Tuesday 25 July 2017

स्थानांतरण, पदस्थापन, विदाई समारोह की राजनीति।


शहरनामा-उपेंद्र कश्यप
स्थानान्तरण चर्चा में है। इससे अधिक पदस्थापन की चर्चा है। जातिवाद का विरोध करने वाले, समाज के साथ न्याय की दुहाई देने वाले दावा कर रहे हैं, कि उनके नेता का ही प्रयास है कि समीकरण के अधिकारी आये। एक अन्य गुट भी ऐसा ही दावा कर रहा है। इनको अपने दलीय नेता जी को लेकर दावा है। अब इस दावे में सच कितना है, कोई नहीं जानता। हाँ, जानते होंगे आने वाले और लाने वाले। दोनों से अधिक भेजने वाले। इस दावे के उलट चर्चा यह भी है कि एक पूर्व माननीय नए वाले अधिकारी को भी ले कर आये हैं। इनकी ओर से कुछ नहीं कहा जा रहा है। किंतु इनके समर्थकों का दावा ऐसा ही है। पहले भी इनकी चर्चा रही है, बड़े अधिकारी को लाने को लेकर। खैर, आना जाना अधिकारियों का लगा रहता है। चर्चा भी होते रहती है। इस बार खास चर्चा यह भी है कि जातीय खांचे में फिट न बैठने के कारण जो गुट असहज महसूस कर रहा था उसने विदाई समारोह का बहिष्कार किया। वे चाहते थे कि जाने वाले अधिकारी का विदाई समारोह न हो। इसमें जातीय व दलीय राजनीति के आख्यान प्रेरक तत्व के रूप में शामिल हैं। एक गुट खड़ा हुआ जो हमेशा ऐसे आयोजन करता रहा है, उसने बेहतर विदाई देने की ठान रखी है। इससे भाई लोग नाराज हैं। दलीय निष्ठा अलग है और जातीय भाईवाद अलग। एक साहब जा रहे है, एक साहब आ रहे हैं। अब देखिए, आने वाले समय में क्या क्या होता है। 

गठन नहीं ठोस कार्रवाई हो

साइबर अपराध पर काबू पाने के लिए साइबर सेल का गठन किया गया है। अच्छी बात है। लेकिन सवाल है इससे क्या लाभ होगा? जब कार्रवाई के लिए प्रयाप्त मानव बल नहीं, तकनीकी सुविधा संसाधन नहीं, कार्यप्रणाली दुरुस्त नहीं, काम करने और अनुसंधान को अंजाम तक पहुंचाने का जज्बा व इच्छाशक्ति नहीं तो सेल क्या करेगा? यह तो खुद ही सेल होता रहेगा, जैसे अन्य अनुसंधानों के मामले में सेल होने की चर्चा होती रहती है। एक अच्छी कोशिश यह हो सकती है यदि सफलता मिले। साइबर क्राइम में सोशल मीडिया का अनसोशल होना भी आता है-श्री मान। क्या फेसबुक, ट्वीटर व ह्वाट्सएप का इस्तेमाल जब गैर कानूनी तरीके से होगा तो उस पर भी कार्रवाई होगी? या जाति, धर्म, दलीय निष्ठा देखकर कार्रवाई की जाएगी? यह सब देखना भी महत्वपुर्ण होगा। भाई लोग फेसबुक पर खुलकर गुण्डई करते है। बेहूदा टिप्पणी और अनर्गल प्रलाप करते हैं। ऐसे अनसोशल भाई लोगों को मुंबई वाला भैया कहना निरर्थक नहीं होगा। ऐसे तत्वों को जेल भेजे बिना प्रशासन का कोई प्रयास बेकार जाएगा। बिना दलीय और धार्मिक राजनीतिक निष्ठा देखे ऐसे तत्वों को जेल भेजे बिना प्रशासन भरोसा नहीं जीत सकता।

और अंत में-
लंबू को लगता है अपना आ गया कोई। दलाली में निपुणता ही व्यक्तित्व की गुणवत्ता किसी किसी की होती है।

2 comments:

  1. बहुत सही लिखे हैं ।

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  2. लंबू जी का तंबू हिल गया है।
    धन्यवाद।

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