Wednesday 26 April 2023

सोन का शोक : सोन के सूखे पाट को किसानों ने बनाया उर्वर, उपज रही शब्जी व अनाज




सोन के पेट में हजारों एकड़ में हो रही है खेती 

किसान बनाते हैं सूखी जमीन को उर्वर अपनी क्षमता के अनुसार कब्जा कर करते हैं खेती 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : इंद्रपुरी बराज से नीचे पटना तक की यात्रा में सोन सूखता, सिकुड़ता चला गया है। उसकी चौड़ाई कम होती गई और जो जमीन सूख गई, बंजर हो गई, उसे हाड़ तोड़ मेहनत कर सोन तटीय क्षेत्र के किसानों ने उर्वर बनाया और उस पर अनाज और सब्जी उपजा रहे हैं। कहीं यह आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि कितना लंबा-चौड़ा यह क्षेत्रफल होगा और कितने एकड़ में खेती होती होगी। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक लगभग 120 किलोमीटर लंबा और 2 से 3 किलोमीटर चौड़ा सोन का जो पाट बंजर रह गया, बलुआही मिट्टी रह गया, उसे हाड़ तोड़ मेहनत कर किसानों ने उपजाऊ बनाया और उस पर खेती कर रहे हैं। सोन द्वारा छोड़ी गई इस जमीन पर गेहूं की फसल भी लहलहाती है। आलू, बैगन, टमाटर, मटर, परवल, करेला, कद्दू, नेनुआ की फसल लह लहाती है। सूत्रों के अनुसार किसान अपनी क्षमता के अनुसार दो बीघा से लेकर 10 बिगहा तक या इससे अधिक भी जमीन को अपने कब्जे में लेकर उसे खेती लायक उर्वर बनाते हैं और फिर उसमें फसलों को लगाते हैं। इससे जीविकोपार्जन भर कमा लेते हैं।



मत्स्य विभाग करता था नीलामी

 प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले मत्स्य विभाग के माध्यम से सोन तटीय खेती को सैरात के रूप में बंदोबस्ती की जाती थी। लेकिन अब यह सब होना बंद हो गया है। पहले किसानों को बंदोबस्ती की रसीद भी कटती थी। अब ऐसा नहीं होता। बताया गया कि किसान अपनी क्षमता के अनुसार जमीन को खेती के लायक उपयोग बनाते हैं और खेती करते हैं। इस मामले में एक अंचल अधिकारी ने बताया कि नियम बदल गया है और अधिक जानकारी इस बारे में नहीं है।



विद्युत व्यवस्था हो तो और बेहतर होगी खेती 

वार्ड संख्या 10 के निवासी दीपक निषाद सोन द्वारा छोड़ी गई दो बीघा जमीन पर खेती करते हैं। वह बताते हैं कि गुमा, सिपहां, महमदपुर, दाउदनगर, बालूगंज, अंछा मौजा में इलाका बंटा हुआ है। अंचल द्वारा बंदोबस्ती की जाती थी। गुमा मौजा में सिंचाई मुश्किल हो गई है। बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है। डीजल से सिंचाई करना पड़ता है। डीजल इतना महंगा है कि पर्याप्त सिंचाई करना मुश्किल है। हर एक दिन बाद सिंचाई की जरूरत होती है। पर्याप्त सिंचाई नहीं कर पाते नतीजा खेत की क्षमता जितनी फसल नहीं लगा पाते।



जंगल साफ कर जमीन को बनाते हैं उपजाऊ 

अमृत बिगहा के निवासी विनय पासवान भी सोन में खेती करते हैं। उनसे यह सवाल था कि सोन द्वारा छोड़ी गई जमीन को खेती के लायक कैसे बनाते हैं। उन्होंने बताया कि जंगल को साफ करना पड़ता है। पतेला, काश, झूर को उखाड़ कर जड़ समेत फेंक दिया जाता है और फिर जोत कोड कर उपजाऊ बनाया जाता है। जमीन उर्वर हो जाती है। जो व्यक्ति जितना खेत बनाता है वह उतना पर फसल लगाता है। सब के बीच आपसी सामंजस्य होता है।



पहचाननी पड़ती है फसल लायक जमीन 


सोन में खेती करने वाले किसानों की मानें तो जिस जमीन की ऊपरी सतह पर बालू है और नीचे मिट्टी होती है उस जमीन पर किसान पर परवल, कद्दू, करेला, नेनुआ जैसी सब्जी का उत्पादन करते हैं। और जहां सिर्फ मिट्टी है, वहां गेहूं, प्याज, हरी मिर्च और टमाटर होते हैं। सोन में जब कभी बाढ़ आता है तो वह अपने साथ मिट्टी भी लाता है और जिस जमीन पर मिट्टी छोड़ जाता है वहां का जंगल साफ कर किसान खेती बना लेते हैं।



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