Wednesday 25 October 2017

हर सभ्यता संस्कृति में सूर्य ही हैं अराध्य देव

पूरी दुनिया को जगमग करने वाले कौन हैं भगवान भास्कर ?

कश्यप और अदिति के 
पुत्र हैं भगवान सूर्य

छठ व्रत भगवान सूर्य से संबंधित पर्व है| इसी कारण इसे सूर्य षष्ठी व्रत कहा जाता है| सूर्य जो साक्षात हैं, प्रत्यक्ष देवता। इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती है। इनकी उपासना सिर्फ धरतीवासी ही नहीं बल्कि सौर मंडल के सभी ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र करते हैं। धरती पर भी जितनी सभ्यताएं पनपी सबने किसी किसी अवसर पर किसी किसी विधि से इन्हें अपना अराध्य माना है। भारतीय वांडगमय में सूर्य के जन्म का भी किस्सा दर्ज है। आचार्य पंडित लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि सूर्य की उत्पति कश्यप द्वारा अदिति के गर्भ से माघशुक्ल सप्तमी की प्रात: बेला में हुआ। आदित्य नाम इसीलिए मिला। जन्म क्षेत्र कलिंग (कोर्णाक, उड़ीसा) था, जो कश्यप ऋषि का क्षेत्र है। सूर्य की दो पत्नी संज्ञा और छाया है। संज्ञा विश्वकर्मा की पुत्री है जो अपनी प्रतिबिंब छाया को छोड़कर मायके (नैहर) चली गई। इनकी उपासना में नित्य सूर्य की पूजा, गायत्री मंत्र जाप, अर्घ्य एवं दंडवत करना चाहिए।

दिन, रात, मास पक्ष सब सूर्य से संबद्ध
सूर्य से ही दिन, रात, घटी, पल, मास, पक्ष, वर्ष, संवत का विभाग बना। इनके बिना सिर्फ अंधेरा रह जायेगा। सूर्य ही जीवन, तेज, ओज, बल, यश, चक्षु, आत्मा और मन हैं। विश्व के अंतरात्मा हैं। अग्निपुराण के अनुसार विष्णु के नाभी कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ। ब्रह्मा से मरीची जन्मे, इनसे कश्यप और कश्यप से सूर्य। सूर्य सात अश्वों पर सवार हैं, जिनका सारथी अरुण वास्तव में गरुड़ का अनुज है। पिंडगल लेखक, दंडनायक-द्वार रक्षक और कल्मास नाम के दो पंक्षी द्वार पर खड़े रहते | दिण्डि मुख्य सेवक हैं।

सूर्य की हैं दस संतान
सूर्य की दस संतान हैं| संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्रि्वनी कुमार एवं रेवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि (भद्रा) और सावर्णिमनु। सूर्य की अराधना काफी फलदायी है। कुष्ठ रोग समेत कई व्याधियां दूर होती हैं| प्राणायाम को वैज्ञानिकों ने भी लाभदायक बताया है।


आत्मा के समान है सोन नदी, अर्घ देने जुटते हैं लाखों श्रद्धालु

आज सोन नदी के तटों पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ देंगे व्रती 
दैनिक भास्कर रोहतास में प्रकाशित छठ-सोन पर विशेष रिपोर्ट 

सूर्य को अर्घ्य देते समय 
प्रदुषणमुक्त बनाने का लें प्रण 

उपेन्द्र कश्यप | डेहरी

आज 784 किलोमीटर लंबे सोन नद के दोनों बाएं-दायें तटों पर लाखों श्रद्धालु छठ व्रती भगवान भास्कर को अर्घ्य देंगे| बुधवार को अस्ताचल और गुरूवार को उदयाचल सूर्य को दूध या पानी से अर्घ्य देंगे| लाखों श्रद्धालु ऐसा करते हुए सोन नद के प्रति भी अपनी श्रद्धा और समर्पण भाव प्रदर्शित करेंगे| आखिर सोन जो जीवनधारा, मात्र एक नद ही नहीं है| सोन का पौराणिक महत्त्व अपनी जगह है, किन्तु इसका योगदान समीप के निवासियों के लिए आत्मा के समान है| सोन का पानी अनेक प्रकार से गुणकारी है| रूचिकर, संतापहारी, हितकर, जठराग्निवर्धक, बलदायक, क्षीण अंगों के लिए पुष्टीप्रद, मधुर, कान्तिप्रद, पुष्टीकर, तुष्टीकर और बलवर्धक है। पूरे कार्तिक मॉस के अलावा कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्राति को सोन में स्नान को प्राथमिकता वर्त्तमान में भी दिया जाता है। इसे हिरण्यवाहु कहा गया है| अर्थात सोने के कण को अपने साथ बहाने वाला नद| तीन हजार साल से भी पहले प्रागैतिहासिक-पुरैतिहासिक काल में भी यह सहायक नदियों का जल प्राप्त कर निरंतर बहता रहा| आजकल इसके गुणों को मानवीय स्वार्थ ने खा लिया है| अब इसमें विष बहता है, क्योंकि इसका जल भी प्रदूषित हो गया है| क्या यह अच्छा नहीं होगा, जब हम सोन में खड़े होकर साक्षात देवता सूर्य को अर्घ्य दें तो इसे प्रदुषण मुक्त बनाने का भी प्रण लें| 
  
प्राचीन नाम है शोण नदी नहीं नद है
नवीं सदी में मिला पुलिंग नाम
सोन का प्राचीन नाम शोण या शोणभद्र है। नवीं सदी के संस्कृत साहित्यकार राजशेखर ने गंगा आदि को नदी की संज्ञा दी है| लेकिन ब्रह्मपुत्र की तरह सोन को नद ही कहा है| शोणलौहित्योनदौ। सोन को हिरण्यवाह या हिरण्यवाहु भी कहते हैं| शोणो हिरण्यवाहः स्यात्। इसकी शोभा का बखान करते हुए सांतवीं सदी के महान साहित्यकारए षोण तटवासी बाणभट्ट कहते हैं- वरुण के हार जैसा चन्द्रपर्वत से झरते हुए अमृतनिर्झर की तरह, बिंध्य पर्वत से बहते हुए चन्द्रकान्तमणि के समान, दण्डकारण्य के कर्पूर वृक्ष से बहते हुए कर्पूरी प्रवाह की भाँति, दिशाओं के लावण्य रसवाले सोते के सदृष, आकाशलक्ष्मी के शयन के लिए गढ़े हुए स्फटिक शिलपट्ट की नाई, स्वच्छ शिविर और स्वादिष्ट जल से पूर्ण भगवान पितामह ब्रह्मा की संतान हिरण्याह महानद को लोग शोण भी कहते हैं।

कहाँ है सोन का उदगम स्थान
प्राचीन भारतीय वाग्मय में कहीं कहीं सोन को मेकलसूत भी कहा गया है। नर्मदा तो मेकलकन्या के रूप में प्रसिद्ध है ही। इससे सहज ही अनुमान होता है सोन का उद्गम भी मेकल पर्वत ही है। इसी मेकल के पष्चिमी छोर पर बसा हुआ है अमरकंटक, समुद्र से साढ़े तीन हजार फीट की ऊँचाई पर जहाँ से नर्मदा प्रवाहित होती है। नर्मदा और सोन नदियों का उद्गम स्थल एक दूसरे के निकट है, इसका संकेत महाभारत में भी मिलता है। कई कहानियां हैं| अमरकंटक के कूण्ड से सोन के प्रस्त्रिवत होने की एक लोक कथा कैमूर क्षेत्र में भी प्रचलित रही है।  किन्तु –सोन के पानी का रंग- पुस्तक के अनुसार तथ्य यह भी है कि सोन का उद्गम अमरकंटक में नहीं, अमरकंटक धाटी में पेठडरा के पास सोनकूण्ड में है| बिलासपुर जिले के उचरांचल में। उपरोक्त तथ्य और तात्कालिक भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि अमरकंटक के सोनमुड़ा का पड़ोस पौराणिक काल में सोन का उद्गम रहा है जो वर्त्तमान सोनकछार और मलिनिया नालों से होकर पूर्वोत्तर रूख लेता सोनकूण्ड होता हुआ आगे बढ़ता था। कहने का मतलब यह है कि सोनमुड़ा, अमरकंटक और उसके पड़ोस को सोन का उद्गम मानने का आधार पौराणिक भूगोल से सम्बन्धित है और वह हमें सोनकुण्ड, सोनबचरवार से भी पश्चिम की ओर इंगित करता है|

Sunday 22 October 2017

रिश्ते जो टूट गए थे पुरखों के, अब फिर से जुटेंगे नए सिरे से

दैनिक भास्कर के रोहतास और औरंगाबाद संस्करण में प्रकाशित 
नई योजनानौहट्टा के पंडुका और झारखंड के श्रीनगर के बीच सोन नदी पर बनेगा पुल 

उपेंद्र कश्यप |डेहरी नौहट्टा के पंडुका और झारखंड के श्रीनगर के बीच सोन नदी पर पुल बनेगा। इसकी घोषणा भूतल परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने मोकामा में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत कई मंत्रियों की उपस्थिति में की। इससे इलाके में समृद्धि आएगी। पडरिया में शेषनाथ मिश्राअखिलेश कुमार मिश्रा उर्फ ददन मिश्रा और अनुज मिश्रा ने बताया कि फोरलेन सड़क भी बन रही है। इससे यातायात की सुविधा बढ़ेगी। बताया कि पुल बनने से मध्य प्रदेशउत्तर प्रदेशछत्तीसगढ़ और झारखंड इस इलाके से नजदीक हो जाएगा। अभी इन प्रदेशों में जाने के लिए एक सौ किलोमीटर से अधिक की दूरी कम हो जाएगी। शेषनाथ मिश्रा ने बताया कि पुरखों से जो उन प्रदेशों में रिश्तेदारी थीवह टूट गई। क्योंकि बैलगाड़ीहाथीम घोड़ानाव और पैदल यातायात के जमाने में कई रिश्तेदारियां सोन के उस पार हुई। बाद में आधुनिक जमाने में लोगों ने परहेज करना शुरू किया क्योंकि दूरी बहुत अधिक दिखने लगी। यातायात संपर्क कम है। जब पुल का निर्माण हो जाएगा तो स्वाभाविक रूप से एक बार फिर से रिश्तेदारियां बनने लगेंगी। इन्होंने बताया कि किसानों को काफी लाभ होगा। फसल का दाम बढ़िया मिलेगा। अभी चावलगेहूं शब्जीआलूप्याज सस्ता है। इसका दाम नहीं मिलता। भूसा को गनौरा बना देते हैं किसानक्योंकि दाम नहीं मिलता। 60 रुपए प्रति क्विंटल बेचते हैं जबकि सोन उस पार इसका मूल्य दो से तीन सौ रुपये क्विंटल है। 








सोन नद पर बिहार में होगा पांचवां पुल 
यदिपंडुका-श्रीनगर सोन पुल का निर्माण हुआ तो वह सोन नदी पर बिहार में पांचवां पुल होगा। सोन नदी पर बना कोईलवर रेल सह सड़क पुल सबसे पुराना है। इसकी उम्र 155 साल हो गई है। पुल का निर्माण 1856 में शुरू हुआ था। पुल के ऊपरी हिस्से में रेलमार्ग निचले हिस्से में टू लेन की सड़क है। दूसरा सबसे पुराना पुल ग्रैंड ट्रंक रोड पर डेहरी में बना हुआ है। 1965 ई. में यह पुल तैयार हो गया था। इसके समानांतर नया पुल भी बना है। सहार और अरवल को जोड़ने के लिए सोन नदी पर वर्ष 2012 में लगभग 100 करोड़ की लागत से तीसरा पुल बना है।
नवंबर में शिलान्यास संभव
पंडुका-श्रीनगरसोन पुल का शिलान्यास कार्य नवंबर में संभव हो सकता है। गत दस सितंबर को सांसद छेदी पासवान ने ऐसी ही घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि नवंबर माह के अंत तक हर हाल में पडुका गांव के नकट सोन नदी पर पुल निर्माण के लिए शिलान्यास किया जाएगा। जिसमें भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी आएंगे। जब मोकामा में इसकी घोषणा हो गई और स्वयं श्री गडकरी द्वारा, तो उम्मीद है कि जैसा सांसद ने कहा है वैसा ही होगा बना तो होगा पांचवां सड़क पुल।
बांध और रेल पुल भी है
सड़कपुल के अलावा बांध और रेल पुल भी सोन पर बना हुआ है। डिहरी-आन-सोन में बांधा बनाकर 296 मील लंबी नहर निकाली गई है। इन्द्रपुरी बराज के जल से कई जिलों के लगभग सात लाख एकड़ भूमि की सिंचाई होती है। यह बांध 1874 ई. में बन कर तैयार हो गया था। यहां ही सबसे लंबा रेल पुल जवाहर सेतु है। कोइलवर में सड़क के साथ रेल पुल है। 


Friday 6 October 2017

वाह दाउदनगर, दाउद खां की रूह और युवाशक्ति

रात में जगमग दाउद खान का किला का मस्जिद
रिपोतार्ज-उपेन्द्र कश्यप, फोटो-दाउदनगर.इन के सदस्यों के सौजन्य से


किला का निर्माण कार्य सन् 1663 ई॰ में हुआ था प्रारंभ

दस साल में बना था किला, गोह परगना का लगा था राजस्व

दाउदनगर, दाउग्राम, या दाउनगर| जो भी आप अपनी सुविधा या आग्रहों के कारण कह लें| फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि कभी सिलौटा बखौरा रहा इलाका आज दाउदनगर ही जाना जाता है| आज एक नये मुकाम पर यह शहर खड़ा है| गाँव से कस्बा, कस्बा से चट्टी (चट्टी में दाउदनगर- कहावत मशहूर रहा है, अर्थ-देहाती या ग्रामीण बाजार), चट्टी से नगर (1885-नगरपालिका) और अब नगर परिषद (द्वितीय श्रेणी का नगर) बन गया है| इस यात्रा क्रम में ढेरों आयोजन हुए हैं| अनगिनत| कोइ रिकार्ड नहीं| खुद मैंने कई ऐसे आयोजन किए, जो प्रथम और अभी तक आख़िरी बने हुए हैं| इस यात्रा का आज एक नया पडाव (माइल स्टोन) दिख रहा है| दाउदनगरडॉटइन की टीम कुछ नया कर रही है| ख़ास और आकर्षक| सतरहवीं सदी के उत्तरार्ध में किला का निर्माण कार्य सन् 1663 ई॰ (1074 हिजरी) में प्रारंभ हुआ था| दस साल इसके निर्माण में लगे| गोह परगना से प्राप्त राजस्व इसके निर्माण पर खर्च हुए थे| पलामू फतह के बाद दाउद खान को गोह, अन्छा और मनौरा परगना औरंगजेब ने भेंट किया था| बाकी इतिहास को आप मेरी पुस्तक-“श्रमण संस्कृति का वाहक-दाउदनगर” और ‘उत्कर्ष’  के दो अंकों में पढ़ सकते हैं| खैर,

किला में यह प्रथम आयोजन
रात में जगमग दाउद खान का किला का मुख्य द्वार
दाउदखान का जर्जर किला आज धन्य हो गया होगा| पहली बार उसमें रह रहा भय का भूत भाग गया| रात में जब किला में रोशनी हुई तो अंधियारा तो छटना ही था| वह छट गया| रंगीन रोशनी हर आँख को भाती है, दाउद खान के रूह को भी भा गयी होगी| मस्जिद, दरवाजा और अन्य स्थानों पर रंगीन रोशनी से सजावट की गयी| यह सब पहली बार हुआ, हो रहा है| करीब साढे तीन सौ साल के इतिहास में किला के अन्दर संभवत: यह पहला आयोजन है| इससे किला की रंगीनियत और शान बढ़ेगी, ऐसी उम्मीद कर सकता हूँ| लोगों की नजर भी पड़ेगी, किन्तु अतिक्रमणकारियों का क्या अपनी जमीन में वापस चले जाने का जमीर जागेगा? जिन्होंने किला की जमीन ऐसे कब्जा कर रखा जैसे, दाउद खान ने उनसे जमीन बेच दी हो?

बहुत कुछ नया-नया

आयोजक दाउदनगरडॉटइन के संस्थापक मो.इरशाद अहमद ने बताया कि-दाउदनगर के लिए कुछ अलग होना चाहिए| ब्रांडिंग हो, इस सोच के तहत नया करने की कोशिश करता चला गया और यह रूप रेखा तैयार हुआ| ‘दाउदनगर उत्सव’ मनाने के लिए पूरी तरह तकनीक का इस्तेमाल इनकी टीम कर रही है| हर कार्यक्रम में यह दिखेगा| गुब्बारे, हैण्ड बैण्ड, मैडल के रिबन और दर्शको-श्रोताओं को भेंट किए जाने वाले मग पर भी ‘दाउदनगर उत्सव’ प्रिंट किया हुआ है| मंच और प्रमाणपत्र तो खैर आकर्षक और नया लुक का बना ही हुआ है| आज नये दाउदनगर का चेहरा दिख रहा है| कल कुछ और ख़ास होगा| आखिर युवा शक्ति जो आगे आ रही है| उसमें ऊर्जा है, नया आइडिया है, नया विचार है, जोश है और जज्बा है| कार्यक्रम होना है (जब यह लिख रहा हूँ, प्रारंभ की तैयारी चल रही है), बेहतर होगा, आगाज से बेहतर अंजाम होगा, बस यही प्रतीक्षा व इच्छा है|

ऐतिहासिक धरोहर पर जायेगी नजर
दाउदनगरडॉटइन के सह संस्थापक नीरज कुमार गुप्ता कहते हैं कि- कोशिश है कि लोगों की, अधिकारियों की नजर इस ऐतिहासिक धरोहर (किला) पर पड़े, यह संस्था की चाहत है| शहर में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अब तक किला नहीं देखे होंगे| कई अधिकारी भी ऐसे ही हैं| सभी आज कल देख सकेंगे, यह कोशिश है| सबको किला के बारे में जनाना, बताना मकसद है आयोजन का| देखने से ही विकास का रास्ता निकलता है| कौन जानता है, कल कुछ नया, ख़ास और सकारात्मक परिवर्तन किला में दिखने लगे| अभी तो सुबह की सैर होने से ही खुले में शौच से किला को मुक्ति मिल गयी है| हर कोशिश कुछ जोडती है|

आज सुनूंगा नया गीत तुम्हारा...

आज एक सुखद अवसर भी मिलने वाला है| मो.इरशाद अहमद का गीत रिलीज होगा| बोल है- दाउदनगर है बड़ा ही प्यारा, किला हमारी शान है, मिट्टी यहाँ की कहती है-मेरी भी एक पहचान है| धन्यवाद इरशाद| आवाज दी है संदीप सिंह ने| बिहार गीत में संजय शांडिल्य (संजय अनिकेत) ने जिउतिया को जोड़ा था, जिसमें मेरी और मेरे ‘उत्कर्ष’ का योगदान था, आज नया गीत लेकर आप आये हो| दाउदनगर पर गीत, अच्छा ही लगेगा, हर दाउदनगरी को|


इसी अपेक्षा के साथ दाउदनगरडॉटइन के सभी सहकर्मियों को साधुवाद| आगे बढ़ते रहो, चरैवेति, चरैवेति....