Monday 25 March 2019

करीब 05 वर्ष महंत रहे थे विराट व्यक्तित्व और ज्ञान के धनी अखिलेश्वरानन्द पुरी

देवकुंड विवाद से सम्बद्ध चौथी और अभी तक ह्त्या की आख़िरी घटना थी वह
अब कन्हैयानन्द पुरी के नेतृत्व में शान्ति व विकास का नया अध्याय लिख रहा
० उपेंद्र कश्यप ०
03 मार्च को देवकुंड महंत रहे अखिलेश्वरानंद पुरी की पुण्यतिथि है। उनकी ह्त्या वर्ष 2010 में इसी दिन की गयी थी। वे वर्ष 2005 में देवकुंड मंदिर/ मठ के महंत बन कर आये थे। उनकी ह्त्या के बाद 14 मार्च 2010 को इनके पुत्र कन्हैयानंद पुरी ने महंथी की गद्दी संभाली। अखिलेश्वरानन्द पुरी की देवकुंड विवाद से सम्बद्ध चौथी और अभी तक ह्त्या की आख़िरी घटना थी। इनके पूर्व 1974 से महंत रहे स्वामी केदारनाथ पुरी की ह्त्या 1990 में की गयी थी, यह भूमि विवाद को लेकर नक्सल आन्दोलन और जातीय हिंसा के उभार से बनी परिस्थिति के बीच पहली ह्त्या थी। इसके बाद मैनेजर राम दहीन सिंह की हत्या 1991 में की गयी। वर्ष 1995 में मठ के बराहिल रहे कृष्णा राम की ह्त्या की गई थी। अभी महंत अखिलेश्वरानन्द पुरी की नौवीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है। इनके पुत्र महंत कन्हैयानन्द पुरी की एक बात की दाद देनी होगी कि इनकी गद्दी संभालने के बाद के नौ वर्षों में ह्त्या या मारपीट की बड़ी घटना नहीं घटी है। यह इस तथ्य के सन्दर्भ में अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनकी गद्दी संभालने के साथ उनकी ह्त्या किये जाने की आशंका प्रबल थी। उनके महंत बनने का विरोध भी हो रहा था। लेकिन पिता के उलट पुत्र ने ऐसी रणनीति बनाया कि देवकुंड में शान्ति स्थापित हो गयी। फिलहाल यही स्थिति है कि देवकुंड शान्ति और विकास का नया अध्याय कन्हैयानन्द पुरी के नेतृत्व में लिख रहा है।
पिता के चित्र पर पुष्पांजली करते कन्हैयानन्द पुरी (फोटो-आशुतोष मिश्रा)

अब बात उनकी जिनकी है पुण्यतिथि:-
अखिलेश्वरनन्द पुरी से मेरा कई बार मिलना हुआ, ख़ास कर दाउदनगर के डीएवी पब्लिक स्कूल में और कुमार ब्रदर्स पेट्रोल पंप पर उनके आगमन के समय। विद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य श्री डॉ.आरके दूबे उन्हें प्राय: स्वतंत्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस पर आमंत्रित करते थे। वे आते और उनके संबोधन सुनने और उनसे बातचीत करने का अवसर मिलता। कुमार ब्रदर्स पेट्रोल पंप पर श्री अंजनी कुमार प्रसाद सिंह और उनके पुत्र बब्लू जी उनको खूब प्यार करते थे। जब भी मिलना होता भारतीय अध्यात्म और संस्कृति पर व्यापक चर्चा होती। उनके संबोधन में जो ओजस्विता दिखती थी, वह काबिल-ए-तारीफ़ थी। अध्यात्म और संस्कृति पर उनका व्यापक ज्ञान था। उनको सुनते वक्त लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।  

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