Wednesday 12 April 2023

शहरीकरण हो रहा किंतु जन आकांक्षाएं रह गयी अधूरी



जितना हुआ हासिल उससे अधिक प्राप्त करने की आकांक्षा

सरकारी शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बदतर

निजी विद्यालयों व अस्पतालों के भरोसे है आबादी

उपेंद्र काश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के एक भवन में अनुमंडल कार्यालय प्रारंभ हुआ था। शहरीकरण बढ़ा लेकिन कई मामलों में जन आकांक्षाएं पूरी नहीं हुई। बाद में नया भवन बना जिसमें अनुमंडल कार्यालय शिफ्ट हुआ। इसी परिसर में अनुमंडल व्यवहार न्यायालय और अन्य कार्यालय भी बना। अनुमंडल कार्यालय और न्यायालय के संदर्भ में भवनों की संख्या कम बताई जाती है। न्यायिक पद रिक्त हैं, और की जरूरत बताई जाती है। दाउदनगर नासरीगंज पुल बना। दाउदनगर-गया मार्ग चौड़ी हुई और अधिक चौड़ी करने की योजना है। लेकिन औरंगाबाद पटना मार्ग के चौड़ीकरण की शीघ्र आवश्यकता है। रेलवे लाइन से नहीं जोड़ने का गम सबको है। बड़े बड़े माल खुले, शहर का विस्तार हो रहा है, आवागमन का दबाव बढ़ रहा है। आवागमन को दुरुस्त करने, सड़कों पर दबाव कम करने का काम अभी तक अधूरा है। ओबरा, गोह और हसपुरा में पर्याप्त विकास नहीं हो सका है। यहां अब भी पिछड़ापन साफ-साफ दिखता है। बाजार में रौनक तो पूर्व की अपेक्षा बढ़ी, लेकिन उस अनुपात में संसाधन नहीं बढ़े। बाजार अतिक्रमण का शिकार है और आवागमन जितना अधिक बढ़ा उस अनुपात में सड़के चौड़ी नहीं की जा स्की। जाम की समस्या से परेशान हैं। इन तीनों प्रखंड मुख्यालयों में शहरीकरण की जरूरत है। तीनों ही अभी तक नगर निकाय नहीं बने हैं। स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं बढ़ी है। अनुमंडल अस्पताल इसी दौरान बना लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हो, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हो या उप स्वास्थ्य केंद्र हो, उनकी स्थिति नहीं सुधरी है। सरकारी शिक्षण संस्थानों का हाल बद से बदतर होता चला गया और नतीजा निजी शिक्षण संस्थानों ने आबादी को शिक्षित करने की जिम्मेदारी संभाली। 32 वर्ष की इस यात्रा में जितना हासिल हुआ उससे जन आकांक्षाएं तृप्त नहीं हुई। अभी और हासिल करना बाकी रह गया है।



उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं हुई


डाक्टर शंभू शरण सिंह कहते हैं कि अनुमंडल की घोषणा का सबसे ज्यादा असर जन आकांक्षाओं पर पड़ा। विकास का आकांक्षी जनसमूह शहरीकरण की ओर इस बढ़ते कदम का खुद हिस्सा बना और अपनी बेहतरी के सपने देखने लगा। अनुमंडल बनने के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सुविधाओं की चाह में लोग अनुमंडल मुख्यालय में बसे। अपनी क्षमता के अनुसार जमीन और घर की व्यवस्था की, लेकिन 32 साल पूरा होने के पश्चात शहर का जो स्वरूप होना चाहिए वह न हो सका। हालांकि सड़कें थोड़ी ठीक हुई। विद्युत व्यवस्था सुधरी। प्राथमिक, माध्यमिक स्तर की शिक्षा का प्रबंध हुआ लेकिन उच्च शिक्षा में कहीं कोई अच्छी व्यवस्था नहीं हुई। चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपेक्षित विकास नहीं हुआ। प्लानिंग के तहत शहर को बसाने की बड़ी योजना नहीं बनी। ना अच्छा बस पड़ाव बना। टेंपु के लिए समुचित व्यवस्था नहीं हुई। आने वाले दिनों में हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि जिन सपनों को मन में संजोकर लोग मुख्यालय में बसे हैं उनके सपनों को साकार करने को और बेहतर कोशिश की जाएगी और साथ ही जिला मुख्यालय के रूप में दाउदनगर स्थापित होगा।



समाजसेवी डा. प्रकाश चंद्रा ने कहा कि तुलनात्मक रूप से देखें तो औरंगाबाद जिला में जिला मुख्यालय के बाद सर्वाधिक विकास दाउदनगर का हुआ। अनुमंडल बनने से जो नई उम्मीद और आशा का संचार हुआ था कुछ हद तक पूरा हुआ। नए रेस्टोरेंट, होटल, ब्रांडेड शोरूम आये, शहर का विस्तार हुआ। जो भखरुआं 100 मीटर के दायरे में सिमटा रहता था वह दो किलोमीटर तक फैला। वाहनों की संख्या बढ़ी। यातायात का दबाव बढ़ा। आबादी बढ़ी। इससे कुछ मुश्किलें बढ़ी हैं। बाईपास होने से यातायात का दबाव कम हुआ है। शिक्षण संस्थान बढ़े। बेहतर परीक्षा परिणाम आने से गांव की बड़ी आबादी शहर में किराए के मकान में रहकर बच्चों को पढ़ा रही है। जिससे आबादी का दबाव बढ़ा। जीवन शैली बदली। अपने लिए घर बनाना मुश्किल हो गया। लेकिन नौकरियां जा रही हैं, बेरोजगारी है। आनलाइन और बड़े शोरूम के आने से छोटे दुकानदार परेशान हैं। जेल और अनुमंडल होने से मुकदमे के लिए जिला आना-जाना लोगों का कम हुआ लेकिन घर में ही सुविधाएं बढ़ने से प्रशासन और कानून का भय भी लोगों में कम हुआ है।

No comments:

Post a Comment