Sunday 30 July 2017

हाइवे से दूर हो गई वृक्षों की छाया

7779 वृक्ष की जगह लगाये गए मात्र 2676 पौधे

काटने के लिए चिन्हित किए गए थे 3980 पेड़
2593 पेड़ काटने के बदले लगाने थे तीन गुणा
मामला एनएच 139 पटना-हरिहरगंज पथ का

वैश्विक स्तर पर पर्यावरण एक बड़ी समस्या बनी हुई है| इसके लिए चिंता व्यक्त की जाती है और कई सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं| इस सन्दर्भ में एनएच 139 अनीसाबाद-औरंगाबाद-हरिहरगंज पथ (पूर्व में एनएच-98) के चौडीकरण में जो पेड़ काटे गए, उसकी भरपाई में लापरवाही दिखती है| हालात यह हो गए कि हाइवे से वृक्षों की छाया दूर हो गई है| सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से रजनीश कुमार को प्रथम अपील के बाद जो जो सूचना मिली उसके अनुसार इस पथ में काटने के लिए कुल 3980 पेड़ चिन्हित किए गए थे| जिसमें से 2593 वृक्षों की कटाई हो चुकी है| शेष 1387 को बचने का प्रयास किया जा रहा है| निविदा के शर्त मुताबिक़ काटे गए पेड़ों का तीन गुणा नए पौधे लगाना है| इस कारण यहाँ उन्हें कुल 11940 पौधे लगाने हैं। दी गयी जानकारी के अनुसार अब तक किलोमीटर 102 से किलोमीटर 138 के बीच कुल 2673 पौधे लगाए जा चुके हैं। इस लिहाज से देखें तो अब तक कम से कम 7779 पौधे लगाए जाने चाहिए थे| जबकि काटे गए वृक्ष के मुकाबले मात्र 34 फिसद यानी 2673 पौधे ही लगाए गए हैं|

माँगी गयी सूचना-
अनीसाबाद-औरंगाबाद-हरिहरगंज पथ के निर्माण के क्रम में कौन-कौन प्रजाति के कितने वृक्ष काटे गए?
काटे गए वृक्षों के बदले वृक्षारोपण का परियोजना में क्या प्रावधान है और काटे गए वृक्षों के बदले किस प्रजाति के और कितने पौधे लगाए गए?

जो ख़ास जवाब मिला-
सूचना के अनुसार सड़क किनारे केवल सजावटी पौधे, मसलन गुलमोहर, कचनार, जामुन, अर्जुन, बिलायती, बबूल, इत्यादि ही लगाने हैं। कुल काटे गए वृक्षों में आम के 64, बरगद के 72, पीपल के 83, ताड के 441, शीशम के 266, शिरीष के 109, यूकेलिप्टस के 105, अर्जुन के 124, कदम के 59 और अन्य 1271 बबूल, नीम, जामुन, महुवा, बकैन के पेड़ हैं।

पेड़ लगाने के लिए विधिक तरीके से करें बाध्य-रजनीश
शिक्षक रजनीश कुमार का कहना है कि अगर एजेंसी द्वारा निविदा के अनुसार कार्य नहीं किया जा रहा हो तो इन्हें विधिक तरीके से इस हेतु बाध्य करे। आम जन स्वयं स्थल निरीक्षण कर एनएच किनारे किए गए पौधारोपण से वाकिफ हो| कहीं का भी केवल एक किलोमीटर में लगाए गए पौधों की गणना तो कर ही सकता है। अगर सूचना में दिए गए तथ्यों के आलोक में पौधारोपण नहीं किया गया है तो अपने मोबाईल से फोटो लेकर सीधे सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में शिकायत दर्ज कराया सकता है। इसमें कोई खर्च नहीं है, शिकायतकर्त्ता के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन हो। इससे पर्यावरण व भ्रष्टाचार दोनों क्षेत्र में काम होगा|

यहाँ करें शिकायत

 www.pgportal.gov.in पर दर्ज शिकायत की संख्या मिलती है और प्रगति प्रतिवेदन अपलोड किया जाता है। लोग चाहें तो सामाजिक कार्य कर रही संस्था नागरिक अधिकार मंच के पास ईमेल citizenrightbihar@gmail.com कर सकते हैं| यह नागरिकों के शिकायतों को एकत्र कर उसे संबंधित ऑथोरिटी के पास प्रेषित करती है और फिर दर्ज शिकायत का लगातार फॉलोअप करती है। 

Thursday 27 July 2017

अपनी गरीबी के कारण यहां हिन्दू भी दफनाते हैं शव


दाह संस्कार भी करने के लिए पैसे नहीं| गरीबी क्या होती है जरा यहां देखिए| कबीर अंत्येष्टि योजना की जानकारी से हैं अनभिज्ञ भुलेटन व भुइयां बिगहा का है यह हाल|

उपेंद्र कश्यप
औरंगाबाद का दो अनुठा गांव है। यहां हिन्दू बसते हैं। पूजा पाठ व हिन्दू धर्म संस्कृति में लोगों को गहरी आस्था भी है। यहां की महिलाएं छठ व्रत भी करती हैं। लेकिन यहां के लोग हिन्दू संस्कृति के अनुसार शव को जलाते नहीं हैं। नदी में जल प्रवाह भी नहीं करते। यहां के लोग शव को दफनाते हैं। यह गांव हैं दाउदनगर अनुमंडल के दो समीपवर्ती गांव संसा के भुलेटन बिगहा व मनार का भुइयां बिगहा। यहां सदियों से शव को दफनाने की परम्परा चली आ रही है। इस गांव में नट, खलीफा व वैद्य जाति के लोग रहते हैं।

० कबीर अंत्येष्टि योजना की नहीं है जानकारी :
ग्रामीणों को कबीर अंत्येष्टि योजना की जानकारी नहीं है। इस योजना का लाभ इन्हें आजतक नहीं मिला। यह योजना क्या है इसके बारे में ये लोग जानते तक नहीं हैं। दोनों टोलों में न आंगनबाड़ी केन्द्र है न ही विद्यालय। दोनों टोलों को मिलाकर पांच सौ की आबादी यहां बसती है।

० जलाने को लकड़ी कहां से लायें :
परिजनों के शव को क्यों दफनाते हैं? इस सवाल पर खैराती नट, पतालू नट, जुलुम नट, प्रवेश नट, मोहरमिया देवी, मुंडी देवी, शकुर नट, इलायची देवी व तबीजनी देवी बताती हैं कि जो बाप दादा करते थे वही कर रहे हैं दूसरा खाने के लिए तो भीख मांगते है, जलाने के लिए जो लकड़ी चाहिए, वो कहां से लायें इसके लिए क्या बेचें। सरकारी सहायता के बारे में इन लोगों को जानकारी नहीं है।

० लाश गाड़े तो मजार बनाओ :
ग्रामीण भोले हैं कुछ लोग धार्मिक कारणों से इन्हें समझाते हैं। कहतें हैं कि तुमलोग हिन्दू नहीं हो कुछ ने मजार बनवा कर ऊदरू में उस पर नाम खुदवा दिये इससे इन्हें कोई ऐतराज नहीं है। टुना नट बताते हैं कि कुछ लोग समझाये कि जब लाश गाडते हो तो मजार तो बनाना पडेगा बस मजार बना दिया जाता हैं।

० महाराणा के वंशज होने का गौरवबोध :
यहां लोगों के पोशाक आदिवासी जैसे होते हैं महिलाएं घाघरा पहनती हैं पुरूष केवल लुंगी 80 वर्षीय वृद्ध रतिलाल राठौर (नट) ने बताया कि-साहेब हमलोग महाराणा प्रताप के वंशज हैं हल्दी घाटी की लड़ाई से जो भागे तो आज भी रहने का स्थाई ठिकाना नसीब नहीं हुआ।

० कोई गंगा निकलनी चाहिए: गोपेन्द्र
इन गरीबों के बीच पराया जा कर जागरूक करने का प्रयास कर रहे शिक्षक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा ने बताया कि आज तक इनके बीच से कोई बच्चा मैटिक तक की शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता हैं इनकी आदत यथा खान पान रहन सहन बोली सब अलग है। इनकी जिंदगी खानाबदोशों से मिलती जुलती है।गोपेंद्र कुमार सिन्हा

० गरीबी के कारण शव दफनाना बना परंपरा
परिजनों के शव दफनाने के लिए होने वाले खर्च का जुगाड़ करना यहां के लोगों के लिए पहाड़ खोदने जैसा है। नतीजा इसका रास्ता ग्रामीणों ने शव जलाने के बदले दफनाने की परंपरा शुरू कर दी। गरीबी का जीवन कितना मुश्किल होता है नेताओं एवं अधिकारियों को यहां आकर देखना चाहिए।


Tuesday 25 July 2017

स्थानांतरण, पदस्थापन, विदाई समारोह की राजनीति।


शहरनामा-उपेंद्र कश्यप
स्थानान्तरण चर्चा में है। इससे अधिक पदस्थापन की चर्चा है। जातिवाद का विरोध करने वाले, समाज के साथ न्याय की दुहाई देने वाले दावा कर रहे हैं, कि उनके नेता का ही प्रयास है कि समीकरण के अधिकारी आये। एक अन्य गुट भी ऐसा ही दावा कर रहा है। इनको अपने दलीय नेता जी को लेकर दावा है। अब इस दावे में सच कितना है, कोई नहीं जानता। हाँ, जानते होंगे आने वाले और लाने वाले। दोनों से अधिक भेजने वाले। इस दावे के उलट चर्चा यह भी है कि एक पूर्व माननीय नए वाले अधिकारी को भी ले कर आये हैं। इनकी ओर से कुछ नहीं कहा जा रहा है। किंतु इनके समर्थकों का दावा ऐसा ही है। पहले भी इनकी चर्चा रही है, बड़े अधिकारी को लाने को लेकर। खैर, आना जाना अधिकारियों का लगा रहता है। चर्चा भी होते रहती है। इस बार खास चर्चा यह भी है कि जातीय खांचे में फिट न बैठने के कारण जो गुट असहज महसूस कर रहा था उसने विदाई समारोह का बहिष्कार किया। वे चाहते थे कि जाने वाले अधिकारी का विदाई समारोह न हो। इसमें जातीय व दलीय राजनीति के आख्यान प्रेरक तत्व के रूप में शामिल हैं। एक गुट खड़ा हुआ जो हमेशा ऐसे आयोजन करता रहा है, उसने बेहतर विदाई देने की ठान रखी है। इससे भाई लोग नाराज हैं। दलीय निष्ठा अलग है और जातीय भाईवाद अलग। एक साहब जा रहे है, एक साहब आ रहे हैं। अब देखिए, आने वाले समय में क्या क्या होता है। 

गठन नहीं ठोस कार्रवाई हो

साइबर अपराध पर काबू पाने के लिए साइबर सेल का गठन किया गया है। अच्छी बात है। लेकिन सवाल है इससे क्या लाभ होगा? जब कार्रवाई के लिए प्रयाप्त मानव बल नहीं, तकनीकी सुविधा संसाधन नहीं, कार्यप्रणाली दुरुस्त नहीं, काम करने और अनुसंधान को अंजाम तक पहुंचाने का जज्बा व इच्छाशक्ति नहीं तो सेल क्या करेगा? यह तो खुद ही सेल होता रहेगा, जैसे अन्य अनुसंधानों के मामले में सेल होने की चर्चा होती रहती है। एक अच्छी कोशिश यह हो सकती है यदि सफलता मिले। साइबर क्राइम में सोशल मीडिया का अनसोशल होना भी आता है-श्री मान। क्या फेसबुक, ट्वीटर व ह्वाट्सएप का इस्तेमाल जब गैर कानूनी तरीके से होगा तो उस पर भी कार्रवाई होगी? या जाति, धर्म, दलीय निष्ठा देखकर कार्रवाई की जाएगी? यह सब देखना भी महत्वपुर्ण होगा। भाई लोग फेसबुक पर खुलकर गुण्डई करते है। बेहूदा टिप्पणी और अनर्गल प्रलाप करते हैं। ऐसे अनसोशल भाई लोगों को मुंबई वाला भैया कहना निरर्थक नहीं होगा। ऐसे तत्वों को जेल भेजे बिना प्रशासन का कोई प्रयास बेकार जाएगा। बिना दलीय और धार्मिक राजनीतिक निष्ठा देखे ऐसे तत्वों को जेल भेजे बिना प्रशासन भरोसा नहीं जीत सकता।

और अंत में-
लंबू को लगता है अपना आ गया कोई। दलाली में निपुणता ही व्यक्तित्व की गुणवत्ता किसी किसी की होती है।

Monday 17 July 2017

पार्टनर, ये ईमानदारी वाली पोलटिक्स क्या है?


उपेन्द्र कश्यप
प्रदेश में अभी सिर्फ राजनीती की चर्चा है| ईमानदारी बनाम दागी बनाम बेईमानी वाली पोलटिक्स चर्चा के केंद्र विन्दु में है| लोग कई तरह के सवाल आपसी गपशप में खुद से और तमाम राजनीतिक दलों व नेताओं से पूछ रहे हैं| किसी गपशप में आवाम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच रहा कि कौन ईमानदार है, कौन बेईमान है और कौन दागी मात्र? किसके पास नैतिकता बची हुई है, और बची हुई भी है तो उसकी मात्रा कितनी है? आदर्श स्थिति क्या है? है भी या नहीं? उलझन है, सब उलझ गया है, सुलझाने में भी उलझता जा रहा है गपशप| चाणक्य नाम मिला था राजनीति में, आज पार्टनर खुद चाणक्य बन कर चुनौती दे रहा है| त्याग पात्र नहीं देंगे, सफाई नहीं देंगे, जिसको जो फैसला लेना है ले| पार्टनर मुश्किल में है| उसकी साख बचेगी तो कुर्सी जायेगी और कुर्सी बचेगी तो साख जायेगी| वैसे अभी तक के ड्रामे में जो चला गया वह है- रचा हुआ आभा मंडल| शर्तिया, यह लौटने से रहा| चाहे कुर्सी बनाम साख की जंग में जो जीते| सवाल तो यह भी है है कि साख क्या है? पार्टनर बदल लेना भी एक साख है? कला है? इसमें जो चतुर सुजान है, वही पोलटिक्स का चाणक्य है| इसमें बड़े भाई के चाणक्य रहे छोटे माहिर हैं| वैसे राष्ट्रीय पटल पर इसमें माहिर कौन कितना आधिक है या कम है यह तय करना मुश्किल है| फिलहाल स्थिति यही है कि सभी अपने कुरते को दूसरे से अधिक सफेद बता रहे हैं| राजनीति में कहते हैं कि न कोइ स्थायी दोस्त होता है न कोइ स्थायी दुश्मन| कहावत है कि जंग, प्रेम व राजनीति में सब जायज है| अच्छा, क्या यह इमानदारी है या बेईमानी करने की सुविधा है? सब ऐसा कहते हैं और करते भी हैं| संप्रति, राजनीति में इमानदारी खोजी जा रही है| जनता तो मानती है कि सभी अति इमानदार हैं| बेईमानी का आरोप तो तब लगता है जब अगले को हिस्सा नहीं मिलता है या पकडे गए तब| वैसे लोग यह कह रहे हैं कि- अपना बोया हुआ पाप ही आज पुराने वाले चाणक्य भोग रहे हैं| बेचारे घुट-घुट कर जी रहे अब तक| इससे मुक्ति की छटपटाहट दिख रही है और दूसरी तरफ मुक्त के साथ युक्त होने, संयुक्त होने को लोग लार टपका रहे हैं| डर इस बात का भी है कि-मुक्त को युक्त कर सदैव के लिए मुक्त न कर दे, भावी  पार्टनर| पार्टनर यह पोलटिक्स है, सब नाजायज यहाँ जायज है| आमीन!              

और अंत में... दीप्ति मिश्रनौशाद
सब कुछ झूठ है फिर भी बिलकुल सच्चा लगता है|
जान बूझकर धोखा खाना कितना अच्छा लगता है|
अभी साज़े दिल में तराने बहुत हैं, अभी ज़िंदगी के बहाने बहुत हैं|
नए गीत पैदा हुए हैं उन्हीं से, जो पुरसोज़ नग़मे पुराने बहुत हैं|


Sunday 9 July 2017

मौनी बाबा देखे थे, अब फिर से नए मौनी बाबा को देखिए!

शहरनामा -उपेंद्र कश्यप
इतिहास खुद को दुहराता है। दो दशक बाद एक बार फिर से इतिहास खुद को दुहरा रहा है। नई पीढ़ी के लिए यह इतिहास जानने और राजनीति को समझने का समय है। एक इतिहास हजारों साल बाद खुद को दुहरा रहा है। बहुत सालों पहले बुद्ध को मगध के जिस क्षेत्र में बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, और जहां अहिँसा परमो धर्म: की सदा महाबीर ने लगाई थी, उस क्षेत्र में आज के राजा साहब ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य लाभ के बहाने आराम फरमा रहे हैं। साहब कभी बुद्ध के समतुल्य अपने समर्थकों द्वारा बताए जाते थे। बुद्ध ने सर्व समाज और विश्व कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त किया था। मध्य मार्ग अपनाने पर बल दिया था। महाबीर ने मनसा , वाचा व कर्मणा अहिंसक होने का ज्ञान विश्व को दिया। वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में राजा साहब -जिन्हें सुशासन बाबू कहें, या अब मौनी बाबा भी कह सकते है, राजगीर के गर्मकुंड से ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना कर रहे हैं। सुनते हैं कि थकान मिटाने के लिए गर्म पानी का स्नान लाभदायक होता है। इसका ही आत्म परीक्षण साहब कर रहे हैं। ज्ञान प्राप्ति की साहब की साधना विश्व कल्याणार्थ या सर्व समाज के कल्याण के लिए नहीं है। वे साधना कर रहे हैं कि क्या रास्ता निकाला जाए कि वर्तमान राजनीतिक संकट से मुक्ति मिल सके। इसी साधना के कारण वे कुछ बोल नहीं रहे हैं। प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कोई बुद्ध की तरह का मार्ग निकल जाए। इसी कारण उन्हें लोग अब मौनी बाबा कह रहे हैं। एक मौनी बाबा थे दो दशक पहले, लेकिन उन्हें भारत जानता था। कहीं भी झपकी ले लेते थे। सर्वोच्च पद पर थे तो स्वाभाविक है कोई बोल नहीं पाता था। अब भी कोई नहीं बोल सकता कि साधना से बाहर निकलिए महाराज, समय पहले की तरह के नहीं रहा, न ही पहले की तरह शक्तिशाली आप हैं। रोज बुद्धू बक्सा से लेकर बोलने वाले खद्दरधारी उकसा रहे है कि कुछ तो बोलिए महाराज। लेकिन महाराज की बोली नहीं निकल रही है। वे मौन व्रत धारण किए हुए हैं। रोहतास के कैमूर पहाड़ी के महादेवखोह में शिव की साधना में दो दशक पूर्व एक महात्मा लीन थे। उनका नाम ही मौनी बाबा रखा गया था। और वे इससे गौरवान्वित महसूस करते थे। आखिर साधु जो ठहरे। साहब या महाराज साधु नहीं हैं। इसलिए इन्हें गौरव का बोध नहीं हो रहा है। वे लज्जावश ऐसा करने को विवश है। इसीलिए सवाल उठ रहे हैं, आराधना हो रही है, कि महाराज कुछ तो बोलिए। मुंह तो खोलिए। कुछ नहीं प्रभाव पड़ रहा है। आखिर कलियुग जो आ गया है। घोर कलियुग। लेकिन माहादेव खोह वाले मौनी बाबा से साहब एक सबक तो सीख ले सकते थे। वे अपनी बात लिख कर देते थे। सामने वाला समझ जाता था। पूरक सवाल पर भी लिखित जवाब। अरे, बोल नहीं सकते तो लिख कर ही दे देते। पूरा देश को काहे बेचैन किये हुए हैं। राज्य परेशान, जनता परेशान, देश परेशान, मीडिया और नेता, दल परेशान। कुछ तो बोलिए, मुंह तो खोलिए। बुद्ध बन नहीं सके। उनका मध्य मार्ग तो आप अपना ही रहे है, लेकिन हमेशा नहीं अपनी सुविधानुसार। इसीलिए तो कभी उस नेता के काम का कभी विरोध नहीं किया जिसके नाम से ही आप चीढ़ गए थे। राज्य को माथे पर उठा लिया था। जनता आपको राज्य से उठा दी। आपने साथी बदल लिया और जिससे चिढ़ते थे उसको पटखनी दे दी।जिसके विरोध में राजनीति खड़ा की थी उसके साथ गलबहियां कर लिए, आज उसी कारण संकट में हैं। इस संकट में आप मौन धारण कर लिए। सब लोग कहते थे आप खूब बोलते हैं। बोले भी हैं। लगता है आप अभी महाबीर का अनुशरण कर रहे हैं। 
मन और वचन से भी आप किसी को आहत करना नहीं चाहते हैं । वह भी हिंसा मानी जाती है। अच्छा कर रहे हैं, किन्तु उनको कौन समझायेगा जो दिन रात इस जतन में लगे हैं कि आप कुछ तो बोलिए। याद आया आप रेनकोट वाले मौनी बाबा का भी अनुशरण कर रहे हैं उन्होंने कहा था-सौ जवाबों से बेहतर है मेरी चुप्पी। चलिए, सुशासन बाबू, सबको अब आप झप्पी दीजिए। आपके मौन व्रत टूटने की प्रतीक्षा में एक बिहारी।

और अंत में नीरज-
अबके सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई।
मेरा घर छोड़कर कुल शहर में बरसात हुई।

Monday 3 July 2017

जीएसटी: सिर्फ अबूझ नई बहुरिया नहीं बहुत कुछ है

दैनिक जागरण में प्रकाशित 03.07.17
उपेन्द्र कश्यप . . .
महीने की आखिरी रात थी। खा-पीकर अचाने के बाद पत्नी को बोला- जा सो जा। आज रात बारह बजे तक टीवी देखनी है। पत्नी बोली-ऐसा क्या है। मैं बोला- आज रात बारह बजे से जीएसटी लागू हो रहा है। पूरी दुनिया की नजर इस पर है। भारतीय बाजार के लिए यह क्रांतिकारी बदलाव होने वाला है। इसलिये लोकसभा के केंद्रीय कक्ष में समारोह होना है। उसे ही देखना है। बेटा बोला- हम भी देखेंगे। मैंने कहा- बेटा जीएसटी को समझ सकते हो तो देखो, अन्यथा दो चार के भाषण के अलावा कुछ होने वाला नहीं है। बेटा सोने चला गया। पत्नी पूछी-यह जीएसटी क्या होता है? तभी टीवी ने बताया कि- पत्नी पूछी कि तुम कितना प्यार करते हो? पति बोला-72 फीसद। पत्नी-क्यों 100 फीसद क्यों नहीं? क्या 28 फीसद दूसरे के लिए है? हम एक दूसरे का मुंह देख रहे थे तभी ज्ञानी बक्से ने बताया- नहीं रे पगली। 28 फीसद सरकार टैक्स में ले लेती है। अब सवाल है कि सरकार प्रेम करने पर पहरा नहीं लगा सकती? एंटी रोमियो स्क्वायड भले लगा दे, तो फिर टैक्स कैसे लगा देगी। कहीं टीवी वाले पति ने दूसरी के चक्कर को छुपाने के लिए तो टैक्स सरकार लेगी की बात पत्नी को नहीं कही? यह हो सकता है। यह दूसरी छुपाने की ही चीज है। चाहे दूसरी गर्ल फ्रेंड हो या दूसरी पत्नी। दूसरा रसीद (कच्चा) हो या रसीद से अधिक ढोया जा रहा दूसरा माल। सबकुछ छुपाना पड़ता है। और यह जो दूसरा है, इसी का कारोबार करने वाले जीएसटी का विरोध कर रहे हैं। जैसे पंचर बनाने वाले, साधारण कपड़ा बेचने वाले के विरोध का क्या मतलब। यह जीएसटी ऐसा है कि बहुरिया के पांव के लक्षण कैसे है, यह उसके आने से पहले ही लगाया जा रहा हो। कहते हैं-तिया चरित्तर दयियो न जाने। तो फिर नयकी बहुरिया के आवे से पहले कैसे जान जाओगे। आने दो। विश्वास करना सीखो, क्योकि जिसे आने से रोक नहीं सकते, उसके आने की प्रतीक्षा करना ही सार्थक होता है। जब किसी को बदल नहीं सकते तो उसके अनुसार खुद को बदल लो। यह जीने का सरल तरीका है। फिर जीएसटी से उम्मीदें काफी बताई जा रही है। हर तरफ चौक चौराहे पर इसकी चर्चा है। दलीय निष्ठा वालों की छोड़ दें तो अन्य सभी इसकी हर पहलू की चर्चा कर रहे हैं। सकारात्मकता अधिक दिखाई पड़ रही है। महंगाई कम होने की उम्मीद है। चावल बाजार की चर्चा में एक 'आपी' ने पूछा कि क्या जीएसटी से भरस्टाचार खत्म हो जाएगा? जवाब मिला-जब आपकी पत्नी आपको घी में डुबाकर रोटी देती है और उसी वक्त आपके पिता या माता या भाई को बिना घी घसे, यह कह कर कि घी नहीं है तो देश से आप तुरंत से ईमानदार बन जाने की उम्मीद क्यों करते हैं? यही यहां भी है। जिस आबादी को 70 साल तक बेईमान बनाया गया हो, कानून का अनुपालन न करने वाला बनाया गया हो उससे तुरंत ही सब कुछ बदल जाने की उम्मीद करना खुद को धोखे में ही रखना है। ईमानदार बनाने की एक कोशिश है जीएसटी। प्रधानमंत्री के शब्दों में अच्छा व सरल तब होगा, जब हम इसे इस लायक बनने देंगे। अन्यथा न यह अच्छा रहेगा, न ही सरल। 

इसलिए चर्चा इस पर भी होनी चाहिए कि ईमानदार कैसे बनें। आजकल तो फैशन चल गया है। दूसरे।को चोर बेईमान कहने का भले ही खुद या खुद का खानदान ही चोर, बेईमान, या भ्रस्टाचार में जेल चला गया हो। जो अपना है उसे हर हाल में ईमानदार ही मानना और बताना है। दूसरे को ही कानून सीखाना है, नैतिकता और व्यवहारकुशलता सीखानीे है। जीएसटी भी यही है, एक ईमानदार बनाने की कोशिश। सबको एक समान अवसर देने की कोशिश, सबको अनुशासित व्यवसायी और जिम्मेदार नागरिक बनाने की कोशिश। आप नागरिक बन कर समझिए, चोरी कैसे होगी इस मानसिकता को त्याग कर सोचिए। अब कर चोरी नहीं करनी है, यह प्रण कर सोचिए तो जीएसटी अच्छा व सरल लगेगा। जो सवाल उठा रहे हैं उनसे सवाल पूछिए कि जिस देश में मात्र 30 लाख लोग खुद को दस लाख से अधिक कमाने वाले बताते हैं उस देश के दो करोड़ लोग हर साल विदेश कैसे जाते है? करोड़ों गाड़ियां कैसे देश में हैं? क्या सभी गत तीन साल में ऐसे किए हैं? आप सोचिएगा तो देश सोचेगा। हम सोचेंगे तो आगे बढ़ेंगे। 

और अंत में बजट भाषण में अरुण जेटली को सुनिए--

''इस मोड़ पर घबराकर न थम जाइए आप,
जो बात नई है उसे अपनाइए आप।

डरते हैं नई राह पर क्यूं चलने से,
हम आगे आगे चलते हैं आइए आप''