Monday 3 November 2014

कांस्यकार समाज भी रखता था ताजिया


कांस्यकार समाज भी रखता था ताजिया

बाबा जी के ताजिये में ‘बाबा’ नहीं
उपेन्द्र कश्यप, संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद) सतरहवीं सदी में दाउद खां के बसाए शहर में सांप्रदायिक सौहार्द की कई मिसालें हैं। मोहर्रम में ताजिया रखने की परंपरा यहां अनूठी रही है। हिन्दु धर्मावलंबी कांस्यकार समाज भी कभी ताजिया रखता था। माना जाता है कि मुगल काल में जब तुगलक के फरमान से भारत में ताजियागिरी का प्रारंभ हुआ तो सरकारी आदेश के जरिए चुनिन्दा संस्थाओं को ताजिया रखने को मजबूर किया गया। इसी सिलसिले में यहां भी तब के हिन्दु समाज ने ताजिया रखना प्रारंभ किया होगा। यह बात मो.कयुम आजाद भी मानते हैं। हुकूमत का आदेश था और कई समृद्ध जातियों के प्रधान रखा करते थे। मिनहाज नकीब ने बताया कि कसेरा टोली का ताजिया शहर में रखे जाने वाले तमाम ताजियों में सबसे बडा, आकर्षक और सुन्दर रहता था। दोनों के अनुसार करीब तीन दशक पूर्व तक कांस्यकार समाज ने पीतल का ताजिया रखा था। अन्य स्थानों पर भी जो ताजिये हिन्दु-मुस्लिम रखते थे वे छोटे छोटे हुआ करते थे। शहर मे6 अभी चार लाइसेंसी ताजिया रखे जाते हैं। तुफानी, मीर साहब, बाबा जी और मनुजान नाम से। बाबा जी अब बस नाम भर रह गया है। इसमें ‘बाबा जी’ यानी ब्राहमण या तब का अग्रणी तबका अब कहीं नहीं है। बता दें कि यहां कई ब्राह्मण परिवार जमींदार रहे हैं। इस पूरे सन्दर्भ में अभी व्यापक शोध की जरुरत हैं। बाबा जी का यह ताजिया हमदर्द दवाखाना मैदान में रखा जाता है। लाइसेंसी मो.फिरोज आलम रंगरेज ने बताया कि मुहर्रम का जुलूस मोहर्रम पांच यानी 30 नवंबर से निकलता है। इसी दिन मिट्टी लाने कर्बला जाते हैं। मोहर्रम दस एवं ग्यारह को मनुजान से मिलकर ताजिया जुलूस निकाला जाता है। बताया कि पहले कांस्यकार समाज द्वारा कसेरा टोली में रखा जाने वाले ताजिए के साथ ही इनका जुलूस निकलता था। फिरोज ने बताया कि जगदीश पुर में अभी भी कांस्यकार समाज ताजिया रखता है। .