Monday 29 May 2017

कट्टरतावाद के खिलाफ मुमताज नसीम का साहित्य


आतंकवादियों, अलागावावादियों को दिया सन्देश

फतवाबाजों को सरस्वती वन्दना से सीखाया सबक
दैनिक जागरण द्वारा रविवार को आयोजित अखिल भारतीय कवी सम्मलेन में मुमताज नसीम ने संप्रदायवाद, आतंकवाद, फतवावाद, अलगाववाद, कट्टरवाद के खिलाफ सख्त सन्देश दिया| समारोह का आगाज संचालक मनवीर मधुर ने उनसे सरस्वती वन्दना के साथ कराया| जिस देश में साम्प्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता का आडम्बर रचा जाता हो, देश के प्रमुख पद पर बैठा शख्स दीपा प्रज्ज्वलित करने से यह कह कर इनकार कर देता हो की ऐसा करना हमारे मजहब में नहीं है, रोज हवा में जहर घोले जाते हों, वैसे माहौल में नसीम ने वन्दना –हे सरस्वती माँ-पढी- तेरे चरणों में अर्पण मेरे दो जहां, मैं तो हर पल तुम्हारी ही दासी रहे, याद कर के तुम्हे ना उदासी रही| जब यह वन्दना वह कर रही थीं, दर्शक श्रोता दीर्घा में बैठे एक ने टिप्पणी की-फतवा जारी कर देगा सब| यह टिप्पणी बताता है कि हम कैसे अविश्वास के माहौल में रह रहे हैं| साहित्य ही इसे बदल सकता है| यह नसीम ने खूब बताया|
 जब वे मंच पर दुबारा पढ़ने आयीं तो पाकिस्तान में सुना चुकी अपनी मशहूर नज्म पढ़ा| इसमें उन्होंने ने साफ़ साफ़ लफ्जों में बहुत सख्त सन्देश दिया है| कहा-भाई से भाई क्या होता है हक़ भूल गए, तुम तो इस्लाम की अस्मत का सबक भूल गए| .., क़त्ल करना तो सीखाता नहीं मजहब अपना, राह ऐसी तो दिखाता नहीं मजहब अपना, अपने मजहब में तो जायज नहीं दहशतगर्दी, नौजवानों को गलत काम सीखाते क्यूं हो, और बेसबब भाई को भाई से लड़ाते क्यूं हो? काश! मुमताज नसीम के सन्देश मजहब के ठेकेदार सुन कर अमल कर लेते|

समाज की तरह साहित्य में भी है पतन-अरुण जेमिनी

जीवन से ही निकलता है चुटकुला
एक नहीं दोनों तरफ है असहिष्णुता

समाज की तरह ही साहित्य के क्षेत्र में भी पतन हुआ है| साहित्य समाज का ही दर्पण है| राजनीति, समाज में जितना पतन हुआ है उतना ही पतन साहित्य में भी हुआ है| यह बात हास्य व्यग्य के मशहूर कवि अरुण जेमिनी ने औरंगाबाद में एक साक्षात्कार में कही| उन्होंने कहा कि साहित्य में संवेदना, भावना, करुणा समाप्त हुआ है| दूसरे के दुःख दर्द को समझने की शक्ति ख़त्म हो रही है| आक्रामकता बढ़ी है| पहले पत्र पत्रिकाओं में साहित्य छपते थे| वे बंद हो गए| इससे संवेदना समाप्त हुई| प्रेमचंद को पढ़ते हुए गाँव व ग्रामीण को समझाने का सलीका प्राप्त हिता था| एक प्रश्न के जवाब में कहा कि चुटकुला जीवन से ही निकलता है| कहीं बाहर से नहीं आते| उसके मारक क्षमता अधिक होती है| जो बात दो पंक्ति में कह दी जाती है वह पूरी कविता में नहीं कह पाते हैं| लेकिन कविता में चुटकुला होनी चाहिए, चुटकुला में कविता नही| उन्होंने असहिष्णुता के मुद्दे पर कहा कि यह दोनों तरफ है| एकतरफा नहीं है| अपना विरोध राष्ट्रवादी और दूसरे का विरोध राश्तार्विरोधी है, यह नहीं चलेगा|

प्रमुख रस हास्य को साहित्य ने नहीं स्वीकारा-शंभू शिखर
मंच का हास्य समाज जितना बढ़ा
रिश्तों में आया है एकाकीपन

मधुबनी पेंटिंग की तरह हास्य कवि के रूप में मशहूर शंभू शिखर ने कहा कि नौ रस में हास्य रस  प्रमुख है, किन्तु इसे साहित्य ने कभी भी स्वीकार नहीं किया| कहा कि पहले के मंचों पर 20 कवि में एक हास्य का कवि शामिल होता था, अब वे मंच पर प्रमुख बन गए हैं| इसके वजह बताया- पहले आपस में बातचीत होती थी| लोग ठहाके लगाते थे| अब ऐसी स्थिति नहीं है| रिश्तों में एकाकीपन आया है| घर में मिट्टी के बर्तन इसलिए नहीं होते थे कि खाना स्वादिष्ट बनता था| बल्कि इससे उन्हें संभालने का सलीका आता था| मिट्टी के बर्तन गए तो घर से रिश्ते संभालने का शऊर भी चला गया| आज इसीलिए हास्य कवियों की आवश्यकता भी है और मांग भी| एक साक्षात्कार में इन्होने कहा कि काका हाथरसी के बाद मंच उतना ही बढ़ा है जितना समाज आगे बढ़ा है| कहा कि आज सामाजिक, राजनीतिक परिवेश बदल गए है, भाषा और शब्द बदल गए हैं| पूर्व के कई शब्द, यथा जाती सूचक शब्द का इस्तेमाल नहीं करा सकते, जैसे काका किया करते थे| कहा कि नेता खुद को ही व्यग्यकार घोषित कर रहे हैं ऐसे में कवि के पास संकट है| वह किस पर लिखे| पहले लंबी कविता के अंत में हास्य होता था अब हास्य के साथ साथ कविता चलती है|   

व्यवसायिकता नहीं थी तो साधक स्टार थे-मनवीर मधुर

मंचीय प्रस्तुति में आलोचक होता है सामने

दैनिक जागरण के अखिल भारतीय कवि सम्मलेन में आये वीर रस के ओजस्वी कवि मनवीर मधुर ने बातचीत में कहा कि जब तक व्यवसायिकता नहीं थी तब तक साहित्य साधना का क्षेत्र था| साधक ही स्टार प्रचारक थे| अब व्यवसायिकता के कारण अवसरवादी और व्यापारी आ गए| दूसरी बात कि जब हल्की-फुल्की बात करने से ही वाहवाही मिलाती है तो फिर गंभीर काम करने या बनने का क्या मतलब| कहा कि बक्त बदला है, लाफ्टर चैनलों के बाद परिस्थिति बदली है| मंच पर प्रस्तुति एक कला है और प्रस्तुत क्या करना है यह कवि तय करता है| कहा कि मंचीय प्रस्तुति में आलोचक सामने होता है और लेखन एन आलोचक प्रतिक्रिया नहीं कर पाता है| मंच कवि और श्रोता के बीच आँख मिलाने का काम करता है| कहा कविता पैदा होती है, रची नहीं जाती| कवि जन्मना होता है| हास्य में नया काम करने वाले भी हैं और कट-पेस्ट करने वाले भी|



मंच पर हर काम के अंक मिलते है-मुमताज नसीम


हिन्दुस्तानी जुबान में शायरी अधिक ग्रहणीय


श्रृंगार रस की शायरा मुमताज नसीम का कहना है कि मंच कंपलीट ड्रामा है| एक पैकेज है, जहां हर काम के लिए अंक मिलते हैं| यह आवश्यक नहीं कि अच्छा लेखक भी मंच लूट ले|  मंच लूटने के कला अलग है| अच्छा लिखने वाले के पास यदि मंच लूटने की कला है तो यह उनका एडवान्टेज है| कहा कि मुझसे अच्छा लिखने वाले बहुत हैं किन्तु मंच का सामना नहीं कर पाते| सामने बैठे दर्शक श्रोता को बाँध नहीं पाते| कहा कि उर्दू शायरी में ख्वातीनों की संख्या कम नहीं है| किन्तु मंच के अनुसार ढल नहीं पाते हैं| वह चमक सबमें नहीं होती| इसलिए उसकी संख्या अधिक है| कहा कि हिन्दुस्तानी जुबान में शायरी करनी चाहिए| सहज शब्द का चयन हो, ताकि सभी समझ सकें| हिन्दी में भी कठिन लिखने वाले जम नहीं पाते| किसी जुबान का मजहब से कोइ मतलब नहीं होता| गलत सही करने वाले सब जानते हैं किन्तु अपने स्वार्थ के कारण गलत करते हैं और बहाना बनाते हैं| कहा कि पुरुष सत्तात्मक समाज है| कहा कि चयन बहुत मायने रखता है| कभी कभी चयन गलत हो जाता है तो खामियाजा भुगतना पड़ता है|           

गाछे कटहल, ओठे तेल| ढेरों मूंह से टपक रहा लार !

राजनीति गरमाई हुई सी है| पटना से लेकर दिल्ली तक| कुछ भी बदलाव होगा तो बड़ी आबादी प्रभावित होगी| एक हिस्सा दुष्प्रभावित भी होगी| यह प्रकृति का नियम है-जब एक प्रभावित होगा तो दूसरे पर नकारात्मक प्रभाव पडेगा ही पडेगा| नाश्ता से कभी भूचाल आ जा रहा है, कभी बयान से| बड़ी अबादी को उम्मीद बदलाव की है| जब तब बदलते राजनीतिक हालात में लोगों की उम्मीद कभी परवान चढ़ती दिखती है कभी टूटती हुई और फिर एक बार पूरी होती हुई दिखती है| बिहार में जिस नेता के इर्द गिर्द दो दशक से राजनीति घूम रही है, वे अक्सर कहते हैं- गाछे कटहल, ओठे तेल| हिंदी पट्टी में प्रचलित यह कहावत वास्तव में बंगाली कहावत है| इन दिनो बिहार में यह चरितार्थ हो रही है। जिला की एक बड़ी आबादी को इसकी उम्मीद है कि मौसम के साथ जिस तरह राजनीति का मिजाज बदल रहा है उससे उनकी उम्मीदें पूरी हो सकती हैं| उम्मीद है बदलाव की| पुनर्मुसिको भव: की| आम लोग और दो दलों से जुड़े लोग चाहते हैं कि बदलाव हो जाए| एक दल विशेष चाहता है कि बिहार में यथास्थिति बनी रहे| वरना बदलाव हुआ तो पुन: शक्ति खो जायेगी| शून्य में चले जाने का डर उन्हें सता रहा है| कई लोग बेचारे संबंधों और समीकरणों की वजह से उम्मीद पाले बैठे थे कि उन्हें लाल बत्ती मिल जायेगी| केंद्र ने ऐसी व्यवस्था बदली कि अब लाल बत्ती तो नहीं ही मिलेगी, दिमाग की बत्ती भी कभी जलती है कभी गुल हो जाती है| दूसरा पक्ष चाहता है कि अब मलाई काटने का अवसर नहीं मिल रहा है उसे बदलाव से हासिल किया जा सकता है| एक पक्ष है जो कसमसा रहा है कि साथी के बदलने से पूर्व वाली न पूछ रहा गयी है न महत्व रह गया है| बदला हुआ साथी बर्चस्व बना लिया है| इससे उनके सम्मान व स्वाभिमान को चोट लग रही है|
जिला में सधी जुबान से लोग बयान भी दे रहे हैं और व्यवहार भी कर रहे हैं| राजनीति बिना अंतर्विरोध के नहीं होती| कुछ लोगों को बयान या व्यवहार से कोइ मतलब नहीं| उन्हें तो बस जब जैसा तब तैसा वाला रवैया है|
खैर, मोदी-योगी राज में गाय, गाय खूब हो रहा है| गो रक्षक गुंडई कर रहे है और बयान से आगे काररवाई दिखती नहीं है| सवाल तो यह है कि यह मुद्दा कहाँ ले जाएगा हमें? क्या यह मुद्दा भी है? विचार करिएगा| सवाल कईयों को असहिष्णु बना देगा|


और अंत में, राजनीति पर सत्यप्रसन्न का ज्ञान-

करवट ली है वक्त ने, रही न अब वो बात।
जीत रहे खरगोश अब, कछुए खातॆ मात॥
गठबंधन तो हो गया, पर रिश्ते बेमेल।
चली छोड़कर पटरियां, सम्बंधों की रेल॥
कल तक जो हरते रहे, संविधान की चीर।
वो फिर लिखने जा रहे , हम सबकी तकदीर॥


Wednesday 24 May 2017

अचल संपत्ति को ले संघर्ष का गवाह है देवकुंड

भूमि संघर्ष को ले हो चुकी है चार हत्या
मारे गए है दो महंत और दो कर्मचारी
शान्ति की और लौट सकेगा अब देवकुंड ?
कई ऐतिहासिक व धार्मिक कारणों से प्रख्यात देवकुंड की चर्चा जमीन को ले संघर्ष के कारण भी खूब रही है। अब तक चार हत्या हो चुकी है जिसमें दो महंत भी शामिल हैं। बिहार में जमीन को ले खूनी संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। इसमें मठ मन्दिर भी शामिल रहे हैं। बेनामी संपत्तियां मठों मन्दिरों के भगवानों के नाम खूब लिखे गये जब राज्य में सिलिंग एक्ट लागू हुआ था। इससे इतर देवकुन्ड के पास काफी जमीन रही है। इसे लेकर यहां लंबा संघर्ष चला है। खूनी लडाइयां हुई। जमीन को ले जब बंगाल के नक्सलबाडी का आन्दोलन प्रारंभ हुआ था तो यहां भी उसका प्रभाव पैर जमाने लगा। असंतोष को हवा मिलने लगी थी। लोग गोलबन्द होने लगे और पहली हत्या महंत स्वामी केदारनाथ पुरी की हुई। वे 1974 से लगातार 1990 में मारे जाने तक महंत रहे। इनके बाद मठ के मैनेजर रामदहीन सिंह की हत्या मेला में ही 1991 में कर दी गयी। यह दौर था नक्सली संगठनों के उदय का और बर्चस्व के संघर्ष का भी। तब अतिवादी वामपंथी संगठन बनते और टूटते थे। इनमें संघर्ष होता था और हत्या होती थी। इसके बाद संभवत: 1995 में मठ के बराहिल कृष्णा राम की हत्या कर दी गयी। इससे इलाके में दहशत कायम हो गयी। वर्ष 2005 में स्वामी अखिलेश्वरानंद पुरी यहां के महंत बने। बाद में 03 मार्च  2010 को उनकी भी हत्या कर दी गयी। इसके बाद 14 मार्च  2010 को यहां इनके पुत्र कन्हैयानंद पुरी को महंत बनाया गया। वे अब भी सक्रिय हैं। सवाल है कि क्या शान्ति की और लौट सकेगा अब देवकुंड ? नए महंत कन्हैयानंद पूरी के कार्य व्यवहार से उम्मीद बंधती है कि अब देवकुंड शान्ति की और लौट सकेगा| 

देवकुंड मठ ने दी दस एकड जमीन
देवकुन्द मठ के महंत कन्हैयानंद पूरी ने इलाके के विकास के लिए कई कार्य के लिए जमीन दी है| केन्द्रीय विद्यालय के लिए विधायक मनोज शर्मा की पहल पर महंत ने दस एकड जमीन दान दी है। बताया गया कि जमीन का निबन्धन राज्यपाल बिहार के नाम कर दी गयी है। देवकुन्द मठ की जमीन से ही थाना और आटीआई के लिए भी प्रयाप्त जमीन दी गयी है| इसके अलावा प्राचीन कुंड के बगल में पर्यटकों के लिए नौकायन की व्यवस्था की जा रही है| प्राचीन कुंड और मंदिर की चाहरदीवारी का सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है|   

Sunday 21 May 2017

सामाजिक न्याय वाले अन्याय नहीं करते

बिहार बदल रहा है से अब अधिक समीचीन यह कहना होगा कि सामाजिक न्याय की शक्तियों के हाथ में बिहार बदल गया है| पूरी तरह बदल गया है| इसलिए कि समाजवादी भी बदल गये हैं| उनके संस्कार बदल गए हैं| चीजों को देखने का नजरिया बदल गया है| आगे बढ़ाते हुए नए समाजवादी पौध ने परिभाषा भी बदल दी है| नयी परिभाषा गढ़ने वाले यह मान कर चल रहे हैं कि समाजवादी न गलत थे, न गलत हैं न गलत होंगे| जिनके नाम के आगे पीछे समाजवादी शब्द लग गया है वे भला गलत कैसे कर सकते हैं? वैचारिक लड़ाई लड़ने का दावा करते हुए आदमी भले ही वैचारिक रूप से कंगाल हो गया हो, लेकिन आप ऐसा कह नहीं सकते| वैचारिक विरोध करने वाले दिवालियापन के शिकार बताये जायेंगे| वे सामाजिक न्याय की विरोधी ताकतों के हाथ की कठपुतली बताये जायेंगे| दलाल जैसी उपमाएं दी जायेंगी उन्हें| भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोइ वैचारिक स्तर पर विरोध कर दे| यदि सामाजिक न्याय के झंडाबरदार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को या किसी विचार को दबाएँ, तो यह उनका जन्मना अधिकार है| हा, दूसरे ऐसा नहीं करा सकते| यदि दूसरे करेंगे तो संघी कहे जायेंगे| उन्हें गालियाँ पड़ेंगी, पीटे जायेंगे और हो सके तो वध किए जायेंगे| हाँ, नए समाजवादी संघ के तीखे विरोधी हैं भले ही वे उसी के तर्ज पर ह्त्या को वध बताते हों| पोथी पतरा फाड़ कर फेंकने वाले सोने के सूप से छठ करें तो ढोंग कतई नहीं कहिए अन्यथा यह वैचारिक विरोध आपकी ह्त्या, सो शौरी, वध कका देगा| नए समाजवादी पौध खुद को सर्वाधिक बड़ा झंडाबरदार मानने की ब्राह्मणी जातीय श्रेष्ठता वाली ग्रंथी का शिकार है| कहते हैं न, आदमी किसी व्यक्ति या विचारधारा का अंध विरोध करते करते उसी की तरह का बन जाता है| परिवारवाद, वंशवाद और सघन जातिवाद समाजवाद के नए संस्करण हैं| मरते इंसान की भी पूछ तभी संभव है जब वह जातीय खांचे में फिट बैठे| चाहे पूर्व हो या वर्तमान, प्रतिनिधि इसी नजरिये से मौत को, जानलेवा हमले को देखते हैं|

गोरख पाण्डेय की कविता 'स्वर्ग से विदाई' याद आ रही है-समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई, हाथी से आई, घोड़ा से आई, अँगरेजी बाजा बजाई, नोटवा से आई, बोटवा से आई, बिड़ला के घर में समाई, गाँधी से आई, आँधी से आई, टुटही मड़इयो उड़ाई, डालर से आई, रूबल से आई, देसवा के बाहें धराई, वादा से आई, लबादा से आई, लाठी से आई, गोली से आई, लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई|

खैर, अंत में
डा. कर्मानंद आर्य की ताजा कविता – साहित्य (यहाँ राजनीति पढ़ें) में मैला प्रथा- का अंश पढ़िए और सीख सकें तो सीख लीजिए-

लोगों ने कहा-तुम क्यों लिखते हो, उन जालिमों के खिलाफ जो मनुष्यता के विरोधी हैं| लोगों ने कहा-तुम ऐसा रास्ता क्यों चुनते हो, जो विरोध की तरफ जाता है| लोगों ने कहा- जब तुम एक अंगुली दूसरे की तरफ उठाते हो, कई उँगलियाँ तुम्हारी तरफ उठ चुकी होती हैं| यही करोगे-मरुथल के पेड़ की तरह हो जाओगे| न हरे रहोगे न सूख पाओगे| कवियों (यहाँ राजनीति पढ़ें) के इस चक्रव्यूह में, अभिमन्यु की तरह लड़ रहा हूँ| लड़ रहा हूँ, भिड रहा हूँ| मुझे अपनी हद पता है, एक दिन मारा जाऊँगा| मरने के बाद विद्रोही कहलाऊँगा| पर आवाज लगाऊंगा| 

Saturday 20 May 2017

सत्रह साल बाद निहत्था हुआ मियांपुर


मियांपुर नरसंहार के सतरह साल----
वर्ष 2000 में नरसंहार में मारे गए थे एक ही जाति के 32 लोग
घटना के बाद मिले थे हथियार के छ: लाइसेंस
सतरह साल बाद मियांपुर निहत्था हो गया है| जब सामाजिक न्याय के झंडाबरदार सरकार में थे, तब यहाँ 16 जून 2000 को 32 लोगों की सामुहिक ह्त्या रणवीर सेना के हत्यारों ने किया था| आक्रोश चरम पर था| मियांपुर ने हथियारबंद होने की मांग की| कहा गया कि सामन्तों से लड़ाई के लिए हथियार आवश्यक है| सबको हथियारबंद करने की लालू प्रसाद ने घोषणा की| कुल 25 ग्रामीण ने हथियार के लिए लाइसेंस का आवेदन दिया| अपनी सरकार और अपने नेता से ग्रामीण ठगे गए| मात्र छ: को हथियार का लाइसेंस मिला| दो नाली और राइफल खरीदे गए|   
ग्रामीण व शिक्षक संजय सिंह ने बताया कि मार्च-अप्रैल 2017 में सभी लाइसेंस रद्द कर दिए गये| बताया गया कि डीएम कहते हैं कि आईजी के यहाँ से रिनिवल करा के लायें| ग्रामीणों के अनुसार डीएम के पास जब वे गए तो उन्हें डीआईजी से अब रिनिवल कराने को कहा गया|  शिक्षक संजय ने बताया कि डीआईजी से मिलने कई बार लोग गए किन्तु मुलाक़ात नहीं हो पायी| एक बार फिर उनसे मिलने जाने की तैयारी कर रहे हैं| सुरेश यादव, दिनेश्वर यादव, उमेश यादव, रामजी यादव, रवीन्द्र यादव, सतेन्द्र यादव, सभी को दो नाली बन्दूक का लाइसेंस मिला था| जबकि कुल 25 ग्रामीणों ने राइफल के लिए लाइसेंस की मांग की थी| 

लाइसेंस रद्द तो हथियार अवैध
किसी भी वजह से कभी भी जब हथियार का लाइसेंस रद्द हो जाता है तो हथियार अवैध हो जाता है| यह तकनीकी और कानूनी पक्ष है| डीएसपी संजय कुमार ने बताया कि ऐसी स्थिति में हथियार को थाना या आर्म्स दूकान में जमा कर डीएम को सूचना देनी होती है|

थाना से पृच्छा होगी –डीएम
मियांपुर के सभी लाइसेंसी हथियार अभी अवैध हो गए हैं| यह हथियार उन्हीं लाइसेंस धारियों के पास अवैध रूप से रखे हुए हैं| यह बात खुद डीएम के संज्ञान में भी है क्योंकि लाइसेंस उन्होंने ही रद्द किया है| इस पूरे मामले में डीएम से तीन सवाल इस संवाददाता ने पूछा-हथियार गाँव में फिर कैसे है, लाइसेंस अब कब और कैसे रिनिवल होंगे और यह कि आपकी पहलकदमी क्या है। जवाब दिया- हथियार के संबंध में थाना से पृच्छा की जाएगी। लाइसेंस के लिए जिला सामान्य शाखा में आवेदन देना होगा।

सामंतों के रक्षक हैं लालू नीतीश-श्याम सुन्दर
गाँव घुमने के बाद जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के प्रदेश प्रवक्ता श्याम सुंदर ने कहा कि मियांपुर शुरू से ही सामाजिक न्याय के सियासतदानों का खिलौना बन कर रहा है| सबको हथियारबंद करने की बात करने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने मियांपुर में कोइ दिलचस्पी नहीं दिखाई| ग्रामीण 25 राइफल मांग रहे थे जबकि मिला सिर्फ छ:| उसमें भी नीतीश कुमार के रहते सभी लाइसेंस रद्द कर दिए गए| यह सरकार सामन्तों की रक्षा के लिए बनी है| यही कारण है कि नरसंहार पीड़ित मियांपुर को भगवान् भरोसे छोड़ दिया गया और थाना स्थापित कर दिया गया बन्देया में|  

Sunday 14 May 2017

जब पी चुके शराब तो साहब संजीदा हो गये, और हम...


कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए| बिहार के साहेब की यही हालत है| कोइ उन्हें सुशासन कुमार कहता रहा है तो अब कई उन्हें चाँद कुमार कहने लगे हैं| पहले दक्षिणपंथी गणेश को दूध पिलाते थे अब समाजवाद ने इतनी तरक्की कर ली कि चूहे शराब पीने लगे| बड़ा शोर मचाते थे कि ये ऐसे लोग हैं जो पत्थर के गणेश को दूध पीला देते हैं| अब चुप हैं लोग कि कैसे चूहा शराब पी लिया| प्रदेश में बरामद शराब गटक गए चूहे| हद यह कि वे ऐसे नशाबाज निकले कि कभी उनके चहरे से नहीं झलका की किस चूहे ने शराब पी हुई है| पुलिस का आला नेता नशे की हालत में पकड़ा जा सकता है किन्तु चूहा नहीं| हद है न! शराब अपने प्रदेश में या कहें जिला जवार में सहज उपलब्ध है| होम डीलवरी| इसलिए आभासी दुनिया में कहा गया कि यह भगवान् बन गया है, दिखता कहीं नही और मिलता हर जगह है| यह बात बहुत पहले से कही जा रही थी| अब ‘चूहे ने पी ली शराब’ की थ्योरी ने इसे साबित भी कर दिया| कुछ पत्रकार साथी जानते हैं कि पुलिस शराब पकड़ती है और उसमें से कुछ छूपा कर रख लेती है| पत्रकार को जितना बताया जाता है उतना ही छापने की विवशता है| चूंकि गिरफ्तार व्यक्ति कह नहीं सकता कि बतायी गयी मात्रा से अधिक शराब बरामद हुआ है| कई पुलिस वाले अपने करीबी को भी बोतल थमा देते हैं| यह सब बातें अलग हैं किन्तु सवाल यह भी है कि गली गली शराब बेचवाने वाले जब मदहोश हो लिए तो इस मुद्दे पर गंभीर बन गए| फिराक गोरखपुरी को वे अमल करने लगे- आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़', जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए|| शराब का साइड इफेक्ट अब दिखने लगा है| राजस्व की क्षतिपूर्ति के लिए जमीन के निबंधन में सरकारी रंगदारी हो रही है| जमीन किस भाव लिखी जायेगी यह तय किया जा रहा है, इस तर्क के साथ कि क्या करें, बहुत दबाव है राजस्व बढाने के लिए|   

और अंत में...
अभिनव कुमार सिंह लिखते हैं- आखिरकार भुजंग प्रसाद की भुजाओं में फंस ही गए चन्दन कुमार| और यह कि दिल्ली से पटना तक के ताजा घटना क्रम पर बशीर बद्र याद आ रहे हैं-
 तुम होश में हो  हम होश में हैं|
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी|

सत्ता के साथ सामन्ती आचरण का भी हस्तांतरण-नवल किशोर कुमार



सामाजिक न्याय का संघर्ष करने वाले पुरखों की आत्मा कलंकित हो गयी है| वे नहीं सोच सके होंगे कि एक दिन यह सिद्धांत सिर्फ राजनीति की चोरबाजारी की पर्देदारी के काम का बन कर रह जाएगा| दूसरों का दोष तय करने से पहले अपने गिरेबां में भी झांकना चाहिए| इस बुनियादी सवाल से बच कर कोइ कब तक भाग सकता है भला| सामाजिक न्याय के नाम पर घोर जातिवादी राजनीति और सामाजिक व्यवहार करना किसी तरह से न्याय के दायरे में फिट नहीं बैठता| सामाजिक न्याय का दायरा बहुत व्यापक है| पत्रकार पर हमले की घटना पर फारवर्ड प्रेस में संपादक नवल किशोर कुमार ने लिखा- असल में औरंगाबाद की राजनीति के कई आयाम हैं। पहले सवर्णों के वर्चस्व के बाद अब यादव जाति के लोग निर्णायक भूमिका में हैं। इस पैटर्न पर यहां की राजनीतिक आबोहवा भी बदली है। सत्ता के साथ ही सवर्णों का सामंती आचरण भी हस्तांतरित हुआ है, जिसमें गंभीरता व संवेदनशीलता का घोर अभाव दिखता है। इन्होने अपने लंबे आलेख में चिंता जताते हुए लिखा- उपेन्द्र कश्यप के साथ हिंसा केवल भीड़ की हिंसा नहीं है बल्कि यह एक जातीय उन्माद का परिणाम भी है जिसकी अनदेखी करना खतरनाक होगा।

सामाजिक न्याय के सियासतदानों इतिहास माफ नहीं करेगा
प्रख्यात पत्रकार रहे जन अधिकार पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्याम सुंदर ने साफ़ कहा कि यह विडंबना है कि दोहरे हत्या में मारे जाते हैं सामाजिक न्याय के युवक| आश्चर्य यह कि हमले का शिकार होने वाला पत्रकार भी सामाजिक न्याय के दायरे में ही आता है। क्या ढकोसले सामाजिक न्याय पर कुठाराघात करने की हिम्मत दाउदनगर से लेकर औरंगाबाद और पटना में बैठे सियायतदान और दलितों, पिछडों समेत अन्य बौद्धिक लोग जवाब देंगे? क्या अपनी  सियासत चमकाने के लिये किसी की जान लेने की इजाज़त किसी ताकतवर लोगों को दी जा सकती है? याद रखना सामाजिक न्याय के तथाकथित सियासतदानों इतिहास माफ नहीं करेगा|

सरकार को कर रहे लोग बदनाम
 भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड के सचिव सह राजद आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ के प्रदेश नेता डा.प्रकाशचंद्रा ने कहा कि यह घटना सामाजिक ताने बाने को ध्वस्त करने वाली है| कुछ लोगों की जातीय करतूत व हिंसक मानसिकता की वजह से ही एक अच्छी व सामजिक न्याय वाली सरकार को बदनामी का कड़ा घूँट पीना पड़ता है| जनता से विनम्र निवेदन किया कि उग्रता को त्यागे और पत्रकारों व अन्य जनों का सम्मान करना सीखें| बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपने घर के बच्चों को संयम व अनुशासन का पाठ पढ़ाये|

Wednesday 10 May 2017

अठारह महीने से बेटे की राह देख रही माँ

बेटे की  में पथरा गयीं आखें
तीन बार सीएम से मिलने पहुँची पटना
दौलतपुर की सावित्री देवी करीब अठारह महीने से अपने लापता पुत्र की राह देख रही हैं| तीन बार मुख्यमंत्री से मिलने पटना और दो बार एसपी से मिलने औरंगाबाद तक दौड़ चुकी हैं| उनका 16 वर्षीय पुत्र विकास कुमार गत आठ सितंबर 2015 से लापता है| थाना में उसके मामा विनोद राम ने छ: नामजदों के विरुद्ध अपहरण का मामला दर्ज कराया है| पुलिस न आरोपियों को पकड़ सकी है न लापता को खोज सकी है| आखिर, गरीब और दूसरे प्रदेश में काम करने वाले आरोपी अपहरण क्यों करेंगे? इस सवाल का सावित्री के पास कोइ जवाब नहीं है| उसकी बस एक ही रट है कि किसी तरह उसका बच्चा उसे मिल जाए| जब उसे कहीं से भी उम्मीद नहीं दिखी तो वह दैनिक जागरण के इस संवाददाता के पास आयी| इससे पहले एक नेता ने यह कह कर भगा दिया कि वोट मुझको दी थी कि आये हो? हम क्या करेंगे? सावित्री द्वारा उपलब्ध कराई गयी प्राथमिकी (संख्या-252/15) दस्तावेज के अनुसार गाँव के ही आनंद कुमार ने उसे जो बताया उसके अनुसार ही भुइयां टोली निवासी छ: के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराया गया है| इसमें कहा गया है कि आरोपी उसे बहला कर कमाने के लिए ले गए और शायद कहीं बेच दिया| वह घर में अकेली है और उसका दौड़ दौड़ कर बुरा हल है| 

पिता व बहन की शारीरिक स्थिति ठीक नहीं
लापता विकास एकौनी हाई स्कूल से मैट्रिक पास कर चूका है| इसके बाद उसने संसा इंटर स्कूल में नामांकन कराया था| मूलत: वह अन्कोढा का निवासी है| उसके लापता होने के बाद पिता सुरेश यादव की कमर टूट गयी और बाद में 10 वर्षीय बहन इंदु कुमारी की भी कमर टूट गयी है| दोनों अस्वस्थ हैं| सुरेश यादव गरीब कृषि मजदूर थे| किसी तरह आजीविका चलाते थे| दौलतपुर निवासी मामा और केस के वादी विनोद कुमार ही अब  परिवार का खर्च चलाते हैं| सभी दौलतपुर ही रहते हैं| सावित्री देवी की आँखें हर समय डबडबाई रहती है| उम्मीद अब भी जिंदा है| स्वयंभू समाजवादी और जातिवादी राजनीति के दिग्गजों ने इनका कभी हाल नहीं जाना| इनके लिए फुर्सत नहीं है|

हो रही प्रक्रिया-पुलिस
थानाध्यक्ष अभय कुमार सिंह ने कहा कि मामले में कानून सम्मत प्रक्रिया चल रही है| देश के सभी थानों को लापता की तस्वीर भेजी गयी है| किसी भी तरह की सूचना मिलते ही पीड़ित परिवार को भेजी जायेगी|      


Tuesday 9 May 2017

मनौरा में बुद्ध के महायान मत को मिली भावभूमि

आज बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
छ: फीट ऊँची ध्यानस्थ बुद्ध की है यहाँ प्रतिमा
प्रमाणिकता के लिए अन्वेषण दल की प्रतीक्षा
मगध क्षेत्र की भूमि बौद्ध कालीन इतिहास से आवष्यक रूप से संबद्ध रखती है। यह वही भूमि है जिसने बौद्धधर्म की जड़ को जमीन ही नहीं अपितु खाद-पानी भी प्रदान किया तथा इसके महायान मत को भावभूमि प्रदान कर उसे संपूर्ण हिन्दुस्तान से चीन तक विस्तारित एवं प्रतिष्ठापित किया| तथापि इस क्षेत्र के कई ऐसे महत्वपूर्ण स्थल इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं पा सके जिनकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि से बौद्धकालीन इतिहास को नये सफाहात मिल सकते थे। ऐसा ही एक स्थान अनुमंडल के ओबरा प्रखण्ड मुख्यालय से मात्र छ: किमी दूर पूर्व दिषा में पुनपुन नदी के तट पर मनौरा के नाम से विख्यात लेकिन उपेक्षित है| इसे बुद्ध के जीवनकाल से लेकर ईस्वी सन् के प्रारम्भिक सात षताब्दियों तक के इतिहास से विस्मृत हुए तथ्यों की प्रमाणिकता के लिए अन्वेषण दल की प्रतीक्षा है। यहाँ ध्यानस्थ बुद्ध की छह फीट ऊँची काले पत्थर से निर्मित एक प्रतिमा स्थापित है जो कम-से-कम साढ़े तेरह सौ साल प्राचीन है। बिहार में जातीय सामाजिक खेमेबंदी, सोच और पूर्वाग्रहों के कारण इस स्थान विशेष का भाग्य कभी नहीं जगा| राज्य सरकार भी इसे पर्यटन स्थल बनाने के लिए कुछ नहीं कर रही| 

बुद्ध को ईश्वर मानता है महायान 
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि ईस्वी सन् के प्रथम सदी में हिन्दुस्तान पर कुषाणों का षासन प्रारंभ हुआ| इसी षासनकाल में अर्थात बुद्ध के पाँच सौ साल बाद ही बौद्ध धर्म में दो मत हीनयान और महायान के रूप में सामने आया। महायान मत में ही- जो कि पूरे हिन्दुस्तान एवं चीन में फैला और इसका श्रेय पहली सदी में जन्में नागार्जून को जाता है- बुद्ध को ईष्वर की मान्यता दी गयी| इनकी साकार रूप में पूजा (उपासना) की जाने लगी। चूंकि बौद्ध धर्म हठवादी नहीं था और अपनी नैतिक पृष्ठभूमि की रक्षा करते हुए किसी भी चीज (सिद्धांत रूप में) से समझौता करना इसकी प्रवृत्ति रही है, फलतः यह धर्म हिन्दुओं के बहुत करीब होता गया| आज इस तथ्य का स्पष्ट साक्ष्य मनौरा प्रस्तुत करता है जहाँ बुद्ध प्रतिमा की उपासना हिन्दू धर्म नीतियों के अनुसार की जाती है|

न्यूनतम तेरह सौ साल प्राचीन है प्रतिमा
मनौरा के बुद्ध कितने प्राचीन है यह स्पस्ट नहीं है| फिर भी अनुमान लगाया जा सकता है कि सातवीं सदी से लेकर 322 ईसा पूर्व के समय यहाँ बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गयी होगी। यानी 13 सौ वर्ष से लेकर अधिकतम 2029 साल प्राचीन हो सकता है मनौरा। तथ्य है कि आठवीं सदी में षंकराचार्य के उद्भव से ब्राह्मण धर्म में पूर्नजागृति पैदा हुई और उन्होंने बौद्धों की तर्ज पर संघों, मठों एवं विहारों का निर्माण षुरू किया| इस सदी के बाद बौद्धस्थल निर्माण की संभावना नहीं बनती। वैसे यहाँ स्थापित भगवान बुद्ध की प्रतिमा को कोरियाई पर्यटक दल ने दो हजार वर्ष प्राचीन बताया था, यह इसलिए भी विष्वसनीय लगता है कि इसी गांधार षैली की प्रतिमाएँ बामियान(अफगानिस्तान) में तालिबानियों ने ध्वस्त की थी।

मरोवां बन गया मनौरा

मनौरा को मनौरा शरीफ भी कहा जता है और मरोवां भी| यहाँ ‘मोर पहनाव’ की प्रथा प्रचलित रही है| मोर पंख मौर्य शासक का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह था| इसलिए संभव दिखता है कि मौर्य शासन काल में भी इसकी उपस्थिति रही हो| इसी मोर पंख के कारण इसका नाम मरोवां पडा| कालान्तर में यही मनौरा हो गया| यहाँ स्थित दरगाह के कारण इसका नाम मनौरा शरीफ भी पडा| 

Saturday 6 May 2017

एएन रोड-बिहटा रेलवे परियोजना हवा में

फोटो-दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर
आरटीआई से हकीकत का खुलासा
सारे दावे बिखरे और दूर हुए भ्रम
भूमि अनुपलब्धता है इसकी बजह
बिहटा से अनुग्रह नारायण रेलवे स्टेशन तक रेलवे लाइन बिछाने की परियोजना भारत सरकार के रेलवे मंत्रालय के हाथ में नहीं है| यह खुलासा सूचना के अधिकार क़ानून (आरटीआई) के तहत हुआ है| इसमें मंत्रालय ने साफ़ कहा है कि- इस परियोजना को भूमि की अनुपलब्धता के कारण मंत्रालय के द्वारा लिया ही नहीं गया है| साफ़ है कि मीडिया रिपोर्टों में जिस तरह जिम्मेदार नेताओं ने दावे किये वे शायद जानबुझ कर झूठ बोले गए थे| रेल मंत्री सुरेशा प्रभु से से मिलने वाले नेताओं ने दावा किया अता अकी राशि की कमी नहीं होगी और कल से काम शुरू हो गया| यह ‘कल’ अब अँधेरे में चला गया है| सरे दावे झूठे निकले और भ्रम पूरी तरह दूर हो गये हैं| अरई के निवासी रजनीश कुमार ने सूचना के अधिकार के तहत औरंगाबाद से बिहटा वाया अनुग्रह नारायण रोड तक 118.45 किलोमीटर प्रस्तावित रेलवे परियोजना के बारे में जानकारी माँगी थी| इसमें पूछा था कि- इस परियोजना की अद्यतन स्थिति क्या है और इस हेतु फंड आवंटन क्या है ? दूसरा-कितने दिनों में इसे पूरा करना है और अभी तक इस हेतु क्या प्रगति हुई है?
उन्होंने बताया कि रेलवे मंत्रालय द्वारा जो सूचना उपलब्ध कराई गई है, उसके अनुसार- इस परियोजना को भूमि की अनुपलब्धता के कारण मंत्रालय के द्वारा लिया ही नहीं गया है| इस कार्य को रेलवे मंत्रालय अपने हाथ में तभी लेगी जब राज्य-सरकार इस हेतु भूमि अधिग्रहण का कार्य पूर्ण करेगी| कहा है कि उपरोक्त कारणों से ही इस कार्य को पूरा करने की कोई तिथि तय नहीं की गई है|
 तीन साल में मिली सूचना
रजनीश को इस सूचना के लिए तीन साल तक मशक्कत करनी पडी है| उन्होंने 27 जुलाई 2014 को सूचना के लिए आवेदन दिया था| सूचना नहीं मिली तो प्रथम अपील 30 सितंबर 2014 को की| इसके बाद कई बार केन्द्रीय सूचना आयोग से शिकायत करते रहे तब जा कर पांच मई शुक्रवार को सूचना मिली| सूचना रेलवे बोर्ड के डिपुटी डायरेक्टर, वर्क-दो, एलपी शर्मा ने दी है|

अतीत के दावे व आन्दोलन
इस परियोजना को लेकर अतीत में खूब दावे किये गए थे| सात फरवरी को सांसद सह केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रामकृपाल यादव ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु से रेल भवन में मुलाकात कर दावा किया था कि मंत्री ने सम्बंधित अधिकारियों को कल से ही परियोजना पर कार्य करने का निर्देश दिया है| पैसे की कमी बिल्कुल नहीं होने का अभी दावा था| जनवरी के अंतिम सप्ताह में बजट से फले अरवल, पालीगंज, दुल्हिनबाजार, बिक्रम, औरंगाबाद के लोगों ने पदयात्रा व धरना प्रदर्शन किया गया| बिहटा दानापुर रेलमार्ग जाम कर दिया| एडीआरएम दानापुर के आश्वासन के बाद आंदोलन समाप्त हुआ| बीते 22 दिसंबर को पाटलीपुत्र के संसद सह मंत्री रामकृपाल यादव, जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार और औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर राशि आवंटित करने का आग्रह किया था।

326 से 28 सौ करोड़ की हुई परियोजना

118 किलोमीटर लंबी बिहटा-औरंगाबाद नई रेललाइन परियोजना को 2007 में जब स्वीकृति मिली थी तब इसकी लागत 326 करोड़ रुपए अनुमानित थी| इसे 2011-12 तक पूरा किया जाना था, लेकिन भूमि अधिग्रहण का मुद्दा नहीं सुलझ पाने के कारण परियोजना धरातल पर नहीं उतर सकी। अब इसकी बजट सात गुना बढ़ गयी है| एडीआरएम् दानापुर ने दावा किया है कि 2800 करोड़ का बजट मंत्रालय को भेजा गया है|