Wednesday 14 December 2016

वाह ! अलविदा बरेली।

बरेली को अलविदा कह चल दिया अगले गंतव्य को। आला हजरत-अहमदाबाद एक्सप्रेस से। अच्छा लगया तुम्हारा भ्रमण। किन्तु तंग गलियां यहाँ भी है। मेरे शहर दाउदनगर की तरह। तुम दाउदनगर से 125 साल बड़े हो। सन 1537 में स्थापित बरेली और 1662 से बसा शहर दाउदनगर। दोनों मुगलकालीन शहर। दाउदनगर उत्तरप्रदेश के भदोही के बाद सबसे बड़ा कालीन निर्माता शहर ओबरा का अनुमंडल है। भदोही जी रहा है और ओबरा मर चुका है। तुम्हारी तंग गलियों में भी रौनक है। 1 रुपए में समोसे खाने का अवसर नहीं मिला तो इसकी कसक साथ रह गयी। है मिठाई खाने के तुम्हारे शौक रोचक है। तुम्हारे लोग मेरे शहर भर बहँगी पर बरेली की मशहुर मिठाई बेचने आते है। तुम्हारे यहाँ का फर्नीचर उद्द्योग देखा। मेरे यहाँ से काफी सस्ता और एक से बढ़ कर एक आकर्षक फर्नीचर किन्तु ले जाने की समस्या। लोगो के व्यवहार और बोली अच्छे लगे। अंत में रेलवे से शिकायत की जब Aला हजरत - अहमदाबाद बरेली से ही खुलती है तो खुलने में 25 मिनट का विलंब क्यों होना चाहिए। उस पर तुर्रा यह कि दो बोगियों में पानी ही नहीं। इस बात ने प्रभावित किया कि tte ने मेरी शिकायत पर कही फोन किया और आश्वस्त किया कि साहब ने मुरादाबाद में पानी उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है।
विकिपीडिया से बरेली का इतिहास-///
1537 में स्थापित इस शहर का निर्माण मुख्यत: मुग़ल प्रशासक 'मकरंद राय' ने करवाया था। यहाँ बाद में इसके आसपास के क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल कर चुके प्रवासी समुदाय के रोहिल्लाओं की राजधानी बना। 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेज़ों की मदद से इस क्षेत्र को जीत लिया और 1801 में बरेली की ब्रिटिश क्षेत्रों में शामिल कर लिया गया। मुग़ल सम्राटों के समय में फ़ौजी नगर था। अब यहाँ पर एक फ़ौजी छावनी है। यह 1857 में ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह का एक केंद्र भी था।
यह शहर कृषि उत्पादों का व्यापारिक केंद्र है और यहाँ कई उद्योग, चीनी प्रसंस्करण, कपास ओटने और गांठ बनाने आदि भी हैं। लकड़ी का फ़र्नीचर बनाने के लिए यह नगर काफ़ी प्रसिद्ध है। इसके निकट दियासलाई, लकड़ी से तारपीन का तेल निकालने के कारख़ाने हैं। यहाँ पर सूती कपड़े की मिलें तथा गन्धा बिरोजा तैयार करने के कारख़ाने भी है।
2001 की जनगणना के अनुसार बरेली नगरनिगम क्षेत्र की जनसंख्या 6,99,839 है; उपनगर की जनसंख्या 27,953 और ज़िले की कुल जनसंख्या 35,98,701। है।
अंत में वसीम बरेलवी को याद करते हुए अलविदा बरेली---
अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा 
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा 
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा 
सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द—ए—वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?






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