Sunday 23 April 2023

सोन का शोक : तीन दशक में खत्म हो सकता है सोन का वजूद

 




 40 से 120 ट्रक तक रोज एक घाट से निकलते हैं बालू 

10 साल में खत्म हो गया काली सोन घाट 40 किलोमीटर तक सोन के वजूद पर संकट 

2013 से ट्रक से अन्यथा पहले ट्रैक्टर से होती थी बालू की ढुलाई

बालू के अंधाधुंध खनन ने बना दिया है खतरनाक गड्ढे 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : सोन के पेट से बालू निकालने का काम ट्रैक्टर से होता था। लालू-राबड़ी देवी के राज में घाटवार नीलामियां होती थीं और इससे गरीब कमजोर आय वर्ग के लोग घाट लिया करते थे। ट्रैक्टरों से बालू की ढुलाई होती थी। सोन में मजदूर बालू का खनन कर ट्रैक्टर भरते थे। राजग की सरकार जब बिहार में आई तो विकास के साथ सोन के संदर्भ में विनाश की भी पटकथा लिखी जानी शुरू हुई। वर्ष 2013 से ट्रकों से बालू ढुलाई की प्रक्रिया शुरू हुई और 10 साल में कालीघाट जैसे मशहूर बालू घाट का वजूद पूरी तरह खत्म हो गया। ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं। बारुण से लेकर शमशेर नगर पंचायत तक लगभग 40 किलोमीटर लंबे सोन के वजूद पर संकट है। बालू के धंधे से जुड़े लोगों की मानें तो 10 चक्के वाले एक ट्रक बालू की कीमत 12000 रुपये है। दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल से नान्हू बिगहा बालू घाट तक करीब 300 ट्रक प्रतिदिन बालू निकलते हैं। बारुण से नान्हू बिगहा तक 40 किलोमीटर में 1,000 से अधिक ट्रक बालू प्रतिदिन लगभग निकलते हैं। उत्तर प्रदेश में सोन के बालू की काफी मांग है। अब बक्सर और उत्तर बिहार भी बालू जा रहा है। अनुमान लगा सकते हैं कि सोन के पेट से कितना तेजी से बालू निकाला जा रहा है। एक दशक में कालीघाट खत्म हो गया, उस हिसाब से माना यही जा रहा है कि आने वाले तीन दशक में सोन पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। उसकी क्षमता ट्रैक्टर से भी बालू निकालने की शायद न बच सके। बताया जाता है कि मशीनों से अंधाधुंध बालू खनन के कारण नान्हू बिगहा के तरफ बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं।  यह 40 से 50 फिट तक गहरे होने के साथ 500 फीट से लेकर 1000 फीट तक लंबा लंबा है। मौत का कुआं बन गए हैं और सोन की धारा नाला की तरह बनकर रह गई है। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर सोन को किस हद तक बर्बाद करने पर सरकार तुली हुई है।




शमशेर नगर से केरा तक बन गए हैं कई तालाब 


अंकोढ़ा पंचायत के पूर्व मुखिया कुणाल प्रताप कहते हैं कि शमशेरनगर से केरा तक मशीनों से बालू के खनन के कारण बड़े बड़े तालाब और कुआं बन गए हैं। इनकी संख्या एक दर्जन से अधिक है और आश्चर्य की बात यह है कि मशीन से खनन के कारण यह गड्ढे बने हैं और घाट संचालकों को पर्यावरणीय स्वीकृति भी आसानी से मिल जाती है। पर्यावरण बचाने का प्रयास करने का दावा किया जाता है और सोन को देखकर साफ लगता है कि पर्यावरण से सरकार को कोई मतलब नहीं है। यहां पर्यावरण कहीं नहीं दिखता। सोन बचा ही नहीं है। सोन के पेट में सिर्फ बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं, जो तालाब व कुएं से अधिक गहरा और खतरनाक हैं।


खत्म हो गया है सोन का वजूद 

शमशेर नगर निवासी प्रवीण कुमार उर्फ बबलू शर्मा के नाम भी सोन का बालू घाट रहा है। वह बताते हैं कि बारुण से नान्हू बिगहा तक के 40 किलोमीटर में सोन खत्म हो गया है। बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। बालू के खेल में बड़े पैमाने पर धांधली होती है। दूसरे जिला के घाट वाले सोन का बालू उठाव कराते हैं और इसमें प्रशासन की भी मिलीभगत साफ साफ दिखती है। अगर सरकार समय रहते नहीं चेतती है तो सोन के किनारे आबाद बस्तियों को भी जरूरत भर बालू नसीब नहीं होगा और सोन एक खतरनाक इलाका बन जाएगा। जहां मनुष्य से लेकर जानवर तक की मौत बालू खनन से बने गड्ढों में डूबने से होती रहेगी।




स्वत: भरते रहते हैं गड्ढे : खनन पदाधिकारी 

जिला खनन पदाधिकारी विकास पासवान ने इस पूरे मामले में कहा कि 31 घाट पहले से चल रहा है। अब नया मिलाकर 37 हो गए हैं। फिलहाल 11 घाट संचालित हैं। उन्होंने बताया कि एक 3के मीटर के तीन लेयर में बालू निकाला जाता है इसलिए तीन मीटर से अधिक गड्ढा नहीं हो सकता है। इसके भरे जाने के नियम को लेकर उन्होंने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है। अपने आप गड्ढा भरता रहता है और बाढ़ आने पर भी भर जाता है। उत्तर प्रदेश बालू भेजे जाने के मामले पर उन्होंने कहा कि अब यह लंबे समय से बंद कर दिया गया है। बिहार में कहीं भी बालू भेजा जा सकता है।




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