Sunday 30 April 2017

पीपल वृक्ष के नीचे ‘बुद्ध’ बनाने की कोशिश


झोपडी के बाहर पीपल के नीचे स्कूल
गुल्ली बिगहा प्राथमिक स्कूल का हाल
भूमिहीन स्कूल, खुद से बनाई झोपडी
सभी क्लास व बच्चे एक साथ है बैठते

विश्व विख्यात महान दार्शनिक अरस्तु ने कहा था कि- ‘शिक्षा की जड़ें कडवी हैं, किन्तु फल बहुत ही मीठा है|’ सिन्दुआर पंचायत स्थित गुल्ली बिगहा प्राथमिक विद्यालय का हाल देख कर लगता है कि वास्तव में शिक्षा की जड़, तना, पत्ता तक कड़वा है और फल की उम्मीद बहुत दूर है, भले ही उसके मीठा होने की सौ फीसदी गारंटी है| यहाँ कक्षा एक से पांचवीं तक पढाई होती है| इसकी व्यवस्था देख कर कोइ बता दे कि आखिर कैसे यहाँ शिक्षा ग्रहण कर उसका मीठा फल बच्चे प्राप्त कर सकेंगे| मखरा-अंगराही पथ पर सड़क किनारे एक झोपडी है| यही स्कूल है जहां बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं| प्रभारी प्रधानाध्यापक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा बताते हैं कि इस भूमिहीन विद्यालय में कुल 26 बच्चे नामांकित हैं| सभी जमीन पर बोरा बिछा कर पीपल पेड़ के नीचे बैठते हैं और शिक्षा ग्रहण करते हैं| सभी कक्षा के सभी उपस्थित बच्चे एक साथ बैठते हैं| पीपल वृक्ष के नीचे बुद्ध बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं श्री सिन्हा| बताते हैं कि 14 फरवरी 2014 को इस स्कूल को प्रारम्भ किया गया था| तब से मात्र एक बार अभी तक विकास राशि पांच हजार रूपए मिला है| इसी से झोपडी का छप्पर छवाया एक कुर्सी खरीदी ताकि खुद बैठ सकें और स्कूल संचालन के लिए आवश्यक स्टेशनरी का क्रय किया| पूरे तरह महादलित आबादी के लिए इस स्कूल को खोला गया था| मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का महादालित प्रेम जग जाहिर है| ऐसे ही महादलित बुद्धू से बुद्ध बन रहे हैं| शायद पीपल वृक्ष प्रेरक बन गया है यहाँ|


पेड़ पर बैठ स्वास्थ्य जांच
इस स्कूल में एक बार चिकित्सा टीम बच्चों के स्वास्थ्य जांच के लिए पहुंचे| उन्हें पेड़ पर बैठ कर बच्चों का स्वास्थ्य जांच करना पडा| यहाँ बैठने की कोइ जगह नहीं है| बस एक कुर्सी और फिर सारी जमीन बैठने को है ही|

झोला में कार्यालय
प्रभारे प्रधानाध्यापक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा स्कूल कार्यालय को अपने झोले में रखते हैं| पूरा कार्यालय बस झोले में है| साइकिल आवागमन का एक मात्र साधन| घर बहुत दूर नहीं इसलिए प्राय: स्कूल खोलते ही हैं, क्योंकि दावा है कि जज्बा महादलितों को पढ़ाने और इंसान बनाने का है|

नेट क्वालिफायड शिक्षक
गुल्ली बिगहा प्राथमिक स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा एनएसयुआई की मगध विश्व विद्यालय में राजनीति करते थे| वे भूगोल में गोल्ड मेडलिस्ट हैं| नेट क्वालीफाई किया था| अभी बीएपीएससी की मेंस परिक्षा दी है| कहते हैं प्रतिभा व परिश्रम के बावजूद किस्मत में अच्छी नौकरी नहीं है शायद| सरकार की नीति के कारण वे उच्च नौकरी में नहीं जा सके| फिलहाल मिशन है कि जहां हैं वहीं महादलितों को बेहतर इंसान बनाएं| 

राजनीति के गलियारे में नीति बनाम राज का चल रहा है भयानक संघर


शहर में क्या हो रहा है? कब और कहां हो रहा है? जो हो रहा है वह क्यों हो रहा है? पत्रकारिता में इस क्यों, कब, कहां से आगे बढ़ते हैं तो यह प्रश्न भी कौंधता है कि कौन? यह कौन कहां है और कौन है यह? आप पाठक जानिए। मैं बताता हूं आज राजनीति के गलियारे का वह सच, जो दिखता नहीं और जो देखते हैं वह जान बुझकर नहीं देखते हैं। अपनी सुविधा के अनुसार देखते हैं, आजाद भारत में सबको अपने तरीके से देखने की आजादी जो है। बात छोटका से करें की बड़का से, यह दुविधा है किंतु तय करने का अधिकार भी आजादी के अधिकार की तरह सुरक्षित है। राज्य के एक बड़े नेता जी आए। कुछ लोग राजनीति में लग गए। अपने स्वार्थ में अपने अनुकूल का प्रशिक्षण स्थल तय किया कराया गया। बड़का नेता जी के स्वागत में छोटका गो नेता जी माला नहीं जुटा पाए। अपने से थोड़ा बड़का के सहारे इस समस्या का समाधान कर लिया। बेचारे बड़का नेता जब खाने बैठे तो गीला भात, पतली दाल और पनछुछुर तरकारी मिला। खाना पड़ा, अन्यथा इज्जत जाती और भूखे रहना पड़ा सकता था, फिर जहां से आए थे लक्जरी गाड़ी से वापस चले गए। रास्ते में उनको खुबियां का लाई काम आया होगा। इससे पहले एक मैच हो रहा था। यहां उपस्थित में सबसे बड़े कद वाले नेताजी के बारे में दूसरे दल वाले नेता जी लोग बोले कि आप जहां है वहीं रही किंतु सक्रिय रहिए। हम सब अभी नेता विहीन महसूस कर रहे हैं। बेचारे नेता जी को कभी उन्हीं के समाज ने क्या-क्या कह कर खारिज किया था। दो-दो बार खारिज किया। स्वजातीय को जीताया और फिर स्वजातीय को पार्टी के बहाने जीताया। अब काहे नेता विहीन महसूस कर रहे हो भाई? सवाल तो उठने लगा है कि वर्तमान से मन नहीं मिल रहा है या कुछ और बात है? भूत और भूतपूर्व में इस उमड़े प्रेम का अर्थ सब कोई अपनी समझ से लगाने को स्वतंत्र है। एक पार्टी ने अपने को मजबूत करने के लिए एक युवा को बड़ा पद दिया। अब दूसरे गुट को बेचैनी हो गई। कहा गया कि कोई कुछ बना ही नहीं है और खबर छप रही है। काहे भैया? बड़का बनाम छोटका की लड़ाई कब तक जारी रहेगी
...और अंत में
डा. कर्मानंद आर्य को अपनी समझ से पढ़िए -
कविता की कचहरी में
हमारे लिखने से कई लोग
संदेह से भर गए हैं कि तुम लिखने कैसे लगे हो
कमजोर है तुम्हारी भाषा
 मटमैले हैं तुम्हारे शब्द।

Tuesday 25 April 2017

संकट में शहर का समृद्ध इकलौता पुस्तकालय

विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
28 साल से आपसी सहयोग से चल रही लाइब्रेरी
आर्थिक सहयोग के साथ पुस्तक ले जाकर पढ़े लोग
कई बार झेल चुका है विस्थापन का दर्द
शहर का इकलौता और समृद्ध महर्षि दयानंद सरस्वती पुस्तकालय आज संकट में है| मगध एजुकेशनल एंड सोशल ऑर्गनाइजेशन (मेसो) द्वारा संचालित इस पुस्तकालय की स्थापना 25 सितम्बर 1989 को किया गया था| तब से जनसहयोग से यह संचालित है| कई बार विस्थापित होने के बाद इसे नगरपालिका मार्केट की छत पर अस्थाई निर्माण की अनुमति 21 फरवरी 2007 को मिली थी। जनसहयोग और पुस्तकालय के प्रति जीवन समर्पित कर चुके गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ के कारण बडा कमरा बनाया जा सका। यहीं पुस्तकालय चल रहा है। नगर पंचायत अध्यक्ष ने खुद भूमि आवंटित करने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद उन्हें आवेदन दिया गया। अब भी सबको इंतजार है| यहां करीब 50000 से अधिक पत्रिकाए और पुस्तकें उपलब्ध हैं। सभी समाचार पत्र, सभी प्रतियोगी पुस्तकें, आवश्यक पुस्तकें छात्रों को कम शुल्क पर उपलब्ध कराया जाता है। मात्र 40 रुपये के मासिक शुल्क पर सुविधा उपलब्ध है| सैकड़ों छात्र यहाँ से अध्ययन कर सरकारी नौकरी में गए और प्रतिष्ठित जीवन जी रहे हैं|

जिन्होंने किया था स्थापित—
महर्षि दयानंद सरस्वती के मार्ग पर चलते हुए सीताराम आर्य, कृष्णा कश्यप, महेन्द्र कुमार पिंटु, अवधेश कुमार,संतोष केशरी, कृष्णा ठाकुर, मिथलेश सिंहा, लव कुमार केशरी, संजय कुमार, दिनेश कुमार उर्फ़ लालू, गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ व बीरेंद्र कुमार सोनी ने कॉमिक्स बुक से इसको प्रारम्भ किया था|

बुद्धिजीवी जुड़ें-गोस्वामी

पुस्तकालय के सर्वेसर्वा गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ बताते हैं कि आर्थिक सहयोग करने वालों की आवशयकता है| बुद्धिजीवी जुड़ें| साथ ही ऐसे लोग चाहिए जो यहाँ से किताब ले जाकर पढ़ें| नियमित मासिक शुल्क देने वाले सदस्य बनें| इस महीने पुस्तकाले घाटे में है| सदस्य नियमित आयें और मासिक शुल्क जमा करें|

छात्राओं के लिए है रौशनी

पुस्तकालय के स्थापना सदस्य अवधेश कुमार व संतोष केशरी ने कहा कि छात्रों के लिए यह एक रौशनी है| शराबबंदी के बाद पुस्तकालय स्थल का माहौल बदल गया है| वे आयें, जुड़ें और लाभ उठायें| सुबह शाम यहाँ अध्ययन कर अपना कैरियर बनाएं| यह बौद्धिक ज्ञान का केंद्र है| कम खर्च पर पठान-पाठन कर गरीब विद्यार्थी सफल हो सकते हैं| सरकारे उपेक्षा के कारण स्थिति ठीक नहीं है| 

Sunday 23 April 2017

चाचु, भैया, आओ चलें दहेज़ रहित विवाह समारोह घुम आयें


बड़े साहब ने कहा है कि जिस विवाह में दहेज़ लिया-दिया जा रहा हो, उसमें शामिल न हों| हमरा प्रदेश में तो पहिले से ही शराबबंदी है तो शादी समारोह सादा होने लगा है| नागिन डांस अब नहीं दिखता| इसके कारण मजा ही नहीं आता| कभी कभी डीजे बंद से परेशानी होती है| नोटबंदी ने अलग से रौनक छीन रखी है| अब साहब ने ऐलान किया है कि दहेज वाले शादी के समारोह में न जाएँ| दहेज़ ऐसा पाप है ही| जब उनको कई बार पढ़ा तो याद आ गए महावीर प्रसाद मधुप| उन्होंने लिखा है-
क्रूर आज बनकर मानव ने मानवता को किया विकल।
इस दहेज के दानव ने सारे समाज को दिया कुचल।।
जिस गृहस्थ-आश्रम की गरिमा को वेदों ने गाया है|
संयम, नियम, साधना का सन्मार्ग जिसे बतलाया है|
उस पावन थल को दहेज ने बना दिया है वधशाला|
होली सब आदर्शों की घर-घर में आज रही है जल।
इस दहेज के दानव ने सारे समाज को दिया है कुचल।।
अब तो दहेज़ का दानव इस वर्णन से भी विशाल हो गया है| खराब हो गया है| मुझे लगा कि शहर में लगन के समय खूब शादियाँ हो रहीं है, तो क्यों न कुछ समारोह घूम आयें| घुमने निकला तो याद आया अपनी जवानी से पहले के दिन| कैसे विवाह नहीं हो रहा था तो मित्रमंडली में चर्चा करते थे- यार इस बार लड़की की शादी अधिक हुई कि, लडके की? आज फिर उसी तरह बड़े नेता जी के प्रवचन के बाद से उलझ गया हूँ| यह कैसे तय करें की किस दुल्हे के बाप ने शादी में तिलक ली या तिलक नहीं ली? यह कैसे तय करें कि किसे बेटी के बाप ने तिलक दिया या नहीं दिया? मित्र ने सुझाया कि जहां खूब खर्च होता दिखे समझ लेना तिलक लेन देन हुआ है| जहां कम खर्च होता दिखे, सुविधाएं कम दिखे समझ लें कि तिलक रहित विवाह है| दूसरे मित्र ने बोला- यह कैसे तय होगा कि जो अमीर है वह अधिक खर्च कर रहा होगा, जो गरीब है वह कम खर्च कर रहा होगा| इससे तो यह स्पष्ट नहीं होगा कि उपलब्ध सुविधा या फोकस तिलक से प्रभावित है| पैसे जिसके पासा जितने हैं उस मुताबिक़ खर्च करता है| कदम लडखडाये| बिना पैक मारे ही दिमाग को झटका लगा| बात तो सही है| गरीब आदमी कम खर्च करेगा और अमीर अधिक| किसी कार्ड पर यह नहीं लिखा होता है कि शादी में तिलक लिया गया है या नहीं| आम जन के लिए यह तय करना मुश्किल है|
और अंत में------
 सामूहिक रणनीति बनी कि हम अपने सबसे बड़े वाले मुखिया को पत्र लिखे और मांग करें कि-हर शादी कार्ड पर यह घोषणा करना अनिवार्य बना दें कि शादी में दहेज़ लिया गया है या नहीं| मित्र बोला-तब तो हर कार्ड पर लिखा होगा-दहेज़ रहित शादी| अरे यार, यह सरकार समझे-हम तो फंसने से बच जायेंगे| सरकार किस रास्ते जा रही है ????


Monday 17 April 2017

भूखे भजन कैसे करें स्वतंत्रता सेनानी की विधवा शान्ति देवी


फोटो-अपने पति मंत्री रहे राम नरेश सिंह के
चित्र के साथ उनकी विधवा शान्ति देवी
सम्मान बनाम राजनीति -------
सम्मान वास्तविक है या सिर्फ राजनीति?
साल 1980 से मिलता था स्वतंत्रता सेनानी पेंशन 
अचानक अक्टूबर 2015 से पेंशन मिलना हुआ बंद
रुपये 24000 के पेंशन से चलता था घर-परिवार
सोमवार को जब राष्ट्रपति महोदय पटना में देश भर के स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित कर रहे थे तो यहाँ शान्ति देवी इसमें शामिल न हो सकने की पीड़ा व कसक झेल रही थीं| यह पीड़ा जायज और व्यवस्था जनित है| इनके पुत्र संजय कुमार सिंह ने पूछ है कि क्या क्या सच में स्वतंत्रता सेनानी या उनके आश्रित के प्रति सरकार गंभीर है या सिर्फ राजनीति हो रही है? यह बड़ी बात है| आदमी जब व्यवस्थागत कमियों का शिकार होता है तो निराशा और आक्रोश जन्मता है|
85 वर्ष की शान्ति देवी जिस स्थिति की कल्पना कभी नहीं की होंगी वैसी झेल रही हैं| वह पूर्व मंत्री स्वतंत्रता सेनानी राम नरेश सिंह की विधवा हैं| वे 1952 में विधायक और 1967 में स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं| समारोह में न जाने की वजह अस्वस्थता है और अस्वस्थ होने की वजह है 1980 से मिल रहे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन का अचानक अक्टूबर 2015 से बंद हो जाना| करीब 24 हजार प्राप्त होता था जिससे घर के कई काम हो जाते थे| इनके पुत्र कौंग्रेस नेता और साक्षर भारत के समन्वयक संजय कुमार सिंह मौलाबाग में अपनी माँ व अन्य परिवार के साथ रहते हैं| इन्होने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने मौखिक रूप से यह कह कर पेंशन बंद कर दिया कि भारत सरकार के आदेशानुसार यह कदम उठाया गया है| इस मामले में कई जगह वे पात्र लिख चुके हैं| पर अभी तक संतोषजनक जवाब नही दिया। पूछ- क्या इस समस्या का समाधान होगा? क्या बिहार सरकार प्रयास करेगी या न्यायालय का सहारा लेने को विवश होना पडेगा?

नेता ऐस करे आउ हमनी के पेंशन बंद-शान्ति देवी 
शान्ति देवी गुस्से में हैं| निराश, हताश और अस्वस्थ| बोली-जीवन ठहर सा गया है| इस उम्र में को चिंता ने घेर लिया जब स्वतंत्रता सेनानी परिवारिक सम्मान पेंशन बंद हो गया| तवियत अचानक खराब हो गई थी। कहती हैं- देश के आजादी दिलावे में लोग अपन घर बार छोड के केतना कष्ट उठयलन, बिना खैले-पीले जंगले-जंगले मारल चललन, जेलो गेलन, एहनिए के चलते आजादी मिलल। बाद में जब अपन सरकार हो गेल तो एकर इनाम मिलइत हल घर परिवार भी अच्छा से चलईत हल पोता-पोती पढईत हल, दवा, फल, दूध, दही सब खाइत हली लेकिन एकबैक बंद हो गेला से हमहूँ अस्वस्थ हो गेली| एही के चलते नीतीश बाबू के स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समारोह में भी पटना न गेली। लगइत हे कि अब ईमानदारी के जमाना न रह गेल आजादी मिलला के बाद सब लोग संसद मे बैठ के ऐस करइत हथ और आजादी दिलावे वाला के पेंशन भी बंद कर देइत हथ।

कौन थे रामनरेश बाबू?
स्व.रामनरेश सिंह का जन्म गोह प्रखण्ड के बुधई खुर्द गांव में हुआ था| कर्म भूमि दाउदनगर रहा था| यहां उनके नाम पर एक भी संस्था नही है| स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेजी हुकूमत की खिलाफत करने के कारण 1930 व 1934 में जेल गए थे| 1942 में ब्रिटिश सरकार ने इनके गिरफ्तारी के लिए 5000 रूपए का इनाम घोषित कर दिया। गिरफ्तारी हुई लेकिन बाद में अंग्रेज पदाधिकारी मिस्टर आईक की छोटी चुक के कारण जेल से भाग निकले। सन 1943 में आॅल इण्डिया डिफेंस एक्ट नजरबंदी कानून के तहत गिरफ्तार कर गया के सेंट्रल जेल के 14 नम्बर सेल में रखे गए| जेल से भागने तथा गुप्त रूप से आंदोलन का नेतृत्व करने का आरोप लगा कई  मुकदमे लाद दिए गए फलत: आजादी के बाद ही रिहा हो सके। 1952 का प्रथम आम चुनाव मे दाउदनगर विधानसभा से चुनाव जीत कर बिधायक बने और 1967 में बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बने। 1978 मे लम्बी बिमारी के वजह से उनकी मौत हो गयी।

घर पर स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित हुए सम्मानित
फोटो-स्वतंत्रता सेनानी राम नरेश सिंह
की पत्नी को सम्मानित करतेअधिकारी

जिला में छ: को घर पर मिला सम्मान
एक की मृत्यू के कारण नहीं मिला किट 
 गोह के बुधई खुर्द निवासी स्वतंत्रता सेनानी स्व.रामनरेश सिंह की पत्नी शान्ति देवी को यहाँ मौलाबाग स्थित सूर्य मंदिर के समीप उनके आवास पर सम्मानित किया गया| लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी तेजनारायण राय ने उन्हें सम्मानित किया| चंपारण सत्याग्रह शताब्दी स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समारोह में शामिल होने जो पटना नहीं जा सके थे उन्हें उनके घर पर सम्मानित किया गया| इसी कड़ी में शान्ति देवी भी शामिल हैं| उनके साथ उनके पुत्र संजय कुमार सिंह उपस्थित रहे| यह सम्मान एसडीओ राकेश कुमार को देने का दायित्व सौंपा गया था किन्तु उनकी अनुपस्थिति में श्री राय ने उन्हें यह सम्मान दिया| साथ लाया हुआ किट सम्मान स्वरूप दिया| बताया गया कि जिला में ऐसे कुल छ: स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित थे जो पटना सम्मान समारोह में शामिल होने नहीं जा सके| इन सबको उनके घर जाकर वरिष्ठ पदाधिकारी द्वारा सम्मानित किया गया| किन्तु दाउदनगर प्रखंड के बाबू अमौना निवासी रामानंद शर्मा को यह सम्मान नहीं मिल सका, क्योंकि वे अब जीवित नहीं हैं, न ही कोइ आश्रित है| गोह के ही बुधई खुर्द में स्व.जगदीप द्विवेदी की विधवा लक्ष्मी देवी को भी उनके घर पर श्री राय ने सम्मानित किया| इनके अलावा औरंगाबाद के न्यू एरिया निवासी स्व.कैलाश सिंह के पुत्र अवधेश कुमार, जयप्रकाश नगर निवासी स्व.सरजू सिंह की पत्नी राजकुमारी देवी को एसडीओ सुरेन्द्र प्रसाद ने सम्मानित किया| मदनपुर के पिपरौरा निवासी स्व.केशव प्रसाद सिंह की पत्नी दलकेशरी देवी को जिला अल्प संख्यक कल्याण पदाधिकारी अशोक कुमार दास ने सम्मानित किया|    

यह कैसी शताब्दी, न रंग रोगन न सौन्दर्यीकरण !
प्रखंड कार्यालय परिसर स्थित गांधी स्मारक 

शताब्दी मना रही सरकार 
किन्तु स्मारक उपेक्षित
राज्य सरकार चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह मना रही है| इसकी प्रशंसा हो रही है| इस सन्दर्भ का एक दूसरा पहलू भी है| दाउदनगर प्रखंड सह अंचल कार्यालय परिसर में गांधी बाबा खड़े हैं, उपेक्षित, बिना रंग-रोगन के| इनका कभी सौन्दर्यीकरण भी नहीं हुआ| यहीं प्रखंड स्तर के सभी अधिकरी बैठते हैं| इस पर कभी प्रखंड के स्वतंत्रता सेनानी के नाम अंकित हुआ करते थे| अब ये दीखते भी नहीं हैं| वर्त्तमान पीढ़ी को यह स्मारक स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के नाम बताने वाला एक मात्र सार्वजनिक स्थल हुआ करता था| अब भी यही है, किन्तु अब यह नाम बताने में सक्षम नहीं है| अधिकारी बैठते हैं देखते हैं किन्तु कभी किसी के जेहन में इसके उद्धार का ख्याल नहीं आता| गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर कभी-कभार  चुना कर दिया जाता है| इससे अंकित नाम दिखने बंद हो गये| इसी परिसर में अनुमंडल के आला अधिकारी भी रहते हैं| इसके बावजूद इस स्मारक की उपेक्षा समझ में नहीं आते| सूत्रों के नुसार शताब्दी समारोह मना रही सरकार ने भी ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है कि गांधी स्मारकों को सजाना है या रंग रोगन करना है या नहीं|

Sunday 9 April 2017

..पैसे से भरता है पेट, किंतु भूख है कि जाती नहीं

बेटे ने सवाल किया-पापा हम खाना क्यों खाते हैं? जबाब मिला-पेट भरने के लिए| फिर पूछा –दाल, भात, रोटी से ही पेट क्यों भरता है? खाने को तो कुछ भी खाया जा सकता है? हम परिश्रम करेंगे और समान लाकर बनायेंगे तब खायेंगे| पापा इससे बेहतर आइडिया तो मेरे पास है| पिता चौंका! क्या आइडिया है? सब चीज तो हम खरीदते ही हैं तो क्यों नही पैसे ही खा लें? पेट भी भर जाएगा और परिश्रम भी नहीं करना पडेगा| आइडिया ने सर चकरा दिया| क्या वास्तव में गेहू से पेट भरता है? भरा जा सकता है? गेंहू से पेट भरता तो गरीब मरते क्यों? देश इतना उत्पादन तो कर ही लेता है कि हर भारतीय का पेट भरा जा सके| और घटने पर बाहर देश से मंगाने में सक्षम भी है भारत| फिर समस्या क्या है? भूखे क्यों मरते है लोग| क्या वास्तव में भूख से मौत होती भी है? जिला प्रशासन ऐसा कभी नहीं मानता| जब भी कोइ भूख से मरता है, बवाल होता है और हर भूख के पीछे बीमारी से मौत की ही रिपोर्ट आती है| सरकारी हकीकत भी यही है कि कोइ व्यक्ति भूख से नहीं मरता बल्कि मौत बीमारी से ही होती है| वह बीमारी है गरीबों के गेंहू चावल को उन तक पहुँचने नहीं देने की| खाना उपलब्ध नहीं होने के कारण आदमी भूखे रहता है| इससे वह कमजोर होता है और फिर मर जाता है| दरअसल बीच में ही सब खा जाते हैं वह भी मिल बाँट कर, क्योंकि ऐसा आदर्श रिवाज गरीब और भूखे लोग नहीं निभा सकते, ऐसे हर व्यक्ति की अपनी जरुरत पहाड़ जैसी बना दी गयी है, इसलिए ऊँचे सक्षम लोग खाने का कष्ट भी उन्हें नहीं देना चाहते| आप पांच ट्रक पकड़ लो गेंहू या पचास ट्रक, उससे क्या होगा? गेंहू का काम है पेट भरना| वह पेट ही भरेगी चाहे खड़े साबुत दाना चबाने से पेट भरे या चक्की में पिस कर आटा बन कर या बाजार में बिक कर पैसे से पेट भरे| अब तो खाद्यान से अधिक पेट पैसे से भरते हैं| हालांकि मनुष्य उस ऊँचाई तक पहुँच गया है जहां पहुँचाने के बाद पेट भरता ही नहीं है| खाद्यान तो तब भी अधिक खा लेने से अपच करा देता है किन्तु पैसे चाहे जितने खाओ, वह अपच नही होने देता| इतना स्वास्थ्य अनुकूल और सुपाच्य है पैसा| सो, यह तय है कि गेंहू के हिस्सेदार कई साहबान हैं| सबके पेट भरेंगे ही, अन्य भूखे साहबानों के पेट भी अब भरेंगे पैसे| मील बंद होगा तो फिर गरीब ही मरेंगे| इस पैसे वाले हमाम में जितने नंगे खड़े थे सब साथ होंगे और साहबों के उपरी लेयर को बचायेंगे, छुटके के सर मुडायेंगे| देखना, बाबा पैसे से पेट भरने के दौर में गेंहू अपच करता रहेगा|

अंत में  –
अभी है चंद लोग यहाँ  जो जिंदा है जमीर से
कब तक भला ये भरम,  यूँ ही  पाला जायेगा
कब तक पेट की आग में पानी डाला जायेगा 
जाने  कब भूखों  के  मुंह,  निवाला  जायेगा ||