Sunday 27 November 2016

बंद तो बंद है, साँसें बंद हो या भारत


आज भारत बंद है| बंद भ्रष्टाचार, अत्याचार, के खिलाफ नहीं, बंद है कालेधन के खिलाफ हुई कारर्वाई के खिलाफ| सबके अपने तर्क हो सकते है, किन्तु सच यही है कि पहली बार सरकार के खिलाफ बंदी के मुद्दे के साथ जनता का समर्थन है न कि बंदी कराने वाले विपक्षियो के साथ| खैर, जनता इस पर बंटी हुई है| इसके खिलाफ ऑर समर्थन में भीड़ है और उसके अपने तर्क है| इस प्रकरण पर मो.खुर्शीद आलम की एक कविता बरबस स्मरण हो आती है-
क्यों बंद करते हो दूकान का फाटक, बंद करो ये बंद करने कराने का नाटक| यहाँ बंद वहां बंद, गली बंद, चौराहा बंद, दूकान बंद, मकान बंद, मकान में अच्छा भला इन्सान बंद, पर किसी की आत्मा से ये आवाज नहीं निकली कि हो अत्याचार बंद, भ्रष्टाचार बंद, माँ की लूटती हुई इज्जत व बहन का हो रहा बलात्कार बंद| क्यों कहेंगे? ये तो खुद अत्याचारी है, मौत के व्यापारी है| बंद बंद के चक्कर में कल रात मर गया न रिक्शा चालाक का बाप| रिक्शा चला नहीं सका, अपने बाप को भर पेट खिला नहीं सका| बंद की सफलता पे जश्न मनाया गया, शराब व शबाब का दौर चलाया गया, बेचार रिक्शा वाला चीखता रहा, चिल्लाता रहा, सिसकता रहा, विलखता रहा| पर कोइ भी इसके बाप की अर्थी को कंधा लगाने नहीं आया| प्यार से कोइ पीठ थपथपाने नहीं आया| बार बार यही बुदबुदाता रहा कि काश, आज फिर कोइ बंद कराता और मै भी बाप की अर्थी पर सो जाता||
बंद की राजनीति हमेशा घातक होती है, आम लोगो को परेशान करती है| चाहे बंद कोइ कराये, भुगतना तो जनता को ही पड़ता है| जनता, जनता होती है चाहे वह किसी की समर्थक हो या विरोधी| जनता देश की होती है, यह सबको खयाल रखना चाहिए|

हरिबंश राय बच्चन कह गए है—
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।


3 comments:

  1. वैसे बंद का आह्वाहन कल है ।

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  2. विक्की भाई। यह व्यंग्य शब्दचित्र भी जागरण के लिए है जो कल छपेगी। इसलिए "आज" शब्द इस्तेमाल किया गया है।

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  3. बहुत सटीक और समयसंगत है।

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