Monday 25 March 2019

करीब 05 वर्ष महंत रहे थे विराट व्यक्तित्व और ज्ञान के धनी अखिलेश्वरानन्द पुरी

देवकुंड विवाद से सम्बद्ध चौथी और अभी तक ह्त्या की आख़िरी घटना थी वह
अब कन्हैयानन्द पुरी के नेतृत्व में शान्ति व विकास का नया अध्याय लिख रहा
० उपेंद्र कश्यप ०
03 मार्च को देवकुंड महंत रहे अखिलेश्वरानंद पुरी की पुण्यतिथि है। उनकी ह्त्या वर्ष 2010 में इसी दिन की गयी थी। वे वर्ष 2005 में देवकुंड मंदिर/ मठ के महंत बन कर आये थे। उनकी ह्त्या के बाद 14 मार्च 2010 को इनके पुत्र कन्हैयानंद पुरी ने महंथी की गद्दी संभाली। अखिलेश्वरानन्द पुरी की देवकुंड विवाद से सम्बद्ध चौथी और अभी तक ह्त्या की आख़िरी घटना थी। इनके पूर्व 1974 से महंत रहे स्वामी केदारनाथ पुरी की ह्त्या 1990 में की गयी थी, यह भूमि विवाद को लेकर नक्सल आन्दोलन और जातीय हिंसा के उभार से बनी परिस्थिति के बीच पहली ह्त्या थी। इसके बाद मैनेजर राम दहीन सिंह की हत्या 1991 में की गयी। वर्ष 1995 में मठ के बराहिल रहे कृष्णा राम की ह्त्या की गई थी। अभी महंत अखिलेश्वरानन्द पुरी की नौवीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है। इनके पुत्र महंत कन्हैयानन्द पुरी की एक बात की दाद देनी होगी कि इनकी गद्दी संभालने के बाद के नौ वर्षों में ह्त्या या मारपीट की बड़ी घटना नहीं घटी है। यह इस तथ्य के सन्दर्भ में अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनकी गद्दी संभालने के साथ उनकी ह्त्या किये जाने की आशंका प्रबल थी। उनके महंत बनने का विरोध भी हो रहा था। लेकिन पिता के उलट पुत्र ने ऐसी रणनीति बनाया कि देवकुंड में शान्ति स्थापित हो गयी। फिलहाल यही स्थिति है कि देवकुंड शान्ति और विकास का नया अध्याय कन्हैयानन्द पुरी के नेतृत्व में लिख रहा है।
पिता के चित्र पर पुष्पांजली करते कन्हैयानन्द पुरी (फोटो-आशुतोष मिश्रा)

अब बात उनकी जिनकी है पुण्यतिथि:-
अखिलेश्वरनन्द पुरी से मेरा कई बार मिलना हुआ, ख़ास कर दाउदनगर के डीएवी पब्लिक स्कूल में और कुमार ब्रदर्स पेट्रोल पंप पर उनके आगमन के समय। विद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य श्री डॉ.आरके दूबे उन्हें प्राय: स्वतंत्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस पर आमंत्रित करते थे। वे आते और उनके संबोधन सुनने और उनसे बातचीत करने का अवसर मिलता। कुमार ब्रदर्स पेट्रोल पंप पर श्री अंजनी कुमार प्रसाद सिंह और उनके पुत्र बब्लू जी उनको खूब प्यार करते थे। जब भी मिलना होता भारतीय अध्यात्म और संस्कृति पर व्यापक चर्चा होती। उनके संबोधन में जो ओजस्विता दिखती थी, वह काबिल-ए-तारीफ़ थी। अध्यात्म और संस्कृति पर उनका व्यापक ज्ञान था। उनको सुनते वक्त लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।  

Thursday 21 March 2019

सत्ता-व्यवस्था जनित भ्रस्टाचार के कुआं ने ली पांच बच्चों की जान


दोष न बच्चों का न नहर का, दोष सिस्टम का है जनाब

उपेन्द्र कश्यप
दाउदनगर में सन्नाटा है। गम है, गुस्सा है। आखिर पांच बच्चों की मौत नहर में डूबने से जो हो गई। सारे शहर में शोक की लहर है। हर मुहल्ला आहत, मर्माहत है। हर परिवार दुखी है। नहर में डूबने से मौत जितनी त्रासद है उससे अधिक त्रासदी सत्ता-व्यवस्था की कार्यशैली है। सच तो यह है कि बच्चों की मौत नहर में डूबने से नहीं, बल्कि सत्ता-व्यवस्था जनित भ्रस्टाचार से हुई है। नहर में पानी नहीं है, फिर बच्चे हैं, होली है तो मस्ती कर रहे थे। इसमें बाल सुलभ चंचलता या थोड़ा मजा ले लेने की प्रवृति का भला क्या दोष?

मेरा नजरिया अलग है। और यह कहने की धृष्टता कर रहा हूँ कि नहर में बह रहे पानी से इन बच्चों की मौत नहीं हुई है, बल्कि भ्रस्ट व्यवस्था से उस नहर की सतह में जो कुआं बना दिया गया था, वास्तव में उसी कुआं में डूबने से मौत हुई है। यह कुआं खोदा था और खुदवाया भी था, सत्ता-व्यवस्था के भ्रस्टाचार ने। सड़क बनाने और पुल निर्माण के लिए इस नहर में कई जगह गड्ढे खोद कर मिट्टी निकाल लिए और दूसरों को मरने के लिए छोड़ दिया। न गड्ढे भरे गए न ही वहां इस आशय की सूचना देने वाला बोर्ड टांगा गया था। कानून को कई बार तोड़ा गया, कई जगह तोड़ा गया। कोई देखने वाला नहीं। भारत है, भेड़चाल वाली व्यवस्था है। यहां सब चलता है। बस ऐसे ही, यूं ही। सब कुछ चलते रहता है। इसे बदलना होगा, यदि और भ्रस्टाचार जनित जनसंहार रोकना चाहते हैं। अन्यथा फिर, फिर ऐसे नरसंहार होते रहेंगे। परिवार और घर उजड़ते रहेंगे।।

कोई जवाब सत्ता या व्यवस्था दे सकता है क्या कि यह कुआं आखिर क्यों, कैसे, कब और किसने किस कारण से बनाया था? जवाब पुरी व्यवस्था जानती है, किन्तु यकीन मानिए कोई नहीं देगा। सब बचने की कोशिश करना तो छोड़िए, इस मुद्दे पर न चर्चा करेंगे, न ही इसका संज्ञान लेंगे, न ही जिम्मेदारों की पहचान कर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होने जा रही है।
मेरी सलाह है, पीड़ित परिवार या कोई सामाजिक कार्यकर्ता (वास्तविक, दलाल नहीं जो सत्ता और व्यवस्था से मलाई खाते हैं और स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता है) उच्च न्यायालय में पीआईएल दाखिल करे और नहर में जेसीबी से गड्ढा खोदने वालों, खुदवाने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलना चाहिए। यह घटना नहीं है, नरसंहार है, जो व्यवस्थाजनित भ्रस्टाचार के हथियार से अंजाम दिया गया है। क्या कोई भी यह मान सकता है कि नहर में गड्ढा नहीं होता तो इन मासूमों की जान जाती? हकीकत यही है कि नहर में जेसीबी द्वारा खोदे गए गड्ढे से बच्चों की जान गई। और इस काम को अंजाम देने, दिलाने वालों के खिलाफ यदि कार्रवाई नहीं होती है, न्यायपालिका न्याय नहीं करेगी तो ऐसे नरसंहार होते रहेंगे। न्यायालय तो स्वतः संज्ञान भी ले सकता है।
अब इस नरसंहार को लेकर आगे क्या कार्रवाई होगी, या नहीं होगी, यह सवाल भी जिंदा बचा रहेगा या इसकी अकाल मौत होगी? मैं नहीं जानता। इतना जानता हूँ कि कोई नेता और तथाकथित स्वयंभू समाजसेवी इस मुद्दे को नहीं उठाएंगे।

Monday 18 March 2019

प्रत्याशी के नाम को लेकर रोज अटकलबाजी, किसी नाम पर अंतिम मुहर नहीं


सबके अपने दावे, अपने समीकरण
कई भावी प्रत्याशी घूम रहे क्षेत्र
आधिकारिक पुष्टि की प्रतीक्षा –महाबली
० उपेंद्र कश्यप० 
काराकाटलोकसभा क्षेत्र नया चुनाव क्षेत्रहै। मात्र तीसरे चुनाव के लिए इस नाम वाले इलाके में रणभेरी बजी है। सांसद चुनना है। जनता इस प्रतीक्षा में है कि किस पार्टी या गठबंधन से कौन प्रत्याशी होगा। चर्चा में रोज एक नया नाम आता-जाता है। रविवार को लगा कि एनडीए के किसी दल द्वारा किसी नाम पर अंतिम मुहर लग जायेगी। ऐसा नहीं हुआ। दो दिन से कई नाम सोशल मीडिया और चौक चौराहों पर चर्चा में रहे। रालोसपा में जो कुछ चला और जिस तरह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष क्षेत्रीय सांसद उपेन्द्र कुशवाहा के खिलाफ नागमणि ने बगावती तेवर दिखाया और कहा कि काराकाट हो या उजियारपुर, उपेन्द्र को वे हराएंगे, तो सबको लगा कि अंदरखाने उनकी दावेदारी मजबूत है। जदयू उनको ला सकती है। इनके अलावा शुरू से जदयू नेतापूर्व सांसद महाबली सिंह के नाम की सुर्खियाँ चर्चा में रही। फिर अचानक एक नाम डॉ.निर्मल सिंह का आया। रविवार को एक पोस्ट दिखा-‘काराकाट से जदयू से एनडीए प्रत्याशी होंगे महाबली सिंह, उनको शुभकामनाएं।‘ जब उनसे इस संवाददाता ने इसकी पुष्टि के लिए फोन किया तो बोले-‘इलाका में घूम रहे हैं। मैं कैसे कह सकता हूँ, पुष्टि तो आपलोग कर रहे हैं।‘ इन्होंने कहा कि-‘जबतक आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं आता, कैसे कह सकते हैं।‘ दूसरी तरफ सूचना है कि डॉ.निर्मल भी इलाके में भ्रमण कर रहे हैं। एक रोज पूर्व तो उनके प्रत्याशी घोषित होने का पोस्ट भी सोशल मीडिया में चला था।अब भी उनकी चर्चा सोशल मीडिया में है।

महागठबंधन का हाल:-
एनडीए में तो नामों की चर्चा भी है, दूसरी तरफ महागठबंधनमें रालोसपा से उपेन्द्र कुशवाहा की चर्चा निश्चित प्रत्याशी के रूप में होती रही है। हालांकिअबस्थिति बदल गयी सी लगती है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा अलग किस्म की हो रही है।बहरहाल, अटकलबाजियों का दौर जारी है, लोग मीडिया और राजनीतिक सूत्रों पर नजर गडाए हुए हैं। कब किसको खुशी और किसको निराशा मिलेगी, अभी कोइ नहीं कह सकता है।

Thursday 7 March 2019

कईसे बढ़ जाता है रे भाई, इ 17 आऊ 14 गुना धन-उपेंद्र कश्यप


कईसे बढ़ जाता है रे भाई, इ 17 आऊ 14 गुना धन
(हमनी के त कमाईत-कमाईत फेन छूट जात बा)

चुनावी चक्कलस और 'जनटिप्पणी'--02
०उपेन्द्र कश्यप०

"अरे ई देख हो। मर्दे तहियन, कईसे अतना धन कमात बड़ सन। सार, हमनी के तो कमाइत-कमाइत फेन छूट जात बा। सार के पेट भरल मुश्किल बा। ई सब बिना कोई धंधा कइले अतना कमात बड़ सन कि अखबार के छापे पड़त बा।"
यह भाव है अखबार में छपी एक खबर पर पाठकों के। सवाल तो जायज है। चुनाव में गरीबी हटाने का नारा बुलंद करने वाले जब खरबपति हो जाएंगे, वह भी तब जब कोई धंधा उनका दिखता नहीं हो, सबको समान भागीदारी देने की घोषणा करने वाले जब सत्ता की भागीदारी सिर्फ अपने घर, वंश, कुल-परिवार तक सिमटा दें और धन का सार्वजनिक प्रदर्शन करने लगें, गरीब की बेटी से मिलने का शर्त ही नोट भरे बेग हो या बर्थ डे में करोड़ों वसूली हो, या बिना वातानुकूलित वाटरप्रूफ मंच के भाषण देने न आये, सबका साथ सबका विकास का दावा करने वाले पैसे की तरह धन खर्च कर रहे हों, बिना किसी नीति के नेता तीर चलाने वाले हों, साइकिल और हाथी की सवारी कर सत्ता में पहुंचने के बाद लक्जरी गाड़ी और जहाज से उड़ते हों तो आम पाठक ऐसी खबरों पर ऐसे भाव अवश्य व्यक्त करेंगें। देश का यही हाल है। किसी पार्टी के नेता को देख लीजिए, जान लीजिए, उसके बारे में समझने निकालिएगा तो यही मिलेगा। आश्चर्य, घोर आश्चर्य। पता ही नहीं चलेगा कि कल तक जो नेता दूसरे से खाने, पहनने और कुछ पाने के उद्देश्य से "मुल्हा" खोजते रहते था, उसकी पार्टी की सत्ता आते ही वह सुरसा के मुंह की तरह फैलता हुआ धनवान कैसे बन रहा है? धन आने का कोई स्त्रोत ही नहीं दिखता है। यह स्थिति प्रायः हर नेता के साथ है। अपने पड़ोस के नेताओं को ही देखिए, उनके स्टेटस को देखिए और उसकी हैसियत भी देखिए। पता ही नहीं चलता कि वह खुद को इतना मेंटेन कैसे करता और रखता है। उसके परिवार की हालत भी इलीट क्लास जैसी होती है। अरे भाई, कहां से लाते हो इतने पैसे? क्या आलू डालने पर सोना निकालने वाली मशीन तुम्हारे हाथ लग गई है क्या? धत तेरी के, यहां भी बेईमानी! ई मशीनवा गरीबवन के दे देत। कुछ गरीबवन के तो कल्याण हो जाईत। लेकिन नेताओं ने यह उम्मीद ही बेकार है कि वह कभी किसी गैर की चिंता कर सके। वह तो अपने लोगों की भी चिंता नहीं करता। अपने की उसकी परिभाषा भी अपनी और अलग होती है। इस अपने में क्रमशः पत्नी, पुत्र, पुत्री, पूतोह, दामाद, भाई, चाचा और तब अन्य का स्थान होता है। पटना से लेकर दिल्ली तक भाया लखनऊ घुम आइयेगा तो यह आपको ज्ञात हो जाएगा। हमने तो पत्नी को मुख्यमंत्री और मंत्री बनाते देखा है। विधायक और सांसद तो एक सीढ़ी भर है इनके लिए। पैसा कमाना कोई इनसे सीखे। ये गलत थोड़े कहते हैं कि ऐसी मशीन ईजाद कर लिए हैं लोग जिसके
पिछवाड़े में आलू डालते हैं, और वह मुंह से सोना उगलने लगता है। हम तो कहते हैं कि हर भारतीय को ई मशीनवा दे दो, सब के सब धनवान हो जाएंगे। अरे, बुड़बक। ई का प्रस्ताव तोहार कोई मानी। जब सबे कोई विकास कर जाइ तो इनकर स्टेटस तोरे बराबर हो जाई। फिर तोरा से इनकर स्टेटस कईसे बड़ा होई? सरकार ई चहबे ना कर सकेला कि सब कोई एक समान हो जाये। समाजवाद हो चाहे मध्यमार्गी। वामपंथी हो चाहे दक्षिणपंथी। कोई ई चाह न सके कि सब कोई एक समान हो जाये। गरीबी खत्म हो जाये। बुझ ल। ना बुझे से इनकर फेर में पड़ल रहब। कोई लाभ तो ना होई। इनका से उम्मीद में अपना से जे अर्जित करतअ उहो खो देबअ। 
जोर से बोलअ जय हिंद, अभी राष्ट्रवाद के दौर बा।

Monday 4 March 2019

किशोरवय के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट ने की "सुनो मैं समय हूँ" प्रकाशित

नेशनल बुक ट्रस्ट ने की डेहरी के लेखक की पुस्तक ‘सुनो, मैं समय हूँ’ प्रकाशित

बड़ी उपलब्धि: एनबीटी से प्रकाशित जिले के प्रथम लेखक बने

हिन्दी के बाद अग्रेजी समेत कई भाषाओं में होगी यह प्रकाशित

कृष्ण किसलय ने लिखी है-12 से 14 आयु वर्ग के लिए पुस्तक

विज्ञान पर अच्छी जानकारी देती है 172 पृष्ठ की यह किताब

व्यक्ति की जिज्ञासाओं को शांत करने वाले उत्तर मिलेगी इसमें

०उपेन्द्र कश्यप०

देश के सबसे बड़े प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) ने डेहरी के कृष्ण किसलय की पुस्तक ‘सुनो, मई समय हूँ’ को प्रकाशित किया है। यह सिर्फ रोहतास ही नहीं बल्कि एक बड़े इलाके के लिए इस सन्दर्भ में उपलब्धि है कि इस प्रकाशक द्वारा किसी दूसरे लेखक की लिखी किताब का प्रकाशन नहीं किया है। दूसरे कई लेखक जिले में ऐसे हैं जिनकी किताबों का प्रकाशन दूसरे कई प्रकाशकों द्वारा हुई है, किन्तु यह बड़े गौरव की बात है कि किसी छोटे शहर के लेखक की कोइ किताब एनबीटी प्रकाशित करे। जिले के इतिहास पर कई शोध-पुस्तक लिख चुके डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी ने इस सन्दर्भ में कहा कि-यह गौरव की बात है। जिले में किसी दूसरे लेखक को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है। देश में प्रकाशन विभाग के बाद यह सबसे बड़ा प्रकाशक है। अर्ध सरकारी है और इसके द्वारा छपा जाना काफी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। लेखक और प्रकाशक के बीच हुए एग्रीमेंट के मुताबिक़ हिन्दी में किताब अभी प्रकाशित हुई है, बाद में अग्रेजी समेत कई भाषा में प्रकाशित होगी। यह जिले के मान को विविध भाषा बोलने वालों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का काम करेगी। यह पुस्तक 12-14 आयु वर्ग के किशोरवय के लिए लिखी गयी है। 172 पृष्ठ है जिसमें दो खंड हैं-ब्रह्मांड और जीवन। लेखक श्री किसलय का दावा है कि हिन्दी में वैज्ञानिक सोच विकसित करने वाली ऐसी कोइ दूसरी किताब नहीं है। ब्रह्मांड कब पैदा हुआ, और कहाँ फ़ैल रहा है, विस्तार का अंत कब होगा, ईश्वर ने सृष्टि बनायी तो ईश्वर को किसने बनाया, नियम से विकसित ब्रह्मांड में इश्वर का क्या काम? जीवन पृथ्वी पर पनपा या आकाश से टपका, क्या एलियन आदमी है, सभी जीवों में एक ही जैव पदार्थ तो पृथ्वी पर आदमी का एकक्षत्र राज्य क्यों? इन प्रश्नों का उत्तर किशोर मन को यह किताब देने की एक कोशिश है, अब इसमें सफलता कितनी मिलेगी यह वक्त तय करेगा। इस किताब के लिए दर्जनों चित्र कोलकाता के कला स्नातक अरूप गुप्ता ने बनाया है। 
ऐसे रही प्रकाशन की यात्रा:-
लेखक कृष्ण किसलय ने बताया कि एनबीटी का चयन सबसे बड़ा प्रकाशन क्षेत्र होने के कारण किया। बताया कि 09.09.2016 को पुरी पांडुलिपि प्रकाशक को भेजा। प्रक्रिया के तहत चयन हुआ और 09 मार्च 2017 को प्रकाशन के लिए स्वीकृति मिली। ट्रस्ट की मुप्रसनि नीरा जैन द्वारा एग्रीमेंट 28 अप्रैल 2017 को किया गया। इसके बाद फरवरी 2019 में किताब प्रकाशित हुई। एग्रीमेंट के मुताबिक हिंदी प्रकाशन पर 6 फीसदी और अन्य भाषाओं में 4 फीसदी रॉयल्टी मिलेगी।

छूट गए अंश का प्रकाशन लक्ष्य:-
लेखक ने बताया कि प्रकाशित किताब में कई हिस्से शामिल नहीं हैं। पृष्ठ संख्या की सीमा को देखते हुए उन्हें हटाना पड़ा था। लक्ष्य है कि छूटे हुए खंड का प्रकाशन कराना। एनबीटी से आग्रह करेंगे कि चूंकि पांडुलिपि स्वीकृत है इसलिए अलग खंड में इसका प्रकाशन करें। यदि कोई कानूनी पेंच न हो तो, ताकि बच्चों को विज्ञान से जुड़ी सारी जानकारी एक साथ मिल सके। कहा-लोग सीखें सवाल करना और सवाल का जवाब तलाशना। यही मूल मकसद इस किताब के लिखने की है।

कौन हैं लेखक कृष्ण किसलय:-
अनुमंडल मुख्यालय स्थित जोड़ा मंदिर के पास रहते हैं कृष्ण किसलय। वर्ष 1978 से लगातार विज्ञान विषयों पर लिखते रहे हैं। चार बड़े अखबार में जिला से लेकर संपादक तक के पद पर काम कर चुके हैं। लेखन के लिए इन्डियन साइंस राइटर्स एसोसियेशन समेत कई संस्थाओं द्वारा सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। संप्रति आंचलिक पत्रकारिता को नया आयाम देने वाले सोनमाटी समूह के संपादक हैं।

गौरव का विषय-कवि
काव्य संग्रह ‘आवाज भी देह है’ के लेखक संजय कुमार शांडिल्य का मानना है कि एनबीटी राष्ट्रीय महत्व की लिखी उपयोगी किताबों के प्रकाशन के लिए प्रसिद्ध है। कम मूल्य पर प्रमाणिक किताबों को देश भर के पाठकों तक पहुँचाने का दायित्व निर्वहन करने का कार्य यह करता रहा है। यहाँ से प्रकाशित होना किसी भी लेखक के लिए गौरव का विषय है।

Sunday 3 March 2019

अछूतोद्धार : कोइ छू कर तो दिखाए पैर, यह प्रतीकात्मक ही होता है जनाब



*कोई छू कर तो दिखाए पैर* 
(यह ‘अछूतोद्धार’ प्रतीकात्मक ही होता है)

चुनावी चक्कलस और 'जनटिप्पणी'--01
०उपेन्द्र कश्यप०

चाय की दुकान हमेशा राजनीति पर अजब-गजब टिप्पणी देती है। भर चुनाव इसे मैं जनटिप्पणी कहूंगा और चुनावी चक्कलस का आप आनन्द ले सकेंगे। यह प्रयास है। 
अखबार हाथों में थे। कई अखबार। पाठक अखबार का असली मालिक होता है। खबरों पर, उसकी प्रस्तुति पर और उसके प्रभाव पर उसकी टिप्पणी मायने रखती है। हम बैठे थे। कई थे। एक ने कहा-देखे, कोई मुकाबला नहीं। मोदी ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक मारा है कि सब चित पड़ गए। हरिजनों के हित की राजनीति करने वाले स्वयंभू पार्टियां और नेता ऐसे सफाईकर्मियों से छुआते तक नहीं हैं। दूर भागते हैं। अब पीएम ने उनको स्वच्छताग्राही कहा और उनके चरण रज लिए तो मिर्ची तो लगेगी ही। कारण साफ है। नकलचियों को अब मुश्किल आएगी। वे छुएंगे पैर किसी के? पियेंगे चरण रज? नहीं कर सकते ऐसा क्योंकि सामन्ती मानसिकता उनको ऐसा करने से रोकती है। श्रेष्ठी भाव हमेशा उनको ऐसा करने से रोकती है। चाहे समाजवादी हों, लोहियावादी हों, या अम्बेडकरवादी हों, या मध्यमार्गी हों, वाममार्गी हों या दक्षिणमार्गी हों। जो अपने सीएम को कुत्ते से कमतर भाव देता है, उसके शुभ चिंतक क्या कहेंगे भलाआप देखा देखी मंदिर भेजते हो अब देखा देखी अछूतों के पैर छुओगे? ऐसी उम्मीद किसी को नहीं है। न समाजवादियों से न ही वामवादियों से, न ही मध्यवादियों से?

देश में अछूत को लेकर कई धारणाएं हैं। कोइ इसे प्राकृतिक और धार्मिक बताता है, कोइ इसे अमानवीय बताता है। कोइ इसे उचित ठहराता है, कोइ इसे हिन्दू धर्म का कलंक बताता है। कोइ इसे मनुवादी बताता है। लिखित इतिहास के कालखंड प्रारंभ होने से पहले से भारतीय समाज में अछूत एक महत्वपूर्ण सामाजिक बुराई और मुद्दा बना हुआ है। क्या कभी सत्त्ताधारियों की ओर से इसको समाप्त करने की सार्थक और दृढ कोशिश की गयी? एक्ट बना देना और एक्शन लेना दोनों दो अलग-अलग बातें हैं। हरिजन की संज्ञा देकर नाम बदल देना और हरिजनों को सामाजिक मान्यता दिलाना / देना अलग बात है। हमने तो यह भी देखा ही है कि हरिजनों के वोट से दशकों सत्ता की मलाई खाने वाले उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम द्वारा पूजा किये जाने के बाद प्रतिमा को दूध से धुलाया था। हद है, उनके भगवान भी अछूत के छूने से अछूत हो गए थे। आज ऐसे लोग, ऐसी विचारधारा वाले स्वच्च्ताग्राहियों के पैर धोने को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। प्रतीकों की ऐसी राजनीति ही कुछ बदलाव ला सकती है, यह भी तो कोइ किया करे। करने वाले को खारिज करने से बेहतर है कुछ तो करिए, प्रतीकात्मक ही सही। बदलाव मानसिकता बदले जाने से ही होती है, ध्यान रखियेगा।

Saturday 2 March 2019

दो भिन्न संस्कृतियों और इतिहास को जोड़ेगा दाउदनगर-नासरीगंज सोन पुल



नासरीगंज को सूफी संत ने बसाया तो दाउदनगर को सूबेदार ने

मीर साहब थे फ़कीर तो दाउद खां थे औरंगजेब के सिपहसालार
राजनीतिक, सांस्कृतिक व व्यापारिक गतिविधियां हुई सहज
उपेंद्र कश्यप । डेहरी
नासरीगंज-दाउदनगर सोन पुल चालु हो गया। दोनों शहरों को जोड़ने का काम अब पूरा हो गया। इस पुल के बनने से दो संस्कृतियों और इतिहास का मिलन हो गया। दोनों शहर के साथ एक कॉमन बात है कि दोनों ही किसी-न-किसी द्वारा बसाया हुआ शहर है। नासरीगंज को मीर नासिर देहलवी ने बसाया था तो दाउदनगर को दाउद खां ने। एक संत फ़कीर तो दूसरा बादशाह औरंगजेब का सिपहसालार। बिहार का गवर्नर और दाउदनगर को बसाने वाला नवाब। दोनों शहर सोन के पूरब-पश्चिम किनारे पर स्थित और औद्योगिक नगरी के लिए गुलाम भारत में प्रतिष्ठित। ओमकार प्रसाद बताते हैं कि सासाराम के बाद नासरीगंज ही मशहूर था। साबुन, कागज, कम्बल, नील के उद्योग, बुनकर उद्योग थे। पानी से मिल चलता था। शताब्दियों तक दोनों के बीच आवागमन का माध्यम नाव रहा और अब आधुनिक लंबा-चौड़ा पीसीसी पुल। जो सीधे हाइवे से जुड़ा है और उस पर फर्राटे भर रही हैं आधुनिक लक्जरी गाड़ियां। लोगों के लिए यातायात आसान हुआ है और इससे व्यापार में वृद्धि तय है। दोनों तरफ सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ पारिवारिक रिश्तेदारियां निभाना आसान हो गया है।
यह इलाका काराकाट लोक सभा का क्षेत्र का हिस्सा है। निर्वाचन आयोग ने दोनों जिलें औरंगाबाद-रोहतास के एक हिस्से को मिलाकर काराकाट लोक सभा क्षेत्र नाम दिया था। प्रत्याशियों को इलाका भ्रमण के लिए काफी दूरी तय करनी होती थी। अब यह दूरी कम हुई है और सहज भी।
                                                                                                                                    


मीर नासिर देहलवी के नाम पर नासरीगंज:-
नासरीगंज निवासी सामाजिक कार्यकर्ता नकीब अहमद जैसे लोगों का मानना है कि सूफी संत मीर नासिर देहलवी के नाम पर यह शहर बसा हुआ है। वे दो सदी पूर्व यहाँ आये थे। उनका मजार वहां है, जहां हर धर्म के लोग शुक्रवार को मिठाई चढाने और अगरबत्ती जलाने पहुंचते हैं। कुछ लोगों का मत है कि संत कभी-कभी कुछ लोगों को चलते दिख जाते हैं। हर धर्म के लोग दुआ माँगते हैं और उनकी मुराद पुरी होती है। उन पर किताबें लिखी गयी हैं। यहाँ के सामाजिक कार्यकर्ता नेता ओमकार प्रसाद ने बताया कि नील की खेती कराने वाले एक बड़े अधिकारी की बेटी बीमार पड़ गयी थी। उसे अपने नुस्खों से मीर साहब ने स्वस्थ कर दिया था। पुरी बस्ती उस अधिकारी ने मेरे साहब को दान दे दी। बाद में उन्होंने लोगों को जमीन देकर बसा दिया। सबको करीब 20 डेग या 22 डेग जमीन दे दिया। इनके वंशज हैं किंतु उनको अब कोई मतलब नहीं। मजार है। जो जमीन शेष बची थी वह भी सब दान कर दिया गया था।

दाउदखां के नाम पर दाउदनगर:-
दाउदनगर हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब के सिपहसालार दाउद खान का बसाया शहर है। यह शहर 16 वीं सदी का है। यहाँ पीतल का देश ख्यात उद्योग था। पानी से चलने वाला मिल 1912 में स्थापित किया गया था। इसे औरंगाबाद जिले की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। इस शहर का अपना लिखित इतिहास है। 17 वीं सदी में लिखे गए ‘तारीख-ए-दाउदिया’ संक्षिप्त इतिहास बताता है, वहीं ‘श्रमण संस्कृति का वाहक-दाउदनगर’ पुस्तक शहर के जन्म से लेकर 2014 तक का इतिहास बताता है।