Sunday 1 January 2017

बड़ा दिल चाहिए साहब फजीहत कबूली में


नई ऊर्जा, स्फूर्ति  के साथ यात्रारम्भ !
365 दिन का साल बीत गया। नए वर्ष का स्वागत है। सब नए वर्ष का स्वागत कर रहे है। जश्न है और जश्न मनाया जा रहा है। किंतु जश्न को सराबोर करने वाले शुरा को मदान्ध राजा ने कब का प्रतिबंधित कर दिया सो भाई लोग सीमा ही पार कर गए। राज्य की सीमा के पार खूब सराबोर हुए भाई लोग। इस चिंता के साथ कि पुनः प्रवेश में समस्या न आये। इसकी भी जुगत बिठा ली गयी। सांस तक की महक बदल  देने का जुगत तो भाई लोग जानते ही है। खूब छक कर सराबोर हुआ गया और जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बदबू को भी खुशबूदार बना दिया गया। नया साल का शुभारंभ कुछ मित्रों ने इस जुगाड़ के साथ किया और उम्मीद कि नया साल का हर दिन ऐसी ही मस्ती भरा हो। कुछ मित्रों ने इससे बचते हुए परंपरा को निभाया। मौज मस्ती के साथ साल का आगाज किया गया। एक शानदार आयोजित पार्टी  रात तक चली। पार्क की खुशबू  नथुने को सुकून दे गयी तो पकवानों ने भी जिह्वा को मजा चखाया। इसे नकारात्मक भाव में मुहावरा मत समझियेगा। ठेठ सच भर है यह। हाँ, कुछ ऐसे चहरे भी दिखे जो बिन बुलाये मेहमान बने और जबरन का होस्ट भी। इधर आइये सर, उधर फलां साहब बुला रहे है सर। इसे दलाली का नया रूप नहीं समझिए। संबंधों का बेजा इस्तेमाल भी नहीं समझिए, क्योकि जुगाडु तकनीक में यह अब व्यवहार कुशलता का एक परिचय बन गया है। उचरूंग की तरह जबरन साथ में फोटो खींचाइये और भोली जनता को फोटू दिखा के खुद को पैरवीकार बताइए। यह आइडिया अच्छा है। कुछ लोगो का,  पीड़ितों का काम निकल जाता है। उनका भला हो जाता है। अब इसे कोइ निगेटिव मत के भाई। इन्टॉलरेंस का ज़माना है किंतु कहने का अधिकार सबका सुरक्षित भी है। जो नीची सोच का होता है उसकी भाषा भी वैसी ही होती है और समझ भी वैसी ही होती है। ऊंची सोच वाले गाली नहीं देते, आरोप नहीं मढ़ते, वे पुरस्कार वापस करते है। अभी राजनीति को यह सुट नही कर रहा तो वापसी शब्द शोर में तब्दील नहीं हुआ है। खैर,  टीवी पर एक ज्ञान मिला। सन्दर्भ पाकिस्तान का है किंतु प्रवृति तो सर्वव्यापी ही है। सर्जिकल स्ट्राइक को जब उसने खारिज किया तो कवि अशोक चारण को कहना पड़ा-
डगर में है किस जगह पर डर जाकर नहीं कहता।
मौक़ा पास होता है मगर जाकर नहीं कहता।।
बड़ा दिल चाहिए साहब फजीहत कबूली में।
गुंडा पिट भी गया हो तो घर जाकर नहीं कहता।।

खैर, सब कुछ भूल कर नई ऊर्जा, स्फूर्ति  के साथ नये साल का यात्रारम्भ करिए।
और अंत में हरिवंश राय बच्चन को पढ़िए और समझिए---
जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया, अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले, पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है, जो बीत गई सो बात गई।


2 comments:

  1. बहुत सही और सटीक लिखे हैं।

    ReplyDelete
  2. Very right,
    Intejaar rahti hai aapka aise post ka on watsapp...


    ReplyDelete