक खेल वर्ष 2002 से शुरू चुनाव के दौर में देखा है कई बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं सबसे दिलचस्प अविश्वास प्रस्ताव 2011 में 21 सितंबर को लाया गया था जब नगर पंचायत के मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद थे और उप मुख्य पार्षद अजय कुमार पांडे उर्फ सिद्धि पांडे दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया धर्मेंद्र कुमार को मुख्य पार्षद बनाने के लिए लामबंदी हुई 23 वार्ड वाले सदन में 12 वोट की जरूरत थी और अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सभी 12 हस्ताक्षर करने वाले वार्ड पार्षद एकजुट थे परमानंद प्रसाद और सिद्धि पांडे के पास अपनी कुर्सियां बचाए रखने के लिए कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था दोनों पक्षों से या 2 और वार्ड पार्षदों को तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन एक पाले में जहां 12 खड़े रहे वहीं दूसरे पाले में मात्र 11 ही डटे रहे कोई पक्ष फिर टूटा नहीं सदन में बैठक बुलाई गई तब कार्यपालक पदाधिकारी राजीव कुमार थे बैठक की कार्यवाही पूरी करने के लिए एक अध्यक्ष की जरूरत अनिवार्य तौर पर होती है 

तत्कालीन मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद

परमानंद प्रसाद और सिद्धि पांडे ने तर्क दिया कि दोनों आरोपित है दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया है, इसलिए वह अध्यक्षता नहीं कर सकते नतीजा यह हुआ कि अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले समूह से नारायण प्रसाद तांती को सभा का अध्यक्ष बनाया गया इसके लिए खुद परमानंद प्रसाद ने ही दांव चली, रणनीति बनाई और उन्हें काफी प्रेरित किया जब यह कुर्सी पर बैठ गए तो वोटिंग की प्रक्रिया शुरू हुई इधर परमानंद प्रसाद ने अपने समर्थक वार्ड पार्षदों को शहर से बाहर कर दिया था, ताकि वह किसी भी परिस्थिति में नगर पंचायत कार्यालय परिसर में उपस्थित तब तक ना हो सके, जब तक सदन की कार्रवाई चलती रहे हुआ भी यही, इनके खेमे का कोई वार्ड पार्षद सदन की कार्यवाही चलने तक नहीं आया वोटिंग हुई तो अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में मात्र 11 वोट पड़े और विपक्ष में दो अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए आवश्यक 12 वां वोट निर्णायक था, लेकिन नारायण प्रसाद को वोट देने से रोका गया 
तत्कालीन उप मुख्य पार्षद अजय कुमार पाण्डेय 

अंतिम क्षण में परमानंद ने नगर विकास एवं आवास विभाग द्वारा जारी एक पत्र सदन में रखा जिसमें कहा गया था कि अविश्वास प्रस्ताव की कार्यवाही सभा की अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति मतदान नहीं कर सकता
 यह बात अविश्वास प्रस्ताव लाने वालों को पता नहीं था और इसी ज्ञान का लाभ परमानंद प्रसाद ने लिया। अध्यक्ष व उपाध्यक्ष मात्र दो होकर 12 पर भारी पड़ गए सदन में अविश्वास प्रस्ताव गिर गया और दोनों की कुर्सी बच गई। हालांकि मामला न्यायलय तक गया, विरोध हुआ, किन्तु अतंत: वजेता बनकर उभरे परमानंद और सिद्धि। यहीं से कहावत निकली कि राजनीति में 01 और 01 दो नहीं बल्कि 11 भी हो जाते हैं। संख्या बल और विभागीय चिट्ठियों का इस्तेमाल कितना महत्वपूर्ण होता है यह ज्ञान और विवेक पर निर्भर करता है सिर्फ संख्या बल जुटा लेने से कोई सत्ता नहीं चल जाती है हालांकि बाद में नगर एवं आवास विभाग ने संशोधन किया और अध्यक्षता करने वाले शख्स को भी मताधिकार प्राप्त हो गया है

 

नगर परिषद में सत्ता का संघर्ष : शक्ति परीक्षण 30 जनवरी को, क्या-क्या हो सकता है

दैनिक जागरण में 30 जनवरी को
प्रकाशित उपेंद्र कश्यप की रिपोर्ट

14 पार्षदों के समर्थन की है दोनों पक्षों को आवश्यकता

बराबर की स्थिति में अध्यक्षता कर रहे व्यक्ति का मत निर्णायक

नगर परिषद में सत्ता संघर्ष का फलाफल शनिवार को निकलेगा। आज सदन में शक्ति परीक्षण होगा और किस के पाले में 14 वार्ड पार्षद हैं, यह स्पष्ट हो जाएगा। सत्ता जाएगी या बचेगी यह अविश्वास प्रस्ताव स्वीकृत या अस्वीकृत होने के साथ ही स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव को लेकर नियम क्या कहते हैं, यह जानने की जिज्ञासा भी शहरवासियों को है। दोनों पक्ष तकनीकी तौर पर दस्तावेजों के साथ मजबूत होने की कोशिश करेंगे क्योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है। सबसे ज्यादा रोचक स्थिति तब होगी जब किसी की अनुपस्थिति के कारण वोट की संख्या दोनों पक्षों को बराबर बराबर हो जाती है। ऐसी स्थिति में ही अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और यह अध्यक्ष स्वाभाविक तौर पर अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले समूह का होता है। वर्ष 2002 में नगर निकाय का चुनाव शुरू होने के बाद से 3 बार अविश्वास प्रस्ताव में शामिल रहे पूर्व वार्ड पार्षद रामअवतार चौधरी से इस संबंध में दैनिक जागरण ने बातचीत की। नगर परिषद में 27 वार्ड पार्षद हैं और 14 का जादुई आंकड़ा दोनों पक्षों को सफल होने के लिए जरूरी है। जिसके पास यह संख्या होगी वह सफल होगा। श्री चौधरी के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बैठक में सदन में चाहे जितने वार्ड पार्षद उपस्थित हों मतदान होना नितांत आवश्यक है। अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले समूह का वार्ड पार्षद अध्यक्षता कर सकता है। अगर उसे 14 वोट मिल गए तो अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाएगा। किसी कारणवश यदि कोई सदस्य उपस्थित नहीं रहा और सदन में दोनों पक्षों को बराबर बराबर मत मिले तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? हालांकि कौशलेंद्र सिंह कहते हैं कि यह कतई संभव नहीं कि कभी एक समान मत दोनों पक्षों को मिले। गुरुवार को नगर परिषद परिसर में अनौपचारिक बातचीत में तीन मुद्दे उठे। सदन की अध्यक्षता कर रहा व्यक्ति वोट देगा या नहीं देगा और दोनों पक्षों को बराबर वोट मिलने की स्थिति में क्या वह एक और वोट निर्णायक के रूप में देगा? इस पर लंबी मंत्रणा हुई।

फोटो-राम औतार चौधरी
पूर्व वार्ड पार्षद राम औतार चौधरी

वार्ड पार्षद रहे रामअवतार चौधरी हाईकोर्ट का फैसला दिखाते हुए बताते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बैठक में अध्यक्षता कर रहा वार्ड पार्षद सदस्य के रूप में वोट तो देगा ही, वह निर्णायक वोट भी दे सकता है। नियमावली पुस्तिका में 51 (2) में कहा गया है कि अध्यक्षता कर रहे व्यक्ति को भी मत बराबर होने की स्थिति में, निर्णायक मत होगा और इसका वह प्रयोग कर सकेगा। श्री चौधरी कहते हैं कि इसकी व्यख्या करते हुए हाई कोर्ट ने नवीनगर से जुड़े मामले सीडब्ल्यूजेसी नम्बर-9843/2011 में फैसला जो दिया था उसमें व्यस्था दी है कि अध्यक्ष दो वोट करेगा। एक बैलेट बॉक्स में जायेगा और दूसरा लिफाफा में सीलबंद रहेगा। जिसका इस्तेमाल दोनों पक्ष में एक समान मत पड़ने पर होगा। इनके अनुसार यह इसलिए है ताकि पूर्व से तय विचार में अध्यक्षता कर रहा व्यक्ति समान मत होने की स्थिति में अपना विचार न बदल सके। 

अध्यक्षता करेंगे कौशलेंद्र सिंह

नगर परिषद में अविश्वास प्रस्ताव के लिए होने वाली शनिवार की बैठक की अध्यक्षता कौशलेंद्र सिंह कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार किसी तरह की कोई गड़बड़ी न हो सके इसलिए स्वयं वे ही अध्यक्षता कर सकते हैं। उन्होंने ही अपने समेत 12 वार्ड पार्षदों के हस्ताक्षर से बैठक बुलाने की मांग कर रखी है। 

 

नगर की सत्ता बचाने और गिराने को लेकर घमासान

 



फोटो- नगर परिषद कार्यालय दाउदनगर 

12 वार्ड पार्षदों ने की थी अध्यपेक्षा पर बैठक बुलाने की मांग 

30 जनवरी को अविश्वास प्रस्ताव को लेकर होगी बैठक 

07 वार्ड पार्षदों को निबंधित डाक से दी गई है सूचना

02नों पक्षों द्वारा बनाई जा रही है जीतने की रणनीति 

दाउदनगर नगर परिषद में अध्यपेक्षा पर 30 जनवरी को बैठक बुलाई गई है। इस दिन 12 वार्ड पार्षदों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर फैसला होगा। सत्ता बचेगी या जाएगी, यह इसी दिन तय होगा। इसके लिए दोनों पक्षों द्वारा रणनीति बनाई जा रही है। घमासान मचा हुआ है। जोड़-तोड़ के तमाम तरीके अपनाए जा रहे हैं। अपने पाले में अधिक से अधिक वार्ड पार्षदों को रखने के लिए तमाम तरह की अपेक्षित और अनपेक्षित कोशिश की जा रही है, जिसे साम, दाम, दंड, भेद की नीति कहा जाता है। पूर्व उप मुख्य पार्षद और वर्तमान में वार्ड पार्षद कौशलेंद्र कुमार सिंह द्वारा कुल 12 पार्षदों के हस्ताक्षर से आवेदन देकर अध्यपेक्षा पर विशेष बैठक बुलाने की मांग की गई थी। मुख्य पार्षद सोनी देवी द्वारा 30 जनवरी की तिथि इज़के लिए निर्धारित की गई है। इसमें यह फैसला होगा कि दोनों पक्ष में कौन कितना मजबूत है और सत्ता बचाने और गिराने के इस खेल में कौन सफल होता है कौन असफल। नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी जमाल अख्तर द्वारा वार्ड पार्षदों को बैठक की सूचना जारी कर दी गई है, लेकिन खास बात यह रही कि 7 वार्ड पार्षद घर से लापता मिले जो नोटिस नहीं ले सके। इसके बाद नगर परिषद द्वारा उन्हें पहली बार निबंधित डाक से सूचना भेजी गई है। जानकारी के अनुसार एक पार्षद ने सूचना पत्र नहीं लिया, और वह वापस नप को आ गया। शहर को 30 जनवरी दिन शनिवार की बेसब्री से प्रतीक्षा है।

डीएम को इओ ने लिखा पत्र

नप के कार्यपालक पदाधिकारी जमाल अख्तर ने जिला पदाधिकारी को पत्र लिखकर पर्यवेक्षक प्रतिनियुक्त करने की मांग की है। उनके द्वारा प्रतिनियुक्त पर्यवेक्षक की देखरेख में अध्यपेक्षा कई बैठक की जाएगी, जिसके लिए अपराह्न एक बजे बैठक बुलाई गई है।

हैं 27 वार्ड पार्षद, दावा दोनों का 14 से अधिक का

दाउदनगर नगर परिषद में कुल 27 वार्ड पार्षद हैं। सत्ता गिराने, बचाने और फिर से बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 14 वार्ड पार्षदों का है। स्थिति यह है कि दोनों पक्ष 14 से अधिक वार्ड पार्षद अपने पाले में होने का दावा कर रहे हैं।  सदन में जब जोर आजमाइश होगा तब पता चलेगा कि किस के पाले में 14 से कम है या किस के पाले में 14 से अधिक। 

जश्न मना रहे 15 वार्ड पार्षद 

शहर में चर्चा है कि 8 वार्ड पार्षदों का एक समूह जश्न मनाने गया हुआ है और वह सदन में शामिल होने के वक्त उपस्थित होंगे। जबकि सात पार्षद जो लापता बताए जाते हैं वह भी कहीं ना कहीं जश्न मनाने गए हुए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 में बिहार सरकार ने एक योजना बनाई थी कि 15-15 वार्ड पार्षदों का समूह बनाकर उनको दूसरे प्रदेश में सरकारी खर्च पर टूर के लिए भेजा जाएगा ताकि वे महानगरों के विकास कार्य को देखकर समझ सके, प्रेरित हो सकें। दाउदनगर नगर परिषद द्वारा पार्षदों की सूची भेजी गई थी, लेकिन सरकार ने पार्षदों को बाहर विकास कार्य देखने के लिए नहीं भेजा। अब आई 08 और 07 पार्षदों के दो समूह में 15 वार्ड पार्षद जश्न मनाने बाहर गए हुए हैं ऐसी चर्चा है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती।

लगाया गया है यह आरोप

मुख्य पार्षद एवं उप मुख्य पार्षद पर अपने कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही एवं मनमानी करने, नगरपालिका अधिनियम 2007 और बिहार नगरपालिका हस्तक के अनुसार बोर्ड की मासिक बैठक नहीं बुलाने, विकास कार्यों में मनमानी करने, राज्य सरकार के आदेश के प्रतिकूल विकास कार्यों का कार्य करने, पार्षदों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करने, वार्डों में समुचित साफ-सफाई के प्रति उदासीन रवैया अपनाने, आम जनता द्वारा दिए गए आवेदनों की अनदेखी करने, आवश्यक कार्यों में रुचि नहीं लेने और नगर पालिका के कार्यों का समुचित पर्यवेक्षण नहीं करने का आरोप लगाया गया है।

आवेदन पर इन 12 पार्षदों के हस्ताक्षर 

अध्यपेक्षा पर बैठक बुलाने के लिए दिए गए आवेदन पर नगर परिषद के 12 वार्ड पार्षदों द्वारा हस्ताक्षर किया गया है। इसमें बैठक की मांग करने वाले वार्ड पार्षद कौशलेंद्र कुमार सिंह (24), उनकी पत्नी मीनू सिंह (12), ललिता देवी (16), प्रमोद कुमार सिंह (11), सुमित्रा साव (9), जगेश्वरी देवी (01) लीलावती देवी (17), बसंत कुमार (05), सतीश कुमार (27), रीना देवी (20), तारीक अनवर (03) एवं इनकी मां शकीला बानो (04) ने हस्ताक्षर किया है। कोष्ठक में वार्ड पार्षदों से संबंधित वार्ड संख्या दर्ज है।

150 करोड़ रुपये चाहिए नहरों के जीर्णोद्धार के लिए

30 लाख रुपए लगभग प्रति किलोमीटर पक्की करण पर खर्च 

20 करोड़ सिर्फ माली लाइन में खर्च होने का अनुमान

सिंचाई प्रमंडल दाउदनगर के नहरों की स्थिति बदतर 

उपेंद्र कश्यप । दाउदनगर (औरंगाबाद)

इंद्रपुरी बराज से निकले पूर्वी मुख्य पटना कैनाल में प्रारंभिक बिंदु से लेकर 57.6 किलोमीटर दूर वलीदाद तक का पूरा इलाका दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल के अंतर्गत आता है। 13 सितंबर 1872 को इस कैनाल का उद्घाटन हुआ था। इससे करीब एक दर्जन शाखा नहरें निकली हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब 300 किलोमीटर लंबी छोटी-बड़ी नैहरें फैली हुई है। नहरों के इस जाल को बीते सवा सौ बरस में कभी भी न तो मरम्मत किया गया है और ना ही पक्की करण किया गया, जबकि करोड़ों रुपए नहरों के सुदृढ़ीकरण की योजना पर खर्च हो चुके हैं। आज स्थिति यह है कि पटना मुख्य केनाल हो या इससे निकली शाखा नहरे, दोनों के तटबंध जर्जर हैं। कहीं-कहीं तो लगता है कि तटबंध है ही नहीं। बस जैसे-तैसे काम किया जा रहा है ताकि पटवन का काम हो सके और किसान अन्न उपजा सके। वस्तु स्थिति यह है कि नहरों की बदतर स्थिति पर काम नहीं हो रहा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रति किलोमीटर नहरों के पक्कीकरण पर करीब 30 लाख रुपये का खर्च आएगा। इस हिसाब से सिर्फ पक्की करण पर ही 90 करोड़ रुपये खर्च अनुमानित है। नहरों के संचालन के लिए जो आधारभूत संरचनाएं तैयार की गई है वह भी खस्ताहाल है। उनके भी मरम्मत किए जाने की जरूरत है। अगर इसका भी खर्च जोड़ें तो करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। यदि बिहार सरकार डेढ़ सौ करोड़ रुपए दाउदनगर प्रमंडल को नहरों के जीर्णोद्धार के लिए दे दे तो नहरों के तेल एंड तक पानी पहुंचाने समेत कई लाभ होंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार नहरों का पक्कीकरण किया जाना, तटबंध का मरम्मत किया जाना और अन्य आधारभूत संरचनाओं के मरम्मत किए जाने की आवश्यकता है। सरकार ने हर खेत को पानी योजना को अपने सात निश्चय में प्राथमिकता में रखा है, लेकिन सरकार जब पैसे ही नहीं देगी तो कुछ भी होना संभव नहीं है।


 छोटी बड़ी नहर नाम               लंबाई 

पूर्वी मुख्य केनाल  बारुण से वालिदाद तक 57.6 किलोमीटर 

कोचहासा लाइन              35.2 किलोमीटर

माली लाइन                 41.6 किलोमीटर 

अंछा फीडर                    07.04 किलोमीटर

तुतुरखी                         12.8 किलोमीटर 

चंदा लाइन                     18 किलोमीटर 

तेजपूरा फीडर                 05 किलोमीटर

तेलडीहा लाइन                05.5 किलोमीटर

मनोरा लाइन                   21 किलोमीटर 

इमामगंज लाइन         22.4 किलोमीटर

अनपरा                         20.8 किलोमीटर 

(इसके अलावा भी कई छोटी नहर हैं।)


क्या होगा अगर खर्च हो डेढ़ सौ करोड़ 

सिंचाई प्रमंडल कार्यालय के कार्यपालक अभियंता रामप्रवेश सिंह एवं सहायक अभियंता राकेश रंजन के अनुसार यदि डेढ़ सौ करोड़ रुपए सरकार दाउदनगर सिंचाई प्रमंडल को नहरों के जीर्णोद्धार कार्य के लिए दे और पक्की करण एवं मरम्मत का काम हो जाए तो कई लाभ मिलेंगे। जैसे पानी की क्षति कम होगी। छोटी बड़ी नहरों के टेल एंड तक पानी पहुंच सकेगा जो अभी कई बार नहीं पहुंच पाता है। अवैध आउटलेट सारे खत्म हो जाएंगे। मछली मारने और जानवर धोने के लिए नहरों के जो तटबंध ग्रामीण द्वारा तोड़े जाते हैं, उनका टूटना बंद हो जाएगा और सबसे बड़ी बात अंग्रेजों के बनाए नहर प्रणाली में पहली बार भारतीयों का योगदान भी शामिल हो जाएगा।

नहरों के उद्धार के लिए विधायक ने उठाया बीड़ा 


विधायक ऋषि कुमार ने बुधवार को शाखा नहर का सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया। उन्होंने दैनिक जागरण से बताया कि उन्होंने नहरों के पक्कीकरण और मरम्मत कराने का बीड़ा उठाया है। सरकार की एक अच्छी योजना है हर खेत को पानी इसलिए हम चाहेंगे कि ओबरा विधानसभा क्षेत्र में सबसे पहले यह काम हो। उन्होंने कहा कि 125 वर्ष पूर्व अंग्रेजों ने जो नहर बनाया था वह जर्जर हो चुका है। अब जरूरत है कि हम हिंदुस्तानी इसे बनाएं ताकि किसानों को लाभ मिले और हर खेत पर पानी उपलब्ध हो सके।