Sunday 18 December 2016

शहरियों फूल बरसाओ हुजूर आये हैं


शहरियों साहेब कहो या हुजूर आये हैं,
महागठबंधन के खेवन-हूर आये हैं।
उनको स्वागत कर प्रभावित करो,
सब मिल के चारण गीत गाओ,
चरण वन्दन और तिलक करो,
कुछ मांग सको तो मांग लो,
कौन ठिकाना हूजूर दे जावें,
फूल बरसाओ हुजूर आये हैं।
जी हां। 21 दिसंबर दिन बुधवार को नवाब दाऊद खान के  बसाये शहर में बिहार के नवाब आ रहे है। ओह, शौरी, जनाब मैं गलत तो नहीं कह गया। नवाब कहना कमतर आंकना नहीं है, वैसे जिनको ऐसा लगता है उन्हें नवाब की जगह बादशाह, समाजवादी सम्राट की तरह राजा, सम्राट, हुजूर कुछ भी अपने मन का पढ़ सकते है, लेखक को आपत्ति नही है। ऐसी छूट तो लोकतंत्र में सबको है। मुझको भी और आपको भी है।
खैर, कहना यह है कि साहेब आ रहे है तो तैयारी जोर से जोरों की हो रही है। सिर्फ फूल स्वागत में भेंट ही नही किए जाएंगे उन्हें, फूल ऐसे लगाए जा रहे है कि वे स्थायी तौर पर नयनाभिराम हो। सबको बेहतरी का अहसास हो। जब आ रहे है तो उनसे कुछ मांगने का भी मन कर रहा है। वैसे दाउदनगर पर उनकी मेहरबानी रही है। सोन पूल अब तक की सबसे बड़ी योजना दी है। एक बड़ी योजना अपने पूर्ववर्ती छोटी योजना से भी बदतर हालत में है। साहेब उसे ही ठीक कर देते तो हुजूर की शान बढ़ जाती। हां, मैं अनुमंडल अस्पताल दाउदनगर की बात कर रहा हूँ। यह अपने निर्धारित आकार में नहीं है। डाक्टर नही है, अन्य सुविधाएं भी नदारद हैं। क्या हुजूर को कोइ यह बतायेगा कि इस अस्पताल के उदघाटन की आपकी ललक को राजनीति ने कैसे ख़त्म किया था। आप उदघाटन नहीं कर सके और आपने जिसे उत्तराधिकारी बनाया वे अधूरा ही उदघाटन कर गए है। जनता तो बेचारी होती है हुजूर, वह बेचारी ही बनी रहे इसमें उत्तर भारत की राजनीति को अपना भविष्य दीखता है। उसकी बेचारगी में नेता और दल अपने लिए उर्वरक पाते हैं। आप तो उसे नहीं हैं न, आप तो अलग दीखते हैं या खुद को भी खुद ही अलग बताते है। तो क्या आपसे इतनी उम्मीद नही बनती कि आप आये है तो सिर्फ फूल आप पर ही बरस कर न मुरझा जाए। उस फूल की खुशबू तो महकने के लिये सदा हेतू छोड़ जाइए। बेहाल, बदहाल जनता स्वस्थ हो सकेगी यदि आप अनुमंडल अस्पताल को महका गए। वरना बेचारी जनता ही जब महकने लायक नहीं रह जायेगी तो सड़ांध मारने लगेंगे उसके विचार। और प्रतिकूल सामूहिक विचार नेताओ के लिए खतरनाक होते है। इतना तो आप समझते ही है। अच्छा होगा, अस्पताल बेहतर कर जाए, अन्यथा अस्वस्थ जनता आने वाले समय में आपको कैसे स्वस्थ रख सकेगी। ऐसा नही होता कि अस्वस्थ लोग मिककर किसी को स्वस्थ रखा सकें या बना सकें। वैसे यह मेरी सलाह है। मानना न मानना आप पर निर्भर है। साहब, हुजूर, आये है तो यह कर जाइये। शायद यह आपको अमरत्व दे जाए। जनता फलक- फावड़ा बिछाये बैठी है।


अंत में, शमशेरनगर पानी टंकी और अदम गोंडवी
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है ।।
शमशेरनगर में बंद पानी की टंकी चालू है
यह ज्ञान व्यवहारिक नहीं जनाब किताबी है।।

(यह व्यंग्य कॉलम मैंने राजकोट गुजरात से सोमनाथ जाने के क्रम में बस में लिखा है)

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