Sunday 2 April 2023

10 घंटे की परेशानी और पैरवी पर हुआ आपरेशन

 




नहीं बचाया जा सका नवजात 

डबल एमएस चिकित्सक सामान्य चिकित्सक के पद पर कार्यरत 

डाक्टर को काम करने लायक माहौल उपलब्ध नहीं 

पीएचसी की बदतर स्थिति 

भय के साए में रात में रहते हैं चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्य कर्मी

दाउदनगर (औरंगाबाद) : रात करीब 10:30 बजे। अनुमंडल अस्पताल जाने के मुख्य रास्ते में अंधेरा का साया। प्रखंड सह अंचल कार्यालय होकर जाने में ही मिलती है रोशनी। मुख्य मार्ग से जाने में बंदरों के हमले के साथ अपराध का शिकार होने का भी सताता है डर। जब अनुमंडल अस्पताल यह संवाददाता रात्रि में पहुंचा तो कुछ लोग इधर-उधर परेशान हाल में दिखे। तरार टोला मिसिर बिगहा की शारदा देवी के प्रसव का आपरेशन चल रहा था। इनके ससुर मुनारीक यादव ने बताया कि सुबह लगभग 10:00 बजे अस्पताल पहुंचे। जांच में बच्चा ठीक स्थिति में बताया गया। काफी प्रयास किया लेकिन पहले टाला गया। अस्पताल द्वारा यह प्रयास किया गया कि आपरेशन न करना पड़े। लेकिन मजबूरी में रहना था। बताया कि राजद नेता सुमित यादव को बुलाया। उन्होंने डाक्टर से बात की। एक शिक्षक से पैरवी करवाया। विधायक तक बात पहुंचाई गई। तब जाकर रात्रि लगभग 9:00 बजे आपरेशन से प्रसव कराया गया। लेकिन बच्चा मृत है, इसकी जानकारी लगभग दो घंटे बाद दी गई। आरोप लगाया कि कमाने के उद्देश्य से बाजार से पांच हजार का एक इंजेक्शन मंगवाया गया। 


पहले भी लग चुका है आरोप

 शारदा देवी का आपरेशन डा गयानंद चौपाल ने किया। उन पर पहले भी बाजार से दवा मंगा कर आपरेशन करने का आरोप लगता रहा है। लिखित शिकायत के बाद एक बार एक माह के लिए आपरेशन करने पर रोक लगाया गया था।


आंतरिक राजनीति का शिकार है एसडीएच 

पूरे मामले में डा. गयानंद चौपाल ने बताया कि आंतरिक राजनीति का शिकार है अनुमंडल अस्पताल। कहा कि वे डबल एमएस हैं। लेकिन 2001 में जब उनको नौकरी लगी थी तब वह एमबीबीएस के साधारण चिकित्सक के रूप में पदस्थापित हैं। उनको आपरेशन करने से रोका जाता है। विभाग से सर्जरी के लिए उनको अनुमति प्राप्त नहीं है। लेकिन चूंकि वे एमएस हैं इसलिए मरीजों के हित में आपरेशन करते हैं। उन्होंने कहा कि 5000 का एक एंटीबायोटिक क्रय करना स्वाभाविक रूप से लोगों को स्वीकार करना चाहिए। आखिर यह एंटीबायोटिक इंजेक्शन मरीज के शरीर में डाला जाता है ताकि किसी भी तरह का कोई इंफेक्शन न हो।



प्रभारी और चिकित्सकों के बैठने के लिए कक्ष नहीं 

समय 9:45 बजे। दाउदनगर-बारुण रोड के किनारे स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सन्नाटा है। अंदर जाने पर कुछ स्वास्थ्य कर्मी बैठे दिखे। जिसमें डाक्टर अनमोल कुमार के अलावा एंबुलेंस चालक किशोर कुमार सिंह, सुरक्षा प्रहरी राम विजय सिंह एवं जमुना सिंह, एएनएम रजन्ति कुमारी एवं आशा कुमारी चतुर्थवर्गीय कर्मी प्रहलाद राम, एंबुलेंस के सह चालक अरविंद कुमार दिखे। पूरे अस्पताल में मात्र दाउदनगर के वार्ड संख्या नौ की अर्चना कुमारी का प्रसव हुआ है। रात्रि में पीएचसी में क्या समस्या आती है, इस सवाल के जवाब में डा. अनमोल कुमार ने जो दिखलाया उससे यह साफ है कि चिकित्सकों को काम करने लायक माहौल भी उपलब्ध नहीं है और भय के साए में उनको अपनी ड्यूटी निभानी पड़ती है। चार दिवारी का अभाव है। नतीजा चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को भय सताता है कि कभी भी कोई भी व्यक्ति आकर उन्हें अपमानित कर सकता है, उनके साथ बदतमीजी कर सकता है, मारपीट कर सकता है। और ऐसा पहले हो चुका है। इस कारण चिकित्सक भय में जीते हैं। डाक्टर ने बताया कि यहां प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी या अन्य चिकित्सकों के लिए कोई कक्ष नहीं है। अब रात्रि ड्यूटी करते समय सोने के लिए भी किसी तरह संघर्ष कर एक कमरे को बैठने लायक बनाया है। जिसमें चिकित्सक को सोना पड़ता है। बताया कि वाशरूम में फ्लैश शुरू से ही नहीं है। अस्पताल में एक्सरे देखने के लिए एक्सरे व्यू बाक्स खराब है। इस कारण 25 से 30 मरीज प्रतिदिन ओपीडी में कम आने लगे हैं। टीवी के मरीज को देखना मुश्किल होता है। यहां एक्सरे बंद है। इसलिए अनुमंडल अस्पताल से सहयोग लिया जाता है। बताया कि प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. शिव शंकर झा शहर में ही हैं। आन काल उपलब्ध रहते हैं। पीएचसी में असुविधा के बीच जनता को सुविधा देने को चिकित्सक बाध्य हैं। 



24 घण्टे डियूटी करना यहां कठीन

डा.अनमोल कुमार को 24 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ी। बताया कि सुबह 8:00 बजे से 2:00 बजे तक वह ओपीडी में मरीजों को देखे। इसके बाद 2:00 बजे से रात्रि 8:00 बजे तक इमरजेंसी ड्यूटी लगी और फिर रात्रि 8:00 बजे से सुबह 8:00 बजे तक उनको नाइट ड्यूटी में लगाया गया। यानी लगातार 24 घंटे उन्होंने ड्यूटी की और वह भी तब जब काम करने का बेहतर माहौल नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी के साथ बैठकर हम कहां बात कर सकते हैं। क्या वे किसी से मिलना चाहें तो उसको बेडरूम में ले जाएंगे, या फिर खुले आसमान के नीचे या चबूतरे पर कहीं बैठकर बातचीत करनी होती है। ऐसे में काम करना कितना मुश्किल है समझा जा सकता है।







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