Thursday 3 November 2016

देव व उलार सा प्रतिष्ठित है मायर सूर्य मन्दिर

                शमशेरनगर का सूर्य मन्दिर
मुगल काल में ध्वस्त हुआ था प्राचीन मन्दिर
नया मन्दिर का निर्माण 1940 के दशक में
शमशेरनगर में भगवान सूर्य की प्राचीन प्रतिमा नये मन्दिर में स्थापित है। महाकवि बाणभट्ट ने भी मायर के छठ का जिक्र किया है। महर्षि भृगु ने भृगु संहिता में मायर का जिक्र किया है। ग्रामीण भानु प्रताप ने बताया कि पुरातन काल में मायर में सूर्य मंदिर था। देव और उलार के बराबर यहां के छठ पर्ब का महत्व है। छठ तालाब से बर्तमान सूर्य मंदिर की दुरी करीब आधा किलोमीटर है। इस मन्दिर का निर्माण नया है। बताया गया कि मुग़ल शासन में प्राचीन मन्दिर को तोड दिया गया था। तब मन्दिर में स्थापित मूर्ति को किसी तरह बचा लिया और और डीह में दबा दिया था। मंदिर में सूर्य भगवान की अष्टधातु की मूर्ति है। बाद में कुँए की खुदाई के समय ये मूर्ति मिली थी। इसके बाद ग्रामीण (अब स्व.) सीता सिंह ने वर्तमान मंदिर की नींव 1938 में रखी। इस का निर्माण कार्य 1940 में पूरा हुआ। इसी बर्ष इस मंदिर में भगवान की खुदाई में प्राप्त प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा काशी के आचार्यो द्वारा हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि मन्दिर का निर्माण एक मुसलमान राजमिस्री पीर मोहम्मद खान ने किया है। 

मैरिया से मायर बनाम शमशेरनगर
प्रखंड के सबसे बडे पंचायत शमशेरनगर का ही प्राचीन नाम मायर है। बताया जाता है कि भुमिहारों का एक वर्ग जो मैरिया भुमिहार माना जाता है उनके कारण ही इस गांव का नाम मायर पडा होगा। छठी शाताब्दी के महाकवि मयूरभट्ट का जन्म हसपुरा के पीरू ग्राम में हुआ था परंतु उन्होने अपना आवास मायर में बनाया था। ऐसा माना जाता है। मयूरभट्ट भगवान सूर्य के भक्त थे और उन्होने सूर्य शप्तकम नामक ग्रंथ की रचना की थी। मुगल सुबेदार षमषेर खाँ द्वारा 1772 ई॰ में यहां मकबरा का निर्माण किया गया था। स्थापत्यकला का यह खुबसूरत नमूना है। मुगल काल में शमशेरनगर बना। शायद इसीलिए लोक में यह मिथक है कि शमशेर खां ने ही इस गांव को बसाया था।

दूर दूर तक महत्व

गांव के वार्ड सदस्य रविरंजन कुमार ने बताया कि गांव में ही नहीं बल्कि इस मन्दिर की महिमा दूर –दूर तक है। कहा कि मान्यता है कि मायर में छठ करने से कुष्ठ जैसा रोग दूर हो जाता है। यहां छठ व्रत को ले चहल पहल बढ गयी है। यहां चैती और कार्तिकी दोनों छठ व्रत के अवसर पर व्रती काफी संख्या में जुटते हैं। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि यहां व्रतियों की सुविधा के लिए विभिन्न व्यवस्था करे।

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