Saturday 26 September 2015

शंकर के मानस पुत्र हैं बाबा गणिनाथ

शंकर के मानस पुत्र हैं बाबा गणिनाथ
फोटो-बाबा गणिनाथ मन्दिर और भगवान
आज गणिनाथ जयंती पर विशेष
वैशाली के महनार के पवइया में हुए थे प्रकट
दिलाई थी नैना योगिन राक्षसी से मुक्ति
हर साल सोन तटीय क्षेत्र में अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य हलवाई वैश्य सभा द्वारा भगवान गणिनाथ जी महाराज की जयंति मनायी जाएगी। ऐसा गत कई साल से यहां किया जा रहा है। बाबा को भगवान शंकर का मानस पुत्र माना जाता है। विक्रम संवत् 1007 में श्री मनसा राम तथा उनकी पत्नी शिवादेवी के गर्भ से गणीनाथ जी का उद्भव गुरलामान्धता पर्वत पर भाद्रपद बदी अष्टमी शनिवार के प्रातः हुआ। शिशु गणी जी का लालनपालन व शिक्षादीक्षा का दायित्व कान्दू (मध्यदेशीय) वैश्य परिवार के मनसा राम को धर्मपिता के रूप में निर्वहन करना पड़ा। गणी जी योग्य होने पर प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल में की जहाँ अल्पकाल में ही वेद वेदांग में दक्षता प्राप्त की। चतुर्दिक ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु गोरखनाथ को गुरु ग्रहण करते हुए उनके सानिध्य में वर्षों तप किए। सिद्धियों पर अधिकार प्राप्त कर पलवैया (बिहार) की पवित्र धरती पर पहुँचे जहाँ आपने गणराज्य की स्थापना कर समताम राज्य स्थापित किया। हिंदू समाज जब पतन की ओर जा रहा था तो गणीनाथ जी ने हिन्दुओं में स्वाभिमान भरा और हिंदू या सनातन संस्कृति की रक्षा की। पलवैया में गणीनाथ मन्दिर और उस मन्दिर की ओर से संरक्षित संस्कृत पाठशाला, कुआं, पोखरा आदि हैं। उन्होनें शांति के साथ अहिंसा का भी पाठ पढाया तथा वेदाध्ययन को ब्राह्मणों के चंगुल से मुक्त किया। उन्होनें मुस्लिम आततातियों से युद्ध कर उन्हें पराजित किया। वंशवृक्ष स्मारिका के अनुसार कालान्तर में गणीनाथ जी का विवाह झोटी साब की पुत्री क्षेमा सती से हुआ। उन्हें शिव का अवतार माना गया। विक्रम संवत 1112 (आश्विन महिना) नवरात्री के अवसर पर आयोजित श्री रामजन्मोत्सव एवं शक्ति आराधना कार्यक्रम को सम्बोधन करने के उपरान्त उन्होंने अपना देहत्याग किया।


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