Wednesday 24 May 2017

अचल संपत्ति को ले संघर्ष का गवाह है देवकुंड

भूमि संघर्ष को ले हो चुकी है चार हत्या
मारे गए है दो महंत और दो कर्मचारी
शान्ति की और लौट सकेगा अब देवकुंड ?
कई ऐतिहासिक व धार्मिक कारणों से प्रख्यात देवकुंड की चर्चा जमीन को ले संघर्ष के कारण भी खूब रही है। अब तक चार हत्या हो चुकी है जिसमें दो महंत भी शामिल हैं। बिहार में जमीन को ले खूनी संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। इसमें मठ मन्दिर भी शामिल रहे हैं। बेनामी संपत्तियां मठों मन्दिरों के भगवानों के नाम खूब लिखे गये जब राज्य में सिलिंग एक्ट लागू हुआ था। इससे इतर देवकुन्ड के पास काफी जमीन रही है। इसे लेकर यहां लंबा संघर्ष चला है। खूनी लडाइयां हुई। जमीन को ले जब बंगाल के नक्सलबाडी का आन्दोलन प्रारंभ हुआ था तो यहां भी उसका प्रभाव पैर जमाने लगा। असंतोष को हवा मिलने लगी थी। लोग गोलबन्द होने लगे और पहली हत्या महंत स्वामी केदारनाथ पुरी की हुई। वे 1974 से लगातार 1990 में मारे जाने तक महंत रहे। इनके बाद मठ के मैनेजर रामदहीन सिंह की हत्या मेला में ही 1991 में कर दी गयी। यह दौर था नक्सली संगठनों के उदय का और बर्चस्व के संघर्ष का भी। तब अतिवादी वामपंथी संगठन बनते और टूटते थे। इनमें संघर्ष होता था और हत्या होती थी। इसके बाद संभवत: 1995 में मठ के बराहिल कृष्णा राम की हत्या कर दी गयी। इससे इलाके में दहशत कायम हो गयी। वर्ष 2005 में स्वामी अखिलेश्वरानंद पुरी यहां के महंत बने। बाद में 03 मार्च  2010 को उनकी भी हत्या कर दी गयी। इसके बाद 14 मार्च  2010 को यहां इनके पुत्र कन्हैयानंद पुरी को महंत बनाया गया। वे अब भी सक्रिय हैं। सवाल है कि क्या शान्ति की और लौट सकेगा अब देवकुंड ? नए महंत कन्हैयानंद पूरी के कार्य व्यवहार से उम्मीद बंधती है कि अब देवकुंड शान्ति की और लौट सकेगा| 

देवकुंड मठ ने दी दस एकड जमीन
देवकुन्द मठ के महंत कन्हैयानंद पूरी ने इलाके के विकास के लिए कई कार्य के लिए जमीन दी है| केन्द्रीय विद्यालय के लिए विधायक मनोज शर्मा की पहल पर महंत ने दस एकड जमीन दान दी है। बताया गया कि जमीन का निबन्धन राज्यपाल बिहार के नाम कर दी गयी है। देवकुन्द मठ की जमीन से ही थाना और आटीआई के लिए भी प्रयाप्त जमीन दी गयी है| इसके अलावा प्राचीन कुंड के बगल में पर्यटकों के लिए नौकायन की व्यवस्था की जा रही है| प्राचीन कुंड और मंदिर की चाहरदीवारी का सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है|   

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