Monday 3 July 2017

जीएसटी: सिर्फ अबूझ नई बहुरिया नहीं बहुत कुछ है

दैनिक जागरण में प्रकाशित 03.07.17
उपेन्द्र कश्यप . . .
महीने की आखिरी रात थी। खा-पीकर अचाने के बाद पत्नी को बोला- जा सो जा। आज रात बारह बजे तक टीवी देखनी है। पत्नी बोली-ऐसा क्या है। मैं बोला- आज रात बारह बजे से जीएसटी लागू हो रहा है। पूरी दुनिया की नजर इस पर है। भारतीय बाजार के लिए यह क्रांतिकारी बदलाव होने वाला है। इसलिये लोकसभा के केंद्रीय कक्ष में समारोह होना है। उसे ही देखना है। बेटा बोला- हम भी देखेंगे। मैंने कहा- बेटा जीएसटी को समझ सकते हो तो देखो, अन्यथा दो चार के भाषण के अलावा कुछ होने वाला नहीं है। बेटा सोने चला गया। पत्नी पूछी-यह जीएसटी क्या होता है? तभी टीवी ने बताया कि- पत्नी पूछी कि तुम कितना प्यार करते हो? पति बोला-72 फीसद। पत्नी-क्यों 100 फीसद क्यों नहीं? क्या 28 फीसद दूसरे के लिए है? हम एक दूसरे का मुंह देख रहे थे तभी ज्ञानी बक्से ने बताया- नहीं रे पगली। 28 फीसद सरकार टैक्स में ले लेती है। अब सवाल है कि सरकार प्रेम करने पर पहरा नहीं लगा सकती? एंटी रोमियो स्क्वायड भले लगा दे, तो फिर टैक्स कैसे लगा देगी। कहीं टीवी वाले पति ने दूसरी के चक्कर को छुपाने के लिए तो टैक्स सरकार लेगी की बात पत्नी को नहीं कही? यह हो सकता है। यह दूसरी छुपाने की ही चीज है। चाहे दूसरी गर्ल फ्रेंड हो या दूसरी पत्नी। दूसरा रसीद (कच्चा) हो या रसीद से अधिक ढोया जा रहा दूसरा माल। सबकुछ छुपाना पड़ता है। और यह जो दूसरा है, इसी का कारोबार करने वाले जीएसटी का विरोध कर रहे हैं। जैसे पंचर बनाने वाले, साधारण कपड़ा बेचने वाले के विरोध का क्या मतलब। यह जीएसटी ऐसा है कि बहुरिया के पांव के लक्षण कैसे है, यह उसके आने से पहले ही लगाया जा रहा हो। कहते हैं-तिया चरित्तर दयियो न जाने। तो फिर नयकी बहुरिया के आवे से पहले कैसे जान जाओगे। आने दो। विश्वास करना सीखो, क्योकि जिसे आने से रोक नहीं सकते, उसके आने की प्रतीक्षा करना ही सार्थक होता है। जब किसी को बदल नहीं सकते तो उसके अनुसार खुद को बदल लो। यह जीने का सरल तरीका है। फिर जीएसटी से उम्मीदें काफी बताई जा रही है। हर तरफ चौक चौराहे पर इसकी चर्चा है। दलीय निष्ठा वालों की छोड़ दें तो अन्य सभी इसकी हर पहलू की चर्चा कर रहे हैं। सकारात्मकता अधिक दिखाई पड़ रही है। महंगाई कम होने की उम्मीद है। चावल बाजार की चर्चा में एक 'आपी' ने पूछा कि क्या जीएसटी से भरस्टाचार खत्म हो जाएगा? जवाब मिला-जब आपकी पत्नी आपको घी में डुबाकर रोटी देती है और उसी वक्त आपके पिता या माता या भाई को बिना घी घसे, यह कह कर कि घी नहीं है तो देश से आप तुरंत से ईमानदार बन जाने की उम्मीद क्यों करते हैं? यही यहां भी है। जिस आबादी को 70 साल तक बेईमान बनाया गया हो, कानून का अनुपालन न करने वाला बनाया गया हो उससे तुरंत ही सब कुछ बदल जाने की उम्मीद करना खुद को धोखे में ही रखना है। ईमानदार बनाने की एक कोशिश है जीएसटी। प्रधानमंत्री के शब्दों में अच्छा व सरल तब होगा, जब हम इसे इस लायक बनने देंगे। अन्यथा न यह अच्छा रहेगा, न ही सरल। 

इसलिए चर्चा इस पर भी होनी चाहिए कि ईमानदार कैसे बनें। आजकल तो फैशन चल गया है। दूसरे।को चोर बेईमान कहने का भले ही खुद या खुद का खानदान ही चोर, बेईमान, या भ्रस्टाचार में जेल चला गया हो। जो अपना है उसे हर हाल में ईमानदार ही मानना और बताना है। दूसरे को ही कानून सीखाना है, नैतिकता और व्यवहारकुशलता सीखानीे है। जीएसटी भी यही है, एक ईमानदार बनाने की कोशिश। सबको एक समान अवसर देने की कोशिश, सबको अनुशासित व्यवसायी और जिम्मेदार नागरिक बनाने की कोशिश। आप नागरिक बन कर समझिए, चोरी कैसे होगी इस मानसिकता को त्याग कर सोचिए। अब कर चोरी नहीं करनी है, यह प्रण कर सोचिए तो जीएसटी अच्छा व सरल लगेगा। जो सवाल उठा रहे हैं उनसे सवाल पूछिए कि जिस देश में मात्र 30 लाख लोग खुद को दस लाख से अधिक कमाने वाले बताते हैं उस देश के दो करोड़ लोग हर साल विदेश कैसे जाते है? करोड़ों गाड़ियां कैसे देश में हैं? क्या सभी गत तीन साल में ऐसे किए हैं? आप सोचिएगा तो देश सोचेगा। हम सोचेंगे तो आगे बढ़ेंगे। 

और अंत में बजट भाषण में अरुण जेटली को सुनिए--

''इस मोड़ पर घबराकर न थम जाइए आप,
जो बात नई है उसे अपनाइए आप।

डरते हैं नई राह पर क्यूं चलने से,
हम आगे आगे चलते हैं आइए आप''


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