Sunday 13 November 2016

सन्दूक से धन तो निकालों यारों




नवाबों का शहर दाउदनगर परेशान है। कवि ने कहा है-सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है? परेशान न हो तो क्या करें भाई? ई केन्द्र सरकार ने ऐसा गजब ढाया है कि बहुतायत परेशान जनता फैसले को सही बताते हुए अपनी परेशानी बता रही है। उधर कुछ खास लोग ऐसे हैं जो अधिक से काफी अधिक परेशान हैं। वे जनता की परेशानी का हवाला दे कर अपनी परेशानी को कम करना चाहते हैं। वास्तव में आम जनता का दर्द बहाना है और असली चिंता अपना धन काला से उजला करना है। समझते नहीं है क्या साहब ? जनता के खिलाफ होने वाले हर कार्य को नेता, अधिकारी, जमाखोर व सूदखोर ‘जनता के हित’ की दुहाई दे कर करते हैं। जनता के लिए, जनता के लिए और जनता परेशान है की चिल्ल पों इसीलिए मचाते हैं भाई लोग. कि इसी बहाने जनता उनके समर्थन में आ जाये। अपना उजला धन निकालने के लिए कतारबद्ध सफेद बाल वाले भी केन्द्र के विमुद्रीकरण के इस फैसले को जायज, देशहित में बता रहे हैं। यह और बात है कि वे अपनी परेशानी भी साझा कर रहे हैं। चर्चा है कि बदलने वाली है शहर की फिजां की खुशबू। चर्चा हकीकत बनी तो कई के दिवाले निकल जायेंगे। कई अपने धन की बोरियां ठिकाने लगाने में लगे हैं। बार-बार याद आता है एक आयकर अधिकारी का बयान। यहां मिटिंग करने जब आये थे तो उनके सामने कम लोग उपस्थित हुए। समझाया था तब किसी ने नहीं समझा। सबने पिछली सरकारों की तरह इस प्रयास को भी ‘आया राम गया राम’ वाला समझ लिया था। सबसे वरिष्ठ अधिकारी ने अपने संबोधन में तब कहा था कि- ‘मैं आया हूं इसलिए मिठाई चल रहा है, आप शांति से हैं। ईश्वर न करे फिर आना पडे। जब दूबारा आयेंगे तो परेशान हो जायेंगे आप।‘ अब कई लोग अपना काला धन छुपाने के लिए जुगत भिडा रहे हैं। उधर सरकार और आक्रामक रुख दिखा रही है। चर्चा है कि शहर में भी नोट बहते दिखेंगे या जलते दिखेंगे। हाय रे धन। कहते हैं धन की तीन ही गति होती है-भोग, दान और नाश। जिसने इसे समझ लिया था वे मौज कर रहे हैं, जो न समझे वे भुगत रहे हैं। न बेचारे भोग कर सके न दान कर पुण्य कमा सके। अब उनके धन का नाश दिख रहा है। 

आज दुश्यंत कुमार होते तो कहते-
आज सीवन को उधेडो तो जरा देखेंगे।
आज सन्दूक से वे खत (धन) तो निकालो यारों।

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता।
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे॥

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