Thursday 14 December 2023

अब आचमन लायक भी नहीं बचा सोन



बिहार में कोइरी डीह से इंद्रपुरी बांध तक सोन में पानी 

इंद्रपुरी बांध के बाद सोन की पहचान बस पतली धार

कार्तिक स्नान माना जाता है पवित्र व फलदायक

पुराना अरवल सोन की पेट में है समा गया

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : सोन की धारा अब इतनी भी नहीं बची कि लोग उसके पानी से आचमन कर सकें। जबकि सोन पौराणिक नद माना जाता है और पूरा कार्तिक मास में उसमें स्नान को पवित्र और पुण्य फलदायक माना जाता है। इसके बावजूद आज सोन की स्थिति ऐसी है कि इसमें श्रद्धालु आचमन भी नहीं कर सकते। जब कार्तिक की छठ का आयोजन दाउदनगर के किनारे सोन तट पर किया गया, तब यह विचार किया गया कि आने वाले समय में अब दाउदनगर के लोग सोन में छठ करने कहां जाएंगे। अंतिम धारा काफी दूर चली गई है। हर्षवर्धन कालीन वाणभट्ट के जमाने से अब तक के लगभग 1400 साल में कहीं 10 तो कहीं 25 किलोमीटर तक पश्चिम खिसक गया है सोन। नतीजा यह है कि कार्तिक की छठ में काली स्थान घाट का तो वजूद खत्म हो ही गया उसके आगे नाला सा बन गया है सोन। सोन में जेसीबी मशीन से घाट बनाना पड़ा और श्रद्धालुओं को सूर्य को अर्घ्य देना पड़ा। तब सोन में ही मुख्य पार्षद अंजली कुमारी के प्रतिनिधि गणेश राम ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा था कि स्थिति ऐसी हो गई है कि अब अगले वर्ष से नगर परिषद द्वारा गड्ढा खोदकर सोन के पेट में पानी निकालना पड़ेगा ताकि लोग सूर्य को अर्ध दे सकें। बिहार में सोन नबीनगर के कोईरीडीह के पास प्रवेश करता है। यह उत्तर दिशा में है और दक्षिण में है पलामू का दंगवार गांव। यहां कररवार नदी बिहार और झारखंड का विभाजन करती है और खुद को सोन में समर्पित कर समाप्त हो जाती है। यहां एक गांव है गोगो जहां के इंजीनियर सुंदर साहू बताते हैं कि कोईरीडीह से लेकर इंद्रपुरी बांध तब सोन में पानी प्रयाप्त मात्रा में रहता है। इसके बाद की स्थिति देखें तो इंद्रपुरी बांध के बाद सोन की स्थिति खराब होती चली जाती है। क्योंकि सोन में नियमित पानी नहीं रहता। बालू कम और मिट्टी अधिक होते जा रही है। सोन के पेट में बड़े हिस्से में बालू खत्म हो रहा है और मिट्टी का विस्तार हो रहा है। जिसमें लोग खेती करते हैं। दाउदनगर की सीमा तक यह करीब 40 किलोमीटर की लंबाई में है। सोन दाउदनगर के बाद अरवल पहुंचता है। सोन के पानी का रंग पुस्तक में उसके लेखक देव कुमार मिश्रा लिखते हैं कि पुराना अरवल सोन के पेट में चला गया और जो नई बस्ती पड़ोस के गांव की भूमि पर बसी उसे ही अरवल नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हो गई।




कभी हहास बांधता आता था हुल्लड़


यही सोन कभी बाढ़ के लिए कुख्यात हुआ करता था और सोन के बाढ़ को बाढ़ नहीं बल्कि उसे हुल्लड़ कहा जाता था। वह हहास बांधता हुआ दौड़ता था और उसके रास्ते में आने वाले तमाम धराशाई हो जाते थे। अभी स्थिति यह है कि सोन में बाढ़ नहीं आता और बालू के अंधाधुंध खनन ने सोने में कई गड्ढे बना दिए हैं। जिसमें हाल के वर्षों में डूबने से लगभग आधा दर्जन मौतें हो चुकी हैं। दाउदनगर, ओबरा, बारुण और नबीनगर चार प्रखंड औरंगाबाद जिले के सोन के किनारे हैं। 



टीला, शिकार खेलना, पंक्षी सब खत्म


पांडेय टोली निवासी विश्वकांत पांडेय, अवधेश पांडेय, पुरानी शहर निवासी विवेकानंद मिश्रा, अरुण यादव, किसान पंकज यादव जैसे लोग बताते हैं कि अब सोन में ना तो टीला बचा है, न काली स्थान घाट का कोई वजूद बचा है। कभी बुजुर्ग बताते थे कि अंग्रेज सोन में शिकार खेलने जाते थे। अब सोन की स्थिति यह है कि कोई पंछी नहीं मिलता है। एक जमाने में टीला पर चढ़ने में युवा हाफ जाते थे। इन सब का वजूद खत्म हो गया है।