Sunday 9 July 2017

मौनी बाबा देखे थे, अब फिर से नए मौनी बाबा को देखिए!

शहरनामा -उपेंद्र कश्यप
इतिहास खुद को दुहराता है। दो दशक बाद एक बार फिर से इतिहास खुद को दुहरा रहा है। नई पीढ़ी के लिए यह इतिहास जानने और राजनीति को समझने का समय है। एक इतिहास हजारों साल बाद खुद को दुहरा रहा है। बहुत सालों पहले बुद्ध को मगध के जिस क्षेत्र में बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, और जहां अहिँसा परमो धर्म: की सदा महाबीर ने लगाई थी, उस क्षेत्र में आज के राजा साहब ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य लाभ के बहाने आराम फरमा रहे हैं। साहब कभी बुद्ध के समतुल्य अपने समर्थकों द्वारा बताए जाते थे। बुद्ध ने सर्व समाज और विश्व कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त किया था। मध्य मार्ग अपनाने पर बल दिया था। महाबीर ने मनसा , वाचा व कर्मणा अहिंसक होने का ज्ञान विश्व को दिया। वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में राजा साहब -जिन्हें सुशासन बाबू कहें, या अब मौनी बाबा भी कह सकते है, राजगीर के गर्मकुंड से ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना कर रहे हैं। सुनते हैं कि थकान मिटाने के लिए गर्म पानी का स्नान लाभदायक होता है। इसका ही आत्म परीक्षण साहब कर रहे हैं। ज्ञान प्राप्ति की साहब की साधना विश्व कल्याणार्थ या सर्व समाज के कल्याण के लिए नहीं है। वे साधना कर रहे हैं कि क्या रास्ता निकाला जाए कि वर्तमान राजनीतिक संकट से मुक्ति मिल सके। इसी साधना के कारण वे कुछ बोल नहीं रहे हैं। प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कोई बुद्ध की तरह का मार्ग निकल जाए। इसी कारण उन्हें लोग अब मौनी बाबा कह रहे हैं। एक मौनी बाबा थे दो दशक पहले, लेकिन उन्हें भारत जानता था। कहीं भी झपकी ले लेते थे। सर्वोच्च पद पर थे तो स्वाभाविक है कोई बोल नहीं पाता था। अब भी कोई नहीं बोल सकता कि साधना से बाहर निकलिए महाराज, समय पहले की तरह के नहीं रहा, न ही पहले की तरह शक्तिशाली आप हैं। रोज बुद्धू बक्सा से लेकर बोलने वाले खद्दरधारी उकसा रहे है कि कुछ तो बोलिए महाराज। लेकिन महाराज की बोली नहीं निकल रही है। वे मौन व्रत धारण किए हुए हैं। रोहतास के कैमूर पहाड़ी के महादेवखोह में शिव की साधना में दो दशक पूर्व एक महात्मा लीन थे। उनका नाम ही मौनी बाबा रखा गया था। और वे इससे गौरवान्वित महसूस करते थे। आखिर साधु जो ठहरे। साहब या महाराज साधु नहीं हैं। इसलिए इन्हें गौरव का बोध नहीं हो रहा है। वे लज्जावश ऐसा करने को विवश है। इसीलिए सवाल उठ रहे हैं, आराधना हो रही है, कि महाराज कुछ तो बोलिए। मुंह तो खोलिए। कुछ नहीं प्रभाव पड़ रहा है। आखिर कलियुग जो आ गया है। घोर कलियुग। लेकिन माहादेव खोह वाले मौनी बाबा से साहब एक सबक तो सीख ले सकते थे। वे अपनी बात लिख कर देते थे। सामने वाला समझ जाता था। पूरक सवाल पर भी लिखित जवाब। अरे, बोल नहीं सकते तो लिख कर ही दे देते। पूरा देश को काहे बेचैन किये हुए हैं। राज्य परेशान, जनता परेशान, देश परेशान, मीडिया और नेता, दल परेशान। कुछ तो बोलिए, मुंह तो खोलिए। बुद्ध बन नहीं सके। उनका मध्य मार्ग तो आप अपना ही रहे है, लेकिन हमेशा नहीं अपनी सुविधानुसार। इसीलिए तो कभी उस नेता के काम का कभी विरोध नहीं किया जिसके नाम से ही आप चीढ़ गए थे। राज्य को माथे पर उठा लिया था। जनता आपको राज्य से उठा दी। आपने साथी बदल लिया और जिससे चिढ़ते थे उसको पटखनी दे दी।जिसके विरोध में राजनीति खड़ा की थी उसके साथ गलबहियां कर लिए, आज उसी कारण संकट में हैं। इस संकट में आप मौन धारण कर लिए। सब लोग कहते थे आप खूब बोलते हैं। बोले भी हैं। लगता है आप अभी महाबीर का अनुशरण कर रहे हैं। 
मन और वचन से भी आप किसी को आहत करना नहीं चाहते हैं । वह भी हिंसा मानी जाती है। अच्छा कर रहे हैं, किन्तु उनको कौन समझायेगा जो दिन रात इस जतन में लगे हैं कि आप कुछ तो बोलिए। याद आया आप रेनकोट वाले मौनी बाबा का भी अनुशरण कर रहे हैं उन्होंने कहा था-सौ जवाबों से बेहतर है मेरी चुप्पी। चलिए, सुशासन बाबू, सबको अब आप झप्पी दीजिए। आपके मौन व्रत टूटने की प्रतीक्षा में एक बिहारी।

और अंत में नीरज-
अबके सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई।
मेरा घर छोड़कर कुल शहर में बरसात हुई।

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