Wednesday 30 November 2016

अब नहीं सूने जाते है एड्स से जुड़े नारे

विश्व एड्स दिवस पर विशेष
जागरूकता के कारण बदली स्थिति
आज 01 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस है| एक खतरनाक बीमारी के बारे में चर्चा करने का अवसर विशेष| ऐसी बीमारी जिसके बारे में चर्चा करना भी कभी ‘गुनाह’ से कम नहीं था| गत एक दशक में परिस्थिति बदले एही और अब इसपर खुलेआम चर्चा होती है| स्थानीय सन्दर्भ में देखे तो अनुमंडल की भी स्थिति काफे बदला गयी है| लोग चर्चा करने से कतराते थे| एक दहशत सा माहौल बना हुआ था| प्रचार –प्रसार और शिक्षा का स्टार बढ़ने के कारण आज स्थिति ऐसी है की न कही इसके मरीज नजर आते है न इसा पर चर्चा ‘गुनाह’ रह गया है| हालांकि अब भी एक नियम है कि किसी मरीज का नाम नहीं सार्वजनिक करना है| अब तो इस मामले में अनुमंडल में एक शून्य की स्थिति बन गयी है| डार्ड को भी गत कई साल से इसा क्षेत्र में काम करने को मौक़ा नहीं मिला है| जिला में नेशनल हाइवे हो या रेड लाईट एरिया, दोनों ही जगहों पर कॉन्डोम वितरण से लेकर जागरूकता लाने तक का अकाम इसा एनजीओ ने किया है| गाँव गाँव तक इससे जुड़े स्लोगन लिखे गए| इसका प्रतीक चिन्ह दीवारों पर उकेरा गया| आज शायद ही ऐसा गाँव या उसका मोहल्ला है जहा इसा बीमारी के बारे में जानने वाले न हो| इलाके में कई मौते हो चुकी है| अब हालात बदल गए है| बिहार राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी (बिसेक्स) ने तब भी यहाँ कोइ कार्यक्रम नहीं चलाया था और अब भी नहीं चलाया जाता है|

कोइ एचआईवी पोजेटिव मरीज नहीं-डा.कौशिक
डा.मनोज कौशिक
यहाँ कोइ एचआईवी पोजेटिव मरीज सरकारी खाते में दर्ज नहीं है| यह बात प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा.मनोज कौशिक ने कही| बताया की पीएचसी में जांच की सुविधा उपलब्ध है| हर गर्भवती महिला की एचआईवी जांच होती है| यह अनिवार्य है, किन्तु गत छ: महीने में करीब तीन हजार जांच के बावजूद एक भी एचआईवी पोजेटिव मरीज नहीं मिला| इनके अनुसार ऐसी स्थिति जागरूकता के कारण आयी है|

महत्वपूर्ण ख़ास तथ्य
एचआईवी को ह्यूमन इम्यून डिफिशंसी वाइरस के नाम से जाना जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो हमारे इम्यून सिस्टम पर असर करती है। एड्स को एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशियेंसी सिंड्रोम कहते है| विश्व एड्स दिवस की पहली बार कल्पना 1987 में अगस्त के महीने में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा की गई थी। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न दोनों डब्ल्यू.एच..(विश्व स्वास्थ्य संगठन) जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। उन्होंने एड्स दिवस का अपना विचार डॉ. जॉननाथन मन्न (एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक) के साथ साझा किया, जिन्होंने इस विचार को स्वीकृति दे दी और वर्ष 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाना शुरु कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने साल 1995 में विश्व एड्स दिवस के लिए एक आधिकारिक घोषणा की जिसका अनुकरण दुनिया भर में अन्य देशों द्वारा किया गया।

सुरक्षा बचाए एड्स से

एड्स से बचने के लिए सुरक्षा ही सबसे सार्थक उपाय है| अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहना, एक से अधिक से यौनसंबंध ना रखना, कंडोम का सदैव प्रयोग करना सुरक्षित उपाय है| यदि एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाने और यौन संबंध जारी रखनें से साथी भी संक्रमित हो सकता है और संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। एचाआईवी पोजेटिव या एड्स होने पर रक्तदान कभी ना करें। 

Sunday 27 November 2016

बंद तो बंद है, साँसें बंद हो या भारत


आज भारत बंद है| बंद भ्रष्टाचार, अत्याचार, के खिलाफ नहीं, बंद है कालेधन के खिलाफ हुई कारर्वाई के खिलाफ| सबके अपने तर्क हो सकते है, किन्तु सच यही है कि पहली बार सरकार के खिलाफ बंदी के मुद्दे के साथ जनता का समर्थन है न कि बंदी कराने वाले विपक्षियो के साथ| खैर, जनता इस पर बंटी हुई है| इसके खिलाफ ऑर समर्थन में भीड़ है और उसके अपने तर्क है| इस प्रकरण पर मो.खुर्शीद आलम की एक कविता बरबस स्मरण हो आती है-
क्यों बंद करते हो दूकान का फाटक, बंद करो ये बंद करने कराने का नाटक| यहाँ बंद वहां बंद, गली बंद, चौराहा बंद, दूकान बंद, मकान बंद, मकान में अच्छा भला इन्सान बंद, पर किसी की आत्मा से ये आवाज नहीं निकली कि हो अत्याचार बंद, भ्रष्टाचार बंद, माँ की लूटती हुई इज्जत व बहन का हो रहा बलात्कार बंद| क्यों कहेंगे? ये तो खुद अत्याचारी है, मौत के व्यापारी है| बंद बंद के चक्कर में कल रात मर गया न रिक्शा चालाक का बाप| रिक्शा चला नहीं सका, अपने बाप को भर पेट खिला नहीं सका| बंद की सफलता पे जश्न मनाया गया, शराब व शबाब का दौर चलाया गया, बेचार रिक्शा वाला चीखता रहा, चिल्लाता रहा, सिसकता रहा, विलखता रहा| पर कोइ भी इसके बाप की अर्थी को कंधा लगाने नहीं आया| प्यार से कोइ पीठ थपथपाने नहीं आया| बार बार यही बुदबुदाता रहा कि काश, आज फिर कोइ बंद कराता और मै भी बाप की अर्थी पर सो जाता||
बंद की राजनीति हमेशा घातक होती है, आम लोगो को परेशान करती है| चाहे बंद कोइ कराये, भुगतना तो जनता को ही पड़ता है| जनता, जनता होती है चाहे वह किसी की समर्थक हो या विरोधी| जनता देश की होती है, यह सबको खयाल रखना चाहिए|

हरिबंश राय बच्चन कह गए है—
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।


Saturday 26 November 2016

पैसे को ले मजबूर मजदूर ले रहे पुराने नोट

विमुद्रीकरण से मनरेगा की 
योजनाएं भी प्रभावित
नये नोट मांग रहे मजदूर
पुराने हैं उपलब्ध
नोटबंदी से अब मनरेगा भी कार्य प्रभावित होने लगा है। मजदूर अपनी मजबूरी में पुराने नोट लेने को विवश हैं। उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए पैसे चाहिए। रोजमर्रे के खर्च के लिए वे इसी कारण पुराने नोट भी ले ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार कई जगह काम बन्द हैं। मजदूरों को रोज पैसे चाहिए। वे रोज कमाने खाने वाले लोग हैं। सूत्रों के अनुसार तरार मुख्य पथ से तरारी मुख्य पथ को जोडने वाली करीब 40 हजार फीट लंबी सडक मात्र 500 फीट बन सकी। कम फिलहाल ठप है। समस्या बस यही है कि मजदूर नये नोट मांग रहे हैं और वह उपलब्ध नहीं हो रहा है। कुसुम यादव कालेज से एनएच-98 तक तरारी पंचायत में नाली का निर्माण जारी है। इसमें मनरेगा के तहत काम हो रहा है। लाखों की लागत से यह निर्माण हो रहा है। मौके पर मजदूर रामचन्द्र पासवान ने बताया कि नया नोट नहीं मिल रहा है। पुराना नोट नून-धनिया भर मिल जा रहा है। रामरुप राम, गनौरी चौधरी, अमरजीत कुमार व सिद्धेश्वर चौधरी ने बताया कि 2000 का नोट जब मिल रहा है तो उससे सामान नहीं मिल रहा है। क्योंकि बाजार में छुट्टे नहीं हैं। पुराने नोट लेकर ही काम करना पड रहा है। उसे भी कोई नहीं ले रहा है। बडी मुश्किल हो रही है। रोज कमाना खाना पड रहा है। मजबूरी में कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।

मानवीय कारण से मजबूरी-मुखिया
संगीता देवी 


मुखिया संगीता देवी ने बताया कि मनरेगा के तहत मजदूरी बैंक खाते में देना है| इसके बावजूद मजदूरों को मानवीय कारण से नगद पैसे कभी-कभी देना पड़ता है| यह उधार होता है| क्योंकि बिना नगदी के काम नहीं चलेगा| कहा कि मजदूरो को भी परिवार चलाना होता है| रोजमर्रे का खर्चा हो या अवसर विशेष के लिए पैसे चाहीए ही चाहिए| इसलिए पैसे देना पड़ता है|



नगदी नहीं, देते हैं पैसे
शैलेन्द्र कुमार सिंह
बोले पीओ शैलेन्द्र कुमार सिंह
मनरेगा की योजनाओं के नोटबन्दी से होने वाले प्रभाव पर पीओ शैलेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि कोई असर नहीं है। इस योजना में मजदूरों और सामग्री उपलब्ध कराने वालों को पैसे ईएफएमएस (इलेक्ट्रिनिक फन्ड मैनेजमेंट सिस्टम) के जरिए खाते में दिये जाते हैं। इस कारण काम प्रभावित होने का प्रश्न ही नहीं उठता। बताया कि मजदूरों को नगदी पैसे नहीं देने होते है| ऐसा करना गलत है|

 नगदी का लेन देन विवशता
मनरेगा के मजदूरों के साथ नगद लेन देन वैध नहीं है| इसके बावजूद ऐसा होता है क्योंकि यह विवशता है| मजदूर को रोज पैसे चाहिए| बैंक खाता में पैसे जाने और फिर उससे निकालने में समय खर्च होता है| इसलिए वह किसी से मजदूरी नगदी लेता है| बाद मे अपने खाते से निकाल कर वापस दे देता है

Sunday 20 November 2016

चौधरी के आगे चौधरी, चौधरी के पीछे चौधरी

तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर, बोलो कितने तीतर? यह अक्सर बच्चों के बीच पूछे जाने वाले मनोरंजक सवाल है। ऐसा ही एक सवाल मुझसे देर रात प्रवीण प्रकाश ने पूछा- आपका इशारा किस चौधरी की ओर है सर? वास्तव में मैं फिल्म विधाता देख रहा था तो दिलीप कुमार ने अमरेश पुरी से कहा- बड़ा आदमी बनना हो तो छोटी हरकत नही करते चौधरी। यह पंक्ति मुझे उद्द्वेलित कर गयी। इसे फेसबुक पर पोस्ट किया। अपनी ओर से लिखा-याद रखना...। बस सवाल आ गया। मुझे लगा, इसका जबाब क्या होगा? अनुज रामचन्द्र पांडेय ने कहा-  इसलिये तो चवन्नी नहीं पाँच सौ और एक हजार का नोट बंद हुआ है। असहिष्णुता के इस दौर में किसी एक या दो का नाम नहीं लिया जा सकता। वरना, शामत आ जायेगी। कई लोग बुरा मान जायेंगे। 
मुझे लगता है आज हर शहर में एक चौधरी रहता है। चौधरी के आगे कई चौधरी और उसके पीछे भी कई चौधरी रहते हैं। तीतर की तरह सिर्फ दो आगे और दो पीछे वाली स्थिति नहीं है जिसका जवाब थोडा सा भी चंचल बच्चा तीन दे देता है। चौधरी के मामले में ऐसा कतई नहीं है। यहां स्थिति उलझी हुई है। यह बताना मुश्किल है कि चौधरी के आगे कितने चौधरी हैं और उसके पीछे कितने चौधरी हैं? चौधरी की चौधराहट हर सिनेमा में दिखती है। प्राय: मूंछे टाइट, शरीर में अकडन, कडक आवाज और तीखी जुबान। फिल्मों में चौधरी की यही है पहचान। यह और बात है कि फिल्मों से बाहर यानी रील लाइफ से बाहर रियल लाइफ में चौधरी अब दलाल की भूमिका में हैं, या यू कहें कि हर दलाल अब खुद को चौधरी ही समझ बैठा है। इनकी चौधराहट का दायरा सिकुडा हुआ होता है। कुछ लोग आगे-पीछे करते हैं और तीतर भी चौधरी होने का भ्रम पाल लेता है। रियल लाइफ का चौधरी अब जाति, धर्म, दल विशेष के कूंए का मेंढक होता है और गाहे-बगाहे पूछता रहता है- समंदर क्या होता है? क्या वह मुझसे बडा होता है? बेचारे को कौन समझाए कि कूंए से बाहर की दुनिया कितनी विस्तृत होती है। कहते हैं न- सब समझ समझ का फेरा है।

अंत में दुष्यंत कुमार ----
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही॥
सीने में जिन्दगी के अलामात हैं अभी।
गो जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही॥

Saturday 19 November 2016

शिक्षा का संवाहक है महर्षि दयानंद सरस्वती पुस्तकालय






रविवार का दिन शहर के लिए सुपर संडे साबित होने वाला है। यहां दो बडे आयोजन होने हैं। मेसो संचालित महर्षि दयानन्द सरस्वती पुस्तकालय जहां ज्ञानी का चुनाव करेगा वहीं दाउदनगर डाट इन आवाज के जादूगर का चुनाव करेगा। शहर में दोनों आयोजनों को लेकर जिज्ञासा है, प्रतीक्षा है और तैयारी चल रही है।

शिक्षा का संवाहक है महर्षि दयानंद सरस्वती पुस्तकालय। इसलिए इससे जुडी एक सचित्र रिपोतार्ज---
कार्यक्रम का संचालन करते हुए


महर्षि दयानंद सरस्वती ने शिक्षा के प्रसार के लिए समाज एवं संस्थानों को अह्वाहन किया था। इन्हीं के नाम पर महर्षि दयानंद सरस्वती पुस्तकालय 25 सितम्बर 1989 से जनसहयोग के बल पर चल रहा है। मगध एजुकेशनल एंण्ड सोशल और्गनाइजेशन के तहत पुस्तकालय का संचालन विस्थापन के दर्द को सहते हुए हो रहा है। कई बार विस्थापित होने के बाद इसे नगरपालिका मार्केट की छत पर अस्थाई निर्माण की अनुमति 21 फरवरी 2007 को मिली थी। जनसहयोग और पुस्तकालय के प्रति जीवन समर्पित कर चुके गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ के कारण बड़ा कमरा बनाया जा सका। यहीं पुस्तकालय चल रहा है। राजनीति और व्यक्तिक संबधों की वजह से इस कमरे को अवैध निर्माण बता कर तोड़ने का आदेश एक कर्मी की ओर से संस्था के सचिव उपेन्द्र कश्यप को मिला। जब इसके लाभुकों से वार्ता की तो सबने कहा कि इसे तोड़ा न जाये, हर संभव संघर्ष करेंगे। 
तत्कालीन जेल अधीक्षक सत्येन्द्र कुमार पुरस्कार बांटते हुए
इसके बाद सचिव ने एक पत्र नगर पंचायत को दिया कि निर्माण जन सहयोग से तब हुआ था जब भूख हड़ताल के बाद तत्कालीन अध्यक्ष सावित्री देवी ने प्रशासनिक पहल पर निर्माण का मौखिक आदेश दिया था। यदि नगर पंचायत को यह आवश्यक लगता है कि इसे तोड़ा जाना चाहिए तो वह खुद अपने संसाधन से इस पुस्तकालय को तोड़ दे। तोड़ने के लिए जनता से चंदा पुस्तकालय के लाभुक नहीं करेंगे। मामला शांत हो गया। नगर पंचायत ने भूमि आवंटित करने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद आवेदन दिया गया। इंतजार सबको है कि कब भूमि का आवंटन हो पाता है।
भूख हडताल तुडवाते तत्कालीन नप अध्यक्ष सावित्री देवी
 यहां करीब 20000 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। सभी समाचार पत्र, सभी प्रतियोगी पुस्तकें, आवश्यक पुस्तकें छात्रों को कम शुल्क पर उपलब्ध कराया जाता है। वास्तव में दयानंद सरस्वती के मार्ग पर चलने का काम यहां के युवाओं ने तब किया था। सीताराम आर्य, कृष्णा कश्यप, महेन्द्र कुमार पिंटु, अवधेश कुमार, संतोष केशरी, कृष्णा ठाकुर, मिथलेश सिंहा, लव कुमार केशरी, संजय कुमार एवं अन्य उत्साही युवाओं ने यह पहलकदमी ली थी, जो आज शहर को एक नई दिशा दे रहा है। पढ़्ने का इतना बेहतर माहौल कहीं अन्यत्र नहीं मिलता। एक हजार सदस्य हैं, हांलाकि नियमित सदस्यों की संख्या लगभग 100 ही है।  श्री गोस्वामी का लक्ष्य है इसे आधी आबादी तक सुलभ कराना। स्थान उचित नहीं होने के कारण यहां छात्राएं नहीं आ पातीं। यह तभी संभव होगा जब स्थान बदल जाए।   
पुरस्कार देते डा.पुष्पेन्द्र कुमार
पुरस्कार देते तत्कालीन एसडीओ कमल नयन

Wednesday 16 November 2016

अब विश्व कर रहा भारत की प्रशंसा

पे पाल में निदेशक अमरेश मोहन (एनआरआई) से बतचीत
अमरेश मोहन

भारत सरकार के नये आर्थिक फैसले को देश में कई नजरिए से देखा जा रहा है। राजनीतिक दलों को अपना हित सर्वोपरि दिखता है। कुछ आलोचना कर रहे हैं, कुछ प्रशंषा। जनता अलग सोच रही है। भारतवंशी जो विदेश में रहता है वह और उसकी सोसाइटी इस मुद्दे को कैसे देखती है? यह जानना भी दिलचस्प होगा। दाउदनगर के सेवा निवृत प्रोफेसर ब्रज किशोर प्रसाद व सेवा निवृत शिक्षिका निर्मला गुप्ता के पुत्र अमरेश मोहन पे पाल प्राइवेट लिमिटेड में रिजनल डायरेक्टर हैं। सिंगापुर रहते हैं। बताया कि एक अप्रवासी के लिए अपने जन्म-देश की विश्व में क्या प्रतिष्ठा है यह शायद सबसे ज़रूरी मुद्दा है। भारत की गिनती अभी तक विश्व के सबसे भ्रष्ट देशों में होती आयी है और किसी सरकार ने सालों से कोई ठोस क़दम नहीं उठाया था।
विश्व देख रहा जनता का रुख
आज सारे देश भारत सरकार के इस साहसी क़दम की ना सिर्फ़ तारीफ़ कर रहे हैं बल्कि ये देख भी रहे हैं की क्या सारे भारतीय अपनी ही सरकार को काले धन के ख़िलाफ़ इस जंग में समर्थन करेंगे या नहीं? अगर पूरा देश इस मुहिम में साथ दे पाये, तो ना सिर्फ़ काले धन में कमी आएगी और आतंकवाद कमज़ोर होगा, बल्कि क़ीमतें भी कम होगी, ख़ासकर ज़मीन और घरों की। कुल मिलाकर, यह एक बहुत आवश्यक और सराहनीय क़दम है जिसका फ़ायदा सारे देश को एक लम्बे समय तक मिल सकता है। ये सुन के दुःख भी होता है की कुछ मौक़ापरस्त बिचौलिये घबराहट फैला कर अपना फ़ायदा करना चाह रहे हैं और इस जंग को कमज़ोर करके कालेधन को चालू रखने की कोशिश कर रहे हैं।
कैशलेस इकोनामी का सवाल
अमरेश ने कहा कि असली मुद्दा पुराने नोटों में छुपे काले धन को एक बार हटा पाना या कम करना नहीं है, बल्कि यह है की क्या भारत "कैश" पर अपनी निर्भरता कम करके बड़े और विकसित देशों की तरह "कैशलेस" या "डिजिटल इकॉनमी" बन सकता है या नहीं?

Sunday 13 November 2016

सन्दूक से धन तो निकालों यारों




नवाबों का शहर दाउदनगर परेशान है। कवि ने कहा है-सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है? परेशान न हो तो क्या करें भाई? ई केन्द्र सरकार ने ऐसा गजब ढाया है कि बहुतायत परेशान जनता फैसले को सही बताते हुए अपनी परेशानी बता रही है। उधर कुछ खास लोग ऐसे हैं जो अधिक से काफी अधिक परेशान हैं। वे जनता की परेशानी का हवाला दे कर अपनी परेशानी को कम करना चाहते हैं। वास्तव में आम जनता का दर्द बहाना है और असली चिंता अपना धन काला से उजला करना है। समझते नहीं है क्या साहब ? जनता के खिलाफ होने वाले हर कार्य को नेता, अधिकारी, जमाखोर व सूदखोर ‘जनता के हित’ की दुहाई दे कर करते हैं। जनता के लिए, जनता के लिए और जनता परेशान है की चिल्ल पों इसीलिए मचाते हैं भाई लोग. कि इसी बहाने जनता उनके समर्थन में आ जाये। अपना उजला धन निकालने के लिए कतारबद्ध सफेद बाल वाले भी केन्द्र के विमुद्रीकरण के इस फैसले को जायज, देशहित में बता रहे हैं। यह और बात है कि वे अपनी परेशानी भी साझा कर रहे हैं। चर्चा है कि बदलने वाली है शहर की फिजां की खुशबू। चर्चा हकीकत बनी तो कई के दिवाले निकल जायेंगे। कई अपने धन की बोरियां ठिकाने लगाने में लगे हैं। बार-बार याद आता है एक आयकर अधिकारी का बयान। यहां मिटिंग करने जब आये थे तो उनके सामने कम लोग उपस्थित हुए। समझाया था तब किसी ने नहीं समझा। सबने पिछली सरकारों की तरह इस प्रयास को भी ‘आया राम गया राम’ वाला समझ लिया था। सबसे वरिष्ठ अधिकारी ने अपने संबोधन में तब कहा था कि- ‘मैं आया हूं इसलिए मिठाई चल रहा है, आप शांति से हैं। ईश्वर न करे फिर आना पडे। जब दूबारा आयेंगे तो परेशान हो जायेंगे आप।‘ अब कई लोग अपना काला धन छुपाने के लिए जुगत भिडा रहे हैं। उधर सरकार और आक्रामक रुख दिखा रही है। चर्चा है कि शहर में भी नोट बहते दिखेंगे या जलते दिखेंगे। हाय रे धन। कहते हैं धन की तीन ही गति होती है-भोग, दान और नाश। जिसने इसे समझ लिया था वे मौज कर रहे हैं, जो न समझे वे भुगत रहे हैं। न बेचारे भोग कर सके न दान कर पुण्य कमा सके। अब उनके धन का नाश दिख रहा है। 

आज दुश्यंत कुमार होते तो कहते-
आज सीवन को उधेडो तो जरा देखेंगे।
आज सन्दूक से वे खत (धन) तो निकालो यारों।

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता।
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे॥

अब जा कर मिला गान्धी जी को सही सम्मान


2000 के नोट पर दांयी ओर देख रहे महात्मा
पहले बांयी ओर देखते रहे सभी नोटों पर गांधी
नये नोट के प्रचलन में आने पर कई तरह की चर्चायें हो रही हैं। एक जबरदस्त रोचक चर्चा हो रही है कि पहली बार महात्मा गांधी सही दिशा में देख रहे हैं। अर्थात अपनी तस्वीर में वे पहली बार दांयी तरफ देख रहे हैं। राइट साइड, जबकि पहले बांयी यानी रौंग (लेफ्ट) साइड देखते रहे हैं। इस पर लोगों की रोचक प्रतिक्रिया है।   

पंकज कुमार ने कहा कि पुरूष का स्थान हमेशा दाहिनी ओर होता है। पहले गलत था। प्रधानमंत्री नमो ने उनका स्थान सही कर सम्मान दिया है। डा. शम्भू शरण सिंह ने कहा कि-बापु को केन्द्र में रखा गया है। मतलब साफ है कि अब देश की प्रगति सत्य, अहिंसा व स्वाभिमान के साथ होगा। मुकेश मिश्रा ने कहा- अब देश का भविष्य सही दिशा की ओर अग्रसर हुआ। धर्मवीर भारती ने कहा कि-बापु किसी ओर देखें, उनकी दृष्टि हमेशा सच्ची ही होगी।
उन्हें जानने या समझने के लिए महान एवं स्वच्छ आत्मा चाहिए। सतीश पाठक ने कहा- बापू हमेशा से आदर्श रहे है और रहेंगे। चाहे उनके विचारों को दिल में जगह दें या नोटों पर। गोल्डेन शाह ने कहा कि बापू अब अपना दूसरा गाल आगे कर दिया है।
मुन्ना दूबे बोले- बापू का इशारा है कि हमेशा सही लाईन में चलो गलत लाईन कभी भी धोखा दे सकती है। रवीन्द्र शर्मा ने कहा कि असली ,भारतीय पहली बार प्रधान मंत्री बना है इसलिए राष्ट्रपिता को सही सम्मान दिया है। अरुण कुमार बोले- अब देश जरूर राईट दिशा में जा रहा है। 

Saturday 12 November 2016

अहो भाग्य ‘दो हजारे’ प्रभु दर्शन दिन्हा

नये नोट के साथ धीरेन्द्र व रवि
ताजमहल देखने जितनी हुई खुशी
लंबे इंतजार व परिश्रम के बाद यहां के लोगों को शनिवार को 2000 का नये नोट का दर्शन हुआ। सनातन धर्म में एक चौपाई की पंक्ति है- अहो भाग्य प्रभु दर्शन दिन्हा। ठीक वैसी ही स्थिति अभी नये नोट को लेकर है। गुरुवार से इसे बाजार में उपलब्ध होना था, किंतु नहीं हो सका था। शुक्रवार को अनुमंडल मुख्यालय में एक मात्र बैंक आफ बडौदा की स्थानीय शाखा से यहां दो हजार के नये नोट मिलने शुरु हुए। इसे लेने के लिए लोगों का हुजूम और टूट पडा। इनमें इस नोट को लेकर जिज्ञासा, उत्साह और उमंग देखते बना। धीरेन्द्र कश्यप ने कहा कि इतनी खुशी तो ताजमहल देखने पर भी नहीं हुई थी जितनी इसे छुने पर हुई। रवि मिश्रा ने कहा कि नये नोत को देखने से अलग किस्म की अनुभूति हुई। रोमांचित हुआ, और आत्म संतुष्टि मिली। नोट लेते वक्त एक ग्राहक संजय ने बैंक अधिकारी से पूछा- पलास्टिक मिक्स है न सर? नहीं तो खत्म हो जायेगा। अधिकारी ने टालने के लिए ही सही कहा कि- हां, पलास्टिक का ही है। पानी में भी इसको कुछ नहीं होगा। हालांकि वास्तविकता ऐसी नहीं है। अधिकारी ने कहा कितने को जवाब दीजिएगा। क्या बताइयेगा। यानी नये नोट लेने के उत्साह के साथ जिज्ञासा व चिंता भी है।

कई सारे युवाओं ने पहली बार जब 2000 का नोट हाथ में लिया तो उन्होंने सेल्फी ली और उसे सोशल साइट पर डाला। कई ने सबसे पहले मिलने का दावा करते हुए फोटो पोस्ट किया है। लोग घर ले जा रहे हैं। सभी को दिखा रहे हैं। बच्चे, वृद्ध महिलायें उसे बडी उत्सुकता से देख रहे हैं।


Tuesday 8 November 2016

मीडिया ही नहीं विधायक भी हुए हैं इसके शिकार

प्रसंग- एनडीटीवी पर प्रतिबन्ध : लोकतंत्र पर हमला

कई महीने जेल में रहे हैं महाबीर प्रसाद अकेला
’बोया पेड बबुल का’ को जब्त कर ली थी सरकार
तब राज्य में थी कांग्रेस पार्टी की सरकार

 एनडीटीवी पर प्रतिबन्ध को ले खूब बवाल है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसे हमला बताया जा रहा है। दूसरा पक्ष इसे एक सीमा तक सही, उससे आगे उच्छृंख्लता या स्वच्छन्दता बताता है। तर्क सबके चुनिन्दा हैं। राजनीति भी चयन की सुविधा वाली है। ऐसे प्रतिबन्ध नये नहीं हैं। इस जिला में तो वामपंथी विधायक महाबीर प्रसाद अकेला की लिखी पुस्तक ‘बोया पेड बबुल का’ को तो कांग्रेस की सरकार ने वितरण से पहले ही जब्त कर लिया था। बिहार-राजनीति का अपराधीकरण पुस्तक के अनुसार औरंगाबाद में महावीर प्रसाद अकेला की पुस्तक ‘बोया पेड बबुल का’ पर 25 अगस्त 1983 को प्रतिबन्ध लगा था। वराणसी में प्रकाशित होने से पहले ही सभी छपी किताबें जब्त कर ली गयी थीं। तब राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे- डा.जगन्नाथ मिश्रा। तब किसी ने श्री अकेला का साथ नहीं दिया। हद यह की प्रगतिशील माकपा ने भी साथ नहीं दिया जबकि उसी पार्टी से वे नवीनगर विधान सभा क्षेत्र से 1969 में विधायक रहे थे।
श्री अकेला के अनुसार, आगे पार्टी ने यह कह कर टिकट देने से इंकार कर दिया कि- एक समुदाय के लोग वोट नहीं देंगे। तब श्री अकेला ने 28 जुलाई 1983 से लेकर 29 अगस्त 83 तक छह-सात अर्जियां न्यायालय में जमानत के लिए दी किंतु इनको जमानत नहीं मिली। क्योंकि सरकार नहीं चाहती थी। तब किसी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खडा होने का साहस नहीं किया। ऐसी ही पसन्द और नापसन्द, चयन की राजनीति की वजह से देश में ऐसे हालात बन गये हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा आम लोगों को तत्काल प्रभावित तो करता है किंतु विचलित कतई नहीं करता। 

दूर तलक सुनी गयी संजय की देह की आवाज

   दीपक अरोडा सम्मान ग्रहण करते संजय शांडिल्य

संजय की कविता संग्रह का हुआ प्रकाशन
दाउदनगर के बने ऐसे दूसरे कवि

कोई व्यक्ति जब काम करता है और खास करता है तो उसकी चर्चा कई तरह की सीमा को तोड कर दूर तक होती है। संजय कुमार शांडिल्य की ऐसी ही उपलब्धि साहित्य जगत में सोमवार को दर्ज हुई। उनका काव्य संग्रह ‘आवाज भी देह है’ को बोधि प्रकाशन ने प्रकाशित किया। उन्हें जयपुर में इसी अवसर पर दीपक अरोड़ा स्मृति सम्मान मिला। 
प्रकाशित काव्य संग्रह
स्थानीय सन्दर्भ में यह बडी और इकलौती उपलब्धि है। हालांकि इससे पूर्व श्रीशचन्द्र मिश्र सोम की कविता संग्रह ‘कविता भी हो सकती है’ को संभव प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। संजय यहां दाउदनगर महाविद्यालय से सेवारत अध्यापक एसके शांडिल्य और अंकोढा मिडिल स्कूल में कर्यरत शिक्षिका मांडवी पांडेय के बडे पुत्र हैं। यहां विवेकानंद मिशन स्कूल से शिक्षक के रुप में कैरियर प्रारंभ किया था और अभी गोपालगंज सैनिक स्कूल में शिक्षक के रुप में कार्यरत हैं। संजय का जन्म यहां हुआ। मेरे (इस लेखक) साथ उसका युवावस्था बीता। तब सिर्फ हम दो ही अधिक समय तक एक दूसरे के साथ रहते थे। कई यादें जीवित हैं। समाज को समझने का साझा प्रयास हमने किया। प्रकृति की गोद में या घर में शाम को हम जुटते और कई तरह की साहित्यिक चर्चा करते। यहां के सबसे बडॆ तत्कालीन वरिस्ठ कवि, नाटककार, साहित्यकार, रंगकर्मी बायोलोजी के शिक्षक श्रीशचन्द्र मिश्र सोम सर के साथ गप्पे लडाते। कुछ सीखते थे। संजय यहां दाउदनगर महाविद्यालय से सेवारत अध्यापक एसके शांडिल्य और अंकोढा मिडिल स्कूल में कर्यरत शिक्षिका मांडवी पांडेय के बडे पुत्र हैं। यहां विवेकानंद मिशन स्कूल से शिक्षक के रुप में उन्होंने अपना कैरियर प्रारंभ किया था और अभी गोपालगंज सैनिक स्कूल में शिक्षक के रुप में कार्यरत हैं। बिहार गीत भी उन्होंने ही लिखा था। इसके लिए राज्य सरकार ने सम्मानित किया था।

कविता पाठ करते संजय
 बोधि पुस्तक पर्व के चौथे सेट की दस और दीपक अरोड़ा स्मृति पांडुलिपि प्रकाशन योजना के तहत प्रकाशित पांच पुस्तकों का लोकार्पण सोमवार की शाम पिंकसिटी प्रेस क्लब, जयपुर के सभागार में हुआ। मुख्य वक्ता डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने "पुस्तक संस्कृति और हमारा समय" विषय पर विस्तार से चर्चा की। डॉ हेतु भारद्वाज ने आशीर्वचन कहे और दीपक अरोड़ा की बहन सोनिया अरोड़ा ने अपने संस्मरण साझा किये। कार्यक्रम अध्यक्ष  प्रेसक्लब महासचिव मुकेश चौधरी ने सभी शामिल रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। दोनों योजनाओं में शामिल रचनाकारों में से उपस्थित रचनाकारों- अंजता देव, विनोद पदरज, गोविन्द माथुर, विपिन चौधरी, अमित आनंद पांडेय, संजय कुमार शांडिल्य और अस्मुरारीनंदन मिश्र का सम्मान किया गया। दीपक अरोड़ा की अर से उनकी बहन ने यह सम्मान स्वीकार किया। अतिथि कवियों के शानदार काव्‍य पाठ के साथ आयोजन का समापन हुआ। दीपक अरोड़ा की कविताओं का पाठ अंजना टंडन ने किया। बोधि प्रकाशन की ओर से बनवारी कुमावत राज ने सभी का आभार व्यक्त किया। आवाज भी देह है किताब के लोकार्पण के अवसर पर प्रेस क्लब के सभागार में दीपक अरोड़ा स्मृति सम्मान ग्रहण करते और कविता पाठ संजय कुमार शांडिल्य ने किया। 

Saturday 5 November 2016

150 साल पुराना है मौलाबाग सूर्य मन्दिर

मौलाबाग सूर्य मन्दिर और उसमें बना स्नानागार

पोखरा में स्नानागार की सुविधा
अंवेषण की अभी भी है जरुरत

मौलाबाग में सूर्यमन्दिर और पोखरा का निर्माण कम से कम डेढ सौ साल पूर्व हुआ होगा। सूर्यमन्दिर न्यास समिति के सचिव डा.संजय कुमार सिंह बताते हैं कि बांके अग्रवाल ने तब बनवाया था। ऐसा सुना जाता है। इसकी पुष्टी नहीं की जा सकी है। इनकी तीसरी पिढी के वंशज यहां बाजार में और वाराणसी में रहते हैं। पोखरा में ही स्नानागार बनवाया हुआ है। यह तत्कालीन समाज की सोच और उसकी आवश्यकता की पूर्ति की तलाश का तरीका बताता है। पोखरा के बीच में प्रस्तर का एक स्तंभ है। जिसके ललाट पर शिवलिंग और ओइम की आकृति बनी हुई है। पूर्वी किनारे पर जुडवां स्नानागार बना हुआ है। तब समाज के पास स्नान करने का यह बेहतर विकल्प होगा। पोखरा में बने स्नानागार में उतरकर स्त्रियां स्नान भी कर लेती होंगी और कपडे भी बदल लेती थीं। उन्हें लोकाचार को लेकर तब तनाव का सामना नहीं करना पडता होगा क्योंकि खुद को छुपाने की प्रयाप्त जगह यह थी। सूर्यमन्दिर को कई चरण में कालांतर में मरम्मत भी हुआ होगा। फिलहाल इस मन्दिर को लेकर कुछ भी स्पस्ट प्रमाणिक इतिहास ज्ञात नहीं है। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड ने कुछ साल पहले ही इसे अपनी सूची में शामिल किया है। उसे इसका अंवेषण कराना चाहिए।, ताकि कोई स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो सके। वर्तमान और आने वाली पिढी के लिए यह आवशयक है। यहां छठव्रतियों की भीड खूब होती है। 

कर्म के लिए प्रेरित करते हैं सूर्य

        भगवान भास्कर की प्रतिमा
जानिए कौन हैं भगवान भाष्कर ?
साक्षात देव सूर्य विश्व को सिर्फ अलोकित हीं नहीं करते बल्कि कर्म के लिए प्रेरित करते हैं। सूर्य षष्ठी व्रत के माहौल में यह जानना प्रासंगिक है कि सूर्य कौन हैं। हम रोज प्रात: जिनके आगमन की आहट (उदय) से जागते हैं, और जिनके जाने (अस्त) के साथ विश्रम की ओर जाते हैं, वह सिर्फ प्रकाश देने वाला ही नहीं बल्कि और भी महत्व है। यह सिर्फ हिंदू संस्कृति के वांडमय में ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध भी ऐसा मानता है। फिलहाल गुनगुनाती धूप का आनंद ही नहीं मिलता, बल्कि इसका शरीर पर खास लाभकारी असर होता है जो जीवन को ऊर्जान्वित करने के साथ स्वास्थ्य प्रदान करता है।
 कर्म करने का ज्ञान देते हैं सूर्य
पंडित आचार्य लालमोहन शास्त्री बताते हैं कि विश्व के उत्पन्नकर्ता, नेत्र और जीवों को कर्म करने के लिए ज्ञान भी सूर्य ही देते हैं। आर्यो के इस देवता का निरंतर ध्यान और पूजन करना चाहिए। वेद में आदित्य (सूर्य का एक नाम) को प्राण और आत्मा कहा गया है। आंखों को सूर्य माना गया है यथा - पात्रु मां विश्व चक्षु: चक्षु सूयरेरजायत।समस्त संसार के मानव को कर्म करने को प्रेरित करने वाले देवता हैं ये।
 कश्यप अदिती के पुत्र हैं सूर्य
भगवान भास्कर कश्यप अदिती के पुत्र हैं। जिनकी दो पत्नी संज्ञा और छाया है। संज्ञा विश्वकर्मा की पुत्री है जो अपनी प्रतिबिंब छाया को छोड़कर मैके (नैहर) चली गई। इन दोनों से वैव स्वतमनु, यमराज, यमुना, अश्विनी कुमार और शनि इत्यादि संतान हैं। इसलिए इनकी उपासना में नित्य सूर्य की पूजा, गायत्री मंत्र जाप, अघ्र्य एवं दंडवत करना चाहिए।
 प्रत्यक्ष लाभ देत हैं सूर्य

आप सूर्य नमस्कारया इसी तरह के कई योग प्रकार बाबा रामदेव के योग में देख सकते हैं। अन्य देवताओं से होने वाले लाभ पर सवाल भले उठाया जाता हो, लेकिन इस साक्षात देव से प्राप्त लाभ प्रत्यक्ष दिखता है। अब तो गांव गांव सूर्य मंदिर बनाये जा रहे हैं। भव्य प्रतिमाएं लगाई जा रही है। प्राचीन काल के सूर्य मंदिरों में सूर्य प्रतिमाएं नहीं है। श्री शास्त्री का कहना है कि जो प्राचीन प्रतिमाएं हैं वे संग्रहालय में हैं। गांवों में इनकी महिमा बढ़ रही है। नतीजा सूर्य षष्ठी व्रत का प्रसार सुदूर देहात तक हो रहा है।

11 वर्ष पूर्व 11 लाख में बना अरई सूर्य मन्दिर

     अरई का सूर्य मन्दिर

कर सेवा के कारण हुआ कम खर्चा
निर्माण का निर्णय हुआ था अचानक

अरई पंचायत मुख्यालय में पूर्व पट्टी में निर्मित सूर्य मन्दिर का आज दिलचस्प संयोग जुटा है। ठीक 11 साल पूर्व इस मन्दिर का निर्माण 2005 में हुआ था। तब मात्र 11 लाख खर्चा हुआ था। इसकी सबसे बडी वजह थी जनता की कर सेवा। इस मन्दिर निर्माण का निर्णय भी अचानक ही हुआ था। यहां पोखरा काफी पुराना है। ग्रामीण सोचते रहते थे कि मन्दिर निर्माण हो, किंतु इसके लिए संयोग नहीं बन पा रहा था। इस बीच 2001 में पंचायत चुनाव हुआ और राज कुमार शर्मा मुखिया बने। फिर आकांक्षायें जगी। बिरई मोड पर एक दिन अपने साथियों नन्देश्वर शर्मा, विजय मौआर, नागेन्द्र शर्मा एवं अनिल कुमार के साथ श्री शर्मा बैठे तो बात निकल गयी। इस बार बात निकली तो दूर तलक नहीं बल्कि अंतिम तक पहुंची। निर्णय हुआ और फिर विजयादशमी 2003 के दिन इसकी नींव नागेन्द्र शर्मा ने रखी। इसके लिए पूरे गांव का भ्रमण किया। प्रथम औपचारिक बैठक गनौरी शर्मा की अध्यक्षता में हुई। विजय मौआर सचिव एवं राजेन्द्र मेहता कोषाध्यक्ष बनाये गये। सुखद आश्चर्य यह कि यह टीम ही आज भी इन पदों पर कायम है। लोग स्वेच्छा से चन्दा देने लगे और कर सेवा में जुटे। मन्दिर निर्माण तक सिर्फ कुशल मजदूरों को ही मजदूरी दी गयी बाकी सब कर सेवा से हुआ। जिनका नेतृत्व भोली राम ने किया। तब भाजपा जिलाध्यक्ष बबुआ जी व अश्विनी तिवारी ने कर सेवा की थी। 
अब कई देवी देवता स्थापित
अब सूर्य मन्दिर अरई में कई देवी देवता प्रतिष्ठापित किए जा चुके हैं।  भगवान भास्कर की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा 15 फरवरी 2005 को की गयी थी। स्वामी राम प्रपन्नाचार्य ने यज्ञ कराया था। इसके बाद यहां देवी जी, दुर्गा जी, जनुमन जी, शंकर जी समेत कई देवी देवता स्थापित किए गये।


अज्ञात संत ने खुदाया पोखरा, बाद में बना भव्य सूर्य मदिर


तरार का सूर्य मन्दिर
आठ साल में बना सूर्य मन्दिर
2004 में रखी गयी पहली ईंट
2012 में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा


तरार का सूर्य मन्दिर कई मायनों में खास है। गांव के लोक में जो रचा-बसा हुआ है उसके अनुसार सैकड़ों साल पहले यहां एक महान संत का आगमन भिक्षा के लिए हुआ था। उनका नाम ग्रामीण नहीं जानते। उन्हें यह स्थान पवित्र लगा और आने वाले भविष्य की कल्पना करते हुऐ एक पोखरा खुदवाया। मुखिया सर्वोदय शर्मा, ग्रामीण रितेश कुमार ने बताया कि खलिहान से मेह लेकर तलाब को पवित्र करने के लिए जाट के रूप में गाड़ दिया गया। महत्वपूर्ण है कि मेह में पशु बान्ध कर धान की दंवनी की जाती है। गांव में इसे पवित्र माना जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे कालांतर में इसका विकास हुआ और आज यह एक रमणिक स्थल बन गया। दूर्गा पूजा कमिटी ने तालाब का पक्कीकरण किया। फिर सूर्य पूजा कमिटी का गठन किया गया तो मोट्टी की मूर्ति बना कर वहां छठ होने लगा। ग्रामीणों ने आवश्यक्ता समझी कि यहां भगबान भास्कर का मंदिर बनना चाहिए।
 इसके बाद बैठक बुलाकर मंदिर बनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। बताया गया कि मन्दिर निर्माण हेतु जमीन त्रिभुवन लाल और बैजनाथ लाल ने दान दिया। मन्दिर निर्माण के लिए नींव 2004 में तरार के ही बौध ठाकुर ने रखी। उनके पहली इंट रखने का रोमांच आज भी लोग महसूस करते हैं। मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में सूर्य भगबान की स्थापना 04 मार्च 2012  को  यज्ञ के साथ की गयी। यहां छठ करने के लिए बहूत दूर दूर से लोग आते हैं। अभी मंदिर प्रागण में धर्मशाला का निर्माण चल रहा है। 

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Thursday 3 November 2016

च्यवन की पत्नी ने किया था पहली बार छठ

देवकुंड का पोखरा
च्यवनाश्रम की धरती से हुआ छठ प्रारंभ
पहली बार छठ कहां किए गये थे? आज यह प्रश्न प्रासंगिक है। पहली बार छठ पं.लाल मोहन शास्त्री के अनुसार महर्षि च्यवन की पत्नी सुकन्या ने किया था। उन्होंने ऋषि को कुष्ठ से मुक्ति के लिए सूर्य को दो बार अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को अर्घ्य दिया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इसी अराधना से ऋषि की रुग्ण काया स्वस्थ हो गई थी और यौवन प्राप्त किया था। भविष्योत्तर-पुराण के अनुसार पाण्डव द्यूत में हारकर जब वन में गये तो उनके आश्रम में अस्सी हजार मुनि पहुंचे। उनके भोजन की चिंता में युधिष्ठिर घबरा उठे। तब द्रौपदी ने पुरोहित धौम्य ऋषि से समाधान पूछा। उन्होंने उन्हें भगवान् सूर्य का व्रत रवि षष्ठी करने का निर्देश दिया। द्रोपदी ने पुछा इस उत्तम व्रत का पालन सर्वप्रथम किसने किया तो ऋषि ने बताया कि सुकन्या ने किया था। यह इलाका सुकन्या, च्यवन और शर्याति नामके राजा की कथा से परिचित है।
प्राचीन भारतीय एंव एशियाई अध्ययन स्नातकोत्तर विभाग मगध विश्वविद्यालय बोधगया से अव्वल छात्र रहे आशुतोष मिश्रा के अनुसार इस पर्व की परंपरा कम से कम 1000 साल प्राचीन है क्योंकि गहड़वाल राजा गोविंदचंद्र के सभा पंडित लक्ष्मीधर कृत्यकल्पतरु में इस दिन सूर्य की पूजा का विधान किया है। उनका कार्यकाल 12 वीं शती का पूर्वाद्ध माना जाता है। मिथिला के धर्मशास्त्री रुद्रधर (15वी शती) के अनुसार इस पर्व की कथा स्कंदपुराण से ली गई है। इस कथा में दुख एवं रोग नाश के लिए सूर्य का व्रत करने का उल्लेख किया गया है।

मैं सिद्ध कर दुंगा-आशुतोष
आशुतोष मिश्रा
आशुतोष मिश्रा ने दावा किया है कि कुछ समय बाद वे प्रमाणित कर देंगे कि च्यवनाश्रम देवकुण्ड ही आर्याव्रत में छठ पर्व की जननी है। यहीं से हुई थी छठ व्रत की शुरूआत। वे देवकुंड और अन्य विषय पर शोध कर रहे हैं। शीघ्र ही पीएचडी की उपाधि प्राप्त होने वाली है। उन्होंने दावा किया कि महाभारत में द्रोपदी का और कर्ण का विवरण मिलता है। रामायण काल में राम ने सूर्यमेघ यज्ञ किया था। कलियुग में प्रियवन्द राजा ने किया यह व्रत लेकिन कालखण्ड एंव समयावधि पर गहनता से विचार करें तो च्यवन ऋषि एंव उनकी पत्नी सुकन्या सतयुग में राम से भी पहले आते है। अर्थात रामायण काल से पहले देवकुंड में सुकन्या ने छठ व्रत किया था।


जहां देव हारे वहां होती है सूर्य की पूजा

  देवहरा का सूर्य मन्दिर
आयी थीं मालवा की महारानी अहिल्याबाई होल्कर
देवहरा में सूर्य मन्दिर की है अपनी प्रतिष्ठा
देवहरा, यानी जहां देवता हार गये। गोह प्रखंड अंतर्गत यह गांव गया-दाउदनगर राजकीय उच्च पथ-7 पर स्थित है। पुनपुन के कछार पर और सडक से उत्तर है देवहरा का सूर्य मन्दिर। इसका अपना इतिहास है। प्रथम भारतीय महिला शासिका महारानी अहिल्याबाई होलकर भी यहां आ चुकी हैं। उन्होंने यहां शिव मंदिर एवं धर्मशाला का निर्माण कराया था। ‘उत्कर्ष’ के अनुसार धर्मशाला में संस्कृत विद्यालय चलता था। इसके अंतिम शिक्षक महबलीपुर (पटना) के पंडित कालकादत्त तिवारी थे। शिक्षक सुनील कुमार बौबी ने बताया कि धर्मशाला का मात्र अब अवशेष ही दिख रहा है, जबकि शिव मंदिर सुरक्षित है। देवासूर संग्राम से लेकर महर्षि भृगु मुनि तक का इतिहास समेटे यह स्थल भक्तों के लिए श्रद्धा स्थल बना है। मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र का भी आगमन च्यवन और भृगु मुनि से मिलने के क्रम में यहां हुआ माना जाता है। विधायक रहे डा. रणविजय कुमार ने नदी घाट का निर्माण कराया था।
मन्नतें होती हैं शीघ्र पूरी
ऐतिहासिक, पौराणिक व धार्मिक दृष्टिकोण से देवहरा पुनपुन नदी घाट व शिव मंदिर महत्वपूर्ण स्थलों में एक है। श्रद्धालु कहते हैं कि सूर्य मंदिर से मनोवांछित फल मिलता है। मन्नतें शीघ्र पूरी होती है। महावीर स्थान भी है। प्रति वर्ष छठ व्रतियों की संख्या बढती जा रही है।

क्लब करती है सारी व्यवस्था
भगवान् भाष्कर क्लब यहां सारी व्यवस्था करती है। अध्यक्ष सुनील कुमार गुप्ता ने बताया कि नदी में पानी अधिक होने के कारण नाव व स्टीमर भी होगा। मनरेगा योजना के अंतर्गत मंदिर परिसर की ढलाई करायी गयी है। नदी घाट के साफ-सफाई के साथ मंदिर और घाट को रोशनी से जगमगाया जायेगा।

प्रथम महिला शासक थी अहिल्याबाई होलकर

प्रथम भारतीय महिला शासक अहिल्याबाई होलकर मालवा साम्राज्य की मराठा महारानी थीं। उनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के चौण्डी (छौंड़ी) ग्राम में हुआ और देहांत 13 अगस्त 1795 को। उनके पति खांडेराव होलकर 1754 के कुम्भेर युद्ध में शहीद हुए थे। इसके बारह वर्ष बाद उनके ससुर मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गयी। और इसके एक साल बाद उन्हें मालवा साम्राज्य की महारानी का ताज पहनाया गया। 1795 में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उन्होंने काशीगयासोमनाथअयोध्यामथुराहरिद्वारद्वारिकाबद्रीनारायणरामेश्वरजगन्नाथ पुरी जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाये और धर्म शालाएं खुलवायीं। काशी से गया की यात्रा क्रम में उन्होंने देवहरा में मन्दिर और धर्मशाला बनवाया था।