Monday 17 April 2017

भूखे भजन कैसे करें स्वतंत्रता सेनानी की विधवा शान्ति देवी


फोटो-अपने पति मंत्री रहे राम नरेश सिंह के
चित्र के साथ उनकी विधवा शान्ति देवी
सम्मान बनाम राजनीति -------
सम्मान वास्तविक है या सिर्फ राजनीति?
साल 1980 से मिलता था स्वतंत्रता सेनानी पेंशन 
अचानक अक्टूबर 2015 से पेंशन मिलना हुआ बंद
रुपये 24000 के पेंशन से चलता था घर-परिवार
सोमवार को जब राष्ट्रपति महोदय पटना में देश भर के स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित कर रहे थे तो यहाँ शान्ति देवी इसमें शामिल न हो सकने की पीड़ा व कसक झेल रही थीं| यह पीड़ा जायज और व्यवस्था जनित है| इनके पुत्र संजय कुमार सिंह ने पूछ है कि क्या क्या सच में स्वतंत्रता सेनानी या उनके आश्रित के प्रति सरकार गंभीर है या सिर्फ राजनीति हो रही है? यह बड़ी बात है| आदमी जब व्यवस्थागत कमियों का शिकार होता है तो निराशा और आक्रोश जन्मता है|
85 वर्ष की शान्ति देवी जिस स्थिति की कल्पना कभी नहीं की होंगी वैसी झेल रही हैं| वह पूर्व मंत्री स्वतंत्रता सेनानी राम नरेश सिंह की विधवा हैं| वे 1952 में विधायक और 1967 में स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं| समारोह में न जाने की वजह अस्वस्थता है और अस्वस्थ होने की वजह है 1980 से मिल रहे स्वतंत्रता सेनानी पेंशन का अचानक अक्टूबर 2015 से बंद हो जाना| करीब 24 हजार प्राप्त होता था जिससे घर के कई काम हो जाते थे| इनके पुत्र कौंग्रेस नेता और साक्षर भारत के समन्वयक संजय कुमार सिंह मौलाबाग में अपनी माँ व अन्य परिवार के साथ रहते हैं| इन्होने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने मौखिक रूप से यह कह कर पेंशन बंद कर दिया कि भारत सरकार के आदेशानुसार यह कदम उठाया गया है| इस मामले में कई जगह वे पात्र लिख चुके हैं| पर अभी तक संतोषजनक जवाब नही दिया। पूछ- क्या इस समस्या का समाधान होगा? क्या बिहार सरकार प्रयास करेगी या न्यायालय का सहारा लेने को विवश होना पडेगा?

नेता ऐस करे आउ हमनी के पेंशन बंद-शान्ति देवी 
शान्ति देवी गुस्से में हैं| निराश, हताश और अस्वस्थ| बोली-जीवन ठहर सा गया है| इस उम्र में को चिंता ने घेर लिया जब स्वतंत्रता सेनानी परिवारिक सम्मान पेंशन बंद हो गया| तवियत अचानक खराब हो गई थी। कहती हैं- देश के आजादी दिलावे में लोग अपन घर बार छोड के केतना कष्ट उठयलन, बिना खैले-पीले जंगले-जंगले मारल चललन, जेलो गेलन, एहनिए के चलते आजादी मिलल। बाद में जब अपन सरकार हो गेल तो एकर इनाम मिलइत हल घर परिवार भी अच्छा से चलईत हल पोता-पोती पढईत हल, दवा, फल, दूध, दही सब खाइत हली लेकिन एकबैक बंद हो गेला से हमहूँ अस्वस्थ हो गेली| एही के चलते नीतीश बाबू के स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समारोह में भी पटना न गेली। लगइत हे कि अब ईमानदारी के जमाना न रह गेल आजादी मिलला के बाद सब लोग संसद मे बैठ के ऐस करइत हथ और आजादी दिलावे वाला के पेंशन भी बंद कर देइत हथ।

कौन थे रामनरेश बाबू?
स्व.रामनरेश सिंह का जन्म गोह प्रखण्ड के बुधई खुर्द गांव में हुआ था| कर्म भूमि दाउदनगर रहा था| यहां उनके नाम पर एक भी संस्था नही है| स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेजी हुकूमत की खिलाफत करने के कारण 1930 व 1934 में जेल गए थे| 1942 में ब्रिटिश सरकार ने इनके गिरफ्तारी के लिए 5000 रूपए का इनाम घोषित कर दिया। गिरफ्तारी हुई लेकिन बाद में अंग्रेज पदाधिकारी मिस्टर आईक की छोटी चुक के कारण जेल से भाग निकले। सन 1943 में आॅल इण्डिया डिफेंस एक्ट नजरबंदी कानून के तहत गिरफ्तार कर गया के सेंट्रल जेल के 14 नम्बर सेल में रखे गए| जेल से भागने तथा गुप्त रूप से आंदोलन का नेतृत्व करने का आरोप लगा कई  मुकदमे लाद दिए गए फलत: आजादी के बाद ही रिहा हो सके। 1952 का प्रथम आम चुनाव मे दाउदनगर विधानसभा से चुनाव जीत कर बिधायक बने और 1967 में बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बने। 1978 मे लम्बी बिमारी के वजह से उनकी मौत हो गयी।

घर पर स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित हुए सम्मानित
फोटो-स्वतंत्रता सेनानी राम नरेश सिंह
की पत्नी को सम्मानित करतेअधिकारी

जिला में छ: को घर पर मिला सम्मान
एक की मृत्यू के कारण नहीं मिला किट 
 गोह के बुधई खुर्द निवासी स्वतंत्रता सेनानी स्व.रामनरेश सिंह की पत्नी शान्ति देवी को यहाँ मौलाबाग स्थित सूर्य मंदिर के समीप उनके आवास पर सम्मानित किया गया| लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी तेजनारायण राय ने उन्हें सम्मानित किया| चंपारण सत्याग्रह शताब्दी स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समारोह में शामिल होने जो पटना नहीं जा सके थे उन्हें उनके घर पर सम्मानित किया गया| इसी कड़ी में शान्ति देवी भी शामिल हैं| उनके साथ उनके पुत्र संजय कुमार सिंह उपस्थित रहे| यह सम्मान एसडीओ राकेश कुमार को देने का दायित्व सौंपा गया था किन्तु उनकी अनुपस्थिति में श्री राय ने उन्हें यह सम्मान दिया| साथ लाया हुआ किट सम्मान स्वरूप दिया| बताया गया कि जिला में ऐसे कुल छ: स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित थे जो पटना सम्मान समारोह में शामिल होने नहीं जा सके| इन सबको उनके घर जाकर वरिष्ठ पदाधिकारी द्वारा सम्मानित किया गया| किन्तु दाउदनगर प्रखंड के बाबू अमौना निवासी रामानंद शर्मा को यह सम्मान नहीं मिल सका, क्योंकि वे अब जीवित नहीं हैं, न ही कोइ आश्रित है| गोह के ही बुधई खुर्द में स्व.जगदीप द्विवेदी की विधवा लक्ष्मी देवी को भी उनके घर पर श्री राय ने सम्मानित किया| इनके अलावा औरंगाबाद के न्यू एरिया निवासी स्व.कैलाश सिंह के पुत्र अवधेश कुमार, जयप्रकाश नगर निवासी स्व.सरजू सिंह की पत्नी राजकुमारी देवी को एसडीओ सुरेन्द्र प्रसाद ने सम्मानित किया| मदनपुर के पिपरौरा निवासी स्व.केशव प्रसाद सिंह की पत्नी दलकेशरी देवी को जिला अल्प संख्यक कल्याण पदाधिकारी अशोक कुमार दास ने सम्मानित किया|    

यह कैसी शताब्दी, न रंग रोगन न सौन्दर्यीकरण !
प्रखंड कार्यालय परिसर स्थित गांधी स्मारक 

शताब्दी मना रही सरकार 
किन्तु स्मारक उपेक्षित
राज्य सरकार चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह मना रही है| इसकी प्रशंसा हो रही है| इस सन्दर्भ का एक दूसरा पहलू भी है| दाउदनगर प्रखंड सह अंचल कार्यालय परिसर में गांधी बाबा खड़े हैं, उपेक्षित, बिना रंग-रोगन के| इनका कभी सौन्दर्यीकरण भी नहीं हुआ| यहीं प्रखंड स्तर के सभी अधिकरी बैठते हैं| इस पर कभी प्रखंड के स्वतंत्रता सेनानी के नाम अंकित हुआ करते थे| अब ये दीखते भी नहीं हैं| वर्त्तमान पीढ़ी को यह स्मारक स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के नाम बताने वाला एक मात्र सार्वजनिक स्थल हुआ करता था| अब भी यही है, किन्तु अब यह नाम बताने में सक्षम नहीं है| अधिकारी बैठते हैं देखते हैं किन्तु कभी किसी के जेहन में इसके उद्धार का ख्याल नहीं आता| गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर कभी-कभार  चुना कर दिया जाता है| इससे अंकित नाम दिखने बंद हो गये| इसी परिसर में अनुमंडल के आला अधिकारी भी रहते हैं| इसके बावजूद इस स्मारक की उपेक्षा समझ में नहीं आते| सूत्रों के नुसार शताब्दी समारोह मना रही सरकार ने भी ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है कि गांधी स्मारकों को सजाना है या रंग रोगन करना है या नहीं|

2 comments:

  1. सच मे यह सोचकर बहुत ही अचम्भा होता है कि सरकार की क्या सोच रही होगी कि उसने क्या सोचकर सेनानियों की विधवाओं के बृद्धा पेंसन बंद की होगी।इस सोच को तहे दिल से सलाम कहु की क्या कहूँ।
    खेलों में एक मैडल जीतकर आने वाले को सरकार करोड़ों रुपये दे देती है। हम ऐसा नहीं कहते कि उन्हें सम्मान न दो, दो लेकिन देश के लिए अपने जीवन की बहुमूल्य जवानी रूपी दौलत को जेलों में या फिर लड़ाई के मैदान में गुजारने वाले ओर समाज की बहूमुखी विकास की ओर ले जाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के बारे में भी सरकार को सोचना चाहिए। 15 अगस्त या फिर 26 जनवरी को उन्हें सम्मानित करने के लिए कुछ दिन पहले या तो कोई संदेशा देने आता है, या फिर एक डाक आती है।वे वहां जैसे-तैसे पहुंचते हैं, वहां पर उन्हें उनके शहीद परिजनों की आजादी से पहले के कार्यकाल के लिए शॉल या चादर रुपी सम्मान दिया जाता है। इतना ही नहीं उस चादर रूपी सम्मान को हासिल करने के लिए उस बेचारी विधवाओ को खुद अपने स्तर पर गाड़ी करके जानी पड़ती है। न प्रशासन उस गाड़ी में डलने वाले पेट्रोल का खर्चा देता है, न गाड़ी को लेकर जाने के लिए लगने वाले किराये का।और अगर कोई अस्वस्थ है तो वह कैसे जाए सम्मान समारोह में। ऐसे में कई बार तो उस विधवाओ को भी लगता होगा कि 'यह कैसा सम्मान'। स्वतंत्रता सेनानी श्री राम नरेश जी की अस्वस्थ 85 वर्षिय पत्नी शांति देवी के अनुसार उनके पति ने अपना तन, मन, धन देश के लिए अर्पित किया। लड़ाई के दौरान स्थिती ऐसी थी कि राशन नहीं पहुंचता था, बमबारी के दौरान कई बार वृक्षों के पत्ते तक खाकर अपने आप को जीवित रखा। लेकिन आजादी के बाद या कहिये उनके पति राम नरेश जी के मरने के बाद जो मिल रहा था, वह संतोषजनक नहीं था।" उन्होंने कहा कि "हमने अपने पोते-पोतियों को लोन इत्यादि लेकर पढ़ाई करवाई, लेकिन किसी को नौकरी नहीं मिली।
    लेकिन 2015 में पेंसन बंद होने के बाद (ओ भी बिना कारण के) जो अब्यवस्था उनको मिल रहा है, वह बिल्कुल भी सही नहीं है।" सरकार को चाहिए कि वे उनके परिवारजनों के लिए भी कुछ करें।

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