Thursday 16 November 2017

पुलिस के सुस्त रवैये से गुस्से में एकजुट होता है समूह



यदि जल जाते बच्चे तो क्या करती पुलिस?
क्या चुप बैठे रहते अभिभावक?

औरंगाबाद के अंबा में संत जोसेफ स्कूल के बस को चाचा नेहरू के जन्म दिन बाल दिवस पर अपराधियों ने जला दिया। वाहन चालक ही स्कूल बस का मालिक था। उसने सूझ बूझ से अपराधियों के सामने काम लिया। बच्चों को पेट्रोल डालने के बाद वाहन से आग लगाए जाने से ठीक पहले उतार दिया। कल्पना करिए, बस में सवार बच्चों को रहते यदि आग के हवाले कर दिया गया होता तो क्या होता? क्या तब भी पुलिस का रवैया इतना ही सुस्त रहता, जितना कि अभी है? बच्चो के अभिभावक क्या तब भी इसी तरह शांत बैठे रहते? या वे स्कूल को ही जिम्मेदार बता कर सड़क पर उतर गए होते? यह सब कल्पना कर सकते हैं। 
यह सब कहने का कारण है, जो खुद पुलिस ने उपलब्ध कराया है। घटना को अंजाम देने के बाद अपराधी स्कूल को फोन करके बताता है कि स्कूल वाहन झोल (जलाना) दिया है। स्कूल संचालक मिले, अन्यथा स्कूल में बम मार देंगे। मैं फलां हूँ, फलां का भाई। घर अमुक जगह है। यह बातचीत रिकार्ड पर है। इस रिपोर्ट के साथ संगलग्न भी है। इसे आप सुन सकते हैं। 
अब सवाल है कि इतना साहस एक अपराधी को कैसे और कहां से आया? क्यों ऐसा है? आखिर उसने खुद का परिचय और कबूलनामा क्यों दिया? इसके पीछे क्या साजिश है? क्या बड़े बड़ों का संरक्षण प्राप्त है और इसी कारण उसके पास इतना साहस आया, या अपराधी नौसिखुआ है? नौसिखुआ होने पर भी किसी के संरक्षण होने की संभावना खत्म नहीं हो जाती। पुलिस उसे तीन दिन में भी क्यों गिरफ्तार नहीं कर सकी? क्या किसी बड़े पैरवी या सफेदपोश के दबाव में है, जैसी कि रमता हत्या कांड में चर्चा होती रहती है? या पुलिस शांति से अपना काम कर रही है, और सफलता के बाद मीडिया में आकर बयान देगी? संभावनाएं दोनों तरह की है। 
16 नवम्बर को एक सामाजिक संगठन वैश्य चेतना परिषद ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। उसने मंत्रीमंडल के सदस्यों के संज्ञान में इस मुद्दे को लाया है। अब संभवतः फैसलाकुन या महत्वपूर्ण कार्रवाई दिख सकती है। 
उस घटना के बाद नन सीबीएसई अफलिएटेड स्कूलों ने हड़ताल कर रखा है। 15 को कुटुंबा प्रखंड के स्कूल बंद रहे और 16 को पूरे जिले के स्कूल बंद रहे। करीब 300 स्कूल बंद रहे। इससे हाजरों बच्चों की पढ़ाई की क्षति हुई। इसकी भरपाई कौन करेगा?
इस स्कूल के निदेशक दिलीप साव और इनके भाई अनूप साव को प्रशासनिक सहयोग चाहिए। तीन माह पहले दिलीप को गोली मारी गई थी। 14 नवम्बर को उनके स्कूल बस में पेट्रोल डालकर आग लगा दी गई।
घटना को अंजाम देने वाले ने खुद स्कूल को फोन कर अपना परिचय दिया। परसा का पुकार मेहता अपना नाम बताया। और धमकी दी कि स्कूल बंद कर दो, अन्यथा बम मार देंगे।
स्कूल बंद करने की धमकी देने से भी सवाल उठता है। आखिर स्कूल बंद हो जाने से किनको लाभ होना है?
उपेंद्र कश्यप, दैनिक भास्कर, डेहरी (रोहतास)

Tuesday 14 November 2017

व्यापार मंडल के 34 साल के इतिहास में पहली बार "यादव अध्यक्ष"


विजेता चुन्नू सिंह की आरती उतारती हुई मां श्रीमति कान्ति देवी   
चुन्नू सिंह बने सहकारिता के "इतिहास पुरुष"
08 बार कुर्मी और 03 बार राजपूत बने अध्यक्ष
उपेंद्र कश्यप (लेखक, पत्रकार)
व्यापार मंडल का चुनाव पूर्ण हो गया है। दाउदनगर (औरंगाबाद) के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण इतिहास रचा गया, जो कलमकारों की आंखों ने नहीं देखा, या समझा। सुजीत कुमार उर्फ चुन्नू सिंह व्यापार मंडल के अध्यक्ष बन गए। खबर मात्र इतनी भर नहीं है। इस खबर से अधिक महत्वपूर्ण इसका ऐतिहासिक पक्ष है। चुन्नू 'इतिहास पुरुष' बन गए हैं। उनका नाम व्यापार मंडल दाउदनगर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। जब भी स्थानीय इतिहास कोई कलमबंद करेगा। यदि उसे स्थानीय राजनीतिक इतिहास का ज्ञान हो। चुन्नू सिंह पहले “यादव अध्यक्ष” बने हैं। 1983 के चुनाव से अब तक का इतिहास ज्ञात है। इसके अनुसार उप चुनाव और कार्यकारिणी द्वारा अध्यक्ष चुने जाने समेत 11 बार अध्यक्ष बने हैं। चुन्नू 12 वीं अध्यक्ष बने हैं। 

व्यापार मंडल पर कुर्मी जाति का एकाधिकार रहा है। सात बार कुर्मी जाति के नेता अध्यक्ष बने हैं। जबकि तीन बार राजपूत। 1978 में तरारी से मुखिया बने बेलाढी निवासी दिनेश सिंह कुर्मी थे। वे 1983 और 1986 में व्यापार मंडल का अध्यक्ष बने। इनके बाद 1989, 1992 और 1995 में लगातार तीन बार संसा के हीरालाल सिंह अध्यक्ष बने। वे भी कुर्मी थे। उसी तरह 1998 और 2001 में गोरडीहां निवासी मुखिया रहे भगवान सिंह अध्यक्ष बने। वे भी कुर्मी हैं। 04 जनवरी 2016 को बेलाढी निवासी दीपक सिंह अध्यक्ष बने, वे भी कुर्मी हैं। बीच में सिर्फ सुदेश सिंह ही ऐसे सवर्ण नेता रहे जो तीन बार अध्यक्ष बने। वे जाति से राजपूत थे, जिनोरिया के निवासी। करमा पंचायत के मुखिया भी रहे हैं। 2004 में कार्यकारिणी ने उनको अध्यक्ष चुना था2007 में चुनाव जीत कर अध्यक्ष बने और फिर तीसरी बार 2012 में अध्यक्ष बने। 04 अक्टूबर 2012 को हत्या होने तक वे इस पद पर रहे। सुदेश सिंह भी पिछड़ा और राजद की राजनीति करके ही व्यापार मंडल का अध्यक्ष बने थे। यह पहली बार हुआ है कि कोई यादव व्यापार मंडल का अध्यक्ष बना। 

विडंबना देखिए, इस बार चुन्नू भाजपा जदयू के समर्थन और सवर्ण मतों के सहयोग से अध्यक्ष बने। पिछडावाद की राजनीति करने वाले 'सबका साथ सबका विकास' में यकीन नहीं रखते और नतीजा इतिहास का हिस्सा नहीं बन सके। चुन्नू की जीत इस ऐतिहासिक संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। यह तब महत्वपूर्ण दिखेगा जब इतिहासबोध हो।

चुन्नू सिंह का जीवन परिचय-
पिता-ललन प्रसाद सिंह-सेवा निवृत प्रधानाध्यापक
माता-कान्ति देवी- सेवा निवृत शिक्षिका
भाई-अजीत सिंह-अध्यक्ष-नगर परिषद् पैक्स व आरएसओडी, मंटू सिंह|
घर-मझिआंव-ओबरा|

Thursday 9 November 2017

बिना ‘गिवअप’ किए ही बंद हो गयी एलपीजी सब्सिडी, सरकार ने कहा –धन्यवाद!

ग्राहक बोल रहे-सब्सिडी छोड़ने के लिए कभी नहीं दिया आवेदन
उपेन्द्र कश्यप। डेहरी

केंद्र सरकार अपनी पीठ खूब थपथपा रही है| उसे फक्र है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वाहन पर देश के एक करोड़ नागरिकों ने अपना एलपीजी गैस सब्सिडी छोड़ दिया है| इससे ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ के तहत पांच करोड़ परिवारों को लकड़ी के धुंए से मुक्ति दिलाने का अभियान चल रहा है| यह तब अच्छी बात होती जब वास्तव में परिवारों ने खुद ‘गिवअप’ किया होता। किन्तु जमीनी हकीकत कुछ और है| जिन लोगों को गिवअप करने के बदले पीएम ने धन्यवाद पत्र भेजा है, उसमें से किसी ने स्वेच्छा से सब्सिडी नहीं छोड़ा है| दैनिक भास्कर ने पीएम ने धन्यवाद पत्र जिनके लिए भेजे हैं उनमें से दस लोगों से पूछा, तो सबने कहा कि उन्होंने सब्सिडी नहीं छोडी है। पाली रोड स्थित देव इंडेन के संचालक अशोक पासवान ने भी इस बात की पुष्टि की कि किसी ग्राहक ने आज तक सब्सिडी छोड़ने के लिए आवेदन उन्हें नहीं दिया है। उनके यहाँ ऑन लाइन नंबर लगाने की सुविधा भी नहीं है| इनके अनुसार मोबाइल से नंबर लगाने के लिए कॉल करते वक्त गिवअप के लिए बटन दबाने को बोलता है और लोगों ने अज्ञानतावश या भूलवश वही बटन दबा दिया होगा| नतीजा बड़ी संख्या में लोग बिना जाने ही गिवअप कर गए। सरकार ने उनके नाम “धन्यवाद पत्र” भेज दिया।

कईयों को पता नहीं तो कई लगा रहे दौड़
गिवअप के बाद कइयों को यही ज्ञात नहीं है कि उनके खाते में सब्सिडी जा रही है या नहीं। बहुत ऐसे हैं जो पासबुक चेक ही नहीं करते। कुछ ऐसे ग्राहक भी हैं जो दौड़ रहे हैं कि उनके खाते में सब्सिडी की राशि नहीं आ रही| कुछ बैंक और गैस आपूर्तिकर्ता के बीच दौड़ रहे हैं और तीनों पक्षों को ही पता नहीं कि सब्सिडी खान और क्यों अटकी पडी है। कई ऐसे लोग भी हैं जिनके खाते में सब्सिडी जा रही है और गिवअप के लिए धन्यवाद पत्र भी आया हुआ है।

विवाद के कारण नहीं बाँट रहे “धन्यवाद पत्र” 

देव इंडेन में 55 ग्राहकों के लिए धन्यवाद पत्र आया हुआ है। अशोक पासवान का कहना है कि उन्हें यह कंपनी के चैनल से प्राप्त हुआ है। कुछ ग्राहकों को उन्होंने दिया तो विवाद शुरू हो। प्राय: सभी ने कहा कि उन्होंने सब्सिडी छोड़ने के लिए कोइ आवेदन नहीं दिया है।

हमने मांगा अनुदान, पीएम ने भेजा “धन्यवाद पत्र’
दैनिक भास्कर ने पीएम से धन्यवाद प्राप्त करने वाले ग्राहकों से सवाल पूछा तो जवाब मिला-
० नौडीहा के पांडेपुर से कृष्णा साह बोले-रौंग नंबर|
० चितौलीचौक रमडीहरा से रौशन कुमार बोले-गिवअप नहीं किया है| कोइ आवेदन नहीं दिया| खाता चेक नहीं किया है|
० परमेश्वर बीघा से गनपत सह बोले-काहे सब्सिडी बंद कर दिए? जब छोड़ा ही नहीं सब्सिडी तो पीएम धन्यवाद काहे देंगे?
० परमेश्वर बीघा से प्रेमलाल कुमार बोले- बैंक से पता चला कि सब्सिडी नहीं आ रहा, हम छोड़े नहीं हैं|
० पीतांबरपुर से अशोक कुमार सिंह बोले- बैंक और गैस एजेंसी ने आधार नंबर माँगा| जमा आकिया तब भी सब्सिडी नहीं आ रहा| हम नहीं छोड़े हैं सब्सिडी|

धन्यवाद पत्र का अंश---
प्रधान मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली 
स्नेही जन
... मैंने ये पत्र आपको और आपके परिवार को धन्यवाद देने और अभिनन्दन करने के लिए लिखा है। 27 मार्च 2015 को मैंने देशवासियों से आह्वाहन किया था कि क्यों न हम रसोई गैस पर मिलने वाले अनुदान का त्याग करें। आपने सहित देश के एक करोड़ से अधिक परिवारों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी। आपके छोड़े गए सब्सिडी से देश “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” से देश के पांच करोड़ गरीब परिवारों को लकड़ी के धुएं से मुक्ति दिलाने में सहयोग मिल रहा। मुझे उम्मीद है कि अर्थशास्त्र के जानकार और निराशा भरी बात करने वाले कुछ लोग आपके इस त्याग के बाद जन शक्ति को एक नए नजरिए से देखेंगे। 
मैं आभारी हूँ कि आपके इस फैसले से देश के विचार प्रवाह को नया आयाम  मिला है। 

पीएम का कुछ और निवेदन:-    
पीएम नरेन्द्र मोदी ने इस धन्यवाद पत्र में ‘जनता से कुछ और भी निवेदन’ किया है:-
1 -आप अपने और कम से कम 10 परिचितों के घर में बिजली के लिए एलईडी बल्ब का इस्तेमाल शुरू  इससे बिजली भी बचेगी और पैसों की भी बचत ।
2-स्वच्छता को अपना स्वभाव । जिस भी जगह पर आप हैं वहां इसे जन आन्दोलन का स्वरूप देने की कोशिश ।  

Friday 3 November 2017

पुलिस के हत्थे चढ़ गये- उसी के हिमायती और नक्सलियों के विरोधी सुग्रीव खरवार

दैनिक भास्कर रोहतास में प्रकाशित खबर
पुलिस के नक्सल विरोधी अभियान में रहे हैं सक्रीय
कैमूरांचल विकास मोर्चा के बैनर तले किये हैं काम
उपेन्द्र कश्यप| डेहरी

मुखिया पुत्र के अपहरण मामले में सुग्रीव खरवार की गिरफ्तारी की चर्चा का दूसरा पहलू भी है| जिले के लिए नक्सल आन्दोलन, नक्सल विरोधी आन्दोलन के सन्दर्भ में इस गिरफ्तारी के बड़े मायने हैं| सुग्रीव पुलिस का मुखबीर माने जाते रहे हैं| यह आरोप उन पर नकस्ली संगठनों ने लगाया और इसकी सजा भी दी| इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारने वाले खरवार पहाड़ पर नक्सल विरोधी आन्दोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ता माने जाते रहे हैं| इस संवाददाता की उनसे मुलाक़ात मुखिया बनने के बाद संभवत: 2002 में हुई थी| एक पत्रिका के लिए तब उनसे साक्षात्कार लिया था| 
मुखबिरी नहीं की तो किया गिरफ्तार
खरवार को लेकर एक चर्चा यह भी है कि पुलिस उनसे मुखबिरी का काम चाहती रही और वे ऐसा इधर के दिनों में नहीं कर पा रहे थे| सूत्रों के अनुसार ग्रामीण इलाके के लोग मानते हैं कि उनका कोइ आपराधिक रिकार्ड नहीं रहा है, हालांकि एसपी ने कहा है कि आपराधिक रिकार्ड रहा है| इसके बावजूद पुलिस कोइ ख़ास आरोप नहीं लगा सकी है| 

संरक्षण देना पडा महँगा
चर्चा है कि वे हथियार का इस्तेमाल अपने हक़ में और अपराधियों का संरक्षण देने के लिए करने लगे थे जो पुलिस को नागवार गुजर रहा था| कौशल अपहरण काण्ड में हुई गिरफ्तारियां सुग्रीव के खिलाफ पुलिस के लिए एक अवसर उपलब्ध करा गयी| सुग्रीव ने कैमुरांचल विकास मोर्चा बनाया था| इसके बैनर तले नक्सलियों के खिलाफ काम किया| पहाड़ पर 59 हथियार के लाइसेंस मिले| इससे नक्सलियों की दम निकल गयी थी|

पुलिस मुखबिरी का आरोप लगा चुके हैं नक्सली संगठन
इसी आरोप में परिवार के तीन सदस्यों की हुई थी ह्त्या
सुग्रीव खरवार के खिलाफ नक्सली संगठन ने कारर्वाई की है| उस पर मुखबिरी का आरोप लगाया गया था| वर्ष 2011 में 30 जुलाई की रात बंडा में उसके घर पर हमला किया गया था| उनके तीन भाइयों अवधेश खरवार, श्री राम खरवार और श्याम बिहारी खरवार की ह्त्या टांगी से काट कर कर दी गयी थी| घर में आग लगा दिया गया था| तब सुग्रीव खरवार घर में नहीं थे इस कारण बच गए थे| उन पर जोनल कमांडर बीरेंद्र यादव उर्फ राणा की हत्या का आरोप माओवादियों ने लगाया था| आज यह बिडंबना ही दिखती है कि पुलिस ने उन पर कई नक्सली घटनाओं में शामिल होने का आरोप लगाया है|

कौन था बीरेंद्र यादव उर्फ राणा?
बीरेंद्र यादव उर्फ़ राणा भाकपा माओवादी का सोन-गंगा-कोयल-विन्ध्याचल एरिया का जोनल कमांडर था| उसने कामेश्वर बैठा की जगह अपने संगठन में ली थी| वही बैठा, जो बाद में सांसद बने| बैठा की तरह ही राणा की भी इलाके में तूती बोलती थी और संगठन के लिए खासा महत्वपूर्ण शख्स था|

2001 में बने थे मुखिया
सुग्रीव खरवार साल 2001 में मुखिया बने थे| बाद में वे चुनाव नहीं जीत सके या चुनाव नहीं लड़ सके|