Sunday 18 December 2016

शहरियों फूल बरसाओ हुजूर आये हैं


शहरियों साहेब कहो या हुजूर आये हैं,
महागठबंधन के खेवन-हूर आये हैं।
उनको स्वागत कर प्रभावित करो,
सब मिल के चारण गीत गाओ,
चरण वन्दन और तिलक करो,
कुछ मांग सको तो मांग लो,
कौन ठिकाना हूजूर दे जावें,
फूल बरसाओ हुजूर आये हैं।
जी हां। 21 दिसंबर दिन बुधवार को नवाब दाऊद खान के  बसाये शहर में बिहार के नवाब आ रहे है। ओह, शौरी, जनाब मैं गलत तो नहीं कह गया। नवाब कहना कमतर आंकना नहीं है, वैसे जिनको ऐसा लगता है उन्हें नवाब की जगह बादशाह, समाजवादी सम्राट की तरह राजा, सम्राट, हुजूर कुछ भी अपने मन का पढ़ सकते है, लेखक को आपत्ति नही है। ऐसी छूट तो लोकतंत्र में सबको है। मुझको भी और आपको भी है।
खैर, कहना यह है कि साहेब आ रहे है तो तैयारी जोर से जोरों की हो रही है। सिर्फ फूल स्वागत में भेंट ही नही किए जाएंगे उन्हें, फूल ऐसे लगाए जा रहे है कि वे स्थायी तौर पर नयनाभिराम हो। सबको बेहतरी का अहसास हो। जब आ रहे है तो उनसे कुछ मांगने का भी मन कर रहा है। वैसे दाउदनगर पर उनकी मेहरबानी रही है। सोन पूल अब तक की सबसे बड़ी योजना दी है। एक बड़ी योजना अपने पूर्ववर्ती छोटी योजना से भी बदतर हालत में है। साहेब उसे ही ठीक कर देते तो हुजूर की शान बढ़ जाती। हां, मैं अनुमंडल अस्पताल दाउदनगर की बात कर रहा हूँ। यह अपने निर्धारित आकार में नहीं है। डाक्टर नही है, अन्य सुविधाएं भी नदारद हैं। क्या हुजूर को कोइ यह बतायेगा कि इस अस्पताल के उदघाटन की आपकी ललक को राजनीति ने कैसे ख़त्म किया था। आप उदघाटन नहीं कर सके और आपने जिसे उत्तराधिकारी बनाया वे अधूरा ही उदघाटन कर गए है। जनता तो बेचारी होती है हुजूर, वह बेचारी ही बनी रहे इसमें उत्तर भारत की राजनीति को अपना भविष्य दीखता है। उसकी बेचारगी में नेता और दल अपने लिए उर्वरक पाते हैं। आप तो उसे नहीं हैं न, आप तो अलग दीखते हैं या खुद को भी खुद ही अलग बताते है। तो क्या आपसे इतनी उम्मीद नही बनती कि आप आये है तो सिर्फ फूल आप पर ही बरस कर न मुरझा जाए। उस फूल की खुशबू तो महकने के लिये सदा हेतू छोड़ जाइए। बेहाल, बदहाल जनता स्वस्थ हो सकेगी यदि आप अनुमंडल अस्पताल को महका गए। वरना बेचारी जनता ही जब महकने लायक नहीं रह जायेगी तो सड़ांध मारने लगेंगे उसके विचार। और प्रतिकूल सामूहिक विचार नेताओ के लिए खतरनाक होते है। इतना तो आप समझते ही है। अच्छा होगा, अस्पताल बेहतर कर जाए, अन्यथा अस्वस्थ जनता आने वाले समय में आपको कैसे स्वस्थ रख सकेगी। ऐसा नही होता कि अस्वस्थ लोग मिककर किसी को स्वस्थ रखा सकें या बना सकें। वैसे यह मेरी सलाह है। मानना न मानना आप पर निर्भर है। साहब, हुजूर, आये है तो यह कर जाइये। शायद यह आपको अमरत्व दे जाए। जनता फलक- फावड़ा बिछाये बैठी है।


अंत में, शमशेरनगर पानी टंकी और अदम गोंडवी
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है ।।
शमशेरनगर में बंद पानी की टंकी चालू है
यह ज्ञान व्यवहारिक नहीं जनाब किताबी है।।

(यह व्यंग्य कॉलम मैंने राजकोट गुजरात से सोमनाथ जाने के क्रम में बस में लिखा है)

Friday 16 December 2016

शौचालय बनाने में ग्रामीणों की रूचि नहीं, कैसे बदलेगा भारत?


गरीबी और अशिक्षा के कारण समस्या बढ़ी
 सरकार स्वच्छ भारत अभियान चला आरही है तो राज्य सरकार लोहिया स्वच्छा बिहार मिशन चला रही है| दोनों का मकसद एक है-गाँव हो या शहर उसे स्वच्छ बनाना| घरो में शौचालय निर्माण के लिए सरकारे १२ हजार रूपए उपलब्ध करा रही है| कोशिश है कि सभी घर शौचालय युक्त बन जाय| इस योजना में आकर्षण दीखता है| प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि यह लक्ष्य सहजता से हासिल हो जाएगा किन्तु धरातल पर हकीकत उलटा है| ग्रामीणों की कोइ रूचि इस योजना में नहीं है| मुख्य वजह है उनके पास पैसे का अभाव| हालांकि इसके अलावा अशिक्षा और गरीबी भी एक वजह है| लोग इसके प्रति जागरुक नहीं है और पूर्व में किसी सरकार ने इसके लिए जागरुँकता का फैसलाकुन अभियान नही चलाया, न ही योजना के कार्यान्वयन में दृढ़ता दिखाई| नतीजा आज भी गाँव हो या शहर, खुले मे शौच की समस्या बनी हुई है| जो माहौल गाँवों में है उससे लगता है कि घर घर शौचालय निर्माण के लिए सरकार को और अधिक परिश्रम करने की जरुरत है| प्रखंड के तीन पंचायत अंकोढा, तरारी व करमा अका चयन किया गया है| इन्हें पहले प्राथमिकता के आधार पर शौचालययुक्त पंचायत बनाने का लक्ष्य रखा गया है| दैनिक जागरण ने इस योजना की हकीकत जानने के लिए तरारी के धरातल का सच जानना चाहा|

पैसे नहीं है कैसे बनाए-ग्रामीण
तरारी के वार्ड संख्या-13 निवासी मोती यादव 15 कठा के जोतदार किसान है| मिट्टी का खपरैल घर है| किसानी ही आजीविका का प्रमुख साधन है| शौचालय के मुद्दे पर बोले कि आवश्यक जय किन्तु बनाने को पैसे कहाँ से लाये? कहा कि १२ हजार रूपया है नहीं| वार्ड -११ के निवासी बुधन चौधरी ने शौचालय बनाने के लिए गड्ढा खोद लिया है किन्तु आगे काम के लिए उनके पास पैसे नहीं है| बताया कि मुखिया संगीता देवी के प्रतिनिधि राकेश कुमार से पैसे माँगा रहा हूँ| डेढ़ हजार ईंट चाहिए| बना लेने के बाद पैसा सरकार दे या न दे मुझे तो उधार लिया चुकता करना ही होगा| वार्ड १४ निवासी आशा देवी बताती है कि उन्होंने गड्ढा खोद लिया है किन्तु आगे का काम करने के लिए पैसा नहीं है| गाँवों में समस्या यही है कि पैसे कैसे आयेंगे और अगर कर्ज लिया और सरकार पैसे नही दी तब कर्ज चुकता कैसे करेंगे?


कितना कर्ज दे सकेगा मुखिया-संगीता 
 तरारी की मुखिया संगीता देवी से कई ग्रामीणों ने शौचालय निर्माण के लिए मदद माँगी है| इनका कहना है कि कितने लोगो को एक मुखिया मदद या कर्ज दे सकता है| कहा कि किसी को अपिसा दिया भी तो उसकी वापसी की क्या गारंटी है? कौन देगा पैसा? इसकी व्यवस्था बननी चाहिए| कहा कि पैसे वापसी की गारंटी भी हो तो कितने लोगो को आखिर एक मुखिया कर्ज दे सकता है| कितना पैसा है किसी के पास|

करीब 3800 बनेंगे शौचालय
दाउदनगर प्रखंड के चयनित तीन पंचायतो में करीब 3800 शौचालय बनने है| बीडीओ अशोक प्रसाद के अनुसार करमा पंचायत में १२२० शौचालय, अंकोढा में १२७८ और तरारी में १३०० शौचालय का निर्माण होना प्रस्तावित है| यह संख्या लगभग है और अंतिम नहीं| योजना में पैसा मुद्दा नहीं है| संख्या के हिसाब से पैसे आ सकते है|

Thursday 15 December 2016

क्या भारतीय रेलवे में सुधार संभव है?

 यात्रा-कथा। बरेली से अहमदाबाद। आला हजरत-अहमदाबाद एक्सप्रेस ट्रेन।

शीर्षक बतौर प्रश्न मुझे उद्द्वेलित कर रहा है। समस्या गंभीर है। सुबह को बरेली में ट्रेन पर बैठा। आला हजरत - अहमदाबाद ट्रेन यहाँ से खुलती है। सही समय पर आने के वावजूद 25 मिनट विलंब से अपने निर्धारित समय से खुली। ट्रेन खुलने पर बोगियों में रौशनी आयी। मोबाइल के टॉर्च जलाकर सबने अपने सीट पकड़े और लैगेज रखने का बंदोबस्त किया। पता चला मेरे और बगल के एक बोगी में पानी नही है। एक tte आये तो लोगो ने उनसे शिकायत की। उन्होंने फोन पर किसी साहब से बात की और बताया कि मुरादाबाद में पानी उपलब्ध हो जाएगा। ऐसा नही हुआ। लोग उम्मीद ही करते रहे। दिल्ली में tte से कहा कोइ फर्क नही पड़ा। काफी देर और दूरी तय करने के बाद एक tte से फिर कहा गया। उसने कहा कि दिल्ली में ही मैसेज किया गया है। जयपुर में पानी मिल जाएगा। जयपुर में दूसरा tte मिला। लोगो ने उसे कहा। उसने कहा कि कहा गया है। शिकायत की गयी है पानी भरा जाएगा। तब तक ट्रेन पटरी से खिसकने लगी। ट्रेन में रेलवे पुलिस के जवान साड़ी वर्दी में जांच कराने आये। इस मुद्दे पर बहस हुई तो कहा कि आईडी देख लीजिए। खैर। जवान ने कहा कि अजमेर में पानी भरा जाएगा। नहीं भरेगा तो चेन पल कर दें। गाड़ी बढ़ने नही देना। अपने पानी भरेगा। खैर, अंतिम बात यह कि पानी नही भरा गया। अजमेर में लड़के ने पाइप लगा कर पानी भरा तो भी पानी नहीं मिला। कहा कि रेल चलेगी तो प्रेशर से पानी आयेगा। पानी न मिलना था न मिला।
आप सोचिए। सुरेश प्रभु जी सोचिए। तीन बोगियों में पानी ख़त्म और मुसाफिर 24 घंटे से अधिक आपकी ट्रेन में बिना पानी के मछली की तरह। लोग क्यों शांत रहे?  यह आप पर या आपकी सरकार पर भरोसा होने या न होने की वजह से नही बल्कि मौसम में नमी ने सबको नर्म बनाये रखा। यदि गर्मी होती तो क्या लोग शांत बैठते? तब सरकार जनता को कोसती। पुलिस प्रशासन कार्रवाई जनता के खिलाफ करता। उसके खिलाफ जो 24 घण्टे की यात्रा में बिना पानी के है। कई बार फरियाद करा रहा है और आश्वासन के सिवा कुछ नहीं।
इसके अलावा कई स्टेशनों पर बिजली भक भक करती दिखी। शौचालय गंदा है। पानी नहीं है का बहाना है किंतु एक पहलू यह भी तो है कि व्यवस्था देने वाले गंदे है, लापरवाह है, आश्वासन परोसते है तो मुसाफिर भला क्या करे? पहले तो व्यवस्था देने वालों को जिम्मेदार होना होगा अन्यथा स्वच्छ भारत फुस्स्स हो जाएगा।

शौचालय योजना के तहत दो करोड़ 78 लाख उपलब्ध


सभी प्रखंडो के लिए जारी हुआ धन
पैसे कम होने की चर्चा
 घर शौचालय निर्माण के लिए जिला को पैसे उपलब्ध हो गया है| जिला ग्रामीण विकास अभिकरण (जिला जल एवं स्वच्छता समिति) द्वारा पैसा सभी प्रखंडो के लिए जारी कर दिया गया है| बैंक को भेजे गए पत्र (पत्रांक-१५४९) के अनुसार 58 लाख जारी किए गए है| इसके तहत औरंगाबाद और ओबरा प्रखंड को एक बराबर 80 हजार, मदनपुर को बीस हजार और अन्य सभी प्रखंड बारुन, दौदानाग्र, देव, गोह, हसपुरा, कुटूम्बा, नवीनगर व रफीगंज को  पचास पचास हजार रूपए दिए गए है| इसी तरह पत्रांक 1541 के अनुसार दो करोड़ 15 लाख जारी किया गया है| इसके तहत औरंगाबाद और ओबरा को बाईस-बाईस लाख, बारुन, दाउदनगर और गोह को 10 लाख 50 हजार रुपये, देव, हसपुरा, कुटुम्बा, नवीनगर व रफीगंज को एक बराबर ढाई-ढाई लाख रूपए तथा मदनपुर को एक लाख 45 हजार रूपए उपलब्ध कराया गया है| यह राशि स्वच्छ भारत मिशन और लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत जारी हुई है| चर्चा है कि यह राशि काफी कम है किन्तु एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पैसे की कोई कमी नही है| जितना शौचालय बनाया जाएगा उतना पैसा उपलब्ध होगा|

क्या है योजना?
 सरकार स्वच्छ भारत अभियान चला रही है| इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वालो को शौचाय निर्माण के लिए १२ हजार का प्रोत्साहन राशि दिया जाना है| डीडीसी संजीव कुमार सिंह के अनुसार यह प्रोत्साहन राशि है| ताकि सभी घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध हो सके| इस योजना से जो वंचित हो जायेंगे उनके घर भी शौचालय बने इसके लिए बिहार सरकार लोहिया स्वच्छ बिहार योजना लाई है| दोनों के तहत प्रोत्साहन राशि एक सामान है|

Wednesday 14 December 2016

वाह ! अलविदा बरेली।

बरेली को अलविदा कह चल दिया अगले गंतव्य को। आला हजरत-अहमदाबाद एक्सप्रेस से। अच्छा लगया तुम्हारा भ्रमण। किन्तु तंग गलियां यहाँ भी है। मेरे शहर दाउदनगर की तरह। तुम दाउदनगर से 125 साल बड़े हो। सन 1537 में स्थापित बरेली और 1662 से बसा शहर दाउदनगर। दोनों मुगलकालीन शहर। दाउदनगर उत्तरप्रदेश के भदोही के बाद सबसे बड़ा कालीन निर्माता शहर ओबरा का अनुमंडल है। भदोही जी रहा है और ओबरा मर चुका है। तुम्हारी तंग गलियों में भी रौनक है। 1 रुपए में समोसे खाने का अवसर नहीं मिला तो इसकी कसक साथ रह गयी। है मिठाई खाने के तुम्हारे शौक रोचक है। तुम्हारे लोग मेरे शहर भर बहँगी पर बरेली की मशहुर मिठाई बेचने आते है। तुम्हारे यहाँ का फर्नीचर उद्द्योग देखा। मेरे यहाँ से काफी सस्ता और एक से बढ़ कर एक आकर्षक फर्नीचर किन्तु ले जाने की समस्या। लोगो के व्यवहार और बोली अच्छे लगे। अंत में रेलवे से शिकायत की जब Aला हजरत - अहमदाबाद बरेली से ही खुलती है तो खुलने में 25 मिनट का विलंब क्यों होना चाहिए। उस पर तुर्रा यह कि दो बोगियों में पानी ही नहीं। इस बात ने प्रभावित किया कि tte ने मेरी शिकायत पर कही फोन किया और आश्वस्त किया कि साहब ने मुरादाबाद में पानी उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है।
विकिपीडिया से बरेली का इतिहास-///
1537 में स्थापित इस शहर का निर्माण मुख्यत: मुग़ल प्रशासक 'मकरंद राय' ने करवाया था। यहाँ बाद में इसके आसपास के क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर चुके प्रवासी समुदाय के रोहिल्लाओं की राजधानी बना। 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेज़ों की मदद से इस क्षेत्र को जीत लिया और 1801 में बरेली की ब्रिटिश क्षेत्रों में शामिल कर लिया गया। मुग़ल सम्राटों के समय में फ़ौजी नगर था। अब यहाँ पर एक फ़ौजी छावनी है। यह 1857 में ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह का एक केंद्र भी था।
यह शहर कृषि उत्पादों का व्यापारिक केंद्र है और यहाँ कई उद्योग, चीनी प्रसंस्करण, कपास ओटने और गांठ बनाने आदि भी हैं। लकड़ी का फ़र्नीचर बनाने के लिए यह नगर काफ़ी प्रसिद्ध है। इसके निकट दियासलाई, लकड़ी से तारपीन का तेल निकालने के कारख़ाने हैं। यहाँ पर सूती कपड़े की मिलें तथा गन्धा बिरोजा तैयार करने के कारख़ाने भी है।
2001 की जनगणना के अनुसार बरेली नगरनिगम क्षेत्र की जनसंख्या 6,99,839 है; उपनगर की जनसंख्या 27,953 और ज़िले की कुल जनसंख्या 35,98,701। है।
अंत में वसीम बरेलवी को याद करते हुए अलविदा बरेली---
अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा 
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा 
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा 
सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द—ए—वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?






पेट के लिए ‘मजमा’ बन जाती है ‘जान’

  जीने के लिए सड़कों की खाक छानते है परिवार 

जीवन जीना कितना मुश्किल सीखाते है मजमे वाले
जीवन जीना कला है, लेकिन यह तभी साकार दीखता है जब संसाधन व साधन उपलब्ध हो| अन्यथा जीवन जीना कितना मुश्किल है यह कोइ
मजमे वाले से सीखे| सड़क पर मजमा लगाने वाले बताते है कि जीवन में संतुलन कितना आवश्यक है| जब संतुलन बिगड़ता है तो अच्छे अच्छे मानसिक संतुलन खो देते है| नन्ही ‘जान’ भी मजमा लगाती है| आपके मनोरंजन से अधिक उनकी चिंता अपनी पेट की होती है| उसके मजमा बन जाने के पीछे उसके जीवन जीने की उत्कंठा, जीजीविषा और उपार्जन के उपाय की ताप है|
चाहे गांव की गलिया हो या फिर शहर का चौराहा| हर जगह ऐसे मजमे वाले मिल जाते है| दो जून की रोटी के लिए वे सड़कों के खाक छानते फिरते है। कभी जादुई खेल तो कभी नन्ही सी जान रस्सी पर करतब दिखाती है। लोग स्तब्ध तब रह जाते है जब उस बच्ची की जीभ या गर्दन काटने का करिश्मा दिखाया जाता है| मदारी के खेल का सच रोटी से जुड़ा है लेकिन इसे प्रस्तुत करने का तरीका मनोवैज्ञानिक है। करतब दिखाने वाले भीड़ को मनोवैज्ञानिक तरीके से अपनी ओर बाते बना कर किया आजाता है| कुछ मजमे वाले खेल दिखाकर दवा और दुआ (तावीज) बेचने का भी काम करते है। मदारी वाला कुन्जबिहारी ने बताया कि ये सारे काम हम पेट के खातिर करते है। खेल दिखाकर दोनों समय का भोजन की व्यवस्था करते है। नन्ही सी जान के बारे में बताया कि लोग बच्चे का खेल तमाशा ज्यादा देखना चाहते है। करतब दिखा कर लोगो को मनोवैज्ञानिक रुप से सोचने पर मजबूर करना अपड़ता है| जिससे न चाह कर भी ज्यादा पैसे खुशी -खुशी दे देते है। बच्चे के प्रति ममता उमड़ जाती है।

स्कूलों तक ले जाए –सुनील बाबी

पेट के लिए धर्म युद्ध करते हुए बच्चो को देख कर, उन पर तरस खाकर लोग उन्हें पैसे देते है| लेकिन कभी उनके जीवन शैली के संबंध में जानने की कोशिश कोइ नही करता है। आज सरकारी योजनाएं बहुत संचालित हो रही है लेकिन इनकी ओर सार्थक पहल करने की जरूरत है। बुद्धिजीवी वर्ग को आगे बढकर वैसे नन्हे जान को करतब सड़कों पर नही बल्कि विधालय में कलम से दिखाने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है| तब उनका विकास संभव है ।

Tuesday 13 December 2016

पांच गुणा बढ़ा मालगुजारी का दर


पटवन के लिए भी 
देने पड रहे अधिक पैसे
मुआवजे की उम्मीद में 
बैठे किसान हताश 
किसान जबरदस्त संकट से गुजर रहे है| पहले सों में आये अप्रत्याशित बाढ़ व अत्यधिक बारिश ने उनकी मुसीबते बढाई और अब सरकार ने उनकी समस्या को बढ़ा दिया है| उनके लिए राजस्व की दर (मालगुजारी रेट) पांच गुणा बढ़ा दी गयी है| इसी तरह उनके लिए लगाने वाले पटवन की दर को भी बढ़ा दिया गया है| एक तरफ किसान बाढ़ और बरसात की पीड़ा कम करने के लिए मुआवजे की अंग को ले आन्दोलन करा चुके है, सरकार से राहत की उम्मीद बनाए हुए है तो दूसरी तरफ ऐसी कारर्वाई से वे सकते में है| चथरुआ बिगहा के किसान व राष्ट्रीय किसान संगठन के अध्यक्ष नागेन्द्र सिंह ने इसकी शिकायत अंचल अधिकारी से की है| उन्हें सीओ विनोद सिंह ने उन्हें बताया कि राजस्व विभाग के आदेश के अनुसार ही बढे दर से मालगुजारी का पैसा लिया जा रहा है| नागेन्द्र सिंह ने बताया कि राजस्व व पटवन की दर पांच गुणा बढ़ा दी गयी यह गलत है| जितनी जमीन के लिए उन्हें पहले १६ रूपए की रसीद कटवानी पड़ती थी अब उतने के लिए ही उन्हें ८५ रूपए देने पड़े| कहा कि पटवन की दर भी बढ़ा दे गयी| कहा कि किसान मुआवजे की उम्मीद में बैठे थे और इसा तरह के सरकार के फैसले से उन्हें निराश होना पडा है| कहा कि यह गलत है और किसानो को अपने हित में गोलबंद होकर इसे रद्द कराने की मांग करनी होगी|

फैसला वापस ले सरकार
किसानो की बड़ी हुई समस्या पर सभापटी के प्रतिनिधि अश्विनी तिवारी, भाजपा मंडल अध्यक्ष सुरेन्द्र यादव एवं शम्भू प्रसाद सोनी ने कहा कि सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए| इसा निर्णय से किसान त्रस्त होंगे| कहा कि यह फैसला किसान विरोधी है| जदयू किसान प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष अभय चंद्रवंशी व पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष रामानंद चंद्रवंशी ने कहा कि वे मामला को सरकार के ध्यान में लायेंगे| मामले की समीक्षा की जायेगी| यदि ऐसा हुआ है तो उस पर पुनर्विचार करने के लिए सरकार से मांग की जायेगी| कहा कि राज्य में नीतीश सरकार किसानो गरीबो के हित की तक्षा करने के प्रति समर्पित है| राष्ट्रीय किसान संगठन के अध्यक्ष नागेन्द्र सिंह ने कहा कि हर हाल में सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए|  

Sunday 11 December 2016

बाप रे ! अब ठिठुर रहे गर्म हाथ भी

अब बर्दास्त से बाहर होने की स्थिति बनने लगी है| देश के प्रधानमंत्री ने जब कहा तथा कि 1000 व 500 के नोट अब रद्दी का टुकड़ा हो जाएगा तो यकीन था कि अच्छे दिन बस अब आने ही वाले है| शहर भर में चर्चा चल पडी कि अब तो दिन गरीबन के बदलनेवाले है| फिर सूट- बुट वाले पीएम ने कहा कि- भाइयों, बस 50 दिन मांगे है हमने और उसके बाद स्थिति बदल जायेगी|  अब कहा रहे है कि 50 दिन बाद स्थिति धीरे-धीरे सुधारने लगेगी| धीरज धरें| अरे भाई, शहर तो कब से धीरज रखे हुए है| अब लेकिन गर्म हाथ ठिठुरने लगे है| कडाके की ठंढ में अलाव नहीं जल रहे और जो जल रहे है उसमे प्रशासन नहीं है| अपने स्तर से कितना लकड़ी जलाए| यह आम बात है| ख़ास थोड़ा अलग है| गर्म हाथ उनके है जिनके 1000 और 500 के नोट जल रहे है या नहीं तो फिर दिल जला रहे है| बेचारे कई है शहर में जिन्होंने कम खाया-पीया, पढाई पर खर्च कम किया, देश दुनिया नहीं देखा, घुमा-फिरा नहीं, पेट, तन काटकर धन जमा किया और अब मोदी जी उसे भी बर्बाद करने पर तुले हुए है| शहर में रोज चर्चा है कि फलां का पैसा खूब बर्बाद हुआ, फलां ने अपने रद्दी नोटों को ऐसे खपाया| बहुत सारे उपाए चर्चा में है| रद्दी नोट बदलने के आरोप यहाँ के कई बैंक पर लग रहे है| पता नहीं आईटी विभाग क्या करेगा और कैसे करेगा? फिलहाल जिनके पास रद्दी बन गए नोट है उनके हाथो में कैद धन की गर्मी इस कडाके की ठंढ में बर्फ बन गयी है| गर्म हाथ ठिठुरने लगे है| समझ नहीं आ रहा कि हाथो को गर्म कैसे करे| भाई लोग जुगाड़ भिडाने में लगे है| कोइ सफल हो रहा है कोइ असफल| इस मुआ नोट्बंदी ने छुपे धन्नासेठो को भी बैंक पहुंचवा दिया| देखी आगे आगे क्या होता है?

अंत में इसे समझिए--
शहर के फुटपाथ पर कुछ चुभते मंजर देखना|
सर्द रातो में कभी घर से निकल कर देखना||
ये समझ लो तिश्नगी का दौर सर पर आ गया|
रात को ख्वाबो में रह रह कर समंदर देखना|| 

Monday 5 December 2016

लूट गए किसान, 50 लाख की फसल क्षति

नोनार के प्रभावित किसान अपने बर्बाद खेत में
बाल लगाने से पहले ही गल गयी फसल
200 किसानो को 500 बिगहा की क्षति
अनुमंडल मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर नोनार के किसान लूट गए| पानी के जमाव ने उनकी फासला को बर्बाद कर दिया है| करीब 500 बिगहा में लगी धाना की फसल बर्बाद हो गयी है| इससे 200 किसान के सपने बिखर गए| कई कर्ज में आ गए| इसा इलाके में 18 से 20 क्विंटल धान प्रति बिगहा की उपज होती है| सा हिसाब से करीब 50 लाख की फसल बर्बाद होने का अनुमान है| खेत में खादी फसल के डंठल से बाल गायब है| वे गल कर गिर गए है| गोरडीहां पंचायत के इस गाँव में मौके पर परेशान किसानो ने अपना अहाल इस संवाददाता से इस उम्मीद में सुनाया कि उन्हें कुछ मुआवजा सरकार दे देगी| राष्ट्रीय किसान संगठन के बैनर टेल नागेन्द्र सिंह के नेतृत्व में अनुमंडल कार्यालय पर धरना भी दिया गया था किन्तु कोइ लाभ किसानो को नही हुआ| किसान कुमार जयनंदन सिंह, राम तवक्या यादव, दिनेश्वर यादव, सुधीर कुमार यादव, द्वारिक यादव, बलबीर यादव, अभय कुमार पाठक, मुनारिक यादव, कमलेश यादव, जयनंदन, राजेन्द्र चंद्रवंशी, रणधीर यादव, रामदेव, नीरज, वीर भगत ने बताया कि नुकसान हर साल होता है. किन्तु इस बार काफी अधिक हुआ है| खेत में धान की फसल खडी हुई किन्तु बाल गल कर गिर गये| दाने ख़त्म हो गए तो सपने भी मर गए| समस्या यह है की पूंजी तो डूबी ही, अब कर्ज का भी बोझ हो गया| धान का बोझा जिन माथो पर ढोए जाने थे उन पर अब कर्ज की चिंता ढोए जा रहे है|

डीएम से किसान संघ की गुहार
राष्ट्रीय किसान संगठन के नेता नागेन्द्र सिंह ने डीएम से अपील की है कि वे यहाँ आये और किसानो की इस समस्या को देखे| देखने के बाद वे स्वयं पहल कर इसके स्थायी समाधान का प्रयास करेंगे ऐसी उम्मीद किसानो को है| इन्होने कहा कि आखिर किसान कब तक लाचार बने रेंगे और राजनीतिक दल व कार्यपालिका उनके नाम पर मजे मारती रहेगी| कहा कि किसान बेचैन है| उनके धरना प्रदर्शन में पूर्व विधायक सोम प्रकाश भी शामिल हुए| अन्य राजनीतिक दल भी किसानो के साथ खुद को बताते है किन्तु उनका दर्द हराने के लिए कोइ प्रयास नहीं कर रहा|

बटाईदार व पट्टेदार की बड़ी मुश्किल
नोनार के कई पट्टेदार या बटाईदार फसल बर्बादी के साथ जमीन मालिक को कर्ज के बोझ से भी दब गए है| उन्हें इसे चुकाने की चिंता सताने लगी है| अरुण पासवान, हितन चंद्रवंशी, जीतन चंद्रवंशी, भगवान पासवान ने बताया की उन्होंने जमीन ली और खेती की| अब जब फासला बर्बाद हो गयी तो जमीन मालिक को तय राशि या उपज देना ही है| बताया की मालिक को प्रति बिगहा 20 मन चावल देना होता है| क्या मालिक इस हालात में अपना दावा छोड़ेगा नहीं? इस पर कुमार जयनंदन सिंह ने कहा कि- जब लाभ होता है तो अधिक नहीं देते| इस तर्क के साथ मालिक घाटा या बर्बाद होने पर नहीं छोड़ता है| ऐसे में ऐसे बटाईदारो या पट्टेदारो के सामने चुनौती दोहरी है|

समस्या की वजह क्या है?
नोनार के किसानो की समस्या स्थायी है| इसकी वजह है गाँव में पानी की आवक बहुत है जबकि निकास न के बराबर है| ग्रामीणों ने बताया कि महावर जमुआंव समेत दक्षिणी हिस्से से पानी आता है| गाँव के चारो तरफ पानी जमा रहता है| किसान हर साल उम्मीद में धान रोपते है| कभी थोड़ा नुकसान होता है किन्तु इसा बार काफी नुकसान हुआ| डराअसल में गाँव से पाने निकलने की सुविधा नहीं है| आहार, पीन उड़ाही के नाम पर पैसो की बंदरबांट होती रही है| काम गुनावात्तापूर्र्ण नहीं हुआ| नतीजा अब पानी नहीं निकलता है| इसा समस्या को दूर करने के लिए मनारेगा से काफी काम करने की जरुरत बतायी जाती है| 

Sunday 4 December 2016

बकरा हलाल हुआ गरीबन तेरे लिए


बड़ी शोर है| नोट बंदी हर तरह बवाल किए हुए है| कालाधन बनाने और छुपाने वाले कम थोड़े है| वे भी एक से एक तरकीब निकालकर अपना काला धन सफ़ेद कर रहे है| गावो में कहावत है-तू डाल-डाल मै पात-पात| केंद्र सरकार और कालेधन वालो के बीच यही खेल चल रहा है| इस बीच भी लोगो ने खूब चालाकी दिखाई और गरीबो के जन धन खाते में पैसे जमा करा दिए| मुरादाबाद की जन सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा कर सबको चकित कर दिया कि जन- धन खाते के पैसे ब्लैक मणी रखने वालों के नहीं गरीब खाताधारको के होंगे| उन्होंने पैसे निकालने और अमीर बेईमानो को देने से भी मना किया| लगे हाथ कह दिया कि डरना नहीं मोदी के नाम ख़त लिख देना| अब इसकी चर्चा खूब मिर्च-मशाला लगाकर की जा रही है| उत्तर प्रदेश के चुनाव से लोग जोड़ रहे है तो कुछ इसे एक और क्रांतिकारी कदम बता रहे है| एक ‘आपी’ सज्जन पुरुष अवधेश बोले-मरवा देगा मोदी सबको मरवा देगा| जो पैसा जनधन में डाला है वह छोड़ देगा ऐश करने के लिए? वाकई यह भी एक पहलू है| लेकिन क्या करे| बचपन में एक गाना सूना था-याद आ गया- लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए| पैरोडी करके बना रहा हूँ- बकरा हलाल हुआ गरीबन तेरे लिए| वाकई गरीबन को मजा आ गया| वह अब सपने देखा सकता है क्योंकि उनके खाते में १५ लाख न सही कुछ रूपए तो अब आ ही गए है| अमीर कालाधन रखने वाले बकरा बन गए है| सरकार अब ख़म ठोक के कहेगी कि गरीबो के खाते में पैसे गए| उनकी बेकारी और भूखमरी ख़त्म हुई या कम हुई| और फिर मोदी जी तो जन सभाओ में पूछेंगे- “आपके खाते में पैसे गए, पैसे गए कि नहीं गए? ऐसे नहीं भाइयो- हाथ दोनों हाथ उठा कर बोलिए, गरीबो के खाते में पैसे गए कि नहीं गए? भाइयो, मै आपकी गरीबी दूर करने में लगा रहा और विरोधी मुझे आपसे दूर करने में लगे रहे|” भक्तगन ताले पीटेंगे और न पीटने वालो को आँख तरेरेंगे|

और अंत में-----
अदम गोंडवी को याद आ रहे, इस स्पष्टीकरण के साथ कि इसका ताल्लुक किसी नेता से नहीं है-----
बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है।
कोई रूसो, कोई हिटलर, कोई खय्याम होता है।।

Saturday 3 December 2016

पीला कार्डधारियो को नहीं मिल रहा अब राशन

        राशन से वंचित ग्रामीण

बिना कूपन राशन नहीं दे रहे डीलर
सेक सूची में शामिल नहीं होना मुद्दा
दाउदनगर अनुंमडल के ग्रामीण इलाके में बेचैनी है| अत्यंत गरीब जिनको पीला कार्ड सरकार ने दिया था उन्हें राशन से वंचित किया जा रहा है| बावजूद इसके की सरकार ने यह मानते हुए कि उनसे कोइ गरीब नहीं है उन्हें राशन हर महीन मिलने की गारंटी दी थी| अब वे इससे यह कह कर वंचित किए जा रहे है कि उनके नाम कूपन नहीं है| और कूपन मिलने का जो आधार सेक सूची है, उसमे जिनके नाम शामिल नहीं है, उन्हें कूपन नहीं मिला रहे है| अब बेचारे गरीब करे तो क्या करे? जाए तो कहा जाए| ऐसी स्थिति में उनकी समस्या और गंभीर हो जाती है जब हर कोइ सुनने वाला न हो| प्रखंड के गोरडीहां पंचायत के नोनार में हितन राम, विन्ध्याचल राजवंशी, बीजेन्द्र सिंह, मुंद्रिका ठाकुर, राम लखन साव व अभय पाठक ने बताया की उन्हें उनके डीलर ने यहाँ कहा कर अनाज देने से मन आकार दिया कि उनके नाम सूची से गायब है| ये वे गरीब है जिनको पीला कार्ड उपलब्ध है| राशन न मिले तो उनके घर चुल्हा नहीं जलेगा| ऐसे गरीब कहते है कि वे कहा जाये| कौन सुनेगा उनकी| वे पूर्व मुखिया भगवान सिंह तक अपनी शिकायत पहुंचा कर समस्या के अंत की उम्मीद में घर बैठा गए|

राशन नहीं काट सकता कोइ-भगवान सिंह
कुछ रोज पूर्व ऐसा ही मामला तरारी का सामने आया था| हर पंचायत में ऐसे गरीब है जो आज राशन से वंचित किए जा रहे है| गोरडीहा पंचायत के पूर्व मुखिया भगवान सिंह ने बताया की किसी भी कीमत पर पीला कार्डधारी का राशन बंद नहीं किया जा सकता है| यह तबका सबसे गरीब माना गया है| बताया कि उनके पंचायत में ही ऐसे गरीब पीला कार्डधारियो की संख्या १०० से अधिक है| अन्य पंचायतो में भी ऐसी ही स्थिति है|


सरकारी आदेश का पालन-डीलर संघ
फेयर प्राइस डीलर एसोसिएशन के जिला सचिव हर प्रदेश संगठन मंत्री सुरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि डीलरो की कोइ गलती नहीं है| हम सरकार के आदेश का पालन करे रहे है| सरकार मानती है की सभी अन्त्योदय योजना एके लाभुक पीएचएच में शामिल है| इसा कारन सरकार 22 फीसदी राशन की कटौती कर रही है| जब कि धरातल पर ऐसा है नहीं| बताया की ५० फीसदी से अधिक ऐसे पीलाकार्द धारी है जिनके नाम पीएचएच में शामिल नहीं है| स्थिति विकट है| डीलर और कार्डधारी के बीच हर जगह विवाद हो रहा है| सरकार ने तैयारी सही नहीं की| पीएचएच में छूटे हुए गरीबो के नाम जोड़ने की बात थी जबकि जिनको मिलते थे उनके नाम भी काट दिए गए है| 

गरीबो के लिए है यह रास्ता
राशन से वंचित किए जा रहे पीला कार्डधारियो के लिए एक रास्ता है| वे प्रखंड कार्यालय जा जाकार आरटीएपीएस काउंटर पर आन लाइन करे| बीडीओ मामले की जाँच करेंगे और उसके बाद उनके नाम सर्वेक्षण सूची में शामिल किये जा सकते है| सूत्रों के अनुसार अधिकारियों के मौखिक आदेश पर कुछ डीलर ऐसे गरीबो को राशन उपलब्ध करा रहे है|

Friday 2 December 2016

आइए महसूस करिए जिन्दगी के ताप को

विश्व विकलांग दिवस पर विशेष रिपोर्ट
अदम गोंडवी के एक शेर को विश्व विकलांग दिवस पर थोडा बदल दे रहा हूँ| आइए महसूस करिए जिन्दगी के ताप को, मै दिव्यंगो की गली तक ले चलूँगा आपको|| जी हां| दिव्यांगो के बारे में चर्चा का यह दिन विशेष है| अनुमंडल में सिर्फ अस्थि विकलांगो का ही प्रमाण पात्र बनता है| हद यह कि लाभ हानी देखा कर मुद्दे चुनने वाले राजनीतिक दलो को इसमे कोइ “प्रोटीन” नहीं दीखता| यहाँ चिकित्सक नहीं होने के कारण दिव्यांगो की मुश्किल है| पीएचसी में  आँख, कान, गला के चिकित्सक नहीं है| इस कारण इससे जुड़े दिव्यांगो के प्रमाण पत्र नहीं बनते| मानसिक तौर पर भी जो दिव्यांग है उनको प्रमाण पात्र नहीं बनाए जाते| इन सबके लिए सदर अस्पताल की दौड़ लगानी होती है| वहा भी कई विभागो के डाक्टर नहीं है| सो दिव्यंगो को गया मगध मेडिकल कालेज या पीएमसीएच पटना रेफर कर दिया जाता है| ऐसे में अनुमान करिए की गरीब दिव्यांगो को क्या क्या झेलना पड़ता है| विकलांग अब दिव्यांग हो गए है, किन्तु विशेषण बदल देने से किसी संज्ञा के हालात नहीं बदल जाते| अनुमंडल के प्राय: सभी प्रखंडो की स्थिति एक सी है| इस मुद्दे पर सरकार और प्रशासन दोनों को सोचना होगा और लाभ हानी देखने वाले नेताओं को इसे मुद्दा बनाना होगा अन्यथा दिव्यांग लाचार ही बने रहेंगे|

माह में दो बार शिविर-डा.कौशिक
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा.मनोज कौशिक ने बताया की माह में प्रथम और त्रतीय शुक्रवार को शिविर लगता है| कोइ भी दिव्यांग प्रमाण पात्र बनवा सकता है| चूंकि ईएनटी व मानसिक रोग विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है इस कारण इनका प्रमाण पत्र नहीं बनता| प्रभारी के अलावा डा.उपेन्द्र कुमार सिंह व डा.विनोद प्रसाद शर्मा की तीन सदस्यीय समिति अस्थि दिव्यंगो की जांच कर प्रमाण पात्र निर्गत करती है| एक साल में यहाँ से ५० निश्शाक्तता प्रमाण पत्र जारी किए गए है|

दो साल पर ट्राइसाइकिल और हर माह मिले पेंशन
 बिहार दिव्यांग अधिकार मंच के प्रखंड अध्यक्ष मो.जुनैद खान ने कहा कि आठ महीने से पेंशन नहीं मिला है| यह हर महीने मिलना चाहिए| रूपए 400 की जगह इसे अब 2000 रूपए किया जाना चाहिए| दो साल पर ट्राइसाइकिल मिलने का प्रावधान हो| दिव्यांग किसी तरह जीवन यापन करते है उनके लिए इसे बार बार बनवाना संभव नही होता| नौकरी में 3 की जगह 10 फीसदी आरक्षण मिले| आधार कार्ड कई जगह मांग जाता है जबकि जिनके हाथ नहीं होते या एक होता है या उंगली नहीं होती उनका आधार नहीं बनाया जाता है| किसी भी सरकारी कार्यालय में दिव्यांगो के लिए अलग से सुविधा की व्यवस्था नही है| इससे परेशानी होती है|

ईएनटी दिव्यांगो के यंत्र व पढाई नहीं-डा.विकास
एक्यूप्रेसर चिकित्सक व बिहार दिव्यांग अधिकार मंच के कोषाध्यक्ष डा.विकास मिश्रा ने कहा कि आँख व कान से दिव्यांग को यंत्र उपलब्ध नहीं कराया जाता| न सुनने का यंत्र न ही ह्वाईट स्टीक कभे जिला में वितरित किया गया है| यहाँ इतना महंगा होता है कि इसे क्रय नहीं करा पाते है दिव्यांग| कहा कि कही भी ब्रेल लिपि में पढाई की सुविधा जिला में उपलब्ध नही है| कहा कि यदि जिला में इनकी सुविधा उपलब्ध हो जाए तो कई दिव्यांगो को स्वरोजगार या नौकरी का अवसर मिलता| सुविधा न होने के कारण ही दिव्यांग लाचार और पराश्रित बने हुए है|

१९८१ से अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस
अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस सयुंक्त राष्ट्र संघ ने ३ दिसंबर १९९१ से प्रतिवर्ष मनाने की स्वीकृति दी थी। सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सयुंक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर वर्ष 1983-१९९२ को अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस दशक घोषित किया था। भारत में विकलांगों से संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन होता है।
उद्देश्य भेद भाव समाप्त करना
आधुनिक समाज में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के साथ हो रहे भेद-भाव को समाप्त किया जाना इसा दिवस का उद्देश्य है। इस भेद-भाव में समाज और व्यक्ति दोनों की भूमिका रेखांकित होती रही है। भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास में, सरकारी सेवा में आरक्षण देना, योजनाओं में विकलांगो की भागीदारी को प्रमुखता देना, आदि को शामिल किया जाता है। ताकि भेद भाव समाप्त हो|

Thursday 1 December 2016

नपं का बकाया 30 लाख मिला 87 हजार मात्र

सबसे बड़े दो बकायेदार पीएचसी व प्रखंड कार्यालय
सरकारी कार्यालयों, भवनों पर 6 लाख बकाया
नोटबंदी में कई नगर निकायों की राजस्व वसूली कई गुणा बढ़ गयी किन्तु इसका बड़ा असर दाउदनगर नगर पंचायत पर नहीं पडा| इसका शहर के भवनों पर करीब 30 लाख बकाया है| इसमे सरकारी भवनों पर करीब 6 लाख बाकी है| इतना अधिक बकाया रहने के बावजूद नोटबंदी के बाद मात्र 87 हजार 811 रुपया ही जमा हुआ है| निम्न वर्गीय लिपिक रामइंजोर तिवारी ने बताया की नोटबंदी के दिन से अब तक मात्र इतनी ही कर जमा हुई है| तहसील मुहर्रिर मनोज कुमार गुप्ता के अनुसार गत वित्तीय वर्ष 2015-2016 में 30 लाख 19 हजार 53 रूपए गृह कर बकाया है| इसके पीछे आखीर क्या वजह है? ऐसा नहीं है कि यहाँ १००० और ५०० के पुराने नोट उपलब्ध नहीं थे| थे किन्तु सबने दूसरी जगह खपाने की कोशिश की किन्तु घर का कर जमा करना नहीं चाहा| इसकी वजह साफ़ है| गृह कर जमा करने की प्रवृति का अभाव| लोग आमा तौर परा गृह कर तभी जमा करते है जब ऐसा किए बिना कोइ काम नहीं हो सकता| यह प्रवृति नपं को नुकसान पहुंचाता है| नोटबंदी के बाद राजस्व अधिक जमा हो इसके लिए कोइ प्रयास नहीं किया गया है| जानकारों का कहना है कि यदि प्रचार किया जाता तो जागरूकता आती और लोग गृह कर देने पहुंचते|

सर्वाधिक 1.16 लाख स्वास्थ्य विभाग पर बाकी
दूसरा बड़ा बकाया प्रखंड कार्यालय पर 1.18 लाख
नगर पंचायत का सर्वाधिक बड़े दो बकायेदार है| सबसे अधिक चिकित्सा एवं परिवार कल्याण कार्यालय पर 01 लाख 61658 रूपए बकाया है| इसके बाद प्रखंड कार्यालय है जिस पर 1 लाख 18 हजार 148 रूपए बकाया है| प्राप्त विवरण के अनुसार अंचल कार्यालय पर ४६६४२ रूपए, सिंचाई कार्यालय पर ८३३० रूपए, आपकारी विभाग पर ५७१३० रूपए, प्रखंड पशुपालन कार्यालय पर १५५४० रूपए, शिक्षा विभाग पर २४९३० रूपए, जिला परिषद् डाकबंगला पर २१७० रूपए, क्रषि उत्पादन बाजार समिति पर १६३०४ रूपए, व्यापार मंडल पर ६८३८० रूपए, थाना पर ७८९६ रूपए, अधीक्षक ग्राम शिल्प एवं आरक्षी भवन पर ३३६० रूपए, उपकोषागार पर ४४८० रूपए, दूरसंचार पर १०५० रूपए, बाला विकास परियोजना पर १३५२० रूपए, मुख्या डाक घर पर १९९२५ रूपए और उपकारा पर १००८० रूपए बकाया है| सरकारी भवनों की ही तरह आम घरो के बाशिंदों पर भी काफी बकाया है| गृह कर देने के प्रति समाज उदासीन बना हुआ है|

गत तीन साल में गृह कर की वसूली
नगर पंचायत में करीब सात हजार घर है जिनसे गृह कर की वसूली होती है| प्राप्त विवरण के अनुसार वर्ष २०१३- १४ में ७ लाख ९० हजार २४२ रूपए, साल २०१४-१५ में ७ लाख २१ हजार ९५८ रूपए और साल २०१५-१६ में ७ लाख १२ हजार ७८० रूपए की ही वसूली हो पायी है| अभी बकाया करीब तीस लाख रुपए है| 

Wednesday 30 November 2016

अब नहीं सूने जाते है एड्स से जुड़े नारे

विश्व एड्स दिवस पर विशेष
जागरूकता के कारण बदली स्थिति
आज 01 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस है| एक खतरनाक बीमारी के बारे में चर्चा करने का अवसर विशेष| ऐसी बीमारी जिसके बारे में चर्चा करना भी कभी ‘गुनाह’ से कम नहीं था| गत एक दशक में परिस्थिति बदले एही और अब इसपर खुलेआम चर्चा होती है| स्थानीय सन्दर्भ में देखे तो अनुमंडल की भी स्थिति काफे बदला गयी है| लोग चर्चा करने से कतराते थे| एक दहशत सा माहौल बना हुआ था| प्रचार –प्रसार और शिक्षा का स्टार बढ़ने के कारण आज स्थिति ऐसी है की न कही इसके मरीज नजर आते है न इसा पर चर्चा ‘गुनाह’ रह गया है| हालांकि अब भी एक नियम है कि किसी मरीज का नाम नहीं सार्वजनिक करना है| अब तो इस मामले में अनुमंडल में एक शून्य की स्थिति बन गयी है| डार्ड को भी गत कई साल से इसा क्षेत्र में काम करने को मौक़ा नहीं मिला है| जिला में नेशनल हाइवे हो या रेड लाईट एरिया, दोनों ही जगहों पर कॉन्डोम वितरण से लेकर जागरूकता लाने तक का अकाम इसा एनजीओ ने किया है| गाँव गाँव तक इससे जुड़े स्लोगन लिखे गए| इसका प्रतीक चिन्ह दीवारों पर उकेरा गया| आज शायद ही ऐसा गाँव या उसका मोहल्ला है जहा इसा बीमारी के बारे में जानने वाले न हो| इलाके में कई मौते हो चुकी है| अब हालात बदल गए है| बिहार राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी (बिसेक्स) ने तब भी यहाँ कोइ कार्यक्रम नहीं चलाया था और अब भी नहीं चलाया जाता है|

कोइ एचआईवी पोजेटिव मरीज नहीं-डा.कौशिक
डा.मनोज कौशिक
यहाँ कोइ एचआईवी पोजेटिव मरीज सरकारी खाते में दर्ज नहीं है| यह बात प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा.मनोज कौशिक ने कही| बताया की पीएचसी में जांच की सुविधा उपलब्ध है| हर गर्भवती महिला की एचआईवी जांच होती है| यह अनिवार्य है, किन्तु गत छ: महीने में करीब तीन हजार जांच के बावजूद एक भी एचआईवी पोजेटिव मरीज नहीं मिला| इनके अनुसार ऐसी स्थिति जागरूकता के कारण आयी है|

महत्वपूर्ण ख़ास तथ्य
एचआईवी को ह्यूमन इम्यून डिफिशंसी वाइरस के नाम से जाना जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो हमारे इम्यून सिस्टम पर असर करती है। एड्स को एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशियेंसी सिंड्रोम कहते है| विश्व एड्स दिवस की पहली बार कल्पना 1987 में अगस्त के महीने में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा की गई थी। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न दोनों डब्ल्यू.एच..(विश्व स्वास्थ्य संगठन) जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। उन्होंने एड्स दिवस का अपना विचार डॉ. जॉननाथन मन्न (एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक) के साथ साझा किया, जिन्होंने इस विचार को स्वीकृति दे दी और वर्ष 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाना शुरु कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने साल 1995 में विश्व एड्स दिवस के लिए एक आधिकारिक घोषणा की जिसका अनुकरण दुनिया भर में अन्य देशों द्वारा किया गया।

सुरक्षा बचाए एड्स से

एड्स से बचने के लिए सुरक्षा ही सबसे सार्थक उपाय है| अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहना, एक से अधिक से यौनसंबंध ना रखना, कंडोम का सदैव प्रयोग करना सुरक्षित उपाय है| यदि एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाने और यौन संबंध जारी रखनें से साथी भी संक्रमित हो सकता है और संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। एचाआईवी पोजेटिव या एड्स होने पर रक्तदान कभी ना करें। 

Sunday 27 November 2016

बंद तो बंद है, साँसें बंद हो या भारत


आज भारत बंद है| बंद भ्रष्टाचार, अत्याचार, के खिलाफ नहीं, बंद है कालेधन के खिलाफ हुई कारर्वाई के खिलाफ| सबके अपने तर्क हो सकते है, किन्तु सच यही है कि पहली बार सरकार के खिलाफ बंदी के मुद्दे के साथ जनता का समर्थन है न कि बंदी कराने वाले विपक्षियो के साथ| खैर, जनता इस पर बंटी हुई है| इसके खिलाफ ऑर समर्थन में भीड़ है और उसके अपने तर्क है| इस प्रकरण पर मो.खुर्शीद आलम की एक कविता बरबस स्मरण हो आती है-
क्यों बंद करते हो दूकान का फाटक, बंद करो ये बंद करने कराने का नाटक| यहाँ बंद वहां बंद, गली बंद, चौराहा बंद, दूकान बंद, मकान बंद, मकान में अच्छा भला इन्सान बंद, पर किसी की आत्मा से ये आवाज नहीं निकली कि हो अत्याचार बंद, भ्रष्टाचार बंद, माँ की लूटती हुई इज्जत व बहन का हो रहा बलात्कार बंद| क्यों कहेंगे? ये तो खुद अत्याचारी है, मौत के व्यापारी है| बंद बंद के चक्कर में कल रात मर गया न रिक्शा चालाक का बाप| रिक्शा चला नहीं सका, अपने बाप को भर पेट खिला नहीं सका| बंद की सफलता पे जश्न मनाया गया, शराब व शबाब का दौर चलाया गया, बेचार रिक्शा वाला चीखता रहा, चिल्लाता रहा, सिसकता रहा, विलखता रहा| पर कोइ भी इसके बाप की अर्थी को कंधा लगाने नहीं आया| प्यार से कोइ पीठ थपथपाने नहीं आया| बार बार यही बुदबुदाता रहा कि काश, आज फिर कोइ बंद कराता और मै भी बाप की अर्थी पर सो जाता||
बंद की राजनीति हमेशा घातक होती है, आम लोगो को परेशान करती है| चाहे बंद कोइ कराये, भुगतना तो जनता को ही पड़ता है| जनता, जनता होती है चाहे वह किसी की समर्थक हो या विरोधी| जनता देश की होती है, यह सबको खयाल रखना चाहिए|

हरिबंश राय बच्चन कह गए है—
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।


Saturday 26 November 2016

पैसे को ले मजबूर मजदूर ले रहे पुराने नोट

विमुद्रीकरण से मनरेगा की 
योजनाएं भी प्रभावित
नये नोट मांग रहे मजदूर
पुराने हैं उपलब्ध
नोटबंदी से अब मनरेगा भी कार्य प्रभावित होने लगा है। मजदूर अपनी मजबूरी में पुराने नोट लेने को विवश हैं। उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए पैसे चाहिए। रोजमर्रे के खर्च के लिए वे इसी कारण पुराने नोट भी ले ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार कई जगह काम बन्द हैं। मजदूरों को रोज पैसे चाहिए। वे रोज कमाने खाने वाले लोग हैं। सूत्रों के अनुसार तरार मुख्य पथ से तरारी मुख्य पथ को जोडने वाली करीब 40 हजार फीट लंबी सडक मात्र 500 फीट बन सकी। कम फिलहाल ठप है। समस्या बस यही है कि मजदूर नये नोट मांग रहे हैं और वह उपलब्ध नहीं हो रहा है। कुसुम यादव कालेज से एनएच-98 तक तरारी पंचायत में नाली का निर्माण जारी है। इसमें मनरेगा के तहत काम हो रहा है। लाखों की लागत से यह निर्माण हो रहा है। मौके पर मजदूर रामचन्द्र पासवान ने बताया कि नया नोट नहीं मिल रहा है। पुराना नोट नून-धनिया भर मिल जा रहा है। रामरुप राम, गनौरी चौधरी, अमरजीत कुमार व सिद्धेश्वर चौधरी ने बताया कि 2000 का नोट जब मिल रहा है तो उससे सामान नहीं मिल रहा है। क्योंकि बाजार में छुट्टे नहीं हैं। पुराने नोट लेकर ही काम करना पड रहा है। उसे भी कोई नहीं ले रहा है। बडी मुश्किल हो रही है। रोज कमाना खाना पड रहा है। मजबूरी में कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।

मानवीय कारण से मजबूरी-मुखिया
संगीता देवी 


मुखिया संगीता देवी ने बताया कि मनरेगा के तहत मजदूरी बैंक खाते में देना है| इसके बावजूद मजदूरों को मानवीय कारण से नगद पैसे कभी-कभी देना पड़ता है| यह उधार होता है| क्योंकि बिना नगदी के काम नहीं चलेगा| कहा कि मजदूरो को भी परिवार चलाना होता है| रोजमर्रे का खर्चा हो या अवसर विशेष के लिए पैसे चाहीए ही चाहिए| इसलिए पैसे देना पड़ता है|



नगदी नहीं, देते हैं पैसे
शैलेन्द्र कुमार सिंह
बोले पीओ शैलेन्द्र कुमार सिंह
मनरेगा की योजनाओं के नोटबन्दी से होने वाले प्रभाव पर पीओ शैलेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि कोई असर नहीं है। इस योजना में मजदूरों और सामग्री उपलब्ध कराने वालों को पैसे ईएफएमएस (इलेक्ट्रिनिक फन्ड मैनेजमेंट सिस्टम) के जरिए खाते में दिये जाते हैं। इस कारण काम प्रभावित होने का प्रश्न ही नहीं उठता। बताया कि मजदूरों को नगदी पैसे नहीं देने होते है| ऐसा करना गलत है|

 नगदी का लेन देन विवशता
मनरेगा के मजदूरों के साथ नगद लेन देन वैध नहीं है| इसके बावजूद ऐसा होता है क्योंकि यह विवशता है| मजदूर को रोज पैसे चाहिए| बैंक खाता में पैसे जाने और फिर उससे निकालने में समय खर्च होता है| इसलिए वह किसी से मजदूरी नगदी लेता है| बाद मे अपने खाते से निकाल कर वापस दे देता है

Sunday 20 November 2016

चौधरी के आगे चौधरी, चौधरी के पीछे चौधरी

तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर, बोलो कितने तीतर? यह अक्सर बच्चों के बीच पूछे जाने वाले मनोरंजक सवाल है। ऐसा ही एक सवाल मुझसे देर रात प्रवीण प्रकाश ने पूछा- आपका इशारा किस चौधरी की ओर है सर? वास्तव में मैं फिल्म विधाता देख रहा था तो दिलीप कुमार ने अमरेश पुरी से कहा- बड़ा आदमी बनना हो तो छोटी हरकत नही करते चौधरी। यह पंक्ति मुझे उद्द्वेलित कर गयी। इसे फेसबुक पर पोस्ट किया। अपनी ओर से लिखा-याद रखना...। बस सवाल आ गया। मुझे लगा, इसका जबाब क्या होगा? अनुज रामचन्द्र पांडेय ने कहा-  इसलिये तो चवन्नी नहीं पाँच सौ और एक हजार का नोट बंद हुआ है। असहिष्णुता के इस दौर में किसी एक या दो का नाम नहीं लिया जा सकता। वरना, शामत आ जायेगी। कई लोग बुरा मान जायेंगे। 
मुझे लगता है आज हर शहर में एक चौधरी रहता है। चौधरी के आगे कई चौधरी और उसके पीछे भी कई चौधरी रहते हैं। तीतर की तरह सिर्फ दो आगे और दो पीछे वाली स्थिति नहीं है जिसका जवाब थोडा सा भी चंचल बच्चा तीन दे देता है। चौधरी के मामले में ऐसा कतई नहीं है। यहां स्थिति उलझी हुई है। यह बताना मुश्किल है कि चौधरी के आगे कितने चौधरी हैं और उसके पीछे कितने चौधरी हैं? चौधरी की चौधराहट हर सिनेमा में दिखती है। प्राय: मूंछे टाइट, शरीर में अकडन, कडक आवाज और तीखी जुबान। फिल्मों में चौधरी की यही है पहचान। यह और बात है कि फिल्मों से बाहर यानी रील लाइफ से बाहर रियल लाइफ में चौधरी अब दलाल की भूमिका में हैं, या यू कहें कि हर दलाल अब खुद को चौधरी ही समझ बैठा है। इनकी चौधराहट का दायरा सिकुडा हुआ होता है। कुछ लोग आगे-पीछे करते हैं और तीतर भी चौधरी होने का भ्रम पाल लेता है। रियल लाइफ का चौधरी अब जाति, धर्म, दल विशेष के कूंए का मेंढक होता है और गाहे-बगाहे पूछता रहता है- समंदर क्या होता है? क्या वह मुझसे बडा होता है? बेचारे को कौन समझाए कि कूंए से बाहर की दुनिया कितनी विस्तृत होती है। कहते हैं न- सब समझ समझ का फेरा है।

अंत में दुष्यंत कुमार ----
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही॥
सीने में जिन्दगी के अलामात हैं अभी।
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही॥