Sunday 30 April 2023

अग्निकांडो पर नियंत्रण के लिए चाहिए कम से कम छह फायर मैन

 


गोह और ओबरा के लिए चाहिए बड़ा फायर वाहन 

खुदवां, हसपुरा के लिए चाहिए छोटा फायर वाहन 

शहरी क्षेत्र में छोटे फायर वाहन की है जरूरत 

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर अनुमंडल में अग्निकांड से जूझने वाले अग्निशमन कार्यालय में संसाधनों का अभाव है। यह कार्यालय दाउदनगर अनुमंडल कार्यालय परिसर में स्थित निबंधन कार्यालय के सामने एक तंग कमरे में चलता है और यहीं से पूरे अनुमंडल की व्यवस्था नियंत्रित की जाती है और निर्देशित किया जाता है। संसाधनों के स्तर पर देखें तो पांच फायरमैन और सात ड्राइवर, एक सब आफिसर प्रभारी और दो गृह रक्षक चालक यहां हैं। कार्यालय में अग्निशमन पदाधिकारी गुरु हांसदा ने बताया कि कम से कम छह फायरमैन की जरूरत है। यहां दो बड़ा दमकल दाऊद नगर फायर स्टेशन में है। जबकि ओबरा, गोह, देवकुंड थाना में एक-एक वाहन है। गोह और ओबरा के लिए एक बड़ा फायर वाहन की आवश्यकता बताई जाती है जबकि खुदवां और हसपुरा के लिए एक एक छोटे वाहन चाहिए। अभी स्थिति यह है कि हसपुरा और खुदवां के इलाके में अगलगी की घटना हो जाए तो दूसरे थाना से दमकल भेजना पड़ता है। जिसमें समय भी खर्च होता है और मानव संसाधन का इस्तेमाल भी अधिक होता है। नतीजा ना तो आग पर नियंत्रण पाने के लिए दमकल मौके पर जल्दी पहुंच पाता है और ना ही क्षति को रोका जा सकता है। नगर परिषद दाउदनगर घनी आबादी वाला क्षेत्र है और कई गलियां संकरी है। जहां बड़े दमकल नहीं पहुंचाये जा सकते। ऐसे में यहां जरूरत है कि छोटा वाहन उपलब्ध कराया जाए। जरूरत पड़ने पर दूसरे स्थानों से छोटे फायर वाहन मंगाना पड़ता है और सबसे नजदीक ओबरा भी 15 किलोमीटर से अधिक दूर है। ऐसे में शहर में जब तंग गलियों के इलाके में अगलगी की घटना घटती है तो काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। संपत्ति की बर्बादी होती है और समय भी बर्बाद होता है। छोटे वाहनों की सख्त जरूरत है।



भेजा गया है प्रस्ताव : गुरु हांसदा

स्टेशन मास्टर गुरु हंसदा ने बताया कि जिला अग्नि शाम पदाधिकारी को प्रस्ताव भेजा गया है। जिसमें बल की कमी और वाहन की कमी को बताते हुए मांग की गई है। इसे शीघ्र उपलब्ध कराई जाए इस आशय का पत्र 24 मार्च को ही भेजा गया है।


एक पखवाड़े में तीन युवकों की हत्या से सनसनी

 


पुलिस के हाथ सिर्फ एक गिरफ्तारी 

नन्हकू पांडेय को पुलिस ने भेजा जेल

राजेंद्र साव हत्याकांड में तीन ने किया था आत्मसमर्पण 

पूर्व विधायक हत्याकांड में कोई गिरफ्तारी नहीं 

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : बीते एक पखवाड़े में तीन व्यक्तियों की हत्या हो चुकी है। पुलिस के पास इन हत्याकांड को लेकर कहने को बहुत कुछ नहीं है। सिर्फ एक मामले में गिरफ्तारी हुई है। एक मामले में उपलब्धि शून्य है तो एक मामले में तीन ने आत्मसमर्पण किया है। 15 अप्रैल को दाउदनगर के पटवाटोली बम रोड में राजेंद्र साव की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में उनकी पत्नी द्वारा कराई गई प्राथमिकी में नौ व्यक्तियों को नामजद आरोपी बनाया गया। लेकिन बीते 15 दिन में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। इस मामले में पुलिस दबिश के कारण तीन आरोपितों ने व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया है। मुख्य आरोपित राजेंद्र प्रसाद तांती, उनके भाई बसंत कुमार और बसंत कुमार के पुत्र नितेश कुमार ने 17 अप्रैल को अनुमंडल व्यवहार न्यायालय दाउदनगर में आत्मसमर्पण कर दिया है। इसे पुलिस दबिश का नतीजा बताया गया। इसके अलावा पुलिस के हाथ कोई उपलब्धि नहीं लगी है। न कोई गिरफ्तारी हुई है न कोई कुर्की जब्ती की कोई कार्रवाई।


इसी दिन हिच्छन बिगहा में अरवल के पूर्व विधायक राजद नेता रविंद्र सिंह के पुत्र कुमार गौरव उर्फ दिवाकर की हत्या गोली मारकर कर दी गई थी। मां उषा शरण में अपने पति पूर्व विधायक रविंद्र सिंह पर ही बेटे की हत्या करवाने का आरोप लगाया था प्राथमिकी आवेदन में उन्होंने कहा है कि पूर्व विधायक रविंद्र सिंह ने सुनियोजित तरीके से योजना बनाकर अपने गुर्गों से हत्या करवाया है। पूर्व विधायक के अलावा विनय कुमार सिंह, सुधांशु, रोशन उर्फ बमड, रवि और सत्येंद्र महतो को नामजद आरोपित बनाया गया है। सभी आरोपित हिच्छन बिगहा के निवासी बताए जाते हैं। इस मामले में भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है। एसडीपीओ कुमार ऋषि राज कहते रहे हैं कि विभिन्न प्रकार की जांच हो रही है। जांच रिपोर्ट के बाद कार्रवाई हो सकेगी। एक पखवाड़े में भी स्थिति नहीं बदली है।

 शुक्रवार को शमशेर नगर में मनोरंजन शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। इस मामले में हालांकि त्वरित कार्रवाई करते हुए पुलिस ने पटना स्थित एम्स से मुख्य आरोपी जदयू के प्रदेश सचिव नन्हकू पांडे को गिरफ्तार करने में कामयाब रही। शनिवार को उनको जेल भेज दिया गया। भारी मात्रा में गोली और दो राइफल बरामद किए गए हैं। लेकिन इस मामले के भी अन्य नामजद आरोपित की गिरफ्तारी दूसरे दिन तक भी करने में पुलिस सफल नहीं रही है। एसडीपीओ कुमार ऋषि राज ने बताया कि शनिवार को भी वे इसी मामले में पटना में कार्रवाई कर रहे हैं।



चार दिन पूर्व घरों की ली गयी थी तलाशी 

हिच्छन बिगहा हत्याकांड में कोई गिरफ्तारी न होने के सवाल पर थाना अध्यक्ष अंजनी कुमार ने बताया कि 25 अप्रैल को कुमार गौरव हत्याकांड के सभी आरोपितों के घर छापेमारी की गई थी। इनके सगे संबंधियों के घर भी तलाशी की गई। छापामारी उन्हीं के नेतृत्व में की गई थी। हालांकि इस मामले में कोई उपलब्धि पुलिस हासिल नहीं कर सकी। राजेंद्र साव हत्याकांड के मामले में उन्होंने कहा कि तीन ने आत्मसमर्पण किया है। अन्य फरार हैं। पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है।




पिता द्वारा हत्या कराने की आशंका व्यक्त कर चुके थे कुमार गौरव 



सात माह पूर्व दिया वीडियो बयान हो रहा वायरल

रोते हुए कह रहे-तीनों को हो सजा, मां को मिले इंसाफ

फोटो- कुमार गौरव उर्फ दिवाकर 

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : हिच्छन बिगहा में 15 अप्रैल को हुई कुमार गौरव इर्फ़ दिवाकर की हत्या हुई थी। अब उनका एक वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। गत 10 अगस्त 2021 का यह वीडियो है। ऐसा वीडियो में वह खुद बोल रहे हैं। इस वीडियो में उन्होंने कहा है कि उनके पिता कभी भी उनकी हत्या करवा सकते हैं या गायब करवा सकते हैं। वे वीडियो में बोल रहे हैं कि पिता ने घर से बाहर निकालने एवं जान से मारने की धमकी दी थी। पिता पूर्व विधायक रविंद्र सिंह मार सकते हैं या गायब करवा सकते हैं। वे कुछ भी करा सकते हैं यह मैं जानता हूं। दिवाकर ने कहा कि इसमें पिता की एक बहन का बेटा और उनके भगिना का बेटा मिलकर कुछ भी कर सकते हैं। कल अगर वे मार दें तो मेरी मौत का सबूत किसी के पास रहे इसलिए यह वीडियो बनाकर भेजा हूं ताकि मां को पता रहे कि उसके बेटे का हत्यारा कौन है। वीडियो में वे बोल रहे हैं कि यदि उनकी हत्या कर दी जाती है तो तीनों को सजा हो और मां को इंसाफ मिलना चाहिए। 




भूमि से जुड़े मामूली विवाद में गई जान 

फोटो-घटना स्थल स्थित भूमि जिसे लेकर है विवाद



नन्हकू पांडे बोले-सादे कागज पर पुलिस ने करा लिया है हस्ताक्षर

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : शमशेर नगर में जमीन से संबंधित जुड़े मामूली विवाद में मनोरंजन शर्मा की हत्या हुई है और उनके पिता घायल होकर इलाज करवा रहे हैं। इस मामले में जिस भूमि से विवाद जुड़ा है वह घायल उपेंद्र शर्मा के पूर्वजों की है। उनके पिता तीन भाई थे। बैजनाथ शर्मा, राजनाथ सिंह और नथुनी सिंह। यह प्लाट 18 कट्ठा का है। तीनों का छह छह कट्ठा का हिस्सा इसमें था। इस जमीन के सामने लगभग दो कट्ठे में गैरमजरूआ सार्वजनिक जमीन है जिसमें पोखरा खुदा हुआ है और इसका तीनों ही पाटीदार इस्तेमाल करते हैं। उपेंद्र शर्मा के चाचा राजनाथ सिंह के पुत्र चंद्रेश शर्मा के पुत्र विक्की शर्मा से दो कट्ठा जमीन हरे कृष्ण शर्मा ने लगभग पांच माह पूर्व खरीदा था। इस जमीन के सामने जो गैरमजरूआ जमीन है जिसे चाट कहा जाता है, उसमें हरे कृष्ण मिट्टी भरकर अपना रास्ता बना रहे थे। जिसका दूसरा पक्ष विरोध कर रहा था और इसी विवाद को लेकर मारपीट हुई और फिर गोली चली। नन्हकू पांडे के पक्षकारों का कहना है कि जमीन के सामने रास्ता के लिए मिट्टी भरने का कार्य कर रहे थे ताकि निर्माण का कार्य हो सके ना कि पूरा पोखरा भर रहे थे या उस पर दावा कर रहे थे। नन्हकू पांडे के पक्षकारों का कहना है कि इस मारपीट में नन्हकू पांडे, कृष्णा पांडे और हरेकृष्ण पांडे घायल हुए हैं। नन्हकू पांडे को इलाज के दौरान एम्स से गिरफ्तार किया गया है और शनिवार को उनको दाउदनगर उपकारा भेज दिया गया। नन्हकू पांडे ने बताया कि सादे कागज पर पुलिस ने उनका जबरदस्ती हस्ताक्षर कराया है। इस मामले में एसडीपीओ कुमार ऋषि राज ने कहा कि यह आरोप निराधार है। किसी भी सादे कागज पर उनका हस्ताक्षर नहीं कराया गया है।



Thursday 27 April 2023

सोन का शोक 8 : 1400 वर्षों में 25 किलोमीटर तक पश्चिम खिसका सोन

 




मुख्य धारा का सिमटता जा रहा पाट

1766 में दाउदनगर से बारूण तक 30 किलोमीटर तक था घना जंगल

 18 वीं सदी में दाऊद नगर से बारुण तक था घना जंगल 

250 वर्ष लगभग में 90 वर्ग किलोमीटर का जंगल हो गया खत्म

फ्रांसीसी अभियंता लुई फेलिक्स व बेल्गर ने की थी यात्रा

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) :

करीब 1400 बरस में सोन 10 से 25 किलोमीटर पश्चिम खिसक गया। लेकिन बीते तीन से चार दशक में ही करीब दो से तीन किलोमीटर पश्चिम खिसक गयी सोन की धारा। खिसकने के क्रम में सोन जो जमीन छोड़ रहा है उस पर भले खेती हो रही है, लेकिन आने वाले समय में यह नाला से अधिक नहीं रह पाएगा। जबकि कभी विकराल रूप सोन का हुआ करता था। उसका बाढ़ हुल्लड़ कहलाता था और दाउदनगर में महादेव स्थान के बाद डिल्ला शुरू होता था और उसके बाद जलधारा। जहां आज धोबी घाट बन गया है और पानी घुटने भर भी नहीं रहता। अब सोन में स्नान करना हो या सूर्य को अर्घ्य देना हो दो से तीन किलोमीटर अधिक पश्चिम की दिशा में यात्रा करनी पड़ती है। 

दाउदनगर और उसके दक्षिण बारुण तक का इलाका घने जंगल से भरा हुआ था। 1766 में फ्रांसीसी अभियंता लुई फेलिक्स द ग्लास ने लिखा है कि “इस इलाके में सर्वेक्षण करना नितांत असंभव है। अभेद्य वनाच्छादित प्रदेश है। न सडक है न पगडंडी ही”। यानी इस इलाका में तब घनघोर जंगल हुआ करता था। बारूण से दाउदनगर करीब तीस किलोमीटर है, और पूर्व से पश्चिम सोन का इलाका में तीन किलोमीटर मान लें तो करीब 90 वर्ग किलोमीटर में फैला घनघोर जंगल था। तब दाउदनगर का वजूद नहीं था। यह सब जंगल कट गए। खत्म हो गए सब पेड़। आज या तो खेती होती है या आबादी बस गयी है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पुनपुन नदी जो वर्तमान में फतुहा में गंगा में मिलती है वह नौबतपुर (पटना के दक्षिण-पश्चिम में) के आगे फतुहा में गंगा में मिलने तक बाल्मिकी कृत रामायणकालीन सोन के पाट का अनुसरण करती है। फल्गु जब गंगा के समानांतर बहना शुरु करती है तो धोवा नाम धारण करती है। सोन की धोवन होने की वजह से ही। सोन जो आज कोइलवर में गंगा में मिलता है उसका प्राचीन प्रवाह और पूरब दिशा से होता था और वर्तमान पटना शहर के बीच से होते हुए गंगा में मिलता था। पूरब में सोनउरा-सोनपुर-मोरहर-दरघा-धोवा-हरोहर से आगे पूरब को सोन कभी नहीं गया। इसी तरह वह पश्चिम में अपने वर्तमान पाट से कुछ पश्चिम तक जा कर रुक गया। 


'बह' और 'तरार' सोन के बहाव के प्रमाण


बाणभटट की कादम्बरी की रचना सोन नद के किनारे स्थित प्रीतिकूट में की गयी थी। इसे स्वयं बाण ने अपना गृह बताया है। यह प्रीतिकूट कोई दूसरा नहीं बल्कि औरंगाबाद जिले के हसपुरा का पीरू गांव ही माना जाता है। ध्यान दें, हर्षवर्धन काल में सोन वर्तमान देवकुण्ड-रामपुर चाय होते हुए प्रवाहित होता था, जिसे दाउदनगर में ‘बह’ कहा जाता है। हर्षवर्धन-वाणभट्ट काल (सातवीं सदी का पूर्वार्ध) में सोन का मार्ग हुआ करता था। वाण के काल का लगभग 1400 वर्ष हो गया। ‘बह’, जहां निरंतर पानी बहा करे। यहां इसे सोन का छाडन कहा जाता है। यानी सोन का बहाव छठी-सातवीं सदी में देवकुंड के निकट था। वहां से लगभग 1400 वर्ष में यह दस से 15 किलोमीटर दाउदनगर के पश्चिम खिसक गया। जे.डी.बेल्गर ने बह का उल्लेख किया है। उसके शब्दों में-‘अधिकारियों द्वारा प्राप्त सूचनाओं और अपने व्यक्तिगत अवलोकन निरुपण के आधार पर मेरा विचार है कि सुदूर अतीत में दाउदनगर के पास तराढ (तराड) गांव के निकट से सोन दक्षिण-पूरब को बहता था। देवकुंड या देवकुढ के टांड की बिल्कुल बगल से होता हुआ रामपुर चाइ और केयाल के सटे आगे बहता था। तराढ या तरार (आर तर या आर पर) का हिन्दुस्तानी में अर्थ होता है नदी की उंची कगार पर बसा हुआ। नाम से ही स्पष्ट है कि यह गांव पहले किसी नदी के उंचे तीर या तट पर बसा हुआ था।


नहर की खोदाई में मिला सोन का पाट 

तराढ से बिल्कुल सटे और इसके तथा दाउदनगर के बीच में सोन नहर के लिए हाल की खुदाई से बिल्कुल साफ हो गया है कि यह इलाका पहले की किसी बडी नदी का पाट था। चाइ और केयाल में पानी के बडे-बडे गड्ढे आज भी मौजूद हैं-संभवतः वे प्राचीन सोन के अवशिष्ट हैं। देवकुंड में हर साल एक मेला लगता है। मैं समझता हूं कि केयाल से सोन उत्तर-पूरब को लगातार बहते हुए सोनभदर गांव के पास पुनपुन का वर्तमान पाट धर लेता था।“ बेल्गर आगे लिखता है- ‘यह स्पष्ट है कि सुदूर अतीत से बुद्ध के निर्वाणकाल तक मेरे इंगित किए हुए रास्ते से बहता हुआ सोन फतुहा के पास गंगा में मिल जाता था।‘ 



फतुआ के निकट गंगा में गिरता था सोन का पानी


उन्नीसवीं सदी में पटना प्रमंडल का अभियंता रह चुका और सडकें बनवाने के सिलसिले में पटना- गया इलाकों के आभियांत्रिक लक्षणों का पूरा ज्ञान हासिल करने वाले एम.पी.बी.डुएल का मत है कि-‘सोन अरवल और दाउदनगर के बीच से अपना पाट छोडकर पटनावाली सडक पार करने के बाद मसौढी के उत्तर पुनपुन का पाट धर लेता था। वहां से उसका कुछ पानी फतुहा के निकट गंगा में मिल जाता था और कुछ पानी मैथवान (वर्तमान नाम-महतमैन) नदी से होकर मुंगेर की ओर बढा जाता था।‘ कौल के मत को ध्यान रखते हुए डुएल के मत में इतना सुधार किया जा सकता है कि फतुहा के निकट का पानी गिरने (या, बेल्गर के मतानुसार, सोन-गंगा-संगम) की स्थिति बुद्धकालीन हो सकती है, बाल्मीकि कालीन नहीं। उनदिनों फतुहा के उत्तर का राघोपुर-दियारा टापू नहीं, मगध की तत्कालीन भूमि का एक खंड था। 




Wednesday 26 April 2023

कचरा और अतिक्रमण पहचान, महिला शौचालय की जरूरत

 


वार्ड नंबर 11 का हाल

जागरण आपके द्वार



शहर के बीच हृदय के रूप में स्थित है वार्ड नंबर 11 

मंदिर, मस्जिद, जीमूतवाहन चौक व चूड़ी बाजार पहचान

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर शहर की मुख्य पहचान है हनुमान मंदिर और इसके सामने का इलाका वार्ड नंबर 11 का हिस्सा है। जिसमें बाजार का मुख्य मस्जिद, यहना की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा जीमूत वाहन भगवान का मंदिर और कई राजनीतिक सामाजिक बैठकों का गवाह बना हमदर्द दवाखाना मैदान इसकी पहचान है। यानी बाजार का जो मुख्य पथ है उसके दक्षिण का एक हिस्सा वार्ड नंबर 11 के तहत आता है। मुख्य पथ पर गंदगी साफ-साफ दिखती है। चूड़ी बाजार जो मुख्य व्यवसायिक स्थल है वहां गंदगी दिखती है। चलंत शौचालय रखा गया है लेकिन उसका इस्तेमाल संभव नहीं हुआ। यहां कचरे का ढेर भी लगा रहता है। तमाम तरह की समस्याएं हैं और इसका समाधान संभव नहीं दिखता क्योंकि वार्ड पार्षद प्रमोद सिंह से मिलना व बात करना कठिन है। 



कोई बड़ी समस्या नहीं


रणधीर कुमार उर्फ भोलू ने कहा कि  वार्ड में कोई बड़ी समस्या नहीं है। हालांकि सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। जितनी सफाई होनी चाहिए उतनी सफाई यहां नहीं होती। जबकि शहर का यह मुख्य व्यवसायिक स्थल है और धार्मिक महत्व के भी कई स्थान यहां हैं।



मुख्य नाली रहता है जाम 


गोपाल सोनी ने कहा कि वार्ड पार्षद का कोई ध्यान नहीं रहता है। सफाई नहीं होती है। जनता प्रतिनिधि से दूर हो गई है। मुख्य पथ का नाली जाम रहता है। बाजार है और शौचालय नहीं है। जिससे ग्रामीण इलाके से आई महिलाओं को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। हमदर्द दवाखाना मैदान और पंजाब होटल के पास बेतरतीब वाहन लगे रहते हैं। जिससे आवागमन में असुविधा होती है।



कचरा का लगा रहता है अम्बार 


वार्ड में संचालित यश ई स्कूल के निदेशक शंभू कुमार बताते हैं कि हमदर्द दवाखाना मैदान परिसर में हमेशा कचरा का अंबार लगा रहता है। सफाई पर ध्यान नहीं रहता है। 




चावल बाजार में फेंकना पड़ता है कचरा

महफूजुल हक अकबर ने कहा कि नली गली की सफाई नहीं होती है। कूड़ा उठाने कोई नहीं आता। घर दुकान का कूड़ा फेंकने उन्हें चावल बाजार जाना पड़ता है। पेशाब खाना और शौचालय नहीं है। जिससे महिलाओं को काफी दिक्कत होती है।



स्ट्रीट लाइट की कमी 

रोहित कुमार का कहना है कि चूड़ी बाजार में महिला शौचालय का नहीं होना बड़ी समस्या है। इसके अलावा वार्ड क्षेत्र में प्रतिदिन सफाई की समस्या है। नाली जाम रहता है। हर पोल पर बल्ब नहीं है। स्ट्रीट लाइट की कमी है। वार्ड कमिश्नर गायब रहते हैं। मिलना मुश्किल होता है।




राजनीतिक विशेषता

वार्ड नंबर 11 से वर्ष 2002 में विजेता बनी रोहिणी नंदिनी नगर पंचायत के उप मुख्य पार्षद बनी थी। उसके बाद हुए 2007 और 2012 के चुनाव में व्यवसाई संजय कुमार वार्ड पार्षद बने। इसके बाद 2018 में जब पहली बार नगर परिषद का चुनाव हुआ तो प्रमोद कुमार सिंह उर्फ मंटू वार्ड पार्षद बने।

सोन का शोक : सोन के सूखे पाट को किसानों ने बनाया उर्वर, उपज रही शब्जी व अनाज




सोन के पेट में हजारों एकड़ में हो रही है खेती 

किसान बनाते हैं सूखी जमीन को उर्वर अपनी क्षमता के अनुसार कब्जा कर करते हैं खेती 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : इंद्रपुरी बराज से नीचे पटना तक की यात्रा में सोन सूखता, सिकुड़ता चला गया है। उसकी चौड़ाई कम होती गई और जो जमीन सूख गई, बंजर हो गई, उसे हाड़ तोड़ मेहनत कर सोन तटीय क्षेत्र के किसानों ने उर्वर बनाया और उस पर अनाज और सब्जी उपजा रहे हैं। कहीं यह आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि कितना लंबा-चौड़ा यह क्षेत्रफल होगा और कितने एकड़ में खेती होती होगी। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक लगभग 120 किलोमीटर लंबा और 2 से 3 किलोमीटर चौड़ा सोन का जो पाट बंजर रह गया, बलुआही मिट्टी रह गया, उसे हाड़ तोड़ मेहनत कर किसानों ने उपजाऊ बनाया और उस पर खेती कर रहे हैं। सोन द्वारा छोड़ी गई इस जमीन पर गेहूं की फसल भी लहलहाती है। आलू, बैगन, टमाटर, मटर, परवल, करेला, कद्दू, नेनुआ की फसल लह लहाती है। सूत्रों के अनुसार किसान अपनी क्षमता के अनुसार दो बीघा से लेकर 10 बिगहा तक या इससे अधिक भी जमीन को अपने कब्जे में लेकर उसे खेती लायक उर्वर बनाते हैं और फिर उसमें फसलों को लगाते हैं। इससे जीविकोपार्जन भर कमा लेते हैं।



मत्स्य विभाग करता था नीलामी

 प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले मत्स्य विभाग के माध्यम से सोन तटीय खेती को सैरात के रूप में बंदोबस्ती की जाती थी। लेकिन अब यह सब होना बंद हो गया है। पहले किसानों को बंदोबस्ती की रसीद भी कटती थी। अब ऐसा नहीं होता। बताया गया कि किसान अपनी क्षमता के अनुसार जमीन को खेती के लायक उपयोग बनाते हैं और खेती करते हैं। इस मामले में एक अंचल अधिकारी ने बताया कि नियम बदल गया है और अधिक जानकारी इस बारे में नहीं है।



विद्युत व्यवस्था हो तो और बेहतर होगी खेती 

वार्ड संख्या 10 के निवासी दीपक निषाद सोन द्वारा छोड़ी गई दो बीघा जमीन पर खेती करते हैं। वह बताते हैं कि गुमा, सिपहां, महमदपुर, दाउदनगर, बालूगंज, अंछा मौजा में इलाका बंटा हुआ है। अंचल द्वारा बंदोबस्ती की जाती थी। गुमा मौजा में सिंचाई मुश्किल हो गई है। बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है। डीजल से सिंचाई करना पड़ता है। डीजल इतना महंगा है कि पर्याप्त सिंचाई करना मुश्किल है। हर एक दिन बाद सिंचाई की जरूरत होती है। पर्याप्त सिंचाई नहीं कर पाते नतीजा खेत की क्षमता जितनी फसल नहीं लगा पाते।



जंगल साफ कर जमीन को बनाते हैं उपजाऊ 

अमृत बिगहा के निवासी विनय पासवान भी सोन में खेती करते हैं। उनसे यह सवाल था कि सोन द्वारा छोड़ी गई जमीन को खेती के लायक कैसे बनाते हैं। उन्होंने बताया कि जंगल को साफ करना पड़ता है। पतेला, काश, झूर को उखाड़ कर जड़ समेत फेंक दिया जाता है और फिर जोत कोड कर उपजाऊ बनाया जाता है। जमीन उर्वर हो जाती है। जो व्यक्ति जितना खेत बनाता है वह उतना पर फसल लगाता है। सब के बीच आपसी सामंजस्य होता है।



पहचाननी पड़ती है फसल लायक जमीन 


सोन में खेती करने वाले किसानों की मानें तो जिस जमीन की ऊपरी सतह पर बालू है और नीचे मिट्टी होती है उस जमीन पर किसान पर परवल, कद्दू, करेला, नेनुआ जैसी सब्जी का उत्पादन करते हैं। और जहां सिर्फ मिट्टी है, वहां गेहूं, प्याज, हरी मिर्च और टमाटर होते हैं। सोन में जब कभी बाढ़ आता है तो वह अपने साथ मिट्टी भी लाता है और जिस जमीन पर मिट्टी छोड़ जाता है वहां का जंगल साफ कर किसान खेती बना लेते हैं।



सोन का शोक : सोन क्षेत्र की सड़कों पर चलने से हो रही आंख व श्वास की बीमारी



कणों से यात्रा मुश्किल बीमारी के साथ मौत का भी खतरा 

रोहतास, औरंगाबाद, अरवल, आरा, पटना के हालात मुश्किल

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : रोहतास जिले में सोन पर इंद्रपुरी में बराज बना हुआ है। इसके नीचे पटना तक जहां सोन गंगा में मिल जाता है, वहां तक सोन के बाएं और दाएं पड़ोस की सड़कों पर चलना काफी मुश्किल भरा काम है। सड़कों पर बालू की सतह जमा होना आम बात है। इतने धूल उड़ते हैं कि उससे बीमारी और दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। लोगों का फेफड़ा व आंख बर्बाद हो रहे हैं। रोहतास जिला में डेहरी और उसके ठीक सामने औरंगाबाद में, अरवल, आरा, पटना के वे क्षेत्र जो सोन के सीमावर्ती हैं, वहां दो-तीन से पांच किलोमीटर की यात्रा करना भी मुश्किल होता है। बारूण से नबीनगर चले जाएं या बारुण से दाउदनगर की तरफ, डेहरी में इंद्रपुरी की तरफ जाएं चाहे नासरीगंज तक आएं या फिर दाउदनगर से नहर के रास्ते शमशेर नगर की ओर होते पटना तक जाएं या दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल की तरफ यात्रा करें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सोन तटीय इलाके में सड़क हो या पुल बालू के आवागमन के कारण उन पर बालू जमा रहता है। जिससे खासकर बाइक चालकों के फिसल कर गिरने का डर रहता है। यह धूल कण आंखों में समा जाते हैं। जिससे बचना मुश्किल होता है। कभी-कभी बालू और कीचड़ इतना अधिक होता है कि उसमें बाइक फंस जाता है। उसे निकालना मुश्किल होता है। 


आंख और फेफड़ा हो रहे बर्बाद, हो रही कई बीमारी

फोटो- डा. विनोद कुमार और डा.महेंद्र शर्मा 

सड़कों और पुलों पर जमे धूल, बालू से लोग बीमार पड़ रहे हैं। आंख और फेफड़ा बर्बाद हो रहा है। इस मामले में आंख विशेषज्ञ डा. विनोद कुमार कहते हैं कि धूल का कण आंख में पढ़ने से कोर्निया पर फर्क पड़ता है। वह गड़ते रहता है। उसमें जख्म हो जाता है। कोर्नियल पलसर हो सकता है। बराबर आंख में धूल और बालू के कण पड़ते रहने से बुरा प्रभाव पड़ता है और गंभीर बीमारी होती है। जिससे डिजनरेटेड चेंज होता है और इससे बड़ी परेशानी होती है।

 हृदय रोग विशेषज्ञ डाक्टर महेंद्र शर्मा कहते हैं कि फेफड़ा बर्बाद हो रहा है। सीओपीडी नाम की बीमारी हो रही है। फेफड़ा हवा लेने के लिए बना है ना कि बालू और धूल। इससे फेफड़ों में सूजन होता है। उसकी मुलायमियत और उसके स्वभाव में परिवर्तन होता है। फैलाव कम होने लगता है। दबाव अधिक पड़ता है। जिससे हांफने की बीमारी होती है। खांसी होती है और एक वक्त आता है जब फेफड़ा खराब हो सकता है।




खबर बनती है तो उठाया जाता है रेत 

 दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल हो या डेहरी स्थित रेलवे ओवर ब्रिज या बारूण दाउदनगर पथ में रेलवे अंडर पास उसकी सफाई तभी होती है जब रेत जमा होने की खबर अखबारों में छापी जाती है। अन्यथा रेत के कारोबार से जुड़े कारोबारी हों या अवैध रूप से बालू से कमाई करने वाले माफिया हों, या सड़क से संबंधित विभाग वे इसकी सफाई करने को लेकर जागरूक नहीं रहते हैं। उनके कान पर जू तक नहीं रेंगता है।



सड़क से बालू हटाना घाट की जिम्मेदारी 

बालू घाट से जुड़े सूत्रों के अनुसार सड़क या पुल पर बालू ढुलाई के कारण जो रेत जमा होता है उसको साफ करने की जिम्मेदारी बालू घाट संचालकों की है। एक बालू घाट संचालक ने कहा कि खनन विभाग का काम ही यही सब देखरेख करना है। लेकिन खनन विभाग बालू घाट संचालकों पर दबाव नहीं डाल पाता। इसके कारण सड़कों या पुलों पर रेत जमा रहता है।



नगर परिषद को कराना पड़ा था साफ़ 

बालू घाट संचालकों और विभाग की लापरवाही इस हद तक है कि छठ के अवसर पर भी सड़क और पुलों से बालू नहीं हटाए गए थे। अंततः दाउदनगर नगर परिषद द्वारा रेत हटाने का काम किया गया था।



Monday 24 April 2023

सोन का शोक : वैध-अवैध का चक्कर, पर रोजगार मिलता जमकर

 


2000 लोगों से अधिक के लिए रोजगार की संभावना

फिलहाल साढ़े छह सौ व्यक्तियों को मिला हुआ है काम

वैध-अवैध रूप से लगभग 17 हजार लोगों को रोजगार

लेबर से लेकर स्टाफ तक कमाते हैं 15 से 20 हजार रुपये तक महीना 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : औरंगाबाद में अंधाधुंध बालू खनन से सोन भले बर्बाद हो रहा हो लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि इसने काफी रोजगार का सृजन किया है। सोन में कुल 37 बालू घाट हैं। जिसमें नया भी शामिल है। जिला खनन पदाधिकारी पंकज पासवान के अनुसार 11 घाट संचालित हैं। घाट संचालकों के अनुसार एक घाट पर औसतन 50 से 60 व्यक्ति काम करते हैं। जिसमें मजदूर भी शामिल है। इस हिसाब से देखें तो लगभग साढ़े छह सौ व्यक्ति अभी काम कर रहे हैं, जबकि इस संख्या में ट्रक ड्राइवर और सह चालक शामिल नहीं है। इसके अलावा यदि सभी घाट संचालित होने लगे तो 2000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। यदि अवैध रूप से चल रहे लगभग 5000 ट्रैक्टरों को भी जोड़ लें तो 15000 लोगों को अवैध रूप से संचालित ट्रैक्टर से रोजगार मिल जाता है। बालू घाटों पर काम करने वालों को महीना तो मिलता ही है उसके अलावा प्रति ट्रक भी कुछ पैसे मिलते हैं। वह श्रमिक जो बालू को ट्रक पर लादने का काम करता है वह भी लगभग 15000 रुपये तक महीने की आमदनी कर लेता है जबकि अन्य व्यवस्था से जुड़े कर्मचारी बीस हजार रुपये महीना तक आमदनी कर लेते हैं। एक बालू घाट संचालक ने बताया कि एक घाट पर न्यूनतम 35 से 40 व्यक्ति को रोजगार मिलता है। लेकिन चूंकि इस काम में विवाद होते रहता है इसलिए अधिकतर घाटों पर 50 से 60 व्यक्ति विभिन्न तरह के काम करते हैं। बालू घाट दिन-रात संचालित होते हैं। यह बंद नहीं होते। इसलिए दो शिफ्ट में काम करने के लिए अलग अलग व्यक्ति रखे जाते हैं। बताया गया कि बालू ट्रक पर लादने में जो मशीन इस्तेमाल होता है उस पर एक आपरेटर, एक सहायक के अलावा दो और व्यक्ति काम करते हैं। कैशियर और चालान काटने का काम भी कई लोग करते हैं। बताया गया कि एक बालू घाट पर लगभग 50 से 60 व्यक्तियों को रोजगार मिलता है। बताया गया कि बालू घाटों पर प्रत्येक काम करने वाले व्यक्ति को तय रकम बतौर महीना मिलता है। इसके अलावा प्रति ट्रक भी पैसा मिलता है। 



अवैध रूप से 5000 से अधिक ट्रैक्टर को मिल रहा काम

15 हजार से अधिक को मिला है रोजगार

बालू खनन से लगभग पांच हजार ट्रैक्टर जुड़े हुए हैं। बारुण से लेकर शमशेर नगर तक। जिनके ड्राइवर और उप चालक का भी रोजगार इससे जुड़ा हुआ है। एक ट्रैक्टर से न्यूनतम तीन व्यक्ति को रोजगार प्राप्त हो रहा है। यानी पंद्रह हजार लोगों को काम मिला हुआ है। ये ट्रैक्टर औरंगाबाद जिला में सोन घाट से बालू ढ़ोने का काम करते हैं। इस तरह से देखें तो रोजगार का बड़ा साधन बालू घाट उपलब्ध कराते हैं। लेकिन ये अवैध हैं। अवैध कार्य में संलिप्त हैं। पुलिस इनके खिलाफ जब तब कार्रवाई करती है लेकिन हालात नहीं बदल रहे। दरअसल एक ट्रैक्टर बालू वैध रूप से 2000 से 2200 में मिलेगा लेकिन अवैध ट्रैक्टर से सिर्फ 1000 से 1200 रुपये में मिल जाता है। इस कारण जनता का एक हद तक समर्थन प्राप्त होता है। दूसरी तरफ बालू के वैध घाट वाले ट्रैक्टर से बालू नहीं बेचते। क्योंकि इसमें उनको परेशानी समझ में आती है।

Sunday 23 April 2023

सोन का शोक : तीन दशक में खत्म हो सकता है सोन का वजूद

 




 40 से 120 ट्रक तक रोज एक घाट से निकलते हैं बालू 

10 साल में खत्म हो गया काली सोन घाट 40 किलोमीटर तक सोन के वजूद पर संकट 

2013 से ट्रक से अन्यथा पहले ट्रैक्टर से होती थी बालू की ढुलाई

बालू के अंधाधुंध खनन ने बना दिया है खतरनाक गड्ढे 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : सोन के पेट से बालू निकालने का काम ट्रैक्टर से होता था। लालू-राबड़ी देवी के राज में घाटवार नीलामियां होती थीं और इससे गरीब कमजोर आय वर्ग के लोग घाट लिया करते थे। ट्रैक्टरों से बालू की ढुलाई होती थी। सोन में मजदूर बालू का खनन कर ट्रैक्टर भरते थे। राजग की सरकार जब बिहार में आई तो विकास के साथ सोन के संदर्भ में विनाश की भी पटकथा लिखी जानी शुरू हुई। वर्ष 2013 से ट्रकों से बालू ढुलाई की प्रक्रिया शुरू हुई और 10 साल में कालीघाट जैसे मशहूर बालू घाट का वजूद पूरी तरह खत्म हो गया। ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं। बारुण से लेकर शमशेर नगर पंचायत तक लगभग 40 किलोमीटर लंबे सोन के वजूद पर संकट है। बालू के धंधे से जुड़े लोगों की मानें तो 10 चक्के वाले एक ट्रक बालू की कीमत 12000 रुपये है। दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल से नान्हू बिगहा बालू घाट तक करीब 300 ट्रक प्रतिदिन बालू निकलते हैं। बारुण से नान्हू बिगहा तक 40 किलोमीटर में 1,000 से अधिक ट्रक बालू प्रतिदिन लगभग निकलते हैं। उत्तर प्रदेश में सोन के बालू की काफी मांग है। अब बक्सर और उत्तर बिहार भी बालू जा रहा है। अनुमान लगा सकते हैं कि सोन के पेट से कितना तेजी से बालू निकाला जा रहा है। एक दशक में कालीघाट खत्म हो गया, उस हिसाब से माना यही जा रहा है कि आने वाले तीन दशक में सोन पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। उसकी क्षमता ट्रैक्टर से भी बालू निकालने की शायद न बच सके। बताया जाता है कि मशीनों से अंधाधुंध बालू खनन के कारण नान्हू बिगहा के तरफ बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं।  यह 40 से 50 फिट तक गहरे होने के साथ 500 फीट से लेकर 1000 फीट तक लंबा लंबा है। मौत का कुआं बन गए हैं और सोन की धारा नाला की तरह बनकर रह गई है। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर सोन को किस हद तक बर्बाद करने पर सरकार तुली हुई है।




शमशेर नगर से केरा तक बन गए हैं कई तालाब 


अंकोढ़ा पंचायत के पूर्व मुखिया कुणाल प्रताप कहते हैं कि शमशेरनगर से केरा तक मशीनों से बालू के खनन के कारण बड़े बड़े तालाब और कुआं बन गए हैं। इनकी संख्या एक दर्जन से अधिक है और आश्चर्य की बात यह है कि मशीन से खनन के कारण यह गड्ढे बने हैं और घाट संचालकों को पर्यावरणीय स्वीकृति भी आसानी से मिल जाती है। पर्यावरण बचाने का प्रयास करने का दावा किया जाता है और सोन को देखकर साफ लगता है कि पर्यावरण से सरकार को कोई मतलब नहीं है। यहां पर्यावरण कहीं नहीं दिखता। सोन बचा ही नहीं है। सोन के पेट में सिर्फ बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं, जो तालाब व कुएं से अधिक गहरा और खतरनाक हैं।


खत्म हो गया है सोन का वजूद 

शमशेर नगर निवासी प्रवीण कुमार उर्फ बबलू शर्मा के नाम भी सोन का बालू घाट रहा है। वह बताते हैं कि बारुण से नान्हू बिगहा तक के 40 किलोमीटर में सोन खत्म हो गया है। बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। बालू के खेल में बड़े पैमाने पर धांधली होती है। दूसरे जिला के घाट वाले सोन का बालू उठाव कराते हैं और इसमें प्रशासन की भी मिलीभगत साफ साफ दिखती है। अगर सरकार समय रहते नहीं चेतती है तो सोन के किनारे आबाद बस्तियों को भी जरूरत भर बालू नसीब नहीं होगा और सोन एक खतरनाक इलाका बन जाएगा। जहां मनुष्य से लेकर जानवर तक की मौत बालू खनन से बने गड्ढों में डूबने से होती रहेगी।




स्वत: भरते रहते हैं गड्ढे : खनन पदाधिकारी 

जिला खनन पदाधिकारी विकास पासवान ने इस पूरे मामले में कहा कि 31 घाट पहले से चल रहा है। अब नया मिलाकर 37 हो गए हैं। फिलहाल 11 घाट संचालित हैं। उन्होंने बताया कि एक 3के मीटर के तीन लेयर में बालू निकाला जाता है इसलिए तीन मीटर से अधिक गड्ढा नहीं हो सकता है। इसके भरे जाने के नियम को लेकर उन्होंने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है। अपने आप गड्ढा भरता रहता है और बाढ़ आने पर भी भर जाता है। उत्तर प्रदेश बालू भेजे जाने के मामले पर उन्होंने कहा कि अब यह लंबे समय से बंद कर दिया गया है। बिहार में कहीं भी बालू भेजा जा सकता है।




Saturday 22 April 2023

न सोन में बालू का चौड़ा पाट बचा, न दिखते दीवार की तरह खड़े टीले

 सोन का शोक





बाढ़ को शहर में आने से रोकने में सक्षम थी बालू की दीवार 

सब खत्म हो गया, बन गयी समतल जमीन 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : सोन का शोक कई प्रकार का है। सोन में पानी कम होने और बालू खनन अंधाधुंध होने के कारण सोन का डिल्ला समाप्त हो गया और स्थिति यह है कि जहां अब सोन की धार बची हुई है वहां तक पहुंचने में बालू नहीं दिखता। यानी लगभग सोन का तीन किलोमीटर के पाट में अब बमुश्किल एक किलोमीटर धारा से सटा पाट ऐसा होगा जहां बालू दिखता है। एक समय ऐसा था जब महादेव स्थान से थोड़ी दूरी पर ही पश्चिम की ओर जाने पर सोन का बड़ा डिल्ला था। इसे बालू का टीला कह सकते हैं। कई किलोमीटर दक्षिण से उत्तर की तरफ सोन के पूरब दिशा में फैला हुआ था, और इसे शहर में बाढ़ के प्रवेश को रोकने वाली दीवार माना जाता था। अब बाढ़ आना ही नहीं है तो ऐसी दीवारों का काम भी नहीं बचा। धीरे-धीरे यह दीवार भी ढह गई। ध्वस्त होकर समाप्त हो गयी। सब घर मकान व सड़क और अन्य प्रकार के निर्माण में खपत हो गया। समतल मैदान बन गया। सोन का टीला पूरी तरह खत्म हो गया। एक समय था जब इस पर चढ़ने में लोग हांफ जाते थे। युवा और बच्चों को भी सतह से लगातार शीर्ष तक पहुंचना मुश्किल था। बच्चे उस पर चढ़ते थे और फिसलते थे। मजा लेते थे। मौज मस्ती का वह दौर खत्म हो गया। सुबह और शाम टहलने वालों की अच्छी खासी संख्या होती थी जो यहां मस्ती करते थे। 



1980 के दशक में हांफ जाते थे डिल्ला चढ़ने में


पांडेय टोली निवासी एल एन्ड टी कंपनी में चीफ़ हेल्थ, सेफ्टी, ईनवायरमेन्ट डा. विश्व कान्त पाण्डेय कहते हैं कि दाउदनगर के लोग उपमा देते थे कि सोन का बालू ख़तम हो जायेगा तो हो जायेगा किन्तु  फलाने बाबू का धन नहीं ख़तम होगा। किन्तु सोन के बालू का दोहन हो गया और बालू का टीला विलुप्त हो गया। अस्सी के दशक तक बालू के टीला पर चढ़ने में हांफ छूट जाता था। बच्चों को दौड़ कर चढ़ना पड़ता था और कभी कभी हवाई चपल बालू के ढ़ेर में गायब हो जाता था। हम बच्चों की झुण्ड अभिभावकों के साथ घूमने जाते थे। उनके आगे पीछे दौड़ लगाते बाबा भूत नाथ का अर्ध्य परिक्रमा कर लेते थे। फिर शुरू होता डिल्ला अथवा टिल्ला पर चढ़ने का जद्दोजहद। हम चढ़ते और फिसल जाते, हम चढ़ते और बालू के ढ़ेर में फंस जाते। जोरदार ठहाकों के बीच दूसरा धक्का लगाते और ट्रेन चलने की आवाज़ निकालते हुए ऊपर पहुंच जाते।



आम और महुआ का सुगंध अब कहां

अनुमंडल कार्यालय परिसर में टाइपिंग करने वाले सरोज कुमार नीरज बताते हैं कि डिल्ला पर प्रतिदिन जाने की लगभग आदत सी बन गई थी। वहां का आनंद अलग था। युवा होने के बावजूद एक बार में नहीं डिल्ला नहीं चढ़ पाते थे। मौज मस्ती करने के क्रम में आम और महुआ का सुगंध काफी प्रभावित करता था। अब वह सुगंध नसीब कहां है भला। इसके बाद आम का टिकोला और महुआ चुनते थे। अब न डिल्ला बचा न सोन का बालू वाला वितान।

 

खत्म हो गए बाग बागीचे, सोन का पाट भी


पांडेय टोली के अवधेश पांडेय बताते हैं कि काली स्थान व महादेव स्थान के पास काफी बड़ा बाग बगीचा था। आम के पेड़ काफी संख्या में थे। धीरे-धीरे सब कट कर खत्म हो गए। सोन का डिल्ला के साथ बाग बगीचे खत्म हो गए और उसका खामियाजा आम नागरिक को भुगतना पड़ रहा है। सोन का बालू देखने के लिए भी दो दशक पूर्व की अपेक्षा अब तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। अब लंबा चौड़ा बालू से लकदक सोन का पाट भी नहीं दिखता।

Friday 21 April 2023

तीन साल में चार गुना से अधिक अगलगी की घटना

 


हर वर्ष बढ़ते जा रही अगलगी की घटनाएं 

फोटो- दाउदनगर अग्निशमन कार्यालय 

आठ से पंद्रह- 16 और फिर 24 घटना प्रत्येक माह

लोगों को है जागरूक होने की जरूरत 

सतर्कता के बिना समस्या बढ़ती जा रही

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर अनुमंडल में अगलगी की घटनाओं में लगातार तेजी देखी जा रही है। जागरूकता अभियान चलाए जाने के बावजूद अगलगी की घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लोगों को जागरूक होने की जरूरत है लेकिन इसमें आवाम रुचि नहीं ले रहा। यह बड़ी समस्या है। प्राप्त विवरण के अनुसार तीन वर्ष में अगलगी की घटनाएं चार गुना बढ़ गई। इस पर नियंत्रण पाने का कोई उपाय फिलहाल नहीं दिख रहा। वर्ष 2020 में अगलगी की 97 घटना घटी। यानी प्रत्येक महीने लगभग आठ घटना घटी। इस वर्ष एक बड़ी घटना सुर्खियां बनी थी। जब अरई में खलिहान में लगी आग में डेढ़ साल का एक बच्चा झुलस कर मर गया था। वर्ष 2021 में कुल 184 घटनाएं घटी। यानी प्रत्येक महीने लगभग 15 अगलगी की घटना घटी। इस वर्ष 20 अप्रैल को ओबरा प्रखंड के नौनेर में 10 वर्ष की एक लड़की स्वीटी कुमारी की मौत हुई थी। कई घटनाएं ऐसी घटी जिसमें पशुओं की मौत हुई। वर्ष 2022 में 197 अग्निकांड दर्ज किए गए। यानी प्रत्येक महीने लगभग 16 घटना। बिहारी बिगहा में एक गाय और बकरी की मौत हुई थी। वहीं 23 अप्रैल 2022 को खुदवां के बिशुनपुर चंदा में एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया था। रोशनी कुमारी घायल हुई थी। वर्ष 2023 के प्रारंभिक तीन महीने में ही 102 अग्निकांड हो चुके हैं। अर्थात इस चालू वर्ष में प्रत्येक महीने लगभग 34 अग्निकांड दर्ज हो रहे हैं। यानी तीन साल में ही अग्निकांड चार गुना से अधिक बढ़ गए। यह चिंता का विषय है और इस पर नियंत्रण पाने में जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे तब तक सफलता नहीं मिलेगी।



अगलगी की घटनाओं की कई वजह 

विभाग द्वारा बताया गया कि आग लगी होने का कोई एक या दो कारण नहीं है। बल्कि कई कारण हैं। खेत खलिहान में रखे गए धान पुआल में सर्वाधिक आग लगता है। आमतौर पर अज्ञात कारण होता है। कभी-कभी बीड़ी सिगरेट पी कर फेंक देने से, कभी बच्चों द्वारा माचिस जला देने से अगलगी की घटना होती है। कभी-कभी जानबूझकर खेत में आग लगाया जाता है, जिसकी चिंगारी से खलिहान और पुआल के गांज में आग लग जाता है या कई बार घर जल जाते हैं।



समझने को तैयार नहीं ग्रामीण विभागीय अधिकारियों की मानें तो ग्रामीण अगलगी से संबंधित जानकारी जानने तक को तैयार नहीं होते हैं। विभाग की टीम उन्हें समझाने जाती है, जागरूक करने का काम किया जाता है, लेकिन ग्रामीण कोई न कोई बहाना बनाकर समय नहीं देते हैं। वह इसमें रुचि नहीं लेते हैं। शहर में कुछ हद तक तो जागरूकता है लेकिन गांव में स्थिति उलट है।



सोन का शोक : अंधाधुंध खनन के कारण सोन बर्बाद, जा चुकी हैं अब तक कई जानें




मशीनों से खनन के कारण बन गए हैं बड़े बड़े गड्ढे

छठ व्रत करना तक होता है मुश्किल

खतरनाक घाट पर लगाई जाने लगी है रोक

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : अंधाधुंध बालू खनन के कारण सोन बर्बाद हो गया है। आधुनिक मशीनों से बालू खनन के कारण बड़े-बड़े गड्ढे सोन में बन गए हैं। स्थिति काफी खतरनाक हो गई है। गत 18 सितंबर 2022 को जीवित्पुत्रिका व्रत के नहाए खाए के दिन ही अमृत बिगहा से सोन में स्नान करने गई माताओं के साथ गए तीन बच्चों की मौत हो गई थी। तब इस घटना में 13 वर्ष के किशु कुमार, 10 वर्ष के सोनू कुमार और आठ वर्ष के शिवा कुमार की मौत हुई थी। इनके स्वजन विरधा पासवान, राम कुमार पासवान एवं मनोज पासवान ने तब खुलकर आरोप लगाया था कि ठेकेदारों द्वारा अंधाधुंध बालू खनन के कारण बन गए गड्ढों में डूबने से इनकी मौत हुई है। तब आक्रोश इतना चरम पर था कि यदि बालू खनन से जुड़े लोग सोन से बाहर नहीं निकलते तो बड़ी घटना घट सकती थी। इससे पहले 19 नवंबर 2021 को भी सत्संग नगर निवासी लक्ष्मण कुमार की गड्ढे में डूबने से मौत हो गई थी। जिसकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी। मौत इस कारण होती है क्योंकि ऐसे गड्ढे में कितना गहराई है यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है। सोन में एक से डेढ़ दशक पूर्व लोग जब छठ मनाने जाते थे तो खूब मस्ती करते थे। आज स्थिति यह है कि काली स्थान महादेव स्थान घाट पर छठ मनाना मुश्किल हो गया है। बड़े-बड़े गड्ढे मशीनों से खनन के कारण बन गए हैं। बीते छठ में ही खतरनाक घाटों को चिन्हित कर घेराबंदी कर दी गई थी। जब दैनिक जागरण ने यह सवाल उठाया था कि ऐसी स्थिति बन गई है कि कभी भी किसी के डूबने से मौत हो सकती है। डेढ़ से दो फीट पानी के बाद अचानक से बड़े-बड़े गड्ढे हैं। जिसमें आदमी की डूबने से मौत हो सकती है। तब जाकर प्रशासन ने उसकी घेराबंदी कराया था। सीधी सी बात है कि मशीनों ने यह हाल किया है। कालीघाट महादेव स्थान वाले बालू घाट से बालू की निकासी बंद हो गई है। बालू निकासी से परेशान लोगों ने काली स्थान के पास ईट सीमेंट से द्वार बना दिया। ताकि बड़े वाहन इधर से बालू लेने ना जा सकें। प्रतिरोध के बावजूद ग्रामीणों ने काम किया और उसके बाद बड़े वाहनों से बालू ढुलाई की व्यवस्था यहां खत्म हुई। जब तक बड़े स्तर का बाढ़ नहीं आता है तब तक सोन के गड्ढे बराबर नहीं होंगे और खतरनाक स्थिति बनी रहेगी।



नियमानुकूल होगी कार्रवाई


एसडीओ मनोज कुमार ने बताया कि गड्ढों को लेकर खनन विभाग से बात करेंगे और नियमानुसार जो भी संभव होगी वह कार्रवाई की जाएगी। ताकि किसी की जान खतरे में न पड़ सके।


बाढ़ आने की उम्मीद खत्म, कैसे भरेगा गड्ढा 


दाउदनगर बारुण रोड के किनारे रहने वाले 60 वर्षीय अनंत प्रसाद सोनी बताते हैं कि इस सड़क से लगभग एक किलोमीटर की यात्रा कर आदमी सोन की धारा के पास पहुंच जाता था और छठ व्रत धूमधाम से करता था। लेकिन अब लगभग तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। रास्ते में जंगल है। कंडा, पतेला, काशी, कटीला झाड़ी जिस कारण असुरक्षित महसूस करते हैं। सोन में मशीनों के कारण बने बड़े गड्ढे प्राकृतिक रूप से जब बाढ़ आएंगे तभी भर सकते हैं। लेकिन बाढ़ आने की उम्मीद भी अब नहीं की जा सकती। खासकर बड़े स्तर का बाढ़। 



अमृत बिगहा के लोगों ने विरोध में बना दिया द्वार 


अमृत बिगहा निवासी रामकरण पासवान बताते हैं कि ग्रामीणों ने बालू की अंधाधुंध ढुलाई बड़े वाहनों से रोकने के लिए काली स्थान के समीप एक द्वार का निर्माण कर दिया। ट्रकों की आवाजाही से आवागमन बाधित होता था। सड़क पर चलना मुश्किल हो जाता था। सुबह की सैर करने वाले सोन जाना बंद कर दिए थे। द्वार बनाने के बाद बालू खनन से जुड़े लोगों ने दूसरे रास्ते से सोन में जाकर बालू निकालना शुरू रखा है। जब तक बाढ़ नहीं आएगा तब तक गड्ढे नहीं भरेंगे।

सोन का शोक : पानी की कमी और बालू खनन से तीन किलोमीटर पश्चिम खिसक गया सोन

 


कभी नाव से पार करने में लगते थे तीन घंटे

आज नहीं बचा वो विस्तृत पाट

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : रोहतास के इंद्रपुरी बराज से पटना के मनेर तक की 147 किमी की यात्रा कर गंगा नदी में मिलने वाला सोन नद अपनी बायीं तरफ सिमट व सिकुड़ रहा है। आज यह एक नहर से अधिक नहीं दिखता। गर्मी में तो यह बहुत पतली धार बन जाता है। यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में यह और सिमटकर नाला न बन जाए। इसका दुष्प्रभाव भूगर्भ जल-स्तर और पर्यावरण पर पड़ रहा है। नदी के इस हाल के लिए पानी की कमी व बाढ़ के नहीं आने के साथ-साथ बालू के अंधाधुंध खनन को जिम्मेदार माना जा रहा है। 


नदी में अब नहीं आती बाढ़ 

आज से तीन दशक पहले तक सोन का चौड़ा पाट पार करने में पैदल और नाव से लगभग दो से तीन घंटे लगते थे। नदी पर दाउदनगर-नासरीगंज के बीच करीब चार किमी लंबा पुल बनाया गया था। एनीकट में विश्व का सबसे लंबा चौथा बराज 1872 में बना था, इसका वजूद शेष है। नहीं है तो नदी का वह लंबा पाट। अब हर साल बाढ़ भी नहीं आती। यहां वर्ष 1848, 1869, 1884, 1888, 1901 और 1923 में आए बड़े बाढ़ तो मशहूर हैं। लेकिन 1968 में इंद्रपुरी बराज के चालू होने के बाद धीरे-धीरे नदी में पानी की समस्या गहराती गई। इसके बाद वर्ष 1976 में बाढ़ आई। 2016 में भी हल्की बाढ़ आई। आगे नदी कभी पानी से नहीं भरी। धीरे-धीरे सूख व सिकुड़ रही नदी में अब नाव तक नहीं चलती, क्योंकि इसकी जरूरत ही नहीं रही। 


खत्म होते जा रहे बालू घाट 

कहा जाता था कि सोन का बालू कभी खत्म नहीं हो सकता, लेकिन अब वह खत्म होने लगा है। साल 1982 से सोन का सुबह भ्रमण करने वाले 69 वर्षीय सुरेश कुमार गुप्ता कहते हैं कि पानी की कमी के साथ बालू उत्खनन के कारण सोन का वजूद संकट में है। यहां का बालू बड़ी मात्रा में बिहार के विभिन्न इलाकों में ही नहीं, उत्तर प्रदेश तक जा रहा है। पहले दाउदनगर में दक्षिण से उत्तर सोन के किनारे लगभग 10 किलोमीटर तक बालू का टीला था, जिसे बड़का बालू कहा जाता था। फिर छोटका बालू और उसके बाद सोन नद। बड़का बालू टीला की ऊंचाई दो ताड़ से कम नहीं रही होगी। तब युवा रहे सुरेश उसपर चढ़ने में हांफ जाते थे। आज इसका वजूद खत्म हो गया है। 54 वर्षीय अवधेश पांडेय कहते हैं कि दाउदनगर के सबसे किनारे सोन तट पर बसे एक मोहल्ले का नाम ही बालूगंज है। नाम तो वही रहा, लेकिन अब वहां बालू नहीं। बताते हैं कि 20 साल में घर व सड़क बनाने में यहां से बालू उठाकर भरावट का काम किया गया। सोन तट के काली स्थान सोन घाट पर भी बालू खत्म हो गया। आने वाले समय में एक-एक कर बालू घाट खत्म होंगे। 


भूगर्भ जल पर पड़ा असर

मेडिकल दुकान के संचालक और कई वर्षों से सोन टहलने जाने वाले मनीष रंजन कहते हैं कि शहर से नदी के दूर जाने का असर भूगर्भ जल स्तर पर पड़ा है। पहले 40 फीट पर उपलब्ध पानी अब 100 से 200 फीट तक नीचे चला गया है। नदी किनारे की हरियाली व कास के जंगल भी अब नहीं रहे। नदी के पेट से उभर आई नई जमीन पर लोगों का अवैध कब्जा भी बढ़ा है। बालू के बेहिसाब उत्खनन ने वातावरण में हानिकारण धूलकण की मात्रा भी बढ़ा दी है। इसका असर पूरे पर्यावरण पर पड़ा है। 


मंत्री को दिए कई सुझाव 

सवाल है कि आखिर कैसे हो समस्या का समाधान? ईशा फाउंडेशन से जुड़कर पर्यावरण पर काम कर रहे बारुण निवासी सुनील यादव ने कहा कि गत वर्ष पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव के साथ बैठक में कई सुझाव दिए गए थे। इनमें बड़ी परियोजनाओं में बालू का विकल्प ढूंढने की बात भी उठी थी। बड़ी परियोजनाओं के लिए पत्थरों को पीसकर बालू बनाने तथा नदियों की गाद को बालू की जगह इस्तेमाल करने लायक बनाने के सुझाव दिए गए थे। 


केवल नदी के मार्ग बदलने का मामला नहीं 

औरंगाबाद के जिला खनन पदाधिकारी विकास पासवान नदियों के सिमटने या खिसकने के मामले में बालू खनन की कोई भूमिका नहीं मानते। कहते हैं कि नदियां अपनी धारा खुद बदलती रहती हैं। ऐसे में पर्यावरणविद सुनील यादव कहते हैं कि इससे पर्यावरण संकट भी जुड़ा है, जिसके लिए निश्चित तौर पर बालू का बेहिसाब उत्खनन जिम्मेदार है। बालू के नियंत्रित इस्तेमाल से समस्या को कम जरूर कर सकते हैं। बालू का विकल्प ढूंढने के साथ पेड़ भी लगाने होंगे। इससे खाद्य सामग्री उपलब्ध होने के साथ आय भी बढ़ेगी। साथ ही पर्यावरण व भूगर्भ जल स्तर भी बेहतर होंगे।



Wednesday 19 April 2023

व्यवसाई की हत्या के मामले में तीन ने किया आत्मसमर्पण



आरोपित दो भाई और पिता पुत्र ने किया आत्मसमर्पण

फोटो-18.4.23 को प्रकाशित खबर

शनिवार की सुबह शहर में हुई थी हत्या 

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : पुलिस दबिश के कारण व्यवसायी हत्या कांड के मामले में तीन ने सोमवार को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया है। दाउदनगर शहर स्थित बम रोड में शनिवार की सुबह राजेंद्र प्रसाद की हत्या हुई थी। इस मामले में नौ व्यक्ति नामजद आरोपी बनाए गए थे। मुख्य आरोपित राजेंद्र प्रसाद तांती, उनके भाई बसंत कुमार और बसंत कुमार के पुत्र नितेश कुमार ने सोमवार को अनुमंडल व्यवहार न्यायालय दाउदनगर में आत्मसमर्पण कर दिया है। इसे पुलिस दबिश का नतीजा माना जा रहा है। इस मामले में एसडीपीओ कुमार ऋषि राज ने बताया कि आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए लगातार छापेमारी की जा रही है। माना जा रहा है कि इसी दबिश के कारण उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। इनके आत्मसमर्पण की जानकारी पुलिस को नहीं है। लेकिन न्यायालय से जुड़े सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है। मालूम हो कि दाउदनगर शहर में बम रोड में भूमि विवाद में राजेंद्र प्रसाद की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में उनकी पत्नी चंद्रमा देवी ने प्राथमिकी कराई थी। आरोपितों को गिरफ्तार करने की मांग को लेकर घटना के दिन ही लोगों ने शहर इन प्रदर्शन किया था। मृतक के शव को लेकर अस्पताल से भखरुआं तक प्रदर्शन किया था। अब जा कर तीन ने आत्मसमर्पण किया है। 




पूर्व विधायक के पुत्र की हत्या मामले में अनुसंधान बाद होगी कार्रवाई 

इधर शुक्रवार की रात दाउदनगर थाना ले हिच्छन बिगहा गांव में अरवल से दो बार विधायक रहे राजद नेता रवींद्र सिंह के पुत्र कुमार गौरव उर्फ दिवाकर की हत्या के मामले में प्रशासन का हाथ घटना के लगभग 72 घण्टे बाद भी हाथ खाली है। इस मामले में एसडीपीओ कुमार ऋषिराज ने बताया कि पूर्व विधायक की पत्नी उषा शरण ने अपने पुत्र की हत्या कराने का आरोप अपने पति पूर्व विधायक रविंद्र सिंह पर लगाया है। लेकिन दूसरी तरह की बात भी सामने आ रही है और यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर अपने बेटे की हत्या वे क्यों करवाएंगे। इस कारण मामले का अनुसंधान किया जा रहा है। अनुसंधान के बाद ही इस मामले में कोई गिरफ्तारी होगी। इसके लिए तकनीकी मदद भी ली जा रही है। जिला अनुसंधान इकाई मोबाइल लोकेशन और मोबाइल का सीडीआर निकाल कर मामले की जांच कर रही है। वहीं एसएफएल की टीम भी दो बार घटनास्थल पर जा चुकी है। 







36 घंटे बाद भी नहीं हो सकी कोई गिरफ्तारी



फोटो 16.4.23 को प्रकाशित खबर

राजेंद्र प्रसाद तांती ने लोहे की रड से की हत्या 

राजेंद्र साव हत्याकांड में बने नौ आरोपित दाउदनगर (औरंगाबाद) : भूमि विवाद में पीट-पीटकर जिस राजेंद्र साव की हत्या कर दी गई थी उस मामले में नौ व्यक्ति को नामजद आरोपित बनाया गया है। शनिवार को सुबह उनकी हत्या हुई थी। घटना के 36 घंटे बाद भी किसी की गिरफ्तारी की सूचना नहीं है। हालांकि पुलिस सूत्र दावा कर रहे हैं कि वे लगातार आरोपितों की गिरफ्तारी का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन अभी तक उनके हाथ कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। उनकी पत्नी चंद्रमा देवी द्वारा प्राथमिकी कराई गई है। विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज कांड का अनुसंधान सब इंस्पेक्टर सुनील कुमार करेंगे। इस मामले में प्राथमिकी आवेदन में कहा गया है कि वार्ड नंबर 18 बम रोड में चंद्रमा देवी घर पर झाड़ू लगा रही थी। इसी बीच पुरानी शहर वार्ड नंबर तीन के निवासी राजेंद्र प्रसाद तांती, वार्ड नंबर 19 के निवासी बसंत प्रसाद, नितेश कुमार एवं दिनेश कुमार, वार्ड नंबर दो कोयरी टोला के निवासी सुमित कुमार भारती एवं मंटू कुमार, शुक बाजार स्थित मदन कुमार, वार्ड नंबर 17 बम रोड निवासी लक्ष्मी प्रसाद और वार्ड नंबर 21 निवासी मनोज कुमार और 10 अज्ञात के साथ आटो और स्कार्पियो से घर पर आए और गाली गलौज करने लगे। सब को जान मार कर बाहर फेंक देने की धमकी दी। अचानक जानलेवा हमला आरोपियों ने कर दिया। प्राथमिकी आवेदन में कहा गया है कि राजेंद्र साव पर राजेंद्र प्रसाद तांती ने लोहे की रड से हमला किया। जिससे सर पर चोट लगी और वे अचेत होकर गिर गए। लोग ठेला पर लादकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। इधर अन्य आरोपितों बसन्त कुमार, नितेश कुमार, दिनेश कुमार, सुमित कुमार, मंटू कुमार, मदन कुमार एवं लक्ष्मी प्रसाद अन्य लोगों के साथ घर में घुसकर चंद्रमा देवी के पुत्र पिंटू एवं रवि के साथ मारपीट करने लगे। जिसमें में घायल हो गए। पुलिस मामले की जांच कर रही है।


पिता की हत्या की खबर सुन पुत्र हुआ अचेत

फोटो-घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहा चितरंजन कुमार

पिता के दाह संस्कार में भी नहीं हो सका शामिल

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) : राजेंद्र साहू की पीट-पीटकर हत्या कर देने की सूचना जैसे ही उनके बेटे चितरंजन को मिली वह मूर्छित हो गया। अचेत हो गया। वह अविवाहित है। उसकी उम्र लगभग 18 वर्ष बताई जाती है। पिता की मृत्यु की सूचना के बाद से उसकी स्थिति लगातार खराब बनी हुई है। हालांकि अस्पताल से इलाज कराने के बाद वह घर लौट आया है। घर में ही स्वास्थ्य लाभ ले रहा है। वह अपने पिता की चिता जलाने में श्मशान घाट पर सोन दियारा क्षेत्र में नहीं जा सका। वह काफी डरा हुआ है। डाक्टरों ने सलाह दी है कि वह जब भी होश में आएगा तो परेशान होगा। इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। उसका इलाज करने वाले अरविंद हास्पिटल के डाक्टर अरविंद कुमार ने बताया कि वह डर गया है। नर्वस एकी कार्डिया का शिकार है। इसके कुछ मरीज तुरंत ठीक हो जाते हैं और कुछ मरीजों को वक्त लगता है। कुछ मरीज काफी समय तक परेशान भी करते हैं।