Wednesday 9 September 2020

पटरियों पर मौत : राजधानी ट्रेन हादसा 2002


बिहार के औरंगाबाद में वर्ष  2002 की भीषणतम रेल दुर्घटना के बाद बिहार की राजनीति का चेहरा और बदशक्ल होकर उभरा है घटनास्थल पर ग्रामीणों की कार सेवा ने जहां मुसीबत के मारे यात्रियों का मन मोह लिया, वहीं बिहारी राजनेताओं द्वारा लाश पर की जा रही राजनीति ने एक बार फिर बिहारियों का सिर नीचे कर दिया है आपदा प्रबंधन की केंद्र और राज्य सरकार दोनों की नीतियों की पोल खुल गई

० घटनास्थल से उपेंद्र कश्यप ०

पूर्व रेलवे के गया मुगलसराय रेलखंड पर 9 सितंबर की रात 10:40 बजे अचानक भारतीय रेलवे की शान ढह गयीसबसे बेहतर रेलवे लाइन जिसे सघन परिवहन लाइन (ग्रैंड कार्ड लाइन) भी कहा जाता है, उस पर एक बेहतरीन प्रतिष्ठित ट्रेन राजधानी एक्सप्रेस औरंगाबाद जिले के रफीगंज रेलवे स्टेशन से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर धावा नदी पर दुर्घटनाग्रस्त हो गयीयात्री सुविधा वर्ष में जब भारतीय रेलवे अपनी भव्यता और बेहतर व्यवस्था का ढोल पीट रहा था, ऐसे हादसे से उसे कई तरह की क्षति होगी लेकिन इस हादसे पर जिस तरह की राजनीति की जा रही है वह भारतीय राजनीति के लिए गहरा आघात है रेलवे और राजनीति अपनी परिपक्व उम्र में हैं, ऐसे में ऐसी छिछली हरकतें भारतीय गौरव के लिए घातक कहीं जाएगी आज सबसे ज्यादा बहस और चर्चा इस बात की हो रही है कि यह हादसा क्यों हुआ, कैसे हुआ, और इसके लिए दोषी कौन है? घटनास्थल पर पहुंचे रेलमंत्री नीतीश कुमार ने कहा-“फीश प्लेट खोले जाने के कारण यह हादसा हुआ 13 मीटर लंबाई वाला लॉक बेल्डेड रेल खोल कर रखा हुआ था 1 दिन पूर्व ही इस क्षेत्र में 50 की संख्या में नक्सली देखे गए थे।‘ इशारा साफ था तो परोक्ष रूप से राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास भी इसी बयान में निहित था घटनास्थल पर ही दूसरी तरफ खड़े थे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, शिवानंद तिवारी और मुख्यमंत्री राबड़ी देवी पलटवार करते हुए लालू ने कहा-‘अंधा भी कहेगा कि दुर्घटना पुल ढहने से हुई है और पुल जर्जर था।‘ लालू गुस्से में थे, क्योंकि नीतीश के बयान से यह स्पष्ट था कि हादसा उग्रवादियों की कारर्वाई का नतीजा है, और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है इसलिए हादसे के लिए दोषी राबड़ी सरकार भी है

 


लालू ने कहा -रेल मंत्री अपनी जान बचाने के लिए अनाप-शनाप बक रहे हैं घटना का कारण स्पष्ट नहीं है जांच आयोग बैठा दिया गया है लेकिन राजनीतिक बयानों से जब छीछालेदर शुरू होनी शुरू हुई तो उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और नीतीश के बीच बातचीत के बाद तय किया गया कि बिना जांच रिपोर्ट आए अब कोई बयान बाजी नहीं उधर इसी दिन घटनास्थल पर पहुंचे रेल राज्य मंत्री एके मूर्ति ने भी घटना का कारण तोड़फोड़ बताया लेकिन दूसरे रेल राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने घटनास्थल पर ही “न्यूज ब्रेक” से कहा कि जब तक जांच आयोग की रिपोर्ट नहीं आती है कुछ भी कहना संभव नहीं हालांकि नितीश के बयान से ये सहमत हैं रेल सुरक्षा आयुक्त ने भी नीतीश के बयान को मनाकर रिपोर्ट तैयार की, किन्तु जिला प्रशासन ने जब उस पर आपत्ति की तो संयुक्त मसौदा तैयार करने के कारणों का विकल्प खुला रखा गया पुलिस प्रशासन ने तो रेलवे के विरुद्ध प्राथमिकी तक दर्ज की है। दरअसल, केंद्र में राजग की सरकार है तो राज्य में राजद की। दोनों की राजनीति दो धारा में चलाती हैदोनों ने अपनी राजनीति साधते हुए बयान दिया विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ अनिरुद्ध सिंह कहते हैं- “राजनीति करने की जगह है? भाषण देना चाहिए? यह समय मानवीय संवेदना व्यक्त करने की है।“ लेकिन सवाल है कि जो राजनीतिक चरित्र है उसमें से ऐसे आदर्श दिख सकते हैं क्या? दरअसल नीतीश और लालू दोनों ही अपने उत्तरदायित्व से मुंह चुरा रहे हैं घटना क्यों घटी? स्पष्ट कारण बाद में ही पता चल पाएगा। लेकिन परिस्थिति जन्य उपजे सवालों के कारण मामला बहुत ही उलझा हुआ है घटनास्थल पर राजद के जिला अध्यक्ष कौलेश्वर यादव ने कहा है-पूल में दरार पड़ी थी, जिसे कुछ रोज पहले मरम्मत कराया गया था जब यहाँ रेल मंत्री आए थे तब तक फिश प्लेट नहीं खुला था फिश प्लेट खुलवाया, ताकि अपनी खामियां छुपाई जा सकेदूसरी तरफ प्रोफेसर अनिरुद्ध कहते हैं-‘कोई भी देखे, यह तोड़फोड़ के कारण घटी घटना ही है इस ट्रैक से बेहतर रेल गुजरती हैं कुछ समय पूर्व दो माल गाड़ी भरी हुई इस ट्रैक से गुजरी है, पुल कमजोर होता तो धंस जाता।‘ यदि गंभीर विश्लेषण करें तो रेलवे और राज्य सरकार दोनों समान रूप से दोषी नजर आएंगे 

 तोड़फोड़ के लिए नक्सली संगठन एमसीसी को जिम्मेदार माना जा रहा है इसमें दम भी है क्योंकि एमसीसी की ओर से ऐसे हमले की आशंका पहले ही व्यक्त की जा चुकी थी इस संगठन ने कई बार फिश प्लेट खोलकर राजधानी या ऐसी कई सवारी गाड़ियों को दुर्घटना का शिकार बनाने की कोशिश की थी कई बार स्टेशन भी लुट लिया गया है कष्ठा, परैया, गुरारू, इस्माइलपुर, रफीगंज, देव हाल्ट, रफीगंज, जाखिम जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थित रेलवे स्टेशनों पर बराबर खतरा बना रहता है समझा जाता है कि यदि प्रशासनिक सक्रियता होती तो ऐसा नहीं होता अपने नेताओं की गिरफ्तारी से तंग आकर एमसीसी ऐसी कार्रवाई कर सकती है लेकिन 2 प्रश्नों का उत्तर तलाशना होगा यदि एमसीसी ऐसा करती तो क्या वह स्वीकार नहीं करती फिर उसके प्रभाव क्षेत्र के ग्रामीणों ने पलायन ना कर प्रभावितों की मदद में जुटने का जोखिम क्यों लिया? जब उसी ट्रैक से 20 एवं 40 मिनट पूर्व गाड़ियां गुजरी तो कुछ नहीं हुआ? क्या इस समय अंतराल में कई फिश प्लेट खोलना, रेल लाइन हटाना संभव है जब तक इस प्रश्न का जवाब नहीं मिलता, एमसीसी या राज्य, जिला प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता उधर कहा जा रहा है कि 1917 में बने इस पुल की स्थिति जर्जर थीपानी का बहाव तेज था पुल के खम्भों में कंपन हुई और जब राजधानी 125 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गुज़री तो वह पूरी तरह हिल गया। नतीजतन दुर्घटना घटी

 रेलवे सूत्रों के अनुसार उस पुल को बैन किया गया था आमतौर पर इस रास्ते में 60-70 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से रेल चलती है लेकिन दुर्घटना बाद रेलवे इसे स्वीकार नहीं रहा मान लें, पुल ठीक था और फिश प्लेटें खुली थी तब भी घटना के लिए दोषी रेलवे ही है, क्योंकि व्यवस्था के अनुसार किसी भी सुपरफास्ट ट्रेन के गुजरने से पहले रेलकर्मी लालटेन की रोशनी में ट्रैक चेक करते हैं तो क्यों नहीं उस दिन जांच की गई कारण कोई भी हो सकता है दरअसल दोनों पक्ष ही उत्तरदायित्व लेने से बच रहे हैंरेलवे के पूर्व सदस्य एम के मिश्रा कहते हैं-बहर्हाल्म, घटना के कारणों पर राजनीति न करें यदि उत्तरदायित्व लेकर सुधार की कोह्सिः की जाये तो अधिक बेहतर होगा। वरना ऐसे हादसे होते रहेंगे।“

 


बिहारियों की सुधरी छवि

बिहार के बाहर बिहारियों की छवि संवेदनहीन, लुटेरा, जातीय आधार पर लाश गिराने वालों की और न जाने क्या-क्या है? ऐसे में राजधानी हादसा में जिस तरह से आसपास के ग्रामीणों ने राहत एवं बचाव कार्य किया, उससे बिहारियों की छवि सुधरी है घटना के बाद करीब एक घंटे के अंदर ही कराप, फेसर, लबरी, चंद्रहरा, फीता बीघा, रफीगंज, हाजीपुर एवं अब्दुलपुर के ग्रामीण लाठी, लालटेन आदि लेकर पहुंच गए घायलों ने कहा कि यदि समय पर ग्रामीण नहीं आते तो मृतकों की संख्या 2 गुना अधिक होतीराहत ट्रेन तो 4 घंटे बाद पहुंचीग्रामीणों के प्रयास की सराहना सबने कीघायल कर्नल बख्शी ने कहा कि जिंदा बचे यात्री इसलिए परेशान थे कि कहीं बिहारी लूट ना लें लेकिन ये तो साक्षात भगवान साबित हुए मौके पर पहुंचे एक कार्यपालक दंडाधिकारी अरुण कुमार ने बताया कि एक दबी हुई महिला को बचाने के लिए ग्रामीणों ने तत्काल उसे दवा पानी और चाय दिया यात्री ग्रामीणों के बारे में कह रहे थे इन लोगों ने निस्वार्थ भाव से सेवा की कहा जाता है कि एक व्यक्ति को डेढ़ लाख रुपये मिला उसने पुलिस के पास जमा किया यह पहली घटना है जब लूट की एक भी घटना नहीं हुई उन्होंने बताया कि उसने कहा कि बिहार के बारे में उन्हें गलत जानकारी दी गई थी बिहारी निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले, भोले-भाले लोग हैं सच में यही है आम बिहारी अपनी छवि को लेकर चिंतित है और वह मेहनतकश, इमानदार और सेवा समर्पण भाव रखने वाला है लेकिन बिहारियों की छवि को वास्तव में बड़े लोगों की जमात ने खराब बना रखी है नेता, अफसर स्वार्थ सिद्धि में गलत व नीच हरकत करते हैं घटनास्थल पर रफीगंज, औरंगाबाद, भभुआ, रोहतास और गया के 65-70 आरएसएस कार्यकर्ता थे। इनको लाश निकालने की जिम्मेदारी मिली थी रफीगंज के दुकानदारों ने दूकान खोलकर दवाइयां मुफ्त बांटी रेल राज्यमंत्री बंडारू दत्तात्रेय इससे काफी प्रभावित हुए और घटनास्थल पर पहुंचते ही पहले उन्होंने ग्रामीणों की सेवा भावना का अभिनन्दन किया



 ‘व्यवस्था में बदलाव जरूरी’

रेल राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से उपेंद्र कश्यप की बातचीत

 ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

कपूरथला और एलएचबीडी कारखानों में नए बोगी बनाने पर विचार हो रहा है इसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होगा ताकि मृतकों एवं घायलों की संख्या न्यूनतम हो सके 

राहत एवं बचाव कार्य देर से क्यों होते हैं?

 अभी जो व्यवस्था है उसमें बदलाव जरूरी है नए दिशानिर्देश जारी होंगे इमरजेंसी स्कवायड के गठन का विचार है वैसे ऐसे हादसों में थोड़ी बहुत शिकायत रह ही जाती है जब गोदावरी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी उसमें मैं खुद सवार था करीब 36 घंटे तक राहत एवं बचाव कार्य करना पड़ा थाऐसे हादसों में यह करना आसान नहीं होता

 प्रभावित लोग काफी शिकायत कर रहे हैं?

हां कुछ शिकायतें हैं गैस कटर देर से पहुंची चिकित्सा सुविधा प्रयाप्त नहीं हो सकी मृतकों को मृत्यु प्रमाण पत्र मिलने, सूचना मिलने में देरी हो रही है इसीलिए तो अब आपातकालीन सेल का गठन करने पर विचार किया जा रहा है