Thursday 7 March 2019

कईसे बढ़ जाता है रे भाई, इ 17 आऊ 14 गुना धन-उपेंद्र कश्यप


कईसे बढ़ जाता है रे भाई, इ 17 आऊ 14 गुना धन
(हमनी के त कमाईत-कमाईत फेन छूट जात बा)

चुनावी चक्कलस और 'जनटिप्पणी'--02
०उपेन्द्र कश्यप०

"अरे ई देख हो। मर्दे तहियन, कईसे अतना धन कमात बड़ सन। सार, हमनी के तो कमाइत-कमाइत फेन छूट जात बा। सार के पेट भरल मुश्किल बा। ई सब बिना कोई धंधा कइले अतना कमात बड़ सन कि अखबार के छापे पड़त बा।"
यह भाव है अखबार में छपी एक खबर पर पाठकों के। सवाल तो जायज है। चुनाव में गरीबी हटाने का नारा बुलंद करने वाले जब खरबपति हो जाएंगे, वह भी तब जब कोई धंधा उनका दिखता नहीं हो, सबको समान भागीदारी देने की घोषणा करने वाले जब सत्ता की भागीदारी सिर्फ अपने घर, वंश, कुल-परिवार तक सिमटा दें और धन का सार्वजनिक प्रदर्शन करने लगें, गरीब की बेटी से मिलने का शर्त ही नोट भरे बेग हो या बर्थ डे में करोड़ों वसूली हो, या बिना वातानुकूलित वाटरप्रूफ मंच के भाषण देने न आये, सबका साथ सबका विकास का दावा करने वाले पैसे की तरह धन खर्च कर रहे हों, बिना किसी नीति के नेता तीर चलाने वाले हों, साइकिल और हाथी की सवारी कर सत्ता में पहुंचने के बाद लक्जरी गाड़ी और जहाज से उड़ते हों तो आम पाठक ऐसी खबरों पर ऐसे भाव अवश्य व्यक्त करेंगें। देश का यही हाल है। किसी पार्टी के नेता को देख लीजिए, जान लीजिए, उसके बारे में समझने निकालिएगा तो यही मिलेगा। आश्चर्य, घोर आश्चर्य। पता ही नहीं चलेगा कि कल तक जो नेता दूसरे से खाने, पहनने और कुछ पाने के उद्देश्य से "मुल्हा" खोजते रहते था, उसकी पार्टी की सत्ता आते ही वह सुरसा के मुंह की तरह फैलता हुआ धनवान कैसे बन रहा है? धन आने का कोई स्त्रोत ही नहीं दिखता है। यह स्थिति प्रायः हर नेता के साथ है। अपने पड़ोस के नेताओं को ही देखिए, उनके स्टेटस को देखिए और उसकी हैसियत भी देखिए। पता ही नहीं चलता कि वह खुद को इतना मेंटेन कैसे करता और रखता है। उसके परिवार की हालत भी इलीट क्लास जैसी होती है। अरे भाई, कहां से लाते हो इतने पैसे? क्या आलू डालने पर सोना निकालने वाली मशीन तुम्हारे हाथ लग गई है क्या? धत तेरी के, यहां भी बेईमानी! ई मशीनवा गरीबवन के दे देत। कुछ गरीबवन के तो कल्याण हो जाईत। लेकिन नेताओं ने यह उम्मीद ही बेकार है कि वह कभी किसी गैर की चिंता कर सके। वह तो अपने लोगों की भी चिंता नहीं करता। अपने की उसकी परिभाषा भी अपनी और अलग होती है। इस अपने में क्रमशः पत्नी, पुत्र, पुत्री, पूतोह, दामाद, भाई, चाचा और तब अन्य का स्थान होता है। पटना से लेकर दिल्ली तक भाया लखनऊ घुम आइयेगा तो यह आपको ज्ञात हो जाएगा। हमने तो पत्नी को मुख्यमंत्री और मंत्री बनाते देखा है। विधायक और सांसद तो एक सीढ़ी भर है इनके लिए। पैसा कमाना कोई इनसे सीखे। ये गलत थोड़े कहते हैं कि ऐसी मशीन ईजाद कर लिए हैं लोग जिसके
पिछवाड़े में आलू डालते हैं, और वह मुंह से सोना उगलने लगता है। हम तो कहते हैं कि हर भारतीय को ई मशीनवा दे दो, सब के सब धनवान हो जाएंगे। अरे, बुड़बक। ई का प्रस्ताव तोहार कोई मानी। जब सबे कोई विकास कर जाइ तो इनकर स्टेटस तोरे बराबर हो जाई। फिर तोरा से इनकर स्टेटस कईसे बड़ा होई? सरकार ई चहबे ना कर सकेला कि सब कोई एक समान हो जाये। समाजवाद हो चाहे मध्यमार्गी। वामपंथी हो चाहे दक्षिणपंथी। कोई ई चाह न सके कि सब कोई एक समान हो जाये। गरीबी खत्म हो जाये। बुझ ल। ना बुझे से इनकर फेर में पड़ल रहब। कोई लाभ तो ना होई। इनका से उम्मीद में अपना से जे अर्जित करतअ उहो खो देबअ। 
जोर से बोलअ जय हिंद, अभी राष्ट्रवाद के दौर बा।

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