Tuesday 25 April 2017

संकट में शहर का समृद्ध इकलौता पुस्तकालय

विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
28 साल से आपसी सहयोग से चल रही लाइब्रेरी
आर्थिक सहयोग के साथ पुस्तक ले जाकर पढ़े लोग
कई बार झेल चुका है विस्थापन का दर्द
शहर का इकलौता और समृद्ध महर्षि दयानंद सरस्वती पुस्तकालय आज संकट में है| मगध एजुकेशनल एंड सोशल ऑर्गनाइजेशन (मेसो) द्वारा संचालित इस पुस्तकालय की स्थापना 25 सितम्बर 1989 को किया गया था| तब से जनसहयोग से यह संचालित है| कई बार विस्थापित होने के बाद इसे नगरपालिका मार्केट की छत पर अस्थाई निर्माण की अनुमति 21 फरवरी 2007 को मिली थी। जनसहयोग और पुस्तकालय के प्रति जीवन समर्पित कर चुके गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ के कारण बडा कमरा बनाया जा सका। यहीं पुस्तकालय चल रहा है। नगर पंचायत अध्यक्ष ने खुद भूमि आवंटित करने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद उन्हें आवेदन दिया गया। अब भी सबको इंतजार है| यहां करीब 50000 से अधिक पत्रिकाए और पुस्तकें उपलब्ध हैं। सभी समाचार पत्र, सभी प्रतियोगी पुस्तकें, आवश्यक पुस्तकें छात्रों को कम शुल्क पर उपलब्ध कराया जाता है। मात्र 40 रुपये के मासिक शुल्क पर सुविधा उपलब्ध है| सैकड़ों छात्र यहाँ से अध्ययन कर सरकारी नौकरी में गए और प्रतिष्ठित जीवन जी रहे हैं|

जिन्होंने किया था स्थापित—
महर्षि दयानंद सरस्वती के मार्ग पर चलते हुए सीताराम आर्य, कृष्णा कश्यप, महेन्द्र कुमार पिंटु, अवधेश कुमार,संतोष केशरी, कृष्णा ठाकुर, मिथलेश सिंहा, लव कुमार केशरी, संजय कुमार, दिनेश कुमार उर्फ़ लालू, गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ व बीरेंद्र कुमार सोनी ने कॉमिक्स बुक से इसको प्रारम्भ किया था|

बुद्धिजीवी जुड़ें-गोस्वामी

पुस्तकालय के सर्वेसर्वा गोस्वामी राघवेन्द्र नाथ बताते हैं कि आर्थिक सहयोग करने वालों की आवशयकता है| बुद्धिजीवी जुड़ें| साथ ही ऐसे लोग चाहिए जो यहाँ से किताब ले जाकर पढ़ें| नियमित मासिक शुल्क देने वाले सदस्य बनें| इस महीने पुस्तकाले घाटे में है| सदस्य नियमित आयें और मासिक शुल्क जमा करें|

छात्राओं के लिए है रौशनी

पुस्तकालय के स्थापना सदस्य अवधेश कुमार व संतोष केशरी ने कहा कि छात्रों के लिए यह एक रौशनी है| शराबबंदी के बाद पुस्तकालय स्थल का माहौल बदल गया है| वे आयें, जुड़ें और लाभ उठायें| सुबह शाम यहाँ अध्ययन कर अपना कैरियर बनाएं| यह बौद्धिक ज्ञान का केंद्र है| कम खर्च पर पठान-पाठन कर गरीब विद्यार्थी सफल हो सकते हैं| सरकारे उपेक्षा के कारण स्थिति ठीक नहीं है| 

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