Thursday 21 March 2019

सत्ता-व्यवस्था जनित भ्रस्टाचार के कुआं ने ली पांच बच्चों की जान


दोष न बच्चों का न नहर का, दोष सिस्टम का है जनाब

उपेन्द्र कश्यप
दाउदनगर में सन्नाटा है। गम है, गुस्सा है। आखिर पांच बच्चों की मौत नहर में डूबने से जो हो गई। सारे शहर में शोक की लहर है। हर मुहल्ला आहत, मर्माहत है। हर परिवार दुखी है। नहर में डूबने से मौत जितनी त्रासद है उससे अधिक त्रासदी सत्ता-व्यवस्था की कार्यशैली है। सच तो यह है कि बच्चों की मौत नहर में डूबने से नहीं, बल्कि सत्ता-व्यवस्था जनित भ्रस्टाचार से हुई है। नहर में पानी नहीं है, फिर बच्चे हैं, होली है तो मस्ती कर रहे थे। इसमें बाल सुलभ चंचलता या थोड़ा मजा ले लेने की प्रवृति का भला क्या दोष?

मेरा नजरिया अलग है। और यह कहने की धृष्टता कर रहा हूँ कि नहर में बह रहे पानी से इन बच्चों की मौत नहीं हुई है, बल्कि भ्रस्ट व्यवस्था से उस नहर की सतह में जो कुआं बना दिया गया था, वास्तव में उसी कुआं में डूबने से मौत हुई है। यह कुआं खोदा था और खुदवाया भी था, सत्ता-व्यवस्था के भ्रस्टाचार ने। सड़क बनाने और पुल निर्माण के लिए इस नहर में कई जगह गड्ढे खोद कर मिट्टी निकाल लिए और दूसरों को मरने के लिए छोड़ दिया। न गड्ढे भरे गए न ही वहां इस आशय की सूचना देने वाला बोर्ड टांगा गया था। कानून को कई बार तोड़ा गया, कई जगह तोड़ा गया। कोई देखने वाला नहीं। भारत है, भेड़चाल वाली व्यवस्था है। यहां सब चलता है। बस ऐसे ही, यूं ही। सब कुछ चलते रहता है। इसे बदलना होगा, यदि और भ्रस्टाचार जनित जनसंहार रोकना चाहते हैं। अन्यथा फिर, फिर ऐसे नरसंहार होते रहेंगे। परिवार और घर उजड़ते रहेंगे।।

कोई जवाब सत्ता या व्यवस्था दे सकता है क्या कि यह कुआं आखिर क्यों, कैसे, कब और किसने किस कारण से बनाया था? जवाब पुरी व्यवस्था जानती है, किन्तु यकीन मानिए कोई नहीं देगा। सब बचने की कोशिश करना तो छोड़िए, इस मुद्दे पर न चर्चा करेंगे, न ही इसका संज्ञान लेंगे, न ही जिम्मेदारों की पहचान कर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होने जा रही है।
मेरी सलाह है, पीड़ित परिवार या कोई सामाजिक कार्यकर्ता (वास्तविक, दलाल नहीं जो सत्ता और व्यवस्था से मलाई खाते हैं और स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता है) उच्च न्यायालय में पीआईएल दाखिल करे और नहर में जेसीबी से गड्ढा खोदने वालों, खुदवाने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलना चाहिए। यह घटना नहीं है, नरसंहार है, जो व्यवस्थाजनित भ्रस्टाचार के हथियार से अंजाम दिया गया है। क्या कोई भी यह मान सकता है कि नहर में गड्ढा नहीं होता तो इन मासूमों की जान जाती? हकीकत यही है कि नहर में जेसीबी द्वारा खोदे गए गड्ढे से बच्चों की जान गई। और इस काम को अंजाम देने, दिलाने वालों के खिलाफ यदि कार्रवाई नहीं होती है, न्यायपालिका न्याय नहीं करेगी तो ऐसे नरसंहार होते रहेंगे। न्यायालय तो स्वतः संज्ञान भी ले सकता है।
अब इस नरसंहार को लेकर आगे क्या कार्रवाई होगी, या नहीं होगी, यह सवाल भी जिंदा बचा रहेगा या इसकी अकाल मौत होगी? मैं नहीं जानता। इतना जानता हूँ कि कोई नेता और तथाकथित स्वयंभू समाजसेवी इस मुद्दे को नहीं उठाएंगे।

3 comments:

  1. आप के द्वारा वर्णित इनसारे राजो
    ने झकझोर कर रख दिया ।

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  2. Aap ki lekhani me takat hai aap is mudde ko nirantar uthate rhe pidit pariwar ko nyay milana chahiye

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  3. PIL क्यों सीधे प्रशानिक प्राथिमिकी क्यों नहीं ?
    याद कीजिये जब कुंदन कुमार औरंगाबाद के डीएम थे, जसोईया मोड़ के पास एक स्कार्पियो के दुर्घटना के 8 से 10 लोगों की मौत हुई थी।तत्कालीन डीएम ने पाया था कि सड़क के मरम्मत के लिए वहाँ सड़क को खोदा गया था और कोई सूचना नहीं लगाया हुआ था।डीएम ने तत्काल सड़क निर्माण एजेंसी और जिम्मेदार अधिकारियों पर नेम्ड केस करने का आदेश दिया था।वैसे ही वर्तमान जिलाधिकारी एक्सन क्यो नहीं ले सकते है ?

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