Tuesday 8 November 2016

मीडिया ही नहीं विधायक भी हुए हैं इसके शिकार

प्रसंग- एनडीटीवी पर प्रतिबन्ध : लोकतंत्र पर हमला

कई महीने जेल में रहे हैं महाबीर प्रसाद अकेला
’बोया पेड बबुल का’ को जब्त कर ली थी सरकार
तब राज्य में थी कांग्रेस पार्टी की सरकार

 एनडीटीवी पर प्रतिबन्ध को ले खूब बवाल है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसे हमला बताया जा रहा है। दूसरा पक्ष इसे एक सीमा तक सही, उससे आगे उच्छृंख्लता या स्वच्छन्दता बताता है। तर्क सबके चुनिन्दा हैं। राजनीति भी चयन की सुविधा वाली है। ऐसे प्रतिबन्ध नये नहीं हैं। इस जिला में तो वामपंथी विधायक महाबीर प्रसाद अकेला की लिखी पुस्तक ‘बोया पेड बबुल का’ को तो कांग्रेस की सरकार ने वितरण से पहले ही जब्त कर लिया था। बिहार-राजनीति का अपराधीकरण पुस्तक के अनुसार औरंगाबाद में महावीर प्रसाद अकेला की पुस्तक ‘बोया पेड बबुल का’ पर 25 अगस्त 1983 को प्रतिबन्ध लगा था। वराणसी में प्रकाशित होने से पहले ही सभी छपी किताबें जब्त कर ली गयी थीं। तब राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे- डा.जगन्नाथ मिश्रा। तब किसी ने श्री अकेला का साथ नहीं दिया। हद यह की प्रगतिशील माकपा ने भी साथ नहीं दिया जबकि उसी पार्टी से वे नवीनगर विधान सभा क्षेत्र से 1969 में विधायक रहे थे।
श्री अकेला के अनुसार, आगे पार्टी ने यह कह कर टिकट देने से इंकार कर दिया कि- एक समुदाय के लोग वोट नहीं देंगे। तब श्री अकेला ने 28 जुलाई 1983 से लेकर 29 अगस्त 83 तक छह-सात अर्जियां न्यायालय में जमानत के लिए दी किंतु इनको जमानत नहीं मिली। क्योंकि सरकार नहीं चाहती थी। तब किसी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खडा होने का साहस नहीं किया। ऐसी ही पसन्द और नापसन्द, चयन की राजनीति की वजह से देश में ऐसे हालात बन गये हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा आम लोगों को तत्काल प्रभावित तो करता है किंतु विचलित कतई नहीं करता। 

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