Monday 17 July 2017

पार्टनर, ये ईमानदारी वाली पोलटिक्स क्या है?


उपेन्द्र कश्यप
प्रदेश में अभी सिर्फ राजनीती की चर्चा है| ईमानदारी बनाम दागी बनाम बेईमानी वाली पोलटिक्स चर्चा के केंद्र विन्दु में है| लोग कई तरह के सवाल आपसी गपशप में खुद से और तमाम राजनीतिक दलों व नेताओं से पूछ रहे हैं| किसी गपशप में आवाम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच रहा कि कौन ईमानदार है, कौन बेईमान है और कौन दागी मात्र? किसके पास नैतिकता बची हुई है, और बची हुई भी है तो उसकी मात्रा कितनी है? आदर्श स्थिति क्या है? है भी या नहीं? उलझन है, सब उलझ गया है, सुलझाने में भी उलझता जा रहा है गपशप| चाणक्य नाम मिला था राजनीति में, आज पार्टनर खुद चाणक्य बन कर चुनौती दे रहा है| त्याग पात्र नहीं देंगे, सफाई नहीं देंगे, जिसको जो फैसला लेना है ले| पार्टनर मुश्किल में है| उसकी साख बचेगी तो कुर्सी जायेगी और कुर्सी बचेगी तो साख जायेगी| वैसे अभी तक के ड्रामे में जो चला गया वह है- रचा हुआ आभा मंडल| शर्तिया, यह लौटने से रहा| चाहे कुर्सी बनाम साख की जंग में जो जीते| सवाल तो यह भी है है कि साख क्या है? पार्टनर बदल लेना भी एक साख है? कला है? इसमें जो चतुर सुजान है, वही पोलटिक्स का चाणक्य है| इसमें बड़े भाई के चाणक्य रहे छोटे माहिर हैं| वैसे राष्ट्रीय पटल पर इसमें माहिर कौन कितना आधिक है या कम है यह तय करना मुश्किल है| फिलहाल स्थिति यही है कि सभी अपने कुरते को दूसरे से अधिक सफेद बता रहे हैं| राजनीति में कहते हैं कि न कोइ स्थायी दोस्त होता है न कोइ स्थायी दुश्मन| कहावत है कि जंग, प्रेम व राजनीति में सब जायज है| अच्छा, क्या यह इमानदारी है या बेईमानी करने की सुविधा है? सब ऐसा कहते हैं और करते भी हैं| संप्रति, राजनीति में इमानदारी खोजी जा रही है| जनता तो मानती है कि सभी अति इमानदार हैं| बेईमानी का आरोप तो तब लगता है जब अगले को हिस्सा नहीं मिलता है या पकडे गए तब| वैसे लोग यह कह रहे हैं कि- अपना बोया हुआ पाप ही आज पुराने वाले चाणक्य भोग रहे हैं| बेचारे घुट-घुट कर जी रहे अब तक| इससे मुक्ति की छटपटाहट दिख रही है और दूसरी तरफ मुक्त के साथ युक्त होने, संयुक्त होने को लोग लार टपका रहे हैं| डर इस बात का भी है कि-मुक्त को युक्त कर सदैव के लिए मुक्त न कर दे, भावी  पार्टनर| पार्टनर यह पोलटिक्स है, सब नाजायज यहाँ जायज है| आमीन!              

और अंत में... दीप्ति मिश्रनौशाद
सब कुछ झूठ है फिर भी बिलकुल सच्चा लगता है|
जान बूझकर धोखा खाना कितना अच्छा लगता है|
अभी साज़े दिल में तराने बहुत हैं, अभी ज़िंदगी के बहाने बहुत हैं|
नए गीत पैदा हुए हैं उन्हीं से, जो पुरसोज़ नग़मे पुराने बहुत हैं|


1 comment:

  1. शानदार भैया
    सैल्यूट है आपको

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