Wednesday 30 September 2015

वीरेन्द्र के पास दो करोड की जमीन, राइफलधारी चंद्रभुषण

राइफलधारी चंद्रभुषण के पास लाखों की नगदी
 ओबरा विधान सभा क्षेत्र से रालोसपा प्रत्याशी चंद्रभुषण वर्मा के बैंक खाते में लाखों रुपये नगद जमा है। उनके हलफनामे के अनुसार पंजाब नेशनल बैंक में 574073 रुपए, बैंक आफ बडौदा में 216259 रूपया और कृषि साख सहयोग समिति तरार में 327205 रूपया जमा है। चौथे खाते में कोई राशि जमा नहीं है। उनके पास नगद 40 हजार और पत्नी के पास नगद 15 हजार रूपये है। हीरो ग्लेमर बाईक है। उनके पास एक राईफल भी है। जेवरात आदि मिलाकर उनके पास कुल 25 लाख 59 हजार 671 रूपये एवं उनके पत्नी के पास 3 लाख रूपये की संपति है। उनकी तरार, एकौना एवं देवकली में 146 डीसमिल कृषि योग्य भूमि भी है। बाजार भाव इस जमीन का तीस लाख बताया गया है। उन्होने राष्ट्रीय उच्च विद्यालय से 1990 में  मैट्रिक पास किया है। दाउदनगर प्रखण्ड के तरार निवासी श्री वर्मा के खिलाफ ओबरा थाना में धारा 406, 409, 420 एवं 120 (बी) के तहत प्राथमिकी संख्या 53/14 दर्ज है।

वीरेन्द्र सिन्हा के पास दो करोड की जमीन
दाउदनगर (औरंगाबाद) ओबरा विधान सभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड रहे राजद प्रत्याशी वीरेन्द्र कुमार सिन्हा के पास करीब डेढ करोड रुपए की जमीन है। भगवान बिगहा घर है और उम्र 48 वर्ष है। हलफनामे के अनुसार इनके नाम 70 लाख की, पत्नी के नाम 20 लाख की और प्रथम आश्रित के पास एक करोड मूल्य की जमीन –जायदाद है। उनकी सिपहा में 25 लाख रूपये कीमत की 3.25 एकड़ कृषि योग्य एवं 45 लाख रूपये कीमत की 2850 वर्ग फिट में आवासीय जमीन है। उनके पास नगद 2 लाख 45 हजार एवं उनकी पत्नी के पास नगद एक लाख दस हजार रूपये है। उनका बैंक जमा एक लाख और पत्नी का बैंक जमा एक लाख दस हजार रूपये है। उन्होने 1982 में अशोक इंटर स्कूल से मैट्रिक, 1984 में महेश सिंह यादव काॅलेज से इंटर एवं 1987 में स्नातक किया है। उनके खिलाफ पांच मुकदमें दर्ज है। उन पर औरंगाबाद नगर थाना काण्ड संख्या 155/12, दाउदनगर थाना में प्राथमिकी संख्या 55/95, 06/2003, 11/2006, और 187/2011 उनके खिलाफ दर्ज है।   

विरासत की बदौलत करोडपति हैं सोम प्रकाश


जानिये अपने प्रत्याशी को
स्वयं की नहीं विरासत की है अचल संपत्ति

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) स्वराज पार्टी (लोकतांत्रिक) से प्रत्याशी हैं- निवर्तमान विधायक सोम प्रकाश। इनका पैत्रिक घर डेहरी के पडोस में मकराइन है। इस बार जब नामांकन किया है तो पता मौलाबाग दाउदनगर का लिखा है। भाजपा और जदयू के प्रचंड लहर के बावजूद ओबरा विधान सभा क्षेत्र से 2010 के चुनाव में जीत का परचम निर्दलीय लहराया था। न कोई बडा नेता प्रचार को आया था न ही खुद हाई-प्रोफाइल प्रचार किया था। खुद को गरीब बताते हुए इस करोडपति प्रत्याशी ने जनता से चंदा लिया और एक ही टीशर्ट पहने रह कर 18 दिन प्रचार कर चुनावी महाभारत में खुद को विजेता की तरह निकाला। उस चुनाव में इन्हें हर जाति का कुल 36815 मत मिला और सत्ता की लहर पर सवार राजग प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को 36012 मत। मामुली अंतर से इस हार ने सत्ता पक्ष वालों को सदमें में डाल दिया था। जीतने के बाद पूरे बिहार में इनकी चर्चा हुई। इस बार चुनाव लडने के अनुभव के साथ मैदान में उतरे हैं। इनके द्वारा निर्वाची पदाधिकारी को दिये गये हलफनामे के अनुसार इनके हाथ में नगदी 15000 और पत्नी के हाथ मात्र 5000 रुपए है। पूर्व की तरह बीमा की राशि करीब 75 हजार रुपए पर स्थिर है। यानी पांच साल में कोई अतिरिक्त बीमा नहीं खरीदा। पांच लाख का चार पहिया वाहन खरीदा है। चल संपत्ति घटी है। पत्नी के पास तब दस लाख मूल्य का मात्र 500 ग्राम सोना था इस बार बचा है मात्र नौ लाख मूल्य का 460 ग्राम सोना। हालांकि इनके पास इस बार 2 लाख का 100 ग्राम सोना है। बीमा, जेवरात जैसी संपत्तियों के मामले में सोम प्रकाश के पास 773568 रुपये और पत्नी के पास 919450 रुपये मूल्य की संपत्ति है। इनके पास अचल संपत्ति (भूमि, भवन) 01 करोड 31 लाख 50 हजार रुपये मूल्य की है, जिसे विरासत में प्राप्त बताया है। स्वयं द्वारा अर्जित कोई संपत्ति नहीं है। दारोगा से इस्तीफा देकर विधायक बन जाने के बाद विपक्षी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी इन्हें अदालत ले गये। दावा किया कि इस्तीफा स्वीकार करने की प्रक्रिया गलत थी। हाई कोर्ट ने नामांकन ही अवैध करार दिया तो विधान सभा अध्यक्ष ने सदस्यता समाप्त कर दी। अंत में सुप्रिम कोर्ट ने सदस्यता बहाल कर दी है।  

तीन टुकडे में तीसरा मोर्चा, कैसे खुलेगा तीसरा रास्ता?


ओबरा और गोह में कई-कई प्रत्याशी
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) समाजवादी पार्टी, जन अधिकार पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समरस समाज पार्टी, समाजवादी जनता दल और नेशनल पीपुल्स पार्टी ने तीसरा मोर्चा बनाया है। दावा बिहार में अलग तीसरा विकलप देने का है, और इनकी स्थिति जमीन यह है कि उन्हें शायद यह पता ही नहीं है कि कौन कौन सी सीट उनके खाते में है? नामांकन के बाद लगता है जो भी नेता इस मोर्चे के जिस दल के पास गया उसने चुनाव लडने का टिकट थमा दिया। जैसे टिकट लोकतंत्र के महापर्व में प्रत्याशी न बन कर उसमें शामिल होने का है। इस तरह तो यह तीसरा मोर्चा तीन-तीन टुकडा में बिखर गया है। ऐसे कैसे तीसरा रास्ता बना सकेगा यह मोर्चा कोई बता सकता है क्या? ओबरा और गोह विधान सभा चुनाव क्षेत्र में तीसरा मोर्चा तीन टुकडे में विभाजित है। इसमें शामिल दलों के प्रत्याशियों पर वोटकटवा की तोहमत लगने का खतरा है। इनके लिए इस खतरे से निकलने की बडी चुनौती है। ओबरा विधान सभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी से डा0 निलम, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से अभिमन्यु शर्मा, समरस समाज पार्टी से राजीव कुमार  तथा गोह में जन अधिकार पार्टी से श्याम सुन्दर, समरस समाज पार्टी से जिम्मेदार सिंह और समाजवादी पार्टी से रामअयोध्या प्रसाद यादव खडे हैं। अब इसमें किसे तीसरा मोर्चा का प्रत्याशी माना जाये, जबकि तीनों के पास ही सिंबल है। वोचित्र स्थिति हो गयी है यह। चुनाव में लोकतंत्र का यह माखौल नहीं तो और क्या है? खुद नेता टिकट बिकने का आरोप लगाते हैं तो क्या इसमें ऐसी परिस्थिति से बल नहीं मिलेगा। जनता ठगी जा रही है और शायद ठगी जाती रहेगी।    


कमजोर न समझ मौका दें राजनीतिक दल



महिलाओं को संवैधानिक आरक्षण मिले
आधी शक्ति का इस्तेमाल आवश्यक
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) विधान सभा, विधान परिषद और लोक सभा एवं राज्य सभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। अमेरिका में प्रधान मंत्री नरेद्र मोदी ने सोमवार की सुबह कहा कि कई राज्यों में महिलाओं को नगर निकायों और ग्राम पंचायतों के चुनाव में 50 फीसद का आरक्षण प्राप्त है। यह महिला सशक्ति करण की दिशा में सराहनीय प्रयास है। सवाल है कि आखिर महिला आरक्षण बिल क्यों लटका कर रखा गया है? क्यों राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट नहीं दे रहे? अंकोढा कालेज की प्राचार्य सविता कुमारी, चौरी की मुखिया ललिता देवी, तरारी की निर्मला सिन्हा, मनार की सावित्री देवी, ओबरा के गैनी की मालती देवी और वार्ड पार्षद अनसुईया देवी से इन पहलुओं पर बात की। सबने नरेन्द्र मोदी द्वारा अमेरिका में इसकी प्रशंषा करने पर खुशी जाहिर किया। कहा कि किंतु वे देश के प्रधानमंत्री होने के साथ एक राजनीतिक दल के भी शीर्षस्थ नेता हैं, उन्हें इसकी पहल करनी चाहिए कि महिलाओं को आरक्षण उच्च सदनों में भी मिले। इसकी संवैधानिक व्यवस्था हो। महिलाओं को कमजोर न समझ कर उन्हें अवसर तो दें, ग्राम और निकाय स्तर पर महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया है। देश में आधी शक्ति का इस्तेमाल होना चाहिए। कम से कम राजनीतिक दल तो सीट बंटवारे में प्रयाप्त संख्या में सीट महिलाओं को दें या फिर राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यक हो को उन्हें कुल सीट का 33 फीसद कम से कम सीट महिलाओं को देना ही होगा। सबने कहा कि जब तक महिलाओं को सशक्त नही6 किया जायेगा तब तक देश मजबूत नहीं होगा।


Monday 28 September 2015

जानिए गोह विधान सभा क्षेत्र को

गोह के साथ हसपुरा नहीं था टेकारी प्रखंड
फोटो- गोह विस का नक्शा
जानिए गोह विधान सभा क्षेत्र को
सत्तर के दशक में ही ढह गया था कांग्रेस का किला
समाजवादियों और वामपंथियों की बना फिर गढ
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) सन 1972 तक गोह विधान सभा क्षेत्र के साथ हसपुरा प्रखंड नहीं था। तब तक टेकारी प्रखंड जुडा हुआ था। परिसीमन के बाद 1977 में चुनाव के वक्त गोह से हसपुरा जुडा और टेकारी अलग क्षेत्र बना। ताजा परिसीमन के बाद जब 2010 में विधान सभा चुनाव हुआ तो गोह और हसपुरा सीडी ब्लाक के साथ रफीगंज ला पौथु, ईटार, लट्टा और सिहुली ग्राम पंचायत को जोडा गया। इससे इस क्षेत्र में एक जाति विशेष की जनसंख्या दढ गयी। इससे जाति विशेष की राजनीति में प्रभाव बढा। जब गोह और टेकारी प्रखंड मिला कर विधान सभा क्षेत्र था तब 1952 के चुनाव में टेकारी के रेवई निवासी मुन्द्रिका सिंह, 1957 में सुखदेव प्रसाद वर्मा, 1962, 1967 और 1972 में गोह के एकौना के ठाकुर मुनेश्वर सिंह कांग्रेस से विधायक बने। यह कंग्रेस का जमाना था। बावजूद इसके 1969 में गोह के सलेमपुर झारी निवासी अवध सिंह सन्युक्त सोसलिस्ट पार्टी से विजेता बने और फिर समाजवाद का झंडा बुलन्द कर दिया। इसी से एक धारा सुभाषचन्द्र बोस की फारवर्ड ब्लाक क्रांतिकारी की नीति और सिद्धांत से प्रभावित वामपंथ की जमीन तैयार हुई, और 1977 में हसपुरा के टनकुप्पी निवासी रामशरण यादव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से विधायक बने। इसके बाद जब परिसीमन हुआ और हसपुरा एवं गोह प्रखंड को मिलाकर गोह विस क्षेत्र बना तो भी 1980, 1990 और 1995 में रामशरण यादव ही विधायक बने। हालांकि 1985 में इन्दिरा गान्धी की हत्या से बनी लहर में एक बार फिर कांग्रेस को पैर जमाने का अवसर मिल गया। इस चुनाव में ईंका से जहानाबाद (अब अरवल) के कुर्था के बिथरा निवासी देवकुमार शर्मा जीते, किंतु और 2000 में उन्हें समता पार्टी से टिकट लेकर विजेता बने। 2005 फरवरी एवं अक़्टूबर और 2010 में डा.रणविजय सिंह जनता दल यू से विधायक बने। इस बार समाजवाद, वामपंथ और दक्षिणपंथ के बीच मुकाबला है, देखिए कौन जीतता है।      



"श्रमण संस्कृति का वाहक दाउदनगर" पुस्तक में क्या-क्या है?

"श्रमण संस्कृति का वाहक दाउदनगर" पुस्तक में क्या-क्या है? यह इस पन्ना पर स्पष्ट है।  इसे देख कर आप जान सकते हैं। 

आधी आबादी को नामांकन का भी मौका नहीं


कभी प्रतिनिधित्व का भी अवसर नहीं मिला
दोनों विस क्षेत्रों में सवा लाख से अधिक मतदाता
उपेन्द्र कश्यप, दाउदगनर (औरंगाबाद) बिहार विधान सभा चुनाव में ओबरा और गोह ऐसा विधान सभा क्षेत्र है जहां से कभी किसी महिला को प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिला है। पूर्व में (अब स्वर्गीय) कुसुम देवी चुनाव लडने का जोखिम तो लिया था किंतु सफलता हासिल नहीं कर सकीं थीं। इस बार दो महिलाएं नामांकन के लिए नाजिर रसीद कटवा चुकी हैं। अब इनकी भूमिका इस चुनावी महासमर में कैसी रहते एहै यह देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि दोनों ही निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में होंगी। ऋचा सिंह तो भाजपा से टिकट लेने को प्रयासरत थीं। सोमवार को नामांकन की अन्तिम तिथि हैं। इसी दिन दोनों का नामांकन तय है। महिलाओं की तरफदारी करने को हर दल आतुर रहते हैं किंतु किसी ने इनकी ओर ध्यान नहीं दिया। दोनों विधान सभा क्षेत्र से किसी भी मान्यता प्राप्त राज्य स्तरीय या राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल ने महिला को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया है। प्राप्त विवरण के अनुसार ओबरा विधान सभा क्षेत्र में महिला मतदाताओं की संख्या एक लाख 34 हजार 477 और गोह विधान सभा क्षेत्र में इनकी संख्या 1 लाख 32 हजार 205 है। महिला मतदाताओं पर नजर सबकी लगी रहती है, किंतु प्रोत्साहन का प्रयास कोई करता नहीं दिखता। प्राप्त सूचना के अनुसार ओबरा से नामांकन करने के लिये ऋचा सिंह एवं गोह से नामांकन करने के लिये रीता देवी ने एनआर कटवाया है। ये दोनों निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में सोमवार को नामांकन करेंगी। 


Saturday 26 September 2015

शंकर के मानस पुत्र हैं बाबा गणिनाथ

शंकर के मानस पुत्र हैं बाबा गणिनाथ
फोटो-बाबा गणिनाथ मन्दिर और भगवान
आज गणिनाथ जयंती पर विशेष
वैशाली के महनार के पवइया में हुए थे प्रकट
दिलाई थी नैना योगिन राक्षसी से मुक्ति
हर साल सोन तटीय क्षेत्र में अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य हलवाई वैश्य सभा द्वारा भगवान गणिनाथ जी महाराज की जयंति मनायी जाएगी। ऐसा गत कई साल से यहां किया जा रहा है। बाबा को भगवान शंकर का मानस पुत्र माना जाता है। विक्रम संवत् 1007 में श्री मनसा राम तथा उनकी पत्नी शिवादेवी के गर्भ से गणीनाथ जी का उद्भव गुरलामान्धता पर्वत पर भाद्रपद बदी अष्टमी शनिवार के प्रातः हुआ। शिशु गणी जी का लालनपालन व शिक्षादीक्षा का दायित्व कान्दू (मध्यदेशीय) वैश्य परिवार के मनसा राम को धर्मपिता के रूप में निर्वहन करना पड़ा। गणी जी योग्य होने पर प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल में की जहाँ अल्पकाल में ही वेद वेदांग में दक्षता प्राप्त की। चतुर्दिक ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु गोरखनाथ को गुरु ग्रहण करते हुए उनके सानिध्य में वर्षों तप किए। सिद्धियों पर अधिकार प्राप्त कर पलवैया (बिहार) की पवित्र धरती पर पहुँचे जहाँ आपने गणराज्य की स्थापना कर समताम राज्य स्थापित किया। हिंदू समाज जब पतन की ओर जा रहा था तो गणीनाथ जी ने हिन्दुओं में स्वाभिमान भरा और हिंदू या सनातन संस्कृति की रक्षा की। पलवैया में गणीनाथ मन्दिर और उस मन्दिर की ओर से संरक्षित संस्कृत पाठशाला, कुआं, पोखरा आदि हैं। उन्होनें शांति के साथ अहिंसा का भी पाठ पढाया तथा वेदाध्ययन को ब्राह्मणों के चंगुल से मुक्त किया। उन्होनें मुस्लिम आततातियों से युद्ध कर उन्हें पराजित किया। वंशवृक्ष स्मारिका के अनुसार कालान्तर में गणीनाथ जी का विवाह झोटी साब की पुत्री क्षेमा सती से हुआ। उन्हें शिव का अवतार माना गया। विक्रम संवत 1112 (आश्विन महिना) नवरात्री के अवसर पर आयोजित श्री रामजन्मोत्सव एवं शक्ति आराधना कार्यक्रम को सम्बोधन करने के उपरान्त उन्होंने अपना देहत्याग किया।


Friday 25 September 2015

जानिये अपने ओबरा विधान सभा क्षेत्र को

अलग-अलग था दाउदनगर और ओबरा विधान सभा क्षेत्र

1952 से 1972 तक था अलग –अलग वजूद
1977 के चुनाव में दाउदनगर का वजूद खत्म
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) क्या आप यह जानते हैं कि पहले दाउदनगर और ओबरा स्वतंत्र विधान सभा क्षेत्र हुआ करता था? दाउदनगर का वजूद 1977 के चुनाव में पूर्णत: समाप्त हो गया। आजाद भारत में प्रथम चुनाव 1952 में हुआ था। तब ओबरा और दाउदनगर अलग-अलग विधान सभा क्षेत्र हुआ करता था। ओबरा के साथ बारुण प्रखंड और दाउदनगर के साथ हसपुरा प्रखंड जुडा हुआ था। यह सिलसिला 1972 के चुनाव तक चला। फिर केन्द्र सरकार ने परिसीमन आयोग का गठन किया। तब दाउदनगर से विधायक थे बारुण के नारायण सिंह और ओबरा के विधायक थे हसपुरा के अहियापुर निवासी राम बिलास सिंह। बारुण को अलग कर जब दाउदनगर और ओबरा प्रखंड को मिला कर ओबरा विधान सभा क्षेत्र बना तो नारायण सिंह के लिए घातक साबित हुआ। जानकारों की मानें तो तब इस परिसीमन के लिए जिला के एक राजनीतिक परिवार ने काफी प्रयास किया था। वजह थी नारायण सिंह और इनके पिता केशव सिंह का राजनीतिक कद कम करना तथा जिला की राजनीति में बारुण का महत्व कम करना। तब बारुण को सिर्फ अलग नहीं किया गया बल्कि इसे खंडित कर एक हिस्से को नवीनगर और दूसरे को औरंगाबाद विधान सभा क्षेत्र से जोड दिया गया। जब 2010 में नये परिसीमन पर चुनाव हुआ तब अखंड बारुण फिर से एक साथ नवीनगर विधान सभा क्षेत्र से जुडा। खैर, जब 1977 में चुनाव हुआ तो वे रामबिलास सिंह से हार गये और धीरे-धीरे उनका राजनीतिक अवसान हो गया। राम बिलास सिंह उसके बाद ओबरा से तीन बार चुनाव जीतने में सफल रहे।  

1952 से 1972 तक निर्वाचित विधायक
वर्ष     ओबरा                दाउदनगर
1952  पदारथ सिंह (ईंका)      रामनरेश सिंह (सोपा)
1957  दिलकेश्वर राम (ईंका)    सैय्यद अहमद सईद कादरी (ईंका)
1962  रघुवंश सिंह (ईंका)       रामनारायण सैनिक (ईंका)
1967  पदारथ सिंह (सोपा)      रामनरेश सिंह (सोपा)
1969  देवधारी राम (ईंका)      रामबिलास सिंह (संसोपा)
1972  नारायण सिंह (ईंका)      रामबिलास सिंह (संसोपा)




Wednesday 23 September 2015

नेता का नसीब तय करेंगे लाखों मतदाता


गोह में 282657 तो ओबरा में 290886 मतदाता
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) अनुमंडल के दो विधानसभा क्षेत्र गोह और ओबरा के लाखों मतदाता नेताओं का नसीब तय करेंगे। गोह विधान सभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 82 हजार 657 मतदाता हैं। इसमें 01 लाख 50 हजार 440 पुरुष, 01 लाख 32 हजार 205 स्त्री और 12 (तीसरा लिंग) थर्ड जेंडर मतदाता हैं। इस विधान सभा क्षेत्र की आबादी 04 लाख 85 हजार 100 है। इसमें 02 लाख 53 हजार 552 पुरुष और 02 लाख 31 हजार 548 स्त्री हैं। इस क्षेत्र में गोह और हसपुरा प्रखंड तथा रफीगंज के कुछ गांव शामिल हैं। इसी तरह दाउदनगर और ओबरा प्रखंड को मिलाकर बने ओबरा विस क्षेत्र में कुल मतदाता 02 लाख 90 हजार 607 हैं। इसमें 01 लाख 56 हजार 253 पुरुष और 01 लाख 34 हजार 343 स्त्री मतदाता है। इस क्षेत्र में भी 11 थर्ड जेंडर हैं। इस क्षेत्र की कुल आबादी 04 लाख 76 हजार 001 है। इसमें 02 लाख 48 हजार 795 पुरुष और 02 लाख 27 हजार 206 स्त्री आबादी है। दोनों विधान सभा क्षेत्र की इतनी बडी आबादी को अपना प्रतिनिधि चुनना है। इसके लिए सभी उत्सुक हैं।

इन ग्यारह बूथों पर हैं थर्ड जेंडर वोटर
दाउदनगर (औरंगाबाद)

दाउदनगर में हाता मिडिल स्कूल बूथ संख्या 02, नगर पंचायत भवन बूथ-12, मदरसा इस्लामिया टेक्निकल इंस्टीच्युट बूथ 14, मिडिल स्कूल शमशेरनगर बूथ 34, उत्क्रमित मिडिल स्कूल रघु बिगहा बूथ 67, राजकीय उत्क्रमित मिडिल स्कूल खैरा बूथ- 126, राजकीय उत्क्रमित मिडिल स्कूल चातर बूथ- 201, उत्क्रमित मिडिल स्कूल रामपुर बूथ 207, उत्क्रमित मिडिल स्कूल बाजितपुर बूथ-212, उत्क्रमित मिडिल स्कूल बन्धनबिगहा बूथ 220, मिडिल स्कूल कारा बूथ 226, 

Tuesday 22 September 2015

अनुमंडल कार्यालय के लिए जब हुआ आन्दोलन


अनुमंडल गठन की राजनीति-3
भखरुआं बनाम बाजार का था विवाद
खूब था सामाजिक-राजनीतिक दबाव

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) रामबिलास सिंह के जवाब के बाद सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी की- सरकार विचार करेगी।मामला फिर लटक गया। इसके बाद सन् 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ और सत्ता का स्वरूप बदल गया। सामाजिक बदलाव का नारा बुलंद करने वाले लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाया गया। जातीय, राजनीतिक समीकरण प्रभावित हुए तो स्वभावतः सत्ता का भीतरी चेहरा भी प्रभावित हुआ। सत्ता के गलियारे में नयी जमात का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ। तब सरकार के एक आयुक्त (राम बिलास सिंह को नाम याद नहीं रहा था) ने रामबिलास सिंह को बताया कि अनुमण्डल गठन की बात चल रही है, सूचि तैयार है और उसमें दाऊदनगर का नाम भी है। फिर वे सक्रिय हुए। 31 मार्च 1991 को दाऊदनगर अनुमण्डल का विधिवत उद्घाटन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने किया और बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा सहायक पुर्नवास मंत्री रामबिलास सिंह इस समारोह में उपस्थित रहे। अनुमण्डल की मांग को ले चला संघर्ष यहाँ खत्म हो गया, लेकिन इसके बाद एक आन्दोलन दाऊदनगर शहर के लोगों ने शुरू किया। अनुमण्डल कार्यालय नहर के उस पर भखरुआं में बनेगा कि इस पार बाजार में, इसे लेकर विवाद शुरू हुआ। शहर वालों ने जब आन्दोलन छेड़ा तो मंत्री रामबिलास सिंह ने कहा कि जगह का अभाव है। तब डा० राय (ह्वाइट हाउस), शांति निकेतन (पुराना शहर) तथा खुर्शीद खान के मकान दिखाये गये। उधर बारहगांवा का दबाव मंत्री पर था कि अनुमण्डल भखरूआँ ही बने। शहरियों का तब नारा था- माड़-भातखायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें ।देवरारायण यादव की अध्यक्षता में आईबी में बैठक की गयी। वहाँ मंत्री श्री सिंह ने कहा- क्या करें? इस ऊँगली को काटो तो उतना ही दर्द होगा, जितना उसको काटने से।यानी वे द्वंद्ध झेल रहे थे । अंततः शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में अनुमण्डल कार्यालय अस्थाई तौर पर शुरू हुआ। प्रशासनिक इकाई के तौर पर यहाँ अनुमण्डल कार्य करना शुरू कर दिया। संघर्ष खत्म हो गये। मगर पूर्णता कभी नहीं आयी, अब भी नहीं। पदाधिकारियों को रहने को न आवास मिले, न विभागीय कार्यालय को भवन । जैसे तैसे चलता हुआ वर्ष 2006 में करोड़ो की लागत से अनुमण्डल का निजी कार्यालय परिसर बनकर तैयार हुआ, और शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय से उठकर यह कार्यालय नये भवन में चला आया। विकास को गति तो मिली किंतु पूर्णता का अभाव अब भी है। 

Sunday 20 September 2015

18 से 19 साल के हैं ये युवा


18 से 19 साल के हैं ये युवा
(2015 विधान सभा चुनाव)
20-29 साल के हैं 4 लाख वोटर
70 से अधिक आयु के 90 हजार वोटर

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) औरंगाबाद जिला के सभी छ: विधान सभा क्षेत्रों में बिहार विधान सभा चुनाव में 1660077 मतदाता मतदान कर छ: विधायक को चुनेंगे। इसमें पहली बार मतदान करने वालों की संख्या 59343 है। 18-19 साल के ये युवा वोटर बने हैं, और पहली बार अपने मताधिकर का प्रयोग करेंगे। जिला में इस आयु वर्ग की आबादी 98262 है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 70 साल से अधिक के मतदाता करीब 90 हजार हैं। इस पीढि ने एक- दो चुनाव छोडकर प्राय: चुनावो6 में अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल किया हुआ है। 70-79 साल के कुल 63797 वोटर और 80 साल से अधिक उम्र के 26560 वोटर हैं। 20 से 29 साल के 4 लाख 1402 मतदाता, 30-39 साल के 04 लाख 21 हजार 093 मतदाता, 40-49 साल के 3 लाख 45 हजार 267 मतदाता, 50-59 साल के 2 लाख 11 हजार 649 मतदाता, 60-69 साल के 1 लाख 30 हजार 966 मतदाता हैं। इस सूची में सर्वाधिक मतदाता 30-39 साल के हैं। उसके बाद युवाओं का जो 20 से 29 साल के हैं।     

1990 के दशक में फिर शुरु हुआ आन्दोलन


अनुमंडल गठन की राजनीति-2
अनुमण्डल संघर्ष समितिका हुआ गठन
राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी खलती रही
रफीगंज और नवीनगर भी उभरे दावेदार बनकर
बिहार विधान सभा सदन में उठा मुद्दा
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) अनुमंडल गठन के आन्दोलन में ठहराव आने के बाद एक बार फिर फिर गति आयी, जब विन्देश्वरी दूबे 12 मार्च 1985 को मुख्यमंत्री बने। बीरेन्द्र सिंह (विधायक भी बने) ने भी अनुमण्डल बनाने के लिए प्रयास किया। बताया जाता है कि इन्होंने तीन तत्कालीन विधायकों से अनुशंसा ले ली थी। इनके बाद-तत्कालीन विधायक रामबिलास सिंह की अध्यक्षता में अनुमण्डल संघर्ष समितिका गठन किया गया। दूसरी राजनीतिक जमातों ने इसका विरोध शुरू किया और रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाने का संघर्ष एक साथ शुरू किया ताकि मौके पर बारगेन कर एक को अनुमण्डल का दर्जा दिलाया जा सके। शायद तभी यह भावना बल पकड़ी कि औरंगाबाद जिला रेलवे लाइन के इस पार और उस पार में बंटा हुआ है। दूसरी तरफ राजीव रंजन सिंह ने जून 89 में एक बड़ा समारोह कन्या उच्च विद्यालय दाऊदनगर के परिसर में आयोजित किया। इसमें पूर्व विधायक ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध- विश्वविद्यालय के वीसी हरगोविंद सिंह और संभवतः तब कॉग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (बाद में मुख्यमंत्री) जगन्नाथ मिश्रा उपस्थित हुए। राजीव रंजन ने तब कहा था- राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी की वजह से दाऊदनगर अनुमण्डल नहीं बना और औरंगाबाद जिला बन गया। श्री मिश्रा ने तब आश्वासन दिया था। रफीगंज के लिए सत्येन्द्र नारायण सिन्हा ( पूर्व मुख्यमंत्री ) का वरद हस्त प्राप्त इनके भांजा और विधायक डा० विजय सिंह सक्रिय थे तो नबीनगर के लिए विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह। ये सभी तीनों कॉग्रेसी थे और सत्ता भी इसी पार्टी की थी। इनकी राजनीतिक लौबियां काफी मजबूत थी । सत्येन्द्र नारायण सिन्हा स्वयं सन् 89 में मार्च से दिसम्बर तक मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन नवीनगर और रफीगंज दोनों की कुछ कमजोरियां थी। रफीगंज का अनुमण्डल बनना मदनपुर को स्वीकार्य नहीं था, भौगोलिक कारण सहित कई कारण थे। नवीनगर मुख्य पथ से जुड़ा हुआ नहीं था। लेकिन कोशिशें जारी रहीं। तब सदन में प्रत्येक शुक्रवार को गैर सरकारी संकल्पलाया जाता था। विधायक रामबिलास सिंह ने सदन में दाऊदनगर अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव लाया और आंकड़ों के साथ तर्क दिया। इसी सदन में डा० विजय सिंह एवं रघुवंश सिंह ने क्रमश: रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव रखा। तब लोकदल से विधायक बने रामबिलास सिंह ने सदन में कहा था- मैं रफीगंज या नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का विरोधी नहीं हूँ, मैं चाहता हूँ कि दाऊदनगर अनुमण्डल बने । बेहतर होगा तीनों क्षेत्रों की तुलना की जाये और जो सारी अहर्ता पूरी करता हो उसे अनुमण्डल बना दिया जाये।सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी की- सरकार विचार करेगी।मामला फिर लटक गया।


Saturday 19 September 2015

अस्सी के दशक में अनुमंडल का तय हुआ भुगोल




                               
अनुमंडल गठन की राजनीति-1

पहली बार अनुमंडल बनाने की उठी मांग
चार प्रखंडों को मिलाकर गढा गया स्वरुप
और इच्छाएं रह गई जब अधुरी
उपेन्द्र कश्यप] दाउदनगर (औरंगाबाद)
जब औरंगाबाद को गया से अलग कर जिला बनाने के लिए जमीन पर रेखायें खींची जा रही थी तब ओबरा (241), दाऊदनगर(240) अलग-अलग विधान सभा क्षेत्र में था लेकिन यह जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। ओबरा के साथ बारूण, दाऊदनगर के साथ हसपुरा प्रखण्ड जुड़ा था,जबकि गोह टेकारी विधान विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। यह भौगोलिक राजनीतिक स्थिति1972 तक रही। इसी वर्ष दाऊदनगर विस.क्षेत्र से जीते रामबिलास सिंह और ओबरा से नारायण सिंह। नारायण सिंह ने ओबरा-बारूण विधान सभा क्षेत्र के साथ दाऊदनगर प्रखण्ड को मिलाने की कवायद शुरू की तो रामबिलास सिंह ने दाऊदनगर, हसपुरा, ओबरा एवं गोह प्रखण्डों को मिलाकर अनुमण्डल बनाने की चर्चा प्रचार में लाया। दोनों अपनी राजनीतिक जरूरतें पूरी करने में लगे थे। इसी समय जिला पुर्नगठन समिति का गठन दारोगा प्रसाद राय की अध्यक्षता में किया गया। श्री राय बाद में मुख्यमंत्री बने। रामबिलास सिंह (अब स्वर्गीय) ने इस पत्रकार से अपने इस प्रयास पर लंबी बातचीत किया था। राजस्व मंत्री चन्द्रशेखर सिंह तथा मंत्री लहटन चौधरी के साथ जाकर श्री राय से मिले और आंकड़ों के साथ दाऊदनगर को अनुमण्डल बनाने का तर्क दिया। बातचीत में श्री सिंह ने यह भी कह दिया कि- औरंगाबाद को जिला तथा दाऊदनगर को अनुमण्डल बना दिया जाये। तब श्री राय ने टिप्पणी की - जिला बने से ऊ लोग के राज हो जाई। तब पुनः श्री सिंह ने कहा- हम इसलिए प्रयासरत हैं कि दाऊदनगर अनुमण्डल बन जाये। उधर जिला निर्माण के लिए तत्कालीन आकाशवाणी संवाददाता कृष्णवल्लभ सिंह नीलम भी सक्रिय थे। जब जिला गठन की प्रक्रिया पूरी हो रही थी उसी समय दाऊदनगर अनुमडल गठन का प्रस्ताव तैयार हो गया था। सिर्फ अधिसूचना जारी होनी शेष थी। लेकिन मामला लटक गया और सिर्फ 23 जनवरी 1973 को औरंगाबाद जिला गठन की औपचाचिकता पूरी कर ली गयी। इसके बाद 1977 के चुनाव में विधान सभा क्षेत्रों का वजूद बदल गया। दाऊदनगर-ओबरा तथा गोह-हसपुरा विधानसभा क्षेत्र बना और टेकारी तथा बारूण इससे अलग हो गये। यानी इस समय रामबिलास सिंह और नारायण सिंह दोनों अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सकें। अनुमण्डल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में ठहराव आ गया।


Tuesday 15 September 2015

दबाव बनाने के लिए खिलाते थे खाना

दबाव बनाने के लिए खिलाते थे खाना

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) 1नाव में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का हर जतन प्रत्याशियों द्वारा किया जाता है। बूथ मैनेजमेंट बिहार में खूब होते रहा है। पीठासीन अधिकारी और सुरक्षा बलों को भोजन कराकर दबाव में लाने की कोशिश प्रत्याशियों द्वारा किया जाता रहा है। डीडीओ के पद से सेवानिवृत और सीनियर सिटीजन एसोसिएशन के प्रांतीय संगठन सचिव लक्ष्मण चौधरी इस अनुभव को ङोल चुके हैं। उन्होंने 1973 से लगातार 2010 तक चुनाव कराया है। बताया कि पीठासीन पदाधिकारियों और चुनाव कराने वाले तमाम कर्मचारियों और सुरक्षाबलों को रात्रि में ही बूथों पर पहुंचा दिया जाता था। जहां न रोशनी की व्यवस्था होती थी न खाने की। ग्रामीण इसका लाभ उठाते थे और खाना का इंतजाम कर सहानुभूतिपूर्वक दबाव बनाते थे कि अमुक प्रत्याशी के पक्ष में मतदान की दिशा मोड़ दें या अधिक मत डालने दें। कभी-कभी तो जबरन बूथ कब्जा कर लिए जाते थे। बताया कि इस समस्या से तब निजात मिल गया जब चुनाव आयुक्त टीएन शेषण बने। कई बूथों को मिलाकर नजदीक में एक कलस्टर सेंटर बनाया। इससे बूथों पर रात्रि विश्रम की अपेक्षा थोड़ी सहूलियत मिली। बताया कि बैलेट पेपर के बदले जब ईवीएम से वोटिंग होने लगी तो गलत ढंग से मतदान पर नियंत्रण पाया जा सका।

Saturday 12 September 2015

बंधी हुई हैं अब भी गठबन्धन की गांठें

बंधी हुई हैं अब भी गठबन्धन की गांठें

प्रत्याशियों को लेकर है अटकलबाजियां
कयास से आगे नहीं बढ रही राजनीति
उपेन्द्र कश्यप , दाउदनगर (औरंगाबाद) चुनावी महासमर की रणभेरी बज गयी है। दस दिन बाद नामांकन प्रारंभ हो जायेगा। इधर अब तक गठबंधन की न तो गांठें खूली है, न ही किसी प्रत्याशी का नाम सार्वजनिक हो सका है। अभी इसे ही लेकर अतकलबाजी चल रही है। राजनीतिक चर्चा कयास से आगे बढ ही नहीं पा रही। लोग किंतु-परंतु में खोये हुए हैं, कुछ बात आगे भी बढती है तो प्रत्याशी के बिना दूर तक नहीं पहूंच पाती है। ओबरा विस क्षेत्र की स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी है। राजद, जदयू और कांग्रेस में यह सीट किसकी होगी कोई नहीं जानता। वैसे कांग्रेस के उम्मीद नहीं है। यहां से निर्दलीय सोम प्रकाश सिंह जीते थे। अब बिना विधायक का यह क्षेत्र है। जद यू से प्रत्याशी रहे प्रमोद सिंह चंद्रवंशी मात्र 802 वोट से हार गये थे। राजद के सत्यनारायण सिंह 16851 मत लाकर चौथे स्थन पर थे। दावा जदयू कर रही है। चर्चा राजद के खाते में सीट जाने की भी है। क्या होगा खुदा जाने। सत्यनारायण सिंह अब भजपा में हैं, जिनके ओबरा से चुनाव लडने की कोई चर्चा तक नहीं है। राजद से कई नाम हवा में हैं। सीट ही जब स्पष्ट नहीं है तो चर्चा कितनी दूर तक जायेगी भला? जद यू के साथ 2010 का चुनाव लड चुकी भाजपा अब अलग है। उसके साथ लोजप और रालोसपा है। 1980 में भजपा से बीरेन्द्र सिंह चुनाव जीते थे। उसके बाद 1985 और 1990 में लगातार भाजपा हारती गयी। 1995 में गठबंधन में यह सीट समता पार्टी को चली गयी। तब से भाजपा कभी चुनाव नहीं लडी है। अब एनडीए के तीनों घटक दल अपनी अपनी दावेदारी कर रहे हैं। किसके खाते में यह सीट जायेगी, अभी यही रहस्य बना हुआ है।     

साथ की खबर--------------------
गोह में भी एनडीए का रहस्य बरकरार
महागठबंधन की गांठ भी नहीं खुली
संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) गोह विधान सभा क्षेत्र में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। यहां से जदयू के रणविजय सिंह सिटिंग विधायक हैं। इनके खिलाफ राजद के प्रत्याशी राम अयोध्या सिंह मात्र 694 मत से हारे थे। अब दोनों दल एक साथ हैं। यहां भी भाजपा कभी रनर या विनर नहीं रही है। हालांकि भाजपा और इसके सहयोगी दल लोजपा एवं रालोसपा के कई नेता प्रत्याशी बनने की होड में अपना प्रयास कर रहे हैं। यह सीट भी गठबंधन के दौर में भाजपा ने समता पार्टी के लिए छोडा था जिस पर उसी के नेता पहले देव कुमार शर्मा और फिर रणविजय शर्मा जीतते रहे हैं। यहां भी जैसी चर्चा है दोनों ही गठबन्धनों की ओर से अभी तक सीट स्पष्ट नहीं किया गया है जबकि नामांकन प्रारंभ होने में मात्र दस दिन बचा है।