Wednesday 22 July 2020

'चीन की दीवार' ढाह कर भागे युद्धबन्दी 5 वर्ष बाद पहुंच सके थे घर

दैनिक जागरण में 23 जुलाई 2020 को प्रकाशित रिपोर्ट


1962 के भारत-चीन युद्ध में युद्धबंदी बनाए गए थे रामचरित्र सिंह
जंगलों में भटकते थे भूखे प्यासे, खाते थे घास और जंगली फल 
उपेंद्र कश्यप । दाउदनगर (औरंगाबाद)
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर इधर रोज कुछ ना कुछ अप्रत्याशित खबरें आ रही हैं। वर्ष 1962 में भारत और चीन युद्ध कर चुके हैं। कभी भी युद्ध हो सकने के मुहाने पर दोनों देश आज खड़े हैं। ऐसे में वर्ष 1962 में हुए भारत चीन युद्ध के समय युद्ध बंदी बनाए गए फौजी रामचरितर सिंह का संघर्ष और उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी के स्वजनों की सोच लोगों को जानना आवश्यक है। इस कहानी के किरदार रामचरित्र सिंह और उनके समेत 14 साथियों ने चीन को भारत की ताकत अपने बाहुबल से दिखाया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध में युद्ध बंदी बनाकर जेल में डाल दिए गए भारतीयों में से 14 जवानों ने जेल की दीवार ढाह कर फरार हो गए थे। श्री सिंह मूलतः पड़ोसी जिला अरवल के मेहंदिया थाना के टेरी गांव के निवासी थे। अभी अनुमंडल के हसपुरा प्रखंड के बाघेरवा में उनके पोता रामाशंकर सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं, जहां फौजी को बतौर बीरता पुरस्कार सरकार ने 16 एकड़ बंजर जमीन दी थी। तब सभी 14 जेल से भागकर भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए। जंगल जंगल भटकते हुए, दर-दर की ठोकरें खाते हुए, भूख प्यास से बिल बिलाते हुए, घास और जंगली फल खाते हुए, गंदे पानी पीते हुए, अपनी यात्रा करते रहे। इनके पोते 62 वर्षीय रामाशंकर सिंह को याद है कि उनके दादा उन्हें भारत चीन युद्ध, जेल में बंद रहने के दौरान प्रताड़ना व जीवनचर्या तथा जेल तोड़कर भागने से लेकर घर पहुंचने तक के सारे किस्से कैसे बताया करते थे। आज रामाशंकर सिंह किसी पहचान के मोहताज नहीं। अपने दादा को बतौर वीरता पुरस्कार मिले उसर 16 एकड़ जमीन को उर्वर बना चुके हैं। जबकि तब सरकार फौजियों को ऊसर या पथरीली जमीन ही बतौर पुरस्कार दिया करती थी। शायद सरकार की सोच यह होगी कि फौजी बंजर जमीनों को सोना उगलने वाले बना देंगे। शायद इसी कारण दादा को पथरीली जमीन मिलने का कोई अफसोस नहीं है। रामाशंकर बाबू बताते हैं कि उनके दादा और अन्य साथी भारतीय सीमा में भटकते रहे। जंगल में जीने का संघर्ष करते रहे। तब आसमान में फौजी हेलीकॉप्टर दिखा। दादा इनको बताया करते थे कि तब वैसा हेलीकॉप्टर हुआ करता था जो जंगल झाड़ में कहीं भी उतरने में सक्षम नहीं होता था। इशारों में हेलीकॉप्टर में बैठे सैनिकों ने इन फौजियों को रास्ता बताया और उसी के संकेत पर यह आगे बढ़ते चले गए। फिर अपने अपने गांव आ गए।

सरकारी सूचना पर हो चुका था दशकर्म और ब्रह्मभोज:- 
रामाशंकर सिंह ने बताया कि बताया कि भारत चीन युद्ध के बाद सूचना मिली कि दादा शहीद हो गए हैं। इनके स्वजनों ने हिंदू परंपरा के तहत अंतिम संस्कार दशकर्म और मृत्यु भोज कर दिया। जब सब लोग निश्चिंत हो गए तो वह अचानक से करीब 5 साल बाद रामचरित्र सिंह अपने घर पहुंचे। उनकी पत्नी फुलेसरी देवी उन्हें पहचान नहीं पा रही थी। जब पहचान हुई तो भव्य स्वागत हुआ। इनके आने के बाद पेंशन और अन्य सरकारी सुविधा लेने के लिए नियम और प्रक्रिया पूरी करने में संघर्ष करना पड़ा। संभवत: 1970 में वे से सेवानिवृत्त हुए थे। इनकी मृत्यु 1993 में हुई जबकि उनकी पत्नी की मृत्यु इनसे पहले ही हो चुकी थी।

चीन को सबक सीखाये जाने की जरुरत:-
क्या सोचती है इनकी पीढ़ी
आज रामचरित्र सिंह के पुत्र रामाशंकर सिंह और इनके पुत्र मुकेश कुमार का कहना है कि भारत और चीन में युद्ध अवश्यंभावी है, वक्त चाहे जो लगे। चीन को सबक सिखाएं जाने की जरूरत है। दादा अपने वंशजों को बताते थे कि भारत और चीन के बीच सीमा रेखा जिस स्थिति में है उस स्थिति में युद्ध होना निश्चित है। गलवान घटना को लेकर रामचरित्र सिंह की पीढ़ियों में आक्रोश है। कहते हैं-कि दादा कहा करते थे कि भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान में युद्ध होगा ही होगा। क्योंकि ऐसी ही भौगोलिक स्थिति और राजनीतिक परिस्थिति रहेगी।