Tuesday 12 February 2019

किस व्यक्ति विशेष के नाम पर होगा दाउदनगर-नासरीगंज सोन पुल का नामकरण


कई नामचीन हस्तियों का इतिहास है महत्वपूर्ण

पुल का नाम कई लोगों के नाम पर रखने की मांग

उपेंद्र कश्यप 
रोहतास और औरंगाबाद जिले को जोड़ने वाला दाउदनगर-नासरीगंज सोन पुल अब उद्घाटन की प्रतीक्षा कर रहा है। इस पुल का फिलवक्त नाम “दाउदनगर-नासरीगंज सोन पुल” है। इसी नाम से परियोजना की प्रशासनिक स्वीकृति है। पुल निर्माण के समय से ही किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर इसके नामकरण की मांग जब-तब उठते रही है। पुल का पश्चिमी हिस्सा नासरीगंज प्रखंड में और पूर्वी हिस्सा सीमावर्ती जिला औरंगाबाद के दाउदनगर प्रखंड में। दोनों तरफ कई नामचीन हस्तियाँ ऐसी हैं जिनके नाम पर इस पुल का नाम रखा जा सकता है। मांग बहुत ही शान्ति पूर्ण तरीके से उठती रही है। चाहत से आगे मांग कभी आन्दोलन के रूप को अख्तियार नहीं कर सकी। अब जब पुल बन कर तैयार हो गया है तो व्यक्ति विशेष के नाम पर पुल के नामकरण की मांग उठने लगी है।

क्या है नामकरण की प्रक्रिया:-
बिहार राज्य पुल निर्माण निगम (बीआरपीएनएल) द्वारा पुल का निर्माण कराया जा रहा है। निर्मात्री एजेंसी हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी है। निगम के वरीय परियोजना अभियंता श्रीकांत शर्मा ने बताया कि नाम सरकार तय करती है। इसके लिए एक प्रक्रिया तय है। कोइ भी समूह या संस्था किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर पुल का नामकरण करने के लिए प्रस्ताव रखते हुए एक पत्र पथ निर्माण विभाग को भेज सकता है। विभाग सरकार को भेजती है, उस पर विचार होने के बाद कैबिनेट फैसले से नामकरण होता है।

दोनों नगर को जोड़ा था संगम साव ने:-
सोन पुल निर्माण से 109 वर्ष पूर्व बाबू संगम साव ने नासरीगंज और दाउदनगर को एक सूत्र में बांधा था। इनके कारण ही नासरीगंज और दाउदनगर जैसे चट्टी बड़े व्यापारिक केंद्र बन कर उभरे थे। आज एक नगर पंचायत तो दूसरा नगर परिषद है। नासरीगंज कागज़ उद्योग के लिए तो दाउदनगर समीपवर्ती इलाके में अकेला शहर होने के कारण मशहूर था। कहावत मशहूर है-शहर में सासाराम और चट्टी में दाउदनगर। संगम साव ने नासरीगंज (धूस) और दाउदनगर (सिपहां) में पानी से चलने वाला मिल 1910 में लगाया था। तब का उन्हें अंबानी बोल सकते हैं। इंगलैंड से लाकर टरबाइन लगाया था। दर्जनों कोल्हू लगाए गए और सरसों का शुद्ध तेल के साथ धान के लिए भी मशीनें लगाया था। उनकी इस कोशिश में दाउदनगर के राम चरण राम ने साथ दिया और सिपहां मिल का नाम इसी कारण ‘संगम साव रामचरण राम आयल एंड राईस मिल’ था। तब यहाँ 48 कोल्हू और 150 कर्मी रहते थे, अब मात्र 16 कोल्हू बचे हैं और दर्जन भर कर्मी। भारत में यह इकलौता ऐसा मिल है जो पानी से चलता है। घाटे के बावजूद इनके वंशजों ने इसे बचाए रखा है। इलाके के औद्योगिकीकरण का  आगाज उन्होंने ही किया था।       

अब्दुल कयूम अंसारी के लिए लिखा पत्र:-
द्विराष्ट्र सिद्धांत के सबसे बड़े विरोधी अब्दुल कयूम अंसारी के नाम पर भी पुल के नामकरण की मांग है। बिहार मोमिन कांफ्रेंस (क्यू) के अधिवक्ता जावेद अंसारी ने कहा कि वे सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे। इलाके को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाया था। इनके अलावा नासरीगंज निवासी कांग्रेस नेता ओमकार प्रसाद ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर यह मांग की है। उनका कहना है कि इस सोन पुल का नाम इनके ही नाम पर कर इलाके को बेहतर सन्देश दिया जा सकता है। इनके अलावे डॉ.वंशीधर ओझा, गोपाल प्रसाद, कलक्टर चौधरी और कृष्णा सिंह ने भी यह मांग की है।

लिखा भगत सिंह के लिए खत:-
पुल का नामकरण 'शहीद भगत सिंह सेतुकरने के लिए मुख्यमन्त्री को आम नागरिकों का हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन शहीद-ए-आज़म भगत सिंह सामाजिक विकास संस्थान के सचिव सत्येन्द्र कुमार ने लिखा है। इसकी प्रतिलिपि राज्यपाल, राष्ट्रपति को भी भेजी जाएगी। दाउदनगर में पुल के निर्माण के समय से ही इसकी मांग यह संस्था करती रही है। यह संगठन धारावाहिक एवं जुझारू संघर्ष चलाने की बात कह रही है।