Wednesday 30 November 2016

अब नहीं सूने जाते है एड्स से जुड़े नारे

विश्व एड्स दिवस पर विशेष
जागरूकता के कारण बदली स्थिति
आज 01 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस है| एक खतरनाक बीमारी के बारे में चर्चा करने का अवसर विशेष| ऐसी बीमारी जिसके बारे में चर्चा करना भी कभी ‘गुनाह’ से कम नहीं था| गत एक दशक में परिस्थिति बदले एही और अब इसपर खुलेआम चर्चा होती है| स्थानीय सन्दर्भ में देखे तो अनुमंडल की भी स्थिति काफे बदला गयी है| लोग चर्चा करने से कतराते थे| एक दहशत सा माहौल बना हुआ था| प्रचार –प्रसार और शिक्षा का स्टार बढ़ने के कारण आज स्थिति ऐसी है की न कही इसके मरीज नजर आते है न इसा पर चर्चा ‘गुनाह’ रह गया है| हालांकि अब भी एक नियम है कि किसी मरीज का नाम नहीं सार्वजनिक करना है| अब तो इस मामले में अनुमंडल में एक शून्य की स्थिति बन गयी है| डार्ड को भी गत कई साल से इसा क्षेत्र में काम करने को मौक़ा नहीं मिला है| जिला में नेशनल हाइवे हो या रेड लाईट एरिया, दोनों ही जगहों पर कॉन्डोम वितरण से लेकर जागरूकता लाने तक का अकाम इसा एनजीओ ने किया है| गाँव गाँव तक इससे जुड़े स्लोगन लिखे गए| इसका प्रतीक चिन्ह दीवारों पर उकेरा गया| आज शायद ही ऐसा गाँव या उसका मोहल्ला है जहा इसा बीमारी के बारे में जानने वाले न हो| इलाके में कई मौते हो चुकी है| अब हालात बदल गए है| बिहार राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी (बिसेक्स) ने तब भी यहाँ कोइ कार्यक्रम नहीं चलाया था और अब भी नहीं चलाया जाता है|

कोइ एचआईवी पोजेटिव मरीज नहीं-डा.कौशिक
डा.मनोज कौशिक
यहाँ कोइ एचआईवी पोजेटिव मरीज सरकारी खाते में दर्ज नहीं है| यह बात प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा.मनोज कौशिक ने कही| बताया की पीएचसी में जांच की सुविधा उपलब्ध है| हर गर्भवती महिला की एचआईवी जांच होती है| यह अनिवार्य है, किन्तु गत छ: महीने में करीब तीन हजार जांच के बावजूद एक भी एचआईवी पोजेटिव मरीज नहीं मिला| इनके अनुसार ऐसी स्थिति जागरूकता के कारण आयी है|

महत्वपूर्ण ख़ास तथ्य
एचआईवी को ह्यूमन इम्यून डिफिशंसी वाइरस के नाम से जाना जाता है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो हमारे इम्यून सिस्टम पर असर करती है। एड्स को एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशियेंसी सिंड्रोम कहते है| विश्व एड्स दिवस की पहली बार कल्पना 1987 में अगस्त के महीने में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा की गई थी। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न दोनों डब्ल्यू.एच..(विश्व स्वास्थ्य संगठन) जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। उन्होंने एड्स दिवस का अपना विचार डॉ. जॉननाथन मन्न (एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक) के साथ साझा किया, जिन्होंने इस विचार को स्वीकृति दे दी और वर्ष 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाना शुरु कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने साल 1995 में विश्व एड्स दिवस के लिए एक आधिकारिक घोषणा की जिसका अनुकरण दुनिया भर में अन्य देशों द्वारा किया गया।

सुरक्षा बचाए एड्स से

एड्स से बचने के लिए सुरक्षा ही सबसे सार्थक उपाय है| अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहना, एक से अधिक से यौनसंबंध ना रखना, कंडोम का सदैव प्रयोग करना सुरक्षित उपाय है| यदि एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाने और यौन संबंध जारी रखनें से साथी भी संक्रमित हो सकता है और संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। एचाआईवी पोजेटिव या एड्स होने पर रक्तदान कभी ना करें। 

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